अमेज़न वनों का उन्मूलन
प्रिलिम्स के लिये:अमेज़न वर्षावन, अमेज़न में वनों की कटाई का कारण मेन्स के लिये:अमेज़न वनों का कार्बन उत्सर्जक के रूप में परिवर्तित होने का कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक अध्ययन के अनुसार, यह पाया गया कि ब्राज़ील के अमेज़न में वनों की कटाई का क्षेत्र पिछले वर्ष (2020) से 22% की वृद्धि के बाद 15 वर्षों में सबसे उच्च स्तर पर पहुँच गया।
- इससे पहले हुए एक अध्ययन के अनुसार, अमेज़न के जंगलों/वनों ने कार्बन डाइऑक्साइड ( Carbon dioxide- CO2) को अवशोषित करने के बजाय इसका उत्सर्जन करना शुरू कर दिया है।
- समय के साथ वैश्विक जलवायु परिवर्तन और अधिक वनों की कटाई के कारण अमेज़न के तापमान में वृद्धि एवं वर्षा के पैटर्न में बदलाव की संभावना है, जो निस्संदेह इस क्षेत्र के जंगलों, पानी की उपलब्धता, जैव विविधता, कृषि और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करेगा।
प्रमुख बिंदु
- अमेज़न में वनों की कटाई का कारण:
- पशुपालन:
- अमेज़न वर्षावन में वनों की कटाई के प्रमुख कारणों में से एक गौ-माँस (बीफ) की खपत से जुड़ा हुआ है।
- मवेशियों को चराने और चरागाह के निर्माण के लिये पेड़ों को काटकर एवं वनों को जलाकर वन के विशाल क्षेत्रों को साफ किया जाता है।
- ब्राज़ील जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन जैसे देशों को गौ-माँस (बीफ) का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, ने वर्ष 2019 में 1.82 मिलियन टन गौ-माँस (बीफ) का निर्यात किया।
- छोटे पैमाने पर कृषि:
- इसे लंबे समय से अमेज़न वर्षावन में वनों की कटाई के प्रमुख कारक के रूप में जाना जाता है।
- पशुपालन की तरह छोटे पैमाने की कृषि के लिये वनों को "काटकर जलाना" पड़ता है ताकि विभिन्न प्रकार की फसलों और चराई के लिये भूमि को साफ किया जा सके।
- आग:
- अन्य प्रकार के जंगलों के विपरीत अमेज़न के जंगल आग के अनुकूल नहीं होते हैं।
- वास्तव में अमेज़न बेसिन में वनों की कटाई से आग लगने की घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, वर्षावनों में उच्च स्तर की नमी होती है, जो उन्हें आग से बचाने में मदद करती है।
- औद्योगिक कृषि का संचालन:
- अमेज़न वर्षावन में औद्योगिक कृषि कार्य तेज़ी से बढ़ रहे हैं।
- अन्य कारण:
- सोने जैसे बहुमूल्य खनिजों के लिये खनन कार्य, अमेज़न के जंगल को और नुकसान पहुँचाते हैं।
- सड़कों और बाँधों सहित ऋण तथा बुनियादी ढाँचे पर खर्च के रूप में सरकारी प्रोत्साहन में वृद्धि।
- पशुपालन:
- अमेज़न वर्षावन:
- ये विश्व के सबसे बड़े उष्णकटिबंधीय वर्षावन हैं जो उत्तरी दक्षिण अमेरिका में अमेज़न नदी और इसकी सहायक नदियों के जल निकासी बेसिन के सहारे स्थित हैं।
- उष्णकटिबंधीय वर्षावन बंद वितान वन होते (Closed-Canopy Forests) हैं जो भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में 28 डिग्री के भीतर पाए जाते हैं।
- यहाँ या तो मौसमी रूप से या पूरे वर्ष में प्रतिवर्ष 200 सेमी. से अधिक वर्षा होती है।
- तापमान समान रूप से उच्च होता है जो 20 डिग्री सेल्सियस और 35 डिग्री सेल्सियस के मध्य होता है।
- इस प्रकार के वन एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, मैक्सिको और कई प्रशांत द्वीपों में पाए जाते हैं।
- अमेज़न एक विशाल बायोम है जो तेज़ी से विकसित आठ देशों- ब्राज़ील, बोलीविया, पेरू, इक्वाडोर, कोलंबिया, वेनेज़ुएला, गुयाना और सूरीनाम तथा फ्रांँस के एक समुद्री पार क्षेत्र (Overseas Territory) फ्रेंच गुयाना तक फैला हुआ है।
- अमेज़न वर्षावन लगभग 80% अमेज़न बेसिन को कवर करते हैं और दुनिया की लगभग 1/5 भूमि पर रहने वाली प्रजातियों का घर है तथा सैकड़ों स्वदेशी समूहों एवं कई अलग-अलग जनजातियों सहित लगभग 30 मिलियन लोगों का भी घर है।
- अमेज़न बेसिन 6 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र के साथ विस्तृत है, यह भारत के आकार का लगभग दोगुना है।
- यह बेसिन दुनिया के ताज़े पानी के प्रवाह का लगभग 20% महासागरों से प्राप्त करता है।
- ब्राज़ील के कुल क्षेत्रफल का लगभग 40% हिस्सा उत्तर में गुयाना हाइलैंड्स, पश्चिम में एंडीज़ पर्वत, दक्षिण में ब्राज़ील के केंद्रीय पठार और पूर्व में अटलांटिक महासागर से घिरा है।
- ये विश्व के सबसे बड़े उष्णकटिबंधीय वर्षावन हैं जो उत्तरी दक्षिण अमेरिका में अमेज़न नदी और इसकी सहायक नदियों के जल निकासी बेसिन के सहारे स्थित हैं।
- वनों की कटाई को रोकने के लिये पहलें:
- COP26 जलवायु शिखर सम्मेलन में ब्राज़ील उन कई देशों में शामिल था जिन्होंने वर्ष 2030 तक वनों की कटाई को रोकने का वादा किया था।
- लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट, 2021 में ‘लोअरिंग एमिशन बाय एक्सीलरेटिंग फॉरेस्ट फाइनेंस’ (Lowering Emissions by Accelerating Forest Finance- LEAF) गठबंधन की घोषणा की गई थी।
- REDD+ पहल: यह वन कार्बन स्टॉक के संरक्षण, वनों के सतत् प्रबंधन और वनों की कटाई एवं वन क्षरण से होने वाले उत्सर्जन को कम करने हेतु विकासशील देशों में जलवायु परिवर्तन शमन विकल्पों में से एक है।
स्रोत: द हिंदू
IRNSS-नाविक: इसरो
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, नाविक, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन मेन्स के लिये:नाविक की कार्यप्रणाली एवं इसकी उपयोगिता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उपराष्ट्रपति ने इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) को भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (NaVIC-नाविक) को वैश्विक उपयोग के लिये बनाने का सुझाव दिया है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- इस परियोजना को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2006 में अनुमोदित किया गया था और इसके वर्ष 2015-16 तक पूरा और कार्यान्वित होने की उम्मीद थी।
- इसका पहला उपग्रह (IRNSS-1A) 1 जुलाई, 2013 को और सातवें व अंतिम उपग्रह (IRNSS-1G) को 28 अप्रैल, 2016 को लॉन्च किया गया था।
- IRNSS-1G के अंतिम प्रक्षेपण के साथ भारत के प्रधानमंत्री द्वारा IRNSS का नाम बदलकर नाविक- NavIC (Navigation in Indian Constellation) कर दिया गया।
- परिचय:
- वर्तमान में IRNSS में आठ उपग्रह हैं, जिसमें भूस्थिर कक्षा में तीन उपग्रह और भू-समकालिक कक्षा में पाँच उपग्रह शामिल हैं।
- IRNSS-1I के IRNSS-1A की जगह लेने की उम्मीद है, जो अपनी तीन रूबिडियम परमाणु घड़ियों के विफल होने के बाद अप्रभावी हो गया था।
- इसका मुख्य उद्देश्य भारत और उसके पड़ोस में विश्वसनीय स्थिति, नेविगेशन एवं समय पर सेवाएँ प्रदान करना है।
- यह स्थापित और लोकप्रिय यूएस ‘ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम’ (जीपीएस) की तरह ही काम करता है, लेकिन उपमहाद्वीप में 1,500 किलोमीटर के दायरे में है।
- तकनीकी रूप से अधिक उपग्रहों वाली उपग्रह प्रणालियाँ स्थिति की अधिक सटीक जानकारी प्रदान करती हैं।
- हालाँकि जीपीएस (24 उपग्रह) जिसकी स्थिति सटीकता 20-30 मीटर है, की तुलना में नाविक 20 मीटर से कम की अनुमानित सटीकता को इंगित करने में सक्षम है।
- इसे मोबाइल टेलीफोनी मानकों के समन्वय के लिये एक वैश्विक निकाय ‘थर्ड जनरेशन पार्टनरशिप प्रोजेक्ट’ (3GPP) द्वारा प्रमाणित किया गया है।
- इसे वर्ष 2020 में हिंद महासागर क्षेत्र में संचालन के लिये ‘वर्ल्ड वाइड रेडियो नेविगेशन सिस्टम’ (WWRNS) के एक भाग के रूप में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) द्वारा मान्यता दी गई थी।
- इसरो स्वदेशी परमाणु घड़ियों और नेविगेशन सेवाओं में वृद्धि के साथ आईआरएनएसएस उपग्रहों की अगली पीढ़ी के निर्माण के लिये काम कर रहा है।
- वर्तमान में IRNSS में आठ उपग्रह हैं, जिसमें भूस्थिर कक्षा में तीन उपग्रह और भू-समकालिक कक्षा में पाँच उपग्रह शामिल हैं।
- संभावित उपयोग:
- स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन;
- आपदा प्रबंधन;
- वाहन ट्रैकिंग और फ्लीट प्रबंधन (विशेषकर खनन और परिवहन क्षेत्र हेतु);
- मोबाइल फोन के साथ एकीकरण;
- सटीक समय (एटीएम और पावर ग्रिड हेतु);
- मैपिंग और जियोडेटिक डेटा कैप्चर।
- महत्त्व:
- यह 2 सेवाओं के लिये वास्तविक समय की जानकारी देता है अर्थात् नागरिक उपयोग हेतु मानक पोज़ीशनिंग सेवा और प्रतिबंधित सेवा जिसे सेना के अधिकृत उपयोग के लिये एन्क्रिप्ट किया जा सकता है।
- भारत उन 5 देशों में से एक बन गया है, जिनके पास अपना स्वयं का नेविगेशन सिस्टम है, जैसे कि अमेरिका का GPS, रूस का ‘ग्लोनास’ (GLONASS), यूरोप का ‘गैलीलि’यो और चीन का बाइडू, इसलिये नौवहन उद्देश्यों के लिये अन्य देशों पर भारत की निर्भरता कम हो जाती है।
- यह भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति में मदद करेगा। यह देश की संप्रभुता एवं सामरिक आवश्यकताओं के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
- अप्रैल 2019 में सरकार ने ‘निर्भया मामले’ के फैसले के अनुसार देश के सभी वाणिज्यिक वाहनों के लिये ‘NavIC’-आधारित वाहन ट्रैकर्स को अनिवार्य कर दिया था।
- साथ ही क्वालकॉम टेक्नोलॉजी ने ‘NavIC’ का समर्थन करने वाले मोबाइल चिपसेट को सक्षम किया है।
- इसके अलावा व्यापक कवरेज के साथ परियोजना को सार्क देशों के साथ साझा किया जा सकता है। इससे क्षेत्रीय नौवहन प्रणाली को और एकीकृत करने में मदद मिलेगी तथा इस क्षेत्र के देशों के प्रति भारत की ओर से कूटनीतिक सद्भावना का संकेत मिलेगा।
जीपीएस एडेड जियो ऑगमेंटेड नेविगेशन (गगन):
- यह भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) के साथ संयुक्त रूप से कार्यान्वित एक ‘सैटेलाइट बेस्ड ऑग्मेंटेशन सिस्टम’ (SBAS) है।
- यह प्रणाली अन्य अंतरराष्ट्रीय SBAS प्रणालियों के साथ अंतःप्रचालनीय होगी और क्षेत्रीय सीमाओं के पार निर्बाध नेविगेशन की सुविधा प्रदान करेगी।
- ‘गगन’ सिग्नल-इन-स्पेस (SIS) जीसैट-8 और जीसैट-10 के माध्यम से उपलब्ध है।
- उद्देश्य:
- नागरिक उड्डयन अनुप्रयोगों हेतु आवश्यक सटीकता के साथ उपग्रह आधारित नेविगेशन सेवाएँ प्रदान करना।
- भारतीय हवाई क्षेत्र में बेहतर वायु यातायात प्रबंधन प्रदान करना।
स्रोत: पीआईबी
5 राज्यों के आकांक्षी ज़िलों के लिये यूएसओएफ योजना
प्रिलिम्स के लिये:नीति आयोग,आकांक्षी ज़िले, डिजिटल इंडिया, आत्मनिर्भर भारत मेन्स के लिये:यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड एवं इसके उद्देश्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पांँच राज्यों- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र और ओडिशा के आकांक्षी ज़िलों से अछूते गांँवों में 4 जी आधारित मोबाइल सेवाओं के प्रावधान हेतु सार्वभौमिक सेवा दायित्व निधि/यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (Universal Service Obligation Fund- USOF) योजना को मंज़ूरी दी है।
- नीति आयोग के एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स प्रोग्राम का उद्देश्य देश भर के 112 सबसे कम विकसित ज़िलों का तीव्रता के साथ प्रभावी रूप से विकास करना है।
प्रमुख बिंदु
- योजना के बारे में:
- इस योजना में पांँच राज्यों के 44 आकांक्षी ज़िलों के 7,287 गांँवों में 4जी आधारित मोबाइल सेवाएंँ उपलब्ध कराने की परिकल्पना की गई है। इसे यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (Universal Service Obligation Fund- USOF) द्वारा वित्तपोषित किया जाएगा।
- इससे आत्मनिर्भरता, सीखने की सुविधा, सूचना और ज्ञान के प्रसार, कौशल उन्नयन तथा विकास, आपदा प्रबंधन, ई-गवर्नेंस पहल, उद्यमों की स्थापना व ई-कॉमर्स सुविधाओं आदि के लिये उपयोगी डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलेगा।
- यह घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और आत्मनिर्भर भारत आदि के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये डिजिटल इंडिया के दृष्टिकोण को हासिल करना चाहता है।
- यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (USOF):
- USOF के बारे में:
- USOF इस बात को सुनिश्चित करता है कि ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में लोगों तक आर्थिक रूप से उचित कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी सेवाओं की सार्वभौमिक गैर-भेदभावपूर्ण पहुंँच सुनिश्चित हो।
- इसकी स्थापना वर्ष 2002 में संचार मंत्रालय द्वारा की गई थी।
- यह एक गैर-व्यपगत निधि है, अर्थात्, लक्षित वित्तीय वर्ष के तहत खर्च न की गई राशि व्यपगत नहीं होती है और अगले वर्षों के खर्च के लिये प्रयोग की जाती है।
- इस फंड के सभी प्रकार के क्रेडिट के लिये संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता होती है और इसे भारतीय टेलीग्राफ (संशोधन) अधिनियम, 2003 के तहत वैधानिक समर्थन प्राप्त है।
- उद्देश्य:
- आर्थिक: नेटवर्क विस्तार और आईसीटी सेवाओं को बढ़ावा देना।
- सामाजिक: एक्सेस गैप को समाप्त कर कम सेवा वाले और असेवित क्षेत्रों/समूहों को मुख्यधारा में लाना।
- राजनीतिक: नागरिकों को सूचना के माध्यम से अपने राजनीतिक अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम बनाना।
- संवैधानिक: लक्षित सब्सिडी के माध्यम से दूरसंचार/डिजिटल क्रांति के लाभ का समान वितरण और राष्ट्रीय संसाधनों का उचित आवंटन (संयुक्त यूएसओ लेवी)।
- महत्त्व:
- ग्रामीण क्षेत्रों के लिये ग्राम सार्वजनिक टेलीफोन (VPT), ग्रामीण सामुदायिक फोन (RCP), ग्रामीण घरेलू टेलीफोन (RDEL) और मोबाइल बुनियादी ढाँचा स्थापित किया जाता है।
- सुदूर और ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती दूरसंचार सेवाओं तक पहुँच के साथ यह शहरी प्रवास को रोकने में मदद कर सकता है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करना सुनिश्चित कर सकता है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में आईसीटी सेवाओं की बढ़ती जागरूकता और ग्रामीण लोगों की भागीदारी से स्वास्थ्य, शिक्षा आदि से संबंधित सुविधाओं को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
- यह ग्रामीण बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ-ग्रामीण) और ग्रामीण नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग (केपीओ-ग्रामीण) के विकास को सुनिश्चित कर सकता है।
- यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (USOF) को ग्रामीण आबादी के सामाजिक विकास के उद्देश्य से सरकारी योजनाओं के लाभों का विस्तार करने के लिये सही उपकरण के रूप में भी माना जाता है।
- USOF के बारे में:
संबंधित योजनाएँ
स्रोत: पीआईबी
महान प्राचीन शासक: सिकंदर और चंद्रगुप्त
प्रिलिम्स के लिये:सिकंदर, चंद्रगुप्त, चोल साम्राज्य, चंगेज़ खान मेन्स के लिये:शासकों की महानता संबंधी विवाद एवं इसके प्रभावी कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर को हराया था और फिर भी इतिहासकारों ने सिकंदर को महान कहा है।
- प्रारंभिक इतिहासकारों ने सिकंदर को महान कहा था। इसी तरह भारतीय इतिहास में सम्राट अशोक, राजराज, राजेंद्र चोल और अकबर के लिये 'महान' शब्द का इस्तेमाल किया गया है।
- हालाँकि बाद के इतिहासकारों ने अपना ध्यान व्यक्तिगत शासकों की राजनीतिक विजय से हटाकर अपने समय के समाज, अर्थव्यवस्था, कला और वास्तुकला की ओर केंद्रित किया है।
प्रमुख बिंदु
- राजाओं की महानता का कारण:
- सिकंदर:
- सिकंदर की शानदार सैन्य विजय इसका प्रमुख कारण है, जिसने प्राचीन विश्व के यूरोपीय लेखकों और इतिहासकारों को चकित कर दिया।
- उसने 30 वर्ष की आयु से पहले दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य (323 ईसा पूर्व) स्थापित किया था जो ग्रीस से लेकर भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा तक आधुनिक पश्चिमी और मध्य एशिया में फैला था।
- चंद्रगुप्त मौर्य:
- यह मौर्य साम्राज्य (321 ईसा पूर्व - 185 ईसा पूर्व) का संस्थापक था जो सिंधु और गंगा दोनों के मैदानों को नियंत्रित करता था एवं इसका साम्राज्य पूर्वी और पश्चिमी महासागरों तक फैला हुआ था।
- अपने शासन के केंद्र में पाटलिपुत्र के साथ मौर्य साम्राज्य ने पहली बार अधिकांश दक्षिण एशिया को एकीकृत किया।
- उन्होंने केंद्रीकृत प्रशासन और कर-संग्रह की एक व्यापक और कुशल प्रणाली की नींव रखी, जिसने उनके साम्राज्य का आधार बनाया।
- बुनियादी ढाँचे के निर्माण, वज़न और माप के मानकीकरण के साथ व्यापार एवं कृषि में सुधार तथा विनियमन किया गया एवं एक बड़ी स्थायी सेना हेतु प्रावधान किये गए।
- यह मौर्य साम्राज्य (321 ईसा पूर्व - 185 ईसा पूर्व) का संस्थापक था जो सिंधु और गंगा दोनों के मैदानों को नियंत्रित करता था एवं इसका साम्राज्य पूर्वी और पश्चिमी महासागरों तक फैला हुआ था।
- चोल साम्राज्य:
- चोल सम्राट राजराज प्रथम (985-1014) और राजेंद्र प्रथम (1014-1044) ने मज़बूत नौसेनाओं का निर्माण किया जिन्होंने मालदीव पर विजय प्राप्त की और बंगाल की खाड़ी के पार श्रीलंका व दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों तक पहुँचे।
- चंगेज़ खान और अन्य:
- चंगेज़ खान (1162-1227) ने एशिया और यूरोप के एक बड़े क्षेत्र पर अपने अधिकार की मुहर लगा दी तथा अन्य विजेता जैसे- तामेरलेन, एटिला द हुन और शारलेमेन के साथ ही अशोक, अकबर व औरंगज़ेब ने अपने बहुत बड़े साम्राज्यों का निर्माण किया।
- सिकंदर:
सिकंदर (356-323 BC):
- परिचय:
- सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व में प्राचीन ग्रीस के पेला में हुआ था और वह 20 साल की आयु में अपने पिता राजा फिलिप द्वितीय के सिंहासन पर बैठा।
- अगले 10 वर्षों में सिकंदर ने पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका के बड़े हिस्सों में अभियानों का नेतृत्व किया।
- 330 ईसा पूर्व में उसने गौगामेला के निर्णायक युद्ध में डेरियस III को हराया और आज के अफगानिस्तान के उत्तर में अमु दरिया क्षेत्र में स्थित बैक्ट्रिया में एक लंबे अभियान के बाद उसने हिंदूकुश को पार किया तथा काबुल घाटी में प्रवेश किया।
- सिकंदर का जन्म 356 ईसा पूर्व में प्राचीन ग्रीस के पेला में हुआ था और वह 20 साल की आयु में अपने पिता राजा फिलिप द्वितीय के सिंहासन पर बैठा।
- भारतीय अभियान:
- 326/327 ईसा पूर्व में सिकंदर ने पुराने फारसी साम्राज्य की सबसे दूर की सीमा सिंधु को पार किया और अपना भारतीय अभियान शुरू किया जो लगभग दो वर्ष तक चला।
- तक्षशिला के राजा ने सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन झेलम के पार उसे एक महान योद्धा द्वारा चुनौती दी गई, जिसे ग्रीक स्रोतों ने पोरस के रूप में पहचाना है।
- इसके बाद हुई हाइडेस्पीस की लड़ाई में सिकंदर जीत गया, लेकिन पोरस के साथ अपने प्रसिद्ध मुलाकात के बाद (जिसके बारे में कहा जाता है कि घायल राजा ने मांग की थी कि हमलावर सम्राट उसके साथ एक शासक के लिये उपयुक्त व्यवहार करे) वह अत्यधिक प्रभावित हुआ।
- वापसी:
- मगध का ‘नंद’ (362 ईसा पूर्व-321 ईसा पूर्व), जिसमें ग्रीक लेखकों के अनुसार, कम-से-कम 20,000 घुड़सवार, 200,000 पैदल सेना और 3,000 युद्ध हाथी शामिल थे।
- ‘गंगारिदाई साम्राज्य’, जो आज के पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में विस्तृत था।
- पोरस की हार के बाद सिकंदर गंगा नदी बेसिन में आगे बढ़ना चाहता था लेकिन पंजाब की पाँच नदियों में से अंतिम ‘ब्यास’ तक पहुँचने पर उसके सेनापतियों ने आगे जाने से इनकार कर दिया।
- इसने सिकंदर को वापस मुड़ने के लिये मजबूर कर दिया और वह दक्षिण की ओर सिंधु नदी के साथ आगे बढ़ते हुए उसके डेल्टा तक पहुँच गया, जहाँ उसने अपनी सेना का एक हिस्सा समुद्र के रास्ते ‘मेसोपोटामिया’ भेज दिया, जबकि दूसरे हिस्से को ‘मकरान तट’ के साथ ज़मीन के रास्ते पर ले गया।
- 324 ईसा पूर्व में वह फारस में ‘सुसा’ पहुँचा और अगले वर्ष प्राचीन शहर ‘बेबीलोन’ (वर्तमान बगदाद के दक्षिण में) में उसकी मृत्यु हो गई।
- माना जाता है कि उसके निरस्त भारतीय अभियान के बावजूद, सिकंदर कभी भी किसी लड़ाई में नहीं हारा और इस भविष्यवाणी को लगभग सही सिद्ध कर दिया कि वह पूरी दुनिया को जीत लेगा।
- जिस समय सिकंदर भारत से वापस लौटा, उसकी सेना थकी हुई थी, वह भारतीय मानसून में लड़ते-लड़ते थक चुकी थी, और यह संभव है कि वह दो महान सेनाओं की कहानियों से भयभीत थी जो आगे युद्ध के लिये उनकी प्रतीक्षा कर रही थीं:
चंद्रगुप्त और सिकंदर:
- इतिहासकारों का अनुमान है कि चंद्रगुप्त के सत्ता में आने का वर्ष 324 ई.पू. से 313 ई.पू. तक है; हालाँकि यह आमतौर पर स्वीकार किया जाता है कि 321 ईसा पूर्व में उसे सत्ता प्राप्त हुई, जबकि 297 ईसा पूर्व में उसकी मृत्यु हो गई।
- हालाँकि यदि इस तिथि को स्वीकार भी किया जाता है तो यह समय सिकंदर के भारत छोड़ने के बाद और ‘बेबीलोन’ में उसकी मृत्यु से ठीक पूर्व का होगा।
- ग्रीक सूत्रों से पता चलता है कि चंद्रगुप्त, सिकंदर के बाद के भारतीय अभियान के दौरान उससे संपर्क में रहा होगा।
- ‘ए. एल. बाशम’ की ‘द वंडर दैट वाज़ इंडिया’ में बताया गया है कि “ग्रीक के शास्त्रीय स्रोत ‘सैंड्रोकोटस’ नाम के एक भारतीय युवा का ज़िक्र करते हैं, जो कि भारतीय स्रोतों में ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ के समान है।
- इतिहासकार ‘प्लूटार्क’ का कहना है कि ‘सैंड्रोकोटस’ ने सिकंदर को ब्यास से आगे बढ़ने और नंद सम्राट पर हमला करने की सलाह दी, क्योंकि नंद वंश का आशय उस समय इतना अलोकप्रिय था कि लोग स्वयं सिकंदर के समर्थन में उठ खड़े होते।
- लैटिन इतिहासकार ‘जस्टिन’ कहते हैं कि बाद में ‘सैंड्रोकोटस’ ने अपने भाषण से सिकंदर को नाराज़ कर दिया और अंततः वह ग्रीक सेना को खदेड़ने तथा भारत का सिंहासन हासिल करने में सफल रहा।
- इन स्रोतों के आधार पर ‘ए.एल. बाशम’ ने निष्कर्ष निकाला कि ‘यह मानना उचित है कि सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, जो सिकंदर के आक्रमण के तुरंत बाद सत्ता में आया, कम-से-कम सिकंदर के विषय में जानते था और शायद उससे प्रेरित भी था।’
चंद्रगुप्त:
- परिचय:
- ग्रीक और भारतीय स्रोत इस बात से सहमत हैं कि चंद्रगुप्त ने ‘नंद’ वंश के अलोकप्रिय अंतिम राजा- ‘धननंद’ को उखाड़ फेंका और उसकी राजधानी पाटलिपुत्र पर कब्ज़ा कर लिया।
- माना जाता है ‘चंद्रगुप्त’ को ब्राह्मण दार्शनिक ‘कौटिल्य’ का संरक्षण प्राप्त था, जिन्हें नंद राजा द्वारा अपमानित किया गया था।
- चाणक्य (कौटिल्य और विष्णुगुप्त) को प्रमुख भारतीय ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ के लेखन का श्रेय दिया जाता है, जो कि राजनीति विज्ञान, राज्य कला, सैन्य रणनीति और अर्थव्यवस्था पर एक अग्रणी भारतीय ग्रंथ है।
- बौद्ध ग्रंथों का कहना है कि चंद्रगुप्त मौर्य ‘शाक्य’ से जुड़े क्षत्रिय ‘मोरिया’ वंश का था।
- हालाँकि ब्राह्मणवादी ग्रंथ ‘मौर्यों’ को शूद्र के रूप में संदर्भित करते हैं।
- कौटिल्य की रणनीति और अपनी महान सैन्य शक्ति से प्रेरित होकर चंद्रगुप्त अपनी शाही महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने के अभियान की ओर बढ़ गया।
- ग्रीक और भारतीय स्रोत इस बात से सहमत हैं कि चंद्रगुप्त ने ‘नंद’ वंश के अलोकप्रिय अंतिम राजा- ‘धननंद’ को उखाड़ फेंका और उसकी राजधानी पाटलिपुत्र पर कब्ज़ा कर लिया।
- उत्तर-पश्चिम की ओर अभियान:
- सिकंदर की सेना द्वारा पीछे छोड़े गए क्षेत्रों पर कब्ज़ा करने हेतु वह उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ गया।
- ‘सिंधु’ तक पहुँचते ही ये क्षेत्र तेज़ी से उसके कब्ज़े में आ गए, हालाँकि वह इससे आगे बढ़ने में असफल रहा, क्योंकि सिकंदर के उत्तराधिकारी ‘सेल्यूकस निकेटर’ ने इस क्षेत्र पर अपनी पकड़ मज़बूत कर ली थी।
- इसके पश्चात् ‘चंद्रगुप्त’ मध्य भारत की ओर चला गया, लेकिन 305 ईसा पूर्व तक वह उत्तर-पश्चिम की ओर वापस लौट आया, जहाँ उसने सेल्यूकस निकेटर के विरुद्ध एक सैन्य अभियान का नेतृत्त्व किया, जिसमें वह सफल रहा।
- 303 ईसा पूर्व में हुई ‘शांति संधि’ से सेल्यूकस निकेटर के कुछ क्षेत्र, जो वर्तमान में पूर्वी अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और मकरान को कवर करते हैं, चंद्रगुप्त मौर्य को सौंप दिये गए।
- इस दौरान कुछ वैवाहिक गठबंधन भी हुए तथा अभियान के दौरान व बाद में मौर्य तथा यूनानियों के बीच सांस्कृतिक संपर्क काफी बढ़ गया।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
कृषि कानूनों को निरस्त करना
प्रिलिम्स के लिये:कृषि कानून, कृषि उपज विपणन समिति, न्यूनतम समर्थन मूल्य, सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:कानून को निरस्त करने की प्रक्रिया |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की।
- संसद (लोकसभा + राज्यसभा + राष्ट्रपति) के पास किसी भी कानून को बनाने, संशोधित करने और निरस्त करने का अधिकार है।
- कृषि कानूनों को लेकर एक साल से अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर मुख्य रूप से पंजाब और हरियाणा राज्यों के किसानों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था।
प्रमुख बिंदु
- तीन कृषि कानून:
- किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन व सुविधा) अधिनियम, 2020: इसका उद्देश्य मौजूदा कृषि उपज विपणन समिति (APMC) को मंडियों के बाहर कृषि उपज में व्यापार करने की अनुमति देना है।
- मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण व संरक्षण) समझौता अधिनियम, 2020: यह अनुबंध खेती के लिये एक फ्रेमवर्क प्रदान करता है।
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020: इसका उद्देश्य आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाना है।
- कानून बनाने का कारण:
- कृषि विपणन में सुधार की लंबे समय से मांग की जा रही है, यह एक ऐसा विषय है जो राज्य सरकारों के दायरे में आता है।
- केंद्र सरकार ने 2000 के दशक के प्रारंभ में राज्यों के APMC अधिनियमों में सुधारों पर ज़ोर देकर इस मुद्दे को उठाया।
- तत्कालीन सरकार के तहत कृषि मंत्रालय ने वर्ष 2003 में एक मॉडल APMC अधिनियम तैयार किया और इसे राज्यों के बीच परिचालित किया।
- इसके पहले आगामी सरकारों ने भी इन सुधारों पर ज़ोर दिया लेकिन यह देखा गया कि यह राज्य का विषय है, केंद्र को राज्यों के मॉडल APMC अधिनियम अपनाने में बहुत कम सफलता मिली है।
- इसी पृष्ठभूमि में सरकार ने इन कानूनों को पारित करके इस क्षेत्र में सुधार किये।
- किसानों के विरोध का कारण:
- कृषि कानूनों को निरस्त करना: विरोध करने वाले किसान संगठनों की पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण मांग तीन नए कृषि कानूनों को निरस्त करना है।
- किसानों के अनुसार, कानून बड़े निगमों के अनुकूल बनाया गया है जो भारतीय खाद्य और कृषि व्यवसाय पर हावी होना चाहते हैं तथा ये किसानों की बातचीत करने की शक्ति को कमज़ोर करेंगे। साथ ही इससे बड़ी निजी कंपनियों, निर्यातकों, थोक विक्रेताओं और प्रसंस्करण को बढ़ावा मिल सकता है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य: किसानों की दूसरी मांग उचित मूल्य पर फसलों की खरीद सुनिश्चित करने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी है।
- किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और पारंपरिक खाद्यान्न खरीद प्रणाली को जारी रखने के लिये एक विधेयक के रूप में लिखित आश्वासन प्राप्त करने की भी मांग कर रहे हैं।
- किसान संगठन चाहते हैं कि APMC या मंडी व्यवस्था को सुरक्षित रखा जाए।
- विद्युत (संशोधन) विधेयक: किसानों की तीसरी मांग विद्युत (संशोधन) विधेयक को वापस लेने की है, क्योंकि उनका मानना है कि इससे उन्हें मुफ्त बिजली नहीं मिलेगी।
- स्वामीनाथन आयोग: किसान स्वामीनाथन आयोग द्वारा अनुशंसित एमएसपी की मांग कर रहे हैं।
- स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि एमएसपी में सरकार को उत्पादन की औसत लागत की कम-से-कम 50% वृद्धि करनी चाहिये। इसे C2 + 50% सूत्र के रूप में भी जाना जाता है।
- इसमें किसानों को 50% प्रतिफल/रिटर्न देने के लिये पूंजी एवं भूमि पर लगान (जिसे ’C2’ कहा जाता है) को भी शामिल किया गया है।
- कृषि कानूनों को निरस्त करना: विरोध करने वाले किसान संगठनों की पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण मांग तीन नए कृषि कानूनों को निरस्त करना है।
- क्रियान्वयन पर रोक:
- जनवरी 2021 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी गई थी।
- ये कृषि कानून अध्यादेश के प्रख्यापित होने तथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इन पर रोक लगाने तक केवल 221 दिनों (5 जून, 2020 से 12 जनवरी, 2021) तक ही लागू रहे।
- रोक के बाद से कानूनों को निलंबित कर दिया गया है। सरकार ने तीन कृषि कानूनों में से एक के माध्यम से अधिनियम में संशोधन करते हुए स्टॉक सीमा का निर्धारण करने के लिये आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के पुराने प्रावधानों का उपयोग किया है।
- जनवरी 2021 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी गई थी।
- कानून को निरस्त करने के प्रभाव:
- परामर्श की आवश्यकता:
- निरसन इस बात को रेखांकित करता है कि ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था में भविष्य में बेहतर सुधार के किसी भी प्रयास हेतु न केवल सुधारों के बेहतर डिज़ाइन की, बल्कि व्यापक स्तर पर स्वीकृति के लिये भी परामर्श की आवश्यकता होगी।
- इन कानूनों के निरसन से सरकार सुधारों को फिर से आगे बढ़ाने में हिचकिचाएगी।
- निःसंदेह सरकार को सुधार के लिये बहुत सावधानी बरतनी होगी।
- किसानों की निम्न आय:
- यह देखते हुए कि भारत में औसत जोत का आकार मात्र 0.9 हेक्टेयर (2018-19) है, यह कहा जा सकता है कि जब तक कोई किसान उच्च-मूल्य वाली कृषि को नहीं अपनाता है- जहाँ रसद, भंडारण, प्रसंस्करण, ई-कॉमर्स और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में निजी निवेश आवश्यक है, किसानों की आय में वृद्धि नहीं हो सकती है।
- इसमें कोई संदेह नहीं है कि इन क्षेत्रों में उत्पादन के साथ-साथ इनपुट विपणन में भी सुधारों की आवश्यकता है, जिसमें भूमि पट्टा बाज़ार और सभी इनपुट सब्सिडी- उर्वरक, बिजली, ऋण व कृषि मशीनरी का प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण शामिल है।
- उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव:
- रसद कोल्ड चेन, कृषि और कृषि उपकरण से संबंधित उद्योग सबसे अधिक प्रभावित होंगे क्योंकि उन्हें इन कानूनों का प्रत्यक्ष लाभार्थी माना जाता था।
- स्थिर कृषि-जीडीपी:
- पिछले 14 वर्षों में कृषि- सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP)) की वृद्धि 3.5% प्रतिवर्ष रही है। इस प्रवृत्ति के जारी रहने की उम्मीद है, वर्षा के पैटर्न के आधार पर कृषि-जीडीपी में मामूली बदलाव हो सकता है।
- भारतीय खाद्य निगम के खाद्यान्न भंडार में अनाज के भंडार के साथ चावल और गेहूंँ के फसल पैटर्न में परिवर्तन होगा।
- परामर्श की आवश्यकता:
आगे की राह
- एक सकारात्मक स्तर पर कृषि कानूनों के साथ प्रयास सरकार को महत्त्वपूर्ण सबक प्रदान कर सकता है। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण बिंदु यह है कि आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया को अधिक परामर्शी व पारदर्शीआधार पर संभावित लाभार्थियों को बेहतर ढंग से संप्रेषित किये जाने की आवश्यकता है।
- यह समावेशन भारत की लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली के केंद्र में निहित है। हमारे समाज की तर्कशील प्रकृति को देखते हुए सुधारों को लागू करने के लिये समय और सहजता की आवश्यकता है लेकिन इस बात को सुनिश्चित करने हेतु सभी का मन भी जीतना होगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
कोविड-19 के कारण लैंगिक समानता को खतरा: यूनेस्को अध्ययन
प्रिलिम्स के लिये:यूनेस्को, अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस, ‘नो-टेक’ और ‘लो-टेक’ रिमोट लर्निंग मेन्स के लिये:कोविड-19 के कारण स्कूल बंद होने के लैंगिक प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूनेस्को ने ‘व्हेन स्कूल्स शट’ नामक एक नया अध्ययन जारी किया, जिसमें सीखने, स्वास्थ्य और कल्याण पर कोविड-19 के कारण स्कूल बंद होने के लैंगिक प्रभाव को उजागर किया गया है।
इसे वर्ष 2021 में अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस (11 अक्तूबर) के अवसर पर जारी किया गया था।
अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस:
- इतिहास:
- वर्ष 1995 में बीजिंग में आयोजित महिलाओं पर वैश्विक सम्मेलन में युवा और कमज़ोर लड़कियों पर केंद्रित एक कार्यक्रम की आवश्यकता की पहचान की गई थी।
- यह पहल युवा महिलाओं के सामने आने वाली चुनौती का समाधान करने के लिये एक गैर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय कार्ययोजना के रूप में शुरू हुई।
- 11 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस घोषित करने का एक प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2011 में अपनाया गया था।
- वर्ष 2020 में इसने बीजिंग घोषणापत्र को अपनाने के 25 साल पूरे कर लिये।
- लक्ष्य:
- यह दुनिया भर में युवा लड़कियों की आवाज़ को सशक्त बनाने और बढ़ाने के लिये मनाया जाता है।
- 2021 की थीम:
- 'डिजिटल जनरेशन', हमारी जनरेशन'।
प्रमुख बिंदु
- अध्ययन के बारे में:
- ‘व्हेन स्कूल्स शट’: कोविड-19 के कारण स्कूल बंद होने के लैंगिक प्रभाव” शीर्षक वाले वैश्विक अध्ययन से पता चलता है कि इसने लड़कियों और लड़कों, युवा महिलाओं व पुरुषों को स्कूल बंद होने की वजह से अलग तरह से प्रभावित किया था।
- कोविड-19 महामारी के चरम समय पर 190 देशों में 1.6 बिलियन छात्र स्कूल बंद होने से प्रभावित हुए थे।
- लैंगिक प्रभाव के क्षेत्र:
- घरेलू मांग:
- गरीब परिवारों के संदर्भों में लड़कियों के सीखने का समय घर के बढ़ते कामों के कारण बाधित होता था। सीखने में लड़कों की भागीदारी आय-सृजन गतिविधियों तक सीमित थी।
- डिजिटल डिवाइड:
- इंटरनेट-सक्षम उपकरणों तक सीमित पहुँच, डिजिटल कौशल की कमी और तकनीकी उपकरणों के उपयोग को प्रतिबंधित करने वाले सांस्कृतिक मानदंडों के कारण लड़कियों को कई संदर्भों में डिजिटल दूरस्थ आधार पर सीखने के तौर-तरीकों में संलग्न होने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- अध्ययन में कहा गया है कि ‘डिजिटल लैंगिक विभाजन’ कोविड-19 संकट से पहले से ही एक चिंता का विषय था।
- इंटरनेट-सक्षम उपकरणों तक सीमित पहुँच, डिजिटल कौशल की कमी और तकनीकी उपकरणों के उपयोग को प्रतिबंधित करने वाले सांस्कृतिक मानदंडों के कारण लड़कियों को कई संदर्भों में डिजिटल दूरस्थ आधार पर सीखने के तौर-तरीकों में संलग्न होने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- स्कूल वापसी की दर:
- स्कूल वापसी दरों के बारे में आज तक उपलब्ध सीमित आँकड़े भी लैंगिक असमानताओं को दर्शाते हैं।
- केन्या में चार काउंटियों में किये गए एक अध्ययन में पाया गया कि 16% लड़कियाँ और 15 से 19 वर्ष की आयु के 8% लड़के वर्ष 2021 की शुरुआत में स्कूल फिर से खुलने के बाद के दो महीनों के दौरान नामांकन करने में विफल रहे।
- स्कूल वापसी दरों के बारे में आज तक उपलब्ध सीमित आँकड़े भी लैंगिक असमानताओं को दर्शाते हैं।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- स्कूल बंद होने से बच्चों के स्वास्थ्य पर असर पड़ा है, खासकर उनके मानसिक स्वास्थ्य, भलाई और सुरक्षा पर।
- दुनिया भर के 15 देशों में लड़कियों ने लड़कों की तुलना में अधिक तनाव, चिंता और अवसाद की सूचना दी। LGBTQ शिक्षार्थियों ने उच्च स्तर के अलगाव और चिंता की सूचना दी।
- स्कूल बंद होने से बच्चों के स्वास्थ्य पर असर पड़ा है, खासकर उनके मानसिक स्वास्थ्य, भलाई और सुरक्षा पर।
- घरेलू मांग:
- सिफारिशें:
- नीतियों और कार्यक्रमों में कारक लिंग:
- इस अध्ययन में शिक्षा समुदाय से आह्वान किया गया है कि वे कमज़ोर और संवेदनशील समुदायों की घटती भागीदारी और स्कूल में वापसी की कम दरों से निपटने के लिये नीतियों व कार्यक्रमों में लिंग कारक को शामिल करें, जिसमें नकद हस्तांतरण तथा गर्भवती लड़कियों और किशोर उम्र की माताओं को विशिष्ट सहायता शामिल है।
- ट्रेंड को ट्रैक करना और नीतिगत हस्तक्षेपों का विस्तार:
- बाल विवाह के साथ-साथ जबरन विवाह को समाप्त करने के लिये रुझानों को ट्रैक करने एवं नीतिगत हस्तक्षेपों का विस्तार करने हेतु निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है तथा ऐसी प्रथाएँ जो लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य के अधिकार को प्रभावित करती हैं तथा उनकी दीर्घकालिक संभावनाओं को कम करती हैं, को जल्द-से-जल्द समाप्त किये जाने की आवश्यकता है।
- ‘नो-टेक’ और ‘लो-टेक’ रिमोट लर्निंग सॉल्यूशंस:
- ‘नो-टेक’ और ‘लो-टेक’ रिमोट लर्निंग सॉल्यूशंस, स्कूलों को व्यापक मनोसामाजिक सहायता प्रदान करने हेतु उपायों के साथ-साथ डेटा के माध्यम से भागीदारी की निगरानी करने हेतु आवश्यक है।
- नीतियों और कार्यक्रमों में कारक लिंग:
स्रोत: द हिंदू
विश्व मत्स्य दिवस: 21 नवंबर
प्रिलिम्स के लिये:समुद्री शैवाल पार्क, प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, ब्लू रेवोल्यूशन स्कीम, पाक बे' योजना मेन्स के लिये:भारत के लिये मत्स्यपालन क्षेत्र का महत्त्व एवं इस क्षेत्र की चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हर वर्ष 21 नवंबर को विश्व मत्स्य दिवस (World Fisheries Day- WFD) मनाया जाता है।
- WFD के अवसर पर भुवनेश्वर में मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय द्वारा पुरस्कार समारोह का आयोजन किया गया था।
- बालासोर ज़िले (ओडिशा) को भारत के "सर्वश्रेष्ठ समुद्री ज़िले" के रूप में सम्मानित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- WFD को विश्व भर में सभी मछुआरों, मछली किसानों और संबंधित हितधारकों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिये मनाया जाता है।
- इसे वर्ष 1997 में शुरू किया गया था जब "वर्ल्ड फोरम ऑफ फिश हार्वेस्टर्स एंड फिशवर्कर्स " (World Forum of Fish Harvesters & Fish Workers) की मीटिंग नई दिल्ली में हुई, इसमें 18 देशों के प्रतिनिधियों के साथ "वर्ल्ड फिशरीज़ फोरम" (World Fisheries Forum) का गठन किया गया था तथा स्थायी मछली पकड़ने की प्रथाओं और नीतियों के वैश्विक जनादेश की वकालत करते हुए एक घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए ।
- इसका उद्देश्य समुद्री और अंतर्देशीय संसाधनों की स्थिरता के लिये अत्यधिक मछली पकड़ने की गतिविधियों, आवास विनाश और अन्य गंभीर खतरों पर ध्यान आकर्षित करना है।
मत्स्य पालन क्षेत्र:
- मत्स्य पालन क्षेत्र के बारे में:
- फिशरीज़ समुद्री, तटीय और अंतर्देशीय क्षेत्रों में जलीय जीवों का कब्ज़ा है।
- जलीय कृषि के साथ-साथ समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्य पालन, प्रसंस्करण, विपणन तथा वितरण दुनिया भर में लगभग 820 मिलियन लोगों को भोजन, पोषण व आय का स्रोत प्रदान करते हैं। कई लोगों के लिये यह उनकी पारंपरिक सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा है।
- वैश्विक मत्स्य संसाधनों की स्थिरता के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक अवैध, असूचित और अनियमित रूप से मछली पकड़ना है।
- भारतीय परिदृश्य:
- वर्ष 2019-20 में 142 लाख टन के कुल मत्स्य उत्पादन के साथ इस क्षेत्र में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी कुल 8% रही ।
- इसी अवधि के दौरान भारत का मत्स्य निर्यात 46,662 करोड़ रुपए रहा, जो भारत के कृषि निर्यात का लगभग 18% है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक 22 मिलियन मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य हासिल करना है।
- मत्स्य पालन क्षेत्र ने पिछले कुछ वर्षों में तीन बड़े परिवर्तन देखे हैं:
- अंतर्देशीय जलीय कृषि का विकास, विशेष रूप से मीठे पानी की जलीय कृषि।
- मछली पकड़ने में मशीनीकरण का विकास।
- खारे पानी के झींगा जलीय कृषि की सफल शुरुआत।
- पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2021-22 में मत्स्य पालन क्षेत्र के लिये बजट में 34% की वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2019-20 में 142 लाख टन के कुल मत्स्य उत्पादन के साथ इस क्षेत्र में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी कुल 8% रही ।
- भारत के लिये मत्स्य पालन का महत्त्व:
- भारत विश्व में जलीय कृषि के माध्यम से मछली का दूसरा प्रमुख उत्पादक देश है।
- भारत विश्व में मछली का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक देश है क्योंकि यह वैश्विक मछली उत्पादन में 7.7% का योगदान देता है।
- वर्तमान में यह क्षेत्र देश के भीतर 2.8 करोड़ से अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करता है। फिर भी यह अप्रयुक्त क्षमता (Untapped Potential) वाला क्षेत्र है।
- भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 का अनुमान है कि अब तक देश की अंतर्देशीय क्षमता का केवल 58% ही दोहन किया जा सका है।
- बुनियादी ढाँचे से संबंधित चुनौतियों के बावजूद पिछले छह वर्षों में केंद्र सरकार के उपायों ने सुनिश्चित किया कि मत्स्य पालन क्षेत्र 10% से अधिक की वार्षिक वृद्धि दर दर्ज करना जारी रखे।
- मत्स्य पालन क्षेत्र की चुनौतियाँ:
- खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, वैश्विक समुद्री मछली के लगभग 90% स्टॉक का या तो पूरी तरह से दोहन किया गया है या यह अधिक हो गया है या यह काफी मात्रा में समाप्त हो गया है जिसकी रिकवरी जैविक रूप से संभव नहीं हो सकती है।
- जलीय निकायों में प्लास्टिक और अन्य अपशिष्ट जैसे हानिकारक पदार्थों का निर्वहन जो जलीय जीवन के लिये विनाशकारी परिणाम पैदा करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन
- मत्स्य पालन में सुधार के लिये सरकार के प्रयास:
- फिशिंग हार्बर:
- पाँच प्रमुख फिशिंग हार्बर (कोच्चि, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पारादीप, पेटुआघाट) का आर्थिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकास।
- समुद्री शैवाल पार्क:
- तमिलनाडु में बहुउद्देशीय समुद्री शैवाल पार्क एक हब और स्पोक मॉडल पर विकसित गुणवत्ता वाले समुद्री शैवाल आधारित उत्पादों के उत्पादन का केंद्र होगा।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना:
- यह 15 लाख मछुआरों, मत्स्य पालकों आदि को प्रत्यक्ष रोज़गार देने का प्रयास करती है जो अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसरों के रूप में इस संख्या का लगभग तीन गुना है।
- इसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक मछुआरों, मत्स्य पालकों और मत्स्य श्रमिकों की आय को दोगुना करना है।
- 'पाक बे' योजना:
- ‘डायवर्सिफिकेशन ऑफ ट्राउल फिशिंग बोट्स फ्रॉम पाक स्ट्रेट्स इनटू डीप सी फिशिंग बोट्स’ नामक यह योजना वर्ष 2017 में ‘केंद्र प्रायोजित योजना’ के तौर पर लॉन्च की गई थी। इसे ‘ब्लू रेवोल्यूशन स्कीम’ के हिस्से के रूप में लॉन्च किया गया था।
- समुद्री मत्स्य पालन विधेयक:
- इस विधेयक में केवल ‘मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958’ के तहत पंजीकृत जहाज़ों को ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ (EEZ) में मछली पकड़ने के लिये लाइसेंस देने का प्रस्ताव शामिल है।
- मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (FIDF):
- FIDF से मत्स्य पालन से जुड़ी बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं की स्थापना एवं प्रबंधन से निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।
- किसान क्रेडिट कार्ड (KCC):
- किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना वर्ष 1998 में किसानों को उनकी खेती के लिये लचीली और सरलीकृत प्रक्रिया के साथ एकल खिड़की के तहत बैंकिंग प्रणाली से पर्याप्त और समय पर ऋण सहायता प्रदान करने हेतु शुरू की गई थी तथा अन्य ज़रूरतों जैसे कि कृषि आदानों की खरीद यथा- बीज, उर्वरकों, कीटनाशकों आदि की खरीद में इसका उपयोग कर अपनी उत्पादन आवश्यकताओं के लिये नकद आहरित करते हैं।
- समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (MPEDA):
- MPEDA राज्य के स्वामित्व वाली एक नोडल एजेंसी है जो मत्स्य उत्पादन और संबद्ध गतिविधियों से जुड़ी है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1972 में समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम (MPEDA), 1972 के तहत की गई थी ।
- फिशिंग हार्बर:
आगे की राह
- राज्यों को एक-दूसरे से प्रेरित होने और समुद्री क्षेत्र में विकास के विकल्प तलाशने की आवश्यकता है।
- मछली पकड़ने के लिये पर्यावरणीय अनुकूल विधियों की ज़रूरत है और खपत को जारी रखते हुए इस क्षेत्र को बनाए रखने की भी आवश्यकता है।
- भारत को अपनी मछली पकड़ने की प्रणाली और अन्य संबंधित पहलुओं जैसे फ्रीजिंग, पैकेजिंग आदि को वैज्ञानिक रूप से विकसित करने की आवश्यकता है।