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कृषि

किसान विरोध

  • 22 Sep 2020
  • 8 min read

यह एडिटोरियल द हिंदू में प्रकाशित “It’s a no green signal from the farm world” लेख पर आधारित है। यह संसद में कृषि विपणन सुधारों से संबंधित तीन विधेयकों के संबंध में किसानों के विरोध के बारे में विश्लेषण करता है।

संदर्भ

हाल ही में विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा राज्यों के किसानों द्वारा तीन कृषि विधेयकों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया गया है, जो जून 2020 में जारी किये गए अध्यादेशों को बदलना चाहते हैं। ये विधेयक कृषि वस्तुओं के व्यापार, मूल्य आश्वासन, अनुबंध सहित कृषि सेवाओं और आवश्यक वस्तुओं के लिये स्टॉक सीमा में कृषि अर्थव्यवस्था के कुछ प्रमुख पहलुओं में बदलाव लाने की परिकल्पना करते हैं। इन विधेयकों में कृषि विपणन प्रणाली में बहुत आवश्यक सुधार लाने की मांग की गई है जैसे कि कृषि उपज के निजी स्टॉक पर प्रतिबंध को हटाना या बिचौलियों से मुक्त व्यापारिक क्षेत्र बनाना। हालाँकि किसान आशंकित हैं कि इन विधेयकों द्वारा समर्थित मुक्त बाज़ार की अवधारणा न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price- MSP) प्रणाली को कमज़ोर कर सकती  है और किसानों को बाज़ार की शक्तियों के प्रति संवेदनशील बना सकती है।

तीन कृषि विधेयक जो विवादित हैं:

  • किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक, 2020।
  • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता विधेयक, 2020।
  • आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020।

विधेयकों के उद्देश्य

  • इन विधेयकों का उद्देश्य कृषि उपज बाज़ार समितियों (Agricultural Produce Market Committees- APMC) की सीमाओं से बाहर बिचौलियों और सरकारी करों से मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाकर कृषि व्यापार में सरकार के हस्तक्षेप को दूर करना है।
    • यह किसानों को बिचौलियों के माध्यम से और अनिवार्य शुल्क जैसे लेवी का भुगतान किये बिना इन नए क्षेत्रों में सीधे अपनी उपज बेचने का विकल्प देगा।
  • ये विधेयक अंतर्राज्यीय व्यापार पर स्टॉक होल्डिंग सीमा के साथ-साथ प्रतिबंधों को हटाने और अनुबंध खेती के लिये एक ढाँचा बनाने की मांग करते हैं।
  • साथ ही ये विधेयक बड़े पैमाने पर किसान उत्पादक संगठनों (Farmer Producer Organisations- FPO) के निर्माण को बढ़ावा देते हैं और अनुबंध खेती के लिये एक किसान अनुकूल वातावरण बनाने में मदद करेंगे जहाँ छोटे किसान भी लाभ उठा सकते हैं।
  • ये विधेयक निजी क्षेत्र को भंडारण, ग्रेडिंग और अन्य मार्केटिंग बुनियादी ढांचे में निवेश करने में सक्षम कर सकते हैं।
  • इन विधेयकों के संयुक्त प्रभाव से कृषि उपज के लिये 'वन नेशन, वन मार्केट' बनाने में मदद मिलेगी।

किसानों और विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दे

  • संघीय दृष्टिकोण: किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक, 2020 APMC क्षेत्राधिकार के बाहर नामित व्यापार क्षेत्रों में अप्रभावित वाणिज्य के लिये प्रावधान करता है।
    • इसके अलावा यह विधेयक केंद्र सरकार को इस कानून के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये राज्यों को आदेश जारी करने का अधिकार देता है।
    • हालाँकि व्यापार और कृषि के मामलों को राज्य सूची के विषयों का हिस्सा होने के कारण राज्यों में नाराज़गी है।
  • परामर्श की कमी: पहले अध्यादेश मार्ग और अब उचित परामर्श के बिना विधेयकों को पारित करने का जल्दबाजी का प्रयास किसानों सहित विभिन्न हितधारकों के बीच अविश्वास पैदा करता है।
    • इसके अलावा APMC क्षेत्र के बाहर व्यापार क्षेत्रों को अनुमति देने से किसान आशंकित हो गए हैं कि नई प्रणाली से न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली अंततः बाहर निकल जाएगी।
  • गैर-APMC मंडियों में किसी भी विनियमन की अनुपस्थिति: किसानों द्वारा उठाया गया एक और मुद्दा यह है कि प्रस्तावित विधेयक किसानों के हितों की कीमत पर कॉर्पोरेट हितों को वरीयता देते हैं।
    • गैर-APMC मंडियों में किसी भी विनियमन के अभाव में किसानों को कॉरपोरेट्स से निपटना मुश्किल हो सकता है क्योंकि वे पूरी तरह से लाभ की मांग के उद्देश्य से काम करते हैं।
  • गैर-अनुकूल बाज़ार की स्थिति: खुदरा मूल्य दर उच्च बनी हुई हैं जबकि थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index-WPI) के आंकड़ों से अधिकांश कृषि उपज के लिये फार्म गेट की कीमतों में गिरावट का संकेत मिलता है।
    • बढ़ती इनपुट लागत के साथ किसानों को मुक्त बाज़ार आधारित ढाँचा उपलब्ध नहीं है जो उन्हें पारिश्रमिक मूल्य प्रदान करता है।
    • इन आशंकाओं से बिहार जैसे राज्यों के अनुभव को बल मिलता है, जिसने वर्ष 2006 में APMC को समाप्त कर दिया था। मंडियों के उन्मूलन के बाद बिहार में अधिकांश फसलों के लिये किसानों को MSP की तुलना में औसतन कम कीमत प्राप्त हुई।

आगे की राह 

  • प्रतिस्पर्द्धा को मज़बूत करने के लिये कृषि अवसंरचना में सुधार: सरकार को बड़े पैमाने पर APMC बाज़ार प्रणाली के विस्तार के लिये फंड देना चाहिये , व्यापार कार्टेल को हटाने के लिये प्रयास करना चाहिये और किसानों को अच्छी सड़कें, पैमाने की रसद और वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करनी चाहिये।
  • राज्य किसान आयोगों को सशक्त बनाना: भारी केंद्रीकरण का विरोध करने के बजाय राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा अनुशंसित राज्य किसान आयोगों के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाने पर जोर दिया जाना चाहिये ताकि मुद्दों पर सरकार की तीव्र प्रतिक्रिया आए।
  • सर्वसम्मति बनाना: केंद्र को किसानों सहित विधेयकों का विरोध करने वालों तक पहुँचना चाहिये उन्हें सुधार की आवश्यकता समझानी चाहिये और उन्हें बोर्ड पर लाना चाहिये।

निष्कर्ष 

मज़बूत संस्थागत व्यवस्था के बिना मुक्त बाज़ार से लाखों असंगठित छोटे किसानों को लाखों का नुकसान हो  सकता है, जो उल्लेखनीय रूप से उत्पादक हैं और जिन्होंने महामारी के दौरान भी अर्थव्यवस्था को सहारा दिया है।

India-Agriculture

मुख्य परीक्षा प्रश्न : "भारतीय कृषि में लेसेज फेयर नीति को समाप्त करने से पहले मज़बूत संस्थागत व्यवस्था की आवश्यकता है"। चर्चा करें।

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