इन्फोग्राफिक्स
सामाजिक न्याय
अंगदान में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:अंगदान, कोविड-19 महामारी, मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 मेन्स के लिये:अंगदान में वृद्धि और मृतक दान में वृद्धि की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
कोविड-19 महामारी के पहले वर्ष के दौरान गिरावट के बाद वर्ष 2021 में अंगदान की संख्या में फिर से वृद्धि देखी गई है।
- भारत में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 मानव अंगों को पृथक/अलग करने एवं इसके भंडारण संबंधी विभिन्न नियम प्रदान करता है। यह चिकित्सीय उद्देश्यों के लिये और मानव अंगों की व्यावसायिकता की रोकथाम हेतु मानव अंगों के प्रत्यारोपण को भी नियंत्रित तथा विनियमित करता है।
भारत में अंगदान की स्थिति:
- भारत में अंगदान की दर प्रति मिलियन जनसंख्या पर लगभग 0.52 है। इसकी तुलना में स्पेन में अंगदान की दर, जो कि विश्व में सबसे अधिक है, प्रति मिलियन जनसंख्या पर 49.6 है।
- भारत में अंगदान संबंधी प्रक्रिया कुछ ऐसी है कि यहाँ एक व्यक्ति को अंगदाता होने के लिये पंजीकरण करना पड़ता है, मृत्यु के बाद परिवार की सहमति आवश्यक होती है लेकिन स्पेन में यह सहज प्रणाली है जहाँ एक व्यक्ति को स्वतः ही अंगदाता माना जाता है जब तक कि उक्त व्यक्ति द्वारा कुछ अन्य स्पष्ट न किया गया हो।
- अंगदान में वृद्धि तो हुई है लेकिन जीवित व्यक्तियों द्वारा दान की तुलना में मृतक दान में कमी देखी जा रही है।
- मृतक दान से तात्पर्य उन मृतकों के परिजनों द्वारा दान किया गया अंग है, जिन्हें ब्रेन डेथ या कार्डियक डेथ का सामना करना पड़ा।
- वर्ष 2019 में मृतकों के माध्यम से प्राप्त अंग 16.77% फीसदी थे, जबकि वर्ष 2021 में यह मात्र 14.07 फीसदी रहे।
- वर्ष 2021 में प्राप्त 12,387 अंगों में से केवल 1,743 जो कि 14% से थोड़ा अधिक है, मृतक दाताओं से प्राप्त हुए थे। वर्ष 2021 की यह संख्या विगत पाँच वर्षों (2019 में 12,746) में सबसे अधिक थी।
- भौगोलिक स्तर पर मृतक दान में विषमता भी है। इस संदर्भ में शीर्ष पाँच राज्य- तेलंगाना, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक हैं जिनका कुल अंगदान में 85% से अधिक का योगदान है। गोवा में एक मृतक दाता से दो अंग प्राप्त हुए।
- भौगोलिक विषमता का एक कारण यह हो सकता है कि अधिकांश अंग प्रत्यारोपण और प्राप्ति (harvesting) केंद्र इन्ही भौगोलिक क्षेत्रों में केंद्रित/स्थित हैं।
मृतक दान बढ़ाने की आवश्यकता:
- आवश्यक अंगों की संख्या में अंतर:
- पहला कारण देश में प्राप्त होने वाले अंगों की संख्या और प्रत्यारोपण की संख्या में अंतर है।
- भारत, दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा प्रत्यारोपणकर्त्ता (संख्या के आधार पर) है।
- फिर भी अनुमानित 1.5-2 लाख व्यक्ति जिन्हें हर साल गुर्दा प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, में से केवल 8,000 को ही गुर्दा मिल पाता है।
- 80,000 व्यक्ति, जिन्हें लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, उनमें से केवल 1,800 को ही लिवर मिल पाता है तथा 10,000 व्यक्ति जिन्हें हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता है, उनमें से केवल 200 को ही हृदय प्राप्त हो पाता है।
- जीवनशैली से संबंधित रोगों की व्यापकता:
- जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के बढ़ते प्रसार के कारण मांग बढ़ रही है।
- इसके अलावा हृदय और फेफड़े जैसे अंगों को केवल मृतक दाताओं से ही प्राप्त किया जा सकता है।
- केवल ब्रेन डेड/‘मानसिक मृत’ व्यक्तियों से अंगों को प्राप्त किया जाना:
- दूसरा कारण यह है कि मृतक दान के बिना एक आवश्यक संसाधन नष्ट हो जाता है।
- भारत में हर साल लगभग 1.5 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं, जिनमें से कई का आदर्श रूप से अंग दान किया जा सकता है।
- हृदय के मृत होने के बाद भी अंगदान संभव है, हालाँकि वर्तमान में लगभग सभी अंगों को ब्रेन डेड व्यक्तियों से ही लिया जाता है।
आगे की राह
- सरकार को यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिये कि अंग प्रत्यारोपण की सुविधाएँ समाज के कमज़ोर वर्ग तक भी पहुँच सकें। इसके लिये सार्वजनिक अस्पतालों की अंग प्रत्यारोपण क्षमता में वृद्धि की जा सकती है।
- यह सुझाव दिया जाता है कि क्रॉस-सब्सिडी से कमज़ोर वर्ग तक पहुँच बढ़ेगी। निजी अस्पतालों को प्रत्येक 3 या 4 प्रत्यारोपण आबादी के उस हिस्से के लिये निशुल्क करना चाहिये जो अधिकांश अंग दान करते हैं।
- मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 में संशोधन की आवश्यकता है ताकि अस्पतालों की कठोर नौकरशाही प्रक्रियाओं के इतर नागरिकों की स्व-घोषणा द्वारा स्वतः ही सत्यापित कर उन्हें प्रतिस्थापित किया जा सके।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
वैश्विक न्यूनतम कर
प्रिलिम्स के लिये :वैश्विक न्यूनतम कर, यूरोपीय संघ, OECD, BEPS कार्यक्रम। मेन्स के लिये :वैश्विक न्यूनतम कर और संबंधित मुद्दों का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूरोपीय संघ के सदस्य वर्ष 2021 में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा तैयार किये गए वैश्विक कर समझौते के स्तंभ 2 के अनुसार बड़े व्यवसायों पर 15% की न्यूनतम कर दर लागू करने पर सहमत हुए हैं।
- वर्ष 2021 में भारत सहित 136 देशों ने अपने अधिकार क्षेत्रों में कर अधिकारों को पुनर्वितरित करने और बड़े बहुराष्ट्रीय निगमों पर 15% की न्यूनतम कर दर लागू करने की योजना पर सहमति व्यक्त की थी।
वैश्विक न्यूनतम कर:
- वैश्विक न्यूनतम कर (GMT) दुनिया भर में कॉर्पोरेट आय आधार को परिभाषित करने के लिये मानक न्यूनतम कर दर को लागू करता है।
- OECD ने बड़े बहुराष्ट्रीय निगमों के विदेशी मुनाफे पर 15% कॉर्पोरेट न्यूनतम कर का प्रस्ताव किया है, जो देशों को 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नया वार्षिक कर राजस्व प्रदान करेगा।
- GMT का उद्देश्य कम कर दरों के माध्यम से राष्ट्रों को कर प्रतिस्पर्द्धा से हतोत्साहित करना है, क्योंकि इसकी वजह से कॉर्पोरेट लाभ में बदलाव और कर आधार का क्षरण होता है।
योजना के प्रमुख बिंदु:
- दो स्तंभ योजना:
- स्तंभ 1:
- बड़े और लाभदायक बहुराष्ट्रीय उद्यम (MNEs ) के मुनाफे का 25% एक निर्धारित लाभ मार्जिन बाज़ार के अधिकार क्षेत्र में फिर से आवंटित किया जाएगा जहाँ MNEs के उपयोगकर्त्ता और ग्राहक मौजूद हैं।
- यह देश के भीतर आधारभूत विपणन और वितरण गतिविधियों के लिये आसान सिद्धांत के अनुप्रयोग हेतु एक सरलीकृत एवं सुव्यवस्थित दृष्टिकोण भी प्रदान करता है।
- इसमें दोहरे कराधान के किसी भी प्रकार के जोखिम को दूर करने के लिये विवाद निवारण और विवाद समाधान सुनिश्चित करने की विशेषताएँ भी शामिल हैं, हालाँकि कम क्षमता वाले देशों के लिये एक वैकल्पिक तंत्र भी शामिल है।
- यह नुकसान पहुँचाने वाले व्यापार विवादों को रोकने के लिये डिजिटल सेवा कर (DST) और इसी तरह के प्रासंगिक उपायों को रोकने तथा ठहराव पर भी ज़ोर देता है।
- स्तंभ 2:
- यह कॉर्पोरेट लाभ पर न्यूनतम 15% कर प्रदान करता है और कर प्रतिस्पर्द्धा पर सीमा निर्धारित करता है।
- यह 750 मिलियन यूरो से अधिक वार्षिक वैश्विक राजस्व वाले बहुराष्ट्रीय समूहों पर लागू होगा। विश्व की सरकारें अपने अधिकार क्षेत्र में मुख्यालय वाले MNEs के विदेशी मुनाफे पर कम-से-कम सहमत न्यूनतम दर पर अतिरिक्त कर लागू करेंगी।
- इसका मतलब यह है कि अगर किसी कंपनी की कमाई पर टैक्स नहीं लगता है या किसी टैक्स हेवन में कम टैक्स लगता है, तो उनका देश टॉप-अप टैक्स के रुप में एक टैक्स लगाएगा जिससे कुल प्रभावी दर 15% हो जाएगी।
- स्तंभ 1:
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वैश्विक परिचालन वाले बड़े व्यवसायों को टैक्स बचाने के लिये टैक्स हेवन में रहने से लाभ की प्राप्ति न हो।
- न्यूनतम कर और अन्य प्रावधानों का उद्देश्य विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये सरकारों के बीच दशकों से चली आ रही कर प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करना है।
इस कदम का महत्त्व:
- रेस टू द बॉटम का अंत:
- यह "रेस टू द बॉटम" को समाप्त करने की कोशिश करता है जिसने सरकारों के लिये अपने बढ़ते खर्च संबंधी बजट के लिये आवश्यक आय उत्पन्न करना अधिक कठिन बना दिया है।
- रेस टू द बॉटम का अंत एक प्रतिस्पर्द्धी स्थिति है जहाँ एक कंपनी, राज्य या राष्ट्र द्वरा प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त अथवा विनिर्माण लागत में कमी के लिये गुणवत्ता मानकों को नज़रअंदाज कर दिया जाता है।
- यह "रेस टू द बॉटम" को समाप्त करने की कोशिश करता है जिसने सरकारों के लिये अपने बढ़ते खर्च संबंधी बजट के लिये आवश्यक आय उत्पन्न करना अधिक कठिन बना दिया है।
- टैक्स हेवन की ओर होने वाले वित्तीय विचलन पर रोक:
- अमूर्त स्रोतों जैसे- ड्रग पेटेंट, सॉफ्टवेयर और बौद्धिक संपदा पर रॉयल्टी/शुल्क आदि के माध्यम से प्राप्त होने वाली आय का अधिकांश हिस्सा टैक्स हेवन की तरफ स्थानांतरित हुआ है, परिणामतः कंपनियाँ पारंपरिक रूप से अपने मूल देश में उच्च करों का भुगतान करने से बच जाती हैं।
- वित्तीय संसाधनों का संग्रहण:
- कोविड-19 के बाद बजट की कमी की समस्या को देखते हुए कई सरकारों का मानना है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने मुनाफे और कर राजस्व को कम कर (tax) वाले देशों में अंतरित करने पर अंकुश लगाना चाहिये, भले ही उन्होंने व्यापार कहीं भी किया हो।
- वैश्विक कर सुधार: बेस इरोजन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से GMT का प्रस्ताव वैश्विक कराधान सुधारों की दिशा में एक और सकारात्मक कदम है।
- BEPS कर से बचने की रणनीतियों को संदर्भित करता है जो कर नियमों में अंतराल और बेमेल का फायदा उठाते हुए कृत्रिम रूप से मुनाफे को कम या बिना कर वाले स्थानों पर स्थानांतरित करते हैं। OECD ने इसे संबोधित करने के लिये 15 कार्रवाई मदें जारी की हैं।
- वैश्विक असमानता से निपटना:
- न्यूनतम कर प्रस्ताव विशेष रूप से ऐसे समय में प्रासंगिक है जब विश्व भर में सरकारों की राजकोषीय स्थिति खराब हो गई है, जैसा कि सार्वजनिक ऋण मेट्रिक्स की बिगड़ती स्थिति में देखा गया है।
- ऐसा माना जा रहा है कि यह योजना बढ़ती वैश्विक असमानता का मुकाबला करने में भी मदद करेगी, जिससे बड़े व्यवसायों के लिये टैक्स हेवन की सेवाओं का लाभ उठाकर कम करों का भुगतान करना मुश्किल हो जाएगा।
संबंधित मुद्दे:
- कर प्रतिस्पर्द्धा का खतरा:
- इसे कर प्रतिस्पर्द्धा का खतरा माना जाता है, यह उन सरकारों पर नज़र रखता है जो अन्यथा अपने नागरिकों पर भारी कर लगाएंगे ताकि व्यय कार्यक्रमों को निधि प्रदान की जा सके।
- आसन्न संप्रभुता:
- यह किसी देश की कर नीति तय करने के संप्रभु अधिकार का उल्लंघन करता है।
- एक वैश्विक न्यूनतम दर अनिवार्य रूप से उस उपकरण को दूर कर देगी जिसका उपयोग देश उन नीतियों को आगे बढ़ाने के लिये करता है जो उनके अनुकूल हैं।
- प्रभावकारिता का प्रश्न:
- इस समझौते की आलोचना भी की गई है; ऑक्सफैम जैसे समूहों का कहना है कि यह समझौता टैक्स हेवन को समाप्त नहीं करेगा।
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD):
- OECD एक अंतर-सरकारी आर्थिक संगठन है, जिसकी स्थापना आर्थिक प्रगति और विश्व व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिये की गई है।
- स्थापना: 1961।
- मुख्यालय: पेरिस, फ्राँस।
- कुल सदस्य: 36।
- भारत इसका सदस्य नहीं है, बल्कि एक प्रमुख आर्थिक भागीदार है।
आगे की राह
- चूँकि OECD की योजना अनिवार्य रूप से एक वैश्विक कर कार्टेल बनाने की कोशिश करना है, इसलिये इसे हमेशा कार्टेल के बाहर कम कर वाले क्षेत्रों में खोने और कार्टेल के भीतर सदस्यों द्वारा धोखाधड़ी के ज़ोखिम का सामना करना पड़ेगा।
- आखिरकार कार्टेल के भीतर और बाहर दोनों देशों के व्यवसायों में कम कर दरों की पेशकश करके अपने संबंधित अधिकार क्षेत्रों के भीतर निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
- यह एक संरचनात्मक समस्या है जो तब तक बनी रहेगी जब तक वैश्विक कर कार्टेल मौजूद रहता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्र. 'आधार क्षरण और लाभ स्थानांतरण' शब्द को कभी-कभी समाचारों में किसके संदर्भ में देखा जाता है? (2016) (a) बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा संसाधन संपन्न लेकिन पिछड़े क्षेत्रों में खनन संचालन उत्तर (B) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की तेल निर्भरता
प्रिलिम्स के लिये:तेल निर्भरता, यूरोपीय संघ, तेल और प्राकृतिक गैस निगम, CoP26 प्रतिबद्धताएँँ, नवीकरणीय ऊर्जा मेन्स के लिये:भारत की तेल पर निर्भरता और उससे संबंधित कदम |
चर्चा में क्यों?
रूस लगातार दूसरे महीने नवंबर 2022 में पारंपरिक विक्रेताओं इराक और सऊदी अरब को पीछे छोड़कर भारत के लिये शीर्ष तेल आपूर्तिकर्त्ता बना हुआ है।
- रूस के पास अब भारत के कुल कच्चे तेल के आयात की 22% हिस्सेदारी है, जो इराक के 20.5% और सऊदी अरब के 16% की तुलना में अधिक है।
- 5 दिसंबर से रूस के समुद्री तेल के आयात पर यूरोपीय संघ के प्रतिबंध ने रूस को लगभग 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन के लिये मुख्य रूप से एशिया में वैकल्पिक बाज़ारों की तलाश करने के लिये प्रेरित किया है।
भारत के तेल आयात/खपत का वर्तमान परिदृश्य:
- अमेरिका और चीन के बाद भारत लगभग 5 मिलियन बैरल प्रतिदिन के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है। देश में तेल की मांग सालाना 3-4 फीसदी की दर से बढ़ रही है।
- इस अनुमान के आधार पर एक दशक में भारत प्रतिदिन लगभग 7 मिलियन बैरल की खपत कर सकता है।
- पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) के अनुसार, भारत ने वर्ष 2021-22 में 212.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जो पिछले वर्ष में 196.5 मिलियन टन था।
- अप्रैल 2022-23 में तेल आयात निर्भरता लगभग 86.4% थी, जो एक वर्ष पूर्व इसी अवधि में 85.9% रही थी।
- यह तर्क दिया गया है कि बढ़ती मांग के कारण तेल की खपत में वृद्धि हुई है, जिसने उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों को हाशिये पर डाल दिया है।
- कच्चे तेल का उच्च आयात बिल व्यापक आर्थिक मापदंडों (Macroeconomic Parameters) को प्रभावित कर सकता है।
कच्चे तेल के आयात को कम करने के लिये की गई पहल:
- मार्च 2015 में भारत के प्रधानमंत्री ने ‘ऊर्जा संगम 2015’ क अनावरण किया जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा को आकार देने के उद्देश्य से आयोजित भारत की सबसे बड़ी वैश्विक हाइड्रोकार्बन बैठक थी।
- इस अवसर पर सभी हितधारकों से आग्रह किया गया कि वे तेल एवं गैस के घरेलू उत्पादन में वृद्धि करें ताकि वर्ष 2022 तक आयात निर्भरता को 77 प्रतिशत से घटाकर 67 प्रतिशत और वर्ष 2030 तक 50 प्रतिशत तक सीमित किया जा सके।
- सरकार ने प्रोडक्शन शेयरिंग कॉन्ट्रैक्ट (PSC) व्यवस्था, डिस्कवर्ड स्मॉल फील्ड पॉलिसी, हाइड्रोकार्बन एक्सप्लोरेशन एंड लाइसेंसिंग पॉलिसी (HELP), न्यू एक्सप्लोरेशन लाइसेंसिंग पॉलिसी (NELP) आदि के तहत तेल और प्राकृतिक गैस के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के लिये विभिन्न नीतियाँ भी पेश की हैं।
- हालाँकि घरेलू तेल उत्पादन के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि तेल और गैस परियोजनाओं में अन्वेषण से लेकर उत्पादन तक की लंबी प्रक्रियात्मक अवधि होती है।
- इसके अलावा मूल्य निर्धारण और कर नीतियाँ स्थिर नहीं हैं, साथ ही तेल तथा गैस व्यवसाय में बड़ी पूंजी की आवश्यकता होती है। निवेशक अक्सर जोखिम लेने के प्रति सावधान रहते हैं।
- भारत सरकार कच्चे तेल के आयात पर देश की निर्भरता को कम करने, कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम (EBP) को बढ़ावा दे रही है।
- सरकार ने पेट्रोल में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण (जिसे E20 भी कहा जाता है) के लक्ष्य को वर्ष 2030 से पहले ही वर्ष 2025 तक पूरा कर लेने का निश्चय किया है।
भारत की तेल आयात निर्भरता को कम करने हेतु आवश्यक कदम:
- घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन: 10% सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि की ओर बढ़ते हुए हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि भारत में तेल की मांग केवल बढ़ने वाली है और यह भी कि आने वाले कई वर्षों तक भारत एक तेल अर्थव्यवस्था बना रहेगा।
- तेल संबंधी आयात पर भारत की निर्भरता को कम करने का एकमात्र तरीका विदेशों में भारत के स्वामित्त्व वाली अन्वेषण एवं उत्पादन संपत्तियों को और विकसित करना है। चीन ने भी यही तरीका अपनाया है।
- सार्वजनिक क्षेत्र की दिग्गज तेल कंपनी ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) भी मौजूदा परिपक्व तेल-क्षेत्रों के पुनर्विकास और नए/सीमांत क्षेत्रों के विकास के माध्यम से उत्पादन बढ़ाने के लिये विभिन्न कदम उठा रही है।
- वैकल्पिक हरित स्रोत: भारत के लिये एक अन्य विकल्प यह है कि अपने दायरे का विस्तार करे और हरित ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करे। अर्थव्यवस्था के गति पकड़ने के साथ ही बिजली की मांग में तेज़ी आ रही है। CoP26 प्रतिबद्धताओं के साथ नवीकरणीय ऊर्जा की मांग अब तक के उच्चतम स्तर पर है, जिसके लिये पर्याप्त क्षमता वृद्धि की आवश्यकता है।
- नियामक समर्थन के साथ ही निजी निवेश और सरकारी पहलों के कारण पवन क्षेत्र ने गति पकड़ ली है।
- हालाँकि सौर सेल एवं मॉड्यूल की वैश्विक आपूर्ति और अनुकूल नीतियों के समर्थन से सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनकर उभरी है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: कभी-कभी समाचारों में पाया जाने वाला शब्द 'वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट' निम्नलिखित में से किसे संदर्भित करता है: (2020) (a) कच्चा तेल उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क
प्रिलिम्स के लिये:UNCCD, COP15, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क मेन्स के लिये:कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क, COP15 के परिणाम, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन (COP15) में "कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क" (Kunming-Montreal Global Biodiversity Framework- GBF) को अपनाया गया है।
- GBF के अंतर्गत वर्ष 2030 तक के लिये 4 लक्ष्य और 23 उद्देश्य निर्धारित किये गए हैं।
- संयुक्त राष्ट्र कनाडा के मॉन्ट्रियल में जैवविविधता सम्मेलन संपन्न हुआ।
- COP15 का पहला भाग कुनमिंग, चीन में हुआ और इसमें जैवविविधता संकट को दूर करने की प्रतिबद्धता पर बल दिया गया तथा कुनमिंग घोषणा को 100 से अधिक देशों द्वारा अपनाया गया।
वैश्विक जैवविविधता फ्रेमवर्क के प्रमुख उद्देश्य:
- 30x30 समझौता:
- वर्ष 2030 तक विश्व स्तर पर (थल और जल स्तर पर) 30% निम्नीकृत हुए पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्स्थापित करना।
- वर्ष 2030 तक 30% क्षेत्रों (स्थलीय, अंतर्देशीय जल और तटीय एवं समुद्री) का संरक्षण तथा प्रबंधन करना।
- ज्ञात प्रजातियों को विलुप्त होने से रोकना और वर्ष 2050 तक सभी प्रजातियों (अज्ञात सहित) के विलुप्त होने के जोखिम और दर को दस गुना कम करना।
- वर्ष 2030 तक कीटनाशकों के जोखिम को 50% तक कम करना।
- वर्ष 2030 तक पोषक तत्त्वों में होने वाली कमी में सुधार करना।
- वर्ष 2030 तक सभी स्रोतों से होने वाले प्रदूषण के जोखिमों और प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों को उस स्तर तक कम करना ताकि वे जैवविविधता एवं पारिस्थितिक तंत्र कार्यों के लिये हानिकारक न रहें।
- वर्ष 2030 तक खपत के वैश्विक पदचिह्न को कम करना, जिसमें अत्यधिक खपत और अपशिष्ट उत्पादन को कम करना तथा भोजन की बर्बादी को रोकना शामिल है।
- कृषि, जलीय कृषि, मत्स्यपालन और वानिकी के अंतर्गत क्षेत्रों का सतत् प्रबंधन करना तथा कृषि पारिस्थितिकी एवं अन्य जैवविविधता-अनुकूल प्रथाओं में काफी वृद्धि करना।
- प्रकृति आधारित समाधानों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटना।
- वर्ष 2030 तक नई विदेशी प्रजातियों के आगमन और स्थायित्त्व की दर को 50% तक कम करना।
- वर्ष 2030 तक जंगली प्रजातियों के सुरक्षित, कानूनी और टिकाऊ उपयोग एवं व्यापार को सुरक्षित करना।
- शहरी क्षेत्रों को हरा-भरा करना।
COP15 के अन्य प्रमुख परिणाम:
- प्रकृति के लिये धन:
- हस्ताक्षरकर्त्ताओं का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सार्वजनिक और निजी स्रोतों से प्रतिवर्ष 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर नई संरक्षण योजनाओं के लिये दिया जाए।
- अमीर देशों को वर्ष 2025 तक हर साल कम-से-कम 20 अरब डॉलर और वर्ष 2030 तक हर साल कम-से-कम 30 अरब डॉलर का योगदान देना चाहिये।
- बड़ी कंपनियों की रिपोर्ट का जैवविविधता पर प्रभाव:
- कंपनियों को विश्लेषण करना चाहिये कि कैसे उनका संचालन उनकी रिपोर्ट व जैवविविधता प्रभावित होती है।
- भारत ने जैवविविधता के नुकसान को रोकने के लिये 2020 के बाद के वैश्विक ढाँचे को सफलतापूर्वक लागू करने में विकासशील देशों की मदद करने के लिये एक नया और समर्पित कोष बनाने की तत्काल आवश्यकता का आह्वान किया।
- हानिकारक सब्सिडी:
- वर्ष 2025 तक जैवविविधता को कम करने वाली सब्सिडी की पहचान करने और फिर उन्हें समाप्त करने, चरणबद्ध करने या सुधार करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
- वे 2030 तक उन प्रोत्साहनों को प्रतिवर्ष कम-से-कम 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक कम करने और संरक्षण के लिये सकारात्मक प्रोत्साहन बढ़ाने पर सहमत हुए।
- निगरानी और रिपोर्टिंग प्रगति:
- सभी सहमत लक्ष्यों की भविष्य में प्रगति की निगरानी करने के लिये प्रक्रियाओं को सशक्त किया जाएगा, इस समझौते को आइची (जापान) समझौते, 2010 की तरह नहीं लिया जाएगा, जो कभी पूरे नही हुए।
- जलवायु परिवर्तन पर अंकुश लगाने के संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाले प्रयासों के तहत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिये उपयोग किये जाने वाले समान प्रारूप के बाद राष्ट्रीय कार्य योजनाओं को निर्धारण एवं उनकी समीक्षा की जाएगी। कुछ पर्यवेक्षकों ने इन योजनाओं को प्रस्तुत करने के लिये देशों की समयसीमा की कमी पर आपत्ति जताई है।
भारत ने सम्मेलन में अपनी मांगों को कैसे प्रस्तुत किया?
- भारत ने जैवविविधता के नुकसान को रोकने व पलटने के लिये 2020 के बाद के वैश्विक ढाँचे को सफलतापूर्वक लागू करने में विकासशील देशों की मदद के लिये एक नया और समर्पित कोष बनाने की तत्काल आवश्यकता का आह्वान किया है।
- अब तक वैश्विक पर्यावरण सुविधा (Global Environment Facility- GEF) जो UNFCCC और संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय सहित कई अभिसमयों को शामिल करती है, जैवविविधता संरक्षण के लिये धन का एकमात्र स्रोत बनी हुई है।
- भारत ने यह भी कहा कि जैवविविधता का संरक्षण भी 'सामान्य लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियों और प्रतिक्रियात्मक क्षमताओं' (CBDR) पर आधारित होना चाहिये क्योंकि जलवायु परिवर्तन भी प्रकृति को प्रभावित करता है।
- भारत के अनुसार, विकासशील देश जैवविविधता के संरक्षण के लिये लक्ष्यों को लागू करने का अधिकांश भार वहन करते हैं और इसलिये पर्याप्त धन एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की आवश्यकता होती है।
जैवविविधता पर कन्वेंशन (CBD):
- CBD जैवविविधता के संरक्षण के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है जो वर्ष 1993 से लागू है और 196 देशों द्वारा इसकी पुष्टि की गई है।
- यह देशों के लिये जैवविविधता की रक्षा, सतत् उपयोग सुनिश्चित करने और उचित एवं न्यायसंगत लाभ साझाकरण को बढ़ावा देने हेतु दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
- इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन पर वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के समान जैवविविधता के नुकसान को रोकने और प्रतिपूर्ति के लिये एक ऐतिहासिक लक्ष्य हासिल करना है।
- CBD सचिवालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में स्थित है।
- CBD के तहत पक्षकार (देश) नियमित अंतराल पर बैठक करते हैं और इन बैठकों को पक्षकारों का सम्मेलन (COP) कहा जाता है।
- वर्ष 2000 में बायोसेफ्टी पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल के रूप में ज्ञात अभिसमय के लिये एक पूरक समझौता अपनाया गया था। यह 11 सितंबर, 2003 को लागू हुआ।
- प्रोटोकॉल आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी से उत्पन्न संशोधित जीवों द्वारा उत्पन्न संभावित जोखिमों से जैवविविधता की रक्षा करना चाहता है।
- आनुवंशिक संसाधनों तक पहुँच और उनके उपयोग ( Access to Genetic Resources and the Fair and Equitable Sharing of Benefits Arising from their Utilization- ABS) से प्राप्त होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत साझाकरण पर नागोया प्रोटोकॉल को COP10 में नागोया, जापान में वर्ष 2010 में अपनाया गया था। यह 12 अक्तूबर, 2014 को लागू हुआ।
- यह प्रोटोकॉल न केवल CBD के तहत शामिल आनुवंशिक संसाधनों और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों पर लागू होता है, बल्कि आनुवंशिक संसाधनों से जुड़े उस पारंपरिक ज्ञान (Traditional Knowledge-TK) को भी कवर करता है जो CBDऔर इसके उपयोग से होने वाले लाभों से आच्छादित हैं।
- वर्ष 2010 में नागोया में CBD की कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP)-10 में वर्ष 2011-2020 हेतु ‘जैवविविधता के लिये रणनीतिक योजना’ को अपनाया गया। इसमें पहली बार विषय विशिष्ट 20 जैवविविधता लक्ष्यों- जिन्हें आइची जैवविविधता लक्ष्य के रूप में भी जाना जाता है, को अपनाया गया।
- भारत में CBD के प्रावधानों को प्रभावी बनाने हेतु वर्ष 2002 में जैविक विविधता अधिनियम अधिनियमित किया गया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न: ‘मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” किसके द्वारा शुरू की गई एक पहल है? (2018) (a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
विनियोग विधेयक
प्रिलिम्स के लिये:विनियोग विधेयक, भारत की संचित निधि, लोकसभा, राज्यसभा, लेखानुदान, अनुच्छेद 116, वित्त विधेयक, धन विधेयक मेन्स के लिये:विनियोग विधेयक, वित्त विधेयक, भारत की संचित निधि |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने राज्यसभा में विनियोग (संख्या 5) विधेयक, 2022 और विनियोग (संख्या 4) विधेयक, 2022 पेश किया।
- विनियोग विधेयक, 2022 को वित्त वर्ष 2022-2023 की सेवाओं के लिये भारत की संचित निधि से और कुछ अतिरिक्त राशियों के भुगतान एवं विनियोग को अधिकृत करने के लाया जाएगा।
विनियोग विधेयक:
- परिचय:
- विनियोग विधेयक सरकार को किसी वित्तीय वर्ष के दौरान व्यय की पूर्ति के लिये भारत की संचित निधि से धनराशि निकालने की शक्ति देता है।
- संविधान के अनुच्छेद 114 के अनुसार, सरकार संसद से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद ही संचित निधि से धन निकाल सकती है।
- निकाली गई राशि का उपयोग वित्तीय वर्ष के दौरान वर्तमान व्यय को पूरा करने के लिये किया जाता है।
- विनियोग विधेयक सरकार को किसी वित्तीय वर्ष के दौरान व्यय की पूर्ति के लिये भारत की संचित निधि से धनराशि निकालने की शक्ति देता है।
- प्रक्रिया:
- विनियोग विधेयक लोकसभा में बजट प्रस्तावों और अनुदानों की मांगों पर चर्चा के बाद पेश किया जाता है।
- संसदीय वोटिंग में विनियोग विधेयक के पारित न होने से सरकार को इस्तीफा देना होगा तथा आम चुनाव कराना होगा।
- लोकसभा द्वारा पारित होने के बाद इसे राज्यसभा को भेजा जाता है।
- राज्यसभा को इस विधेयक में संशोधन की सिफारिश करने की शक्ति प्राप्त है।
- हालाँकि राज्यसभा की सिफारिशों को स्वीकार करना या अस्वीकार करना लोकसभा का विशेषाधिकार है।
- विधेयक को राष्ट्रपति से स्वीकृति मिलने के बाद यह विनियोग अधिनियम बन जाता है।
- विनियोग विधेयक की अनूठी विशेषता इसका स्व-भंग खंड (auto repeal clause) है, जिससे यह अधिनियम अपने वैधानिक उद्देश्य को पूरा करने के बाद स्वयं ही निरस्त हो जाता है।
- विनियोग विधेयक के अधिनियमित होने तक सरकार भारत की संचित निधि से पैसा नहीं निकाल सकती है। हालाँकि इसमें समय लगता है और सरकार को अपनी सामान्य गतिविधियाँ चलाने के लिये धन की आवश्यकता होती है। तत्काल खर्चों को पूरा करने के लिये संविधान ने लोकसभा को वित्तीय वर्ष के एक हिस्से के लिये अग्रिम अनुदान देने हेतु अधिकृत किया है। इस प्रावधान को '‘लेखानुमोदन’' के नाम से जाना जाता है।
- लेखानुदान को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 116 में परिभाषित किया गया है।
- चुनावी वर्ष के दौरान सरकार या तो 'अंतरिम बजट' या 'वोट ऑन अकाउंट' का विकल्प चुनती है क्योंकि चुनाव के बाद सत्तारूढ़ सरकार और नीतियाँ बदल सकती हैं।
- विनियोग विधेयक लोकसभा में बजट प्रस्तावों और अनुदानों की मांगों पर चर्चा के बाद पेश किया जाता है।
- संशोधन:
- विनियोग विधेयक में कोई संशोधन प्रस्तावित नहीं किया जा सकता है जिसका प्रभाव इस प्रकार दिये गए किसी अनुदान की राशि में परिवर्तन या गंतव्य को बदलने या भारत की संचित निधि पर प्रभारित किसी व्यय की राशि को बदलने का होगा और लोकसभा अध्यक्ष के निर्णय पर ही ऐसा संशोधन स्वीकार्य है।
विनियोग विधेयक और वित्त विधेयक में अंतर:
- वित्त विधेयक में सरकार के व्यय के वित्तपोषण के प्रावधान शामिल हैं, जबकि एक विनियोग विधेयक धन निकालने की मात्रा और उद्देश्य को निर्दिष्ट करता है।
- विनियोग और वित्त विधेयक दोनों को धन विधेयक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जिसके लिये राज्यसभा की स्पष्ट सहमति की आवश्यकता नहीं होती है। राज्यसभा केवल उन पर चर्चा करती है और विधेयकों को लौटाती है।
भारत की संचित निधि:
- इसकी स्थापना भारत के संविधान के अनुच्छेद 266 (1) के तहत की गई थी।
- इसमें समाहित हैं:
- करों के माध्यम से केंद्र को प्राप्त सभी राजस्व (आयकर, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क और अन्य प्राप्तियाँ) तथा सभी गैर-कर राजस्व।
- सार्वजनिक अधिसूचना, ट्रेज़री बिल (आंतरिक ऋण) और विदेशी सरकारों तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों (बाहरी ऋण) के माध्यम से केंद्र द्वारा लिये गए सभी ऋण।
- सभी सरकारी व्यय इसी निधि से पूरे किये जाते हैं (असाधारण मदों को छोड़कर जो लोक लेखा निधि या सार्वजनिक निधि से संबंधित हैं) और संसद के प्राधिकरण के बिना निधि से कोई राशि नहीं निकाली जा सकती।
- भारत का नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) इस निधि का लेखा परीक्षण करता है।
संसद में बजट की विभिन्न अवस्थाएँ:
- बजट की प्रस्तुति।
- आम चर्चा।
- विभागीय समितियों द्वारा जाँच।
- अनुदान की मांगों पर मतदान।
- विनियोग विधेयक पारित करना।
- वित्त विधेयक पारित करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. निम्नलिखित मे से कौन सी विधियाँ भारत के लोक वित्त पर संसदीय नियंत्रण रखने के काम आती हैं?
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (a)
प्रश्न. "लेखानुमोदन" और "अंतरिम बजट" में क्या अंतर है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
उपभोक्ता मामलों के विभाग की वर्षांत-समीक्षा 2022
प्रिलिम्स के लिये:उपभोक्ता मामलों का विभाग, मूल्य निगरानी तंत्र, मूल्य स्थिरीकरण कोष, भारतीय मानक ब्यूरो, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 मेन्स के लिये:उपभोक्ता मामलों के विभाग की वर्षांत-समीक्षा 2022 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत उपभोक्ता मामलों के विभाग की वर्षांत-समीक्षा, 2022 जारी की गई है।
विभाग की प्रमुख उपलब्धियाँ:
- मूल्य निगरानी तंत्र को मज़बूत करने की योजना:
- मूल्य निगरानी प्रकोष्ठ देश के उत्तर, पश्चिम, पूर्व, दक्षिण और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्त्व करने वाले देश भर में फैले 179 बाज़ार केंद्रों से एकत्र किये गए आँकड़ों के आधार पर चावल, गेहूँ, आटा, चना और दाल आदि सहित 22 आवश्यक वस्तुओं के थोक एवं खुदरा मूल्यों की निगरानी करता है।
- वर्ष के दौरान 57 मूल्य रिपोर्टिंग केंद्र जोड़े गए थे। मूल्य रिपोर्टिंग केंद्रों की संख्या 1 जनवरी, 2021 के 122 से बढ़कर दिसंबर 2022 तक 179 हो गई।
- मूल्य स्थिरीकरण कोष (PSF):
- PSF कृषि बागवानी वस्तुओं की खरीद और वितरण के लिये कार्यशील पूंजी एवं अन्य आकस्मिक खर्च प्रदान करने हेतु एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है।
- वर्ष 2022 के दौरान 12.83 लाख मीट्रिक टन (LMT) दालों को मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत कृषि सहयोग और किसान कल्याण विभाग (DACFW) से PSF उपभोक्ता मामलों के विभाग (DoCA) / PSF को खरीद / आयात में स्थानांतरित किया गया है।
- प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना:
- वर्ष 2022 के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत दालों के वितरण के लिये पॉइंट ऑफ सेल (PoS) डिवाइस के माध्यम से अंतर्राज्यीय गतिविधि एवं हैंडलिंग, उचित मूल्य दुकान डीलर के मार्जिन तथा अतिरिक्त मार्जिन वितरण पर खर्च की प्रतिपूर्ति के रूप में राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को 35.59 करोड़ रुपए जारी किये गए।
- उपभोक्ता जागरूकता:
- DoCA का नया शुभंकर "जागृति" लॉन्च किया गया था जिसका उद्देश्य "जागो ग्राहक जागो" नामक अभियान को मज़बूत करना था ताकि सभी उपभोक्ताओं में जागरूकता संबंधी विचार को सुदृढ़ किया जा सके।
- भारतीय मानक ब्यूरो:
- BIS अधिनियम 2016 12 अक्तूबर, 2017 से प्रभाव में आया, इसके बाद गवर्निंग काउंसिल का पुनर्गठन किया गया।
- 25 नवंबर, 2022 तक लागू मानकों की कुल संख्या 21,833 है।
- BIS (भारत) अक्तूबर 2020 से अक्तूबर 2023 तक तीन साल के कार्यकाल के लिये दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय मानक संगठन (SARSO) तकनीकी प्रबंधन बोर्ड और अनुरूपता मूल्यांकन बोर्ड (BCA) की अध्यक्षता कर रहा है।
- प्रबंधन प्रणाली प्रमाणन:
- BIS 20 प्रबंधन प्रणाली प्रमाणन योजनाओं का संचालन करता है, वर्ष 2021-22 में दो और नई योजनाओं अर्थात् व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली तथा ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली को प्रमाणन निकायों के लिये राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (NABCB) द्वारा मान्यता दी गई है।
- BIS अधिनियम 2016 12 अक्तूबर, 2017 से प्रभाव में आया, इसके बाद गवर्निंग काउंसिल का पुनर्गठन किया गया।
- उपभोक्ता संरक्षण:
- विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस:
- विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस 15 मार्च, 2022 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में मनाया गया।
- इस आयोजन का विषय "फेयर डिजिटल फाइनेंस" था।
- राष्ट्रीय लोक अदालत के माध्यम से मामलों का निपटारा:
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) अन्य कानूनी सेवा संस्थानों के साथ लोक अदालतों का आयोजन करता है।
- DoCA ने सभी राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों से लंबित उपभोक्ता मामलों का निपटान राष्ट्रीय लोक अदालत के माध्यम से करने को कहा।
- इसके परिणामस्वरूप देश भर में लोक अदालत के माध्यम से 12 दिसंबर, 2022 को एक ही दिन में 5,930 मामलों का निपटारा किया गया।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019:
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम और भ्रामक विज्ञापनों के लिये अनुमोदन, 2022 हेतु दिशा-निर्देश अधिसूचित किये गए थे।
- ई फाइलिंग:
- "edaakhil.nic.in" नाम से एक उपभोक्ता आयोग ऑनलाइन आवेदन पोर्टल विकसित किया गया है, जो उपभोक्ताओं/अधिवक्ताओं को ई-दाखिल पोर्टल के माध्यम से घर से या कहीं से भी अपनी सुविधानुसार ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराने की सुविधा प्रदान करता है।
- गलत समीक्षाएँ:
- BIS ने भारतीय मानक (IS) 19000: 2022 'ऑनलाइन उपभोक्ता समीक्षा- उनके संग्रह, मॉडरेशन और प्रकाशन के लिये सिद्धांत और आवश्यकताएँ' शीर्षक से रूपरेखा शुरू की।
- ये मानक हर उस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर लागू होंगे जो उपभोक्ता समीक्षाएँ प्रकाशित करता है।
- ये मानक संगठनात्मक दायित्वों को निर्दिष्ट करकरते हैं जैसे कि अभ्यास की एक संहिता का मसौदा तैयार करना और नियमों एवं शर्तों हेतु आवश्यक प्रावधान जैसे- पहुँच, मानदंड, साथ ही यह सुनिश्चित करना कि सामग्री में अन्य बातों के अलावा वित्तीय जानकारी शामिल नहीं है।
- BIS ने भारतीय मानक (IS) 19000: 2022 'ऑनलाइन उपभोक्ता समीक्षा- उनके संग्रह, मॉडरेशन और प्रकाशन के लिये सिद्धांत और आवश्यकताएँ' शीर्षक से रूपरेखा शुरू की।
- विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस:
- विधिक माप पद्धति (Legal Metrology):
- नियमों में संशोधन:
- विधिक माप पद्धति (पैकेज़्ड कमोडिटीज़) नियम, 2011 में संशोधन किया गया था ताकि इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद उद्योगों को एक वर्ष की अवधि के लिये क्यूआर कोड के माध्यम से डिजिटल रूप में कुछ अनिवार्य घोषणाएँ करने की अनुमति दी जा सके, यदि पैकेज में प्रदर्शित नहीं किया गया हो।
- लाइसेंस का उद्देश्य इस डिजिटल युग में क्यूआर कोड के माध्यम से आवश्यक घोषणा करने के लिये प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग की अनुमति देना है, जिसे घोषणाओं को प्रदर्शित करने हेतु स्कैन किया जा सकता है।
- विधिक माप पद्धति (पैकेज़्ड कमोडिटीज़) नियम, 2011 में संशोधन किया गया था ताकि इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद उद्योगों को एक वर्ष की अवधि के लिये क्यूआर कोड के माध्यम से डिजिटल रूप में कुछ अनिवार्य घोषणाएँ करने की अनुमति दी जा सके, यदि पैकेज में प्रदर्शित नहीं किया गया हो।
- नियमों में संशोधन: