डेली न्यूज़ (21 Dec, 2021)



अफगानिस्तान के लिये मानवीय ट्रस्ट फंड: OIC

प्रिलिम्स के लिये:

इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC), मानवीय ट्रस्ट फंड, UN द्वारा ट्रस्ट फंड, इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक, यूनाइटेड नेशंस (UN), इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक

मेन्स के लिये:

अफगानिस्तान में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की भूमिका, OIC के साथ भारत के संबंध।

चर्चा में क्यों?

इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के विदेश मंत्रियों की एक बैठक में अफगानिस्तान में बढ़ते आर्थिक संकट को दूर करने के लिये एक मानवीय ट्रस्ट फंड स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की गई, इस आर्थिक संकट की वजह से सर्दियों में लाखों लोगों को भूख का सामना करना पड़ा है।

  • यह बैठक अमेरिका समर्थित सरकार के गिरने के बाद से अफगानिस्तान पर सबसे बड़ा सम्मेलन है।
  • जुलाई 2021 में भारत ने पाकिस्तान और भारत के बीच बातचीत में सहायता के लिये OIC के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।

प्रमुख बिंदु

  • मानवीय ट्रस्ट फंड
    • अन्य समूहों के साथ समन्वय में अफगानिस्तान को सहायता प्रदान करने के लिये इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक के तहत कोष की स्थापना की जाएगी।
    • अफगानिस्तान को अपने वित्तीय संसाधनों तक पहुँच की अनुमति देना उसके आर्थिक पतन को रोकने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा और कहा कि अफगानिस्तान के बंद केंद्रीय बैंक भंडार में से अरबों डॉलर को निकालने के लिये यथार्थवादी रास्ते तलाशे जाने चाहिये।
      • बैठक में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अफगानिस्तान के साथ-साथ अफगान शरणार्थियों को शरण देने वाले मुख्य देशों को तत्काल और निरंतर मानवीय सहायता प्रदान करने का भी आह्वान किया गया।
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा ट्रस्ट फंड:
    • संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने अगस्त में तालिबान के अधिग्रहण के बाद से अफगानिस्तान के बंद केंद्रीय बैंक भंडार से अरबों डॉलर निष्कासित करने वाली प्रणाली के माध्यम से सीधे अफगानों को तत्काल आवश्यक नकदी प्रदान करने के लिये एक विशेष ट्रस्ट फंड की स्थापना की है।
    • इसे अफगान परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था ताकि वे आगामी सर्दियों में अपनी मातृभूमि में जीवित रह सके।
    • जर्मनी इस फंड में पहला योगदानकर्त्ता है। उसने इसके लिये 50 मिलियन यूरो (USD58 मिलियन) देने की प्रतिबद्धता ज़ाहिर की।

इस्लामिक सहयोग संगठन’ (OIC): 

  • परिचय:
    • कुल 57 देशों की सदस्यता के साथ यह संयुक्त राष्ट्र (UN) के बाद दूसरा सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है।
    • यह संगठन दुनिया भर में मुस्लिम जगत की सामूहिकता का प्रतिनिधित्व करता है। यह दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों के बीच अंतर्राष्ट्रीय शांति और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देने के साथ ही दुनिया के मुस्लिम समुदायों के हितों की रक्षा एवं संरक्षण का प्रयास करता है।
    • इसका गठन सितंबर 1969 में मोरक्को के रबात में हुए ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन के दौरान किया गया था।
    • मुख्यालय: जेद्दाह (सऊदी अरब)

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  • एक संगठन के रूप में OIC के साथ भारत का संबंध:
    • वर्ष 2018 में विदेश मंत्रियों के 45वें सत्र के शिखर सम्मेलन में मेजबान बांग्लादेश द्वारा सुझाव दिया गया कि भारत में विश्व की 10% से अधिक मुस्लिम आबादी निवास करती है, अत: भारत को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया जाना चाहिये लेकिन पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव का विरोध किया।
    • वर्ष 2019 में भारत ने OIC के  विदेश मंत्रियों की बैठक में "गेस्ट ऑफ ऑनर" के रूप में पहली बार अपनी उपस्थिति दर्ज की।
      • OIC की इस बैठक में पहली बार भारत को आमंत्रित किये जाने को भारत के लिये एक कूटनीतिक जीत के रूप में देखा गया, विशेष रूप से ऐसे समय में जब पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के साथ भारत का तनाव बढ़ गया था।
  • OIC सदस्य देशों के साथ भारत के संबंध:

इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक:

  • इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक के बारे में:
    • दिसंबर 1973 में जेद्दा में आयोजित मुस्लिम देशों के वित्त मंत्रियों के सम्मेलन में की गई घोषणा के अनुसरण में इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक की स्थापना एक अंतर्राष्ट्रीय  वित्तीय संस्थान के रूप में की गई तथा बैंक द्वारा अक्तूबर 1975 से औपचारिक रूप से  कार्य शुरू किया गया।
    • बैंक का उद्देश्य सदस्य देशों और मुस्लिम समुदायों के आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति को व्यक्तिगत रूप से और साथ ही संयुक्त रूप से शरीयत के सिद्धांतों अर्थात्  इस्लामिक कानून के अनुसार बढ़ावा देना है।
    • बैंक का प्रधान कार्यालय सऊदी अरब के जेद्दा में अवस्थित है।
  • कार्य:
    • बैंक के कार्यों में आर्थिक और सामाजिक विकास के लिये विभिन्न माध्यमों से सदस्य देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के अलावा इक्विटी पूंजी में भाग लेना और उत्पादक परियोजनाओं एवं उद्यमों हेतु ऋण प्रदान करना है।
  • सदस्य
    • वर्तमान में 56 देश बैंक के सदस्य हैं।
    • सदस्यता के लिये मूल शर्त यह है कि संभावित सदस्य देश को OIC का सदस्य होना चाहिये, बैंक की पूंजी में योगदान करना चाहिये और उन  नियमों एवं शर्तों को स्वीकार करने के लिये तैयार होना चाहिये जिनका निर्धारण OIC बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा निर्धारित किया गया हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


श्रीलंका के साथ मछुआरों का मुद्दा

प्रिलिम्स के लिये:

कच्चातिवु द्वीप और पाक खाड़ी जलडमरूमध्य की अवस्थिति 

मेन्स के लिये:

मछुआरों के मुद्दे का भारत-श्रीलंका संबंधों पर प्रभाव तथा भारत द्वारा इस दिशा में उठाए गए कदम 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में श्रीलंकाई नौसेना कर्मियों द्वारा तमिलनाडु के 43 मछुआरों को गिरफ्तार कर उनकी छह नौकाओं को जब्त कर लिया गया।

Sri-Lanka

प्रमुख बिंदु 

  • पृष्ठभूमि:
    • भारत और श्रीलंका दोनों देशों के मछुआरे सदियों से पाक खाड़ी क्षेत्र में मछली पकड़ते रहे हैं।
      • पाक खाड़ी भारत और श्रीलंका के दक्षिण-पूर्वी तट के मध्य एक अर्द्ध-संलग्न उथला जल निकाय क्षेत्र है।
    • वर्ष 1974 में भारत और श्रीलंका द्वारा एक समुद्री समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद से यह समस्या उत्पन्न हुई।
    • शुरुआत में वर्ष 1974 के सीमा समझौते ने सीमा के दोनों ओर मछली पकड़ने के मछुआरों के हितों को प्रभावित नहीं किया।
    • वर्ष 1976 में दोनों देशों के मध्य हुए दस्तावेज़ों के आदान-प्रदान द्वारा भारत और श्रीलंका एक-दूसरे के जल क्षेत्र में मछली न पकड़ने पर सहमत हुए।
      • वर्ष 1974 और वर्ष 1976 में दोनों देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (International Maritime Boundary Line- IMB) का सीमांकन करने हेतु संधियों पर हस्ताक्षर किये गए थे।
      • इन संधियों ने भारत और श्रीलंका को जोड़ने वाले पाक जलडमरूमध्य को 'टू नेशन पोंड’ (Two-Nation Pond) बना दिया, जो कि संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) के नियमों के तहत किसी तीसरे देश के हस्तक्षेप को रोकता है।
      • सरल शब्दों में यह द्विपक्षीय व्यवस्था अंतर्राष्ट्रीय फिशिंग और शिपिंग पर प्रतिबंध लगाती है।
    • हालाँकि समझौता मछुआरों को इस क्षेत्र में मछली पकड़ने से नहीं रोक सका।
      • समुद्री सीमा समझौतों पर हस्ताक्षर के बावजूद वर्ष 1983 में ईलम युद्ध (Eelam war) शुरू होने तक दोनों देशों के मछुआरा समुदायों ने शांतिपूर्वक पाक खाड़ी क्षेत्र में मछली पकड़ना जारी रखा। 
    • बहरहाल वर्ष 2009 में युद्ध की समाप्ति के बाद से श्रीलंकाई मछुआरे भारतीय मछुआरों के उन्ही के जल क्षेत्र में मछली पकड़ने पर आपत्ति जताते रहे हैं।
    • बाद में भारत और श्रीलंका द्वारा मछुआरों के मुद्दे का स्थायी समाधान खोजने के लिये भारत-श्रीलंका के मध्य वर्ष 2016 में मत्स्य पालन पर एक संयुक्त कार्य समूह (JWG) के गठन पर सहमति व्यक्त की गई।
  • कच्चातीवु द्वीप मुद्दा:
    • कच्चातीवु द्वीप का उपयोग मछुआरों द्वारा पकड़ी गई मछलियों को छाँटने और अपना जाल सुखाने के लिये किया जाता है जो कि अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के दूसरी तरफ स्थित है।
    • ऐसे में पारंपरिक मछुआरे अक्सर अपनी जान जोखिम में डालते हैं क्योंकि गहरे समुद्र से खाली हाथ लौटने के बजाय मछली पकड़ने के लिये वे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को पार कर जाते हैं उनके ऐसा करने पर श्रीलंकाई नौसेना अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को पार करने वाले भारतीय मछुआरों को पकड़कर या तो उनके जाल को नष्ट कर देती है या फिर उनकी नौकाओं को जब्त  कर लेती है।

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  • विवाद जारी रहने का कारण:
    • भारतीय मछुआरों के साथ मुख्य समस्या यह है कि उनमें से बड़ी संख्या श्रीलंकाई जल में मछली पकड़ने पर निर्भर है, जो कि वर्ष 1976 के समुद्री सीमा समझौते द्वारा निषिद्ध है।
    • साथ ही बड़ी संख्या में भारतीय मछुआरे ट्रॉलिंग पर निर्भर हैं जो कि श्रीलंका में प्रतिबंधित है।
  • संबंधित पहल:
    • IMBL काल्पनिक है, लेकिन ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (GPS) के माध्यम से इसे अब जियो-टैग प्रदान किया गया है जिससे मछुआरे IMBL को पहचानने में सक्षम हैं।
    • गहरे समुद्र में मछली पकड़ने की योजना:
      • यह तमिलनाडु-विशिष्ट योजना है, इसका उद्देश्य राज्य के मछुआरों को तीन वर्ष में 2,000 नाव उपलब्ध कराना और उन्हें ‘बॉटम ट्रालिंग’ छोड़ने के लिये प्रेरित करना है।
        • इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों को समाप्त करना है।
        • इसे ‘ब्लू रेवोल्यूशन स्कीम’ के हिस्से के रूप में लॉन्च किया गया था।

आगे की राह

  • श्रीलंका में प्रतिबंधित मछली पकड़ने के उपकरणों को पाक खाड़ी में भारत द्वारा प्रतिबंधित किया जाना चाहिये
    • ऐसे फिशिंग अभ्यासों को छोड़ देना चाहिये जो समुद्री पारिस्थितिकी को अपूरणीय क्षति पहुँचाते हैं।
  • यदि घोषणा का दो चरणों में पालन किया जाए तो भारतीय मछुआरों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। 
    • ट्रॉलर का उपयोग ओडिशा तट में किया जा सकता है जहाँ पानी बहुत गहरा है।
    • कुछ परिवर्तनों के साथ ट्रॉलर को मछली पकड़ने वाले छोटे जहाज़ों के रूप में उपयोग किया जा सकता है जो मदर शिप या मुख्य जहाज़ की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
  • भारत, पाक खाड़ी को विवादित क्षेत्र से साझा विरासत में बदल सकता है।
    • पहला कदम इस बात को स्वीकार करना है कि यहाँ विभिन्न हितधारक हैं जिसमें दो संघीय एवं प्रांतीय सरकारें, नौसेना एवं तटरक्षक, मत्स्य विभाग और इन सबसे ऊपर दोनों देशों के मछुआरे समुदाय शामिल हैं।
    • अगला कदम समुद्री पारिस्थितिकीविदों, मत्स्य विशेषज्ञों, रणनीतिक विशेषज्ञों और सरकारी प्रतिनिधियों के साथ मिलकर पाक खाड़ी प्राधिकरण (Palk Bay Authority-PBA) के निर्माण का होना चाहिये।
      • PBA मछली पकड़ने (कैचिंग) की आदर्श एवं संधारणीय क्षमता, फिशिंग हेतु इस्तेमाल किये जा सकने वाले उपकरणों के प्रकार और श्रीलंकाई तथा भारतीय मछुआरों के लिये मछली पकड़ने की तारीखें व दिनों की संख्या आदि का निर्धारण कर सकता है।
      • समुद्री संसाधनों के संवर्द्धन और मछुआरों की आजीविका में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021

प्रिलिम्स के लिये:

आधार पारिस्थितिकी तंत्र,  जन प्रतिनिधित्व अधिनियम

मेन्स के लिये:

मतदाता सूची डेटा और मतदाता पहचान पत्र को आधार पारिस्थितिकी तंत्र से जोड़ना। चुनावी सुधार, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा में चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित किया गया। यह विधेयक मतदाता सूची डेटा और मतदाता पहचान पत्र को आधार पारिस्थितिकी तंत्र से जोड़ने का प्रयास करता है।

  • हालाँकि विपक्षी सदस्यों ने विधेयक पर कई आपत्तियाँ जताई हैं।

प्रमुख बिंदु

  • विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:
    • निर्वाचक नामावली का ‘डी-डुप्लीकेशन’: यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 23 में संशोधन का प्रावधान करता है, जिससे मतदाता सूची डेटा को आधार पारिस्थितिकी तंत्र से जोड़ा जा सके।
      • इसका उद्देश्य विभिन्न स्थानों पर एक ही व्यक्ति के एकाधिक नामांकन को रोकना है।
      • इससे फर्जी वोटिंग और फर्जी मतों को रोकने में मदद मिलेगी।
      • यह लिंकिंग विभाग से संबंधित व्यक्तिगत, लोक शिकायत और कानून तथा न्याय पर संसदीय स्थायी समिति की 105वीं रिपोर्ट के अनुरूप है।
    • मल्टीपल क्वालिफाइंग डेट्स: नागरिकों को 18 वर्ष कि आयु में वोटिंग का अधिकार मिल जाता है। हालाँकि 18 वर्ष की आयु के बाद भी कई लोग मतदाता सूची से बाहर रह जाते हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि 1 जनवरी को क्वालीफाइंग तारीख के रूप में माना जाता है।
      • विधेयक के अनुसार, वोटिंग रोल को अपडेट करने के लिये चार क्वालिफाइंग तारीखों की घोषणा की जाएगी, जिसमें जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों के पहले दिन 18 वर्ष के हो चुके लोगों को शामिल किया जाएगा।
    • लैंगिक तटस्थता लाना: 'सेवा मतदाताओं की पत्नियों' के पंजीकरण की भाषा को अब 'जीवन साथी' से बदल दिया जाएगा। यह कानूनों को और अधिक "लिंग-तटस्थ" बना देगा।
      • सेवा मतदाता वे हैं जो सशस्त्र बलों में सेवारत हैं या इसके बाहर राज्य के सशस्त्र पुलिस बल में सेवारत हैं या भारत के बाहर तैनात सरकारी कर्मचारी हैं।
  • संबद्ध चिंताएँ:
    • आधार अपने आप में अनिवार्य नहीं है: वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़ने के कदम को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।
      • उस समय यह माना गया कि "आधार कार्ड योजना विशुद्ध रूप से स्वैच्छिक है"
      • इसके अलावा आधार का मतलब केवल यही था कि यह निवास का प्रमाण है नागरिकता का नहीं।
    • बड़े पैमाने पर मताधिकार से वंचित होने का भय: विधेयक मतदाता पंजीकरण अधिकारियों को आवेदक की पहचान स्थापित करने हेतु मतदाता के रूप में पंजीकरण करने के इच्छुक आवेदकों के आधार नंबर मांगने की अनुमति देता है।
      • आधार के अभाव में सरकार कुछ लोगों को मताधिकार से वंचित करने और नागरिकों की प्रोफाइल बनाने के लिये मतदाता पहचान विवरण का उपयोग करने में सक्षम होगी।
    • डेटा संरक्षण कानून का अभाव: विशेषज्ञों का मानना है कि एक मज़बूत व्यक्तिगत डेटा संरक्षण कानून (इस संबंध में एक विधेयक को संसद द्वारा अभी तक मंज़ूरी नहीं दी गई है) के अभाव में डेटा साझा करने की अनुमति देने का कोई भी कदम समस्या उत्पन्न कर सकता है।
    • निजता संबंधी चिंताएँ: वर्तमान में चुनावी डेटा को भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा अपने डेटाबेस में रखा जाता है, जिसकी अपनी सत्यापन प्रक्रिया होती है और यह अन्य सरकारी डेटाबेस से अलग होती है।
  • सरकार का रुख:
    • स्वैच्छिक लिंकिंग: आधार और चुनाव डेटाबेस के बीच प्रस्तावित लिंकेज स्वैच्छिक है।
    • मताधिकार से वंचित होने का कोई जोखिम नहीं: मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिये किये किसी भी आवेदन को अस्वीकार नहीं किया जाएगा और किसी व्यक्ति द्वारा आधार संख्या प्रस्तुत करने या सूचित करने में असमर्थता की स्थिति में मतदाता सूची से कोई भी प्रविष्टि नहीं हटाई जाएगी।

आगे की राह 

  • व्यापक कानून की आवश्यकता: एक त्रुटि मुक्त मतदाता सूची स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिये अनिवार्य है। यद्यपि सरकार को चाहिये कि वह इसके लिये व्यापक विधेयक प्रस्तुत करे ताकि  संसद में इस मुद्दे पर उचित चर्चा हो सके।
  • अधिक स्पष्टीकरण की आवश्यकता: विधेयक में दो डेटाबेस के बीच डेटा साझाकरण की सीमा, ऐसे तरीके जिनके माध्यम से सहमति प्राप्त की जाएगी और क्या डेटाबेस को जोड़ने के लिये सहमति रद्द की जा सकती है, जैसी बातों को निर्दिष्ट किया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सेबी द्वारा कृषि जिंसों में डेरिवेटिव व्यापार पर प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये:

कैपिटल मार्केट, डेरिवेटिव ट्रेडिंग, इन्फ्लेशन, ऑप्शंस, फ्यूचर्स, फॉरवर्ड्स, स्वैप्स

मेन्स के लिये:

डेरिवेटिव ट्रेडिंग निलंबन के कारण और इसके प्रभाव, महत्त्व और डेरिवेटिव ट्रेडिंग से संबंधित चिंताएँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने नेशनल कमोडिटीज़ एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) के फ्यूचर प्लेटफॉर्म पर सात कृषि जिंसों के डेरिवेटिव व्यापार पर एक वर्ष के लिये प्रतिबंध लगा दिया है।

  • नियामक ने चना, गेहूँ, धान (गैर-बासमती), सोयाबीन और इसके डेरिवेटिव, सरसों और इसके डेरिवेटिव, कच्चे पाम तेल और मूँग में डेरिवेटिव अनुबंध व्यापार पर तत्काल प्रभाव से एक वर्ष के लिये प्रतिबंध लगा दिया है।
  • कमोडिटी डेरिवेटिव बाज़ार तब से कृषि वस्तुओं में व्यापार के ऐसे अचानक निलंबन के लिये प्रवण रहा है जब से इसे पूर्ववर्ती वायदा बाज़ार आयोग (एफएमसी) के तहत पेश किया गया था।

सेबी:

  • यह भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
  • सेबी का मूल कार्य प्रतिभूतियों में निवेशकों के हितों की रक्षा करना और प्रतिभूति बाज़ार को बढ़ावा देना एवं विनियमित करना है।

प्रमुख बिंदु

  • प्रतिबंध के कारण:
    • खाद्य मुद्रास्फीति को समाप्त करना:
      • भारत की खुदरा मुद्रास्फीति नवंबर में बढ़कर तीन महीने के उच्च स्तर 4.91% पर पहुँच गई, जो पिछले महीने में 4.48% थी, इसका मुख्य कारण इस अवधि में खाद्य मुद्रास्फीति में 0.85% से 1.87% तक की वृद्धि होना था।
    • द्विअंकीय WPI:
      • थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति अप्रैल से शुरू होने वाले लगातार आठ महीनों से दोहरे अंकों में बनी हुई है, जिसका मुख्य कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि है।
      • नवंबर में खनिज तेलों, मूल धातुओं, कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की कीमतों में कठोरता होने के बीच थोक मूल्य-आधारित मुद्रास्फीति 14.23% के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गई।
    • भविष्य के मूल्य को इंसुलेट करना:
      • रबी उत्पादन देश के कई हिस्सों में उर्वरक की कमी का सामना किये जाने के कारण रुग्ण रूप से प्रभावित हो सकता है।
      • भविष्य के व्यापार पर प्रतिबंध लगाकर सरकार बराबर उत्पादन नहीं होने की स्थिति में आने वाले दिनों में बाज़ार को लगने वाले किसी भी कीमत संबंधी झटके से बचाने की कोशिश कर रही है।
  • प्रभाव:
    • यह ‘सस्पेंसन’ की स्थिति सर्दियों में बोई जाने वाली रबी की फसल से पहले आती है, जो कि कुछ ही महीनों में बाज़ारों में आ जाती है। कोई संदर्भ मूल्य नहीं होने से व्यापारियों को भविष्य के रुख बारे में पता नहीं होगा।
    • आयातक, जो खुद को कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचाने के लिये डेरिवेटिव बाज़ार में हेज करते हैं, अधिक असुरक्षित हो सकते हैं।

डेरिवेटिवस (Derivatives):

  • परिचय:
    • डेरिवेटिव वे उपकरण हैं जिनमें ऋण लिखत शेयर, ऋण, जोखिम लिखत या किसी अन्य प्रकार की सुरक्षा अंतर के लिये अनुबंध, जो अंतर्निहित प्रतिभूतियों की कीमतों के मूल्य/सूचकांक से अपना मूल्य प्राप्त करते हैं, से प्राप्त सुरक्षा शामिल है।
    • वित्त क्षेत्र में डेरिवेटिव्स एक अनुबंध है जो एक अंतर्निहित इकाई के प्रदर्शन से अपना मूल्य प्राप्त करता है। यह अंतर्निहित इकाई एक परिसंपत्ति, सूचकांक या ब्याज दर हो सकती है और इसे अक्सर "अंतर्निहित" कहा जाता है।
  • प्रकार:
    • फॉरवर्ड और फ्यूचर:
      • ये वित्तीय अनुबंध हैं जो अनुबंध के तहत खरीदारों को एक निर्दिष्ट भविष्य की तारीख पर पूर्व-सहमत मूल्य पर संपत्ति खरीदने के लिये बाध्य करते हैं। फॉरवर्ड (Forwards) और फ्यूचर (Futures) दोनों अपने स्वभाव में अनिवार्य रूप से समान हैं।
    • ऑप्शन:
      • ऑप्शन/विकल्प अनुबंध के खरीदार को पूर्व निर्धारित मूल्य पर अंतर्निहित परिसंपत्ति को खरीदने या बेचने का अधिकार प्रदान करते हैं, लेकिन दायित्व (Obligation) नहीं।
      • ऑप्शन प्रकार के आधार पर खरीदार परिपक्वता तिथि पर या परिपक्वता से पहले किसी भी तिथि पर ऑप्शन का प्रयोग कर सकता है।
    • स्वैप्स:
      • स्वैप्स (Swaps) डेरिवेटिव अनुबंध होते हैं जो दो पक्षों के मध्य नकदी प्रवाह के आदान-प्रदान की अनुमति देते हैं।
      • स्वैप में आमतौर पर अस्थायी नकदी प्रवाह के लिये एक निश्चित नकदी प्रवाह का आदान-प्रदान शामिल होता है।
      • सबसे लोकप्रिय प्रकार के स्वैप इंटरेस्ट रेट स्वैप, कमोडिटी स्वैप और करेंसी स्वैप हैं।
  • महत्त्व:
    • हेजिंग रिस्क एक्सपोज़र: 
      • चूंँकि डेरिवेटिव का मूल्य अंतर्निहित परिसंपत्ति के मूल्य से जुड़ा हुआ होता है, अत: अनुबंधों का उपयोग मुख्य रूप से जोखिमों से बचाव के लिये किया जाता है।
      • इस तरह डेरिवेटिव कांट्रेक्ट/व्युत्पन्न अनुबंध (Derivative Contract) में लाभ अंतर्निहित परिसंपत्ति में नुकसान की भरपाई कर सकता है।
    • अंतर्निहित परिसंपत्ति मूल्य निर्धारण:
      • अंतर्निहित परिसंपत्ति की कीमत निर्धारित करने के लिये अक्सर डेरिवेटिव का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिये फ्यूचर/वायदा की वर्तमान कीमतें कमोडिटी की कीमत के अनुमान के रूप में कार्य कर सकती हैं।
    • बाज़ार की कार्यक्षमता:
      • यह माना जाता है कि डेरिवेटिव वित्तीय बाज़ारों की दक्षता में वृद्धि करते हैं। डेरिवेटिव कांट्रेक्ट का उपयोग करके किसी संपत्ति के भुगतान को दोहरा सकता है।
      • अत: अंतर्निहित परिसंपत्ति और संबंधित डेरिवेटिव की कीमतें मध्यस्थता के अवसरों से बचने के लिये संतुलन स्थापित करती हैं।
    • अनुपलब्ध संपत्तियों या बाज़ारों तक पहुंँच:
      • डेरिवेटिव संगठनों को अनुपलब्ध संपत्तियों या बाज़ारों तक पहुंँच प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।
      • ब्याज दर स्वैप को नियोजित करके एक कंपनी प्रत्यक्ष उधार से प्राप्त ब्याज दरों के सापेक्ष अधिक अनुकूल ब्याज दर प्राप्त कर सकती है
  • मुद्दे:
    • उच्च जोखिम:
      • डेरिवेटिव की उच्च अस्थिरता संभावित रूप से इन्हें भारी नुकसान पहुँचाती है। अनुबंधों का परिष्कृत डिज़ाइन इनके मूल्यांकन को अत्यंत जटिल या असंभव बना देता है। इस प्रकार ये एक उच्च अंतर्निहित जोखिम को वहन करते हैं।
    • अव्यवहारिक विशेषताएंँ:
      • डेरिवेटिव्स को व्यापक रूप से अटकलों का एक उपकरण माना जाता है। डेरिवेटिव की अत्यधिक जोखिम भरी प्रकृति और उनके अप्रत्याशित व्यवहार के चलते अनुचित अटकलों के कारण भारी नुकसान हो सकता है।
    • प्रतिपक्ष जोखिम:
      • हालांँकि एक्सचेंजों पर कारोबार किये जाने वाले डेरिवेटिव्स आमतौर पर पूरी तरह से उचित परिश्रम प्रक्रिया से गुज़रते हैं, लेकिन काउंटर पर कारोबार करने वाले कुछ अनुबंधों में उचित परिश्रम हेतु बेंचमार्क शामिल नहीं होता है। इस प्रकार प्रतिपक्ष डिफाॅल्ट (Counterparty Default) की संभावना होती है।

नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज:

  • NCDEX एक ऑनलाइन कमोडिटी एक्सचेंज है जो मुख्य रूप से कृषि संबंधी उत्पादों में व्यवहार करता है।
  • यह सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी (Public Limited Company) है, जिसे कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत 23 अप्रैल, 2003 को स्थापित किया गया था।
  • इस एक्सचेंज की स्थापना भारत के कुछ प्रमुख वित्तीय संस्थानों जैसे- ICICI बैंक लिमिटेड, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज तथा राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक आदि द्वारा की गई थी।
  • NCDEX का मुख्यालय मुंबई में स्थित है, लेकिन व्यापार की सुविधा के लिये देश के कई अन्य हिस्सों में भी इसके कार्यालय हैं।
  • इनमें कृषि उत्पादों के 25 अनुबंध शामिल हैं। NCDEX  का परिचालन एक स्वतंत्र निदेशक मंडल द्वारा किया जाता है जिसका कृषि में कोई प्रत्यक्ष हित नहीं है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सुशासन सप्ताह

प्रिलिम्स के लिये:

सुशासन दिवस, सुशासन सप्ताह,, सुशासन से संबंधित पहल, सुशासन के सिद्धांत।

मेन्स के लिये:

सुशासन का महत्त्व, स्थानीय स्तर के शासन और संबंधित चुनौतियों में सुधार के सिद्धांत।

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार 20 दिसंबर से 26 दिसंबर तक एक राष्ट्रव्यापी 'सुशासन सप्ताह' मना रही है, जिसका उद्देश्य जनता की शिकायतों का निवारण और निपटान करना और ग्रामीण स्तर तक सेवा वितरण में सुधार करना है।

  • नागरिक केंद्रित होने के उद्देश्य से "प्रशासन गाँव की ओर" नामक अभियान के तहत इस सप्ताह के दौरान विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे।
  • 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती को चिह्नित करने के लिये 'सुशासन दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • यह प्रगतिशील भारत के 75 वर्षों के उपलक्ष्य में आज़ादी का अमृत महोत्सव समारोह के अनुरूप नागरिक-केंद्रित शासन को बढ़ावा देने और सेवा वितरण में सुधार के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदमों का जश्न मनाने के लिये आयोजित किया जाता है।
    • इस सप्ताह के दौरान नियोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला का उद्देश्य केंद्र द्वारा की गई विभिन्न सुशासन पहलों को जनता के सामने लाना है।
    • इसमें सुशासन प्रथाओं पर प्रदर्शनी का उद्घाटन भी शामिल होगा।
  • विभिन्न आयोजन:
    • जीवन की सुगमता और अनुपालन बोझ को कम करने के लिये सुधारों का अगला चरण।
    • सर्वोत्तम प्रथाओं पर DARPG द्वारा अनुभव साझा करने हेतु कार्यशाला।
    • मिशन कर्मयोगी- आगे की राह।
    • इस अवसर पर ‘सुशासन सप्ताह पोर्टल’ भी लॉन्च किया जाएगा तथा राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सभी ज़िला कलेक्टरों को प्रगति एवं उपलब्धियों को अपलोड करने व साझा करने के लिये ऑनलाइन पोर्टल तक पहुँच प्रदान की जाएगी।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में सुशासन लाने के उद्देश्य से ‘प्रशासन गाँव की ओर' अभियान शुरू किया जाएगा।
  • शासन:
    • यह निर्णय लेने तथा इन निर्णयों के कार्यान्वयन की एक प्रक्रिया है।
    • शासन शब्द का उपयोग कई संदर्भों में किया जा सकता है जैसे कि कॉर्पोरेट प्रशासन, अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन, राष्ट्रीय प्रशासन और स्थानीय शासन।
  • सुशासन के आठ लक्षण (संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्णित):
    • भागीदारी:
      • लोगों द्वारा सीधे या वैध मध्यवर्ती संस्थानों के माध्यम से भागीदारी जो कि उनके हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
      • निर्णय लेने में लोगों को स्वतंत्र होना चाहिये। 
    • विधि का शासन:
      • कानूनी ढाँचा, विशेष रूप से मानव अधिकारों से संबंधित कानून सभी पर निष्पक्ष रूप से लागू होने चाहिये।
    • पारदर्शिता:
      • सूचना के मुक्त प्रवाह को लेकर पारदर्शिता सुनिश्चित की जाती है ताकि प्रक्रियाओं, संस्थाओं और सूचनाओं तक लोगों की सीधी पहुँच हो तथा उन्हें इनको समझने व निगरानी करने के लिये पर्याप्त जानकारी प्रदान की जाती है।
    • जवाबदेही:
      • संस्थाओं और प्रक्रियाओं द्वारा सभी हितधारकों को एक उचित समयसीमा के भीतर सेवा सुलभ कराने का प्रयास किया जाता है।
    • आम सहमति:
      • सुशासन के लिये समाज में विभिन्न हितों को लेकर मध्यस्थता की आवश्यकता होती है, ताकि समाज में इस पर व्यापक सहमति बन सके कि यह पूरे समुदाय के सर्वोत्तम हित में है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
    • इक्विटी:
      • सभी समूहों, विशेष रूप से सबसे कमज़ोर वर्ग की स्थिति में सुधार करने या उसे बनाए रखने का अवसर प्रदान करना।
    • प्रभावशीलता और दक्षता:
      • संसाधन और संस्थान उन परिणामों को सुनिश्चित करते हैं जो संसाधनों का सबसे अच्छा उपयोग करते हुए ज़रूरतों को पूरा सकें।
    • जवाबदेही:
      • सरकार में निर्णय लेने वाले निजी क्षेत्र और नागरिक समाज संगठन जनता के साथ-साथ संस्थागत हितधारकों के प्रति जवाबदेह होते हैं।

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  • भारत में सुशासन के मार्ग में आने वाली बाधाएँ:
    • महिला सशक्तीकरण में कमी: 
      • सरकारी संस्थानों और अन्य संबद्ध क्षेत्रों में महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है
    • भ्रष्टाचार:
      • भारत में उच्च स्तर के भ्रष्टाचार को शासन की गुणवत्ता के सुधार के मार्ग में एक बड़ी बाधा के रूप में माना जाता है।
      • एक नागरिक को समय पर न्याय पाने का अधिकार है, लेकिन कई कारक हैं, जिसके कारण एक सामान्य व्यक्ति को समय पर न्याय नहीं मिलता है। इस तरह के एक कारण के रूप में न्यायालयों में कर्मियों और संबंधित सामग्री की कमी है।
    • न्याय में देरी:
      • एक नागरिक को समय पर न्याय पाने का अधिकार है, किंतु कई ऐसे कारक हैं जिनकी वजह से एक सामान्य व्यक्ति को समय पर न्याय नहीं मिल पाता है।
    • प्रशासनिक शक्तियों का केंद्रीकरण:
      • निचले स्तर की सरकारें केवल तभी कुशलता से कार्य कर सकती हैं जब वे ऐसा करने हेतु सशक्त हों। यह विशेष रूप से पंचायती राज संस्थानों के लिये प्रासंगिक है जो वर्तमान में निधियों की अपर्याप्तता के साथ-साथ संवैधानिक रूप से सौंपे गए कार्यों को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना कर रही हैं।
    • राजनीति का अपराधीकरण
      • राजनीतिक प्रक्रिया का अपराधीकरण और राजनेताओं, सिविल सेवकों तथा व्यावसायिक घरानों के बीच साँठगाँठ सार्वजनिक नीति निर्माण और शासन पर बुरा प्रभाव डाल रहा है।
    • पर्यावरणीय सुरक्षा, सतत् विकास।
      • वैश्वीकरण, उदारीकरण और बाज़ार अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ।
  • भारत में सुशासन के लिये पहल:
    • गुड गवर्नेंस इंडेक्स
      • GGI को देश में शासन की स्थिति निर्धारित करने के लिये कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है।
      • यह राज्य सरकार और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों के प्रभाव का आकलन करता है।
    • राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना:
      • इसका उद्देश्य "आम आदमी की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये ‘सामान्य सेवा वितरण आउटलेट्स’ के माध्यम से सस्ती कीमत पर सभी सरकारी सेवाओं को स्थानीय स्तर पर सुलभ कराना और ऐसी सेवाओं की दक्षता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है।" 
    • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

स्रोत: पीआईबी