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डेली न्यूज़

  • 21 Aug, 2023
  • 46 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

MoEFCC ने स्वायत्त निकायों के विलय का फैसला वापस लिया

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय वन सर्वेक्षण, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो, केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण, प्रोजेक्ट टाइगर, प्रोजेक्ट एलीफेंट, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972

मेन्स के लिये:

पर्यावरण संरक्षण संगठन और संबंधित चिंताएँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forests and Climate Change- MoEFCC) ने प्रमुख पर्यावरण निकायों के विलय द्वारा एकीकृत क्षेत्रीय कार्यालय की स्थापना के फैसले को वापस ले लिया है।

MoEFCC का प्रारंभिक प्रस्ताव: 

  • प्रस्ताव: 
    • इस कदम का लक्ष्य एकीकृत अधिकार के माध्यम से इन संगठनों का सुव्यवस्थित संचालन करना था।
    • कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान घोषित प्रारंभिक योजना का उद्देश्य भारतीय वन सर्वेक्षण, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो और केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण को एक एकीकृत संरचना के तहत पुनर्गठित करना था।
  • आलोचना: 
    • यह इन निकायों (जिनकी पर्यावरण प्रशासन में अलग-अलग जनादेश और भूमिकाएँ हैं) की स्वतंत्रता और अधिकार को कमज़ोर कर सकता है।
    • चूँकि इन निकायों की रिपोर्टिंग संरचनाएँ और क्षेत्राधिकार अलग-अलग हैं, ऐसे में इस कदम से प्रशासनिक भ्रांतियाँ और अव्यवस्था उत्पन्न हो सकती है।
    • इससे उनके काम की गुणवत्ता और विश्वसनीयता से समझौता किया जा सकता है, क्योंकि वे MoEFCC के राजनीतिक हस्तक्षेप और दबाव के अधीन होंगे। 
    • यह इन निकायों के फोकस क्षेत्र और विशेषज्ञता को कमज़ोर कर देगा, जिनके अपने संबंधित क्षेत्रों में विशेष कार्य और कौशल हैं।
  • निर्णय में परिवर्तन: 
    • MoEFCC की हालिया अधिसूचना ने न केवल विलय योजना को रद्द कर दिया बल्कि मौजूदा क्षेत्रीय कार्यालयों को पुनर्व्यवस्थित करने का सुझाव दिया,जिसके कारण इस योजना को आलोचना का भी सामना करना पड़ रहा है।
      • उदाहरण के लिये बंगलूरू क्षेत्रीय कार्यालय के पास अलग-अलग भौगोलिक और पर्यावरणीय स्थिति वाले तीन राज्यों तथा एक केंद्रशासित प्रदेश कर्नाटक, केरल, गोवा एवं लक्षद्वीप का अधिकार क्षेत्र होगा।
      • प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट के विलय की हालिया योजना को लेकर भी चिंता व्यक्त की गई, जो इन पहलों की स्वायत्तता और महत्त्व को प्रभावित कर सकता है।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI):
    • यह एक सरकारी एजेंसी है जिसकी ज़िम्मेदारी वन सर्वेक्षण, मूल्यांकन और संबंधित अनुसंधान करना है।
    • FSI ने "वन संसाधनों का निवेश पूर्व सर्वेक्षण" (PISFR) का स्थान लिया है, जो FAO और UNDP की सहायता से वर्ष 1965 में भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल थी।
    • भारत राज्य वन रिपोर्ट (ISFR) FSI का द्विवार्षिक प्रकाशन है।
  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण:
    • यह टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिश के बाद दिसंबर 2005 में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
    • यह प्रोजेक्ट टाइगर और भारत के टाइगर रिज़र्व के प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार है।
    • केंद्रीय पर्यावरण मंत्री NTCA का अध्यक्ष है और राज्य पर्यावरण मंत्री इसका उपाध्यक्ष है।
  • वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (Wildlife Crime Control Bureau): 
    • यह देश में संगठित वन्यजीव अपराध से निपटने हेतु स्थापित एक वैधानिक बहु-विषयक निकाय (WPA 1972) है।
    • ब्यूरो का मुख्यालय नई दिल्ली में है। यह राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव वाले वन्यजीव अपराधों, प्रासंगिक नीति और कानूनों से संबंधित मुद्दों पर भारत सरकार को सलाह देता है।
    • इसके अतिरिक्त यह EXIM नीति, CITES और वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम (Wild Life Protection Act) द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार वनस्पतियों एवं जीवों की खेप के निरीक्षण के दौरान सीमा शुल्क अधिकारियों का समर्थन और परामर्श देता है।
  • केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण: 
    • यह भारत में चिड़ियाघरों के कामकाज़ के विनियमन तथा निगरानी करने और इसके द्वारा निर्धारित मानकों एवं मानदंडों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये एक वैधानिक निकाय (WPA 1972) भी है।
    • मान्यता प्रदान करने के प्राथमिक कार्य के अलावा CZA चिड़ियाघरों के बीच वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम [Wildlife (Protection) Act], 1972 की अनुसूची- I और II के तहत सूचीबद्ध लुप्तप्राय श्रेणी के जानवरों के आदान-प्रदान को भी नियंत्रित करता है।
    • पर्यावरण मंत्री (Environment Minister) CZA का अध्यक्ष है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित बाघ आरक्षित क्षेत्राें में ‘‘क्रांतिक बाघ आवास (Critical Tiger Habitat)’’ के अंतर्गत सबसे बड़ा क्षेत्र किसके पास है? (2020)

(a) कॉर्बेट
(b) रणथम्बौर
(c) नागार्जुनसागर-श्रीसैलम
(d) सुंदरबन

उत्तर: (c)


मेन्स: 

प्रश्न. "विभिन्न प्रतियोगी क्षेत्रों और साझेदारों के मध्य नीतिगत विरोधाभासों के परिणामस्वरूप पर्यावरण के ‘संरक्षण तथा उसके निम्नीकरण की रोकथाम’ अपर्याप्त रही है।" सुसंगत उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (2018) 

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

सुरक्षित डिजिटल कनेक्टिविटी हेतु सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

सुरक्षित डिजिटल कनेक्टिविटी हेतु सुधार, डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र, नो योर कस्टमर, प्वाइंट ऑफ सेल, विश्व दूरसंचार दिवस

मेन्स के लिये:

सुरक्षित डिजिटल कनेक्टिविटी हेतु सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वच्छ और सुरक्षित डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये मोबाइल उपयोगकर्ता सुरक्षा हेतु दो सुधार पेश किये गए हैं।

  • ये दोनों सुधार KYC (अपने ग्राहक को जानें/नो योर कस्टमर) और प्वाइंट ऑफ सेल पंजीकरण से संबंधित हैं। ये सुधार नागरिक-केंद्रित पोर्टल संचार साथी (साइबर अपराध एवं वित्तीय धोखाधड़ी के खतरे के खिलाफ भारत को सशक्त बनाने हेतु शुरू की गई पहल) के लॉन्च के साथ शुरू किये गए पहले के सुधारों की दिशा में अगला पड़ाव है।

किये गए सुधार:

  • KYC सुधार: ये सुधार दूरसंचार सेवाओं के ग्राहकों को संभावित धोखाधड़ी से बचाने और डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र में जनता के विश्वास में वृद्धि करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
    • आधार संख्या की QR कोड स्कैनिंग: KYC प्रक्रिया के दौरान प्राप्त डेटा के दुरुपयोग को रोकने के लिये मुद्रित आधार के QR कोड को स्कैन करके जनसांख्यिकीय जानकारी एकत्र की जाती है।
    • बंद मोबाइल नंबर के तत्काल पुन: उपयोग पर रोक: मोबाइल नंबर बंद किये जाने की अवधि से 90 दिनों तक यह नंबर नए ग्राहकों को आवंटित नहीं किया जाएगा, इससे किसी भी नंबर के तत्काल पुन: उपयोग को रोका जा सकेगा।
    • सिम रिप्लेसमेंट/बदलने के लिये KYC की अनिवार्यता: सब्सक्राइबर्स को अपना सिम कार्ड बदलते समय KYC पूरा करना अनिवार्य होगा।
    • बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण: अँगूठे के निशान और आईरिस-आधारित प्रमाणीकरण के अलावा आधार E-KYC में चेहरे-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण की अनुमति है।
    • व्यावसायिक कनेक्शन: कंपनियाँ, संगठन, ट्रस्ट और सोसायटी जैसी संस्थाएँ आदि सभी अंतिम उपयोगकर्ता KYC पूरा करने के बाद ही मोबाइल कनेक्शन प्राप्त कर सकते हैं। सफल KYC और इकाई के भौतिक सत्यापन के बाद ही सिम को चालू/सक्रिय (Activation) किया जाया है।
  • प्वाइंट-ऑफ-सेल (POS) पंजीकरण सुधार: इस सुधार का उद्देश्य फ्रेंचाइज़ी, एजेंटों और वितरकों (PoS) को अनिवार्य रूप से पंजीकृत करके वितरण नेटवर्क की सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करना है।
    • इस प्रक्रिया में PoS और लाइसेंसधारियों के बीच मज़बूत सत्यापन एवं लिखित समझौते शामिल हैं। अवैध गतिविधियों में लिप्त किसी भी PoS की सेवा को समाप्त कर तीन वर्ष के लिये ब्लैकलिस्ट में शामिल कर दिया जाएगा।

संचार साथी पोर्टल:

  • परिचय:
    • दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications- DoT) के तहत सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (Centre for Development of Telematics- C-DOT) द्वारा विकसित संचार साथी पोर्टल, भारत के दूरसंचार क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है।
    • इसे विश्व दूरसंचार दिवस [World Telecommunication Day (17 मई, 2023)] पर लॉन्च किया गया था।
  • उद्देश्य:
    • संचार साथी पोर्टल का प्राथमिक उद्देश्य दूरसंचार उद्योग में प्रचलित विभिन्न धोखाधड़ी की गतिविधियों, जैसे आइडेंटिटी थेफ्ट, जाली KYC और बैंकिंग फ्रॉड को संबोधित करना है।
      • उन्नत प्रौद्योगिकियों और रूपरेखाओं का लाभ उठाकर, इस पोर्टल का लक्ष्य उपयोगकर्ताओं को एक सुरक्षित तथा भरोसेमंद दूरसंचार का अनुभव प्रदान करना है।
  • सुधार:
    • CEIR (केंद्रीय उपकरण पहचान रजिस्टर):
      • इसे चोरी या खोए हुए मोबाइल फोन को ब्लॉक करने के लिये लागू किया गया।
      • उपयोगकर्ता चोरी हुए उपकरणों के सत्यापन और उन्हें ब्लॉक करने के लिये पुलिस शिकायत की एक प्रति के साथ IMEI नंबर जमा कर सकते हैं।
      • दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ एकीकृत किया गया।
      • यह चोरी हुए उपकरणों के भारतीय नेटवर्क में प्रयोग को रोकता है तथा आवश्यकता पड़ने पर कानून प्रवर्तन एजेंसियों के माध्यम से पता लगाने की अनुमति देता है।
    • अपने मोबाइल कनेक्शन को जानें:
      • यह उपयोगकर्ताओं को उनके नाम पर पंजीकृत मोबाइल कनेक्शन की जाँच करने की अनुमति देता है।
      • अनधिकृत या कपटपूर्ण कनेक्शनों की पहचान करने में सक्षम बनाता है।
      • उपयोगकर्ता धोखाधड़ी या अनधिकृत कनेक्शन की रिपोर्ट किये जाने की स्थिति में उक्त कनेक्शन को पुन: सत्यापित या बंद किया जा सकता है।
    • ASTR (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और फेशियल रिकग्निशन पावर्ड सॉल्यूशन फॉर टेलीकॉम सिम सब्सक्राइबर वेरिफिकेशन):
      • इसे कपटपूर्ण या ज़ाली दस्तावेज़ों का उपयोग करके कनेक्शन प्राप्त करने वाले ग्राहकों की पहचान करने के लिये विकसित किया गया।
      • यह चेहरे की पहचान और डेटा विश्लेषण तकनीकों का उपयोग करता है।
      • कागज़ आधारित KYC दस्तावेज़ों के माध्यम से प्राप्त कनेक्शनों का विश्लेषण करता है।
  • प्रभाव:
    • इसके तहत 40 लाख से अधिक फर्जी कनेक्शनों की पहचान की गई, साथ ही पोर्टल का उपयोग करके 36 लाख से अधिक कनेक्शन समाप्त कर दिये गए।
    • यह उपयोगकर्ताओं को एक सुरक्षित और भरोसेमंद दूरसंचार का अनुभव प्रदान करता है।
    • यह पहचान की चोरी, जाली KYC, मोबाइल उपकरण की चोरी और बैंकिंग धोखाधड़ी से सुरक्षा करता है।

निष्कर्ष:

  • व्यापक सुधारों की शुरुआत कर और 'संचार साथी' पोर्टल तथा ASTR जैसे तकनीकी उपकरणों का उपयोग करके विभाग ने धोखाधड़ी की गतिविधियों की प्रभावी ढंग से पहचान की है एवं उनके खिलाफ कार्रवाई की है।
  • यह दृष्टिकोण सभी नागरिकों को एक सुरक्षित और विश्वसनीय संचार वातावरण प्रदान करने के सरकार के मिशन के अनुरूप है।

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस

प्रिलिम्स के लिये:

एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस, न्यूरोडीजेनेरेटिव डिज़ीज़, राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (NPRD), विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस और उससे जुड़ी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (Amyotrophic Lateral Sclerosis- ALS), दुर्बल करने वाली न्यूरोडीजेनेरेटिव डिज़ीज़ (Neurodegenerative Diseas) है, जो भारत में रोगियों और देखभाल करने वालों दोनों के लिये कई तरह की चुनौतियाँ पैदा करती है।

  • इसकी दुर्लभ घटना के बावजूद ALS अपनी प्रगतिशील प्रकृति तथा प्रभावी उपचार की कमी के कारण प्रभावित लोगों के जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है।

एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस (ALS):

  • परिचय:
    • ALS एक दुर्लभ और घातक मोटर न्यूरॉन डिज़ीज़ (Motor Neuron Disease) है। इसकी विशेषता रीढ़ की हड्डी और मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं के प्रगतिशील अध:पतन (Progressive Degeneration) है।
      • इसे प्राय: एक प्रसिद्ध बेसबॉल खिलाड़ी, जिनकी इस बीमारी के कारण मृत्यु हो गई थी, के नाम पर लू गेरिग डिज़ीज़ (Lou Gehrig's Disease) कहा जाता है।
    • ALS सबसे विनाशकारी विकारों में से एक है जो तंत्रिकाओं तथा मांसपेशियों के कार्य को प्रभावित करता है।
    • जैसे ही मोटर न्यूरॉन्स का पतन होता है और नष्ट हो जाते हैं, वे मांसपेशियों को संदेश भेजना बंद कर देते हैं, जिससे मांसपेशियाँ कमज़ोर हो जाती हैं, उनमें ऐंठन होने लगती है (Fasciculations) और बेकार हो जाती हैं (Atrophy)।
    • अंततः, मस्तिष्क स्वैच्छिक गतिविधियों को शुरू करने तथा नियंत्रित करने की अपनी क्षमता खो देता है।
      • जो गतिविधियाँ हमारे नियंत्रण में होती हैं उन्हें स्वैच्छिक क्रियाएँ (Voluntary Actions) कहा जाता है, जैसे- चलना, दौड़ना, बैठना आदि।
      • दूसरी ओर, जो गतिविधियाँ हमारे नियंत्रण में नहीं होती हैं, उन्हें अनैच्छिक गतिविधियाँ (Involuntary Movements) कहा जाता है।
  • कारण:
    • अभी तक इसका कोई कारण ज्ञात नहीं है, कुछ मामलों में आनुवंशिकी भी शामिल है।
    • ALS पर अनुसंधान द्वारा ALS के संभावित पर्यावरणीय कारणों की जाँच की जा रही है।
  • लक्षण:
    • ALS के कारण किसी अंग में कमज़ोरी हो सकती है जो कुछ ही दिनों में या आमतौर पर कुछ हफ्तों में बढ़ जाती है। फिर कई हफ्तों या महीनों के बाद दूसरे अंग में कमज़ोरी आनी शुरू हो जाती है। कभी-कभी प्रारंभिक समस्या के तौर पर बोलने में कठिनाई/अस्पष्ट वाणी (Slurred Speech) या खाने/निगलने (Swallowing) में परेशानी हो सकती है।
  • उपचार:
    • ALS का कोई इलाज और प्रमाणित उपचार नहीं है।

ALS से निपटने हेतु पहल:

  • सरकार की राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (National Policy for Rare Diseases- NPRD), 2021 में दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित तथा नामित उत्कृष्टता केंद्रों में उपचार प्राप्त करने वाले रोगियों हेतु 50 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता की पेशकश करने वाला एक महत्त्वपूर्ण प्रावधान पेश किया गया है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) प्रति 1000 जनसंख्या पर 1 या उससे कम की व्यापकता वाली दुर्लभ बीमारियों को दुर्बल करने वाली स्थितियों के रूप में चिह्नित करता है।
  • इस नीतिगत पहल का उद्देश्य ALS जैसी स्थितियों वाले लोगों सहित अन्य व्यक्तियों को इलाज के लिये पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान कर समर्थन प्रदान करना है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

भारतीय हिमालयी क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

हिमालयी क्षेत्र, स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण, जैवविविधता, हिमनद का पीछे हटना, भूकंप, भूस्खलन, आकस्मिक बाढ़, हिमनद झील के फटने से बाढ़

मेन्स के लिये:

भारतीय हिमालयी क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? 

अपने मनोरम वातावरण और सांस्कृतिक विरासत के लिये प्रसिद्ध हिमालय क्षेत्र के स्वच्छता संबंधी मुद्दों को त्वरित रूप से हल किये जाने की आवश्यकता है, अवैध निर्माण और पर्यटकों की बढ़ती संख्या के कारण स्थिति  दिन-पर-दिन चिंतनीय होती जा रही है।

  • सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट ने एक हालिया विश्लेषण में हिमालयी राज्यों में स्वच्छता प्रणालियों की गंभीर स्थिति पर प्रकाश डाला है।

विश्लेषण के प्रमुख बिंदु: 

  • जल आपूर्ति और अपशिष्ट जल उत्पादन: स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रत्येक पहाड़ी शहर में प्रति व्यक्ति लगभग 150 लीटर पानी की आपूर्ति की जाती है।
    • चिंता की बात यह है कि इस जल आपूर्ति का लगभग 65-70% अपशिष्ट जल में परिवर्तित हो जाता है।
  • धूसर जल प्रबंधन चुनौतियाँ: उत्तराखंड में केवल 31.7% घर सीवरेज सिस्टम से जुड़े हैं, जिस कारण अधिकांश लोग ऑन-साइट स्वच्छता सुविधाओं (एक स्वच्छता प्रणाली जिसमें अपशिष्ट जल को उसी भू-खंड पर एकत्रित, संग्रहीत और/या उपचारित किया जाता है जहाँ वह उत्पन्न होता है) पर निर्भर हैं।
    • घरों और छोटे होटल दोनों ही द्वारा बाथरूम एवं रसोई से निकलने वाले गंदे जल के प्रबंधन के लिये अक्सर सोखने वाले गड्ढों (Soak Pits) का उपयोग किया जाता है।
    • कुछ कस्बों में खुली नालियों से गंदे जल का अनियमित प्रवाह होता है, जिससे इस जल का अधिक रिसाव ज़मीन में होने लगता है
  • मृदा और भूस्खलन पर प्रभाव: हिमालयी क्षेत्र की मृदा की संरचना, जिसमें चिकनी, दोमट और रूपांतरित शिस्ट, फिलाइट एवं गनीस शैलें शामिल हैं, स्वाभाविक रूप से कोमल होती है।
    • विश्लेषण के अनुसार, जल और अपशिष्ट जल का ज़मीन में अत्यधिक रिसाव, मृदा को नरम/कोमल बना सकता है जिससे भूस्खलन की संभावना अधिक होती है।

भारतीय हिमालयी क्षेत्र से संबंधित अन्य चुनौतियाँ: 

  • परिचय
    • भारतीय हिमालयी क्षेत्र 13 भारतीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा, असम और पश्चिम बंगाल) में 2500 किमी. तक विस्तृत है।
    • इस क्षेत्र में लगभग 50 मिलियन लोग रहते हैं, विविध जनसांख्यिकीय और बहुमुखी आर्थिक, पर्यावरणीय, सामाजिक तथा राजनीतिक प्रणालियाँ इन क्षेत्रों की विशेषता है।
      • ऊँची चोटियों, विशाल दृश्यभूमि, समृद्ध जैवविविधता और सांस्कृतिक विरासत के साथ भारतीय हिमालयी क्षेत्र लंबे समय से भारतीय उपमहाद्वीप एवं विश्व भर से आगंतुकों तथा तीर्थयात्रियों के लिये आकर्षण का केंद्र रहा है।

  • चुनौतियाँ: 
    • पर्यावरणीय क्षरण और वनों की कटाई: वनों की व्यापक कटाई भारतीय हिमालयी क्षेत्र की सबसे प्रमुख समस्या रही है, यह पारिस्थितिक संतुलन पर काफी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
      • बुनियादी ढाँचे और शहरीकरण के लिये बड़े पैमाने पर होने वाले निर्माण कार्य से निवास स्थान का नुकसान, मृदा का क्षरण और प्राकृतिक जल प्रवाह में बाधा जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
    • जलवायु परिवर्तन और आपदाएँ: भारतीय हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। बढ़ते तापमान का हिमनदों पर अधिक बुरा असर पड़ा है जिससे निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों के लिये जल संसाधनों की उपलब्धता पैटर्न में बदलाव देखा जा रहा है।
      • अनियमित मौसम पैटर्न, वर्षा की तीव्रता में वृद्धि और दीर्घकालीन शुष्क मौसम पारिस्थितिक तंत्र स्थानीय समुदायों को और अधिक प्रभावित करते हैं।
      • यह क्षेत्र भूकंप, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति भी अतिसंवेदनशील है।
        • गैर-योजनाबद्ध विकास, आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचे की कमी एवं अपर्याप्त प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों के कारण इस प्रकार की घटनाओं के प्रभाव में और वृद्धि होती है।
    • सांस्कृतिक और स्वदेशी ज्ञान का पतन: भारतीय हिमालयी क्षेत्र पीढ़ियों से कायम रखे हुए अद्वितीय ज्ञान और प्रथाओं वाले विविध स्वदेशी समुदायों का घर है।
      • हालाँकि आधुनिकीकरण के कारण धारणीय संसाधन प्रबंधन हेतु मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने वाली इन सांस्कृतिक परंपराओं का क्षरण हो सकता है।

आगे की राह

  • प्रकृति-आधारित पर्यटन: पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों को कम करते हुए स्थानीय समुदायों के लिये आय उत्पन्न करने वाले धारणीय और ज़िम्मेदार पर्यटन प्रथाओं का विकास किया जाना चाहिये।
  • इसमें पर्यावरण संवेदी पर्यटन को बढ़ावा देना, वहन क्षमता सीमा लागू करना और पर्यटकों के बीच जागरूकता बढ़ाने जैसे कार्यों को शामिल किया जा सकता है।
  • हिमनद जल संग्रहण: गर्मी के महीनों के दौरान हिमनदों से पिघले जल को संगृहीत करने के लिये नवीन तरीकों का विकास किया जा सकता है।
  • इस संगृहीत जल उपयोग शुष्क मौसम के दौरान कृषि आवश्यकताओं और डाउनस्ट्रीम पारिस्थितिकी तंत्र के समर्थन हेतु किया जा सकता है।
  • आपदा शमन और इससे संबंधित तैयारियाँ: इसके लिये व्यापक आपदा प्रबंधन योजनाएँ विकसित की जा सकती हैं जो भूस्खलन, हिमस्खलन और हिमनद झील के विस्फोट के कारण आने वाली बाढ़ की वजह से संबद्ध क्षेत्र के लिये उत्पन्न गंभीर जोखिमों को कम करने में मदद कर सके। आपदा प्रबंधन के लिये राज्य सरकारें प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों, निकासी योजनाओं तथा सामुदायिक प्रशिक्षण कार्यों में निवेश कर सकती हैं।
  • कृषि संवर्द्धन के लिये धूसर जल पुनर्चक्रण: कृषि उपयोग के लिये घरेलू धूसर जल को एकत्रित और उपचारित करने के लिये भारतीय हिमालयी क्षेत्रों में एक धूसर जल पुनर्चक्रण प्रणाली लागू करने की आवश्यकता है।
  • फसल उत्पादन में वृद्धि हेतु जल और पोषक तत्त्वों का एक स्थायी स्रोत प्रदान करने के लिये इस उपचारित जल का उपयोग स्थानीय खेतों में सिंचाई हेतु किया सकता है।
  • जैव-सांस्कृतिक संरक्षण क्षेत्र: ऐसे विशिष्ट क्षेत्रों, जहाँ प्राकृतिक जैवविविधता और स्वदेशी सांस्कृतिक प्रथाएँ दोनों संरक्षित हैं, को जैव-सांस्कृतिक संरक्षण क्षेत्र के रूप में नामित किया जाना चाहिये। इससे स्थानीय समुदायों तथा पर्यावरण के बीच संबंध बनाए रखने में मदद मिल सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जब आप हिमायल की यात्रा करेंगे, तब आप निम्नलिखित को देखेंगे: (2012)

  1. गहरी घाटियाँ
  2. U घुमाव वाले नदी मार्ग
  3. समानांतर पर्वत शृंखलाएँ
  4. भूस्खलन के लये उत्तरदायी तीव्र ढाल प्रवणता

उपर्युक्त में से कौन-से हिमालय तरुण वलित पर्वत होने के साक्ष्य कहे जा सकते हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइये। (2013)

प्रश्न. भूस्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिये। राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये। (2021)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

मिनामाता अभिसमय की छठी वर्षगाँठ

प्रिलिम्स के लिये:

मिनामाता रोग, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, विश्व स्वास्थ्य संगठन, ग्लोबल एन्वायरनमेंट फैसिलिटी, प्लैनेटगोल्ड कार्यक्रम, मिथाइलमरकरी

मेन्स के लिये:

पारा प्रदूषण के स्रोत, मिनामाता अभिसमय 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में पारे पर मिनामाता अभिसमय की छठी वर्षगाँठ मनाई गई, यह पारे के ज़हरीले प्रभावों से निपटने में वैश्विक प्रयासों का प्रतीक है।

  • इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) छोटे पैमाने पर सोने के खनन में पारे के उपयोग को खत्म करने के लिये चल रहे अभियान पर विचार करता है।
  • यह प्रथा अपने आर्थिक महत्त्व के बावजूद पारे के खतरनाक गुणों के कारण खनिकों और पर्यावरण दोनों के लिये गंभीर खतरा पैदा करती है।

मिनामाता अभिसमय:

  • पारा पर मिनामाता अभिसमय मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को पारे तथा इसके यौगिकों के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिये एक वैश्विक संधि है।
    • इसे वर्ष 2013 में जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में अंतर-सरकारी वार्ता समिति के पाँचवें सत्र में सहमति प्रदान की गई थी।
  • पारे के मानवजनित उत्सर्जन को नियंत्रित करना इस अभिसमय के प्रमुख दायित्वों में से एक है।

पारा प्रदूषण:

  • पारा: 
    • पारा पृथ्वी की भू-पर्पटी में प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एक तत्त्व है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले शीर्ष दस रसायनों समूहों में से एक माना है।

पारा के प्रमुख अनुप्रयोग: 

  • थर्मामीटर और बैरोमीटर:
    • पारे के तापीय विस्तार का उच्च गुणांक और देखने में सरलता इसे पारंपरिक थर्मामीटर तथा बैरोमीटर में उपयोग के लिये उपयुक्त बनाती है।
  • रासायनिक और खनन प्रक्रियाएँ:
    • पारे का उपयोग क्लोरीन के उत्पादन और सोने के खनन सहित विभिन्न रासायनिक व खनन प्रक्रियाओं में किया जाता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रिकल स्विच:
    • इसका उपयोग विभिन्न विद्युत अनुप्रयोगों में किया जाता है क्योंकि चालकता तथा कम प्रतिरोध के कारण पारा अच्छा विद्युत कनेक्शन प्रदान करने के लिये उपयुक्त है।

पारा प्रदूषण के स्रोत:

  • प्राकृतिक स्रोत:
    • ज्वालामुखी विस्फोटों से कम मात्रा में पारा निकलता है।
    • चट्टानों और मृदा अपरदन का कारण पारा जल निकायों में जा सकता है।
  • मानवजनित स्रोत:
    • कुटीर और लघु पैमाने पर सोने का खनन (ASGM): ASGM पारा प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है, जहाँ पारा का उपयोग अयस्क से सोना निकालने के लिये किया जाता है।
      • पारा का उपयोग अयस्कों से सोने के कणों को निकालने के लिये किया जाता है, जिससे कि मिश्रण (Amalgams) बनता है और इसे बाद में गर्म करके पारा को वाष्पित कर दिया जाता है, जिससे सोना बच जाता है।
      • सोने के खनन कार्य में लगे कारीगर वैश्विक पारा प्रदूषण के 37% के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • औद्योगिक प्रक्रियाएँ: विभिन्न उद्योग जैसे- क्लोरीन उत्पादन, सीमेंट निर्माण और अपशिष्ट भस्मीकरण, पारा उत्सर्जित करते हैं।
      • सीमेंट उद्योग वैश्विक मानवजनित पारा उत्सर्जन के लगभग 11% के लिये ज़िम्मेदार है।
    • अपशिष्ट निपटान: पारा युक्त ई-अपशिष्ट उत्पादों, जैसे कि फ्लोरोसेंट बल्ब और बैटरी आदि के अनुचित निपटान से पारा पर्यावरण में घुल जाता है।
  • संबद्ध प्रभाव: 
    • मिथाइलमरकरी मछली जैसे जलीय जीवों में जमा हो जाता है। लोग मुख्य रूप से मछली (Fish) और शेलफिश (Shellfish) के सेवन से मिथाइलमरकरी के संपर्क में आते हैं।
      • इस यौगिक से मिनामाता रोग (Minamata Disease) होने का खतरा अधिक होता हैयह मूल रूप से संवेदी प्रणाली को प्रभावित करता है तथा इससे श्रवण और दृश्य हानि हो सकती है। 
    • यह बीमारी सबसे पहले जापान के मिनामाता बे (Minamata Bay) के निवासियों में देखी गई थी, जो औद्योगिक अपशिष्ट प्रदूषण के कारण पारा-दूषित मछली का सेवन करते थे।

नोट: मिथाइलमरकरी और एथिलमरकरी काफी भिन्न हैं, जबकि मिथाइलमरकरी स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी है, एथिलमरकरी का उपयोग कुछ टीकों में परिरक्षक के रूप में किया जाता है तथा यह स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं से नहीं जुड़ी है।

आगे की राह

  • पारा हटाने वाले फिल्टर: औद्योगिक उत्सर्जन, अपशिष्ट जल उपचार और उपभोक्ता उत्पादों के लिये अभिनव पारा हटाने वाले फिल्टर डिज़ाइन करना और उनकी तैनाती करना।
    • ये फिल्टर हवा और जल धाराओं से पारा कणों को चुनिंदा रूप से पकड़ सकते हैं और सोख सकते हैं।
  • फाइटोरेमीडिएशन: फाइटोरेमीडिएशन, पौधों को मिट्टी, पानी या तलछट से पारा को अवशोषित करने और एकत्रित करने  मदद करती है। फिर इन पौधों की कटाई की जा सकती है और उनका सुरक्षित निपटान किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण से पारे को प्रभावी ढंग से हटाया जा सकता है।
  • प्लैनेटगोल्ड कार्यक्रम का कार्यान्वयन: यूएनईपी के नेतृत्व में प्लैनेटगोल्ड कार्यक्रम के वैश्विक कार्यान्वयन की आवश्यकता है, जो सोने के लघु खनन कार्य में से पारा की उपयोगिता को खत्म करने और अधिक सुरक्षित कामकाज़ी परिस्तिथियाँ उत्पन्न करने में सहायाक होगा। यह पारा पर मिनामाता अभिसमय के तहत संचालित होता है।
    • वैश्विक पर्यावरण सुविधा द्वारा वित्तपोषित कार्यक्रम पारे की पहुँच से खनिकों को दूर रखने में मदद के लिये वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
    • बुर्किना फासो में प्लैनेटगोल्ड का पारा-मुक्त प्रसंस्करण संयंत्र पारा संक्रमण को रोकने हेतु एक मॉडल के रूप में कार्य करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. इस्तेमाल किये गए फ्लोरोसेंट इलेक्ट्रिक लैंप के विवेकहीन निपटान से पर्यावरण में पारा प्रदूषण होता है। इन लैंपों के निर्माण में पारे का उपयोग क्यों किया जाता है? (2010)

(a) लैंप के अंदर की गई पारे की कोटिंग प्रकाश को चमकदार सफेद बनाती है।
(b) जब लैंप को चालू किया जाता है, तो लैंप में पारा अल्ट्रा-वायलेट विकिरणों के उत्सर्जन का कारण बनता है।
(c) जब लैंप चालू होता है, तो यह पारा पराबैंगनी ऊर्जा को दृश्य प्रकाश में परिवर्तित करता है।
(d) फ्लोरोसेंट लैंप के निर्माण में पारा के उपयोग के बारे में ऊपर दिया गया कोई भी कथन सही नहीं है।

उत्तर: (b)

स्रोत: यू. एन. इ. पी.


सामाजिक न्याय

तपेदिक की रोकथाम में पोषण की भूमिका

प्रिलिम्स के लिये:

तपेदिक, ICMR, निक्षय पोषण योजना

मेन्स के लिये:

तपेदिक उन्मूलन की चुनौतियाँ, तपेदिक उन्मूलन में भारत की प्रगति

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा किये गए और द लांसेट और द लांसेट ग्लोबल हेल्थ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित दो अध्ययनों में पोषण तथा तपेदिक की रोकथाम के बीच एक महत्त्वपूर्ण संबंध का खुलासा किया गया है।

  • पोषण संबंधी स्थिति में सुधार द्वारा तपेदिक की सक्रियता को कम करना (Reducing Activation of Tuberculosis by Improvement of Nutritional Status- RATIONS), परीक्षण पोषण संबंधी सहायता तथा तपेदिक की घटनाओं में कमी के बीच संबंध को दर्शाता है।
  • तपेदिक मृत्यु दर पर वज़न बढ़ने के प्रभाव संबंधी अध्ययन से यह समझने में मदद करता है कि कुपोषित तपेदिक रोगियों में बढ़ा हुआ वज़न मृत्यु दर में कमी के साथ किस प्रकार संबंधित है।

नोट: 

  • WHO के अनुसार, वैश्विक तपेदिक मामलों में भारत का योगदान 27% है और यह तपेदिक से संबंधित कुल मौतों का 35% है।
  • भारत का लक्ष्य वर्ष 2025 तक तपेदिक को पूरी तरह से खत्म करना है।

अध्ययन के प्रमुख बिंदु:

  • इस अध्ययन के अनुसार कुल 5,621 लोगों को एक वर्ष के लिये पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन दिया गया, जबकि 4,724 लोगों को बिना किसी अतिरिक्त पोषण वाले खाद्य पदार्थ दिये गए।
    • परीक्षण में पाया गया कि जिस समूह को पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन दिया गया, उनमें टीबी की घटनाओं में 39% की कमी आई।
  • वज़न बढ़ने से झारखंड में गंभीर रूप से कुपोषित टीबी रोगियों में तपेदिक मृत्यु दर के जोखिम में कमी आई है।
    • 1% वज़न बढ़ने पर मृत्यु का तात्कालिक जोखिम 13% कम हो गया तथा 5% वज़न बढ़ने पर 61% कम हो गया।
  • इस अध्ययन में झारखंड में गंभीर रूप से कुपोषित 2,800 टीबी रोगियों को शामिल किया गया, जिनमें से 5 में से 4 रोगियों में अल्पपोषण की व्यापकता थी।
    • टीबी की दवाओं का असर वाले व्यक्तियों को छह महीने के लिये पोषण संबंधी सहायता प्रदान की गई, जबकि बहुऔषध-प्रतिरोधक तपेदिक (Multidrug-resistant TB or MDR-TB) से ग्रसित लोगों के लिये यह अवधि 12 महीने थी।
  • पहले दो महीनों में जल्दी वज़न बढ़ने से टीबी से होने वाली मृत्यु का जोखिम 60% कम हो जाता है।
    • मरीज़ों में फॉलो-अप के दौरान उच्च उपचार सफलता, वज़न बढ़ना तथा वज़न घटने की कम दर देखी गई।

तपेदिक (Tuberculosis):

  • परिचय:
    • तपेदिक एक संक्रमण है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह व्यावहारिक रूप से शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है। सबसे आम हैं- फेफड़े, फुस्फुस (फेफड़ों के चारों ओर की परत), लिम्फ नोड्स, आँत, रीढ़ और मस्तिष्क।
  • रोग का संचार:
    • यह संक्रमण हवा से फैलता है जो संक्रमित के निकट संपर्क से फैलता है, खासकर खराब वेंटिलेशन वाले घनी आबादी वाले स्थानों में।
  • लक्षण:
    • सक्रिय फेफड़े के टीबी के सामान्य लक्षण हैं बलगम वाली खाँसी और कभी-कभी खून आना, सीने में दर्द, कमज़ोरी, वज़न कम होना, बुखार और रात में पसीना आना।
  • उपचार:
    • टीबी एक उपचार योग्य बीमारी है।
    • टीबी रोधी दवाओं का उपयोग दशकों से किया जा रहा है तथा सर्वेक्षण किये गए प्रत्येक देश में एक या अधिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी उपभेदों का दस्तावेज़ीकरण किया गया है।
      • ‘बहुऔषध-प्रतिरोधक तपेदिक’ (Multidrug-resistant TB or MDR-TB): जब किसी मरीज़ पर तपेदिक के इलाज के लिये उपयोग की जाने वाली दो सबसे शक्तिशाली एंटीबायोटिक्स काम नहीं करती हैं तो तपेदिक के ऐसे मामलों को MDR-TB के रूप में जाना जाता है। 
        • MDR-टीबी का उपचार बेडाक्विलिन जैसी दूसरी पंक्ति की दवाओं के उपयोग से संभव है।
      • ‘व्यापक रूप से ड्रग प्रतिरोधी तपेदिक’ (Extensively Drug-Resistant TB or XDR-TB) MDR-टीबी का एक अधिक गंभीर रूप है जो बैक्टीरिया के कारण होता है यह सबसे प्रभावी दूसरी पंक्ति की एंटी-टीबी दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं देता है, जिससे अक्सर रोगियों को बिना किसी अन्य उपचार के विकल्प के छोड़ दिया जाता है।

टीबी से निपटने के लिये भारत की पहल:

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR):

  • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) जैव चिकित्सा अनुसंधान के निर्माण, समन्वय एवं संवर्द्धन के लिये भारत का शीर्ष निकाय है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1911 में इंडियन रिसर्च फंड एसोसिएशन (Indian Research Fund Association- IRFA) के नाम से हुई थी और वर्ष 1949 में इसका नाम बदलकर ICMR कर दिया गया।
  • यह भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से वित्तपोषित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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