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सामाजिक न्याय

निक्षय पोषण योजना

  • 25 Aug 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

टीबी रोग, टीबी से लड़ने के प्रयास।

मेन्स के लिये:

निक्षय पोषण योजना, स्वास्थ्य, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों?

केवल दो-तिहाई तपेदिक से पीड़ित लोग केंद्र सरकार की एकमात्र पोषण सहायता योजना, निक्षय पोषण योजना (NPY), 2021 से लाभान्वित हुए, जो प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का प्रमुख विषय है।

ट्यूबरक्लोसिस (टीबी)

  • परिचय:
    • टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है, जो लगभग 200 सदस्यों वाले माइकोबैक्टीरियासी परिवार से संबंधित है।
      • कुछ माइकोबैक्टीरिया से मनुष्यों में टीबी और कुष्ठ जैसी बीमारियाँ होती हैं और कुछ   जानवरो  को संक्रमित करते हैं।
    • टीबी, मनुष्यों में सबसे अधिक फेफड़ों (पल्मोनरी टीबी) को प्रभावित करता है, लेकिन यह अन्य अंगों (एक्स्ट्रा-पल्मोनरी टीबी) को भी प्रभावित कर सकता है।
    • टीबी एक बहुत ही प्राचीन बीमारी है और इसके प्रमाण 3000 ईसा पूर्व मिस्र में पाए गए हैं।
  • संचरण:
    • टीबी हवा संक्रमण वायु के माध्यम से होता है। जब फेफड़े की टीबी से पीड़ित लोग खाँसते, छींकते या थूकते हैं, तो वे टीबी के कीटाणु वायु में फैल जाते हैं।
  • लक्षण:
    • फेफड़े की सक्रिय टीबी के सामान्य लक्षण बलगम और खून के साथ खाँसी, सीने में दर्द, कमज़ोरी, वज़न कम होना, बुखार और रात को पसीना आना हैं।
  • उपचार:
    • टीबी एक इलाज योग्य बीमारी है। इसका इलाज रोगी को सूचना, पर्यवेक्षण और सहायता प्रदान करने के साथ ही 4 रोगाणुरोधी दवाओं को मानक 6 महीने की समयावधि तक सेवन करा के किया जाता है।
    • मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस का उपयोग दशकों से किया जा रहा है और सर्वेक्षण किये गए प्रत्येक देश में 1 या अधिक दवाओं के रेसिस्टेंट उपभेदों को दर्ज किया गया है।
      • मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (MDR-TB) टीबी का एक प्रकार है जो ऐसे बैक्टीरिया के कारण होता है जो 2 सबसे शक्तिशाली पहली-पंक्ति की एंटी-टीबी दवाओं- आइसोनियाज़िड और रिफाम्पिसिन को निष्क्रिय कर देता है। इसका इलाज दूसरी-पंक्ति के दवाओं का उपयोग कर के किया जाता है।
      • व्यापक रूप से दवा प्रतिरोधी टीबी (XDR-TB) MDR-TB का एक अधिक गंभीर रूप है जो उस बैक्टीरिया के कारण होता है जो सबसे प्रभावी दूसरी-पंक्ति एंटी-टीबी दवाओं को भी निष्क्रिय कर देता है तब रोगियों के उपचार का कोई विकल्प नहीं बचता।

निक्षय पोषण योजना:

  • परिचय :
    • टीबी रोगियों को पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने के लिये अप्रैल 2018 में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के रूप में निक्षय पोषण योजना शुरुआत की गई है।
    • इस योजना के तहत टीबी रोगियों को उपचार की पूरी अवधि के लिये प्रतिमाह 500 रुपए मिलते हैं।
    • इसका उद्देश्य पोषण संबंधी ज़रूरतों के लिये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के माध्यम से प्रति माह 500 रुपए की राशि प्रदान कर तपेदिक (TB) रोगी की सहायता करना है।
      • इसकी स्थापना के बाद से73 मिलियन अधिसूचित लाभार्थियों को लगभग 1,488 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है।
  • प्रदर्शन:
    • भारत टीबी रिपोर्ट, 2022 के अनुसार वर्ष 2021 देश भर में1 मिलियन अधिसूचित मामलों में से केवल 62.1% को में कम से कम एक किश्त का ही भुगतान किया गया है।
    • दिल्ली में जहाँ प्रति 100,000 लोगों पर टीबी के सर्वाधिक 747 मामले हैं, वहाँ केवल2% मरीजों को DBT की एक ही किश्त प्राप्त हुई है।
      • अन्य खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य पंजाब, झारखंड, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश हैं। पूर्वोत्तर में मणिपुर और मेघालय का प्रदर्शन सबसे खराब रहा।
  • चुनौतियाँ:
    • स्वास्थ्य प्रदाताओं और मरीजों दोनों के लिये DBT में कई बाधाएँ विद्यमान हैं जैसे बैंक खातों की अनुपलब्धता और इन खातों का अन्य दस्तावेजों जैसे आधार, पैन-कार्ड आदि से संबद्ध न होना है।
    • संचार का कमी, सामाजिक-कलंक, निरक्षरता और बहु-चरणीय अनुमोदन प्रक्रिया प्रमुख बाधाओं के रूप में विद्यमान हैं।
    • राज्यों की अपनी पोषण संबंधी सहायता योजनाएँ हैं, लेकिन कुछ योजनाएँ केवल टीबी की दवाओं के प्रति प्रतिरोध दिखाने वाले रोगियों के लिये ही हैं।

भारत में टीबी की स्थिति:

  • भारत टीबी रिपोर्ट, 2022 के अनुसार वर्ष 2021 की अवधि में टीबी रोगियों की कुल संख्या 19 लाख से अधिक थी जो वर्ष 2020 में यह संख्या लगभग 16 लाख थी अर्थात् इन मामलों में 19% की वृद्धि देखी गई है।
  • भारत में, वर्ष 2019 से 2020 के बीच सभी प्रकार की टीबी के मामलों के कारण मृत्युदर में 11% की वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2020 के लिये अनुमानित टीबी से संबंधित मौतों की कुल संख्या93 लाख थी, जो वर्ष 2019 के अनुमान से 13% अधिक है।
  • कुपोषण, एड्स, मधुमेह, शराब और तंबाकू का धूम्रपान ऐसे कारक हैं जो टीबी से पीड़ित व्यक्ति को प्रभावित करती हैं।

टीबी से निपटने हेतु पहल

आगे की राह

  • भारत ने वर्ष 2025 तक टीबी को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस लक्ष्य तक पहुँचने के लिये देश को चिकित्सा पहलुओं के अलावा अन्य पहलुओं परभी विचार करना होगा।
  • सरकार को इस बात का जायज़ा लेने की जरूरत है कि बाधाएँ कहाँ पर हैं। एक विफल प्रणाली में अधिक धन लगाने का कोई अर्थ नहीं है।
  • यदि टीबी से लड़ने वाले लोग खाली पेट रह रहे हैं तो नैदानिक उपचार में कोई भी निवेश अप्रासंगिक है। यह सबसे गरीब आबादी को प्रभावित करता है तथा लगभग हर परिवार चिकित्सा लागत और मज़दूरी न मिल पाने के कारण वित्तीय संकट में है।
  • टीबी को रोकने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, रोगी के निकट संपर्क में रहने वालों के लिये भोजन सहायता को शामिल करने हेतु योजनाएँ होनी चाहिये क्योंकि वे भी बीमारी के उच्च जोखिम में हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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