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डेली न्यूज़

  • 21 Jul, 2023
  • 45 min read
शासन व्यवस्था

भारतीय नर्सिंग कॉलेजों का अवलोकन

प्रिलिम्स के लिये:

नर्सों का जनसंख्या अनुपात, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल, लैंगिक सूचकांक, विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे में भारतीय राज्यों के बीच असमानताएँ

मेन्स के लिये:

भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में संभावनाएँ, भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से जुड़े मुद्दे, स्वास्थ्य सेवा से संबंधित हालिया सरकारी पहल

चर्चा में क्यों? 

स्वास्थ्य मंत्रालय के आँकड़ों से पता चलता है कि भारत के 40 प्रतिशत ज़िलों में नर्सिंग कॉलेजों का अभाव है। इसके अलावा देश के 42% नर्सिंग संस्थान दक्षिण के पाँच राज्यों में हैं, जबकि पश्चिम के तीन राज्यों में 17% हैं।

नर्सिंग सेवाओं की वर्तमान स्थिति: 

  • भारत में वर्तमान में लगभग 35 लाख नर्सें हैं, लेकिन इसका नर्स और जनसंख्या अनुपात 3:1000 के वैश्विक बेंचमार्क के मुकाबले केवल 2.06:1000 है।
  • स्नातक नर्सिंग शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों की संख्या में वर्ष 2014-15 के बाद से 36% की वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप नर्सिंग सीटों में 40% की वृद्धि दर्ज की गई है।
    • वर्तमान में लगभग 64% नर्सिंग कार्यबल केवल आठ राज्यों में प्रशिक्षित है।
  • 42% नर्सिंग संस्थान पाँच दक्षिणी राज्यों अर्थात् आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में केंद्रित हैं।
    • जबकि 17% पश्चिमी राज्यों- राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में हैं।
    • केवल 2% नर्सिंग कॉलेज पूर्वोत्तर राज्यों में हैं। 
  • नर्सिंग कॉलेजों की वृद्धि दर मेडिकल कॉलेजों की 81% की वृद्धि दर से काफी कम है, वर्ष 2014-15 के बाद से स्नातक और स्नातकोत्तर मेडिकल सीटों की संख्या बढ़कर क्रमशः 110% तथा 114% हो गई है।

वैश्विक आँकड़े

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर पुरुष और महिला नर्सिंग एवं मिडवाइफरी कार्यबल की संख्या लगभग 27 मिलियन है, जो कि वैश्विक स्वास्थ्य कार्यबल का लगभग 50% है।
  • वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है, विशेष रूप से नर्सों और दाइयों की, जो स्वास्थ्य कर्मियों की मौजूदा कमी का 50% से अधिक है।
  • नर्सों और दाइयों की सबसे अधिक कमी दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में है।

कॉलेजों की कमी का कारण:

  • न्यूनतम स्वास्थ्य बजट: स्वास्थ्य क्षेत्र पर भारत का व्यय वर्ष 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद के 1.2% से बढ़कर वर्ष 2017-18 में 1.35% हो गया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति- 2017 में इसे सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% रखने का लक्ष्य रखा गया था।
  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा: निजी/सार्वजनिक क्षेत्र में मानव संसाधन, अस्पतालों और निदान केंद्रो में सेवाओं की आपूर्ति की अत्यधिक कमी, जो राज्यों के बीच तथा राज्य के भीतर असमान उपलब्धता के कारण और भी दयनीय हो गई है। उदाहरण के लिये तमिलनाडु जैसे एक अच्छी स्थिति वाले राज्य में भी सरकारी सुविधाओं में चिकित्सा एवं गैर-चिकित्सा पेशेवरों की 30% से अधिक की कमी है।
  • कार्यभार और स्टाफिंग के मुद्दे: भारत में नर्सों को कार्य के अत्यधिक बोझ, लंबी कार्य अवधि के साथ कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ता है। इस कारण न केवल मरीज़ों की देखभाल पर असर पड़ता है बल्कि नर्सों को थकान और उनमें कार्य को लेकर असंतोष की स्थिति भी उत्पन्न होती है।
  • कम प्रतिपूर्ति और नौकरी की असुरक्षा: उनके कार्य की मांग के बावजूद नर्सों को आमतौर पर अन्य स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की तुलना में कम वेतन दिया जाना।
  • लैंगिक मानदंड और सामाजिक कलंक: भारत में नर्सिंग को पारंपरिक रूप से महिला-प्रधान पेशे के रूप में देखा जाता है, जिसने कुछ लैंगिक मानदंडों और सामाजिक कलंक को बरकरार रखा है।
  • ग्रामीण-शहरी विषमताएँ: ग्रामीण क्षेत्रों में नर्सिंग का बुनियादी ढाँचा शहरी केंद्रों की तुलना में पिछड़ा हुआ है। ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं को अक्सर कुशल नर्सिंग स्टाफ को आकर्षित करने तथा उसे बनाए रखने में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

भारत में नर्सिंग कॉलेजों की संख्या बढ़ाने के उपाय:

  • स्वास्थ्य देखभाल में निवेश: राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 में इसे सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% रखने का लक्ष्य रखा गया था।
  • नर्सिंग शिक्षा और प्रशिक्षण: पाठ्यक्रम को नवीनीकृत करके आधुनिक शिक्षण विधियों को अपनाकर और पर्याप्त प्रशिक्षण सुविधाएँ प्रदान करके नर्सिंग शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि की जा सकती है। 
  • छात्रवृत्ति कार्यक्रम और प्रोत्साहन: इस पेशे में अधिक व्यक्तियों को आकर्षित करने हेतु नर्सों के लिये छात्रवृत्ति कार्यक्रम और वित्तीय प्रोत्साहन शुरू करना।
  • जन जागरूकता अभियान: नर्सिंग पेशे और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में इसके महत्त्व को बढ़ावा देने के लिये जन जागरूकता अभियान शुरू करना।
  • भर्ती और प्रतिधारण: स्वास्थ्य देखभाल कार्यबल में नर्सिंग पेशेवरों की भर्ती और उन्हें बनाए रखने के लिये रणनीतियों को लागू करना। नर्सों को पेशे में बने रहने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु  प्रतिस्पर्द्धी वेतन, लाभ, कॅरियर विकास के अवसर तथा एक उचित कार्य वातावरण प्रदान करना।
  • टेलीमेडिसिन और प्रौद्योगिकी: स्वास्थ्य देखभाल पहुँच और वितरण में सुधार के लिये टेलीमेडिसिन एवं डिजिटल स्वास्थ्य समाधान अपनाना।
  • नर्सिंग संगठनों के साथ सहयोग: नर्सिंग बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये प्रभावी नीतियों और योजनाओं का निर्माण एवं  उन्हें लागू करने के लिये सरकारी निकायों, स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों तथा नर्सिंग संगठनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।

सरकार के प्रयास: 

  • बजट 2023-24 के अनुसार वर्ष 2014 के बाद से स्थापित वर्तमान के 157 मेडिकल कॉलेजों के साथ ही 157 नए नर्सिंग कॉलेज स्थापित किये जाएंगे।
  • केंद्र ने राज्यों को नर्सिंग कॉलेज खोलने की एक नई योजना के साथ क्षेत्रीय असमानता को दूर करने का निर्देश दिया।

आगे की राह

  • आवश्यक उपायों को लागू करके भारत अपने नर्सिंग संबंधी बुनियादी ढाँचे और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को मज़बूत कर सकता है तथा देश की आबादी की स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। इससे स्वास्थ्य देखभाल परिणामों में सुधार एवं नर्सिंग कार्यबल अधिक मज़बूत होगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स: 

प्रश्न. “एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता होने के अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है। विश्लेषण कीजिये। (2021) 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भूमि सम्मान 2023

प्रिलिम्स के लिये:

डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम, आधार कार्ड, विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या, ब्लॉकचेन-आधारित प्रणाली, भौगोलिक सूचना प्रणाली 

मेन्स के लिये:

भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण से जुड़ी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में भारत की राष्ट्रपति ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित एक समारोह में "भूमि सम्मान" 2023 प्रदान किया।

भूमि सम्मान:

  • ‘भूमि सम्मान’ डिजिटल इंडिया भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (Digital India Land Records Modernization Programme- DILRMP) के कार्यान्वयन में राज्यों और ज़िलों की उपलब्धियों को पहचानने तथा प्रोत्साहित करने के लिये केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई एक प्रतिष्ठित पुरस्कार योजना है।
  • यह पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति द्वारा उन राज्य सचिवों और ज़िला कलेक्टरों को उनकी टीमों के साथ प्रदान किया जाता है जिन्होंने DILRMP के मुख्य घटकों की परिपूर्णता में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है, जैसे:
    • भूमि अभिलेखों का कंप्यूटरीकरण 
    • भूसंपत्ति मानचित्रों का डिजिटलीकरण
    • पाठ्यचर्या और स्थानिक डेटा का एकीकरण
    • आधुनिक तकनीक का उपयोग कर सर्वेक्षण/पुनः सर्वेक्षण
    • पंजीकरण का कंप्यूटरीकरण
    • पंजीकरण और भूमि अभिलेखों के बीच अंतर-संचालनीयता

नोट: ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत डिजिटल इंडिया भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (तत्कालीन राष्ट्रीय भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम) को 1 अप्रैल, 2016 से केंद्र द्वारा 100% वित्तपोषण के साथ केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में संशोधित और परिवर्तित किया गया था।

भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण से लाभ: 

  • पारदर्शिता और जवाबदेही: भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण से लेन-देन में पारदर्शिता बढ़ती है, जिससे भूमि से संबंधित अनैतिक और अवैध गतिविधियों की गुंजाइश कम हो जाती है।
  • आपदा प्रबंधन: डिजिटल रिकॉर्ड बाढ़ और आग जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अधिक अनुकूल हैं जिससे भूमि संबंधी आवश्यक दस्तावेज़ों को नुकसान से बचाया जा सकता है।
  • भूमि पार्सल पहचान संख्या: आधार कार्ड के समान, डिजिटल इंडिया भूमि सूचना प्रबंधन प्रणाली के तहत प्रदान की गई विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या कुशल भूमि उपयोग की अनुमति देती है तथा नई कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण एवं कार्यान्वयन को सक्षम बनाती है।
  • भूमि विवादों का समाधान: स्वतंत्र एवं सुविधाजनक तरीके से भूमि संबंधी जानकारी तक पहुँच स्वामित्व और भूमि-उपयोग विवादों को हल करने में सहायता करती है जिससे प्रशासन और न्यायपालिका पर बोझ कम होता है।

भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण से संबंधित चुनौतियाँ:  

  • खंडित भूमि रिकॉर्ड: भारत में भूमि रिकॉर्ड विभिन्न स्तरों पर अनेक प्राधिकरणों द्वारा तैयार किये जाते हैं जिसमें गाँव, ज़िला और राज्य शामिल हैं।
    • इन अभिलेखों के बीच एकरूपता एवं एकीकरण की कमी उन्हें केंद्रीकृत और डिजिटलीकृत करने में कठिनाइयाँ उत्पन्न कर सकती है।
  • तकनीकी अवसंरचना एवं कनेक्टिविटी: डिजिटलीकरण के लिये हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और इंटरनेट कनेक्टिविटी सहित पर्याप्त तकनीकी अवसंरचना की आवश्यकता होती है।
    • ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ अधिकांश भूमि स्थित है, वहाँ बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता सीमित हो सकती है, जिससे डिजिटलीकरण प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  • डेटा सुरक्षा एवं गोपनीयता: भूमि अभिलेखों में संवेदनशील व्यक्तिगत और संपत्ति-संबंधी जानकारी होती है।
    • डिजिटलीकरण में डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करना, अनधिकृत पहुँच तथा दुरुपयोग को रोकना भी महत्त्वपूर्ण है।

आगे की राह 

  • ब्लॉकचेन-आधारित भूमि अभिलेख: भूमि अभिलेखों को संग्रहण और प्रबंधन के लिये ब्लॉकचेन-आधारित प्रणाली लागू करना।
    • ब्लॉकचेन की विकेंद्रीकृत तथा अपरिवर्तनीय प्रकृति पारदर्शिता सुनिश्चित करती है, धोखाधड़ी की संभावना को कम करने के साथ भूमि के हस्तांतरण में विश्वास को बढ़ावा देती है।
  • ड्रोन सर्वेक्षण एवं GIS मैपिंग: भूमि पार्सल का सटीक सर्वेक्षण करने के लिये उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले कैमरों और लिडार तकनीक से लैस ड्रोन का उपयोग करना।
  • मानकीकरण और अंतर-संचालनीयता: विभिन्न विभागों और प्रणालियों में भूमि रिकॉर्ड की अनुकूलता और निर्बाध एकीकरण सुनिश्चित करने के लिये समान डेटा मानक एवं प्रारूप स्थापित करना। 
    • इससे डेटा साझाकरण और पुनर्प्राप्ति अधिक प्रभावी होगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. स्वतंत्र भारत में भूमि सुधारों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2019)

(a) हदबंदी कानून पारिवारिक जोत पर केंद्रित थे, न कि व्यक्तिगत जोत पर।
(b) भूमि सुधारों का प्रमुख उद्देश्य सभी भूमिहीनों को कृषि भूमि प्रदान करना था।
(c) इसके परिणामस्वरूप नकदी फसलों की खेती, कृषि का प्रमुख रूप बन गई।
(d) भूमि सुधारों ने हदबंदी सीमाओं को किसी भी प्रकार की छूट की अनुमति नहीं दी। 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. कृषि विकास में भूमि सुधारों की भूमिका की विवेचना कीजिये। भारत में भूमि सुधारों की सफलता के लिये उत्तरदायी कारकों को चिह्नित कीजिये। (2016) 

स्रोत: पी.आई.बी.


सामाजिक न्याय

लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण अंतराल

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र, महिला सशक्तीकरण सूचकांक (WEI), वैश्विक लैंगिक समानता सूचकांक (GGPI) 

मेन्स के लिये:

महिला सशक्तीकरण तथा लैंगिक समानता प्राप्त करने में चुनौतियाँ और अंतराल, महिलाओं से संबंधित मुद्दे  

चर्चा में क्यों?  

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में विश्व भर में महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है।

  • यू.एन. वीमेन और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा संयुक्त रूप से किये गए व्यापक विश्लेषण में महिला सशक्तीकरण सूचकांक (Women’s Empowerment Index- WEI) और वैश्विक लैंगिक समानता सूचकांक (Global Gender Parity Index- GGPI) के आधार पर 114 देशों का मूल्यांकन किया गया है।
  • मौजूदा निष्कर्ष कमियों को दूर करने और अधिक न्यायसंगत एवं समावेशी विश्व की दिशा में प्रगति को बढ़ावा देने हेतु व्यापक नीति की तत्काल आवश्यकता पर बल देते हैं।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

  • विश्व स्तर पर केवल 1% महिलाएँ उच्च महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता वाले देशों में रहती हैं।
  • नेतृत्व भूमिका और निर्णय-प्रक्रिया मुख्य रूप से पुरुष-प्रधान बनी हुई है जिससे महिलाओं के लिये अवसर सीमित हो गए हैं।
  • WEI के अनुसार, महिलाएँ औसतन अपनी पूरी क्षमता का केवल 60% ही प्राप्त कर पाती हैं।
  • GGPI के अनुसार, मानव विकास के प्रमुख आयामों में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 28% पीछे हैं।
  • विश्लेषण किये गए 114 देशों में से किसी ने भी पूर्ण महिला सशक्तीकरण या लैंगिक समानता प्राप्त नहीं की।
  • विश्व स्तर पर 90% से अधिक महिलाएँ उन देशों में रहती हैं जो लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण प्राप्त करने में खराब या औसत दर्जे का प्रदर्शन करती हैं।
  • अत्यधिक विकसित देशों में भी लैंगिक समानता की चुनौतियाँ बरकरार हैं। विश्लेषण किये गए 114 देशों में से 85 से अधिक, जिनमें आधे से अधिक उच्च या उच्चतर मानव विकास श्रेणियों में शामिल हैं, कम या मध्यम महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता दर्शाते हैं। अर्थात् केवल आर्थिक प्रगति ही लैंगिक समानता सुनिश्चित नहीं करती।
    • मध्यम मानव विकास के बावजूद भारत में महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता कम है, जो लैंगिक अंतर को समाप्त करने तथा महिलाओं की स्थिति को ऊपर उठाने के लिये ठोस प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • केवल लैंगिक समानता ही महिला सशक्तीकरण की गारंटी नहीं देती। रिपोर्ट से पता चलता है कि लैंगिक अंतर वाले किसी भी देश ने उच्च महिला सशक्तीकरण की स्थिति प्राप्त नहीं की है।
    • इसके अतिरिक्त लगभग 8% महिलाएँ कम सशक्तीकरण लेकिन उच्च लैंगिक समानता वाले देशों में रहती हैं।

यू.एन. वीमेन: 

  • विश्व भर में महिलाओं और लड़कियों की ज़रूरतों तथा उनके अधिकारों को पूरा करने में प्रगति में तीव्रता लाने के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2010 में यू.एन. वीमेन की स्थापना की गई थी।
  • यू.एन. वीमेन, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का समर्थन करती है क्योंकि यह लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिये वैश्विक मानक निर्धारित करती है, साथ ही महिलाओं और लड़कियों को लाभ पहुँचाने वाले कानूनों, नीतियों, कार्यक्रमों और सेवाओं के डिज़ाइन के साथ उन्हें कार्यान्वित करने के लिये सरकारों तथा नागरिक समाज के साथ काम करती है।
  • यू.एन. वीमेन चार प्रमुख रणनीतिक प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करती है: महिलाओं का नेतृत्व और राजनीतिक भागीदारी, महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण, महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करना और शांति, सुरक्षा तथा मानवीय कार्रवाई।

व्यापक नीति कार्रवाई के लिये सिफारिशें: 

  • स्वास्थ्य नीतियाँ: सरकारों को सभी के लिये लंबी आयु और स्वस्थ जीवन के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य तक सार्वभौमिक पहुँच का समर्थन एवं प्रचार करना चाहिये।
  • शिक्षा में समानता: कौशल और शिक्षा की गुणवत्ता में अंतर (विशेष रूप से STEM जैसे क्षेत्रों में) की समस्या से निपटना, डिजिटल युग में महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्त बनाने में मदद करना।
  • कार्य और जीवन के बीच संतुलन तथा परिवारों के लिये समर्थन: कार्य और जीवन के बीच संतुलन बनाने में सहायक नीतियों और सेवाओं में निवेश किया जाना चाहिये, जिसमें वहनीय तथा गुणवत्तापूर्ण बाल देखभाल, माता-पिता की अवकाश संबंधी योजनाएँ एवं लचीली कामकाजी व्यवस्थाएँ शामिल हैं।
  • महिलाओं की समान भागीदारी: सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में लैंगिक समानता हासिल करने के लिये निर्दिष्ट लक्ष्य और कार्य योजनाओं की स्थापना की जानी चाहिये, साथ ही महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकने वाले भेदभावपूर्ण कानूनों और विनियमों को समाप्त किया जाना चाहिये।
  • महिलाओं के खिलाफ हिंसा: इसके लिये रोकथाम, सामाजिक मानदंडों में बदलाव और भेदभावपूर्ण कानूनों तथा नीतियों को खत्म करने पर केंद्रित व्यापक उपायों को लागू करना महत्त्वपूर्ण है।

महिला सशक्तीकरण सूचकांक (Women's Empowerment Index- WEI)

  • यह यू.एन. वीमेन और UNDP द्वारा तैयार किया जाने वाला एक समग्र सूचकांक है।
  • यह पाँच आयामों के आधार पर महिला सशक्तीकरण का आकलन करता है: जीवन और अच्छा स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल निर्माण और ज्ञान, श्रम एवं वित्तीय समावेशन, निर्णय लेने में भागीदारी तथा हिंसा से मुक्ति
  • WEI विकल्प चुनने और जीवन के अवसरों का लाभ उठाने की महिलाओं की शक्ति एवं स्वतंत्रता को दर्शाता है
  • WEI का विकास साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है और लैंगिक समानता एवं महिलाओं तथा लड़कियों के सशक्तीकरण पर सतत् विकास लक्ष्य 5 (SDG5) की दिशा में सरकार की प्रगति की निगरानी के लिये आधार रेखा के रूप में कार्य करता है।

वैश्विक लैंगिक समानता सूचकांक (GGPI): 

  • GGPI एक समग्र सूचकांक है जो स्वास्थ्य, शिक्षा, समावेशन और निर्णय लेने सहित मानव विकास के प्रमुख आयामों में लैंगिक असमानताओं का आकलन करता है।
  • GGPI को यू.एन. वीमेन और UNDP द्वारा 'समानता का मार्ग: महिला सशक्तीकरण एवं मानव विकास में लैंगिक समानता' शीर्षक से एक नई वैश्विक रिपोर्ट के हिस्से के रूप में विकसित किया गया है, जिसे जुलाई 2023 में लॉन्च किया गया था।
  • GGPI का लक्ष्य विभिन्न संदर्भों और आयामों में पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं की स्थिति को जानना है। यह लैंगिक समानता की बहुआयामी तथा परस्पर संबंधित प्रकृति को भी दर्शाता है। 

सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक जीवन में लैंगिक अंतर को कम करने के लिये भारतीय पहल: 

  • आर्थिक भागीदारी और स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता:
    • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ: यह पहल बालिकाओं की सुरक्षा, अस्तित्व और शिक्षा सुनिश्चित करती है।
    • महिला शक्ति केंद्र: इसका उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को कौशल विकास और रोज़गार के अवसर प्रदान करके सशक्त बनाना है।
    • राष्ट्रीय महिला कोष: यह एक शीर्ष सूक्ष्म-वित्त संगठन है जो गरीब महिलाओं को विभिन्न आजीविका और आय सृजन गतिविधियों के लिये रियायती शर्तों पर सूक्ष्म ऋण प्रदान करता है।
    • सुकन्या समृद्धि योजना: इस योजना के तहत लड़कियों के बैंक खाते खुलवाकर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया गया है।
    • महिला उद्यमिता: महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार ने स्टैंड-अप इंडिया और महिला ई-हाट (महिला उद्यमियों/SHG/NGO का समर्थन करने हेतु ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म), उद्यमिता एवं कौशल विकास कार्यक्रम (ESSDP) शुरू किये हैं।
    • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय: इन्हें शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉक (EBB) में खोला गया है।
  • राजनीतिक आरक्षण: सरकार ने महिलाओं के लिये पंचायती राज संस्थाओं में 33% सीटें आरक्षित की हैं।
    • निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों का क्षमता निर्माण: यह महिलाओं को शासन प्रक्रियाओं में प्रभावी ढंग से भाग लेने के लिये सशक्त बनाने की दृष्टि से आयोजित किया जाता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन, विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौम लैंगिक अंतराल सूचकांक (ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स)' का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) UN मानव अधिकार परिषद्
(c) यू.एन. वीमेन 
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता वार्ता

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता (FTA, भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता (FTA) यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA), बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) 

मेन्स के लिये:

भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता वार्ता

चर्चा में क्यों

भारत और ब्रिटेन वर्तमान में भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के लिये चल रही वार्ता में विवादास्पद मुद्दों को हल करने में लगे हुए हैं।

  •  यह व्यापक व्यापार सौदा भारत के लिये अत्यधिक महत्त्व रखता है क्योंकि यह आगामी व्यापार समझौतों के लिये एक टेम्पलेट के रूप में काम करेगा, जिसमें यूरोपीय संघ और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) देशों (जैसे, आइसलैंड, लिकटेंस्टीन, नॉर्वे और स्विट्ज़रलैंड) के साथ समझौते शामिल होंगे।

वार्ता के अंतर्गत विवादास्पद मुद्दे: 

  • बौद्धिक संपदा अधिकार: बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) में भारत जीवन रक्षक जेनरिक दवाओं के उत्पादन पर कोई समझौता नहीं करना चाहता है।
  • वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC): वैश्विक मूल्य शृंखलाओं से जुड़ी जटिलताओं को दूर करने एवं भारत के लिये अनुकूल परिणाम सुनिश्चित करने पर चर्चा चल रही है।
  • डिजिटल व्यापार: डिजिटल व्यापार और डेटा संरक्षण के क्षेत्र में भारत द्वारा अभी भी अपने घरेलू कानूनों को मज़बूत किया जाना शेष है, इसलिये वह प्रतिबद्धताओं को पूरा नहीं करना चाहता है।
  • उत्पत्ति के नियम (ROO): ROO, जो किसी उत्पाद का राष्ट्रीय स्रोत निर्धारित करता है, FTA वार्ता में एक विवादास्पद मुद्दा रहा है।
    • ये व्यापार वार्ताओं हेतु महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि देश आयात के स्रोत के आधार पर उत्पादों पर शुल्क या प्रतिबंध लगाते हैं।
    • भारत यह सुनिश्चित करने के लिये सख्त नियम बनाना चाहता है कि तीसरे देश FTA  का अनुचित लाभ न उठाएँ।
  • श्रम और पर्यावरण: श्रम और पर्यावरण प्रतिबद्धताएँ पहली बार की जा रही हैं तथा उन्हें ऐसे तरीके से किया जाना चाहिये जो भारत के लिये प्रतिकूल न हो।
    • भारत ने अकेले बहुत प्रगति की है और वह अतिरिक्त शर्तें नहीं चाहता
    • दूसरी ओर ब्रिटेन अधिक कठोर IPR, मुक्त सीमा पार डेटा प्रवाह एवं  डेटा स्थानीयकरण के खिलाफ नियम, उदार ROO तथा श्रम और पर्यावरण के क्षेत्रों में प्रतिबद्धता चाहता है।

भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते की पृष्ठभूमि: 

  • वर्ष 2022 में भारत और ब्रिटेन  ने औपचारिक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) वार्ता शुरू की थी। दोनों देश एक अंतरिम मुक्त व्यापार क्षेत्र पर विचार कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश वस्तुओं पर टैरिफ कम हो जाएगा।
  • दोनों देश चुनिंदा सेवाओं के लिये नियमों को आसान बनाने के अलावा वस्तुओं के एक छोटे समूह पर टैरिफ कम करने हेतु शीघ्र फसल योजना या सीमित व्यापार समझौते पर सहमत हुए।
  • इसके अलावा वे "संवेदनशील मुद्दों" से बचने और उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने पर सहमत हुए जहाँ अधिक पूरकता है।
  • व्यापार वार्ता में कृषि और डेयरी क्षेत्र को भारत के लिये संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है।
  • साथ ही वर्ष 2030 तक भारत और ब्रिटेन (UK) के बीच व्यापार को दोगुना करने का लक्ष्य भी रखा गया।

मुक्त व्यापार समझौता:

  • यह दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात की बाधाओं को कम करने के लिये एक समझौता है।
  • मुक्त व्यापार नीति के तहत वस्तुओं और सेवाओं को अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार बहुत कम या बिना किसी सरकारी टैरिफ, कोटा, सब्सिडी या विनिमय के साथ खरीदा और बेचा जा सकता है। 
  • मुक्त व्यापार की अवधारणा व्यापार संरक्षणवाद या आर्थिक अलगाववाद के विपरीत है।
  • FTA को अधिमान्य व्यापार समझौते, व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते, व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। 

भारत-ब्रिटेन व्यापार संबंध:

  • वर्ष 2007 और 2019 के बीच भारत और ब्रिटेन के बीच व्यापार "दोगुने से अधिक" हुआ।
  • भारत वर्ष 2022 के अंत तक ब्रिटेन का 12वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था। यह ब्रिटेन के कुल व्यापार का 2.0% था।
  • भारत वस्तुओं के मामले में ब्रिटेन का 13वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था तथा सेवाओं के मामले में यह 10वाँ सबसे बड़ा भागीदार था। 
  • वर्ष 2022-23 में भारत-ब्रिटेन द्विपक्षीय व्यापार 16% बढ़कर 20.36 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया। 

भारत और ब्रिटेन के बीच FTA का महत्त्व:

  • वस्तुओं का निर्यात बढ़ाना: ब्रिटेन के साथ व्यापार सौदे में वस्त्र, चमड़े का सामान और जूते जैसे व्यापक स्तर पर रोज़गार उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में निर्यात को बढ़ावा दिया जा सकता है।
    • भारत की 56 समुद्री इकाइयों को मान्यता मिलने से समुद्री उत्पादों के निर्यात में भी भारी उछाल आने की उम्मीद है।
  • सेवा व्यापार पर स्पष्टता: FTA से निश्चितता, पूर्वानुमेयता और पारदर्शिता की उम्मीद है तथा यह एक अधिक उदार, सुविधाजनक और प्रतिस्पर्द्धी सेवा व्यवस्था बनाएगा।
    • आयुष और ऑडियो-विज़ुअल सेवाओं सहित IT/ITES, नर्सिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने की भी काफी संभावनाएँ हैं।
  • RCEP से बाहर होना: भारत नवंबर 2019 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) से बाहर हो गया।
    • इसलिये अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ व्यापार सौदों पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जो भारतीय निर्यातकों के लिये प्रमुख बाज़ार हैं तथा अपने निष्कर्षण/सोर्सिंग में विविधता लाने के इच्छुक हैं।
  • रणनीतिक लाभ: ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और भारत के रणनीतिक साझेदारों में से एक है।

आगे की राह 

  • भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते के लिये चल रही वार्ता भारत के व्यापार संबंधों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), वैश्विक मूल्य शृंखला, डिजिटल व्यापार और उत्पत्ति के नियमों जैसे विवादास्पद मुद्दों को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।  
  • सतर्क दृष्टिकोण और वार्ता की धीमी गति अपने हितों की रक्षा करते हुए एक व्यापक सौदा हासिल करने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
  • इन वार्ताओं के निष्कर्ष भारत में भविष्य के व्यापार समझौतों को आकार देंगे, जिससे यह सावधानीपूर्वक विचार और रणनीतिक निर्णय लेने में सक्षम बन जाएगा।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018) 

  1. ऑस्ट्रेलिया 
  2. कनाडा
  3. चीन
  4. भारत
  5. जापान 
  6. यू.एस.ए 

उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में से हैं?

(a) केवल 1, 2, 4 और 5
(b) केवल 3, 4, 5 और 6
(c) केवल 1, 3, 4 और 5
(d) केवल 2, 3, 4 और 6 

उत्तर: (c) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

IAS, IPS, IFOS पेंशनभोगियों के सेवानिवृत्ति लाभों से संबंधित संशोधित नियम

प्रिलिम्स के लिये:

अखिल भारतीय सेवाएँ (AIS), कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT), सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, सिविल सेवा नियम, मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ संशोधन नियम 2023

मेन्स के लिये:

भारतीय प्रशासनिक सेवा (Cadre) नियम 1954, अखिल भारतीय सेवाएँ (AIS), AIS अधिकारी की प्रतिनियुक्ति, AIS अधिकारियों की संघीय प्रकृति, केंद्र राज्य संबंध, लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका

चर्चा में क्यों ?  

केंद्र सरकार ने IAS, IPS (भारतीय पुलिस सेवा) और IFO (भारतीय वन सेवा) पेंशनभोगियों के सेवानिवृत्ति लाभों से संबंधित अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम 1958 में संशोधन किया है।

  • नियम 1958 को कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DOPT) द्वारा नियम 2023 में संशोधित किया गया था।
  • यह मुख्य रूप से सेवानिवृत्त खुफिया या सुरक्षा से संबंधित संगठनों पर केंद्रित है।

नियम 2023 द्वारा परिवर्तन:

  • केंद्र सरकार स्वयं IAS, IPS और IFos के विरुद्ध कार्रवाई करने तथा राज्य सरकार के संदर्भ के बिना भी उनकी पेंशन रोकने या वापस लेने का अधिकार रखती है यदि वे गंभीर कदाचार या अपराध के लिये दोषी पाए जाते हैं।
  • संशोधित नियम दर्शाते हैं कि पेंशन रोकने या वापस लेने पर केंद्र सरकार का निर्णय "अंतिम होगा"।
    • इन जोड़े गए नियमों में 'गंभीर कदाचार' में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम में उल्लिखित किसी दस्तावेज़ या जानकारी का संचार या प्रकटीकरण शामिल है तथा 'गंभीर अपराध' में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत अपराध से संबंधित कोई भी अपराध शामिल है।
      • अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम, 1958 में पहले नियम 3(3) में कहा गया था कि केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकार के संदर्भ पर पेंशन या उसके किसी भी हिस्से को रोक या वापस ले सकती है।
  • खुफिया या सुरक्षा-संबंधी संगठनों के सदस्य, जिन्होंने ऐसी क्षमताओं में सेवा की है, अपने संबंधित संगठन के प्रमुख से पूर्व मंज़ूरी प्राप्त किये बिना कोई लेख नहीं लिखेंगे या प्रकाशित करेंगे।

नियमों में बदलाव का असर: 

  • गंभीर कदाचार के दोषी या अदालत द्वारा गंभीर अपराध के दोषी पाए गए पेंशनभोगी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये केंद्र को राज्य सरकार के संदर्भ का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा।
    • ऐसे मामलों में संबंधित राज्य सरकार के संदर्भ के बिना भी केंद्र सरकार कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर सकती है।
  • सुरक्षा और खुफिया संगठनों के अधिकारियों द्वारा मीडिया में संवेदनशील जानकारी प्रदान करने तथा किताबों में उनके बारे में लिखने पर संबंधित सुरक्षा एवं खुफिया संगठनों के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी । 
  • प्रस्तावित संशोधन नौकरशाही पर राज्य के राजनीतिक नियंत्रण को कमज़ोर कर देगा।
  • यह प्रभावी शासन को बाधित करेगा और परिहार्य कानूनी तथा प्रशासनिक विवाद पैदा करेगा। क्योंकि संशोधित नियम केंद्र सरकार को सेवानिवृत्त अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की अप्रतिबंधित शक्ति प्रदान करेंगे। 

अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम,1958

  • अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 की धारा 3 (1951 का 61) संबंधित राज्यों की सरकारों से परामर्श के बाद ऐसे नियम बनाने के लिये केंद्र सरकार को अधिकार देता है।
  • यह उन सभी लोगों पर लागू होगा जो 29 अक्तूबर, 1951 को या उसके बाद सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे। 
  • यह सेवा के उन सदस्यों पर लागू नहीं होता है जिन्हें राज्य सेवाओं से केंद्रीय सेवा में पदोन्नत किया गया था या भारतीय प्रशासनिक सेवा (राज्यों तक विस्तार) योजना या भारतीय पुलिस सेवा के अंर्तगत सेवा में नियुक्त किया गया था।
  • इन नियमों में निहित कोई भी बात 1 जनवरी, 2004 को या उसके बाद सेवा में नियुक्त लोगों पर लागू नहीं होगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. “आर्थिक प्रदर्शन के लिये संस्थागत गुणवत्ता एक निर्णायक चालक है"। इस संदर्भ में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिये सिविल सेवा में सुधारों के सुझाव दीजिये। (2020) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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