अंतर्राष्ट्रीय संबंध
RCEP में शामिल नहीं होगा भारत
- 05 Nov 2019
- 7 min read
प्रीलिम्स के लिये
RCEP
मेन्स के लिये
भारत-आसियान संबंधी मुद्दे
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने 16 सदस्य देशों वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP) समूह में शामिल न होने का निर्णय लिया है।
- गौरतलब है कि RCEP से जुड़ी भारत की चिंताओं को तमाम वार्ताओं के बाद भी दूर नहीं किया जा सका, जिसके कारण भारत को यह निर्णय लेना पड़ा।
- ध्यातव्य है कि भारत के अतिरिक्त अन्य सभी 15 देश वर्ष 2020 तक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे।
क्या है RCEP?
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी या RCEP एक मुक्त व्यापार समझौता है, जो कि 16 देशों के मध्य किया जा रहा था। विदित हो कि भारत के इसमें शामिल न होने के निर्णय के पश्चात् अब इसमें 15 देश शेष हैं।
- इसमें 10 आसियान देश तथा उनके FTA भागीदार- भारत, चीन, जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड शामिल थे।
- इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिये इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को उदार बनाना एवं सभी 16 देशों में फैले हुए बाज़ार का एकीकरण करना है।
- इसका अर्थ है कि सभी सदस्य देशों के उत्पादों और सेवाओं का संपूर्ण क्षेत्र में पहुँचना आसान होगा।
- इसकी औपचारिक शुरुआत नवंबर 2012 में कंबोडिया में आयोजित आसियान शिखर सम्मेलन में की गई थी।
- RCEP को ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी के एक विकल्प के रूप में भी देखा जाता रहा है।
- यदि भारत सहित यह समझौता संपन्न होता तो यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 25 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार के 30 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता।
- साथ ही यह तकरीबन 5 अरब लोगों की आबादी के लिहाज़ से सबसे बड़ा व्यापार ब्लॉक भी बन जाता।
- RCEP समझौते में वस्तुओं एवं सेवाओं का व्यापार, निवेश, आर्थिक और तकनीकी सहयोग, बौद्धिक संपदा, प्रतिस्पर्द्धा, विवाद निपटान तथा अन्य मुद्दे शामिल हैं।
क्या है समस्या?
- भारत के अतिरिक्त RCEP में भाग लेने वाले अन्य सभी 15 सदस्यों ने मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने का निर्णय लिया है। इस समझौते के वर्ष 2020 तक संपन्न होने की उम्मीद है।
- दूसरी ओर भारत ने कुछ अनसुलझे मुद्दों के कारण इस समझौते में शामिल न होने का निर्णय लिया है।
- निर्णय की घोषणा करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि “RCEP अपने मूल उद्देश्यों को प्रतिबिंबित नहीं करता एवं इसके परिणाम न तो उचित हैं और न ही संतुलित।”
- RCEP वार्ता के दौरान कई भारतीय उद्योग समूहों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर करने को लेकर चिंता जताई थी। उन्होंने तर्क दिया था कि कुछ घरेलू क्षेत्र अन्य प्रतिभागी देशों के सस्ते विकल्पों के कारण प्रभावित हो सकते हैं।
- उदाहरण के लिये समझौते के फलस्वरूप देश के डेयरी उद्योग को ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ेगा। इसी प्रकार देश के इस्पात और कपड़ा उद्योग को भी कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ेगा।
अनसुलझे मुद्दे
- कई भारतीय उद्योगों ने चिंता ज़ाहिर की थी कि यदि चीन जैसे देशों के सस्ते उत्पादों को भारतीय बाज़ार में आसान पहुँच प्राप्त हो जाएगी तो भारतीय घरेलू उद्योग पूर्णतः तबाह हो जाएगा।
- ध्यातव्य है कि भारत ऐसे ऑटो-ट्रिगर तंत्र की मांग कर रहा था जो उसे ऐसे उत्पादों पर शुल्क बढ़ाने की अनुमति देगा जहाँ आयात एक निश्चित सीमा को पार कर चुका हो।
- भारत पहले से ही 16 RCEP देशों के साथ व्यापार घाटे की स्थिति में है। अपने बाज़ार को और अधिक मुक्त बनाने से स्थिति और बिगड़ सकती है। गौरतलब है कि चीन के साथ भारत का कुल व्यापार 50 बिलियन डॉलर से भी अधिक का है।
- इस व्यापार संधि में शामिल होने की भारत की अनिच्छा इस अनुभव से भी प्रेरित है कि भारत को कोरिया, मलेशिया और जापान जैसे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों का कोई लाभ प्राप्त नहीं हुआ है।
- समझौतों का कार्यान्वयन शुरू होने के बाद इन देशों से भारत के आयात में तो वृद्धि हुई लेकिन भारत से निर्यात में उस गति से वृद्धि नहीं हुई और इससे देश का व्यापार घाटा बढ़ा।
- गैर टैरिफ बाधाओं संबंधी भारत की चिंता और बाज़ार तक अधिक पहुँच की मांग को लेकर भी भारत को कोई विश्वसनीय आश्वासन नहीं दिया गया।
- भारत ने कई बार उत्पादों पर टैरिफ को कम करने अथवा समाप्त करने के संबंध में अपना डर ज़ाहिर किया था।
- RCEP में ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ (Rules of Origin) के दुरुपयोग से संबंधित भारतीय चिंताओं को भी सही ढंग से संबोधित नहीं किया गया।
- किसी उत्पाद के राष्ट्रीय स्रोत को निर्धारित करने के लिये उपयोग किये जाने वाले मानदंड को ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ कहा जाता है।
- RCEP समझौते में टैरिफ घटाने के लिये वर्ष 2013 को आधार वर्ष के रूप में चुनने का प्रस्ताव किया गया है, परंतु भारत इसके विरोध में है क्योंकि बीते कुछ वर्षों में कपड़ा और इलेक्ट्रॉनिक जैसे कई उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा है और इसलिये भारत चाहता है कि वर्ष 2019 को आधार वर्ष के रूप में चुना जाए।