हिमालयन ग्रिफॉन
प्रिलिम्स के लिये:हिमालयन ग्रिफॉन, गिद्धों की प्रजातियाँ मेन्स के लिये:गिद्धों के संरक्षण के प्रयास |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में असम में कुछ हिमालयन ग्रिफॉन की संदिग्ध विषाक्तता के कारण मृत्यु हो गई।
हिमालयन ग्रिफॉन
- परिचय:
- हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर (जिप्स हिमालयेंसिस) एसीपीट्रिडी (Accipitridae) परिवार से संबंधित है, जिसमें ईगल, बुलबुल और बाज भी शामिल हैं।
- यह यूरोपियन ग्रिफॉन वल्चर जी फुलवस (G. Fulvus) से संबंधित है।
- गिद्ध की यह एक विशिष्ट प्रजाति है, जिसका सिर सफेद, पंख काफी बड़े तथा इसकी पूँछ छोटी होती है।
- इसकी गर्दन पर सफेद पंख होते हैं तथा चोंच पीले रंग की होती है साथ ही इसके शरीर का रंग सफेद जैसा (न कि पूरी तरह से सफेद) होता है तथा पंख गहरे (लगभग काले) रंग के होते हैं।
- सुरक्षा की स्थिति:
- IUCN की रेड लिस्ट : निकट संकटग्रस्त (NT)।
- आवास:
- हिमालयी गिद्ध ज़्यादातर तिब्बती पठार (भारत, नेपाल और भूटान, मध्य चीन और मंगोलिया) पर हिमालय में पाए जाते हैं।
- यह मध्य एशियाई पहाड़ों (पश्चिम में कज़ाखस्तान और अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में पश्चिमी चीन तथा मंगोलिया तक) में भी पाया जाता है।
- कभी-कभी यह उत्तरी भारत में प्रवास करता है लेकिन इसका प्रवास आमतौर पर केवल ऊँचाई पर होता है।
गिद्धों के लक्षण/विशेषताएँ:
- गिद्धों के विषय में:
- यह मरे हुए जानवरों को खाने वाले पक्षियों की 22 प्रजातियों में से एक है और ये मुख्य रूप से उष्ण-कटिबंधीय और उपोष्ण-कटिबंधीय क्षेत्रों में रहते हैं।
- ये प्रकृति के कचरा संग्रहकर्त्ता (Nature’s Garbage Collectors) के रूप में एक महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं और पर्यावरण से कचरा हटाकर उसे साफ रखने में मदद करते हैं।
- गिद्ध वन्यजीवों के रोगों पर नियंत्रण रखने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- भारत में पाई जाने वाली प्रजातियाँ:
- भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियाँ यथा- ओरिएंटल व्हाइट बैक्ड (Oriental White Backed), लॉन्ग बिल्ड (Long Billed), स्लेंडर-बिल्ड (Slender Billed), हिमालयन (Himalayan), रेड हेडेड (Red Headed), मिस्र देशीय (Egyptian), बियरडेड (Bearded), सिनेरियस (Cinereous) और यूरेशियन ग्रिफॉन (Eurasian Griffon) पाई जाती हैं।
- इन 9 प्रजातियों में से अधिकांश के विलुप्त होने का खतरा है।
- बियरडेड, लॉन्ग बिल्ड और ओरिएंटल व्हाइट बैक्ड वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act), 1972 की अनुसूची-1 में संरक्षित हैं। शेष 'अनुसूची IV' के अंतर्गत संरक्षित हैं।
- भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियाँ यथा- ओरिएंटल व्हाइट बैक्ड (Oriental White Backed), लॉन्ग बिल्ड (Long Billed), स्लेंडर-बिल्ड (Slender Billed), हिमालयन (Himalayan), रेड हेडेड (Red Headed), मिस्र देशीय (Egyptian), बियरडेड (Bearded), सिनेरियस (Cinereous) और यूरेशियन ग्रिफॉन (Eurasian Griffon) पाई जाती हैं।
खतरा :
- डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) जैसे विषाक्त पदार्थ जो पशुओं के लिये दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- मानवजनित गतिविधियों के कारण प्राकृतिक आवासों का नुकसान।
- भोजन की कमी और दूषित भोजन।
- बिजली लाइनों से करंट लगना।
संरक्षण के प्रयास :
- भारत द्वारा:
- हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने देश में गिद्धों के संरक्षण के लिये एक 'गिद्ध कार्ययोजना 2020-25' (Vulture Action Plan 2020-25) शुरू की।
- भारत में गिद्धों की मौत के कारणों पर अध्ययन करने के लिये वर्ष 2001 में हरियाणा के पिंजौर में एक गिद्ध देखभाल केंद्र (Vulture Care Centre-VCC) स्थापित किया गया।
- कुछ समय बाद वर्ष 2004 में गिद्ध देखभाल केंद्र को अपग्रेड करते हुए भारत के पहले ‘गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र’ (VCBC) की स्थापना की गई।
- वर्तमान में भारत में नौ गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र हैं, जिनमें से तीन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (Bombay Natural History Society-BNHS) द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रशासित किये जा रहे हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय:
- ‘SAVE’ (एशिया के गिद्धों को विलुप्ति से बचाना):
- यह दक्षिण एशिया के गिद्धों की दुर्दशा में सुधार के लिये संरक्षण, अभियान और वित्तपोषण संबंधी गतिविधियों की देख-रेख एवं समन्वय हेतु समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का संघ है।
- उद्देश्य: एक ही कार्यक्रम के माध्यम से तीन गंभीर रूप से महत्त्वपूर्ण प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाना।
- ‘SAVE’ (एशिया के गिद्धों को विलुप्ति से बचाना):
विगत वर्षों के प्रश्नगिद्ध जो कुछ साल पहले भारतीय ग्रामीण इलाकों में बहुत आम हुआ करते थे, आजकल कम ही देखे जाते हैं। इसके लिये ज़िम्मेदार है (2012) (a) नई आक्रामक प्रजातियों द्वारा उनके घोंसले का विनाश उत्तर: (b) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
तेल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में बढ़ोतरी
प्रिलिम्स के लिये:प्राकृतिक गैस, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, यूराल क्रूड, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन। मेन्स के लिये:तेल एवं प्राकृतिक गैस की कीमतों में वृद्धि और भारत पर इसका प्रभाव, भारत के हितों पर अन्य देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका ने रूसी तेल, तरलीकृत प्राकृतिक गैस और कोयले के आयात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है।
- इस कदम का उद्देश्य रूस को यूक्रेन में युद्ध जारी रखने हेतु आवश्यक आर्थिक संसाधनों से वंचित करना है।
- अमेरिकी घोषणा के क्रम में अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतें 14 वर्षों के उच्च स्तर पर पहुँच गईं, जिसमें ब्रेंट क्रूड फ्यूचर 139.13 अमेरिकी डॉलर इंट्राडे के स्तर पर पहुँच गया।
रूस के ऊर्जा निर्यात को लक्षित करने का कारण:
- सबसे बड़ा तेल उत्पादक:
- रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है, जो केवल सऊदी अरब और संयुक्त राज्य अमेरिका से पीछे है।
- पेरिस स्थित अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, जनवरी 2022 में रूस का कुल तेल उत्पादन 11.3 मिलियन बैरल प्रतिदिन (mb/d) था, जिसमें से 10mb/d कच्चा तेल था।
- रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है, जो केवल सऊदी अरब और संयुक्त राज्य अमेरिका से पीछे है।
- कच्चे और तेल उत्पादों का विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक:
- रूस कच्चे और तेल उत्पादों का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है, जिसने दिसंबर 2021 में 7.8 mb/d तेल की शिपिंग की थी और साथ ही यह सऊदी अरब के बाद दुनिया में कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता भी है।
- प्राकृतिक गैस का प्रमुख निर्यातक:
- रूस प्राकृतिक गैस का भी एक प्रमुख निर्यातक है और वर्ष 2021 में यूरोप (और ब्रिटेन) में खपत होने वाली गैस का लगभग एक-तिहाई या 32% की आपूर्ति रूस ने की थी।
- वर्ष 2021 में तेल और गैस की बिक्री से प्राप्त होने वाला राजस्व पिछले वर्ष रूस के कुल राजस्व (25.29 ट्रिलियन रूबल) का 36% हिस्सा था।
- रूस प्राकृतिक गैस का भी एक प्रमुख निर्यातक है और वर्ष 2021 में यूरोप (और ब्रिटेन) में खपत होने वाली गैस का लगभग एक-तिहाई या 32% की आपूर्ति रूस ने की थी।
विगत वर्षों के प्रश्नवैश्विक तेल कीमतों के संदर्भ में ‘ब्रेंट क्रूड ऑयल’ को अक्सर समाचारों में संदर्भित किया जाता है। इस शब्द का क्या अर्थ है? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 2 उत्तर: (b) |
रूस और वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों पर प्रभाव:
- यह देखते हुए कि रूस ने वर्ष 2021 में कच्चे तेल उत्पादों का प्रतिदिन 7 मिलियन बैरल से अधिक का निर्यात किया है, अमेरिकी द्वारा लगाया गया प्रतिबंध रूस के तेल निर्यात को लगभग 10 प्रतिशत तक प्रभावित करेगा।
- इसके अलावा दुनिया भर में इसके सभी सहयोगी और भागीदार वर्तमान में इसके आयात प्रतिबंध में शामिल होने की स्थिति में नहीं है।
- अपने सहयोगियों के बीच यूके ने घोषणा की है कि वह वर्ष 2022 के अंत तक रूसी तेल और तेल उत्पादों के आयात को समाप्त कर देगा।
- यदि शेष यूरोप और चीन, रूसी तेल एवं गैस पर आयात प्रतिबंध में शामिल नहीं होते हैं तो भी रूस की अर्थव्यवस्था पर इसका कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- चीन जो कि दुनिया में सबसे बड़ा कच्चे तेल का आयातक है, रूस का सबसे बड़ा खरीदार है।
- आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के यूरोपीय सदस्यों (OECD यूरोप) को सामूहिक रूप से रूस द्वारा कुल तेल निर्यात का लगभाग 60% तेल निर्यात किया जाता है।
- पहले से ही तंग तेल बाज़ार को इसके बेंचमार्क यूराल क्रूड (Urals crude) की लगभग 1.5 mb/d (प्रति दिन लाख बैरल) की रूसी आपूर्ति और लगभग 1 1.5 mb/d परिष्कृत उत्पादों के नुकसान के साथ किनारे पर धकेल दिया गया था।
- यूराल क्रूड रूस में कच्चे तेल का सबसे आम निर्यात ग्रेड है और यूरोप में मीडियम सोर क्रूड मार्केट (Medium Sour Crude Market) के लिये एक महत्त्वपूर्ण बेंचमार्क है।
विगत वर्षों के प्रश्नएक बैरल तेल लगभग कितने के बराबर होता है? (2008) (a) 131 लीटर उत्तर: (b) |
यह भारत को कैसे प्रभावित कर सकता है?
- भारत, अमेरिका और चीन के बाद 5.5 मिलियन बैरल प्रतिदिन के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है।
- देश में तेल की मांग प्रतिवर्ष 3-4% की दर से बढ़ रही है।
- इस अनुमान के अनुसार एक दशक में भारत प्रतिदिन लगभग 70 लाख बैरल की खपत कर सकता है।
- भारत अपना 85% तेल लगभग 40 देशों से आयात करता है, जिनमें से अधिकांश मध्य-पूर्व और अमेरिका से आता है।
- रूस से भारत अपनी आपूर्ति का 2% आयात करता है, जिसमें तेल भी शामिल है जिसे वह शोधन के बाद पेट्रोलियम उत्पादों में परिवर्तित करता है।अत: यह रूसी तेल नहीं बल्कि सामान्य रूप से तेल और इसकी बढ़ती कीमतों ने भारत को चिंतित किया है।
आगे की राह
- वर्तमान में तेल की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं क्योंकि दुनिया भर के निवेशक अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के नतीजे का इंतजार कर रहे हैं तथा ऊर्जा व्यापारी चीन की मांग पर नज़र रखे हुए हैं जहांँ कोविड-19 मामलों के सामने आने के बाद से चीनने अपने देश के कुछ हिस्सों में लॉकडाउन लगाना शुरू कर दिया है।
- यदि यू.एस. फेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की जाती है, जैसा कि व्यापक रूप से अपेक्षित है तो डॉलर के मज़बूत होने की संभावना है, जिससे भारत जैसे शुद्ध ऊर्जा आयातक देशों के लिये तेल का आयात महंँगा हो जाएगा।
- भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा की खपत और ऊर्जा आयात करने वाला देश है, वेनेज़ुएला और ईरान से कच्चे तेल की आपूर्ति फिर से शुरू होने के साथ-साथ ओपेक+देशों (OPEC+ Nations) से उच्च उत्पादन की उम्मीद की जा रही है ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों को कम करने में मदद मिल सके जो कि कई वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंँच गई हैं।
- यह गैर-पारंपरिक आपूर्तिकर्त्ता देशों से ईंधन को स्थानांतरित करने हेतु आवश्यक बीमा और माल ढुलाई जैसे पहलुओं पर विचार करने के बाद रियायती कीमतों पर कच्चे तेल को बेचने के रूस के प्रस्ताव का भी मूल्यांकन करेगा।
विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न: कभी-कभी समाचारों में पाया जाने वाला शब्द 'वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट' निम्नलिखित में से किसे संदर्भित करता है:(2020) (a) कच्चा तेल उत्तर: (a) |
स्रोत: द हिंदू
एक नए राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून के लिये मसौदा विधेयक
प्रिलिम्स के लिये:नया स्वास्थ्य कानून मसौदा, महामारी रोग अधिनियम, 1897 मेन्स के लिये:भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख मुद्दे और उठाए जा सकने वाले कदम |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा अन्य सरकारी विभागों के अधिकारियों ने एक नए राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून के लिये मसौदा विधेयक के विभिन्न प्रावधानों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
- प्रस्तावित राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम पर वर्ष 2017 से काम चल रहा है और अधिनियमित होने के बाद यह 125 साल पुराने महामारी रोग अधिनियम, 1897 की जगह लेगा।
पृष्ठभूमि:
- वर्ष 2017 में सार्वजनिक स्वास्थ्य (रोकथाम, नियंत्रण और महामारी, जैव-आतंकवाद व आपदा प्रबंधन) अधिनियम, 2017 का मसौदा जारी किया गया था।
- सितंबर 2020 में यह घोषणा की गई थी कि सरकार एक राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून (राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य विधेयक) तैयार करेगी।
मसौदा विधेयक के अपेक्षित प्रावधान:
- चार स्तरीय स्वास्थ्य प्रशासन व्यवस्था:
- मसौदा विधेयक "बहु क्षेत्रीय" राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और ब्लॉक-स्तरीय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राधिकरणों के साथ एक चार स्तरीय स्वास्थ्य प्रशासन व्यवस्था का प्रस्ताव करता है, जिनके पास "सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति" से निपटने के लिये अच्छी तरह से परिभाषित शक्तियाँ और कार्य होंगे।
- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों की अध्यक्षता में इसका नेतृत्व करने का प्रस्ताव है।
- ज़िला कलेक्टर अगले स्तर का नेतृत्व करेंगे और ब्लॉक इकाइयों का नेतृत्व ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी या चिकित्सा अधीक्षक करेंगे।
- इन प्राधिकरणों के पास गैर-संचारी रोगों और उभरती संक्रामक बीमारियों की रोकथाम के लिये उपाय करने का अधिकार होगा।
- मसौदा विधेयक "बहु क्षेत्रीय" राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और ब्लॉक-स्तरीय सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राधिकरणों के साथ एक चार स्तरीय स्वास्थ्य प्रशासन व्यवस्था का प्रस्ताव करता है, जिनके पास "सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति" से निपटने के लिये अच्छी तरह से परिभाषित शक्तियाँ और कार्य होंगे।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य संवर्गों/काडर का निर्माण:
- प्रस्तावित कानून में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य संवर्गों (Public Health Cadres) के सृजन का भी प्रावधान है।
- आइसोलेशन, क्वारंटाइन और लॉकडाउन की परिभाषा:
- मसौदा विधेयक में आइसोलेशन, क्वारंटाइन और लॉकडाउन जैसे विभिन्न उपायों को परिभाषित किया गया है जिन्हें केंद्र और राज्यों द्वारा कोविड प्रबंधन हेतु बड़े पैमाने पर लागू किया गया है।
- यह लॉकडाउन को सड़कों या अंतर्देशीय जल मार्ग पर "कुछ शर्तों के साथ प्रतिबंध या किसी भी प्रकार के परिवहन को चलाने पर पूर्ण प्रतिबंध" के रूप में परिभाषित करता है।
- लॉकडाउन की परिभाषा में सार्वजनिक या निजी किसी भी स्थान पर व्यक्तियों की आवाजाही या सभा पर "प्रतिबंध" शामिल है।
- इसमें कारखानों, संयंत्रों, खनन या निर्माण या कार्यालयों या शैक्षिक संस्थानों या बाज़ार स्थलों पर कामकाज को "प्रतिबंधित" करना भी शामिल है।
- मसौदा विधेयक में आइसोलेशन, क्वारंटाइन और लॉकडाउन जैसे विभिन्न उपायों को परिभाषित किया गया है जिन्हें केंद्र और राज्यों द्वारा कोविड प्रबंधन हेतु बड़े पैमाने पर लागू किया गया है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने की स्थिति:
- मसौदा उन कई स्थितियों से संबंधित है जिसमें "सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल" घोषित किया जा सकता है। इनमें शामिल हैं:
- जैव आतंकवाद
- अक्रिय या पहले से नियंत्रित या निबटान किये गए संक्रामक एजेंट या जैविक विष (Biological Toxin)की उपस्थिति
- प्राकृतिक आपदा
- रासायनिक हमला या रसायनों का आकस्मिक विमोचन
- परमाणु हमला या दुर्घटना
- मसौदा उन कई स्थितियों से संबंधित है जिसमें "सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल" घोषित किया जा सकता है। इनमें शामिल हैं:
भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की स्थिति:
- स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि:
- NHA के अनुसार, सरकार ने स्वास्थ्य पर व्यय में वृद्धि की है, जिससे आउट-ऑफ पॉकेट एक्स्पेंडिंचर (OOPE) वर्ष 2017-18 में घटकर 48.8% हो गया, जो वर्ष 2013-14 में 64.2% के स्तर पर था।
- यह दर्शाता है कि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में स्वास्थ्य पर कुल सार्वजनिक व्यय पूर्व में अधिकतम 1-1.2% से आगे बढ़ता हुआ सकल घरेलू उत्पाद के 1.35% के ऐतिहासिक उच्च स्तर तक पहुँच गया।
- प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का हिस्सा: वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य व्यय में प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल का हिस्सा वर्ष 2013-14 के 51.1% से बढ़कर वर्ष 2017-18 में 54.7% हो गया है।
- प्राथमिक एवं माध्यमिक देखभाल वर्तमान सरकारी स्वास्थ्य व्यय का 80% से अधिक है।
- स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय: स्वास्थ्य पर सामाजिक सुरक्षा व्यय का हिस्सा, जिसमें सामाजिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम, सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ और सरकारी कर्मचारियों को की गई चिकित्सा प्रतिपूर्ति शामिल है, में वृद्धि हुई है।
स्वास्थ्य अवसंरचना से संबंधित मुद्दे
- स्वास्थ्य बीमा के मुद्दे: नीति आयोग द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में कम-से-कम 30% आबादी या 40 करोड़ व्यक्ति [इस रिपोर्ट में 'लापता मध्यवर्गीय' (Missing Middle') के रूप में संदर्भित] स्वास्थ्य के लिये किसी भी वित्तीय सुरक्षा से रहित हैं।
- इसके अतिरिक्त बीमा प्रीमियम पर उच्च GST (18%) लोगों को स्वास्थ्य बीमा चुनने से हतोत्साहित करता है।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी का अभाव: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र ऐसा नहीं है जिससे अधिक लाभ होगा बल्कि यह बुनियादी स्तर की स्वास्थ्य सेवा प्रदान करता है। यही कारण है कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिये दुनिया भर में बोझ काफी हद तक सरकारों पर है; यह निजी डोमेन के बजाय सार्वजनिक डोमेन में अधिक है।
- मूल आणविक विकास (Original Molecular Development) का अभाव: भारत दुनिया के लिये फार्मेसी है क्योंकि भारत में दवा निर्माण की स्थिति काफी मज़बूत है। हालाँकि वित्तपोषण की कमी के कारण दवा निर्माण में इनपुट के रूप में आवश्यक मूल आणविक विकास (Original Molecular Development) नहीं हुआ है या बहुत कम हुआ है।
- इस क्षेत्र को सरकार से प्रोत्साहन की आवश्यकता है ताकि भारत के उत्पादन को केवल जेनेरिक दवाओं के बजाय सीमांत दवाओं के साथ भी अद्यतन किया जा सके।
स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित पहलें:
आगे की राह:
- भारत की स्वास्थ्य प्रणाली के लिये अधिक सरकारी वित्त की आवश्यकता है। हालाँकि शहरी स्थानीय निकायों के मामले में इसके लिये वृद्धिशील वित्तीय आवंटन की आवश्यकता है जिसे संबंधित स्वास्थ्य क्षेत्रों का नेतृत्व करने वाले निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा पूरा किया जाना चाहिये।
- इसके लिये एक-दूसरे के साथ समन्वय करने वाली कई एजेंसियों की आवश्यकता के साथ-साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में नागरिक जुड़ाव बढ़ाने, जवाबदेही तंत्र स्थापित करने तथा तकनीकी एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों के एक बहु-विषयक समूह के तहत प्रक्रिया का मार्गदर्शन करना ज़रूरी है।
- एम्स जैसे कुछ उत्कृष्ट संस्थानों से अलग लागत को कम करने के लिये अन्य मेडिकल कॉलेजों में निवेश को संभवतः कम करने और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- नई दवाओं के विकास में अधिक निवेश का समर्थन करने तथा जीवन रक्षक एवं आवश्यक दवाओं पर जीएसटी (वस्तु और सेवा कर) को कम करने के लिये अतिरिक्त कर कटौती द्वारा अनुसंधान एवं विकास (Research and Development) को प्रोत्साहित करना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
उचित एकोमोडेशन का सिद्धांत
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), सर्वोच्च न्यायालय, हिजाब, मौलिक अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित मामले, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016। मेन्स के लिये:उचित आवास' का सिद्धांत, मौलिक अधिकार, न्यायपालिका, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित मामले। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिजाब विवाद के संदर्भ में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य के परिपत्र के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा है कि शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों को केवल ज़रूरी निर्धारित ड्रेस/वेशभूषा पहननी चाहिये।
- इस निर्णय ने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने वाले छात्रों के प्रवेश पर प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा।
- न्यायालय ने मुस्लिम लड़कियों को 'उचित आवास' के सिद्धांत पर आधारित स्कार्फ/हिजाब पहनने की अनुमति देने के समर्थन में दिये गए एक तर्क को खारिज कर दिया।
प्रमुख बिंदु
'उचित एकोमोडेशन' का सिद्धांत:
- उचित एकोमोडेशन' के सिद्धांत के बारे में: 'उचित एकोमोडेशन' एक सिद्धांत है जो समानता को बढ़ावा देता है, सकारात्मक अधिकार प्रदान करने में सक्षम बनाता है और दिव्यांग, स्वास्थ्य की स्थिति या व्यक्तिगत विश्वास के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
- इसका उपयोग मुख्य रूप से दिव्यांगता अधिकार क्षेत्र (Disability Rights Sector) में होता है।
- यह दिव्यांग व्यक्तियों को समाज में उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिये अतिरिक्त सहायता प्रदान करने हेतु राज्य एवं निजी संस्थानों के सकारात्मक दायित्व को दर्शाता है।
- यदि विकलांग व्यक्ति को कोई अतिरिक्त समर्थन नहीं दिया जाता है, तो संवैधानिक रूप से गारंटीकृत समानता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद-14), छह स्वतंत्रताओं (अनुच्छेद-19) और जीवन के अधिकार (अनुच्छेद-21) का महत्त्व नहीं रह जाएगा।
- विकलांग लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का अनुच्छेद-2 (UNCRPD): यह आवश्यक एवं उचित समायोजन है, जिसके मुताबिक विकलांग व्यक्तियों पर किसी भी प्रकार का असंगत या अनुचित बोझ न डाला जाए, ताकि वे अन्य लोगों की तरह अपने सभी मानवाधिकारों का लाभ ले सकें।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) केस स्टडी:
- ILO वर्ष 2016 में कार्यस्थल समायोजन के माध्यम से विविधता और समावेश को बढ़ावा देने के लिये एक व्यावहारिक मार्गदर्शिका लेकर आया था।
- कार्यस्थल आवास की आवश्यकता विभिन्न स्थितियों में उत्पन्न हो सकती है, लेकिन इसके तहत श्रमिकों की चार श्रेणियों को चुना गया था:
- विकलांग श्रमिक।
- एचआईवी और एड्स से पीड़ित श्रमिक।
- गर्भवती श्रमिक और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों वाले लोग।
- एक विशेष धर्म या विचारधारा के लोग।
- श्रमिकों की इन श्रेणियों को काम के दौरान विभिन्न प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इनके परिणामस्वरूप या तो रोज़गार का नुकसान हो सकता है या रोज़गार तक पहुँच में कमी हो सकती है।
- उचित आवास का प्रावधान इन बाधाओं को दूर करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है और इस प्रकार कार्यस्थल पर समानता, विविधता और समावेश में अधिक से अधिक योगदान देता है।
- एक संशोधित कार्य वातावरण, संक्षिप्त या चौंका देने वाली कार्यावधि, पर्यवेक्षी कर्मचारियों से अतिरिक्त सहायता तथा कम कार्य प्रतिबद्धताएँ ऐसे तरीके हैं जिनसे आवास बनाया जा सकता है।
विगत वर्षों के प्रश्नअंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन अभिसमय 138 और 182 संबंधित हैं: (2018) (a ) बाल श्रम उत्तर: (a) |
भारत में इससे संबंधित कानून:
- भारत में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 'उचित आवास' को "आवश्यक और उचित संशोधन एवं समायोजन, किसी विशेष मामले में एक असमान या अनुचित बोझ डाले बिना, विकलांग व्यक्तियों के लिये दूसरों के साथ समान रूप से अधिकारों का प्रयोग सुनिश्चित करने" आदि के रूप में परिभाषित करता है।
- धारा 2(h) में 'भेदभाव' की परिभाषा में 'उचित आवास से इनकार' शामिल है।
- जीजा घोष और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (2016): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि समानता का मतलब न केवल भेदभाव को रोकना है, बल्कि समाज में व्यवस्थित भेदभाव से पीड़ित समूहों के खिलाफ भेदभाव को दूर करना भी है।
- कठोर शब्दों में इसका अर्थ “सकारात्मक अधिकारों, सकारात्मक कार्रवाई और उचित समायोजन की धारणा को अपनाने से है।"
- विकाश कुमार बनाम यूपीएससी (2021): न्यायालय ने फैसला सुनाया कि बेंचमार्क विकलांगता, जो कि 40% की सीमा तक निर्दिष्ट एक विकलांगता है, दिव्यांगों के लिये केवल रोज़गार में विशेष आरक्षण से संबंधित है, लेकिन अन्य प्रकार की एकोमोडेशन के लिये प्रतिबंध की आवश्यकता नहीं है।
- यह भी कहा गया कि भेदभाव के संबंध में उचित एकोमोडेशन प्रदान करने में विफलताएँ देखने को मिली हैं।
विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न: भारत लाखों दिव्यांग व्यक्तियों का घर है। उनके लिये कानून के अंतर्गत क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
स्रोत: द हिंदू
दवा की कीमतें तय करने में NPPA की भूमिका
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण, थोक मूल्य सूचकांक। मेन्स के लिये:राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण और दवाओं के मूल्य निर्धारण में इसकी भूमिका। |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची (NLEM) के तहत सूचीबद्ध दवाओं और उपकरणों की कीमतों में 10% से अधिक वृद्धि की अनुमति दे सकता है।
- थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में वृद्धि से लगभग 800 दवाओं और उपकरणों पर असर पड़ने की उम्मीद है।
NPPA और इसका जनादेश:
- परिचय:
- ‘राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण’ का गठन वर्ष 1997 में भारत सरकार द्वारा रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के तहत औषधि विभाग (DoP) के एक संलग्न कार्यालय के तौर पर दवाओं के मूल्य निर्धारण हेतु स्वतंत्र नियामक के रूप में और सस्ती कीमतों पर दवाओं की उपलब्धता एवं पहुँच सुनिश्चित करने हेतु किया गया था।
- इसे ड्रग्स (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 1995-2013 (DPCO) के तहत नियंत्रित थोक दवाओं एवं फॉर्मूलेशन की कीमतों को तय/संशोधित करने तथा देश में दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु बनाया गया था।
- एक बल्क ड्रग (Bulk drug) जिसे एपीआई (Active Pharmaceutical Ingredient- API) भी कहा जाता है, एक दवा के रूप में रासायनिक अणु हैं जो उत्पाद को चिकित्सीय प्रभाव प्रदान करते हैं।
- जनादेश:
- औषधि (मूल्य नियंत्रण) आदेश के प्रावधानों को इसे प्रत्यायोजित शक्तियों के अनुसार लागू और कार्यान्वित करना।
- एनपीपीए के निर्णयों से उत्पन्न सभी कानूनी मामलों से निपटने के लिये उपाय करना।
- दवाओं की उपलब्धता की निगरानी करना, कमी की पहचान करना तथा उपचारात्मक कदम उठाना।
- थोक दवाओं और फॉर्मूलेशन के लिये उत्पादन, निर्यात एवं आयात, अलग-अलग कंपनियों की बाज़ार हिस्सेदारी, कंपनियों की लाभप्रदता आदि पर डेटा एकत्र करना/बनाए रखना तथा दवाओं/ फार्मास्यूटिकल्स के मूल्य निर्धारण के संबंध में प्रासंगिक अध्ययन करना।
मूल्य निर्धारण तंत्र कैसे कार्य करता है?
- NLEM के तहत सभी दवाएँ मूल्य विनियमन के अधीन हैं। NLEM बुखार, संक्रमण, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, एनीमिया आदि के इलाज़ के लिये इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं को सूचीबद्ध करता है तथा इसमें आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली दवाएँ जैसे- पैरासिटामोल (Paracetamol), एजिथ्रोमाइसिन (Azithromycin) आदि शामिल हैं।
- स्वास्थ्य मंत्रालय मूल्य विनियमन के योग्य दवाओं की एक सूची तैयार करता है, जिसके बाद फार्मास्युटिकल विभाग उन्हें DPCO की अनुसूची 1 में शामिल करता है।
- अफोर्डेबल मेडिसिन्स एंड हेल्थ प्रोडक्ट्स (SCAMHP) पर स्थायी समिति ‘ड्रग प्राइस रेगुलेटर नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी’ (NPPA) को सूची की समीक्षा करने की सलाह देगी। NPPA तब इस अनुसूची में दवाओं की कीमतें तय करता है।
- ड्रग्स (मूल्य) नियंत्रण आदेश 2013 के अनुसार, अनुसूचित दवाएँ जो फार्मा बाज़ार का लगभग 15% हैं, WPI (थोक मूल्य सूचकांक) के अनुसार सरकार द्वारा इनमें वृद्धि की अनुमति है, जबकि शेष 85% के मामले में 10% प्रत्येक वर्ष की स्वचालित वृद्धि की अनुमति है।
- अनुसूचित दवाओं की कीमतों में वार्षिक परिवर्तन नियंत्रित है और कभी-कभी ही 5% को पार करता है।
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (Drugs and Cosmetics Act 1940) के तहत दवाओं को अनुसूचियों में वर्गीकृत किया जाता है तथा उनके भंडारण, प्रदर्शन, बिक्री, वितरण, प्रिस्क्राइबिंग आदि हेतु नियम निर्धारित किये जाते हैं।
- वर्तमान में फार्मा लॉबी (Pharma Lobby) न केवल डब्ल्यूपीआई पर बल्कि अनुसूचित दवाओं के लिये भी कम-से-कम 10 फीसदी की बढ़ोतरी की मांग कर रही है।
- पिछले कुछ वर्षों में इनपुट लागत में वृद्धि हुई है इसका एक कारण यह भी है कि देश की 60%-70% दवा की ज़रूरत चीन पर निर्भर है।
स्रोत: द हिंदू
एक्सोमार्स 2022 मिशन
प्रिलिम्स के लिये:एक्सोमार्स 2022 मिशन, नासा का पर्सवेरेंस रोवर, यूएई का होप मार्स मिशन, तियानवेन-1, चीन का मार्स मिशन। मेन्स के लिये:विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ। |
चर्चा में क्यों?
रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रम रोस्कोस्मोस के साथ सभी प्रकार के सहयोग को निलंबित करने के बाद अब यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का एक्सोमार्स 2022 मिशन सितंबर, 2022 में लॉन्च नहीं होगा।
- रूसी अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस ने घोषणा की है कि वह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के रूसी खंड में संयुक्त प्रयोगों पर स्टेट कॉरपोरेशन जर्मनी के साथ सहयोग नहीं करेगा।
एक्सोमार्स 2022 मिशन:
- परिचय:
- यह दो चरणों वाला मिशन है:
- पहला भाग:
- इसका पहला मिशन वर्ष 2016 में प्रोटॉन-एम रॉकेट (Proton-M Rocket) द्वारा लॉन्च किया गया था जिसमें यूरोपीय ट्रेस गैस ऑर्बिटर (Trace Gas Orbiter) और शियापरेली (Schiaparelli) नामक टेस्ट लैंडर शामिल था।
- ऑर्बिटर सफल रहा, जबकि मंगल पर उतरने के दौरान परीक्षण लैंडर विफल हो गया था।
- दूसरा भाग:
- इसमें एक रोवर और सरफेस प्लेटफॉर्म शामिल है:
- मिशन के इस दूसरे भाग की योजना मूल रूप से जुलाई 2020 के लिये बनाई गई थी लेकिन तकनीकी कारणों से इसे सितंबर तक के लिये टाल दिया गया था
- पहला भाग:
- ESA और राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (नासा) एक्सोमार्स के मूल सहयोगी थे, लेकिन बजटीय समस्याओं के कारण नासा वर्ष 2012 में इससे बाहर हो गया।
- रूस ने वर्ष 2013 में इस परियोजना में नासा की जगह ली थी।
- यह दो चरणों वाला मिशन है:
- उद्देश्य:
- मिशन का प्राथमिक उद्देश्य यह जाँचना है कि क्या मंगल पर कभी जीवन रहा है और ग्रह पर पानी के इतिहास को भी समझना है।
- यूरोपीय रोवर लगभग 2 मीटर गहराई से नमूने एकत्र करने के लिये मंगल की उप-सतह पर ड्रिल करेगा।
- मुख्य लक्ष्य ESA के रोवर को एक ऐसे स्थान पर उतारना है, जहाँ विशेष रूप से ग्रह के इतिहास से अच्छी तरह से संबंधित कार्बनिक पदार्थ खोजने की उच्च संभावना हो।
- मिशन का प्राथमिक उद्देश्य यह जाँचना है कि क्या मंगल पर कभी जीवन रहा है और ग्रह पर पानी के इतिहास को भी समझना है।
मिशन की रूस पर निर्भरता:
- मिशन रॉकेट सहित कई रूसी-निर्मित घटकों का उपयोग करता है।
- वर्ष 2016 के लॉन्च में रूस द्वारा निर्मित प्रोटॉन-एम रॉकेट का इस्तेमाल किया गया था, उसी प्रकार की योजना सितंबर 2022 में लॉन्च हेतु बनाई गई थी।
- मिशन के रोवर के कई घटक भी रूस द्वारा निर्मित हैं।
- घटकों में रेडियोआइसोटोप हीटर (Radioisotope Heaters) शामिल हैं जिनका उपयोग रात के समय मंगल की सतह पर रोवर को गर्म रखने हेतु किया जाता है।
अन्य मंगल मिशन:
- नासा का मंगल 2020 मिशन (पर्सिवरेंस रोवर)
- संयुक्त अरब अमीरात का ‘होप’ (यूएई का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन)
- भारत का मंगल ऑर्बिटर मिशन (MOM) या मंगलयान:
- इसे नवंबर 2013 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
- इसे पीएसएलवी सी-25 रॉकेट द्वारा मंगल ग्रह की सतह और खनिज संरचना के अध्ययन के साथ-साथ मंगल ग्रह के वातावरण में मीथेन (मंगल पर जीवन का एक संकेतक) की उपस्थिति का पता लगाने के उद्देश्य से लॉन्च किया गया था।
- इसे नवंबर 2013 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
- तियानवेन-1: चीन का मंगल मिशन:
मंगल के बारे में:
- आकार और दूरी:
- मंगल सौरमंडल में सूर्य से चौथा गृह है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है, इसीलिये इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है।
- मंगल ग्रह पृथ्वी के आकार का लगभग आधा है।
- पृथ्वी से समानता (कक्षा और घूर्णन):
- मंगल गृह सूर्य की परिक्रमा करते हुए 24.6 घंटे में एक चक्कर पूरा करता है, जो कि पृथ्वी पर एक दिन (23.9 घंटे) के समान है।
- मंगल ग्रह का अक्षीय झुकाव 25 डिग्री है। यह लगभग पृथ्वी के समान है, जो कि 23.4 डिग्री के अक्षीय झुकाव पर स्थित है।
- पृथ्वी की तरह मंगल ग्रह पर भी अलग-अलग मौसम पाए जाते हैं, लेकिन वे पृथ्वी के मौसम की तुलना में लंबी अवधि के होते हैं क्योंकि सूर्य की परिक्रमा करने में मंगल अधिक समय लेता है।
- मंगल ग्रह के दिनों को सोल (Sols) कहा जाता है, जो 'सौर दिवस' का लघु रूप है।
- अन्य विशेषताएँ:
- मंगल के लाल दिखने का कारण इसकी चट्टानों में लोहे का ऑक्सीकरण, जंग लगना और धूल कणों की उपस्थिति है, इसलिये इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है।
- मंगल ग्रह पर सौरमंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी स्थित है, जिसे ओलंपस मॉन्स (Olympus Mons) कहते हैं।
- मंगल के दो छोटे उपग्रह हैं- फोबोस और डीमोस।