सामाजिक न्याय
दिव्यांगजन और न्याय प्रणाली तक आसान पहुँच
- 31 Aug 2020
- 10 min read
प्रिलिम्स के लियेसंयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तुत सिद्धांत, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 मेन्स के लियेभारत में दिव्यांगजनों की स्थिति और उनसे संबंधित समस्याएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने दिव्यांग व्यक्तियों के लिये सामाजिक न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु अपनी तरह के पहले दिशा-निर्देश जारी किये हैं, जिससे ऐसे व्यक्तियों के लिये न्याय प्रणाली का उपयोग करना काफी आसान हो जाएगा।
प्रमुख बिंदु
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी दिशा निर्देशों में 10 सिद्धांतों के समूह की एक रूपरेखा तथा उसके कार्यान्वयन के लिये आवश्यक विभिन्न कदमों का उल्लेख किया गया है।
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा उल्लेखित 10 सिद्धांत हैं-
- सिद्धांत 1: दिव्यांग व्यक्तियों के पास कानूनी क्षमता है और इसलिये दिव्यांगता के आधार पर किसी को भी न्याय तक पहुँचने से वंचित नहीं किया जा सकता है।
- सिद्धांत 2: दिव्यांग व्यक्तियों के लिये भेदभाव के बिना न्याय तक समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिये सुविधाओं एवं सेवाओं का सार्वभौमिक रूप से सुलभ होना अनिवार्य है।
- सिद्धांत 3: दिव्यांग बच्चों समेत सभी दिव्यांग व्यक्तियों को उचित ‘प्रसीजरल एकोमोडेशन’ (Procedural Accommodation) का अधिकार है।
- ‘प्रसीजरल एकोमोडेशन’ का अभिप्राय ऐसे उपायों से होता है, जो किसी दिव्यांग व्यक्ति अथवा संवेदनशील व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया में मदद करते हैं, जैसे- दिव्यांग व्यक्ति के साथ किसी अन्य सहायक व्यक्ति को सुनवाई में हिस्से लेने की अनुमति देना, दिव्यांग व्यक्ति को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई में हिस्सा लेने की छूट देना और उनके लिये अधिक अनौपचारिक वातावरण का निर्माण करना।
- सिद्धांत 4: दिव्यांग व्यक्तियों को भी अन्य व्यक्तियों की तरह कानूनी नोटिस और सूचना को समय पर सुलभ तरीके से प्राप्त करने का अधिकार है।
- सिद्धांत 5: अन्य व्यक्तियों की तरह दिव्यांग व्यक्ति भी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों में मान्यता प्राप्त सभी मौलिक और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के हकदार हैं।
- सिद्धांत 6: दिव्यांगजनों को मुफ्त और मितव्ययी कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार है।
- सिद्धांत 7: अन्य व्यक्तियों की तरह दिव्यांग व्यक्तियों को न्याय प्रणाली के प्रशासन में समान आधार पर भाग लेने का अधिकार है।
- सिद्धांत 8: दिव्यांग व्यक्तियों के पास मानवाधिकारों के उल्लंघन संबंधी अपराधों के मामलों की शिकायत करने तथा इस संबंध में कानूनी कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है।
- सिद्धांत 9: दिव्यांग व्यक्तियों के लिये न्याय तक पहुँच का समर्थन करने में प्रभावी एवं मज़बूत निगरानी तंत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- सिद्धांत 10: न्याय प्रणाली में कार्यरत सभी लोगों को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों खासतौर पर न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने के संबंध में जागरूक एवं प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा में दिव्यांग व्यक्ति
- 21वीं सदी में मानवाधिकारों के प्रमुख साधन के रूप में पहचाने जाने वाले ‘विकलांग व्यक्तियों के लिये संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ (UN Convention on the Rights of Persons with Disabilities) में दिव्यांग व्यक्तियों को ऐसे व्यक्तियों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनके पास दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक या संवेदी दोष हैं जो कि अन्य व्यक्तियों के साथ समान आधार पर समाज में उनकी पूर्ण और प्रभावी भागीदारी में बाधा डालते हैं।
- सामान्य अर्थों में दिव्यांगता ऐसी शारीरिक एवं मानसिक अक्षमता है जिसके चलते कोई व्यक्ति सामान्य व्यक्तियों की तरह किसी कार्य को करने में अक्षम होता है।
दिव्यांग व्यक्ति- संबंधित समस्याएँ
- विशेषज्ञों का मानना है कि देश में दिव्यांगता की ऐसी कई श्रेणी जैसे चोटों, दुर्घटनाओं और कुपोषण आदि हैं, जिन्हें आसानी से रोका जा सकता है, किंतु देश का स्वास्थ्य क्षेत्र खासतौर पर ग्रामीण स्वास्थ्य क्षेत्र इस प्रकार की दिव्यांगता को भी रोकने में असफल रहा है।
- इसके अलावा देश में कई संवेदनशील वर्गों के लिये उचित स्वास्थ्य देखभाल, सहायता और उपकरणों तक मितव्ययी पहुँच का भी अभाव है।
- भारत की शिक्षा प्रणाली में समावेशन का अभाव है, नियमित विद्यालयों में आज भी सामान्य बच्चों की अपेक्षा एक दिव्यांग बच्चे के लिये प्रवेश लेना काफी चुनौतीपूर्ण है।
- दिव्यांग विद्यार्थियों के लिये विशिष्ट विद्यालयों, प्रशिक्षित शिक्षकों और विशिष्ट शैक्षिक सामग्री की उपलब्धता का अभाव भी एक महत्त्वपूर्ण समस्या है।
- कई उच्च शिक्षण संस्थानों में दिव्यांग व्यक्तियों के लिये आरक्षण की व्यवस्था को उचित रूप से लागू नहीं किया गया है।
- यद्यपि अधिकांश दिव्यांग वयस्क उत्पादक कार्य करने में सक्षम हैं, किंतु इसके बावजूद भी दिव्यांग वयस्कों में रोज़गार की दर काफी कम है। विदित हो कि निजी क्षेत्र में दिव्यांग व्यक्तियों के रोज़गार की स्थिति और भी खराब है।
- देश में अधिकांश इमारतें और परिवहन सेवाएँ दिव्यांग व्यक्तियों के प्रयोग हेतु अनुकूल नहीं हैं, जिसके कारण उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- परिवार और समाज का नकारात्मक व्यवहार प्रायः दिव्यांग व्यक्तियों को परिवार, समुदाय या कार्यबल में सक्रिय भूमिका अदा करने से रोकता है।
- दिव्यांगजनों के अपने रोज़मर्रा के जीवन में भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है, खासतौर पर मानसिक रूप से अक्षम लोग जीवन के प्रत्येक स्तर पर सामाजिक बहिष्कार का सामना करते हैं।
भारत में दिव्यांग
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा एकत्रित किये गए आँकड़ों के अनुसार, भारत में सभी आयु वर्गों में 2.4 प्रतिशत पुरुष और 2 प्रतिशत महिलाएँ दिव्यांगता से प्रभावित हैं। इसमें मानसिक तथा बौद्धिक दिव्यांगता और बोलने, सुनने तथा देखने संबंधी अक्षमता शामिल है।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की कुल 121 करोड़ की जनसंख्या में से लगभग 2.68 करोड़ व्यक्ति ‘अक्षम’ अथवा दिव्यांग हैं जो कि कुल जनसंख्या का 2.21 प्रतिशत हैं।
- जनगणना के अनुसार, 2.68 करोड़ दिव्यांग व्यक्तियों में से 1.5 करोड़ दिव्यांग पुरुष हैं और 1.18 करोड़ दिव्यांग महिलाएँ हैं।
- देश की अधिकांश दिव्यांग आबादी (69 प्रतिशत) ग्रामीण भारत में निवास करती है।
दिव्यांग व्यक्तियों संबंधी कानून- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016
- दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 ने वर्ष 1995 के दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम का स्थान लिया था।
- इस अधिनियम में दिव्यांगता को एक विकसित और गतिशील अवधारणा के आधार पर परिभाषित किया गया है और दिव्यांगता के मौजूदा प्रकारों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है। इसके अलावा केंद्र सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह दिव्यांगता के प्रकारों को और अधिक बढ़ा सकती है।
- अधिनियम के तहत बेंचमार्क विकलांगता (Benchmark-Disability) से पीड़ित 6 से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिये निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है।
- बेंचमार्क विकलांगता से अभिप्राय उन लोगों से है जो कम-से-कम 40 प्रतिशत विकलांगता से प्रभावित हैं।
- अधिनियम के प्रावधानों के तहत दिव्यांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये एक अलग राष्ट्रीय तथा राज्य कोष बनाया जाएगा।