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प्रश्न :
भारत में स्थानीय निकायों की सुदृढ़ता एवं संपोषिता ‘प्रकार्य, कार्यकर्त्ता व कोष' की अपनी रचनात्मक प्रावस्था से ‘प्रकार्यात्मकता’ की समकालिक अवस्था की ओर स्थानांतरित हुई है। हाल के समय प्रकार्यात्मकता की दृष्टि से स्थानीय निकायों के सामना की जा रही अहम् चुनौतियों को आलोकित कीजिये। (250 शब्द) (UPSC Mains 2020)
09 Feb, 2021 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत में स्थानीय निकायों की स्थापना का संक्षिप्त उल्लेख के साथ उत्तर शुरू करें।
- इसकी कार्यक्षमता के संबंध में स्थानीय संस्थानों द्वारा सामना की जाने वाली विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा करें।
- इसके समाधान हेतु उपचारात्मक उपायों पर चर्चा करें।
- उचित निष्कर्ष दें।
पंचायती राज संस्थान और शहरी स्थानीय सरकारें, स्थानीय सरकार की इकाइयों के रूप में भारत में लंबे समय से अस्तित्व में हैं। हालाँकि उन्हें 73वें और 74वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से भारत के संघीय लोकतंत्र के तीसरे स्तर के रूप में संवैधानिक दर्जा दिया गया था।
त्रि-स्तरीय सरकार की स्थापना का प्राथमिक उद्देश्य लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को बढ़ाना है। हालाँकि कई ऐसे मुद्दे हैं जहाँ पता चलता है कि सरकार के तीसरे स्तर के पास ज़िम्मेदारी अधिक है लेकिन शक्ति और संसाधन कम हैं। हालाँकि फंड्स, फंक्शन्स और फंक्शनरीज़ (3Fs) के मामले में पारंपरिक चुनौतियाँ आज भी काफी प्रासंगिक हैं, लेकिन हम "फंक्शनलिटी" में आने वाली चुनौतियों की अनदेखी नही कर सकते।
चुनौतियाँ जो स्थानीय संस्थानों की कार्यक्षमता को प्रभावित करती हैं
समानांतर शासन का उद्भव: स्मार्ट सिटीज़ मिशन का उद्देश्य शहर के विकास हेतु विशेष उद्देश्य वाहन (स्पेशल पर्पज़ व्हीकल) स्थापित करना है। इसने शहरी स्थानीय सरकार के समानांतर एक संस्था बनाई है। यह कार्यात्मक अतिव्यापी स्थानीय निकायों के कमज़ोर होने का कारण बन सकता है।
टॉप-डाउन दृष्टिकोण: नीति आयोग की एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट (आकांक्षी ज़िला) योजना इन ज़िलों के टॉप-डाउन विकास की परिकल्पना करती है, जो न केवल स्थानीय सरकारों की भूमिका को कम करती है, बल्कि लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की भावना के भी खिलाफ है। इसके अलावा यह वन साइज़ फिट ऑल दृष्टिकोण भी स्थानीय सरकारों की कार्यक्षमता को प्रभावित करता है।
प्रभावी वितरण का अभाव: संविधान में स्थानीय स्वशासन (Local Governance)राज्य का विषय है, इसके परिणामस्वरूप पंचायतों और शहरी स्थानीय सरकारों को शक्ति और अधिकार का वितरण राज्यों के विवेक पर छोड़ दिया गया है।
भारत के अधिकांश राज्यों में स्थानीय निकायों को पर्याप्त कार्यात्मक स्वायत्तता प्रदान नहीं की गई है।
संरचनात्मक मुद्दे: कुछ ग्राम पंचायतों या शहरी स्थानीय सरकारों के पास अपना भवन भी नहीं है या यदि है भी तो शौचालय, पेयजल और बिजली कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है।
इसके अलावा स्थानीय निकायों में जैसे- सचिवों, जूनियर इंजीनियरों, कंप्यूटर ऑपरेटरों और डेटा एंट्री ऑपरेटरों आदि सहायक कर्मचारियों और कर्मियों की कमी है। इससे उनकी कार्यप्रणाली और सेवाओं के वितरण का कार्य प्रभावित होता है।
भ्रष्टाचार: स्थानीय निकाय भ्रष्टाचार से ग्रस्त हैं। इसके कारण स्थानीय निकाय ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं और बाद में विकास प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं।
आगे की राह
एक्टिविटी मानचित्रण: दूसरे एआरसी ने सिफारिश की थी कि सरकार के प्रत्येक स्तर के कार्यों का स्पष्ट रूप से सीमांकन होना चाहिये।
सब्सिडियरी के सिद्धांत को सुनिश्चित करना: दूसरे एआरसी के अनुसार, किसी भी कार्यक्रम के लिये कार्यान्वयन मशीनरी पर निर्णय लेते समय सहायक सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिये, अर्थात् केंद्रीय प्राधिकरण को वही कार्य करना चाहिये जो स्थानीय स्तर पर अधिक प्रभावी तरीके से नहीं हो सकता।
राजकोषीय संघवाद सुनिश्चित करना: चूँकि कार्यक्षमता वित्त की उपलब्धता पर भी निर्भर करती है, राजकोषीय जवाबदेही के साथ राजकोषीय स्वायत्तता स्थानीय निकायों के सामने आने वाली समस्याओं का दीर्घकालिक समाधान प्रदान कर सकती है।
प्रभावी लेखा परीक्षा: वित्तीय स्रोत, आंतरिक नियंत्रण की अपर्याप्तता, लागू कानूनों का अनुपालन और स्थानीय निकायों में शामिल सभी व्यक्तियों के नैतिक आचरण का निरीक्षण करने के लिये ज़िला स्तर पर राज्य सरकारों द्वारा लेखा परीक्षा समितियों का गठन किया जा सकता है।
इसमें सामाजिक अंकेक्षण को अनिवार्य बनाने की मेघालय सरकार की पहल अन्य राज्यों द्वारा अनुकरण करने योग्य है।
विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों का रूपांतरण: केंद्र और राज्य सरकारों के विभिन्न विकास कार्यक्रमों में वृद्धि किये जाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में मिशन अंत्योदय सही दिशा में उठाया गया एक कदम है।
निष्कर्ष
सरकारों को स्थानीय निकायों के लिये धन, कार्यों, और मानव संसाधन को विकसित करने के लिये पर्याप्त प्रयास करना चाहिये ताकि वे प्रभावी रूप से आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजना बना सकें।
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