नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

गिद्ध कार्य योजना 2020-25

  • 17 Nov 2020
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

डिक्लोफिनेक, गिद्ध कार्य योजना 2020-25

मेन्स के लिये:

गिद्ध संरक्षण हेतु सरकारी प्रयास 

चर्चा में क्यों? 

16 नवंबर, 2020 को केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने देश में गिद्धों के संरक्षण के लिये एक ‘गिद्ध कार्य योजना 2020-25’ (Vulture Action Plan 2020-25) शुरू की।

प्रमुख बिंदु:

  • पिछले कुछ वर्षों में गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट देखी गई है, कुछ प्रजातियों में यह गिरावट 90% तक है। 
  • भारत, 1990 के दशक के बाद से दुनिया में पक्षियों की आबादी में सबसे अधिक गिरावट वाले देशों में से एक है। 
  • हालाँकि केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय वर्ष 2006 से गिद्धों के लिये एक संरक्षण परियोजना चला रहा है, किंतु अब इस परियोजना को वर्ष 2025 तक बढ़ाकर न केवल उनकी संख्या में गिरावट को रोकना है बल्कि भारत में गिद्धों की संख्या को सक्रिय रूप से बढ़ाना है।
  • भारत में गिद्धों की नौ अभिलिखित प्रजातियाँ हैं- 

ओरिएंटल व्हाइट-बैक्ड 

(Oriental White-Backed)

हिमालयन (Himalayan)

बियर्डड (Bearded)

लॉन्ग-बिल्ड (Long-Billed)

रेड-हेडेड (Red-Headed)

सिनेरियस (Cinereous)

स्लेंडर-बिल्ड (Slender-Billed)

इजिप्टियन (Egyptian)

यूरेशियन ग्रिफन 

(Eurasian Griffon)

Vulture

  • वर्ष 1990 से वर्ष 2007 के बीच गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically-Endangered) तीन प्रजातियों (ओरिएंटल व्हाइट-बैक, लॉन्ग-बिल्ड, स्लेंडर-बिल्ड) की संख्या में 99% तक गिरावट देखी गई है।   
  • रेड-हेडेड गिद्ध भी गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically-Endangered) श्रेणी के अंतर्गत आ गए हैं, इनकी संख्या में 91% की गिरावट आई है, जबकि इजिप्टियन गिद्धों की संख्या में 80% तक गिरावट आई है।
  • इजिप्टियन गिद्ध को 'संकटग्रस्त' (Endangered) श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है, जबकि हिमालयन, बियर्ड और सिनेरियस गिद्धों को ‘निकट संकटग्रस्त’ (Near Threatened) श्रेणी में रखा गया है।

भारत में गिद्धों की आबादी में कमी का कारण: 

  • गिद्धों की आबादी में कमी के बारे में जानकारी 90 के दशक के मध्य में सुर्खियों में आई और वर्ष 2004 में इस गिरावट का कारण डिक्लोफिनेक (Diclofenac) को बताया गया जो पशुओं के शवों को खाते समय गिद्धों के शरीर में पहुँच जाती है।
  • पशुचिकित्सा में प्रयोग की जाने वाली दवा डिक्लोफिनेक को वर्ष 2006 में प्रतिबंधित कर दिया गया। इसका प्रयोग मुख्यत: पशुओं में बुखार/सूजन/उत्तेजन की समस्या से निपटने में किया जाता था।
  • डिक्लोफिनेक दवा के जैव संचयन (शरीर में कीटनाशकों, रसायनों तथा हानिकारक पदार्थों का क्रमिक संचयन) से गिद्धों के गुर्दे (Kidney) काम करना बंद कर देते हैं जिससे उनकी मौत हो जाती है।
  • डिक्लोफिनेक दवा गिद्धों के लिये प्राणघातक साबित हुई। गौरतलब है कि डिक्लोफिनेक से प्रभावित जानवरों के शवों का सिर्फ 0.4-0.7% हिस्सा ही गिद्धों की आबादी के 99% को नष्ट करने के लिये पर्याप्त है।

गिद्ध संरक्षण प्रजनन कार्यक्रम

(Vulture Conservation Breeding Programme):

  • गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र हरियाणा वन विभाग तथा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी का एक संयुक्त कार्यक्रम है।
  • गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र को वर्ष 2001 में स्थापित गिद्ध देखभाल केंद्र के नाम से जाना जाता था।
  • यह कार्यक्रम सफल रहा है और गंभीर रूप से संकटग्रस्त तीन प्रजातियों को पहली बार संरक्षण हेतु यहाँ रखा गया था।
  • इसके तहत आठ केंद्र स्थापित किये गए हैं और अब तक तीन प्रजातियों के 396 गिद्धों को इसमें शामिल किया जा चुका है।

रेड-हेडेड एवं इजिप्टियन गिद्धों के लिये संरक्षण कार्यक्रम: 

  • MoEFCC ने अब दोनों (रेड-हेडेड एवं इजिप्टियन गिद्धों) के लिये प्रजनन कार्यक्रमों के साथ-साथ संरक्षण योजनाएँ भी शुरू की हैं।

गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र कार्यक्रम

(Vulture Safe Zone Programme):

  • ‘गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र कार्यक्रम’ को देश के उन आठ अलग-अलग स्थानों पर लागू किया जा रहा है जहाँ गिद्धों की आबादी विद्यमान है। इनमें से दो स्थान उत्तर प्रदेश में हैं।
  • ‘गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र’ में डिक्लोफिनेक का न्यूनतम उपयोग सुनिश्चित करके गिद्धों की आबादी को सुरक्षित करने का प्रयास किया जाता है।किसी क्षेत्र को गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र तब घोषित किया जाता है जब लगातार दो वर्षों तक ‘अंडरकवर फार्मेसी एवं मवेशी शव सर्वेक्षण’ (Undercover Pharmacy and Cattle Carcass Surveys) में कोई ज़हरीली दवा नहीं मिलती है और गिद्धों की आबादी स्थिर हो तथा घट नहीं रही हो।

‘गिद्ध कार्य योजना 2020-25’ का उद्देश्य: 

  • इसका उद्देश्य पशु चिकित्सा संबंधी NSAIDs (Nonsteroidal Anti-inflammatory Drug) की बिक्री का विनियमन करना है, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि पशुधन का इलाज केवल योग्य पशु चिकित्सकों द्वारा किया जाए।

प्रयास: 

  • MoEFCC ने गिद्धों में मौजूद NSAIDs का परीक्षण करने और नए NSAIDs को विकसित करने की योजना बनाई है ताकि इसका प्रभाव गिद्धों पर न पड़े।
  • उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु से प्राप्त नमूनों एवं सूचनाओं के आधार पर मौजूद गिद्ध संरक्षण केंद्रों के साथ-साथ देश भर में अतिरिक्त संरक्षण प्रजनन केंद्रों की स्थापना की भी योजना बनाई जा रही है।
  • उत्तर भारत में पिंजौर (हरियाणा), मध्य भारत में भोपाल, पूर्वोत्तर में गुवाहाटी और दक्षिण भारत में हैदराबाद जैसे विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये चार बचाव केंद्र प्रस्तावित हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow