जैव विविधता और पर्यावरण
गिद्ध संरक्षण: एक सफल प्रयास
- 18 Sep 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र (Vulture Conservation and Breeding Centres– VCBCs) में गिद्धों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई, जो 700 से अधिक थी।
पृष्ठभूमि
- गिद्धों की नौ प्रजातियाँ भारत की स्थानिक हैं, परंतु अधिकांश पर विलुप्त होने का खतरा है।
- आईयूसीएन के अनुसार गिद्धों की नौ प्रजातियों की स्थिति निम्न है-
- वर्ष 1990 के उत्तरार्द्ध में, जब देश में गिद्धों की संख्या में तेजी से गिरावट होने लगी उस दौरान राजस्थान के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में सफेद पीठ वाले एक गिद्ध (White-backed vulture) को बचाया गया जहाँ गिद्धों की संख्या में चिंताजनक दर से गिरावट हो रही थी।
- गिद्धों की मौत के कारणों पर अध्ययन करने के लिये वर्ष 2001 में हरियाणा के पिंजौर में एक गिद्ध देखभाल केंद्र (Vulture Care Centre-VCC) स्थापित किया गया। कुछ समय बाद वर्ष 2004 में गिद्ध देखभाल केंद्र को उन्नत (Upgrade) करते हुए देश के पहले ‘गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र’ की स्थापना की गई।
प्रमुख बिंदु
- वर्तमान में गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र में गिद्धों की तीन प्रजातियों व्हाइट-बैक्ड (White– backed), लॉन्ग-बिल्ड (long-billed) और स्लेंडर-बिल्ड (Slender–billed) का सरंक्षण किया जा रहा है।
- गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र की स्थापना उस निर्णायक समय पर की गई जब गिद्धों की संख्या में 99 प्रतिशत तक गिरावट दर्ज की जा चुकी थी।
- इस समय देश में नौ गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र हैं, जिनमें से तीन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (Bombay Natural History Society-BNHS) के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रशासित किये जा रहे हैं।
- गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्रों का उद्देश्य न केवल गिद्धों की देखभाल करना व उनका संरक्षण करना है बल्कि उन्हें जंगली क्षेत्रों में छोड़ना भी है।
- इन केंद्रों का पहला उद्देश्य गिद्धों की लुप्तप्राय तीन प्रजातियों में से प्रत्येक से सैकड़ों की संख्या में गिद्धों के जोड़े पैदा करना है।
- भारत के संरक्षण प्रयासों में मुख्य फोकस आईयूसीएन की गंभीर संकटग्रस्त सूची में शामिल गिद्धों की तीन प्रजातियाँ हैं, जो निम्नलिखित हैं-
- व्हाइट-बैक्ड वल्चर (Whilte-backed Vulture)
- स्लेंडर-बिल्ड वल्चर (Slender-billed vulture)
- लॉन्ग-बिल्ड वल्चर (long-billed vulture)
संकट के कारण
- गिद्धों की संख्या में गिरावट का प्रमुख कारण डिक्लोफिनेक (Diclofenac) दवा है, जो पशुओं के शवों को खाते समय गिद्धों के शरीर में पहुँच जाती है।
- पशुचिकित्सा में प्रयोग की जाने वाली दवा डिक्लोफिनेक को वर्ष 2008 में प्रतिबंधित कर दिया गया। इसका प्रयोग मुख्यत: पशुओं में बुखार/सूजन/उत्तेजन की समस्या से निपटने में किया जाता था।
- डिक्लोफिनेक दवा के जैव संचयन (शरीर में कीटनाशकों, रसायनों तथा हानिकारक पदार्थों का क्रमिक संचयन) से गिद्धों के गुर्दे (Kidney) काम करना बंद कर देते हैं जिससे उनकी मौत हो जाती है।
- डिक्लोफिनेक दवा गिद्धों के लिये प्राणघातक साबित हुई। मृत पशुओं में, दवा से 1% प्रभावित पशु भी कम समय में गिद्धों की बड़ी संख्या को मार सकती है।
- दवा से प्रभावित पशुओं के शवों से स्थानीय आवारा जानवर भी मारे गए हैं परंतु गिद्धों की संख्या में गिरावट का यह प्रमुख कारण है।
- वन विभाग शिकारियों को दूर रखने के लिये पशुओं के शवों को जला रहा है या फिर दफन कर रहा है। इस प्रक्रिया से गिद्धों के लिये भोजन की कमी हो रही है।
गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र
- गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र हरियाणा वन विभाग तथा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी का एक संयुक्त कार्यक्रम है।
- गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र को वर्ष 2001 में स्थापित गिद्ध देखभाल केंद्र के नाम से जाना जाता था।
- ‘साउथ एशिया वल्चर रिकवरी प्लान’ के प्रकाशित होने के साथ ही वर्ष 2004 में गिद्ध देखभाल केंद्र के उन्नत संस्करण के रूप में गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र की स्थापना की गई।
आगे की राह
- वन विभाग को गिद्धों के संरक्षण के संदर्भ में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है, तथा ऐसे सुरक्षित क्षेत्रों (Safe Zones) के निर्माण पर ध्यान देना होगा जहाँ गिद्धों की अत्यधिक संख्या है।
- अब तक नौ राज्यों में गिद्धों के लिये सुरक्षित क्षेत्रों के निर्माण के कार्यक्रम प्रारंभ किये जा चुके है।
- गिद्ध धीमी प्रजनन दर वाले पक्षी हैं, इसलिये इन्हें विलुप्त होने से बचाने के लिये तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है।