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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आपदा : कारण एवं प्रभाव

  • 13 Oct 2017
  • 11 min read

संदर्भ

हाल ही भारत, बांग्लादेश व नेपाल में आई भयंकर बाढ़ और कैरिबियन और अमेरिका में आए श्रेणी 5 के हरिकेन तथा अफ्रीका के 20 देशों में पड़े सूखे ने इन क्षेत्रों में भारी तबाही मचा दी थी, जिससे एक ओर तो सैकड़ों लोगों की मौत हुईं, वहीं दूसरी ओर लाखों लोगों का जीवन भी अस्त-व्यस्त हो चुका है। विदित हो कि प्रतिवर्ष 13 अक्टूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस’ (International Day for Disaster Reduction) मनाया जाता है। इस दिन आपदा के प्रभाव को न्यूनतम करने हेतु विश्व समुदाय द्वारा किये गए उपायों का आकलन किया जाता है। 

आपदा का अर्थ

  • आपदा अचानक होने वाली विध्वंसकारी घटना को कहा जाता है, जिससे व्यापक भौतिक क्षति व जान-माल का नुकसान होता है। 
  • यह वह प्रतिकूल स्थिति है जो मानवीय, भौतिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक क्रियाकलापों को व्यापक तौर पर प्रभावित करती है।
  • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 में- आपदा से तात्पर्य किसी क्षेत्र में हुए उस विध्वंस, अनिष्ट, विपत्ति या बेहद गंभीर घटना से है, जो प्राकृतिक या मानवजनित कारणों से या दुर्घटनावश अथवा लापरवाही से घटित होती है और जिसमें बहुत बड़ी मात्रा में मानव जीवन की हानि होती है।  
  • इसमें या तो मानव पीड़ित होता है अथवा संपत्ति को हानि पहुँचती है और पर्यावरण का भारी क्षरण होता है। यह घटना प्रायः प्रभावित क्षेत्र के समुदाय की सामना करने की क्षमता से अधिक भयावह होती है।

आपदाओं का कारण क्या है?

  • वर्तमान समय में समुद्रों के तापमान के बढ़ने से वायुमंडल में जलवाष्प की मात्र बढ़ रही है, जिससे कुछ स्थानों पर तो अत्यधिक वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जबकि अन्य स्थानों पर सूखे का भयावह रूप देखने को मिलता है।  इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे क्षेत्र भी होते हैं जहाँ बाढ़ तथा सूखे की स्थिति एक साथ उत्पन्न हो जाती है| अतः आपदा का प्रभाव बहुत विध्वंसकारी होता है।  
  • विश्व में बढ़ते समुद्री स्तर को मापने के लिये टॉपेक्स/पोसीडॉन (TOPEX/Poseidon) नामक सबसे पहली सेटेलाइट को आज से 25 वर्ष पूर्व लॉन्च किया गया था और तब से लेकर अब तक किये गए समुद्री स्तरों के मापन से इस बात की पुष्टि हुई है कि प्रतिवर्ष समुद्र के वैश्विक स्तर में 3.4 मिलीमीटर की वृद्धि हो रही है।  अतः इन 25 वर्षों के दौरान इसमें कुल 85 मिलीमीटर की वृद्धि हुई है।  समुद्रों के तापमान में होने वाली वृद्धि और उनका गर्म होना विश्व स्तर पर उष्णकटिबंधीय तूफानों की तीव्रता में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है। 

प्रभाव

  • सबसे कम विकसित देशों पर इन आपदाओं का गहरा प्रभाव पड़ता है तथा ये वहाँ के जन-जीवन के लिये खतरा बन सकती हैं, जबकि विकसित और मध्यम आयवर्ग वाले देशों में बुनियादी ढांचे पर इनका अधिक प्रभाव पड़ता है। 
  • वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष प्रदूषण से 4.3 मिलियन लोगों की मृत्यु होती है, परन्तु इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता।  ऊष्मा को अवशोषित करने वाली हरित गृह गैसों का प्रभाव मौसमी घटनाओं पर पड़ता है| अतः इस ओर ही अधिक ध्यान केन्द्रित किया जाता है। 
  • पिछले दो वर्षों के दौरान उन देशों के 40 मिलियन से अधिक लोगों ने आपदाओं के कारण अपने घर छोड़ दिये, जो वैश्विक तापन में बहुत कम योगदान करते हैं। 

भारत में आपदा को निम्न श्रेणियों में बाँटा गया है-

  • जल एवं जलवायु से जुड़ी आपदाएँ :  चक्रवात, बवण्डर एवं तूफान, ओलावृष्टि, बादल फटना, लू व शीतलहर, हिमस्खलन, सूखा, समुद्र-क्षरण, मेघ-गर्जन व बिजली का कड़कना|
  • भूमि संबंधी आपदाएँ : भूस्खलन, भूकंप, बांध का टूटना, खदान में आग|
  • दुर्घटना संबंधी आपदाएँ: जंगलों में आग लगना, शहरों में आग लगना, खदानों में पानी भरना, तेल का फैलाव, प्रमुख इमारतों का ढहना, एक साथ कई बम विस्फोट, बिजली से आग लगना, हवाई, सड़क एवं रेल दुर्घटनाएँ|
  • जैविक आपदाएँ : महामारियॉ, कीटों का हमला, पशुओं की महामारियॉ, जहरीला भोजन|
  • रासायनिक, औद्योगिक एवं परमाणु संबंधी आपदाएं, रासायनिक गैस का रिसाव, परमाणु बम गिरना।

भारत की स्थिति

  • भू जलवायु परिस्थितियों के कारण भारत पारंपरिक रूप से प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील रहा है। यहाँ बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप तथा भूस्‍खलन की घटनाएँ आम हैं।  
  • भारत के लगभग 60% भू भाग में विभिन्‍न तीव्रता के भूकंपों का खतरा बना रहता है।  40 मिलियन हेक्‍टेयर से अधिक क्षेत्र में बारंबार बाढ़ आती है। कुल 7,516 कि.मी. लंबी तटरेखा में से 5700 कि.मी. में चक्रवात का खतरा बना रहता है। 
  • यहाँ  की खेती योग्‍य क्षेत्र का लगभग 68% भाग सूखे के प्रति संवेदनशील है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और पूर्वी व पश्चिम घाट के इलाकों में सुनामी का संकट बना रहता है। 
  • देश के कई भागों में पतझड़ी व शुष्‍क पतझड़ी वनों में आग लगना आम बात है। हिमालयी क्षेत्र तथा पूर्वी व पश्चिम घाट के इलाकों में अक्‍सर भूस्‍खलन का खतरा रहता है।

आपदा प्रबंधन सहायता कार्यक्रम

  • आपदा प्रबंधन सहायता कार्यक्रम के तहत देश में प्राकृतिक आपदाओं के कुशल प्रबंधन हेतु अपेक्षित आँकड़ों व सूचनाओं को उपलब्‍ध कराने के लिये इसरो द्वारा अंतरिक्ष में स्‍थापित आधारभूत संरचनाओं से प्राप्‍त सेवाओं का इष्‍टतम समायोजन किया जाता है।
  • भू-स्थिर उपग्रह (संचार व मौसम विज्ञान), निम्‍न पृथ्‍वी कक्षा के भू-प्रेक्षण उपग्रह, हवाई सर्वेक्षण प्रणाली और भू-आधारित मूल संरचनाएँ आपदा प्रबंधन प्रेक्षण प्रणाली के प्रमुख घटक हैं।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • आधुनिक युग का भीषणतम तूफान वर्ष 1201 में मिस्र एवं सीरिया में आया था, जिसमें 10 लाख लोग मारे गए थे। इसके पश्चात् सन् 1556 में चीन में आए भूकंप में 8.50 लाख व्यक्तियों की मौत हुई थी।
  • भारत का ज्ञात भीषणतम भूकंप सन् 1737 में कलकत्ता में आया था, जिसमें 3 लाख लोग हताहत हुए थे। 
  • रूस, चीन, सीरिया, मिस्र, ईरान, जापान, जावा, इटली, मोरक्को, तुर्की, मैक्सिको, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, यूनान, इण्डोनेशिया तथा कोलम्बिया इत्यादि भूकंप के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र हैं।
  • हिमालय क्षेत्र आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील है, क्योंकि इस क्षेत्र की भीतरी चट्टानें निरंतर उत्तर की ओर खिसक रही हैं। विश्वभर में 10 ऐसे खतरनाक ज्वालामुखी हैं जो एक बड़े क्षेत्र को तबाह कर सकते हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय-आपदा शमन रणनीति (यूएनआईएसडीआर) के अनुसार, प्राकृतिक आपदाओं के मामले में चीन के बाद दूसरा स्थान भारत का है। 
  • भारत में आपदाओं की रूपरेखा मुख्यतः भू-जलवायु स्थितियों और स्थालाकृतियों की विशेषताओं से निर्धारित होती है और उनमें जो अंतनिर्हित कमज़ोरियाँ होती हैं उन्हीं के फलस्वरूप विभिन्न तीव्रता की आपदाएँ वार्षिक रूप से घटित होती रहती हैं। आवृति, प्रभाव और अनिश्चितताओं के लिहाज़ से जलवायु-प्रेरित आपदाओं का स्थान सबसे ऊपर है।
  • भारत के भू-भाग का लगभग 59 प्रतिशत भूकंप की संभावना वाला क्षेत्र है। हिमालय और उसके आसपास के क्षेत्र, पूर्वोत्तर, गुजरात के कुछ क्षेत्र और अंडमान निकोबार द्वीप समूह भूकंपीय दृष्टि से सबसे सक्रिय क्षेत्र हैं। 

निष्कर्ष

यह स्पष्ट है आपदा एक ऐसी घटना है जिसका प्रभाव बड़े क्षेत्र में पड़ता है और इसकी पूरी तरीके से रोकथाम करना कोई आसान कार्य नहीं है।  परन्तु इसका प्रबंधन अवश्य ही किया जा सकता है।  चूँकि विश्व में सभी देश किसी न किसी प्रकार की आपदा से प्रभावित  हैं,अतः यह आवश्यक है कि विश्व के सभी देश इस दिशा में मिलकर प्रयास करें।  आपदा की रोकथाम करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समन्वय की आवश्यकता होगी।  इसके अतिरिक्त कार्बन उत्सर्जन और पृथ्वी की प्राकृतिक अवशोषण क्षमता के मध्य पारिस्थितिक संतुलन स्थापित करके भी निश्चित रूप से इस दिशा में अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।

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