इन्फोग्राफिक्स
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
कैंसर रोधी mRNA वैक्सीन
प्रिलिम्स के लिये:mRNA वैक्सीन, mRNA-4157/V940, कैंसर, Covid-19, प्रोग्राम्ड डेथ-1, वैक्सीन के प्रकार मेन्स के लिये:वैक्सीन के प्रकार और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मॉडर्ना और MSD (मर्क एंड कंपनी) द्वारा निर्मित मेसेंजर रिबोन्यूक्लिक एसिड (mRNA-4157/V940) वैक्सीन और इम्यूनोथेरेपी दवा कीट्रूडा (Keytruda) के एक साथ लेने संबंधी परीक्षण में मेलेनोमा, एक प्रकार के त्वचा कैंसर के विरुद्ध आशाजनक परिणाम देखने को मिले हैं।
एडवांस्ड मेलेनोमा हेतु mRNA वैक्सीन थेरेपी:
- परिचय:
- यह प्रति रोगी के लिये व्यक्तिगत रूप से तैयार किया गया कैंसर वैक्सीन है।
- इस वैक्सीन को बनाने के लिये शोधकर्त्ता द्वारा रोगियों के ट्यूमर और स्वस्थ ऊतक के नमूने लिये जाते हैं।
- उनके आनुवंशिक अनुक्रम को डिकोड करने और केवल कैंसर से जुड़े उत्परिवर्ती प्रोटीन को अलग करने के लिये नमूनों का विश्लेषण करने के बाद प्राप्त जानकारी का उपयोग वैक्सीन को तैयार करने हेतु किया गया।
- व्यक्तिगत कैंसर वैक्सीन उसी mRNA तकनीक का उपयोग करती है जिसका उपयोग कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिये किया गया था।
- mRNA की वैक्सीन हमारी कोशिकाओं को प्रोटीन बनाने संबंधी प्रक्रिया को समझने में मदद करती हैं जो हमारे शरीर के अंदर एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करती है।
- क्रियाविधि:
- यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कैंसर कोशिकाओं को खोजने और नष्ट करने में मदद करती है।
- व्यक्तिगत कैंसर वैक्सीन प्रोग्राम्ड डेथ 1 (पीडी-1) नामक प्रोटीन को निष्क्रिय करने के लिये कीट्रूडा के साथ मिलकर काम करती है, जो ट्यूमर को प्रतिरक्षा प्रणाली से बचने में मदद करता है।
- रोगी में इंजेक्ट किये जाने के बाद रोगी की कोशिकाएँ एक निर्माण इकाई के रूप में कार्य करती हैं, जो उन उत्परिवर्तनों की सटीक प्रतिकृतियाँ बनाती हैं जिन्हें प्रतिरक्षा प्रणाली पहचान सकती है और समाप्त कर सकती है।
- वायरस के बिना म्यूटेशन के संपर्क में आने के बाद शरीर संक्रमण से लड़ना सीख जाता है।
- प्रभाविकता (Efficacy):
- वैक्सीन ने कैंसर से मरने या कैंसर के बढ़ने के जोखिम में 44% की कमी प्रदर्शित की।
- mRNA-4157/V940 और कीट्रूडा का संयोजन सामान्य: सुरक्षित था एवं एक साल के उपचार के बाद अकेले कीट्रूडा की तुलना में लाभ प्रदर्शित करता है।
वैक्सीन के विभिन्न प्रकार:
- निष्क्रिय वैक्सीन:
- निष्क्रिय वैक्सीन रोग पैदा करने वाले रोगाणु के निष्क्रिय संस्करण का उपयोग करती है।
- इस प्रकार के वैक्सीन रोगज़नक को निष्क्रिय करके बनाया जाता है, सामान्यतः ऊष्मा या रसायनों जैसे कि फॉर्मेल्डीहाइड या फॉर्मेलिन का उपयोग किया जाता है। यह रोगज़नक की दोहराने की क्षमता को नष्ट कर देता है या इनकी प्रजनन क्षमता को समाप्त कर दिया जाता है, रोगजनक के विभिन्न हिस्से बरकरार रहते हैं जैसे-एंटीजन (रासायनिक संरचना) जिसकी पहचान प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा की जाती है।
- क्योंकि रोगजनक मृत होता है, इसलिये न तो यह प्रजनन करने में सक्षम होता है, न ही किसी रोग का कारण बन सकता है। अतः कम प्रतिरक्षा वाले लोगों जैसे कि वृद्ध एवं सहरुग्णता वाले लोगों को इन्हें दिया जाना सुरक्षित होता है और समय के साथ कई खुराक (बूस्टर शॉट्स) की आवश्यकता हो सकती है।
- वे सुरक्षा के लिये उपयोग किये जाते हैं: हेपेटाइटिस ए, फ्लू (केवल शॉट), पोलियो (केवल शॉट), रेबीज़।
- सक्रिय वैक्सीन (Live-attenuated Vaccines):
- सक्रिय वैक्सीन रोग पैदा करने वाले रोगाणु के कमज़ोर (या क्षीण) रूप का उपयोग करती हैं।
- क्योंकि ये वैक्सीन प्राकृतिक संक्रमण के इतने समान हैं कि वे रोकने में मदद करती हैं, वे एक मज़बूत और लंबे समय तक चलने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली का निर्माण करती हैं।
- हालाँकि ये वैक्सीन आमतौर पर कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को नहीं दी जा सकती है।
- सक्रिय टीकों का उपयोग निम्न रोगों के विरुद्ध किया जाता है: खसरा, कण्ठमाला, रूबेला (MMR संयुक्त वैक्सीन), रोटावायरस, चेचक आदि।
- मैसेंजर (m) RNA वैक्सीन:
- mRNA वैक्सीन प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर करने के लिये प्रोटीन बनाती हैं। mRNA टीकों के अन्य प्रकार के टीकों की तुलना में कई लाभ होते हैं जिनमें कम निर्माण समय भी शामिल है तथा वैक्सीनीकरण कराने वाले व्यक्ति में बीमारी पैदा करने का कोई ज़ोखिम नहीं होता है। क्योंकि इसमें एक मृत वायरस प्रयोग होता है।
- टीकों का उपयोग कोविड-19 जैसी महामारी से बचाव के लिये किया जाता है।
- सब-यूनिट, पुनः संयोजक, पॉलीसेकेराइड और संयुग्म वैक्सीन:
- इनमें प्रोटीन, चीनी या कैप्सिड (रोगाणु के चारों ओर एक आवरण) जैसे रोगाणु के विशिष्ट टुकड़ों का उपयोग किया जाता है। यह बहुत मज़बूत प्रतिरक्षा प्रणाली प्रदान करता है।
- इनका उपयोग कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोगों पर भी किया जा सकता है।
- इन टीकों का उपयोग हिब (हीमोफिलस एंफ्लूएंज़ा टाइप बी) रोग, हेपेटाइटिस बी, HPV (ह्यूमन पेपिलोमावायरस), न्यूमोकोकल रोग से बचाने के लिये किया जाता है।
- टॉक्सोइड वैक्सीन:
- इनमें रोग का कारण बनने वाले रोगाणु द्वारा निर्मित विष (हानिकारक उत्पाद) का उपयोग किया जाता है। यह रोगाणु के उन हिस्सों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पैदा करते हैं जो रोगाणु के बजाय रोग का कारण बनते हैं। इसका मतलब है कि प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पूरे रोगाणु के बजाय विष को लक्षित करती है।
- डिप्थीरिया, टेटनस से बचाव के लिये टॉक्सोइड टीकों का उपयोग किया जाता है।
- वायरल वेक्टर वैक्सीन:
- एडिनोवायरस कुछ कोविड-19 टीकों में उपयोग किये जाने वाले वायरल वैक्टर में से एक है जिसका नैदानिक परीक्षणों में अध्ययन किया जा रहा है।
- टीकों का उपयोग कोविड-19 से बचाव के लिये किया जाता है।
- कई अलग-अलग वायरस को वैक्टर के रूप में इस्तेमाल किया गया है, जिसमें इन्फ्लूएंज़ा, वेसिकुलर स्टामाटाइटिस वायरस (वीएसवी), खसरा वायरस और एडेनोवायरस शामिल हैं, जो सामान्य सर्दी का कारण बनते हैं।
- वायरल वेक्टर वैक्सीन सुरक्षा प्रदान करने के लिये वेक्टर के रूप में एक अलग वायरस के संशोधित संस्करण का उपयोग करते हैं।
- टीकों का उपयोग कोविड-19 से बचाव के लिये किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. 'रिकॉम्बिनेंट वेक्टर वैक्सीन' के संबंध में हाल के घटनाक्रमों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. कोविड-19 वैश्विक महामारी को रोकने के लिये बनाई जा रही वैक्सीनों के प्रसंग में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: B व्याख्या:
अत: विकल्प B सही है। प्रश्न. वैक्सीन के विकास के पीछे मूल सिद्धांत क्या है? वैक्सीन कैसे काम करती हैं? कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिये भारतीय वैक्सीन निर्माताओं द्वारा क्या दृष्टिकोण अपनाए गए थे? (मुख्य परीक्षा, 2022) |
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
डीपफेक टेक्नोलॉजी
प्रिलिम्स के लिये:डीप फेक टेक्नोलॉजी, डीप सिंथेसिस टेक्नोलॉजी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक। मेन्स के लिये:भारत की सुरक्षा पर डीप फेक तकनीक का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
चीन का साइबरस्पेस प्रशासन साइबर स्पेस वाच्डॉग, डीप सिंथेसिस टेक्नोलॉजी के उपयोग को प्रतिबंधित करने और गलत सूचना पर अंकुश लगाने के लिये नए नियम बना रहा है।
- नीति के लिये डीप सिंथेसिस सेवा प्रदाताओं और उपयोगकर्त्ताओं को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि किसी भी छेड़छाड़ की गई सामग्री को स्पष्ट रूप से पहचान और उसके स्रोत का पता लगाया जा सके।
डीप सिंथेसिस
- डीप सिंथेसिस को आभासी दृश्य बनाने के लिये पाठ, चित्र, ऑडियो और वीडियो उत्पन्न करने के लिये शिक्षा एवं संवर्द्धित वास्तविकता सहित प्रौद्योगिकियों के उपयोग के रूप में परिभाषित किया गया है।
- प्रौद्योगिकी के सबसे खतरनाक अनुप्रयोगों में से एक डीप फेक है, जहाँ सिंथेटिक मीडिया का उपयोग एक व्यक्ति के चेहरे या आवाज़ को दूसरे व्यक्ति के लिये स्वैप/बदलने के लिये किया जाता है।
- प्रौद्योगिकी की प्रगति के साथ डीप फेक का पता लगाना कठिन होता जा रहा है।
डीप फेक टेक्नोलॉजी
- परिचय:
- डीप फेक तकनीक शक्तिशाली कंप्यूटर और शिक्षा का उपयोग करके वीडियो, छवियों, ऑडियो में हेरफेर करने की एक विधि है।
- इसका उपयोग फर्जी खबरें उत्पन्न करने और अन्य अवैध कामों के बीच वित्तीय धोखाधड़ी करने के लिये किया जाता है।
- यह पहले से मौजूद वीडियो, चित्र या ऑडियो पर एक डिजिटल सम्मिश्रण द्वारा आवरित करता है; साइबर अपराधी इसक लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक का इस्तेमाल करते हैं।
- शब्द की उत्पत्ति:
- डीप फेक शब्द की शुरुआत वर्ष 2017 में हुई थी, जब एक अनाम Reddit उपयोगकर्त्ता ने खुद को "डीप फेक" कहा था।
- इस उपयोगकर्त्ता ने अश्लील वीडियो बनाने और पोस्ट करने के लिये गूगल की ओपन-सोर्स, डीप-लर्निंग तकनीक में हेरफेर किया।
- दुरुपयोग:
- डीप फेक (Deep Fake) तकनीक का उपयोग अब घोटालों और झाँसे, सेलिब्रिटी पोर्नोग्राफी, चुनाव में हेर-फेर, सोशल इंजीनियरिंग, स्वचालित दुष्प्रचार हमले, पहचान की चोरी और वित्तीय धोखाधड़ी आदि जैसे नापाक उद्देश्यों के लिये किया जा रहा है।
- डीप फेक तकनीक का उपयोग पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आदि जैसे उल्लेखनीय व्यक्तित्वों को प्रतिरूपित करने के लिये किया गया है।
- डीप फेक (Deep Fake) तकनीक का उपयोग अब घोटालों और झाँसे, सेलिब्रिटी पोर्नोग्राफी, चुनाव में हेर-फेर, सोशल इंजीनियरिंग, स्वचालित दुष्प्रचार हमले, पहचान की चोरी और वित्तीय धोखाधड़ी आदि जैसे नापाक उद्देश्यों के लिये किया जा रहा है।
डीप फेक से निपटने के लिये अन्य देश का योगदान
- यूरोपीय संघ:
- यूरोपीय संघ के पास डीप फेक के माध्यम से दुष्प्रचार के प्रसार को रोकने के लिये एक अद्यतन आचार संहिता है।
- संशोधित कोड में गूगल, मेटा और ट्विटर सहित तकनीकी कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर डीप फेक और फर्जी खाते का मुकाबला करने के उपाय करने की आवश्यकता है।
- संहिता पर हस्ताक्षर करने के बाद उनके पास अपने उपायों को लागू करने के लिये छह महीने का समय होता है।
- अद्यतन संहिता के अनुसार, यदि अनुपालन नहीं किया जाता है, तो इन कंपनियों को अपने वार्षिक वैश्विक कारोबार के 6% तक के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
- वर्ष 2018 में पेश की गई, गलत सूचना (Disinformation) पर प्रैक्टिस कोड पहली बार दुनिया भर के उद्योग जगत के प्लेयर्स को गलत सूचना का मुकाबला करने के लिये एकीकृत करता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका:
- डीप फेक तकनीक का मुकाबला करने के लिये डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (Department of Homeland Security-DHS) की सहायता हेतु अमेरिका ने बाईपार्टीसन डीपफेक टास्क फोर्स एक्ट (Deepfake Task Force Act) पेश किया।
- यह उपाय DHS को डीप फेक का वार्षिक अध्ययन करने, उपयोग की गई तकनीक का आकलन करने, विदेशी और घरेलू संस्थाओं द्वारा इसके उपयोग को ट्रैक करने और इससे निपटने के लिये उपलब्ध प्रतिउपायों के साथ आने का निर्देश देता है।
- कैलिफोर्निया और टेक्सास ने ऐसे कानून पारित किये हैं जो किसी चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने वाले डीप फेक वीडियो के प्रकाशन और वितरण को अपराध मानते हैं। वर्जीनिया में कानून गैर-सहमति वाले डीप फेक पोर्नोग्राफी के वितरण पर आपराधिक दंड है।
- भारत:
- हालाँकि भारत में डीप फेक तकनीक के इस्तेमाल के खिलाफ कोई कानूनी नियम नहीं हैं।
- हालाँकि इस तकनीक के दुरुपयोग के संबंध में विशिष्ट कानूनों की मांग की जा सकती है, जिसमें कॉपीराइट उल्लंघन, मानहानि और साइबर अपराध आदि शामिल हों।
- हालाँकि भारत में डीप फेक तकनीक के इस्तेमाल के खिलाफ कोई कानूनी नियम नहीं हैं।
आगे की राह:
- मीडिया उपभोक्ताओं के रूप में हमें मिलने वाली जानकारी की व्याख्या, समझ और उपयोग करने में सक्षम होना चाहिये।
- इस समस्या से निपटने का सबसे अच्छा तरीका कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा समर्थित तकनीकी समाधान है जो डीप फेक की पहचान कर सकता और उन्हें ब्लॉक कर सकता है।
- डीप फेक से जुड़े मुद्दों को हल करने से पहले मीडिया साक्षरता में सुधार करने की आवश्यकता।
- डीप फेक का पता लगाने, मीडिया को प्रमाणित करने और आधिकारिक स्रोतों को बढ़ाने के लिये उपयोग में आसान और सुलभ प्रौद्योगिकी समाधानों की भी आवश्यकता है।
- समाज के स्तर पर, डीप फेक के खतरे का मुकाबला करने के लिये, इंटरनेट पर मीडिया के एक महत्त्वपूर्ण उपभोक्ता होने की ज़िम्मेदारी लेने की आवश्यकता है, सोशल मीडिया पर साझा करने से पहले सोचने और समझने, एवं समाधान का हिस्सा बंनने का प्रयास करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
ब्लैक कार्बन
प्रिलिम्स के लिये:ब्लैक कार्बन, इसरो, कार्बन डाइऑक्साइड, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन। मेन्स के लिये:पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, संरक्षण। |
चर्चा में क्यों?
लोकसभा में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री ने ब्लैक कार्बन से निपटने के लिये किये गए विभिन्न उपायों की जानकारी दी।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ज़ियोस्फीयर बायोस्फीयर प्रोग्राम के तहत एयरोसोल वेधशालाओं के एक नेटवर्क का संचालन करता है जिसमें ब्लैक कार्बन, द्रव्यमान सघनता मापन वाले मापदंडों में से एक है।
ब्लैक कार्बन:
- परिचय: ब्लैक कार्बन (BC) एक अल्पकालिक प्रदूषक है जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बाद ग्रह को गर्म करने में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्त्ता है।
- अन्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के विपरीत BC तेज़ी से प्रक्षालित हो जाता है और उत्सर्जन बंद होने पर वायुमंडल से समाप्त किया जा सकता है।
- ऐतिहासिक कार्बन उत्सर्जन के विपरीत यह स्थानीय स्रोतों से व्युत्पन्न होकर स्थानीय प्रभाव डालता है।
- ब्लैक कार्बन एक प्रकार का एयरोसोल है।
- एयरोसोल (जैसे ब्राउन कार्बन, सल्फेट्स) में ब्लैक कार्बन को जलवायु परिवर्तन के लिये दूसरे सबसे महत्त्वपूर्ण मानवजनित एजेंट और वायु प्रदूषण के कारण होने वाले प्रतिकूल प्रभावों को समझने हेतु प्राथमिक एजेंट के रूप में मान्यता दी गई है।
- ब्लैक कार्बन सौर ऊर्जा को अवशोषित करता है तथा वातावरण को गर्म करता है। जब यह वर्षा की बूँदों के साथ पृथ्वी पर गिरता है तो यह हिम और बर्फ की सतह को काला कर देता है, जिससे उनका एल्बिडो (सतह की परावर्तक शक्ति) कम हो जाती है जिससे बर्फ गर्म हो जाती है और उसके पिघलने की गति तेज़ हो जाती है।
- यह गैस और डीज़ल इंजन, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों तथा जीवाश्म ईंधन को जलाने वाले अन्य स्रोतों से उत्सर्जित होता है। इसमें पार्टिकुलेट मैटर या PM का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो एक वायु प्रदूषक है।
सरकार के प्रयास:
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना:
- इस पहल के तहत सरकार स्वच्छ घरेलू भोजन पकाने के ईंधन के उपयोग को बढ़ावा दे रही है।
- BS VI उत्सर्जन मानदंड:
- 1 अप्रैल, 2020 से ईंधन और वाहनों हेतु BS-IV से BS-VI मानदंड के रूप में महत्त्वपूर्ण कदम।
- नए स्वच्छ ईंधन:
- स्वच्छ/वैकल्पिक ईंधन जैसे गैसीय ईंधन (सीएनजी, एलपीजी आदि) तथा इथेनॉल सम्मिश्रण की शुरुआत।
- सतत(SATAT) पहल:
- 5000 कम्प्रेस्ड बायो-गैस उत्पादन संयंत्र स्थापित करने और कम्प्रेस्ड बायो-गैस को उपयोग के लिये बाज़ार में उपलब्ध कराने हेतु एक नई पहल, “किफायती परिवहन के लिये सतत विकल्प” शुरू की गई है।
- फसल अवशेषों का प्रबंधन:
- इस योजना के तहत पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के किसानों को स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनों को खरीदने के लिये 50% वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और साथ ही स्व-स्थाने (In-situ) फसल अवशेष प्रबंधन हेतु मशीनरी के कस्टम हायरिंग केंद्रों (Custom Hiring Center) की स्थापना के लिये परियोजना लागत का 80% तक वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम:
- केंद्र सरकार देश भर में वायु प्रदूषण की समस्या से व्यापक रूप से निपटने के लिये दीर्घकालिक, समयबद्ध, राष्ट्रीय स्तर की रणनीति के रूप में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को लागू कर रही है।
- केंद्र ने वर्ष 2026 तक योजना के तहत शामिल किये गए शहरों में पार्टिकुलेट मैटर (PM) की सघनता में 40% की कमी का एक नया लक्ष्य निर्धारित किया है,साथ ही वर्ष 2024 तक 20 से 30% की कमी के पहले के लक्ष्य को अद्यतन किया है।
- शहर विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्य योजनाएँ (City specific Clean Air Action Plans):
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) ने परिवेशी वायु गुणवत्ता के स्तर के आधार पर 131 शहरों की पहचान की है, जो राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक कुप्रभावित हैं और दस लाख से अधिक आबादी वाले शहर हैं।
- इन शहरों में कार्यान्वयन के लिये शहर विशिष्ट स्वच्छ वायु कार्य योजनाएँ तैयार और लागू की गई हैं।
- ये योजनाएँ शहर के विशिष्ट वायु प्रदूषण स्रोतों (मृदा और सड़क की धूल, वाहन, घरेलू ईंधन, नगर निगम के ठोस अपशिष्ट को जलाना, निर्माण सामग्री एवं उद्योग आदि) को नियंत्रित करने के लिये समयबद्ध लक्ष्यों को परिभाषित करती हैं।
- FAME योजना:
- फास्टर अडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (FAME) फेज-2 योजना शुरू की गई है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):प्र. निम्नलिखित पर विचार करें जो परिवेशी वातावरण में पाए जा सकते हैं: (2010)
उपरोक्त में से कौन सा वातावरण को गर्म करने में योगदान देता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
प्रश्न. मुंबई, दिल्ली और कोलकाता देश के तीन मेगा शहर हैं लेकिन दिल्ली में अन्य दो की तुलना में वायु प्रदूषण अधिक गंभीर समस्या है। ऐसा क्यों है? (मुख्य परीक्षा, 2015) |
स्रोत: पी.आई.बी.
जैव विविधता और पर्यावरण
कार्बन बाज़ार
प्रिलिम्स के लिये:कार्बन क्रेडिट बाज़ार, NDC, GHG, क्योटो प्रोटोकॉल, नेट ज़ीरो, PLI योजना, ऊर्जा संरक्षण। मेन्स के लिये:भारत का विकसित होता कार्बन बाज़ार और इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
संसद ने भारत में कार्बन बाज़ार स्थापित करने और कार्बन ट्रेडिंग योजना निर्दिष्ट करने के लिये ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित किया है।
- विधेयक ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 में संशोधन करता है।
ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2022:
- परिचय:
- विधेयक केंद्र सरकार को कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है।
- विधेयक के तहत केंद्र सरकार या एक अधिकृत एजेंसी योजना के साथ पंजीकृत और अनुपालन करने वाली कंपनियों या यहाँ तक कि व्यक्तियों को कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र जारी करेगी।
- ये कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र प्रकृति में व्यापार योग्य होंगे। अन्य व्यक्ति स्वैच्छिक आधार पर कार्बन क्रेडिट प्रमाण पत्र खरीद सकेंगे।
- चिंताएँ:
- विधेयक कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्रों के व्यापार के लिये उपयोग किये जाने वाले तंत्र पर स्पष्टता प्रदान नहीं करता है कि क्या यह कैप-एंड-ट्रेड योजनाओं की तरह होगा या किसी अन्य विधि का उपयोग करेगा और कौन इस तरह के व्यापार को विनियमित करेगा।
- यह निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि इस प्रकार की योजना लाने के लिये कौन-सा मंत्रालय सही है।
- जबकि यू.एस., यूनाइटेड किंगडम और स्विट्ज़रलैंड जैसे अन्य न्यायालयों में कार्बन बाज़ार योजनाओं को उनके पर्यावरण मंत्रालयों द्वारा तैयार किया गया है, भारतीय विधेयक को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के बजाय विद्युत् मंत्रालय द्वारा पेश किया गया था।
- विधेयक यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि क्या पहले से मौजूद योजनाओं के तहत प्रमाणपत्र भी कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्रों के साथ विनिमेय होंगे और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये व्यापार योग्य होंगे।
- भारत में दो प्रकार के व्यापार योग्य प्रमाणपत्र पहले से ही जारी किये जाते हैं- अक्षय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) और ऊर्जा बचत प्रमाणपत्र (ESC)।
- ये तब जारी किये जाते हैं जब कंपनियाँ नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करती हैं या ऊर्जा बचाती हैं, जो ऐसी गतिविधियाँ भी हैं जो कार्बन उत्सर्जन को कम करती हैं।
कार्बन बाज़ार:
- परिचय:
- कार्बन बाज़ार कार्बन उत्सर्जन पर कीमत लगाने का एक उपकरण है। यह उत्सर्जन को कम करने के समग्र उद्देश्य के साथ कार्बन क्रेडिट के व्यापार की अनुमति देता है।
- ये बाज़ार उत्सर्जन कम करने या ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिये प्रोत्साहन पैदा करते हैं।
- उदाहरण के लिये एक औद्योगिक इकाई जो उत्सर्जन मानकों से बेहतर प्रदर्शन करती है, क्रेडिट प्राप्त करने के लिये हकदार होती है।
- एक अन्य इकाई जो निर्धारित मानकों को प्राप्त करने के लिये संघर्ष कर रही है, वह इन क्रेडिट को खरीद सकती है और इन मानकों का अनुपालन कर सकती है। मानकों पर बेहतर प्रदर्शन करने वाली इकाई क्रेडिट बेचकर पैसा कमाती है, जबकि खरीदने वाली इकाई अपने परिचालन दायित्वों को पूरा करने में सक्षम होती है।
- यह व्यापार प्रणाली स्थापित करता है जहाँ कार्बन क्रेडिट या भत्ते खरीदे और बेचे जा सकते हैं।
- कार्बन क्रेडिट एक प्रकार का व्यापार योग्य परमिट है, जो संयुक्त राष्ट्र के मानकों के अनुसार, एक टन कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से हटाने, कम करने या अलग करने के बराबर होता है।
- इस बीच कार्बन भत्ते या कैप, देशों या सरकारों द्वारा उनके उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों के अनुसार निर्धारित किये जाते हैं।
- पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 में देशों द्वारा अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions- NDC) को पूरा करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय कार्बन बाज़ारों के उपयोग का प्रावधान है।
- NDCs शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिये लक्ष्य निर्धारित करने वाले देशों द्वारा जलवायु प्रतिबद्धताएँ हैं।
- कार्बन मार्केट के प्रकार:
- अनुपालन बाजार:
- अनुपालन बाज़ार राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और/या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों द्वारा स्थापित किये जाते हैं और आधिकारिक तौर पर विनियमित होते हैं।
- आज, अनुपालन बाज़ार ज़्यादातर 'कैप-एंड-ट्रेड' नामक सिद्धांत के तहत काम करते हैं, जो यूरोपीय संघ ( European Union- EU) में सबसे लोकप्रिय है।
- वर्ष 2005 में शुरू किये गए यूरोपीय संघ के उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ETS) के तहत, सदस्य देशों ने बिजली, तेल, विनिर्माण, कृषि और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में उत्सर्जन के लिये एक सीमा तय है, यह सीमा देशों के जलवायु लक्ष्यों के अनुसार निर्धारित की जाती है तथा उत्सर्जन को कम करने के लिये क्रमिक रूप से कम की जाती है।
- इस क्षेत्र की संस्थाओं को उनके द्वारा उत्पन्न उत्सर्जन के बराबर वार्षिक भत्ते या परमिट जारी किये जाते हैं।
- यदि कंपनियाँ निर्धारित मात्रा से अधिक उत्सर्जन करती हैं, तो उन्हें अतिरिक्त परमिट खरीदने होंगे। यह कैप-एंड-ट्रेड का 'ट्रेड' हिस्सा निर्धारित करता है।
- कार्बन का बाज़ार मूल्य बाज़ार की ताकतों द्वारा निर्धारित किया जाता है जब खरीदार और विक्रेता उत्सर्जन भत्ते में व्यापार करते हैं।
- अनुपालन बाज़ार राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और/या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों द्वारा स्थापित किये जाते हैं और आधिकारिक तौर पर विनियमित होते हैं।
- स्वैच्छिक बाज़ार:
- स्वैच्छिक बाज़ार वे हैं जिनमें उत्सर्जक- निगम, निजी व्यक्ति और अन्य एक टन CO2 या समकक्ष ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को ऑफसेट करने के लिये कार्बन क्रेडिट खरीदते हैं।
- इस तरह के कार्बन क्रेडिट गतिविधियों द्वारा बनाए जाते हैं,जो हवा से CO2 को कम करते हैं, जैसे कि वनीकरण।
- इस बाज़ार में एक निगम अपने अपरिहार्य GHG उत्सर्जन की भरपाई करने के लिये उन परियोजनाओं में लगी एक इकाई से कार्बन क्रेडिट खरीदता है जो उत्सर्जन को कम करने, हटाने, अधिकृत करने में लगी हुई हैं।
- उदाहरण के लिये उड्डयन क्षेत्र में एयरलाइनें अपने द्वारा संचालित उड़ानों के कार्बन फुटप्रिंट्स को ऑफसेट करने हेतु कार्बन क्रेडिट खरीद सकती हैं। स्वैच्छिक बाज़ारों में क्रेडिट को निजी फर्मों द्वारा लोकप्रिय मानकों के अनुसार सत्यापित किया जाता है। ऐसे व्यापारी और ऑनलाइन रजिस्ट्रियाँ भी उपलब्ध हैं जहाँ जलवायु परियोजनाएँ सूचीबद्ध हैं और प्रमाणित क्रेडिट खरीदे जा सकते हैं।
- अनुपालन बाजार:
- वैश्विक कार्बन बाज़ारों की स्थिति:
- Refinitiv के एक विश्लेषण के अनुसार वर्ष 2021 में व्यापार योग्य कार्बन छूट या परमिट के लिये वैश्विक बाज़ारों का मूल्य 164% बढ़कर रिकॉर्ड 760 बिलियन यूरो (851 बिलियन अमेरिकी डॉलर) हो गया।
- यूरोपीय संघ के ETS ने इस वृद्धि में सबसे अधिक योगदान दिया, जो 683 बिलियन यूरो के साथ वैश्विक मूल्य का 90% है।
- जहाँ तक स्वैच्छिक कार्बन बाज़ारों का संबंध है उनका वर्तमान वैश्विक मूल्य तुलनात्मक रूप से 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कम है।
- विश्व बैंक का अनुमान है कि कार्बन क्रेडिट में व्यापार वर्ष 2030 तक NDCs को लागू करने की लागत को आधे से अधिक (250 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक) कम कर सकता है।
कार्बन बाज़ार से संबंधित चुनौतियाँ:
- खराब बाज़ार पारदर्शिता:
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme- UNDP) कार्बन बाज़ारों से संबंधित गंभीर चिंताओं की ओर संकेत करता है अर्थात् ग्रीनहाउस गैस में कमी की दोहरी गिनती और जलवायु परियोजनाओं की गुणवत्ता एवं प्रामाणिकता से लेकर जो खराब बाज़ार पारदर्शिता हेतु क्रेडिट उत्पन्न करते हैं।
- ग्रीनवाशिंग:
- कंपनियाँ क्रेडिट खरीद सकती हैं, अपने समग्र उत्सर्जन को कम करने या स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश करने के बजाय केवल कार्बन फुटप्रिंट्स को ऑफसेट कर सकती हैं।
- ETS के माध्यम से शुद्ध उत्सर्जन में वृद्धि:
- विनियमित या अनुपालन बाज़ारों के लिये उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (Emissions Trading System- ETS) स्वचालित रूप से जलवायु शमन उपकरणों को सुदृढ़ नहीं कर सकते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) के अनुसार, व्यापारिक योजनाओं के तहत उच्च उत्सर्जन उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों को शामिल करने के लिये भत्ते उनके उत्सर्जन को ऑफसेट करने से शुद्ध उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है और ऑफसेटिंग क्षेत्र में लागत प्रभावी परियोजनाओं को प्राथमिकता देने के लिये कोई स्वचालित तंत्र प्रदान नहीं कर सकता है।
संबंधित भारतीय पहल:
- स्वच्छ विकास तंत्र:
- भारत में क्योटो प्रोटोकॉल के तहत स्वच्छ विकास तंत्र ने अभिकर्त्ताओं के लिये प्राथमिक कार्बन बाज़ार प्रदान किया।
- द्वितीयक कार्बन बाज़ार प्रदर्शन-प्राप्त-व्यापार योजना (जो ऊर्जा दक्षता श्रेणी के अंतर्गत आता है) और नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र द्वारा कवर किया गया है।
आगे की राह
- ग्लोबल वार्मिंग को 2°C के भीतर रखने के लिये जो आदर्श रूप से 1.5°C से अधिक नहीं हो, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को इस दशक में 25 से 50% तक कम करने की आवश्यकता है। वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के हिस्से के रूप में अब तक लगभग 170 देशों ने अपना राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDCs) प्रस्तुत किया है, जिसे वे हर पाँच वर्ष में अपडेट करने पर सहमत हुए हैं।
- UNDP कार्बन बाज़ारों की सफलता के लिये उत्सर्जन में कमी और वास्तविक निष्कासन पर बल देता और इसका देश के NDC के साथ सामंजस्य होना चाहिये"।
- "कार्बन बाज़ार लेन-देन के लिये संस्थागत और वित्तीय बुनियादी ढाँचे में पारदर्शिता" होनी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. कार्बन क्रेडिट की अवधारणा निम्नलिखित में से किससे उत्पन्न हुई है? (2009) (a) पृथ्वी शिखर सम्मेलन, रियो डी जनेरियो उत्तर: (b) प्रश्न. "कार्बन क्रेडिट" के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा सही नहीं है? (2011) (a) कार्बन क्रेडिट प्रणाली क्योटो प्रोटोकॉल के संयोजन में सम्पुष्ट की गई थी। उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. क्या कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट के बावजूद जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के तहत स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास तंत्र को बनाए रखा जाना चाहिये? आर्थिक विकास के लिये भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के संबंध में चर्चा कीजिये। (2014) प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने हेतु नियंत्रण उपायों की व्याख्या कीजिये। (2022) |
स्रोत: द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
पूर्वोत्तर भारत में शांति
प्रिलिम्स के लिये:पूर्वोत्तर भारत, पूर्वोत्तर भारत में प्रमुख समझौते, सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम मेन्स के लिये:पूर्वोत्तर भारत में प्रमुख शांति विकास, उत्तर पूर्व भारत का महत्त्व, पूर्वोत्तर भारत के विकास के लिये पहल |
चर्चा मे क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने बताया है कि नागरिकों की मौतों में 80% की गिरावट आई है और वर्ष 2014 से पूर्वोत्तर भारत में 6,000 उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया है।
पूर्वोत्तर भारत में प्रमुख शांति विकास
- महत्त्वपूर्ण समझौते:
- असम-मेघालय अंतर्राज्यीय सीमा समझौता, 2022:
- समझौता छह विवादित क्षेत्रों में शांति के लिये है जिन्हें पहले चरण में समाधान हेतु लिया गया था।
- विवादित क्षेत्र में से असम को 18.46 वर्ग किमी. तथा मेघालय को 18.33 वर्ग किमी. का पूर्ण नियंत्रण प्राप्त होगा।
- कार्बी एंगलोंग समझौता, 2021:
- कार्बी एंगलोंग समझौता असम के पाँच विद्रोही समूहों, केंद्र और राज्य सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- 5 उग्रवादी संगठनों (KLNLF, PDCK, UPLA, KPLT और KLF) ने हथियार डाल दिये और उनके 1000 से अधिक सशस्त्र कैडर ने हिंसा छोड़ दी तथा वे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए।
- बोडो समझौता, 2020:
- उग्रवादी नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) के सभी गुटों सहित केंद्र सरकार, असम सरकार और बोडो समूहों ने असम में बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (BTAD) को बोडोलैंड टेरिटोरियल रीज़न (BTR) के रूप में पुनर्नामित करने और उसका नाम बदलने के लिये बोडो समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- ब्रू-रियांग समझौता, 2020:
- ब्रू या रियांग पूर्वोत्तर भारत का एक स्वदेशी समुदाय है, जो ज़्यादातर त्रिपुरा, मिज़ोरम और असम में रहता है। त्रिपुरा में उन्हें विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह के रूप में पहचाना जाता है।
- जनवरी, 2020 में केंद्र सरकार, त्रिपुरा और मिज़ोरम सरकार तथा ब्रू-रियांग (Bru-Reang) के प्रतिनिधियों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
- समझौते के तहत गृह मंत्रालय त्रिपुरा में बंदोबस्त का पूरा खर्च वहन करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- NLFT-त्रिपुरा समझौता, 2019:
- नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) को वर्ष 1997 से गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है तथा यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार अपने शिविरों से संचालित होने वाली हिंसा में शामिल रहा है।
- NLFT समझौता 2019 के परिणामस्वरूप 44 हथियारों के साथ 88 कैडरों का आत्मसमर्पण कराया गया।
- AFSPA की भूमिका:
- सरकार ने पूरे त्रिपुरा और मेघालय सहित पूर्वोत्तर के एक बड़े हिस्से से AFSPA हटा लिया।
- अरुणाचल प्रदेश में, AFSPA केवल 3 जिलों में लागू है।
- सरकार ने पूरे त्रिपुरा और मेघालय सहित पूर्वोत्तर के एक बड़े हिस्से से AFSPA हटा लिया।
- असम-मेघालय अंतर्राज्यीय सीमा समझौता, 2022:
भारत के लिये पूर्वोत्तर का महत्त्व:
- रणनीतिक महत्त्व:
- पूर्वोत्तर भारत दक्षिण-पूर्व एशिया और उससे आगे के लिये प्रवेश द्वार है। यह म्याँमार की ओर भारत का भूमि-सेतु है।
- भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति पूर्वोत्तर राज्यों को भारत के पूर्व की ओर संलग्नता की क्षेत्रीय अग्रिम पंक्ति पर रखती है।
- सांस्कृतिक महत्त्व:
- पूर्वोत्तर भारत विश्व के सर्वाधिक सांस्कृतिक रूप से विविधतापूर्ण क्षेत्रों में से एक है। यहाँ 200 से अधिक जनजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ के लोकप्रिय त्योहारों में नगालैंड का हॉर्नबिल महोत्सव, सिक्किम का पांग ल्हबसोल (Pang Lhabsol) आदि शामिल हैं।
- पूर्वोत्तर भारत दहेज की कुरीति से मुक्त है।
- पूर्वोत्तर भारत की संस्कृतियों का समृद्ध चित्रपट इसके अत्यधिक विकसित शास्त्रीय नृत्य रूपों (जैसे असम में बिहू) में परिलक्षित होता है।
- मणिपुर में पवित्र उपवनों में प्रकृति की पूजा करने की परंपरा है, जिसे उमंगलाई (UmangLai) कहा जाता है।
- आर्थिक महत्त्व:
- आर्थिक रूप से यह क्षेत्र ‘TOT’ (Tea, Oil and Timber) के प्राकृतिक संसाधनों में समृद्ध है।
- यह क्षेत्र 50000 मेगावाट जलविद्युत शक्ति की संभावना और जीवाश्म ईंधन के प्रचुर भंडार के साथ एक वास्तविक ‘पावरहाउस’ है।
- पारिस्थितिक महत्त्व:
- पूर्वोत्तर क्षेत्र भारत-बर्मा जैव विविधता हॉटस्पॉट का अंग है। यह भारतीय उपमहाद्वीप के उच्चतम पक्षी और पादप जैव विविधता में से एक का प्रतिनिधित्व करता है।
- इस क्षेत्र में भारत में मौजूद सभी भालू प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
पूर्वोत्तर के विकास के लिये सरकार की प्रमुख पहलें
- आधारभूत संरचना क्षेत्र में:
- कनेक्टिविटी के क्षेत्र में:
- पर्यटन के क्षेत्र में:
- अन्य:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. भारतीय संविधान की किस अनुसूची में कई राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और नियंत्रण के लिये विशेष प्रावधान हैं? उत्तर: (b) प्रश्न. मानवाधिकार सक्रियतावादी लगातार इस विचार को उज़ागर करते हैं कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSPA) एक क्रूर अधिनियम है, जिससे सुरक्षा बलों के द्वारा मानवाधिकार दुरुपयोगों के मामले उत्पन्न होते हैं। इस अधिनियम की कौन-सी धाराओं का सक्रियतावादी विरोध करते हैं? उच्चतम न्यायालय के द्वारा व्यक्त विचार के संदर्भ में इसकी आवश्यकता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (मेन्स-2015) प्रश्न. भारत का उत्तर-पूर्वीय प्रदेश बहुत लम्बे समय से विद्रोह-ग्रसित है । इस प्रदेश में सशस्त्र विद्रोह की अतिजीविता के मुख्य कारणों का विश्लेषण कीजिये। (2017) |