शासन व्यवस्था
UAPA विधेयक 2019
- 03 Aug 2019
- 7 min read
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में राज्य सभा ने गैर-क़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019 [Unlawful Activities (Prevention) Amendment Bill, 2019] को पारित किया है। `
प्रमुख बिंदु:
- यह विधेयक गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में संशोधन करता है।
- इस अधिनियम के अंतर्गत जाँच अधिकारी को उन संपत्तियों को जब्त करने से पहले पुलिस महानिदेशालय से मंज़ूरी लेनी होती है, जो आतंकवाद से संबंधित हो सकती हैं। विधेयक के अनुसार, अगर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के अधिकारी द्वारा जाँच की जा रही है तो ऐसी संपत्ति की जब्ती से पहले NIA के महानिदेशक से पूर्व मंज़ूरी लेनी होगी।
- अधिनियम अंतर्गत केंद्र सरकार किसी संगठन को आतंकवादी संगठन निर्दिष्ट कर सकती है, अगर वह:
(i) आतंकवादी कार्रवाई करता है या उसमें भाग लेता है,
(ii) आतंकवादी घटना को अंजाम देने की तैयारी करता है,
(iii) आतंकवाद को बढ़ावा देता है, या
(iv) अन्यथा आतंकवादी गतिविधि में शामिल है।
यह विधेयक सरकार को यह अधिकार देता है कि वह समान आधार पर व्यक्तियों को भी आतंकवादी निर्दिष्ट कर सकती है।
गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967
[Unlawful Activities (Prevention) Act, 1967]
- यह कानून भारत की संप्रभुता और एकता को खतरें में डालने वाली गतिविधियों को रोकने के उद्देश्य से बनाया गया था।
- गैर-कानूनी गतिविधियों से तात्पर्य उन कार्यवाहियों से है जो किसी व्यक्ति/संगठन द्वारा देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को भंग करने वाली गतिविधियों को बढ़ावा देती है।
- यह कानून संविधान के अनुछेद-19 द्वारा प्रदत वाक् व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शस्त्रों के बिना एकत्र होने के अधिकार और संघ बनाने के अधिकार पर युक्तियुक्त प्रतिबंध आरोपित करता है।
- राष्ट्रीय एकता परिषद द्वारा नियुक्त राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रवाद पर समिति ने उपरोक्त मौलिक अधिकारों पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाने का अनुमोदन किया।
- इस कानून में पूर्व में भी वर्ष 2004, 2008 और 2012 में संशोधन किया जा चुका है।
गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2019
[Unlawful Activities (Prevention) Amendment Bill, 2019] :
- विधेयक में प्रस्तावित संशोधनों का उद्देश्य आतंकी अपराधों की त्वरित जाँच और अभियोजन की सुविधा प्रदान करना तथा आतंकी गतिविधियों में शामिल व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने का प्रावधान करना है।
- इस विधेयक का किसी भी व्यक्ति के खिलाफ दुरुपयोग नहीं किया जाएगा, लेकिन शहरी माओवादियों सहित भारत की सुरक्षा एवं संप्रभुता के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में संलग्न लोगों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।
- यह संशोधन उचित प्रक्रिया तथा पर्याप्त सबूत के आधार पर ही किसी को आतंकवादी ठहराने की अनुमति देता है। गिरफ्तारी या ज़मानत प्रावधानों में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
- यह संशोधन राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) के महानिदेशक को ऐसी संपत्ति को ज़ब्त करने का अधिकार देता है जो उसके द्वारा की जा रही जाँच में आतंकवाद से होने वाली आय से बनी हो।
- इस संशोधन में परमाणु आतंकवाद के कृत्यों के दमन हेतु अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (2005) को सेकेंड शिड्यूल में शामिल किया गया है।
संशोधन की आवश्यकता
- वर्तमान में किसी भी कानून में किसी को व्यक्तिगत आतंकवादी कहने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिये जब किसी आतंकवादी संगठन पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो उसके सदस्य एक नया संगठन बना लेते हैं।
- जब कोई व्यक्ति आतंकी कार्य करता है या आतंकी गतिविधियों में भाग लेता है तो वह आतंकवाद को पोषित करता है। वह आतंकवाद को बल देने के लिये धन मुहैया कराता है अथवा आतंकवाद के सिद्धांत को युवाओं के मन में स्थापित करने का काम करता है। ऐसे दोषी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करना आवश्यक है।
संशोधन से संबंधित चिंताएँ:
- यह संशोधन सरकार को किसी भी व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया का पालन किये बिना आतंकी घोषित करने का अधिकार देता है जिससे भविष्य में राजनैतिक द्वेष अथवा किसी अन्य दुर्भावना के आधार पर दुरूपयोग की आशंका बनी रहेगी।
- इस संशोधन में आतंकवाद की निश्चित परिभाषा नहीं है, इसका नकारात्मक प्रभाव यह हो सकता है कि सरकार व कार्यान्वयन एजेंसी आतंकवाद की मनमानी व्याख्या द्वारा किसी को भी प्रताड़ित कर सकते हैं।
- इस संशोधन का अल्पसंख्यकों के विरुद्ध दुरुपयोग किया जा सकता है।
- यह संशोधन किसी भी व्यक्ति को आतंकी घोषित करने की शक्ति देता है जो किसी आतंकी घटना की निष्पक्ष जाँच को प्रभावित कर सकता है।
- पुलिस राज्य का विषय है परंतु यह संशोधन NIA को संपत्ति को जब्त करने का अधिकार देता है जो कि राज्य पुलिस के अधिकार क्षेत्र में कमी करता है।