जैव विविधता और पर्यावरण
29वाँ विश्व ओज़ोन दिवस
प्रिलिम्स के लिये:विश्व ओज़ोन दिवस, वियना कन्वेंशन, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, ओज़ोन क्षयकारी पदार्थ, इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP), ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन, किगाली संशोधन मेन्स के लिये:मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन: भारत की उपलब्धियाँ |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने हाल ही में 29वाँ विश्व ओज़ोन दिवस मनाया, जो ओज़ोन परत के क्षय के गंभीर मुद्दे और इससे निपटने के वैश्विक प्रयासों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये समर्पित एक वार्षिक कार्यक्रम है।
विश्व ओज़ोन दिवस:
- ओज़ोन और संबंधित अभिसमय का परिचय:
- पृथ्वी की सतह से 10 से 40 किलोमीटर ऊपर समताप मंडल में स्थित ओज़ोन परत हमें हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (UV Radiation) से बचाती है।
- यह सुरक्षात्मक परत, जिसे स्ट्रैटोस्फेरिक ओज़ोन या अच्छी ओज़ोन के रूप में जाना जाता है, मोतियाबिंद और त्वचा कैंसर जैसे प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों को रोकती है तथा कृषि, वानिकी और जलीय जीवन की रक्षा करती है।
- हालाँकि मानव निर्मित ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों के कारण समताप मंडल में ओज़ोन का क्षय हुआ है।
- इस संबंध में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा कार्यवाही की आवश्यकता महसूस की गई, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1985 में वियना कन्वेंशन और उसके बाद वर्ष 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल हुआ।
- पृथ्वी की सतह से 10 से 40 किलोमीटर ऊपर समताप मंडल में स्थित ओज़ोन परत हमें हानिकारक पराबैंगनी विकिरण (UV Radiation) से बचाती है।
- विश्व ओज़ोन दिवस का उद्देश्य:
- विश्व ओज़ोन दिवस प्रत्येक वर्ष 16 सितंबर को मनाया जाता है। यह वर्ष 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने का स्मृति दिवस है, जो एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधि है और इसका उद्देश्य ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों (ODS) के उत्पादन एवं खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है।
- वर्ष 2023 की थीम: "मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल: ओज़ोन परत को ठीक करना और जलवायु परिवर्तन को कम करना” (Fixing the Ozone Layer and Reducing Climate Change)।
- विश्व ओज़ोन दिवस प्रत्येक वर्ष 16 सितंबर को मनाया जाता है। यह वर्ष 1987 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने का स्मृति दिवस है, जो एक महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संधि है और इसका उद्देश्य ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों (ODS) के उत्पादन एवं खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन: भारत की उपलब्धियाँ:
- जून 1992 में इस पर हस्ताक्षर करने के साथ ही भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को लागू करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है:
- चरणबद्ध सफलता: भारत ने 1 जनवरी, 2010 तक नियंत्रित उपयोग के लिये क्लोरोफ्लोरोकार्बन, कार्बन टेट्राक्लोराइड, हेलोन्स, मिथाइल ब्रोमाइड और मिथाइल क्लोरोफॉर्म जैसे ODS को सफलतापूर्वक चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया।
- हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (HCFC) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना: HCFC को वर्तमान में चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है, जिसके पहले चरण को वर्ष 2012 से वर्ष 2016 तक पूरा कर लिया गया है और दूसरे चरण को वर्ष 2024 के अंत तक जारी रखा जाएगा।
- कटौती लक्ष्य हासिल करना: भारत ने 1 जनवरी, 2020 तक HCFC में निर्धारित 35% की तुलना में 44% की कमी हासिल करके अपने लक्ष्य को पार कर लिया है।
- इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP): मार्च 2019 में लॉन्च किया गया ICAP कूलिंग मांग को कम करने, वैकल्पिक रेफ्रिजरेंट में बदलाव, ऊर्जा दक्षता बढ़ाने और तकनीकी उन्नति पर केंद्रित है।
- इसका लक्ष्य मौजूदा सरकारी कार्यक्रमों के साथ तालमेल के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों को अधिकतम करना है।
नोट: मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC) को शामिल करने हेतु किगाली संशोधन किया गया, जिसे भारत ने सितंबर 2021 में अनुमोदित किया। यह संशोधन वर्ष 2032 से HFC खपत और उत्पादन को चरणबद्ध तरीके से कम करने की भारत की योजना के अनुरूप है।
ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन:
- ट्रोपोस्फेरिक (या ज़मीनी स्तर) ओज़ोन या खराब ओज़ोन एक अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है जो वायुमंडल में केवल घंटों या हफ्तों तक रहता है।
- इसका कोई प्रत्यक्ष उत्सर्जन स्रोत नहीं है, बल्कि यह एक यौगिक है जो वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (Volatile Organic Compounds- VOC) के साथ सूर्य के प्रकाश और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOX), जो बड़े पैमाने पर मानव गतिविधियों के कारण उत्सर्जित होते हैं, की परस्पर क्रिया से बनता है, इसमें मीथेन भी शामिल है।
- क्षोभमंडलीय ओज़ोन के निर्माण को रोकने की रणनीतियाँ मुख्य रूप से मीथेन में कमी और कार, विद्युत संयंत्रों एवं अन्य स्रोतों से उत्पन्न होने वाले वायुमंडलीय प्रदूषण के स्तर में कटौती पर आधारित हैं।
- गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल की स्थापना वर्ष 1999 में अम्लीकरण और ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन का कारण बनने वाले प्रदूषकों को नियंत्रित करने के लिये की गई थी।
- यह सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, अमोनिया और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों सहित वायु प्रदूषकों को लेकर सीमा निर्धारित करता है जो मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के लिये खतरनाक हैं।
- पार्टिकुलेट मैटर (PM) और ब्लैक कार्बन (PM के एक घटक के रूप में) को शामिल करने तथा वर्ष 2020 के लिये नई प्रतिबद्धताओं को शामिल करने हेतु इसे वर्ष 2012 में अपडेट किया गया था।
- गोथेनबर्ग प्रोटोकॉल की स्थापना वर्ष 1999 में अम्लीकरण और ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन का कारण बनने वाले प्रदूषकों को नियंत्रित करने के लिये की गई थी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, ओज़ोन का अवक्षय करने वाले पदार्थों के प्रयोग पर नियंत्रण और उन्हें चरणबद्ध रूप से प्रयोग से बाहर करने के मुद्दे से संबंद्ध है? (2015) (a) ब्रेटन वुड्स सम्मेलन उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: c |
जैव विविधता और पर्यावरण
ग्रहीय सीमाएँ
प्रिलिम्स के लिये:ग्रहीय सीमाएँ, जलवायु परिवर्तन मेन्स के लिये:पृथ्वी की स्थिरता और जैवविविधता को बनाए रखने में ग्रहीय सीमाओं का महत्त्व |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
साइंस एडवांसेज़ जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, विश्व ने पृथ्वी की स्थिरता और लचीलेपन को बनाए रखने के लिये आवश्यक नौ ग्रहीय सीमाओं में से छह का उल्लंघन किया है।
- वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत उन प्रक्रियाओं की जाँच की है जिन्होंने पिछले 12,000 वर्षों में मानव अस्तित्व के लिये अनुकूल परिस्थितियों को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
ग्रहीय सीमाएँ:
- परिचय:
- ग्रहीय सीमाओं की रूपरेखा सबसे पहले वर्ष 2009 में जोहान रॉकस्ट्रॉम और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध 28 वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा प्रस्तावित की गई थी ताकि उन पर्यावरणीय सीमाओं को परिभाषित किया जा सके जिनके भीतर मानवता, पृथ्वी की स्थिरता एवं जैवविविधता को बनाए रखने के लिये सुरक्षित रूप से कार्य किया जा सके।
- नौ ग्रहीय सीमाएँ:
- जलवायु परिवर्तन।
- जीवमंडल अखंडता में परिवर्तन (जैवविविधता हानि और प्रजातियों का विलुप्त होना)।
- समतापमंडलीय ओज़ोन क्षरण।
- महासागर अम्लीकरण।
- जैव-भू-रासायनिक प्रवाह (फास्फोरस और नाइट्रोजन चक्र)।
- भूमि-प्रणाली परिवर्तन (उदाहरण के लिये वनों की कटाई)।
- स्वच्छ जल का उपयोग (भूमि पर संपूर्ण जल चक्र में परिवर्तन)।
- वायुमंडलीय एरोसोल लोडिंग (वायुमंडल में सूक्ष्म कण जो जलवायु और जीवित जीवों को प्रभावित करते हैं)।
- नई संस्थाओं का परिचय (माइक्रोप्लास्टिक्स, अंतःस्रावी अवरोधक और कार्बनिक प्रदूषकों से युक्त)।
- ग्रहीय सीमाओं का उल्लंघन:
- इन सीमाओं का उल्लंघन किसी तात्कालिक तबाही का संकेत नहीं देता है बल्कि अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय परिवर्तनों का खतरा उत्पन्न करता है।
- इससे पृथ्वी पर ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं जो हमारी वर्तमान जीवनशैली का समर्थन नहीं करेंगी।
- इन सीमाओं का उल्लंघन किसी तात्कालिक तबाही का संकेत नहीं देता है बल्कि अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय परिवर्तनों का खतरा उत्पन्न करता है।
अध्ययन के मुख्य बिंदु:
- प्रभावित सीमाएँ:
- जलवायु परिवर्तन:
- शोधकर्त्ताओं ने वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता और विकिरण बल (वायुमंडल में ऊर्जा असंतुलन के आकार का प्रतिनिधित्व) के लिये 350 भाग प्रति मिलियन (ppm) तथा 1 वाट प्रति वर्गमीटर (Wm2) पर जलवायु परिवर्तन में योगदान हेतु ग्रहीय सीमा निर्धारित की है। वर्तमान में यह 417 ppm और 2.91 Wm2 तक पहुँच गया है।
- जीवमंडल अखंडता:
- जहाँ तक जीवमंडल की अखंडता का सवाल है, शोधकर्त्ताओं ने प्रति दस लाख प्रजाति-वर्षों में 10 से कम प्रजातियों के विलुप्त होने की सीमा का अनुमान लगाया था, किंतु मानवीय कारकों के कारण प्रजातियों के विलुप्त होने की दर तय सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक हो गई है।
- अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि विलुप्त होने की दर प्रति मिलियन प्रजाति-वर्ष (एक प्रजाति का अपनी उत्पत्ति से लेकर विलुप्त होने तक बने रहने का औसतन समय) 100 से अधिक थी।
- अनुमान है कि 80 लाख पौधों और जानवरों की प्रजातियों में से लगभग 10 लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
- पिछले 150 वर्षों में पौधों और जानवरों की 10% से अधिक आनुवंशिक विविधता नष्ट हो गई है।
- भूमि व्यवस्था परिवर्तन:
- वैश्विक वन भूमि क्षेत्र 75% की सुरक्षित सीमा से नीचे गिरकर वर्तमान में केवल 60% रह गया है।
- स्वच्छ जल में परिवर्तन:
- ब्लू वाटर (सतही और भूजल) एवं ग्रीन वाटर (पौधों के लिये उपलब्ध जल) दोनों ने वर्ष 1905 तथा वर्ष 1929 में क्रमशः 10.2% और 11.1% की अपनी सुरक्षित सीमा से परे प्रभाव का अनुभव किया है, वर्तमान में यह क्रमशः 18.2% एवं 15.8% है।
- जैव-भू-रासायनिक प्रवाह:
- पर्यावरण में फॉस्फोरस और नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्त्वों का प्रवाह सुरक्षित सीमा से अधिक बढ़ गया है।
- फॉस्फोरस के लिये सीमा 11 टेराग्राम (Tg) और नाइट्रोजन के लिये 62 Tg तय की गई थी। यह अब क्रमशः 22.6 Tg तथा 190 Tg है।
- पर्यावरण में फॉस्फोरस और नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्त्वों का प्रवाह सुरक्षित सीमा से अधिक बढ़ गया है।
- नवीन तत्त्व:
- नवीन तत्त्वों की ग्रहीय सीमा की गणना शून्य थी।
- माइक्रोप्लास्टिक्स, अंतःस्रावी अवरोधक और कार्बनिक प्रदूषकों सहित नवीन तत्त्वों पर मानव प्रभाव ने शून्य सीमा का उल्लंघन किया है। इसका तात्पर्य है कि इंसानों ने इस सीमा का भी उल्लंघन किया है।
- जलवायु परिवर्तन:
- सुरक्षित सीमाएँ:
- स्ट्रैटोस्फेरिक ओज़ोन क्षरण, एयरोसोल लोडिंग और महासागरीय अम्लीकरण पृथ्वी की ग्रहीय सीमा के अंदर पाए गए।
आगे की राह
- जैवविविधता संरक्षण, पारिस्थितिक तंत्र की बहाली और लुप्तप्राय प्रजातियों एवं आनुवंशिक विविधता की सुरक्षा को लक्षित करने वाले संरक्षण कार्यक्रम लागू करना।
- पुनर्चक्रण /रिसाइक्लिंग को अपनाने से संसाधन पुनर्जनन को बढ़ावा मिलता है, अपशिष्ट कम होता है और यह सुनिश्चित होता है कि मूल्यवान सामग्रियों को त्यागने के बदले लगातार इनका पुन: उपयोग किया जाए।
- अपशिष्ट निपटान पर सख्त नियम लागू करना, रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित करना और माइक्रोप्लास्टिक जैसे नविन तत्त्वों के प्रदूषण को कम करना।
- पर्यावरणीय प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदारी की सामूहिक भावना जागृत करते हुए समुदायों को संधारणीय प्रथाओं में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये सशक्त बनाना।
- तापमान वृद्धि को सीमित करने और जलवायु परिवर्तन से संबंधित पृथ्वी की ग्रहीय सीमा के उल्लंघन को रोकने के लिये जलवायु शमन रणनीतियों को प्राथमिकता देना। तापमान वृद्धि पर अंकुश लगाने तथा जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी की सीमा के होने वाले उल्लंघन को रोकने के लिये जलवायु शमन तकनीकों को पहली प्राथमिकता देना।
- स्वच्छ ऊर्जा अपनाने और सतत् परिवहन के लिये प्रोत्साहन के माध्यम से शून्य-उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना और कार्बन फुटप्रिंट को कम करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) की चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022) |
शासन व्यवस्था
पशुओं में रोगाणुरोधी उपयोग में वैश्विक रुझान
प्रिलिम्स के लिये:पशुओं में रोगाणुरोधी उपयोग में वैश्विक रुझान, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन, विश्व व्यापार संगठन (WTO), रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) मेन्स के लिये:पशुओं में रोगाणुरोधी उपयोग में वैश्विक रुझान |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) ने पशुओं में रोगाणुरोधी उपयोग पर अपनी 7वीं रिपोर्ट जारी की है, यह वर्ष 2017 से वर्ष 2019 तक की अवधि को कवर करती है।
- 157 प्रतिभागियों ने विश्लेषण के लिये WOAH को डेटा प्रस्तुत किया, लेकिन केवल 121 ने कम-से-कम एक वर्ष के लिये मात्रात्मक डेटा प्रदान किया। 74 प्रतिभागियों ने उपयोग के प्रकार और दवा की खुराक दिये जाने की पद्धति के आधार पर वर्गीकृत रोगाणुरोधी उत्पादों की विशिष्ट मात्रा की सूचना दी।
- यह विश्लेषण 80 देशों द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों पर आधारित है जो पशुओं में रोगाणुरोधी उपयोग पर लगातार अद्यतन/अपडेट होते रहते हैं।
विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH):
- WOAH (OIE के रूप में स्थापित) स्वच्छता और पादप स्वच्छता उपायों के अनुप्रयोग पर समझौते द्वारा मान्यता प्राप्त मानक-निर्धारण निकायों में से एक है।
- यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जो दुनिया भर में पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिये ज़िम्मेदार है।
- वर्ष 2018 में इसमें कुल 182 सदस्य देश थे। भारत इसके सदस्य देशों में शामिल है।
- WOAH उन नियमों से संबंधित मानक दस्तावेज़ विकसित करता है जिसका उपयोग सदस्य देश स्वयं को बीमारियों और रोगजनकों से बचाने के लिये कर सकते हैं। उनमें से एक है स्थलीय पशु स्वास्थ्य संहिता।
- WOAH मानकों को विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा संदर्भ अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता नियमों के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- इसका मुख्यालय पेरिस, फ्राँस में है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- रोगाणुरोधी उपयोग:
- वर्ष 2017 से वर्ष 2019 तक तीन वर्षों में पशुओं में वैश्विक रोगाणुरोधी उपयोग में 13% की कमी आई है।
- 80 देशों में से एशिया, सुदूर पूर्व ओशिनिया और यूरोप के 49 देशों में रोगाणुरोधी उपयोग में समग्र कमी दर्ज की गई।
- इसके विपरीत अफ्रीकी और अमेरिकी क्षेत्रों के 31 देशों ने इसी अवधि के दौरान रोगाणुरोधी उपयोग में समग्र वृद्धि दर्ज की।
- रोगाणुरोधी विकास प्रवर्तक:
- 68% प्रतिभागियों ने विकास प्रवर्तकों के रूप में रोगाणुरोधकों का उपयोग बंद कर दिया है।
- 26% प्रतिभागियों ने प्रायः उचित कानून या विनियमों की कमी के कारण विकास प्रवर्तकों का उपयोग करना जारी रखा है।
- सामान्य रोगाणुरोधी विकास प्रवर्तकों में फ्लेवोमाइसिन, बैकीट्रैसिन, एविलामाइसिन और टायलोसिन शामिल हैं।
- जबकि फ्लेवोमाइसिन और एविलामाइसिन को वर्तमान में मानव उपयोग से बाहर रखा गया है, बैकीट्रैसिन को WHO के महत्त्वपूर्ण रोगाणुरोधी (CIA) के बीच वर्गीकृत नहीं किया गया है।
- इनमें से कुछ को CIA या सर्वोच्च प्राथमिकता वाले CIA (HP-CIA) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- सिफारिशें:
- उपयोग में प्रगति और बदलाव के बावजूद रोगाणुरोधी दवाओं की प्रभावकारिता को बनाए रखने के लिये निरंतर प्रयासों को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- नई एंटीबायोटिक दवाओं के विकास में चुनौतियों को देखते हुए मौजूदा एंटीबायोटिक प्रभावशीलता की सुरक्षा को एक साझा ज़िम्मेदारी के रूप में उजागर किया गया है।
- पैटर्न और प्रवृत्तियों की पहचान करने के लिये यह निगरानी महत्त्वपूर्ण है कि कैसे, कब और कौन से रोगाणुरोधी का उपयोग किया जाता है।
- यह निर्णय लेने की सुविधा प्रदान कर सकता है और इन प्रमुख दवाओं के इष्टतम एवं स्थायी उपयोग को सुनिश्चित करने के उपायों के कार्यान्वयन का समर्थन कर सकता है।
रोगाणुरोधी दवाएँ:
- परिचय:
- रोगाणुरोधी दवाएँ, जिन्हें सामान्यतः एंटीबायोटिक्स के रूप में जाना जाता है, ऐसे पदार्थ हैं जो बैक्टीरिया, कवक, वायरस और परजीवी जैसे सूक्ष्मजीवों को या तो मार देते हैं या उनके विकास को रोकते हैं।
- इनका उपयोग मनुष्यों, जानवरों और कभी-कभी पौधों में संक्रमण के इलाज या रोकथाम के लिये किया जाता है।
- ये दवाएँ आधुनिक चिकित्सा में विभिन्न सूक्ष्मजीवी रोगों को नियंत्रित और समाप्त करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण हैं।
- चिंताएँ:
- वर्ष 1928 में अलेक्जेंडर फ्लेमिंग द्वारा पेनिसिलिन की खोज से पहले, मामूली रूप से कटने पर भी यह रक्त में संक्रमण या मृत्यु का कारण बन जाता था। वर्तमान में विभिन्न क्षेत्रों में दुरुपयोग और अति प्रयोग के कारण ये जीवनरक्षक दवाएँ अपनी प्रभावकारिता खो रही हैं।
- इस घटना को 'रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance- AMR)' के रूप में जाना जाता है। यह पशु, मानव या पौधों की आबादी में उत्पन्न हो सकता है और फिर अन्य सभी प्रजातियों के लिये खतरा उत्पन्न कर सकता है।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने हेतु पहल:
- भारत:
- AMR रोकथाम पर राष्ट्रीय कार्यक्रम: इसे वर्ष 2012 में शुरू किया गया। इस कार्यक्रम के तहत राज्य स्तरीय मेडिकल कॉलेज में प्रयोगशालाएँ स्थापित करके AMR निगरानी नेटवर्क को मज़बूत किया गया है।
- AMR पर राष्ट्रीय कार्य योजना: यह वन हेल्थ दृष्टिकोण पर केंद्रित है और विभिन्न हितधारक मंत्रालयों/विभागों को शामिल करने के उद्देश्य से अप्रैल 2017 में लॉन्च किया गया था।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध सर्विलांस एंड रिसर्च नेटवर्क (AMRSN): इसे देश में दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के साक्ष्य उत्पन्न करने और रुझानों एवं पैटर्न को समझने के लिये वर्ष 2013 में लॉन्च किया गया था।
- AMR अनुसंधान और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) ने AMR में चिकित्सा अनुसंधान को मज़बूत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से नई दवाएँ विकसित करने की पहल की है।
- एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम: ICMR ने अस्पताल के वार्डों और ICU में एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग तथा अत्यधिक उपयोग को नियंत्रित करने के लिये पूरे भारत में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में एंटीबायोटिक स्टीवर्डशिप प्रोग्राम (AMSP) शुरू किया है।
- वैश्विक स्तर पर:
- विश्व रोगाणुरोधी जागरूकता सप्ताह (World Antimicrobial Awareness Week - WAAW):
- वर्ष 2015 से प्रतिवर्ष आयोजित किया जाने वाला WAAW एक वैश्विक अभियान है जिसका उद्देश्य विश्व भर में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बारे में जागरूकता बढ़ाना और दवा प्रतिरोधी संक्रमणों के विकास तथा प्रसार को धीमा करने के लिये आम जन, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं व नीति निर्माताओं के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं को प्रोत्साहित करना है।
- वैश्विक रोगाणुरोधी प्रतिरोध और उपयोग निगरानी प्रणाली (The Global Antimicrobial Resistance and Use Surveillance System- GLASS):
- जागरूकता अंतर को कम करने और सभी स्तरों पहल संबंधी रणनीतियाँ तैयार करने के लिये WHO ने वर्ष 2015 में GLASS की शुरुआत की।
- इसे मनुष्यों में AMR की निगरानी, रोगाणुरोधी दवाओं के उपयोग की निगरानी, खाद्य शृंखला और पर्यावरण में AMR से प्राप्त डेटा को क्रमिक रूप से एकीकृत करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- पशुओं में रोगाणुरोधी उपयोग (ANImal antiMicrobial USE- ANIMUSE) के लिये वैश्विक डेटाबेस:
- यह एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जो साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने में सहायता के लिये डेटा तक पहुँच की सुविधा प्रदान करता है।
- वैश्विक उच्च स्तरीय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन:
- वर्ष 2022 में रोगाणुरोधी प्रतिरोध पर तीसरे वैश्विक उच्च-स्तरीय मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में 47 देशों ने वर्ष 2030 तक पशुओं और कृषि क्षेत्र में रोगाणुरोधी उपयोग को 30-50% तक कम करने की प्रतिबद्धता जताई।
- विश्व रोगाणुरोधी जागरूकता सप्ताह (World Antimicrobial Awareness Week - WAAW):
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से, भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध के होने के कारण हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. क्या एंटीबायोटिकों का अति-उपयोग और डॉक्टरी नुस्खे के बिना मुक्त उपलब्धता, भारत में औषधि-प्रतिरोधी रोगों के अंशदाता हो सकते हैं? अनुवीक्षण और नियंत्रण की क्या क्रियाविधियाँ उपलब्ध हैं? इस संबंध में विभिन्न मुद्दों पर समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014) |
जैव विविधता और पर्यावरण
अफ्रीका में शेरों की संख्या में गिरावट
प्रिलिम्स के लिये:शेर संरक्षण, अफ्रीकी और एशियाई शेर मेन्स के लिये:शेरों के संरक्षण से संबंधित पहल |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल में प्रकाशित एक शोध में पाया गया है कि अफ्रीकी देशों के 62 भौगोलिक स्थानों (सामजिक व आर्थिक महत्त्व वाले क्षेत्र) में शेरों की संख्या यहाँ की वहन क्षमता से काफी कम हो गई है, जो शेरों की आबादी से संबंधित चिंताओं पर प्रकाश डालता है।
- इस अध्ययन के अनुसार, शेरों की वर्तमान संख्या 20,000 से 25,000 के बीच होने का अनुमान है और इसमें लगातार गिरावट आने की भी संभावना है।
प्रमुख बिंदु:
- अफ्रीका के 62 भौगोलिक स्थानों के लगभग 41.9% क्षेत्रों में 50 से कम शेर पाए गए और उनमें से 10 भौगोलिक स्थानों में शेरों की आबादी लगभग 50-100 होने की सूचना दी गई है।
- पूरे अफ्रीका में केवल सात भौगोलिक स्थानों पर 1000 से अधिक शेरों की आबादी होने की सूचना मिली।
- पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में अवैध शिकार, मानव-शेर संघर्ष के कारण हत्या आदि जैसी घटनाएँ शेरों के अस्तित्व के लिये खतरा उत्पन्न करती हैं।
- ज़ाम्बिया में नसुम्बु राष्ट्रीय उद्यान और मोज़ाम्बिक में लिम्पोपो राष्ट्रीय उद्यान, शेर संरक्षण से संबंधित दो महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय उद्यान हैं, इनमें शेर के अवैध शिकार के कारण शेरों की संख्या काफी तेज़ी से घट रही है।
- शोध में पाया गया कि बोत्सवाना, दक्षिण अफ्रीका, ज़िम्बाब्वे और नामीबिया जैसे दक्षिणी अफ्रीकी देशों में वर्ष 1993 और वर्ष 2014 के बीच इनकी संख्या में 12% की वृद्धि दर्ज की गई है।
- लेकिन शेरों के शेष आवासों में 60% की गिरावट देखी गई है, विशेषकर पश्चिम और मध्य अफ्रीका में।
शेर से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य:
- वैज्ञानिक नाम: पैंथेरा लियो (Panthera leo)
- परिचय:
- शेर को दो उप-प्रजातियों में विभाजित किया गया है: अफ्रीकी शेर (Panthera leo leo) और एशियाई शेर (Panthera leo persica)।
- एशियाई शेर अफ्रीकी शेरों की तुलना में थोड़े छोटे होते हैं।
- एशियाई शेरों में पाए जाने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण रूपात्मक विशेषता यह है कि उनके पेट की त्वचा पर विशिष्ट लंबवत फोल्ड होते हैं। यह विशेषता अफ्रीकी शेरों में काफी दुर्लभ होती है।
- प्राणिजगत में शेरों की भूमिका
- शेर वन पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं, वह अपने आवास का शीर्ष शिकारी है, जो चरवाहों की आबादी को नियंत्रित कर पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
- शेर अपने शिकार की आबादी को स्वस्थ रखने और उनके बीच लचीलापन बनाए रखने में भी योगदान देते हैं, क्योंकि वे झुंड के सबसे कमज़ोर सदस्यों को निशाना बनाते हैं। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से शिकार आबादी में रोग नियंत्रण में मदद करता है।
- खतरा:
- अवैध शिकार, एक स्थान पर रहने वाली एक ही तरह की आबादी से उत्पन्न आनुवंशिक अंतर्प्रजनन, रोग जैसे- प्लेग, कैनाइन डिस्टेंपर या प्राकृतिक आपदा।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN लाल सूची: सुभेद्य (Vulnerable)
- एशियाई शेर: संकटग्रस्त (Endangered)
- CITES: भारत में पाई जाने वाली आबादी परिशिष्ट- I में एवं अन्य सभी आबादी परिशिष्ट- II में
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972: अनुसूची I
- IUCN लाल सूची: सुभेद्य (Vulnerable)
- भारत में स्थिति:
- भारत एशियाई शेरों का निवास स्थल है, जो सासन-गिर राष्ट्रीय उद्यान (गुजरात) के संरक्षित क्षेत्र में पाए जाते हैं।
- वर्ष 2015 और वर्ष 2020 के बीच शेरों की आबादी 523 से बढ़कर 674 हो गई।
- विश्व में शेरों की संख्या:
- IUCN के अनुसार, शेरों की आबादी कुल मिलाकर लगभग 23000 से 39000 होने का अनुमान है, जो अधिकतर सहारा देशों में पाई जाती है।
भारत में शेरों के संरक्षण का प्रयास:
- प्रोजेक्ट लायन: यह कार्यक्रम एशियाई शेर के संरक्षण के लिये शुरू किया गया है, जिनकी आखिरी बची हुई आबादी गुजरात के एशियाई शेर लैंडस्केप में पाई जाती है।
- एशियाई शेर संरक्षण परियोजना: इस परियोजना में एशियाई शेर के समग्र संरक्षण हेतु रोग नियंत्रण और पशु चिकित्सा देखभाल के लिये बहु-क्षेत्रीय एजेंसियों के साथ समन्वय के माध्यम से समुदायों की भागीदारी के साथ वैज्ञानिक प्रबंधन की परिकल्पना की गई है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |
भारतीय राजव्यवस्था
भारत में बंधुत्व
प्रिलिम्स के लिये:प्रस्तावना, 42वाँ संशोधन अधिनियम, मौलिक कर्तव्य, संविधान सभा मेन्स के लिये:बंधुत्व का अर्थ, बंधुत्व के आदर्शों को प्राप्त करने की चुनौतियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
बंधुत्व, भारतीय संविधान में निहित मूल मूल्यों में से एक है, जो समाज में एकता और समानता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हालाँकि भारत में बंधुत्व का व्यावहारिक अनुप्रयोग कई प्रश्न और चुनौतियाँ उत्पन्न करता है।
बंधुत्व की अवधारणा की उत्पत्ति:
- प्राचीन ग्रीस:
- बंधुत्व, भाईचारे और एकता के विचार का एक लंबा इतिहास है।
- प्लेटो के लिसिस में दार्शनिक ज्ञान प्राप्त करने की तीव्र इच्छा के लिये फिलिया (प्रेम) शब्द का आह्वान किया गया है।
- इस संदर्भ में भाईचारे को दूसरों के साथ ज्ञान और बुद्धिमत्ता साझा करने की प्रबल इच्छा के रूप में देखा जाता था, जिससे बौद्धिक आदान-प्रदान के माध्यम से दोस्ती अधिक सार्थक हो जाती थी।
- अरस्तू का विचार:
- यूनानी दार्शनिक, अरस्तू ने "पोलिस" के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए बंधुत्व के विचार को जोड़ा, शहर-राज्य जहाँ व्यक्ति राजनीतिक प्राणियों के रूप में थे और शहर-राज्य (पोलिस) में नागरिकों के बीच मित्रता महत्त्वपूर्ण है।
- मध्य युग:
- मध्य युग के दौरान बंधुत्व ने एक अलग आयाम ले लिया, मुख्य रूप से यूरोप में ईसाई संदर्भ में।
- यहाँ बंधुत्व अक्सर धार्मिक और सांप्रदायिक बंधनों से जुड़ा होता था।
- इसे साझा धार्मिक मान्यताओं और प्रथाओं के माध्यम से बढ़ावा दिया गया, जिसमें आस्तिक/विश्वासियों के बीच बंधुत्व की भावना पर ज़ोर दिया गया।
- मध्य युग के दौरान बंधुत्व ने एक अलग आयाम ले लिया, मुख्य रूप से यूरोप में ईसाई संदर्भ में।
- फ्राँसीसी क्रांति :
- वर्ष 1789 में फ्राँसीसी क्रांति, जिसने प्रसिद्ध आदर्श वाक्य "लिबर्टे, एगलिटे, फ्रेटरनिटे" (स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व) को जन्म दिया।
- इसने स्वतंत्रता और समानता के साथ-साथ राजनीति के क्षेत्र में बंधुत्व की शुरुआत को चिह्नित किया।
- इस संदर्भ में बंधुत्व, नागरिकों के बीच एकता और एकजुटता के विचार का प्रतीक है क्योंकि वे अपने अधिकारों तथा स्वतंत्रता के लिये लड़ते हैं।
- इसने स्वतंत्रता और समानता के साथ-साथ राजनीति के क्षेत्र में बंधुत्व की शुरुआत को चिह्नित किया।
- वर्ष 1789 में फ्राँसीसी क्रांति, जिसने प्रसिद्ध आदर्श वाक्य "लिबर्टे, एगलिटे, फ्रेटरनिटे" (स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व) को जन्म दिया।
भारत में बंधुत्व की अवधारणा:
- भारत के समाजशास्त्र के अंदर भारतीय बंधुत्व की अपनी यात्रा है और भारतीय बंधुत्व की वर्तमान प्रकृति इसके संविधान में वर्णित राजनीतिक बंधुत्व से अलग है।
- भारत में स्वतंत्रता और समानता के साथ-साथ बंधुत्व एक संवैधानिक मूल्य है, जिसका उद्देश्य सामाजिक सद्भाव तथा एकता प्राप्त करना है।
- भारतीय संविधान के निर्माताओं ने पदानुक्रमित सामाजिक असमानताओं से ग्रस्त समाज में बंधुत्व के महत्त्व को पहचाना।
- डॉ. भीम राव अंबेडकर ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की अविभाज्यता पर बल दिया तथा इन्हें भारतीय लोकतंत्र का मूलभूत सिद्धांत माना।
- बंधुत्व से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- प्रस्तावना:
- प्रस्तावना के सिद्धांतों में स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय के साथ-साथ बंधुत्व का सिद्धांत भी शामिल किया गया।
- मौलिक कर्तव्य:
- मौलिक कर्तव्यों पर अनुच्छेद 51A को 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया तथा 86वें संशोधन द्वारा संशोधित किया गया।
- अनुच्छेद 51A(e) आमतौर पर प्रत्येक नागरिक के कर्तव्य को संदर्भित करता है जो 'भारत के सभी लोगों के मध्य सद्भाव तथा समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता' है।
भारतीय संदर्भ में बंधुत्व की सीमाएँ एवं चुनौतियाँ:
- सामाजिक और सांस्कृतिक अंतर:
- भारत की विविध संस्कृतियों तथा परंपराओं के कारण विभिन्न समुदायों के मध्य भ्रांति/मिथ्या बोध एवं संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- धार्मिक अथवा जाति-आधारित मतभेदों के परिणामस्वरूप अमूमन अविश्वास, भेदभाव और यहाँ तक कि हिंसा भी होती है, जिससे बंधुत्व खतरे में पड़ सकता है।
- धार्मिक असहिष्णुता अथवा संघर्ष की घटनाएं सामाजिक लगाव और एकता को बाधित कर सकती हैं, जिससे बंधुत्व की भावना को प्रोत्साहन नहीं मिलता है।
- इस देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों को अनगिनत बार ऐसे सामाजिक और राजनीतिक तिरस्कार का सामना करना पड़ा है।
- भारत की विविध संस्कृतियों तथा परंपराओं के कारण विभिन्न समुदायों के मध्य भ्रांति/मिथ्या बोध एवं संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- आर्थिक असमानताएँ:
- समाज के विभिन्न वर्गों के बीच आर्थिक असमानता, असंतोष और भेदभाव की भावनाओं को जन्म दे सकती है।
- जब लोग अपनी सफलता में आर्थिक बाधाओं को महसूस करते हैं, तो वे सहयोग करने में झिझक सकते हैं, जिससे भाईचारे के एक प्रमुख तत्त्व, सामाजिक एकजुटता में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- राजनीतिक मतभेद:
- राजनीतिक विचारधाराएँ समाज में गहन विभाजन की स्थिति उत्पन्न कर सकती हैं तथा सहयोग एवं संवाद में बाधा डाल सकती हैं।
- इस तरह के मतभेद अमूमन ध्रुवीकरण की स्थिति उत्पन्न कर शत्रुता और असहिष्णुता के माहौल को बढ़ावा देते हैं जो सकारात्मक सहभागिता में बाधा डालता है।
- विश्वास की कमी:
- समूहों के बीच आपसी विश्वास और समझ की कमी भाईचारे को कमज़ोर कर सकती है।
- जब विश्वास की कमी होती है, तो सामान्य लक्ष्यों की दिशा में एकजुट होकर काम करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- संवैधानिक नैतिकता की विफलता:
- भारतीय संवैधानिक मूल्यों पर आधारित संवैधानिक नैतिकता, भाईचारा बनाए रखने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- इसकी विफलता से संस्थानों और कानून के शासन में विश्वास की कमी हो सकती है जिससे अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है तथा भाईचारा कमज़ोर हो सकता है।
- भारतीय संवैधानिक मूल्यों पर आधारित संवैधानिक नैतिकता, भाईचारा बनाए रखने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- अपर्याप्त नैतिक व्यवस्था:
- मूल्यों और सामाजिक कर्तव्यों का पालन करना तथा समाज में एक कामकाज़ी नैतिक व्यवस्था का होना अति आवश्यक है ।
- इस क्षेत्र में विफलता के परिणामस्वरूप भाईचारे की स्थिति बिगड़ सकती है तथा अनैतिक कार्यों से नागरिकों के बीच अविश्वास उत्पन्न हो सकता है।
- शैक्षिक असमानताएँ:
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच में असमानता सामाजिक असमानताओं की स्थिति को बरकरार रख सकती है और भाईचारे में बाधा डाल सकती है। - शैक्षिक असमानताओं के परिणामस्वरूप अमूमन असमान अवसर प्राप्त होते हैं, जिससे समुदायों के बीच विभाजन की स्थिति बनती है।
- क्षेत्रीय असमानताएँ:
- भारत की व्यापक भौगोलिक व क्षेत्रीय विविधता आर्थिक विकास एवं बुनियादी ढाँचे में असमानताएँ उत्पन्न कर सकती है।
- ये क्षेत्रीय असमानताएँ कुछ समुदायों में हाशिये पर होने की भावना उत्पन्न कर सकती हैं, जिससे भाईचारे को बढ़ावा देने के प्रयासों को चुनौती उत्पन्न हो सकती है।
- भाषा और सांस्कृतिक बाधाएँ:
- भारत की भाषाओं और बोलियों की बहुलता कभी-कभी संचार बाधाएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
- भाषा और सांस्कृतिक मतभेद प्रभावी संवाद और सहयोग में बाधा डाल सकते हैं, जिससे भाईचारे की भावना प्रभावित हो सकती है।
- भारत की भाषाओं और बोलियों की बहुलता कभी-कभी संचार बाधाएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
आगे की राह
- विभिन्न समुदायों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक सद्भाव को बढ़ावा देने वाली पहल मतभेदों को दूर करने तथा भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक हैं। इन कार्यक्रमों को विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों के बीच संवाद, समझ एवं सहयोग को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- नागरिक शिक्षा में छोटी उम्र से ही बंधुत्व, समानता और सामाजिक न्याय के मूल्यों को स्थापित किया जाना चाहिये। ज़िम्मेदार नागरिकता और नैतिक आचरण का उदाहरण स्थापित करने के लिये समाज के सभी स्तरों पर नैतिक नेतृत्व आवश्यक है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता के प्रति सम्मान को प्रोत्साहित करना महत्त्वपूर्ण है। अंतर-धार्मिक संवाद, धार्मिक एवं सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों के लिये सुरक्षा तथा सहिष्णुता की संस्कृति को बढ़ावा देने से सामाजिक एकता बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
- नैतिक आचरण और ज़िम्मेदार नागरिकता का उदाहरण स्थापित करने के लिये समाज के सभी स्तरों पर नैतिक नेतृत्व को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- ऐसी नीतियाँ और कार्यक्रम लागू करने चाहिये जो आर्थिक असमानताओं को कम कर सकें, उनका समाधान करें, सभी नागरिकों के लिये अवसरों और संसाधनों तक समान पहुँच सुनिश्चित करें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित उद्देश्यों में से कौन-सा एक भारत के संविधान की उद्देशिका में सन्निविष्ट नहीं है? (2017) (a) विचार की स्वतंत्रता उत्तर: (b) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. ‘उद्देशिका (प्रस्तावना)’ में शब्द ‘गणराज्य’ के साथ जुड़े प्रत्येक विशेषण पर चर्चा कीजिये। क्या वर्तमान परिस्थितियों में वे प्रतिरक्षणीय हैं? (2016) |