डेली न्यूज़ (20 May, 2024)



ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का मुद्दा

प्रिलिम्स के लिये:

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, लैंडफिल, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016

मेन्स के लिये:

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित मुद्दे

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने नई दिल्ली में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर कड़ी आलोचना करते हुए गंभीर चिंता व्यक्त की, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी में 3,800 टन से अधिक का अनुपचारित अपशिष्ट लैंडफिल में एकत्र होने के कारण यह सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये जोखिम उत्पन्न करता है।

भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन संबंधी मुद्दे क्या हैं?

  • परिचय:
    • ठोस अपशिष्ट में ठोस या अर्द्ध-ठोस घरेलू अपशिष्ट, स्वच्छता अपशिष्ट, वाणिज्यिक अपशिष्ट, संस्थागत अपशिष्ट, खानपान और बाज़ार अपशिष्ट के साथ ही अन्य गैर-आवासीय अपशिष्ट शामिल होते हैं।
      • इसमें सड़क की सफाई, सतही नालियों से एकत्र गाद, बागवानी अपशिष्ट, कृषि और डेयरी अपशिष्ट, उपचारित बायोमेडिकल अपशिष्ट (औद्योगिक, जैव-चिकित्सा एवं ई-अपशिष्ट को छोड़कर), बैटरी तथा रेडियोधर्मी अपशिष्ट शामिल हैं।
    • भारत में विश्व की लगभग 18% जनसंख्या है और यह वैश्विक नगरपालिका अपशिष्ट का 12% हिस्सा उत्पन्न करता है।
      • द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (The Energy and Resources Institute-TERI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत हर साल 62 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न करता है। लगभग 43 मिलियन टन (70%) एकत्र किया जाता है, जिसमें से लगभग 12 मिलियन टन का निपटान किया जाता है और 31 मिलियन टन लैंडफिल साइट्स पर डंप कर दिया जाता है।
    • बदलते उपभोग प्रतिरूप तथा तीव्र आर्थिक विकास के साथ यह अनुमान लगाया गया है कि शहरी नगरपालिका ठोस अपशिष्ट वर्ष 2030 में बढ़कर 165 मिलियन टन हो जाएगा।
  • मुद्दे:
    • नियमों का अप्रभावी क्रियान्वयन:
      • अधिकांश मेट्रो शहर कूड़ेदानों से भरे पड़े हैं जो या तो पुराने, क्षतिग्रस्त हैं या ठोस अपशिष्ट रखने के लिये अपर्याप्त हैं।
      • एक प्रमुख मुद्दा स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण की कमी है, जिसके कारण ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के उल्लंघन में असंसाधित मिश्रित अपशिष्ट लैंडफिल में प्रवेश कर रहा है।
      • इसके अतिरिक्त कुछ क्षेत्रों में नियमित अपशिष्ट संग्रहण सेवाओं का अभाव है, जिसके कारण अपशिष्ट एकत्र हो जाता है तथा कूड़ा-कचरा फैल जाता है।
    • डंपिंग साइट्स की समस्या:
      • मेट्रो शहरों में अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों को भूमि की कमी का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण अपशिष्ट अनुपचारित रह जाता है तथा अवैध डंपिंग और हितधारक समन्वय की कमी के कारण नगरपालिका अपशिष्ट प्रबंधन जटिल हो जाता है।
      • मेट्रो शहरों में अपशिष्ट-प्रसंस्करण सुविधाओं के बावजूद बड़ी मात्रा में ठोस अपशिष्ट असंसाधित रहता है, जिससे मीथेन उत्सर्जन, लीचेट और लैंडफिल आग जैसे पर्यावरणीय परिसंकट उत्पन्न होते हैं, जो अक्सर पुराने अपशिष्ट में परिवर्तित हो जाते हैं।
      • वर्ष 2019 में शुरू किये गए बायोमाइनिंग प्रयासों को अब वर्ष 2026 तक पूर्ण किये जाने का अनुमान है, जिससे ताज़ा अपशिष्ट का उचित प्रबंधन होने तक पर्यावरणीय प्रभाव लंबे समय तक रहेगा, जिससे लैंडफिल की वृद्धि जारी रहेगी।
    • डेटा संग्रहण तंत्र का अभाव:
      • ऐतिहासिक डेटा (समय शृंखला) या कई क्षेत्रों (पैनल डेटा) पर डेटा के बिना, निजी कंपनियाँ अपशिष्ट प्रबंधन परियोजनाओं में भाग लेने की संभावित लागत और लाभों का प्रभावी तरीके से आकलन नहीं कर पाती हैं।
      • आँकड़ों की यह कमी निजी संस्थाओं के लिये समग्र बाज़ार आकार और संभावित लाभप्रदता के साथ भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन समाधानों का आकलन करना चुनौतीपूर्ण बनाती है। 
    • औपचारिक और अनौपचारिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली: निम्न आय वाले समुदायों में नगरपालिका अपशिष्ट संग्रहण सेवाओं में कमी देखी जाती है, जिस कारण से अनौपचारिक क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा मिलता है।
      • अनौपचारिक तौर पर अपशिष्ट एकत्रित करने वालों को अक्सर अस्वच्छ परिस्थितियों और सुरक्षा उपकरणों की कमी के कारण स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है, कुछ क्षेत्रों में बाल श्रम एक चिंता का विषय है।
    • जनजागरूकता का अभाव: इसके अलावा सामान्यतः सार्वजनिक जागरूकता और उचित अपशिष्ट प्रबंधन तकनीकों की कमी अनुचित निपटान प्रथाओं और अपशिष्ट के योगदान में वृद्धि करती है।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 क्या हैं?

  • इन नियमों ने नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2000 को प्रतिस्थापित किया और स्रोत पर कचरे के पृथक्करण, स्वच्छता एवं पैकेजिंग के साथ कचरे के निपटान के लिये निर्माता की ज़िम्मेदारी तथा थोक उत्पादक से संग्रह, निपटान एवं प्रसंस्करण के लिये उपयोगकर्त्ता शुल्क पर ध्यान केंद्रित किया।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • अपशिष्ट उत्पादकों को इसे तीन श्रेणियों में विभाजित करने की ज़िम्मेदारी सौपी गई है:
      • गीला (जैव निम्नीकरण)
      • सूखा (प्लास्टिक, कागज़, धातु, लकड़ी आदि)
      • घरेलू खतरनाक अपशिष्ट (डायपर, नैपकिन, सफाई एजेंटों के खाली कंटेनर, मच्छर प्रतिरोधी आदि) और पृथक किये गए अपशिष्ट को अधिकृत रूप से अपशिष्ट एकत्रित करने वालों अथवा अपशिष्ट संग्रहकर्त्ताओं या स्थानीय निकायों को सौंप देना चाहिये।
    • अपशिष्ट उत्पादकों को शुल्क का भुगतान करना होगा:
      • अपशिष्ट संग्रहकर्त्ताओं के लिये 'उपयोगकर्त्ता शुल्क'।
      • अपशिष्ट फैलाने और पृथक न करने पर 'स्पॉट फाइन'।
    • जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट को जहाँ तक संभव हो परिसर के भीतर कंपोस्टिंग अथवा बायो-मिथेनेशन (Bio-Methanation) के माध्यम से संसाधित, उपचारित और निपटाया जाना चाहिये।
    • टिन, काँच और प्लास्टिक पैकेजिंग जैसे डिस्पोज़ेबल उत्पादों के निर्माताओं और ब्रांड मालिकों को अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली स्थापित करने में स्थानीय अधिकारियों को वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिये।

अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित अन्य पहल:

  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (PWM) नियम, 2016: यह प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादकों को प्लास्टिक अपशिष्ट के उत्पादन को कम करने, प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रसार को रोकने और अन्य उपायों के साथ स्रोत पर अपशिष्ट का अलग-अलग भंडारण सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाने का आदेश देता है। फरवरी 2022 में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022 अधिसूचित किये गए थे।
  • जैव-चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016: नियमों का उद्देश्य देश भर में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं (Healthcare Facilities- HCF) से प्रतिदिन निकलने वाले जैव-चिकित्सा अपशिष्ट का उचित प्रबंधन करना है।
  • अपशिष्ट से धन पोर्टल: इसका उद्देश्य ऊर्जा उत्पन्न करने, सामग्री का पुनर्चक्रण और मूल्यवान संसाधनों को निकालने के लिये अपशिष्ट के उपचार के लिये प्रौद्योगिकियों की पहचान, विकास और कार्यान्वयन करना है।
  • अपशिष्ट से ऊर्जा: अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्र औद्योगिक प्रसंस्करण के लिये नगरपालिका और औद्योगिक ठोस अपशिष्ट को विद्युत्/ताप में परिवर्तित करता है।
  • प्रोजेक्ट रीप्लान: इसका लक्ष्य प्रसंस्कृत और उपचारित प्लास्टिक अपशिष्ट को 20:80 के अनुपात में कपास फाइबर के कपड़ों (Cotton Fibre Rags) के साथ मिलाकर कैरी बैग बनाना है।

आगे की राह

  • नगर पालिकाओं की भूमिका: शहरों को भविष्य की जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रखते हुए बायोडिग्रेडेबल कचरे के लिये खाद और बायोगैस उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर और हितधारक परामर्श के माध्यम से सुविधाओं की स्थापना एवं संचालन करके अपशिष्ट प्रसंस्करण क्षमताओं को बढ़ाना चाहिये।
    • भूमि की पहचान करना, संयंत्र स्थापित करना और उनका प्रभावी ढंग से संचालन विभिन्न हितधारकों से परामर्श करके किया जाना चाहिये।
  • अपशिष्ट-से-ऊर्जा औचित्य: रिफ्यूज़-व्युत्पन्न ईंधन (RDF), जिसमें प्लास्टिक, कागज़ और कपड़ा जैसे गैर-पुनर्चक्रण योग्य सूखा कचरा शामिल होता है, का उच्च ऊष्मीय मान होता है और इसका उपयोग अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजनाओं में बिजली उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
  • विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण: इसे खाद सुविधाएँ स्थापित करने के लिये पड़ोसी राज्यों (हरियाणा, उत्तर प्रदेश) के साथ सहयोग करके दिल्ली जैसे महानगरीय क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है।
    • इन राज्यों में जैविक खाद बाज़ार भी मौजूद होते हैं।
    • प्रत्येक वार्ड में 5 TPD क्षमता वाले (तमिलनाडु और केरल से प्रेरित) गीले अपशिष्ट के कार्यान्वयन के लिये माइक्रो-कम्पोस्टिंग केंद्र (MCC)।
    • सूखे कचरे के लिये प्रत्येक वार्ड में 2 TPD क्षमता (बंगलूरू से प्रेरित) के साथ सूखा कचरा संग्रह केंद्र (DWCC) स्थापित किये जा सकते हैं।
  • एकीकृत दृष्टिकोण: सभी कचरे का उपचार सुनिश्चित करने के लिये बड़े पैमाने पर प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ विकेंद्रीकृत विकल्पों को संयोजित करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. शहरी क्षेत्रों में कचरे के प्रभावी प्रबंधन में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और इन मुद्दों के समाधान के लिये आवश्यक उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही है? (2019)

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे।
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और ब्यौरेवार मानदंड उपबंधित हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे, फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)

प्रश्न. "जल, सफाई एवं स्वच्छता की आवश्यकता को लक्षित करने वाली नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी वर्गों की पहचान को प्रत्याशित परिणामों के साथ जोड़ना होगा।" 'वाश' योजना के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2017)

प्रश्न. सामाजिक प्रभाव और समझाना-बुझाना स्वच्छ भारत अभियान की सफलता में किस प्रकार योगदान कर सकते हैं? (2016)


पैकेज्ड खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय पोषण संस्थान, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI), हाइपरटेंशन, टाइप 2 मधुमेह

मेन्स के लिये:

सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा, भारत का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, पैकेज्ड खाद्य पदार्थों के संबंध में चिंताएँ, स्वस्थ भोजन को बढ़ावा देने के भारत के प्रयास

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) और राष्ट्रीय पोषण संस्थान (National Institute of Nutrition- NIN) ने स्वास्थ्य जोखिमों से बचने के लिये खाद्य पदार्थों को ध्यान से पढ़ने के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।

  • उनकी हालिया रिपोर्ट स्वस्थ खान-पान की आदतों के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करती है और पैकेज्ड खाद्य पदार्थों पर भ्रामक दावों के विरुद्ध चेतावनी देती है।

स्वस्थ जीवनशैली के लिये मुख्य सिफारिशें क्या हैं?

  • उपभोग में संयम: ये दिशा-निर्देश तेल और वसा का उपयोग संयम से करने तथा नमक एवं चीनी का सेवन कम करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।
  • व्यायाम और शारीरिक गतिविधि: दिशा-निर्देश मोटापे जैसी बीमारियों को रोकने के लिये संतुलित आहार के साथ-साथ नियमित शारीरिक गतिविधि पर ज़ोर देते हैं।
    • कम शारीरिक गतिविधि और अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी एवं अधिक वजन जैसी समस्या को बढ़ाती है।
  • आहार विविधता और पोषक तत्त्वों का सेवन: दिशा-निर्देश संतुलित आहार के लिये न्यूनतम आठ खाद्य समूहों से मैक्रोन्यूट्रिएंट्स और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स को प्राप्त करने की सलाह देते हैं।
    • इसका उद्देश्य सभी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूर्ति करना और सभी आयु समूहों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को रोकना है।
  • अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों को सीमित करना: दिशा-निर्देश आहार में अति-प्रसंस्कृत या प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की खपत को सीमित करने के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं।
    • इन इंस्टेंट फूड्स विकल्पों में चीनी, नमक और वसा की मात्रा अधिक होती है, जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो सकते हैं, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी में योगदान कर सकते हैं और अधिक वजन जैसी समस्या को बढ़ा सकते हैं।
  • सूचित खाद्य विकल्प: दिशा-निर्देश उपभोक्ताओं को स्वस्थ भोजन विकल्प चुनने में सक्षम बनाने के लिये उन्हें खाद्य पदार्थों की जाँच करने की आदत डालने का आग्रह करते हैं।
    • यह आदत उपभोक्ताओं को शर्करा, वसा और नमक वाली उच्च खाद्य पदार्थों से बचने में सक्षम बनाकर मोटापे को रोकने में सहायता कर सकती है।
  • प्रोटीन अनुपूरकों से बचाव: दिशा-निर्देश मांसपेशियों के विकास के लिये प्रोटीन अनुपूरकों के उपयोग को हतोत्साहित करते हैं।
    • ये सुझाव देते हैं कि अत्यधिक मात्रा में उच्च-प्रोटीन अनुपूरक लेने से गुर्दे की क्षति और हड्डियों में खनिजों की हानि (Bone Mineral Loss) जैसी समस्याएँ हो सकती हैं तथा प्रोटीन अनुपूरक केवल मांसपेशियों की ताकत और आकार को बढ़ाते हैं।

दिशा-निर्देश आबादी को कैसे लाभान्वित कर सकते हैं?

  • गर्भवती महिलाएँ और सद्य प्रसूताएँ: अतिरिक्त पौष्टिक आहार तक पहुँच माँ और बच्चे के समग्र स्वास्थ्य के विकास में सहायता करता है, जिससे जोखिमों का खतरा कम हो जाता है।
  • शिशु और छोटे बच्चे: छह माह तक विशेष स्तनपान इष्टतम शारीरिक और संज्ञानात्मक विकास का समर्थन करता है, इसके बाद पूरक खाद्य पदार्थों की शुरुआत होती है।
  • बच्चे और किशोर: संतुलित आहार इष्टतम विकास के साथ सीखने, शारीरिक वृद्धि और शारीरिक गतिविधि का समर्थन करता है।
  • बुजुर्ग: पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता देने से हड्डियाँ मज़बूत होने के साथ ही यह शारीरिक प्रतिरक्षा, जीवन की गुणवत्ता में सुधार जैसी विशिष्ट आवश्यकताओं का समाधान करता है।                

डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ कैसे भ्रामक हो सकते हैं?

  • ध्यान आकर्षित करने वाले लेबल: डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों पर अक्सर उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षित करने और स्वास्थ्य लाभ की जानकारी देने के लिये डिज़ाइन किये गए लेबल का उपयोग किया जाता है, जो भ्रामक हो सकता है।
  • 'प्राकृतिक' दावे: प्रसंस्कृत भोजन, जिसे 'प्राकृतिक' रूप में लेबल किया गया है, में संक्षारक और हानिकारक रंग शामिल हो सकते हैं।
    • इस शब्द का उपयोग अक्सर एक या दो प्राकृतिक अवयवों को प्रदर्शित करने के लिये किया जाता है, जिससे उपभोक्ता भ्रमित हो जाते हैं। "प्राकृतिक", "जैविक" और "चीनी-मुक्त" जैसे शब्द अस्पष्ट हो सकते हैं और इनकी उपभोक्ताओं द्वारा गलत व्याख्या की जा सकती है, जो संभावित रूप से अस्वास्थ्यकर विकल्पों की ओर ले जा सकते हैं।
    • वास्तव में भोजन परिरक्षकों, स्वाद, रंगों, कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों से मुक्त होना चाहिये। केवल इन मानदंडों को पूरा करने वाले उत्पादों में ही भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा अनुमोदित 'जैविक भारत' लोगो का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा-53 के तहत भ्रामक दावे करना अथवा विज्ञापन देना दंडनीय अपराध है।
  • पैकेज्ड जूस लेबल: FSSAI के नियमों के अनुसार, 10% से कम प्राकृतिक फल वाले जूस को असली गूदे अथवा रस ( Real Pulp Or Juice) से बना लेबल किया जा सकता है, जो उपभोक्ताओं को वास्तविक सामग्री के बारे में गुमराह कर सकता है।
  • फलों का पकना: फलों को  पकाने के लिये कैल्शियम कार्बाइड का उपयोग डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों पर भ्रामक हो सकता है क्योंकि इस तरह से पकने वाले फलों से स्वास्थ्य संबंधी जोखिम जुड़े होते हैं।
    • कैल्शियम कार्बाइड एसिटिलीन गैस उत्सर्जित करती है, जिसमें आर्सेनिक और फास्फोरस के हानिकारक अंश होते हैं, जिन्हें "मसाला" कहा जाता है।
    • इनके परिणामस्वरूप चक्कर आना, बार-बार प्यास लगना, चिड़चिड़ापन, कमज़ोरी, निगलने में कठिनाई, उल्टी और त्वचा के अल्सर सहित कई स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त एसिटिलीन गैस की देखरेख करना स्वयं में खतरनाक हो सकता है।
    • इन खतरों के कारण खाद्य सुरक्षा और मानक (बिक्री पर निषेध और प्रतिबंध) विनियम, 2011 के तहत फलों को पकाने के लिये कैल्शियम कार्बाइड के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
      • इसके बजाय FSSAI ने भारत में फलों को पकाने के लिये एक सुरक्षित विकल्प के रूप में "एथिलीन गैस" के उपयोग की अनुमति दी है क्योंकि यह प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला हार्मोन है जो फलों के पकने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
  • रसायन का संदूषण: संदूषण को लेकर सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग के साथ-साथ भारतीय ब्रांडों के कुछ मसाला मिश्रणों पर नेपाल का हालिया प्रतिबंध भ्रामक पैकेजिंग और संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में गंभीर चिंताएँ पैदा करता है।
    • धूम्रीकरण में उपयोग किये जाने वाले रसायन एथिलीन ऑक्साइड (EtO) संदूषण से इन उत्पादों के दूषित होने का संदेह है।
  • साबुत अनाज की गलत प्रस्तुति: उत्पाद साबुत अनाज का विज्ञापन कर सकते हैं जबकि इसका केवल एक छोटा सा प्रतिशत ही इसमें होता है, शेष परिष्कृत अनाज होते हैं।

भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की क्या स्थिति है?

स्वस्थ भोजन को बढ़ावा देने के लिये भारत ने क्या प्रयास किये हैं?

आगे की राह 

  • शब्दावली का मानकीकरण: उपभोक्ताओं द्वारा अस्पष्टता और गलत व्याख्या से बचने के लिये "प्राकृतिक," "जैविक," और "चीनी मुक्त" जैसे शब्दों की स्पष्ट परिभाषा और मानकीकृत उपयोग लागू कीजिये।
    • संभावित संदूषकों के बारे में जानकारी सहित उपयोग की गई सभी प्रसंस्करण विधियों को स्पष्ट रूप से प्रकट करने के लिये खाद्य लेबल अनिवार्य कीजिये।
  • पोषण संबंधी साक्षरता: कम उम्र से ही खाद्य लेबल पढ़ने और भोजन के विकल्प चुनने की आदत डालने के लिये स्कूली पाठ्यक्रम में पोषण संबंधी साक्षरता को शामिल करना।
  • कराधान और सब्सिडी: स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों को और अधिक किफायती बनाने के लिये अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर कराधान लागू करना और संपूर्ण खाद्य पदार्थों पर सब्सिडी प्रदान करना
  • मोबाइल एप्लिकेशन: ऐसे मोबाइल एप्लिकेशन विकसित करना जो उत्पाद बारकोड को स्कैन कर सकें और पोषण संबंधी सामग्री और स्वास्थ्य रेटिंग का विस्तृत विश्लेषण प्रदान कर सकें।
  • भोजन योजना उपकरण: भारतीय आबादी के अनुरूप साक्ष्य-आधारित आहार दिशा-निर्देश विकसित और प्रसारित करना। स्वस्थ, संतुलित आहार को बढ़ावा देने के लिये सुलभ भोजन योजना उपकरण और संसाधन प्रदान करना।
  • स्वास्थ्य नीतियाँ: दिशा-निर्देश राष्ट्रीय पोषण नीति के लक्ष्यों का समर्थन करते हैं और समग्र पोषण और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयासों के पूरक हैं।
    • स्थानीय किसानों के बाज़ारों का समर्थन करने और किचन गार्डन को बढ़ावा देने से ताज़ा उपज तक पहुँच भी बढ़ सकती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. सार्वजनिक स्वास्थ्य परिणामों पर भ्रामक लेबल सहित पैकेज्ड खाद्य पदार्थों में भ्रामक प्रथाओं के निहितार्थ पर चर्चा कीजिये और संतुलित पोषण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पहल की प्रभावशीलता का आकलन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत में पूर्व-संवेष्टित (प्री-पैकेज्ड) वस्तुओं के संदर्भ में खाद्य सुरक्षा और मानक (पैकेजिंग एवं लेबलिंग) विनियम, 2011 के अनुसार किसी निर्माता को मुख्य लेबल पर निम्नलिखित में से कौन-सी सूचना अंकित करनी अनिवार्य है? (2016)

  1. संघटकों की सूची, जिसमें संयोजी शामिल हैं 
  2. पोषण-विषयक सूचना
  3. चिकित्सा व्यवसाय द्वारा दी गई किसी एलर्जी प्रतिक्रिया की संभावना के संदर्भ में संस्तुतियाँ, यदि कोई हैं
  4. शाकाहारी/मांसाहारी

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (c)


सर्वोच्च न्यायालय ने PMLA मामलों में ED की गिरफ्तारी की शक्तियों को सीमित किया

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, मनी लॉन्ड्रिंग, मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002, प्रवर्तन निदेशालय, नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट, (NDPS) 1985,  प्रवर्तन मामले की जानकारी रिपोर्ट, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999

मेन्स के लिये:

मनी-लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA), सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और उसके प्रभाव, भारत की विधायी और नियामक संरचना सभी प्रकार की मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिये साथ मिलकर कार्य करती है।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय के एक हालिया निर्णय के अनुसार, विशेष न्यायालय द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के आधार पर प्रस्तुत आरोप-पत्र प्राप्त होने के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ED) गिरफ्तारी करने में सक्षम नहीं है।

  • निर्णय ED की गिरफ्तारी करने की शक्ति को सीमित करता है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ज़ोर देता है।

PMLA के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय क्या है?

  • प्रश्नगत प्रावधान: यह निर्णय  ED के विरुद्ध एक अपील से उपजा है, जिसमें अग्रिम ज़मानत नहीं देने वाले पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी गई थी। 
    • इस मामले में इस बात की जाँच की गई कि क्या कोई आरोपी दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के नियमित प्रावधानों के तहत ज़मानत के लिये आवेदन कर सकता है और यदि हाँ, तो क्या ऐसी ज़मानत याचिका को PMLA की धारा 45 के तहत दो शर्तों को पूरा करना होगा।
    • न्यायालय ने इस बात पर भी विचार किया कि क्या PMLA जाँच के दौरान गिरफ्तार नहीं किये गए आरोपियों को कठोर PMLA ज़मानत शर्तों को पूरा करना होगा यदि वे सम्मन के बाद न्यायालय में पेश होते हैं या उनके उपस्थित होने में विफलता के लिये वारंट जारी किया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:

  • समन पर उपस्थित होने वाले अभियुक्तों की स्थिति: यदि कोई आरोपी किसी समन के अनुसार निर्दिष्ट विशेष  न्यायालय के समक्ष पेश होता है, तो उसे हिरासत में नहीं माना जा सकता है और इसलिये उसे PMLA द्वारा लगाई गई कठोर शर्तों के अंर्तगत ज़मानत के लिये आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।
    • ED को किसी आरोपी के न्यायालय में पेश होने के बाद उसकी हिरासत के लिये अलग से आवेदन करना होगा, जिसमें हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता के लिये विशिष्ट आधार दर्शाने होंगे।
    • स्वतंत्रता की यह परिकल्पना व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की रक्षा की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • बॉण्ड/ज़मानत की विशेषताएँ: आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 88 के अनुसार, विशेष न्यायालय अभियुक्त को बॉण्ड या ज़मानत या गारंटी प्रदान करने का आदेश दे सकता है।
    • हालाँकि यह ज़मानत, बॉण्ड देने के समान नहीं है और यह PMLA की धारा 45 में उल्लिखित सटीक दोहरी आवश्यकताओं को पूरा करने के अधीन नहीं है।
  • क्रमिक गिरफ्तारी प्रक्रिया: यदि अभियुक्त समन के बावजूद न्यायालय में उपस्थित नहीं होता है, तो विशेष न्यायालय ज़मानती (जहाँ ज़मानत प्राप्त की जा सकती है) वारंट जारी कर सकता है।
    • यदि अभियुक्त फिर भी पेश नहीं होता है, तो न्यायालय गैर-ज़मानती वारंट (बिना ज़मानत के गिरफ्तारी) जारी कर सकता है।
  • गैर-अभियुक्त पक्षों की गिरफ्तारी: ED उस व्यक्ति को भी  गिरफ्तार कर सकती है जिसे प्रारंभिक PMLA शिकायत में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है। 
    • हालाँकि ऐसा करने के लिये ED को PMLA की धारा 19 में उल्लिखित गिरफ्तारी की उचित प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।

PMLA के तहत जमानत की दोहरी शर्तें क्या हैं?

PMLA की धारा 45 के तहत दोहरी शर्तें हैं: 

  • निर्दोषता साबित करना यह कठोर ज़मानत की शर्तों को आरोपित करता है, जिसमें अभियुक्त को अपनी निर्दोषता साबित करने की आवश्यकता होती है। 
  • यह सुनिश्चित करना कि ज़मानत पर रहते हुए कोई अपराध न हो: अभियुक्त को न्यायाधीश को यह विश्वास दिलाने में सक्षम होना चाहिये कि वह ज़मानत पर रहते हुए कोई अपराध नहीं करेगा।
    • सबूत का भार पूरी तरह से जेल में बंद अभियुक्त पर है।
    • ये दोहरी स्थितियाँ किसी अभियुक्त के लिये PMLA में ज़मानत पाना लगभग असंभव बना देती हैं।

PMLA क्या है?

  • परिचय: मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम, 2002 (Prevention of Money Laundering Act- PMLA) को मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों को रोकने और मनी लॉन्ड्रिंग से प्राप्त संपत्ति की ज़ब्ती का प्रावधान करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
    • इसका उद्देश्य मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद के वित्तपोषण जैसी अवैध गतिविधियों से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग का मुकाबला करना है।
  • PMLA के प्रमुख प्रावधान:
    • अपराध और दंड: PMLA मनी लॉन्ड्रिंग के अपराधों को परिभाषित करता है और ऐसी गतिविधियों के लिये ज़ुर्माना लगाता है। इसमें अपराधियों के लिये कठोर कारावास और ज़ुर्माने का प्रावधान है।
      • मनी लॉन्ड्रिंग अवैध रूप से अर्जित धन को वैध प्रतीत होने वाले धन में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है।
    • संपत्ति की कुर्की और ज़ब्ती: यह अधिनियम मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल संपत्ति की कुर्की और ज़ब्ती की अनुमति देता है। यह इन कार्यवाहियों की निगरानी के लिये एक निर्णायक प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान करता है।
    • रिपोर्टिंग आवश्यकताएँ: PMLA कुछ संस्थाओं, जैसे- बैंकों और वित्तीय संस्थानों को लेन-देन के रिकॉर्ड बनाए रखने और वित्तीय खुफिया इकाई (Financial Intelligence Unit- FIU) को संदिग्ध लेन-देन की रिपोर्ट करने का आदेश देता है।
    • अपीलीय न्यायाधिकरण: PMLA की धारा 25 एक अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना का प्रावधान करती है, जिसे निर्णायक प्राधिकरण द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील सुनने की शक्ति प्राप्त है।
  • PMLA से संबंधित हालिया संशोधन:
    • धन शोधन निवारण (ज़ब्त संपत्ति की बहाली) संशोधन नियम, 2019:
      • नए नियम 3A का समावेशन: इसके तहत विशेष न्यायालय समाचार-पत्रों में नोटिस प्रकाशित कर सकता है जिसमें आरोप तय करने के बाद ज़ब्त/फ्रीज़ की गई संपत्ति में वैध हित वाले दावेदारों को बहाली के लिये अपने दावों को स्थापित करने के लिये कहा जा सकता है।
    • धन शोधन निवारण (अभिलेखों का रखरखाव) संशोधन नियम, 2023: वित्त मंत्रालय ने वित्तीय संस्थानों, बैंकों या मध्यस्थों जैसी रिपोर्टिंग संस्थाओं द्वारा गैर-सरकारी संगठनों के लिये प्रकटीकरण आवश्यकताओं का विस्तार करने के लिये धन शोधन नियमों को संशोधित किया है।
      • इसने वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF) की सिफारिशों के अनुरूप धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत "राजनीतिक रूप से उजागर व्यक्तियों" की परिभाषा को भी स्पष्ट किया है।
      • नए PMLA अनुपालन नियम "राजनीतिक रूप से उजागर व्यक्तियों" (PEP) को ऐसे व्यक्तियों जैसे कि राज्य के प्रमुख, वरिष्ठ राजनेता और उच्च रैंकिंग वाली सरकार, न्यायिक या सैन्य अधिकारी, राज्य के वरिष्ठ अधिकारी-स्वामित्व वाले निगम तथा महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दल के अधिकारी के रूप में परिभाषित करते हैं जिन्हें किसी बाह्य देश द्वारा प्रमुख सार्वजनिक कार्यों के लिये सौंपा गया है।
  • PMLA, 2002 से संबंधित चिंताएँ:
    • अपराध के आगम की व्यापक परिभाषा: PMLA में "अपराध के आगम" की व्यापक परिभाषा पर बहस छिड़ गई है, जिसमें कानूनी वित्तीय संव्यवहार को शामिल करने की इसकी क्षमता के बारे में चिंताएँ हैं।
      • कानून उन लोगों को लक्षित करता है जो अपराध से प्राप्त धन को वैध बनाने में शामिल हैं, यहाँ तक कि उन लोगों को भी जवाबदेह ठहराया गया है जिनकी अपराध में कोई प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं है लेकिन जो शोधन प्रक्रिया में भाग लेते हैं।
    • कई अपराधों का कवरेज: PMLA में ड्रग को प्राप्त धन के शोधन से निपटने के अपने मूल उद्देश्य से असंबंधित कई अपराधों को अपनी अनुसूची में शामिल किया गया है।
      • संयुक्त राष्ट्र के जिस प्रस्ताव के कारण भारत में कानून लागू हुआ, उसमें केवल नशीली दवाओं से प्राप्त धन को वैध बनाने के अपराध का उल्लेख किया गया था, जिसे विश्व अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने और राष्ट्रीय संप्रभुता को खतरे में डालने की क्षमता वाला एक गंभीर आर्थिक अपराध माना गया था।
    • गिरफ्तारी के आधार के लिये लिखित सूचना के बिना व्यक्ति की गिरफ्तारी: प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने गिरफ्तारी के लिये केवल मौखिक सूचना पर भरोसा करके संविधान के अनुच्छेद 22(1) और 2002 PMLA की धारा 19(1) का लगातार उल्लंघन किया है, जिसे अपर्याप्त माना जाता है।
      • हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ की रिहाई का आदेश दिया, गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत उनकी गिरफ्तारी को अमान्य करार दिया, संविधान के अनुच्छेद 22(1) का हवाला देते हुए कहा गया है कि गिरफ्तार व्यक्तियों को उनकी गिरफ्तारी के आधार के बारे में तुरंत सूचित किया जाना चाहिये।

भारत में ज़मानतीय और गैर-ज़मानतीय अपराध क्या हैं?

अपराध का प्रकार

विवरण

उदहारण

ज़मानतीय 

कम गंभीर अपराध, जहाँ आरोपी को निर्दोष माना जाता है और वह ज़मानत पर रिहा होने का हकदार होता है।

छोटी-मोटी चोरी, यातायात नियमों का उल्लंघन, साधारण हमला

गैर-ज़मानतीय 

अधिक गंभीर अपराध, जहाँ न्यायालय को विशिष्ट मानदंडों के आधार पर ज़मानत देने का विवेकाधिकार होता है।

हत्या, बलात्कार, अपहरण, आगजनी

आगे की राह

  • "अपराध के आगम" (Proceeds of Crime) की एक स्पष्ट परिभाषा को शामिल करना: PMLA के अंतर्गत "अपराध के आगम" शब्द के दुरुपयोग को रोकने के लिये एक अधिक सटीक परिभाषा को अपनाना आवश्यक है।
    • इसमें अपराधों के प्रकार और उन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीकों को निर्दिष्ट करना शामिल होगा जिनसे आय प्राप्त की जा सकती है, जिससे अधिकारियों द्वारा मनमानी व्याख्या की गुंज़ाइश कम हो जाएगी।
  • प्रमाण के दायित्व को संशोधित करना: मौजूदा ढाँचा अभियुक्तों पर अपनी संपत्ति की वैधता साबित करने का अत्यधिक भार डालता है।
    • अभियोजन और बचाव पक्ष के बीच प्रमाण के भार का अधिक न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने के लिये इस पहलू को संशोधित करने से एक निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया को बढ़ावा मिल सकता है।
    • इसमें उन न्याय क्षेत्रों से प्रथाओं को अपनाना शामिल हो सकता है जहाँ निर्दोषता का अनुमान अधिक मज़बूती से संरक्षित है।
  • स्वतंत्र निरीक्षण तंत्र की स्थापना: PMLA के तहत कानून प्रवर्तन अधिकारियों के अतिरेक से बचाव के लिये स्वतंत्र निरीक्षण निकायों की स्थापना करने हेतु अनुशंसा की गई है।
    • ये निकाय प्रवर्तन कार्रवाइयों की समीक्षा और निगरानी करेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे कानूनी मानकों का अनुपालन करते हैं तथा मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और अनुपालन को बढ़ावा देना: धन शोधन की वैश्विक प्रकृति को देखते हुए PMLA प्रावधानों के कार्यान्वयन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है।
    • इसमें भारत के PMLA को वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) जैसे निकायों द्वारा निर्धारित अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ संरेखित करना और इसकी अनुशंसाओं का अनुपालन सुनिश्चित करना शामिल है।
  • तकनीकी प्रगति को शामिल करना:  धन शोधन गतिविधियों का पता लगाने और उन्हें रोकने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने से PMLA को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है।
    • इसमें वित्तीय लेन-देन का विश्लेषण करने और धन शोधन के संकेत देने वाले संदिग्ध प्रतिरूपों की पहचान करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग टूल का उपयोग शामिल हो सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम की हालिया व्याख्या पर चर्चा कीजिये, जिसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा प्रवर्तन निदेशालय की शक्तियों पर इसके निहितार्थ पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स 

प्रश्न. चर्चा कीजिए कि किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्रिंग में योगदान करते हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्रिंग की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइए। (2021)


विश्व वन्यजीव अपराध रिपोर्ट 2024

प्रिलिम्स के लिये:

धन शोधन और अवैध वन्यजीव व्यापार, संगठित अपराध, पैंगोलिन, गैंडे का अवैध शिकार

मेन्स के लिये:

संगठित अपराध और वन्यजीव तस्करी, वन्यजीव संरक्षण

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) ने हाल ही में विश्व वन्यजीव अपराध रिपोर्ट (World Wildlife Crime Report) 2024 का तीसरा संस्करण जारी किया है।

  • इसमें वर्ष 2015 से 2021 तक अवैध वन्यजीव व्यापार का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।

ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC):

  • इसकी स्थापना दवा नियंत्रण और अपराध निवारण कार्यालय (Office for Drug Control and Crime Prevention) के रूप में वर्ष 1997 में की गई थी। वर्ष 2002 में इसका नाम बदलकर यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम (UNODC) अर्थात् ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय कर दिया गया।
  • यह संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय ड्रग नियंत्रण कार्यक्रम (UNDCP) और वियना में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के अपराध रोकथाम एवं आपराधिक न्याय प्रभाग को मिलाकर ड्रग नियंत्रण तथा अपराध रोकथाम कार्यालय के रूप में कार्य करता है। 

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • जंतु एवं पादप उत्पादों की तस्करी:
    • गैंडे के सींग- अवैध पशु व्यापार में इसकी हिस्सेदारी सबसे अधिक (29%) है, इसके बाद पैंगोलिन के स्केल/शल्क (28%) और हाथी दांँत (15%) का स्थान है।
      • गैंडा (जंतु) और देवदार (पादप)- वर्ष 2015 से 2021 के बीच वैश्विक रूप से अवैध वन्यजीव व्यापार के चलते सर्वाधिक प्रभावित हुए।
    • अवैध रूप से व्यापार की जाने वाली अन्य जंतु प्रजातियाँ- ईल (5%), मगरमच्छ (5%), तोते और कॉकटू (2%), मांसाहारी जानवरों, कछुए, साँप और समुद्री घोड़े।
    • अवैध रूप से व्यापार किये जाने वाले प्रमुख पौधे- देवदार और महोगनी, होली ट्री की लकड़ियों और गुआकम जैसे अन्य सैपिंडेल्स मिलकर 47% की भागीदारी के साथ सबसे बड़ी बाज़ार हिस्सेदारी का निर्माण करते है, इसके बाद 35% हिस्सेदारी शीशम तथा 13% हिस्सेदारी अगरवुड एवं अन्य मायर्टेल्स की रही।

 

  • व्यापार में वस्तुएँ:
    • वस्तुओं में प्रवाल के टुकड़े (Coral Pieces) सबसे अधिक पाए गए और वर्ष 2015-2016 के दौरान सभी ज़ब्ती में से 16% इसमें शामिल थे; जीवित नमूने- 15%, जबकि पशु उत्पादों से बनी दवाओं की बरामदगी 10% थी।

  • स्रोत राष्ट्रों में जाने के लिये अस्थि प्रसंस्करण:
    • रिपोर्ट के अनुसार,अस्थियों का प्रसंस्करण गंतव्य देशों (सुदूर पूर्व) में होता था, लेकिन अब उन महाद्वीपों (अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, एशिया) से भी अस्थियों का प्रसंस्करण संभव है, जिनके नज़दीक इनका उत्पादन होता है।
    • यह चिंताजनक है क्योंकि प्रसंस्करण के बाद इनकी तस्करी करना आसान होगा, जैसे कि अस्थियों  को पेस्ट के रूप में संसाधित करना और यह स्पष्ट नहीं होगा कि इनका  इरादा निर्यात, स्थानीय उपयोग या दोनों के लिये है।
    • रिपोर्ट में बाघ की अस्थियों के स्थान पर शेर और जगुआर की अस्थियों को रखने के बारे में चिंता व्यक्त की गई है, जिन्हें पारंपरिक चीनी चिकित्सा में अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है।
  • SDG लक्ष्य संख्या 15.7 से ऑफ-ट्रैक:
    • वर्ष 2024 में UNODC ने SDG  लक्ष्य 15.7 पर प्रगति को ट्रैक करने के लिये एक नया संकेतक पेश किया, जिसका उद्देश्य अवैध वन्यजीव तस्करी को रोकना है।
    • बढ़ते अवैध व्यापार से पता चलता है कि वन्यजीव व्यापार (कानूनी और अवैध) की तुलना में अवैध वन्यजीव व्यापार का अनुपात 2017 से बढ़ रहा है।
      • कोविड-19 महामारी (2020-2021) के दौरान समस्या और भी बदतर हो गई, वन्यजीवों की ज़ब्ती वैश्विक व्यापार के 1.4-1.9% के उच्चतम स्तर पर पहुँच गई।
    • पिछले वर्षों में 0.5-1.1% की तुलना में वर्तमान में अवैध वन्यजीव व्यापार में हो रही वृद्धि से पता चलता है कि विश्व वर्ष 2030 तक प्रस्तावित SDG लक्ष्य 15.7 प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर नहीं है।

वन्यजीव अपराध के लिये ज़िम्मेदार कारक क्या हैं?

  • संगठित वाणिज्यिक अवैध स्रोत:
    • संगठित अपराध समूह दूर से संचालित होकर हाथी और बाघ के अवैध शिकार, अवैध मछली पकड़ने और लॉगिंग जैसी गतिविधियों में शामिल होते हैं और अक्सर अन्य आपराधिक उद्यमों के साथ सत्ता संबंधों, भ्रष्टाचार, अवैध आग्नेयास्त्रों और धन-शोधन के अवसरों का उपयोग करते हैं।
    • संपूर्ण व्यापार शृंखला में निर्यात, आयात, दलाली, भंडारण, जीवित नमूनों का प्रजनन और प्रोसेसर के साथ इंटरफेसिंग जैसी विशेष भूमिकाओं में संगठित अपराध स्पष्ट है।
  • अनुपूरक आजीविका और अवसरवादिता:
    • हालाँकि कुछ तस्करी के पीछे बड़े आपराधिक समूह हो सकते हैं, वहीं कई गरीब लोग भी हैं जो केवल अपना गुज़ारा करने का प्रयास कर रहे हैं।
    • कभी-कभी अवैध शिकार इसलिये होता है क्योंकि लोग अपनी फसलों या पशुओं को जंगली जानवरों से बचाने को बेताब रहते हैं।
  • काला बाज़ार नई मांग उत्पन्न करता है:
    • जब किसी उत्पाद का कानूनी उपयोग कम हो जाता है, तो अवैध व्यापारी बिक्री जारी रखने के लिये इसका उपयोग करने के नए तरीके ईजाद कर सकते हैं।
    • दुर्लभ जानवरों, पौधों, या लुप्तप्राय प्रजातियों की ट्राफियाँ (हाथी दाँत, बड़ी बिल्ली की खाल) जैसी लक्जरी वस्तुओं की कमी वास्तव में अवैध बाज़ारों में मांग को बढ़ा सकती है, जिससे अधिक खरीदार आकर्षित होंगे।
  • भ्रष्टाचार:
    • यह निरीक्षण बिंदुओं पर रिश्वतखोरी से लेकर परमिट जारी करने और कानूनी निर्णयों पर उच्च-स्तरीय प्रभाव तक वन्यजीव तस्करी को बाधित करने तथा रोकने के प्रयासों को कमज़ोर करता है।
    • भ्रष्टाचार को संबोधित करने वाले कानून में मज़बूत जाँच शक्तियाँ और संभावित रूप से उच्च दंड की पेशकश के बावजूद ऐसे कानूनों के तहत वन्यजीव तस्कर पर मुकदमा चलाना असामान्य है।
  • अवैध शिकार की सांस्कृतिक जड़ें:
    • लोग केवल धनार्जन हेतु वन्यजीवों का अवैध शिकार नहीं करते क्योंकि कभी-कभी यह उनकी संस्कृति का हिस्सा होता है; मध्य अफ्रीकी गणराज्य में चिंको रिज़र्व की परिधि में शोध से पता चला कि कुछ लोग हाथियों के शिकार को अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में मानते हैं, जो बहादुरी एवं पुरुषार्थ का प्रतीक है तथा यह पीढ़ियों से चली आ रही है।

वन्यजीव अपराध और तस्करी के प्रभाव क्या हैं?

  • पर्यावरण संबंधी प्रभाव: 
    • प्रजातियों का अत्यधिक दोहन: वन्यजीव अपराध के कारण अत्यधिक दोहन द्वारा जैवविविधता का क्षरण होता है, जिससे जनसंख्या में कमी आती है और विलुप्त होने का संकट होता है। पारिस्थितिक तंत्र की कार्य पद्धति के लिये प्रजातियों की विविधता महत्त्वपूर्ण है।
    • पारिस्थितिक प्रभाव: वन्यजीवों के अत्यधिक दोहन के कारण लिंगानुपात असंतुलन धीमी प्रजनन दर जैसी दीर्घकालिक पारिस्थितिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
      • तस्करी से जनसंख्या में कमी  होने के साथ-साथ यह प्रजातियों की परस्पर निर्भरता खाद्य शृंखला एवं खाद्य वेब (जाल) जैसे आवश्यक पारिस्थितिक कार्यों को बाधित कर सकती है।
    • आक्रामक प्रजातियों का फैलाव: अवैध वन्यजीव व्यापार गैर-देशी प्रजातियों को नए वातावरण में लाने में योगदान कर सकता है, जिससे संभावित रूप से आक्रामक प्रजातियाँ पैदा हो सकती हैं जो देशी पारिस्थितिक तंत्र और प्राकृतिक संसाधनों को हानि पहुँचाती हैं।
  • सामाजिक और आर्थिक नुकसान:
    • कल्याण और आजीविका: अवैध व्यापार सहित वन्यजीव अपराध, प्रकृति के लाभों को कम करता है, भोजन, चिकित्सा, ऊर्जा और सांस्कृतिक मूल्यों को प्रभावित करता है। 
      • विश्व बैंक के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि अवैध वन्यजीव व्यापार से प्रति वर्ष 1-2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की वैश्विक आर्थिक हानि होती है, जो मुख्य रूप से पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के मूल्य से संबंधित है, जिसका बाज़ार स्तर पर आकलन नहीं हो पाता है।
    • निजी क्षेत्र की लागत और हानि: वन्यजीव अपराध कानूनी वन्यजीव व्यापार और संबंधित सेवाओं में व्यवसायों की लागत तथा घाटे को बढ़ाकर अर्थव्यवस्थाओं को हानि पहुँचाता है।
      • इससे संसाधन तक पहुँच में कमी आने, अनुचित प्रतिस्पर्द्धा होने तथा व्यवसायिक प्रतिष्ठा की हानि होने से वैधता सत्यापन के संदर्भ में अतिरिक्त लागत वहन करनी पड़ सकती है।
    • स्वास्थ्य जोखिम: वन्यजीव व्यापार से मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिये रोग संचरण का गंभीर  जोखिम उत्पन्न होता है, साथ ही प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र, पशुधन और कृषि प्रणालियों के लिये भी खतरा बढ़ता है।
    • पर्यावरण रक्षकों को हानि: पुलिस, सीमा शुल्क, वन्यजीव रेंजर्स भी शिकारियों द्वारा उत्पीड़न, हिंसा और यहाँ तक कि जीवन की हानि के प्रति संवेदनशील होते हैं।
  • शासन से हानि:
    • विधिक शासन को कमज़ोर करना: अवैध वन्यजीव व्यापार कानून के शासन को कमज़ोर करता है और साथ ही प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन एवं आपराधिक न्याय प्रतिक्रियाओं को कमज़ोर करता है।
      • भ्रष्टाचार कानून और राजनीतिक स्थिरता से समझौता कर इस व्यापार को सुगम बनाता है। इसके अतिरिक्त मनी लॉन्ड्रिंग वन्यजीव अपराध से जुड़ा हुआ है, हालाँकि इसकी वित्तीय जाँच सीमित है।
    • सरकारी राजस्व की हानि: वन्यजीव अपराध विधिक शुल्क, करों एवं पर्यटन आय की चोरी करके स्रोत देशों में सरकारी राजस्व हानि का कारण बनता है।
    • प्रवर्तन की वित्तीय लागतें: वन्यजीव अपराधों के कारण विश्व स्तर पर संरक्षण, कानून प्रवर्तन एवं आपराधिक न्याय पर सरकारी व्यय में वृद्धि हुई है।

वन्यजीव अपराध को प्रभावी रूप से कम करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • अवैध वन्यजीव उत्पादों पर प्रतिबंध: 
    • इस दृष्टिकोण का उद्देश्य अवैध रूप से वन्यजीवों से प्राप्त वस्तुओं को रखने अथवा व्यापार करने को अवैध बनाकर मांग को कम करना है।
    • उदाहरण के लिये हाथीदाँत उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने से उनके दाँतों के लिये हाथियों की हत्या को हतोत्साहित किया जाएगा।
  • घरेलू विनियमों को सुदृढ़ बनाना: 
  • वन्यजीव संरक्षण का प्रभावी वित्तपोषण: 
    • बेहतर संसाधन आवंटन के साथ प्रबंधन भी आवश्यक है, यहाँ तक कि उन मामलों में भी जहाँ वित्तपोषण उपलब्ध है। धन सीधे उन सहायक संगठनों के पास जाना चाहिये जो जानवरों का संरक्षण करते हैं, जैसे कि अवैध शिकार विरोधी टीमें और पार्क रेंजर्स।
    • इसके अतिरिक्त संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करने और उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने से वन्यजीव अपराध को रोकने में उनकी भागीदारी बढ़ सकती है।
  • जन जागरूकता एवं सशक्तीकरण: 
    • वन्यजीव तस्करी के परिणामों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। वन्यजीवों के मूल्य के साथ-साथ अवैध उत्पादों के प्रभाव के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने से मांग में कमी आ सकती है।
    • यह ज़िम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देता है और व्यक्तियों को अधिकारियों की संदिग्ध गतिविधि की रिपोर्ट करने हेतु प्रोत्साहित करता है।

भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिये विधिक ढाँचे क्या हैं?

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

वन्यजीव तस्करी से निपटने में चुनौतियों और अवसरों पर प्रकाश डालते हुए 2024 विश्व वन्यजीव अपराध रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों की आलोचनात्मक जाँच कीजिये। इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये भारत के लिये एक बहु-आयामी दृष्टिकोण सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न: 'वाणिज्य में प्राणिजात और वनस्पति-जात के व्यापार-संबंधी विश्लेषण (ट्रेड रिलेटेड एनालिसिस ऑफ फौना एंड फ्लोरा इन कॉमर्स / TRAFFIC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. TRAFFIC, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अंतर्गत एक ब्यूरो है।
  2. TRAFFIC का मिशन यह सुनिश्चित करना है कि वन्य पादपों और जंतुओं के व्यापार से प्रकृति के संरक्षण को खतरा न हो।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं ?

(a) केवल 1

(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

मेन्स

प्रश्न. तटीय रेत खनन, चाहे वैध हो या अवैध, हमारे पर्यावरण के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक है। विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देते हुए भारतीय तटों पर रेत खनन के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (2019)