भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की शहरीकरण नीतियों में कमियाँ
- 25 Jan 2023
- 12 min read
यह एडिटोरियल 23/01/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “A reminder of the flaws in India’s urbanisation policies” लेख पर आधारित है। इसमें शहरीकरण में वित्तपोषण संबंधी समस्याओं और इसे संबोधित करने के तरीकों के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
हरित, स्मार्ट, समावेशी और सतत् शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिये भारतीय शहरों को बड़ी मात्रा में वित्तपोषण की आवश्यकता है। इस दृष्टिकोण से शहरी स्थानीय निकायों, विशेष रूप से बड़े और क्रेडिट योग्य निकायों के लिये, निजी स्रोतों से अधिक उधार ले सकने हेतु एक अनुकूल वातावरण का निर्माण करना महत्त्वपूर्ण है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शहर अपनी बढ़ती आबादी के जीवन स्तर में संवहनीय तरीके से सुधार लाने में सक्षम हैं।
- शहरी पूंजीगत व्यय के लिये लगभग 48%, 24%, और 15% धन क्रमशः केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों से प्राप्त होता है। इसमें सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजनाएँ का योगदान 3% और वाणिज्यिक ऋण का योगदान 2% है।
- विश्व बैंक का अनुमान है कि आबादी की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिये शहरी भारत में निवेश हेतु लगभग 840 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी और इसमें 55 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता प्रतिवर्ष होगी।
- पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न रिपोर्टों में शहरी अवसंरचना के वित्तपोषण की भारी मांग का अनुमान लगाया गया है; उदाहरण के लिये, ईशर जज अहलूवालिया के नेतृत्व में तैयार भारतीय शहरी अवसंरचना और सेवाओं पर रिपोर्ट (Report on Indian Urban Infrastructure and Services) में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक लगभग 39.2 लाख करोड़ रुपए की आवश्यकता होगी।
भारत में शहरी वित्तपोषण से संबंधित प्रमुख समस्याएँ
- अवसंरचना एवं आवास परियोजनाओं के लिये पर्याप्त वित्तपोषण की कमी:
- इस प्रकार की परियोजनाओं के लिये आवंटित सरकारी बजट की सीमितता एक प्रमुख समस्या है।
- इसके अतिरिक्त, नौकरशाही की देरी और भ्रष्टाचार भी अवसंरचना एवं आवास परियोजनाओं की प्रगति में बाधा डालने में भूमिका निभाते हैं।
- दीर्घावधिक वित्तपोषण विकल्पों का अभाव:
- शहरी विकास के लिये एक स्पष्ट और स्थिर नीतिगत ढाँचे की कमी एक प्रमुख चुनौती है, जिससे निवेशकों के लिये अपने निवेश पर रिटर्न या प्रतिफल का आकलन करना कठिन हो जाता है।
- इसके साथ ही, भारत में कई शहरी विकास परियोजनाएँ नौकरशाही की देरी और पारदर्शिता की कमी से ग्रस्त हैं जो फिर उन्हें निवेशकों के लिये अनाकर्षक बना सकती हैं।
- सरकार के पास धन की कमी भी दीर्घकालिक वित्तपोषण विकल्प प्रदान करना कठिन बनाती है।
- सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच समन्वय की कमी:
- भारत में शहरीकरण ने सरकार के विभिन्न स्तरों, विशेषकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच, समन्वय की कमी को जन्म दिया है।
- इसके परिणामस्वरूप सामंजस्यपूर्ण शहरी नियोजन की कमी, अपर्याप्त आधारभूत संरचना और उपयुक्त आवास एवं परिवहन की कमी जैसी स्थिति बनी है।
- नगर निकायों और अन्य स्थानीय सरकारी निकायों के बीच प्रायः संवाद एवं सहयोग की कमी पाई जाती है, जिससे भारत में शहरीकरण की समस्याओं को संबोधित करने में और चुनौतियाँ सामने आती हैं।
- निजी क्षेत्र के निवेशकों की भागीदारी की कमी:
- इसका एक प्रमुख कारक भूमि अधिग्रहण और विकास के संबंध में स्पष्ट एवं सुसंगत सरकारी नीतियों एवं विनियमों की कमी है।
- यह निजी निवेशकों के लिये अनिश्चितता एवं जोखिम पैदा कर सकता है, जो अपनी परियोजनाओं को नियंत्रित करने वाले नियमों एवं विनियमों की स्पष्ट समझ के बिना निवेश करने में संकोच कर सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त, अपर्याप्त आधारभूत संरचना और बुनियादी सेवाओं की कमी (जैसे अबाध बिजली एवं स्वच्छ जल) निजी निवेशकों के लिये शहरी क्षेत्रों में परियोजनाओं के विकास एवं संचालन को कठिन बना सकती हैं।
शहरीकरण से संबद्ध अन्य प्रमुख समस्याएँ
- भीड़भाड़ और जगह की कमी:
- तीव्र शहरीकरण के कारण शहरों में जनसंख्या घनत्व में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिससे भीड़भाड़, ट्रैफिक जाम और अवसंरचना पर दबाव जैसी स्थिति बनी है।
- शहरी क्षेत्रों में भूमि और आवास की उच्च लागत ने निम्न आय वाले परिवारों के लिये किफायती आवास पाना कठिन बना दिया है।
- पर्यावरणीय क्षरण:
- शहरीकरण की तीव्र गति ने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ाया है और पर्यावरणीय क्षरण का कारण बना है जिसमें वायु एवं जल प्रदूषण, हरित स्थानों की हानि जैसी स्थितियाँ शामिल हैं।
- अपर्याप्त आधारभूत संरचना:
- भारत के कई शहर आधारभूत संरचना की कमी (साफ-सफाई की कमी, स्वच्छ जल एवं बिजली तक पहुँच की कमी, सार्वजनिक परिवहन के सीमित विकल्प आदि) का सामना कर रहे हैं।
- सामाजिक-आर्थिक विषमताएँ:
- शहरीकरण ने अमीर और गरीब के बीच की खाई को चौड़ा कर दिया है, जहाँ कई निम्न-आय परिवार झुग्गियों एवं असंगठित बस्तियों में रहने को बाध्य हैं।
- शहरी बाह्य विस्तार (Urban Sprawl):
- तीव्र शहरीकरण से शहरी बाह्य विस्तार की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यह शहरों का उनकी सीमाओं से परे विस्तार है (जो प्रायः अनियोजित या बेतरतीब होता है), जिसके परिणामस्वरूप कृषि भूमि और प्राकृतिक पर्यावासों की हानि होती है।
अन्य संबंधित पहलें
- अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत/AMRUT)
- प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U)
- क्लाइमेट स्मार्ट सिटीज़ असेसमेंट फ्रेमवर्क 2.0
- ट्यूलिप-द अर्बन लर्निंग इंटर्नशिप प्रोग्राम
- आत्मनिर्भर भारत अभियान
आगे की राह
- लोगों से जुड़ना:
- शहरी संदर्भ में, लोगों के साथ संलग्न होते हुए और उनकी आवश्यकताओं को समझते हुए नीचे के स्तर से योजनाएँ बनाई जानी चाहिये।
- शहरीकरण में लोगों से संलग्न होने का एक तरीका यह होगा कि उन्हें अपने समुदायों के लिये योजना और विकास प्रक्रिया में शामिल किया जाए।
- इसमें सार्वजनिक बैठकें एवं कार्यशालाएँ आयोजित करना, सर्वेक्षणों एवं फोकस समूहों के माध्यम से प्रतिक्रियाएँ एकत्र करना और स्थानीय नेताओं एवं संगठनों के साथ जुड़ना शामिल हो सकता है।
- 74वें संविधान संशोधन की समीक्षा के लिये के.सी. शिवरामकृष्णन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय कार्यबल ने लोगों को सशक्त करने, विभिन्न विषयों को शहर की सरकारों को हस्तांतरित करने, शहरों से एकत्र किये गए आयकर का 10% भाग उन्हें वापस सौंपने (और सुनिश्चित करने कि इस कॉर्पस फंड का उपयोग केवल अवसंरचना निर्माण पर किया जाए) जैसे कई सुझाव दिए थे।
- शहरी शासन का रूपांतरण:
- शहरों में नियमित रूप से चुनाव आयोजित होने चाहिये और तीन ‘Fs’—Finances (वित्त), Functions (कार्यकरण) और Functionaries (कार्यकारी) के हस्तांतरण के माध्यम से उन्हें सशक्त किया जाना चाहिये।
- स्थानीय सरकारों और समुदायों को उनके स्वयं के विकास पर अधिक नियंत्रण देकर भारत में शहरीकरण से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने में वित्त, कार्यकरण और कार्यकारियों के हस्तांतरण के माध्यम से सशक्तीकरण का प्रयास अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
- स्थानीय सरकारों को अधिक वित्तीय संसाधन प्रदान करने से वे आवास, परिवहन और अवसंरचना विकास जैसे मुद्दों को बेहतर ढंग से संबोधित कर सकते हैं।
- इसी प्रकार, स्थानीय सरकारों को कार्यकरण और कार्यकारियों के हस्तांतरण से उनके लिये उन नीतियों को अधिक प्रभावी ढंग से योजनाबद्ध एवं कार्यान्वित करना संभव होगा जो उनके समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति करें।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करना:
- नौकरशाही संबंधी बाधाओं को कम करके और निजी विकास परियोजनाओं के लिये कर प्रोत्साहन प्रदान करके सरकारी नीतियों एवं विनियमों को निजी निवेश के लिये अधिक अनुकूल बनाया जा सकता है।
- शहरी अवसंरचना और सेवाओं में निजी निवेश को आकर्षित करने के एक तरीके के रूप में सार्वजनिक-निजी भागीदारियों (PPPs) को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- निजी निवेशकों को आश्वस्त करने के लिये स्पष्ट एवं पारदर्शी भूमि अधिग्रहण नीतियों को लागू किया जा सकता है।
- इसके साथ ही, सरकार शहरी अवसंरचना के विकास के लिये निजी संस्थाओं द्वारा लिये जाते ऋण पर गारंटी प्रदान कर सकती है।
अभ्यास प्रश्न: देश में शहरीकरण द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों का समाधान करने के लिये भारत सरकार द्वारा क्या कदम उठाये गए हैं? चर्चा कीजिये।
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