अंतर्राष्ट्रीय संबंध
देवास-एंट्रिक्स डील
प्रिलिम्स के लिये:एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन, एस-बैंड ट्रांसपोंडर, इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन, आईसीसी, एनसीएलएटी, एनसीएलटी। मेन्स के लिये:संचार प्रणालियों का विकास। |
चर्चा में क्यों?
भारतीय अंतरिक्ष विभाग की वाणिज्यिक इकाई एंट्रिक्स और बंगलूरु स्थित स्टार्टअप देवास मल्टीमीडिया के बीच विवादास्पद सौदा एक दशक से अधिक समय से सवालों के घेरे में है।
प्रमुख बिंदु:
- स्पेक्ट्रम का आवंटन: अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ ने भारत को एस-बैंड स्पेक्ट्रम 1970 के दशक में प्रदान किया था।
- इसरो को स्पेक्ट्रम सौंपना: वर्ष 2003 तक यह संकोच था कि यदि इसका प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं किया गया तो स्पेक्ट्रम नष्ट हो सकता है।
- स्थलीय उपयोग के लिये दूरसंचार विभाग (DoT) को 40 मेगाहर्ट्ज का एस-बैंड दिया गया था।
- 70 मेगाहर्ट्ज का अंतरिक्ष विभाग (डीओएस) या भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा उपयोग किया जाना था।
- संचार प्रणालियों के विकास के लिये वैश्विक बातचीत: प्रारंभ में भारत में संचार प्रणालियों के विकास हेतु उपग्रह स्पेक्ट्रम के उपयोग के लिये जुलाई 2003 में फोर्ज (एक यूएस कंसल्टेंसी) और एंट्रिक्स द्वारा एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए थे, लेकिन बाद में एक स्टार्टअप की परिकल्पना की गई और देवास मल्टीमीडिया शुरू किया गया।
- इसके बाद देवास मल्टीमीडिया विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में सफल रहा।
- सौदे पर हस्ताक्षर: वर्ष 2005 में पट्टे पर एस-बैंड उपग्रह स्पेक्ट्रम का उपयोग करने वाले मोबाइल उपयोगकर्त्ताओं को मल्टीमीडिया सेवाएँ प्रदान करने के लिये सौदे पर हस्ताक्षर किये गए।
- इस सौदे के तहत इसरो देवास को दो संचार उपग्रह (जीसैट-6 और 6ए) 12 वर्ष के लिये लीज़ पर देगा।
- बदले में देवास उपग्रहों पर एस-बैंड ट्रांसपोंडर का उपयोग करके भारत में मोबाइल प्लेटफॉर्म को मल्टीमीडिया सेवाएँ प्रदान करेगा।
- सौदे के परिणामस्वरूप देवास ने पहले जैसी तकनीकों को पेश कर उनका उपयोग किया।
- सौदे को रद्द करना: इस सौदे को वर्ष 2011 में इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम की नीलामी में घोटाला हुआ है।
- यह फैसला 2जी घोटाले के बीच लिया गया था और आरोप लगाया गया कि देवास सौदे में लगभग 2 लाख करोड़ रुपए के संचार स्पेक्ट्रम को कुछ समय के लिये सौंपना शामिल है।
- सरकार ने यह भी माना कि उसे राष्ट्रीय सुरक्षा और अन्य सामाजिक उद्देश्यों के लिये एस-बैंड उपग्रह स्पेक्ट्रम की आवश्यकता है।
- भ्रष्टाचार के आरोप: इस बीच अगस्त 2016 में केंद्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई) ने देवास इसरो और एंट्रिक्स के अधिकारियों के खिलाफ "आपराधिक साजिश का पक्ष" होने के लिये सौदे के सम्बन्ध में एक आरोप पत्र दायर किया।
- इसमें इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर और एंट्रिक्स के पूर्व कार्यकारी निदेशक के. आर. श्रीधरमूर्ति शामिल थे।
- इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल आर्बिट्रेशन: देवास मल्टीमीडिया ने इंटरनेशनल चैंबर्स ऑफ कॉमर्स (ICC) में विलोपन के खिलाफ मध्यस्थता शुरू की।
- भारत-मॉरीशस द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) के तहत देवास मल्टीमीडिया में मॉरीशस के निवेशकों द्वारा और भारत-जर्मनी द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) के तहत एक जर्मन कंपनी - ड्यूश टेलीकॉम द्वारा दो अलग-अलग मध्यस्थता भी शुरू की गई थी।
- भारत को तीनों विवादों में हार का सामना करना पड़ा और नुकसान के तौर पर कुल 1.29 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भुगतान करना पड़ा।
- ट्रिब्यूनल के निर्णय बाद: भारत सरकार द्वारा मुआवज़े का भुगतान नहीं करने के कारण एक फ्राँँसीसी न्यायालय ने हाल ही में पेरिस में भारत सरकार की संपत्ति को फ्रीज़ करने का आदेश दिया है, ताकि 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि का भुगतान किया जा सके।
- भारतीय मध्यस्थता परिदृश्य: हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के वर्ष 2011 के रुख को दोहराया और भारत में देवास मल्टीमीडिया व्यवसाय को बंद करने का निर्देश दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) और नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के पिछले फैसले को भी बरकरार रखा।
- एंट्रिक्स ने जनवरी 2021 में भारत में देवास के परिसमापन के लिये NCLAT में एक याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि इसे एक अनुचित तरीके से निगमित किया गया था।
- इन न्यायाधिकरणों ने देवास मल्टीमीडिया को बंद करने का निर्देश दिया था और इस उद्देश्य के लिये एक अस्थायी परिसमापक नियुक्त किया था।
विदेशों में भारतीय संपत्ति की ज़ब्ती
- नियमों के मुताबिक, राज्य और उसकी संपत्ति अन्य देशों के न्यायालयों में कानूनी कार्यवाही से सुरक्षित हैं।
- यह अंतर्राष्ट्रीय कानून का एक सुस्थापित सिद्धांत है, जिसे ‘स्टेट इम्युनिटी’ कहा जाता है।
- इसमें क्षेत्राधिकार और निष्पादन दोनों से उन्मुक्ति शामिल होती है।
- हालाँकि विभिन्न देशों की कानूनी प्रणालियों से राज्य की सुरक्षा का कोई अंतर्राष्ट्रीय कानूनी साधन उपलब्ध नहीं है।
- इसने एक अंतर्राष्ट्रीय शून्यता को जन्म दिया है।
- नतीजतन, विभिन्न देशों ने अपने राष्ट्रीय कानूनों और ‘स्टेट इम्युनिटी’ पर घरेलू न्यायिक प्रथाओं के माध्यम से इस शून्यता को कम करने का प्रयास किया है।
- फ्राँँस जैसे देश प्रतिबंधात्मक इम्युनिटी की अवधारणा का पालन करते हैं (एक विदेशी राज्य केवल संप्रभु कार्यों के लिये ही प्रतिरक्षित है) और पूर्ण इम्युनिटी (विदेशी न्यायालय में सभी कानूनी कार्यवाही से समग्र सुरक्षा) के सिद्धांत को नहीं मानते हैं।
- द्विपक्षीय निवेश संधि (BIT) के तहत दिये गए निर्णयों के निष्पादन के संदर्भ में इसका तात्पर्य है कि संप्रभु कार्यों (राजनयिक मिशन भवन, केंद्रीय बैंक संपत्ति, आदि) में संलग्न राज्य संपत्ति को ज़ब्त नहीं किया जा सकता है।
- हालाँकि वाणिज्यिक कार्यों में संलग्न संपत्तियों को ज़ब्त किया जा सकता है।
S-बैंड स्पेक्ट्रम
- एस-बैंड स्पेक्ट्रम, जो देवास-इसरो सौदे का हिस्सा है, मोबाइल ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिये उपयोग होने के साथ-साथ रुपए के मामले में भी बेहद मूल्यवान है।
- इस आवृत्ति (यानी 2.5 Ghz बैंड) का उपयोग विश्व स्तर पर फोर्थ जनरेशन की तकनीकों जैसे वाईमैक्स और लॉन्ग टर्म इवोल्यूशन (LTE) का उपयोग करके मोबाइल ब्रॉडबैंड सेवाएँ प्रदान करने हेतु किया जाता है।
- यह आवृत्ति बैंड अद्वितीय है क्योंकि इसमें पर्याप्त मात्रा में स्पेक्ट्रम (190 मेगाहर्ट्ज) है, जिसे मोबाइल सेवाओं के लिये उपयोग किया जा सकता है।
द्विपक्षीय निवेश संधि
- द्विपक्षीय निवेश समझौते से तात्पर्य एक ऐसे समझौते से है जो उन नियमों एवं शर्तों को तय करता है, जिनके तहत किसी एक देश के नागरिक व कंपनियाँ किसी दूसरे देश में निजी निवेश करते हैं। ऐसी अधिकतर संधियों में विवादों की स्थिति में कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ मध्यस्थता का कार्य करती हैं।
- एक-दूसरे के क्षेत्रों में हस्ताक्षरकर्त्ता देश के नागरिकों द्वारा किये गए निजी निवेश के प्रचार और संरक्षण के लिये पारस्परिक उपक्रम वाले दो देशों के बीच एक समझौता।
- बीआईटी के एक हस्ताक्षरकर्ता द्वारा अवैध राष्ट्रीयकरण और विदेशी संपत्तियों के स्वामित्व व अन्य कार्यों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की जाती है जो अन्य हस्ताक्षरकर्ता के राष्ट्रीय स्वामित्व या आर्थिक हित को कमज़ोर कर सकते हैं।
- बीआईटी में भारत सरकार द्वारा निवेशक के अधिकारों और सरकारी दायित्वों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों और व्यवहारों के परिप्रेक्ष्य में भारत में विदेशी निवेशकों और विदेश में भारतीय निवेशकों को समुचित सुरक्षा प्रदान की गई है।
एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड
- यह भारत सरकार की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है, जिसका प्रशासनिक नियंत्रण अंतरिक्ष विभाग, भारत सरकार के पास है।
- एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड को सितंबर 1992 में अंतरिक्ष उत्पादों, तकनीकी परामर्श सेवाओं और इसरो द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों के वाणिज्यिक दोहन व प्रचार प्रसार के लिये सरकार के स्वामित्व वाली एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में स्थापित किया गया था।
- इसका एक अन्य प्रमुख उद्देश्य भारत में अंतरिक्ष से संबंधित औद्योगिक क्षमताओं के विकास को आगे बढ़ाना है।
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की वाणिज्यिक एवं विपणन शाखा के रूप में एंट्रिक्स पूरे विश्व में अपने अंतर्राष्ट्रीय ग्राहकों को अंतरिक्ष उत्पाद और सेवाएँ उपलब्ध करा रही है।
अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ
- अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union- ITU) सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के लिये संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
- इसे संचार नेटवर्क में अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी की सुविधा के लिये वर्ष 1865 में स्थापित किया गया। इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
- यह वैश्विक रेडियो स्पेक्ट्रम और उपग्रह की कक्षाओं को आवंटित करता है, तकनीकी मानकों को विकसित करता है ताकि नेटवर्क और प्रौद्योगिकियों को निर्बाध रूप से आपस में जोड़ा जा सके और दुनिया भर में कम सेवा वाले समुदायों के लिये ICT तक पहुँच में सुधार करने का प्रयास किया जाए।
- भारत को अगले 4 वर्षों की अवधि (2019-2022) के लिये पुनः अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) परिषद का सदस्य चुना गया है। भारत वर्ष 1952 से इसका एक नियमित सदस्य बना हुआ है।
इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स (ICC)
- ICC दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक संगठन है जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और ज़िम्मेदार व्यावसायिक आचरण को बढ़ावा देने के लिये काम कर रहा है।
- यह वर्ष 1923 से व्यापार और निवेश का समर्थन करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक और व्यावसायिक विवादों में कठिनाइयों को हल करने में मदद कर रहा है।
- ICC का मुख्यालय पेरिस, फ्राँस में है।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
भारत में भुखमरी की स्थिति
प्रिलिम्स के लिये:विभिन्न राज्यों में भुखमरी और संबंधित पहले, सामुदायिक रसोई और संबंधित योजनाएंँ मेन्स के लिये:भारत में भूख और कुपोषण, संबंधित सरकारी पहल, इस स्थिति से निपटने के लिये आगे की राह |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया है कि हाल के वर्षों में किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश में भुखमरी से मृत्यु (भूख से मृत्यु) की कोई सूचना नहीं मिली है।
प्रमुख बिंदु
- याचिका:
- न्यायालय में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान इस बात पर प्रकाश डाला गया कि कैसे भुखमरी से होने वाली मौतें जीवन के अधिकार और सामाजिक ताने-बाने की गरिमा को समाप्त कर रही हैं और गरीबों व भूखे लोगों को खिलाने के लिये देश भर में सामुदायिक रसोई जैसे उपायों कों स्थापित करने की आवश्यकता है।
- याचिका में राजस्थान की अन्नपूर्णा रसोई, कर्नाटक में इंदिरा कैंटीन, दिल्ली की आम आदमी कैंटीन, आंध्र प्रदेश की अन्ना कैंटीन, झारखंड मुख्यमंत्री दल भट और ओडिशा के आहार केंद्र का भी ज़िक्र किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- SC ने केंद्र से एक "मॉडल" सामुदायिक रसोई (Community kitchen) योजना की संभावना तलाशने को कहा है ताकि वह गरीबों के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये राज्यों का समर्थन कर सके।
- इसने केंद्र से एक मॉडल योजना बनाने और राज्यों को उनके व्यक्तिगत भोजन की आदतों के आधार पर दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिये कहा गया है।
- केंद्र द्वारा एक राष्ट्रीय खाद्य जाल बनाने का आह्वान किया गया जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली के दायरे से बाहर है।
भारत में खाद्य संबंधी आँकड़े:
- संबंधित डेटा:
- खाद्य और कृषि रिपोर्ट, 2018 में कहा गया है कि भारत में दुनिया के 821 मिलियन कुपोषित लोगों में से 195.9 मिलियन लोग रहते हैं, जो दुनिया के भूखे लोगों का लगभग 24% है। भारत में अल्पपोषण की व्यापकता 14.8% है, जो वैश्विक और एशियाई दोनों के औसत से अधिक है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा 2017 में बताया गया था कि देश में लगभग 19 करोड़ लोग हर रात खाली पेट सोने को मजबूर हैं।
- इसके अलावा सबसे चौंकाने वाला आँकड़ा सामने आया है कि देश में पाँच साल से कम उम्र के हर दिन लगभग 4500 बच्चे भूख और कुपोषण के कारण मर जाते हैं, जबकि अकेले भूख के कारण हर साल तीन लाख से अधिक बच्चों की मौतें होती हैं।
- कुपोषण का कारण:
- भारत में कुपोषण के कई आयाम हैं, जिनमें शामिल हैं:
- कैलोरी की कमी- हालाँकि सरकार के पास खाद्यान्न का अधिशेष है, लेकिन कैलोरी की कमी है क्योंकि आवंटन और वितरण उचित नहीं है। यहाँ तक कि आवंटित वार्षिक बजट का भी पूरी तरह से उपयोग नहीं किया गया है।
- प्रोटीन की कमी- प्रोटीन को दूर करने में दालों का बड़ा योगदान है। हालाँकि इस समस्या से निपटने के लिये पर्याप्त बजटीय आवंटन नहीं किया गया है। विभिन्न राज्यों में मध्याह्न भोजन के मेनू से अंडे गायब होने के कारण, प्रोटीन सेवन में सुधार करने का एक आसान तरीका विलुप्त हो गया है।
- सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी (जिसे ‘प्रच्छन्न भुखमरी (hidden hunger) के रूप में भी जाना जाता है): भारत सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी के गंभीर संकट का सामना कर रहा है। इसके कारणों में खराब आहार, बीमारी या गर्भावस्था एवं दुग्धपान के दौरान सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की बढ़ी हुई आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं किया जाना शामिल है।
- अन्य कारक:
- सुरक्षित पेयजल तक पहुँच में कमी;
- स्वच्छता (विशेष रूप से शौचालय) तक बदतर पहुँच;
- टीकाकरण का निम्न स्तर; और
- शिक्षा विशेषकर महिलाओं की शिक्षा की बुरी स्थिति।
- भारत में कुपोषण के कई आयाम हैं, जिनमें शामिल हैं:
- सरकारी हस्तक्षेप:
- ‘ईट राइट इंडिया मूवमेंट’: भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा नागरिकों के लिये सही तरीके से भोजन ग्रहण करने हेतु आयोजित एक आउटरीच गतिविधि।
- पोषण (POSHAN) अभियान: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 में शुरू किया गया यह अभियान स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर बालिकाओं में) को कम करने का लक्ष्य रखता है।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना: यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित यह केंद्र प्रायोजित योजना एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम है, जो 1 जनवरी, 2017 से देश के सभी ज़िलों में लागू है।
- फूड फोर्टिफिकेशन: फूड फोर्टिफिकेशन या फूड एनरिचमेंट का आशय चावल, दूध और नमक जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों में प्रमुख विटामिनों और खनिजों (जैसे आयरन, आयोडीन, जिंक, विटामिन A और D) को संलग्न करने की प्रक्रिया है, ताकि उनकी पोषण सामग्री में सुधार लाया जा सके।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013: यह कानूनी रूप से ग्रामीण आबादी के 75% और शहरी आबादी के 50% को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System) के तहत रियायती खाद्यान्न प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है।
- मिशन इंद्रधनुष: यह 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को 12 वैक्सीन-निवारक रोगों (VPD) के विरुद्ध टीकाकरण के लिये लक्षित करता है।
- एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: वर्ष 1975 में शुरू की गई यह योजना 0-6 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिये छह सेवाओं का पैकेज प्रदान करती है।
आगे की राह
- कृषि-पोषण लिंकेज योजनाओं में कुपोषण से निपटने के मामले में व्यापक प्रभाव उत्पन्न कर सकने की क्षमता है और इसलिये इन पर अधिक बल देने की आवश्यकता है।
- शीघ्र निधि संवितरण: सरकार को निधियों का शीघ्र संवितरण और पोषण से जुड़ी योजनाओं में धन का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
- संसाधनों का पूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना: कई बार इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया है कि विभिन्न पोषण-आधारित योजनाओं के तहत किया गया व्यय इस मद में आवंटित धन की तुलना में पर्याप्त कम रहा है। इसलिये क्रियान्वयन पर अधिक बल देने की आवश्यकता है।
- अन्य योजनाओं के साथ अभिसरण: पोषण का विषय महज़ आहार तक ही सीमित नहीं होता है और आर्थिक व्यवस्था, स्वास्थ्य, जल, स्वच्छता, लैंगिक दृष्टिकोण तथा सामाजिक मानदंड जैसे कारक भी बेहतर पोषण में योगदान करते हैं। यही कारण है कि अन्य योजनाओं का उचित क्रियान्वयन भी बेहतर पोषण में योगदान दे सकता है।
- प्रधानमंत्री पोषण योजना: प्रधानमंत्री पोषण योजना का उद्देश्य स्कूलों में संतुलित आहार प्रदान करके स्कूली बच्चों के पोषण को बढ़ाना है। प्रत्येक राज्य के मेनू में दूध और अंडे को शामिल करके, जलवायु परिस्थितियों, स्थानीय खाद्य पदार्थों आदि के आधार पर मेनू तैयार करने से विभिन्न राज्यों में बच्चों को सही पोषण प्रदान करने में मदद मिल सकती है।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
मीडिया की स्वतंत्रता
प्रिलिम्स के लिये:एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PTI), वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स (WPFI)। मेन्स के लिये:मीडिया और लोकतंत्र की स्वतंत्रता, पेड न्यूज, पक्षपातपूर्ण मीडिया, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कश्मीर प्रेस क्लब के बंद होने पर नाराज़गी जताई है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के मुताबिक, कश्मीर प्रेस क्लब का बंद होना मीडिया की स्वतंत्रता के लिये एक खतरनाक उदाहरण प्रस्तुत करता है।
- एडिटर्स गिल्ड की स्थापना वर्ष 1978 में प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने और समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के संपादकीय नेतृत्व के मानकों को बढ़ाने के दोहरे उद्देश्यों के साथ की गई थी।
प्रमुख बिंदु
- मीडिया और लोकतंत्र की स्वतंत्रता:
- विचारों का मुक्त आदान-प्रदान: लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिये विचारों का मुक्त आदान-प्रदान, सूचनाओं एवं ज्ञान का मुक्त प्रवाह, वार्ता एवं अलग-अलग दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति काफी महत्त्वपूर्ण है।
- एक स्वतंत्र प्रेस ही अपने नेताओं की सफलताओं या विफलताओं के बारे में नागरिकों को सूचित कर सकता है।
- यह लोगों की ज़रूरतों और इच्छाओं को सरकारी निकायों तक पहुँचाता है, सूचित निर्णय लेने में मदद करता है और परिणामस्वरूप समाज को मज़बूत करता है।
- यह अलग-अलग विचारों के बीच स्वतंत्र वार्ता को बढ़ावा देता है, जो व्यक्तियों को राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने में मददगार होता है।
- सरकार को जवाबदेह बनाना: फ्री मीडिया लोगों को सरकार के फैसलों पर सवाल खड़ा करने में मदद करता है और उसे आम जनमानस के प्रति जवाबदेह बनाता है।
- हाशिये पर पड़े लोगों की आवाज़: जनता की आवाज़ होने के कारण स्वतंत्र मीडिया उन्हें राय व्यक्त करने का अधिकार देता है।
- इस प्रकार लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया महत्त्वपूर्ण है।
- लोकतंत्र का चौथा स्तंभ: इन विशेषताओं के कारण मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जा सकता है, अन्य तीन विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं।
- विचारों का मुक्त आदान-प्रदान: लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिये विचारों का मुक्त आदान-प्रदान, सूचनाओं एवं ज्ञान का मुक्त प्रवाह, वार्ता एवं अलग-अलग दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति काफी महत्त्वपूर्ण है।
- प्रेस की स्वतंत्रता को खतरा:
- फेक न्यूज़: सोशल मीडिया लोगों को अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका देता है। कभी-कभी इसका इस्तेमाल किसी के द्वारा अफवाह फैलाने और गलत सूचना फैलाने के लिये भी किया जा सकता है।
- पेड न्यूज़: भ्रष्टाचार-पेड न्यूज़, एडवर्टोरियल और फेक न्यूज़ स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया के लिये खतरा हैं।
- पत्रकारों पर हमला: पत्रकारों की सुरक्षा सबसे बड़ा मुद्दा है, संवेदनशील मुद्दों को कवर करने वाले पत्रकारों पर हत्याएँ और हमले आम घटनाएँ हैं।
- सोशल मीडिया पर साझा और प्रसारित अभद्र भाषा को सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले पत्रकारों के खिलाफ लक्षित किया जाता है।
- 'फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021 (फ्रीडम हाउस, यूएस)', 'ह्यूमन राइट्स रिपोर्ट, 2020 (यूएस स्टेट डिपार्टमेंट)', 'ऑटोक्रेटाइजेशन गोज़ वायरल (वी-डेम इंस्टीट्यूट, स्वीडन)' जैसी रिपोर्टों ने भारत में पत्रकारों को मिली धमकी को उजागर किया है।
- पक्षपातपूर्ण मीडिया: कॉरपोरेट और राजनीतिक शक्ति ने प्रिंट व विजुअल दोनों तरह के मीडिया के बड़े हिस्से को व्याकुल कर दिया है जो निहित स्वार्थों को जन्म देता है तथा स्वतंत्रता को नष्ट कर देता है।
- भारत में प्रेस की स्वतंत्रता:
- रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य, 1950: रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव है।
- अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकार: भारतीय संविधान अनुच्छेद 19 के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो 'भाषण की स्वतंत्रता आदि के संबंध में कुछ अधिकारों के संरक्षण' से संबंधित है।
- निहित अधिकार: प्रेस की स्वतंत्रता भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत संरक्षित है।
- एक कानून इस अधिकार के प्रयोग पर केवल प्रतिबंध लगा सकता है, यह अनुच्छेद 19 (2) के तहत कुछ प्रतिबंधों का सामना करता है, जो इस प्रकार है:
- भारत की संप्रभुता और अखंडता
- राज्य की सुरक्षा
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध
- सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता या में
- न्यायालय की अवमानना
- मानहानि
- किसी अपराध के लिये उकसाना।
- एक कानून इस अधिकार के प्रयोग पर केवल प्रतिबंध लगा सकता है, यह अनुच्छेद 19 (2) के तहत कुछ प्रतिबंधों का सामना करता है, जो इस प्रकार है:
- भारतीय प्रेस परिषद (PCI):
- यह भारतीय प्रेस परिषद अधिनियम 1978 के तहत स्थापित एक नियामक संस्था है।
- इसका उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता को बनाए रखना और भारत में समाचार पत्रों व समाचार एजेंसियों के मानकों को बनाए रखना और सुधारना है।
- प्रेस की स्वतंत्रता के लिये अंतर्राष्ट्रीय पहल:
- विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक, 2021 में भारत को 180 देशों में से 142वें स्थान पर रखा गया है।
- पेरिस स्थित 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' (RWB) वार्षिक रूप से 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ (WPFI) प्रकाशित करता है।
- 'विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ विश्व के 180 देशों में मीडिया के लिये उपलब्ध स्वतंत्रता के स्तर का मूल्यांकन करने व सरकारों और अधिकारियों को स्वतंत्रता के खिलाफ उनकी नीतियों एवं प्रेस की स्वतंत्रता के बारे में जागरूक बनाता है।
आगे की राह
- संस्थागत ढांँचे को सुदृढ़ बनाना: भारतीय प्रेस परिषद, एक नियामक संस्था है जो मीडिया को चेतावनी दे सकती है और नियंत्रित कर सकती है यदि उसे पता चलता है कि किसी समाचार पत्र या समाचार एजेंसी ने मीडिया नैतिकता का उल्लंघन किया है।
- न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) को वैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिये जो निजी टेलीविज़न समाचार और करंट अफेयर्स ब्रॉडकास्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है।
- भ्रामक खबरों से निपटना: मीडिया की स्वतंत्रता को कम किये बिना उसमें विश्वास बहाल करने के लिये कंटेंट में हेराफेरी और फेक न्यूज को रोकने हेतु निम्नलिखित को सक्षम करना होगा।
- लोक शिक्षा,
- नियमों का सुदृढ़ीकरण
- टेक कंपनियों का प्रयास न्यूज क्यूरेशन के लिये उपयुक्त एल्गोरिदम बनाना है।
- मीडिया नैतिकता: यह महत्त्वपूर्ण है कि मीडिया सच्चाई और सटीकता, पारदर्शिता, स्वतंत्रता, निष्पक्षता, ज़िम्मेदारी जैसे मूल सिद्धांतों पर टिका रहे।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर प्रतिकूल उच्च शुल्क
प्रिलिम्स के लिये:इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र, संबंधित पहल, इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में विकास, भारतीय सेल्युलर और इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन। मेन्स के लिये:भारत का इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र और इससे संबंधित मुद्दे, संबंधित पहल, भारत का इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र बनाम अन्य देश। |
चर्चा म क्यों?
हाल ही में इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों के आयात पर उच्च टैरिफ अपनाने की भारत की नीति प्रतिकूल साबित हो सकती है।
- ICEA मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग का शीर्ष उद्योग निकाय है जिसमें निर्माता भी शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु:
- उच्च शुल्क:
- भारत ने वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा से ज़ोखिम कम करने और घरेलू कंपनियों को बचाने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों के आयात पर उच्च शुल्क लगाया है।
- हालाँकि यह इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के उद्देश्य से अपनी योजनाओं के प्रतिकूल साबित हो सकता है।
- भारत ने वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा से ज़ोखिम कम करने और घरेलू कंपनियों को बचाने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स घटकों के आयात पर उच्च शुल्क लगाया है।
- भारत बनाम अन्य राष्ट्र: सभी देशों ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने, घरेलू क्षमताओं और प्रतिस्पर्द्धा में सुधार, निर्यात में वृद्धि एवं अपने बाज़ारों को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं से जोड़ने जैसी लगभग समान रणनीतियों को अपनाकर अपने भौगोलिक क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक सामानों के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया है।
- चीन: वर्ष 1980 से चीन ने कार्यालयी और दूरसंचार उपकरण निर्यात के मामले में 35 से 1 सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है।
- मेक्सिको: इसी प्रकार मेक्सिको, जो 1980 के दशक में इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद निर्यात के मामले में 37वें स्थान पर था पिछले दो दशकों में 11 वें स्थान पर बना हुआ है।
- थाईलैंड: वर्ष 1980 में 45वें स्थान पर था, रिपोर्ट के अनुसार, शीर्ष 15 इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद निर्यातकों में भी इसने अपनी स्थिति मज़बूत कर ली है।
- तक अपनी रैंकिंग में सुधार किया है, जबकि वियतनाम, जो कि 1990 के दशक तक ऐसे किसी भी इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद का निर्यात नहीं करता था, वह केवल 20 वर्षों में आठवें भारत: दूसरी ओर भारत जो 1980 के दशक में 40वें स्थान पर था, 2019 तक 28वें स्थान पर पहुंँचा है।
- उच्च टैरिफ और भारत का नुकसान:
- हालांँकि सभी देशों ने घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु लगभग एक ही नीति का पालन किया है। भारत और बाकी देशों के बीच एक बड़ा अंतर टैरिफ पर निर्भरता का था।
- यह इस तरह के उच्च टैरिफ का कारण है कि वैश्विक बाज़ारों के निवेशक और इलेक्ट्रॉनिक घटक निर्माता भारत से एक बाज़ार के रूप में दूरी बनाते हैं क्योंकि वैश्विक मूल्य शृंखला में भारत की भागीदारी कम रही है।
- इसके अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार के बावजूद निर्यात और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में इसकी भागीदारी कम रही है।
- यहांँ तक कि घरेलू बाजारों के लिये भी यह धारणा गलत है कि यह ज़्यादातर कंपनियों हेतु फायदेमंद होगी क्योंकि यह तेजी से बढ़ रही है।
- उदाहरण के लिये मोबाइल फोन के मामले में जहाँ सबसे बड़ी पीएलआई योजनाओं में से एक वर्तमान में चालू है, घरेलू बाज़ार का आकार वर्ष 2025-26 तक बढ़कर 55 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है, जबकि वैश्विक बाज़ार के 625 अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। ।
- इस प्रकार वर्तमान में भारतीय घरेलू बाज़ार वैश्विक बाजार का लगभग 6.5% है, यदि विकास के पूर्वानुमान यथोचित रूप से मज़बूत रहे हैं, तो इसके 8.8% तक बढ़ने की संभावना है।
- वर्तमान में भारत का बाज़ार इतना आकर्षक नहीं है कि वह मुख्य रूप से अपने घरेलू बाजार के आधार पर एफडीआई को आकर्षित कर सके।
- पीएलआई योजना की प्रतिकूलता:
- रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला है कि प्रमुख कारणों में से एक कारण यह है कि यह इलेक्ट्रॉनिक घटकों के आयात पर एक उच्च शुल्क उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के लाभ को समाप्त कर सकता है।
- हालाँकि भारत के बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार आकर्षक लग सकते हैं, लेकिन वैश्विक दृष्टि से वे बहुत छोटे हैं। इसके अलावा भारत उन लगभग 50% घटकों का उत्पादन नहीं करता है जिन पर टैरिफ में वृद्धि की गई है। इसलिये टैरिफ के भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की संभावना है।
- यद्यपि विश्व स्तर पर अमेरिका जैसी कंपनियाँ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के आयात पर टैरिफ बढ़ा रही हैं, भारत को अपने टैरिफ को कम-से-कम रखना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह एशियाई पड़ोस में अपने साथियों के बीच प्रतिस्पर्द्धी बना रहे।
- संबंधित पहलें:
भारत का इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र:
- भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र मज़बूती से आगे से बढ़ रहा है और वर्ष 2023-24 तक यह 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि को पार कर जाएगा।
- घरेलू उत्पादन वर्ष 2014-15 में 29 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2019-20 में लगभग 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर (25% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) हो गया है।
- इस उत्पादन का अधिकांश भाग भारत में स्थित अंतिम असेंबल इकाइयों (अंतिम-मील उद्योग) में होता है और उन पर ध्यान केंद्रित करने से अति पिछड़े क्षेत्रों को विकसित करने में मदद मिलेगी, इस प्रकार औद्योगिकीकरण को प्रेरित किया जाएगा।
- यह विचार अर्थशास्त्री अल्बर्ट ओ. हिर्शमन ने अपने 'असंतुलित विकास' के सिद्धांत में प्रतिपादित किया था।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 ने भी इसी प्रकार के विचार को प्रस्तुत किया है और ‘भारत में विश्व स्तरीय लिये असेंबलिंग क्षमता’ स्थापित करने का सुझाव दिया, विशेष रूप से ‘नेटवर्क उत्पादों’ में, इससे वर्ष 2025 तक चार करोड़ नौकरियाँ और वर्ष 2030 तक आठ करोड़ नौकरियाँ सृजित हो सकेंगी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग
प्रिलिम्स के लिये:एनसीएसके, मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 मेन्स के लिये:हाथ से मैला उठाने वालों के जीवन के उत्थान में NCSK का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) के कार्यकाल को 31 मार्च, 2022 के बाद अगले तीन वर्ष के लिये बढ़ाने को मंजूरी दे दी है।
- देश में सफाई कर्मचारी और पहचाने गए हाथ से मैला ढोने वाले प्रमुख लाभार्थी होंगे।
- मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) को "सार्वजनिक सड़कों और सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, नालियों और सीवर की सफाई" के रूप में परिभाषित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के बारे में:
- NCSK की स्थापना वर्ष 1993 में NCSK अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के अनुसार सरकार को सफाई कर्मचारियों के कल्याण के लिये विशिष्ट कार्यक्रमों के संबंध में यह अपनी सिफारिशें देने के लिये की गई थी।
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग अधिनियम 29 फरवरी, 2004 से प्रभावी नहीं रहा। उसके बाद एनसीएसके के कार्यकाल को समय-समय पर प्रस्तावों के माध्यम से एक गैर-सांविधिक संस्था के रूप में बढ़ाया गया है।
- सफाई कर्मचारियों के कल्याण के लिये विशिष्ट कार्यक्रमों के संबंध में यह सरकार को अपनी सिफारिशें देता है, सफाई कर्मचारियों के लिए मौजूदा कल्याण कार्यक्रमों का अध्ययन और मूल्यांकन करता है।
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अनुसार, NCSK को अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी करने, केंद्र एवं राज्य सरकारों को इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिये निविदा सलाह देने, अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन/कार्यान्वयन के संबंध में शिकायतों की जाँच करने का काम सौंपा गया है।
- आयोग के अध्यक्ष और सदस्य सफाई कर्मचारियों व उनके आश्रितों की सामाजिक-आर्थिक और रहने की स्थिति का अध्ययन करने के लिये देश का व्यापक दौरा करते हैं।
- आयोग इन शिकायतों/याचिकाओं के संबंध में संबंधित अधिकारियों से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगता है और प्रभावित सफाई कर्मचारियों की शिकायतों का निवारण करने के लिये उन पर दबाव डालता है।
- NCSK की स्थापना वर्ष 1993 में NCSK अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के अनुसार सरकार को सफाई कर्मचारियों के कल्याण के लिये विशिष्ट कार्यक्रमों के संबंध में यह अपनी सिफारिशें देने के लिये की गई थी।
- स्थिति:
- NCSK (2020 डेटा) के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में देश में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कुल 631 लोगों की मौत हुई है।
- पिछले पाँच वर्षों में मैला ढोने से होने वाली मौतों की सबसे अधिक संख्या वर्ष 2019 में देखी गई। सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 110 मजदूरों की मौत हो गई।
- यह वर्ष 2018 की तुलना में 61% की वृद्धि है, जिसमें इस तरह की मौतों के 68 मामले देखे गए।
- वर्ष 2018 में एकत्र किये गए आँकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 29,923 लोग हाथ से मैला ढोने के कार्य में लगे थे, जो भारत के किसी भी राज्य में सबसे अधिक है।
- NCSK (2020 डेटा) के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में देश में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कुल 631 लोगों की मौत हुई है।
- संबंधित योजनाएँ:
- अत्याचार निवारण अधिनियम
- वर्ष 1989 में अत्याचार निवारण अधिनियम, स्वच्छता कार्यकर्त्ताओं के लिये एक एकीकृत उपाय बन गया, क्योंकि मैला ढोने वालों में से 90% से अधिक लोग अनुसूचित जाति के थे। वर्तमान में यह मैला ढोने वालों को निर्दिष्ट पारंपरिक व्यवसायों से मुक्त करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर बन गया है।
- सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती:
- इसे आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) पर लॉन्च किया गया था।
- सरकार ने सभी राज्यों से अप्रैल 2021 तक सीवर-सफाई को मशीनीकृत करने हेतु इस ‘चुनौती’ का शुभारंभ किया है, इसके तहत यदि किसी व्यक्ति को अपरिहार्य आपात स्थिति में सीवर लाइन में प्रवेश करने की आवश्यकता होती है, तो उसे उचित गियर और ऑक्सीजन टैंक आदि प्रदान किये जाते हैं।
- 'स्वच्छता अभियान एप':
- इसे अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला ढोने वालों के डेटा की पहचान और जियोटैग करने के लिये विकसित किया गया है, ताकि अस्वच्छ शौचालयों को सेनेटरी शौचालयों से प्रतिस्थापित किया जा सके तथा हाथ से मैला ढोने वालों को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करने के लिये उनका पुनर्वास किया जा सके।
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम:
- यह सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक गैर-लाभकारी कंपनी है।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य सफाई कर्मचारियों और उनके आश्रितों का सामाजिक एवं आर्थिक रूप से उत्थान करना है।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
- वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया, जो वर्ष 1993 से सीवेज के कार्य में मारे गए तथा उनके परिवारों को मुआवज़े के रूप में प्रत्येक को 10 लाख रुपए प्रदान किये गए।
- वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश के माध्यम से सरकार को यह निर्देश दिया था कि वह वर्ष 1993 के बाद से मैनुअल स्कैवेंजिंग कार्य करने के दौरान मरने वाले सभी लोगों की पहचान करे और उनके परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवज़ा प्रदान करे।
- अत्याचार निवारण अधिनियम
हाथ से मैला उठाने वालों के नियोजन का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013:
- यह अधिनियम हाथ से मैला ढोने वालों के नियोजन, बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर व सेप्टिक टैंकों की हाथ से सफाई और अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण पर रोक लगाता है।
- किसी भी व्यक्ति, स्थानीय प्राधिकरण या एजेंसी (जैसे नगर निगम) को सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिये लोगों को नियुक्त या नियोजित नहीं करना चाहिये। सेप्टिक टैंकों की यंत्रीकृत सफाई एक निर्धारित मानदंड है।
- यह मैनुअल मैला ढोने वालों का पुनर्वास करने और उनके वैकल्पिक रोज़गार प्रदान करने का प्रयास करता है। प्रत्येक स्थानीय प्राधिकरण, छावनी बोर्ड और रेलवे प्राधिकरण अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर अस्वच्छ शौचालयों के सर्वेक्षण के लिये ज़िम्मेदार हैं तथा वे कई स्वच्छता सामुदायिक शौचालयों का भी निर्माण करेंगे।
- अस्वच्छ शौचालयों का प्रत्येक अधिभोगी अपने स्वयं के खर्च पर शौचालय को परिवर्तित या ध्वस्त करने के लिये ज़िम्मेदार होगा। यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है तो स्थानीय प्राधिकारी शौचालय को परिवर्तित करेगा और उससे लागत वसूल करेगा।
- हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020 पेश किया गया है।
स्रोत: पी.आई.बी.
भूगोल
प्रशांत ‘रिंग ऑफ फायर’
प्रिलिम्स के लिये:प्रशांत ‘रिंग ऑफ फायर’, ज्वालामुखी, भूकंप, टेक्टोनिक प्लेट्स, सबडक्शन। मेन्स के लिये:पैसिफिक रिंग ऑफ फायर में बार-बार भूकंप आने की विशेषता और कारण। |
चर्चा में क्यों?
प्रशांत 'रिंग ऑफ फायर' द्वीप राष्ट्र टोंगा से सिर्फ 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, यहाँ हाल ही में हुंगा-टोंगा-हुंगा-हापाई ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था, जिससे हज़ारों फीट तक राख और धुआँ हवा में घुल गया था।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- रिंग ऑफ फायर, जिसे प्रशांत रिम या सर्कम-पैसिफिक बेल्ट भी कहा जाता है, प्रशांत महासागर के साथ स्थित एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी और भूकंप रिकॉर्ड किये जाते हैं।
- पृथ्वी के 75% ज्वालामुखी यानी 450 से अधिक ज्वालामुखी रिंग ऑफ फायर के किनारे स्थित हैं। पृथ्वी के 90% भूकंप इस क्षेत्र में आते हैं, जिसमें पृथ्वी की सबसे हिंसक और नाटकीय भूकंपीय घटनाएँ शामिल हैं।
- भौगोलिक खिंचाव:
- रिंग ऑफ फायर प्रशांत, जुआन डे फूका, कोकोस, भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई, नाज़का, उत्तरी अमेरिकी और फिलीपीन प्लेट्स सहित कई टेक्टोनिक प्लेटों के बीच लगभग 40,000 किलोमीटर तक विस्तृत है।
- यह शृंखला दक्षिण और उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट के साथ लगती है, अलास्का में एल्यूशियन द्वीपों (Aleutian Islands) को पार कर न्यूज़ीलैंड व पूर्व एशिया के पूर्वी तट तथा अंटार्कटिका के उत्तरी तट के साथ लगती है।
- बोलीविया, चिली, इक्वाडोर, पेरू, कोस्टा रिका, ग्वाटेमाला, मेक्सिको, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, रूस, जापान, फिलीपींस, ऑस्ट्रेलिया, पापुआ न्यू गिनी, इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड और अंटार्कटिका रिंग ऑफ फायर में स्थित कुछ महत्त्वपूर्ण स्थान हैं।
- ज्वालामुखीय गतिविधि के कारण:
- टेक्टोनिक प्लेट एक-दूसरे की ओर बढ़ते हुए सबडक्शन ज़ोन बनाते हैं। इसमें एक प्लेट नीचे की ओर या दूसरी प्लेट द्वारा क्षेपित हो जाती है। यह एक बहुत धीमी प्रक्रिया है जो प्रतिवर्ष सिर्फ एक या दो इंच की गति से संचालित होती है।
- जैसे ही यह सबडक्शन (Subduction) की क्रिया होती है तो चट्टानें पिघलकर, मैग्मा का निर्माण करती हैं और पृथ्वी की सतह पर पहुँच जाती हैं तथा ज्वालामुखी गतिविधि का कारण बनती हैं।
- टोंगा के मामले में प्रशांत प्लेट इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट और टोंगा प्लेट के नीचे खिसक गई, जिससे पिघली हुई चट्टानों के ऊपर उठने पर ज्वालामुखियों की शृंखला निर्मित हो गई।
- हाल ही में किये गए शोध:
- पैसिफिक प्लेट, जो रिंग ऑफ फायर में अधिकांश टेक्टोनिक गतिविधि को संचालित करती है, ठंडी हो रही है।
- वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि प्रशांत प्लेट के सबसे छोटे हिस्से (लगभग 2 मिलियन वर्ष पुराने) प्लेट के पुराने हिस्सों (लगभग 100 मिलियन वर्ष पुराने) की तुलना में तेज़ी से ठंडे हो रहे हैं और तेज़ी से सिकुड़ रहे हैं।
- प्लेट के छोटे हिस्से इसके उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में पाए जाते हैं जो रिंग ऑफ फायर के सबसे सक्रिय भाग पर स्थित हैं।
सबडक्शन:
- सबडक्शन की प्रक्रिया तब होती है जब टेक्टोनिक प्लेट्स शिफ्ट हो जाती हैं और एक प्लेट दूसरे के नीचे धकेल दी जाती है। समुद्र तल की यह गति एक "खनिज परिवर्तन" की स्थिति उत्पन्न करती है, जो मैग्मा के पिघलने और जमने की ओर अर्थात् ज्वालामुखियों का निर्माण करती है।
- दूसरे शब्दों में, जब एक आंतरिक महासागरीय प्लेट गर्म मेंटल प्लेट से मिलती है तो यह गर्म हो जाती है, वाष्पशील तत्त्व मिश्रित हो जाते हैं और इससे मैग्मा उत्पन्न होता है। मैग्मा फिर ऊपर की प्लेट के माध्यम से ऊपर उठता है तथा सतह पर बाहर की ओर निकलता है।
- यह घटना दो टेक्टोनिक प्लेटों के बीच टकराव को चिह्नित करती है।
- जब दो टेक्टोनिक प्लेट्स एक ‘सबडक्शन ज़ोन’ में मिलती हैं, तो एक झुकती है और दूसरे के नीचे की ओर खिसकती है एवं क्रस्ट के नीचे की सबसे गर्म परत के नीचे की ओर झुकती है।