नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 19 Oct, 2021
  • 33 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

ई-कचरा उत्पादन

प्रिलिम्स के लिये:

ई-कचरा

मेन्स के लिये:

ई-कचरा के कारक, प्रभाव और समापन हेतु प्रयास 

चर्चा में क्यों? 

14 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस के रूप में मनाया गया।

  • इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2018 में हुई थी।
  • इस दिवस का उद्देश्य दुनिया भर में हर साल उत्पन्न होने वाले लाखों टन ई-कचरे के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, जिसका पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • इस साल की शुरुआत में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की प्रधान पीठ ने ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 के कार्यान्वयन के लिये निर्देश जारी किये थे।

अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस:

  • इस वर्ष का अंतर्राष्ट्रीय ई-अपशिष्ट दिवस ई-उत्पाद सर्कुलरिटी को एक वास्तविकता बनाने में प्रत्येक व्यक्ति की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है।
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2021 तक ग्रह पर प्रत्येक व्यक्ति औसतन 7.6 किलोग्राम ई-कचरा पैदा करेगा, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर वर्ष में कुल 57.4 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न होगा।
  • इस इलेक्ट्रॉनिक कचरे का केवल 17.4%, जो खतरनाक यौगिकों और मूल्यवान सामग्रियों का संयोजन है, को उचित रूप से एकत्र कर संसाधित और पुनर्नवीनीकरण किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु 

  • ई - कचरा:
    • ई-कचरा इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट का संक्षिप्त रूप है और इस शब्द का प्रयोग चलन से बाहर हो चुके पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का वर्णन करने के लिये किया जाता है। इसमें उनके घटक, उपभोग्य वस्तुएंँ और पुर्जे शामिल होते हैं।
    • इसे दो व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत 21 प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
      • सूचना प्रौद्योगिकी और संचार उपकरण।
      • उपभोक्ता इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स।
    • भारत में ई-कचरे के प्रबंधन के लिये वर्ष 2011 से कानून लागू है, जो यह अनिवार्य करता है कि अधिकृत विघटनकर्त्ता और पुनर्चक्रणकर्त्ता द्वारा ही ई-कचरा एकत्र किया जाए। इसके लिये वर्ष 2017 में ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 अधिनियमित किया गया था।
    • घरेलू और व्यावसायिक इकाइयों से कचरे को अलग करने, प्रसंस्करण और निपटान के लिये भारत का पहला ई-कचरा क्लिनिक भोपाल, मध्य प्रदेश में स्थापित किया गया है।
    • मूल रूप से बेसल कन्वेंशन (1992) ने ई-कचरे का उल्लेख नहीं किया था, लेकिन बाद में इसने 2006 (COP8) में ई-कचरे के मुद्दों को संबोधित किया।
      • नैरोबी घोषणा को खतरनाक कचरे के सीमा पार आवागमन के नियंत्रण पर बेसल कन्वेंशन के COP9 में अपनाया गया था। इसका उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक कचरे के पर्यावरण अनुकूल प्रबंधन के लिये अभिनव समाधान तैयार करना है।
  • ई-कचरा उत्पादन:
    • इस वर्ष का अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE) कुल लगभग 57.4 मिलियन टन (MT) होगा और यह चीन की महान दीवार के वज़न से अधिक होगा।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, भारत ने 2019-20 में 10 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न किया, जो 2017-18 के 7 लाख टन से काफी अधिक है। इसके विपरीत 2017-18 से ई-कचरा निपटान क्षमता 7.82 लाख टन से नहीं बढ़ाई गई है।
  • भारत में ई-अपशिष्ट के प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ:
    • लोगों की कम भागीदारी:
      • उपयोग किये गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को रीसाइक्लिंग के लिये नहीं दिये जाने का एक प्रमुख कारक उपभोक्ताओं की अनिच्छा है।
      • हालाँकि हाल के वर्षों में दुनिया भर के देश प्रभावी 'राइट-टू-रिपेयर' कानूनों को पारित करने का प्रयास कर रहे हैं।
    • बाल श्रम की भागीदारी:
      • भारत में 10-14 आयु वर्ग के लगभग 4.5 लाख बाल श्रमिक विभिन्न यार्डों और रीसाइक्लिंग कार्यशालाओं में बगैर पर्याप्त सुरक्षा और सुरक्षा उपायों के विभिन्न ई-कचरा गतिविधियों में लगे हुए हैं।
    • अप्रभावी विधान:
      • अधिकांश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी)/पीसीसी वेबसाइटों पर किसी भी सार्वजनिक सूचना का अभाव है।
    • स्वास्थ्य खतरे:
      • ई-कचरे में 1,000 से अधिक ज़हरीले पदार्थ होते हैं, जो मिट्टी और भूजल को दूषित करते हैं।
    • प्रोत्साहन योजनाओं का अभाव:
      • असंगठित क्षेत्र के लिये ई-कचरे के निपटान हेतु कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं।
      • साथ ही ई-कचरे को प्रबंधित करने के लिये औपचारिक रास्ता अपनाने हेतु इस कार्य में लगे लोगों को लुभाने के लिये भी किसी प्रोत्साहन का उल्लेख नहीं किया गया है।
    • ई-कचरा आयात:
      • विकसित देशों द्वारा 80% ई-कचरा रीसाइक्लिंग के लिये भारत, चीन, घाना और नाइजीरिया जैसे विकासशील देशों को भेजा जाता है।
    • शामिल अधिकारियों की अनिच्छा:
      • नगरपालिकाओं की गैर-भागीदारी सहित ई-अपशिष्ट प्रबंधन और निपटान के लिये ज़िम्मेदार विभिन्न प्राधिकरणों के बीच समन्वय का अभाव।
    • सुरक्षा के निहितार्थ:
      • कंप्यूटरों में अक्सर संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी और बैंक खाते के विवरण आदि होते हैं, इस प्रकार की जानकरियों को रिमूव न किये जाने की स्थिति में धोखाधड़ी का संभावना रहती है।

आगे की राह 

  • भारत में कई स्टार्टअप और कंपनियों द्वारा अब इलेक्ट्रॉनिक कचरे को इकट्ठा करने और रीसाइक्लिंग का कार्य शुरू किया गया है। हमें ऐसे बेहतर कार्यान्वयन पद्धतियों एवं समावेशन नीतियों की आवश्यकता है जो अनौपचारिक क्षेत्र को आगे बढ़ने के लिये आवास और मान्यता प्रदान करें तथा पर्यावरण की दृष्टि से रीसाइक्लिंग लक्ष्य को पूरा करने में हमारी सहायता करें।
  • साथ ही संग्रह दर को सफलतापूर्वक बढ़ाने के लिये उपभोक्ताओं सहित प्रत्येक भागीदार को शामिल करना आवश्यक है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

COP26 जलवायु सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

COP26, UNFCCC

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन कारण, परिणाम और प्रयास 

चर्चा में क्यों? 

31 अक्तूबर से 12 नवंबर तक आयोजित होने वाले COP26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन की मेज़बानी यूनाइटेड किंगडम द्वारा की जाएगी।

प्रमुख बिंदु 

  • COP26 लक्ष्य: संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के अनुसार, COP26 चार लक्ष्यों की दिशा में काम करेगा:
    • 2050 तक नेट ज़ीरो:
      • सदी के मध्य तक ग्लोबल नेट-ज़ीरो को सुरक्षित करना और तापमान 1.5 डिग्री रखना।
      • देशों को महत्त्वाकांक्षी 2030 उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों पर ज़्यादा ध्यान देने हेतु ज़ोर दिया जा रहा है, जो सदी के मध्य तक शून्य तक पहुँचने के साथ संरेखित है।
      • इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये देशों को निम्नलिखित कार्य करना होगा:
        • कोयले के फेज़-आउट में तेज़ी लाना 
        • वनों की कटाई को रोकना
        • डीज़ल वाहनों के स्थान पर इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग 
        • अक्षय ऊर्जा में निवेश को बढ़ावा देना
    • समुदायों और प्राकृतिक आवासों की रक्षा के लिये अनुकूलन:
      • देश 'पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा एवं पुनर्स्थापना तथा घरों, आजीविका और यहाँ तक ​​कि जानमाल के नुकसान से बचने के लिये रक्षा, चेतावनी प्रणाली व लचीला बुनियादी ढाँचे एवं सतत् कृषि का निर्माण करने हेतु मिलकर काम करेंगे।'
    • वित्त जुटाना:
      • विकसित देशों को प्रतिवर्ष जलवायु वित्त में कम-से-कम 100 बिलियन अमेरिकी  डॉलर जुटाने के अपने वादे को पूरा करना चाहिये।
    • मिलकर लक्ष्यों को पूरा करना:
      • COP26 में एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य 'पेरिस नियम पुस्तिका को अंतिम रूप देना' है।
      • नेता विस्तृत नियमों की एक सूची तैयार करने के लिये मिलकर काम करेंगे जो पेरिस समझौते को पूरा करने में सहायक होगा।
  • भारत के लिये सुझाव:
    • अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को अपडेट करे।
      • (एनडीसी राष्ट्रीय उत्सर्जन को कम करने के लिये प्रत्येक देश द्वारा किये गए विभिन्न प्रयासों का विवरण देता है)
    • विकास के लिये सेक्टर आधारित योजनाओं की ज़रूरत है।
      • बिजली, परिवहन क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन और प्रति यात्री मील कार्बन को सीमित करने की ज़रूरत है।
    • कोयला क्षेत्र को रूपांतरित करने पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिये।

काॅन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP)

  • COP के बारे में:
    • काॅन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ UNFCCC के अंतर्गत आता है जिसका गठन वर्ष 1994 में किया गया था। UNFCCC की स्थापना "वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैस सांद्रता को स्थिर करने" की दिशा में काम करने के लिये की गई थी।
    • COP, UNFCCC का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला प्राधिकरण है।
    • इसने सदस्य राज्यों के लिये ज़िम्मेदारियों की एक सूची तैयार की है जिसमें शामिल हैं:
      • जलवायु परिवर्तन को कम करने के उपाय खोजना।
      • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के अनुकूलन हेतु तैयारी में सहयोग करना।
      • जलवायु परिवर्तन से संबंधित शिक्षा, प्रशिक्षण और जन जागरूकता को बढ़ावा देना।
    • बैठकें:
      • COP सदस्यों द्वारा वर्ष 1995 से हर साल बैठक का आयोजन किया जाता है। UNFCCC में भारत, चीन और अमेरिका सहित 198 दल शामिल हैं। 
      • इसकी बैठक सामान्यतः बॉन में होती है, जब तक कि कोई भागीदार सत्र की मेज़बानी करने की पेशकश नहीं करता है।
  • अध्यक्षता:
    • COP अध्यक्ष का कार्यालय आमतौर पर पाँच संयुक्त राष्ट्र क्षेत्रीय समूहों अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन, मध्य एवं पूर्वी यूरोप तथा पश्चिमी यूरोप व अन्य के बीच चक्रीय रूप से घूमता है।
    • अध्यक्षता आमतौर पर उस देश के पर्यावरण मंत्री द्वारा की जाती है। 

महत्त्वपूर्ण परिणामों के साथ COPs

  • वर्ष 1995: COP1 (बर्लिन, जर्मनी)
  • वर्ष 1997: COP3 (क्योटो प्रोटोकॉल)
    • यह कानूनी रूप से विकसित देशों को उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों हेतु बाध्य करता है।
  • वर्ष 2002: COP8 (नई दिल्ली, भारत) दिल्ली घोषणा
    • सबसे गरीब देशों की विकास आवश्यकताओं और जलवायु परिवर्तन को कम करने  हेतु प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • वर्ष 2007: COP13 (बाली, इंडोनेशिया)
    • पार्टियों ने बाली रोडमैप और बाली कार्ययोजना पर सहमति व्यक्त की, जिसने वर्ष 2012 के बाद के परिणामों की ओर तीव्रता प्रदान की। इस योजना में पाँच मुख्य श्रेणियांँ- साझा दृष्टि, शमन, अनुकूलन, प्रौद्योगिकी और वित्तपोषण शामिल हैं।
  • वर्ष 2010: COP16 (कैनकन)
    • कैनकन समझौतों के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन से निपटने में विकासशील देशों की सहायता हेतु सरकारों द्वारा एक व्यापक पैकेज प्रस्तुत किया गया।
    • हरित जलवायु कोष, प्रौद्योगिकी तंत्र और कैनकन अनुकूलन ढांँचे की स्थापना की गई।
  •  वर्ष 2011: COP17 (डरबन)
    • सरकारें 2015 तक वर्ष 2020 से आगे की अवधि हेतु एक नए सार्वभौमिक जलवायु परिवर्तन समझौते के लिये प्रतिबद्ध हैं (जिसके परिणामस्वरूप 2015 का पेरिस समझौता हुआ)।
  • वर्ष 2015: COP21 (पेरिस)
    • वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक समय से 2.0 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना तथा   और अधिक सीमित (1.5 डिग्री सेल्सियस तक) करने का प्रयास करना।
    • इसके लिये अमीर देशों को वर्ष 2020 के बाद भी सालाना 100 अरब डॉलर की फंडिंग प्रतिबद्धता बनाए रखने की आवश्यकता है।
  • वर्ष 2016: COP22 (माराकेश)
    • पेरिस समझौते की नियम पुस्तिका लिखने की दिशा में आगे बढ़ना।
    • जलवायु कार्रवाई हेतु माराकेश साझेदारी की शुरुआत की गई।
  • वर्ष 2017: COP23 (बॉन, जर्मनी)
    • देशों द्वारा इस बारे में बातचीत करना जारी रखा गया कि समझौता वर्ष 2020 से कैसे कार्य करेगा।
    • डोनाल्ड ट्रम्प ने इस वर्ष की शुरुआत में पेरिस समझौते से हटने के अपने इरादे की घोषणा की।
    • यह एक छोटे द्वीपीय विकासशील राज्य द्वारा आयोजित किया जाने वाला पहला COP था, जिसमें फिजी ने अध्यक्षीय पद संभाला था।
  • वर्ष 2018: COP24 (काटोवाइस, पोलैंड)
    • इसके तहत वर्ष 2015 के पेरिस समझौते को लागू करने के लिये एक ‘नियम पुस्तिका’ को अंतिम रूप दिया गया था।
    • नियम पुस्तिका में जलवायु वित्तपोषण सुविधा और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के अनुसार की जाने वाली कार्रवाइयाँ शामिल हैं।
  • वर्ष 2019: COP25 (मैड्रिड, स्पेन)
    • इसे मैड्रिड (स्पेन) में आयोजित किया गया था।
    • इस दौरान बढ़ती जलवायु तात्कालिकता के संबंध में कोई ठोस योजना मौजूद नहीं थी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

विश्व खाद्य दिवस 2021

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व खाद्य दिवस 2021

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा और संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

1945 में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) खाद्य और कृषि संगठन के स्थापना दिवस की याद में हर वर्ष 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है।

  • FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भुखमरी की समाप्ति के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का नेतृत्व करती है।
  • वर्ष 2021 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने खाद्य उत्पादन और खपत में बदलाव के तरीकों पर चर्चा करने के लिये पहले खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन का आयोजन किया।

World-Food-Day

प्रमुख बिंदु 

  • विश्व खाद्य दिवस के बारे में:
    • यह वैश्विक स्तर पर भूख की समस्या का समाधान करने के लिये प्रतिवर्ष मनाया जाता है।
    • यह दिवस विश्व खाद्य कार्यक्रम (जिसे नोबेल शांति पुरस्कार 2020 से सम्मानित किया गया था) और कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष जैसे संगठनों द्वारा भी मनाया जाता है।
    • यह सतत् विकास लक्ष्य 2 (SDG 2) यानी ज़ीरो हंगर पर ज़ोर देता है।
  • आवश्यकता:
    • कोविड-19 महामारी ने इस बात को रेखांकित किया है कि खाद्य सुरक्षा की परंपरागत नीति में तत्काल परिवर्तन की आवश्यकता है।
      • यह प्रयास और भी प्रासंगिक है क्योंकि इसके कारण पहले से ही जलवायु परिवर्तनशीलता और चरम सीमाओं जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं किसानों का जीवन और भी कठिन हो गया है, इसके अतिरिक्त बढ़ती गरीबी के कारण मांग में कमी आदि की वजह से आपातकालीन खाद्य सहायता प्रदान करने की आवश्यकता है।
    • विश्व को स्थायी कृषि-खाद्य प्रणालियों की आवश्यकता है जो वर्ष 2050 तक 10 अरब लोगों को पोषण देने में सक्षम हों।
  • भारत में FAO का योगदान:
    • इसने पिछले दशकों में कुपोषण के खिलाफ भारत के प्रयासों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है जिसके मार्ग में कई बाधाएँ थीं।
      • कम उम्र में गर्भावस्था, शिक्षा और जानकारी की कमी, पीने के पानी तक अपर्याप्त पहुँच, स्वच्छता की कमी आदि कारणों से भारत वर्ष 2022 तक "कुपोषण मुक्त भारत" के अपेक्षित परिणामों को प्राप्त करने में पिछड़ रहा है, जिसकी परिकल्पना राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत की गई है। 
    • FAO ने 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष घोषित करने के भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया।
      • यह कदम पौष्टिक भोजन के सेवन को प्रोत्साहित करेगा, उसकी उपलब्धता को बढ़ाएगा तथा उन छोटे और मध्यम किसानों को लाभान्वित करेगा जो ज़्यादातर अपनी जमीन पर मोटे अनाज उगाते हैं, जहाँ पानी की समस्या है और भूमि उपजाऊ नहीं है।
  • FAO का भुखमरी सूचकांक और किसान विरोध:
    • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (जीएचआई) 2021 में भारत फिसलकर 101वें स्थान पर आ गया है।
    • हालाँकि भारत सरकार ने FAO द्वारा इस्तेमाल किये गए चुनाव आधारित मूल्यांकन और कार्यप्रणाली पर सवाल उठाया है।
      • भारत इस पद्धति के अवैज्ञानिक होने का दावा करता है।
    • दूसरी ओर देश के खाद्य उत्पादक (किसान) करीब एक साल से कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं।
      • किसान इन कानूनों को किसानों के प्रतिकूल बता रहे हैं जो भूख और पोषण से निपटने में भारत की रैंकिंग को और प्रभावित कर सकते हैं।
  • संबंधित भारतीय पहल: 
    • स्वच्छ भारत अभियान, जल जीवन मिशन तथा अन्य प्रयासों के साथ ईट राइट इंडिया और फिट इंडिया आंदोलन भारतीयों के स्वास्थ्य में सुधार करेगा एवं पर्यावरण को संतुलित करेगा।
    • महत्त्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी वाली सामान्य किस्म की फसलों की कमियों को दूर करने के लिये फसलों की 17 नई बायोफोर्टिफाइड किस्मों की शुरुआत।
      • उदाहरण: एमएसीएस 4028 गेहूंँ, मधुबन गाजर आदि।
    • खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के दायरे का विस्तार और प्रभावी कार्यान्वयन।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाए जाएँ कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के रूप में लागत की डेढ़ गुना राशि मिले, यह सरकारी खरीद के साथ-साथ देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
    • किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के एक बड़े नेटवर्क का विकास।
    • भारत में अनाज की बर्बादी के मुद्दे से निपटने के लिये आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में संशोधन
    • सरकार विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के लक्ष्य से एक साल पहले 2022 तक भारत को ट्रांस फैट मुक्त बनाने का प्रयास कर रही है, साथ ही न्यू इंडिया @75 (भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष) के दृष्टिकोण के साथ इसका संतुलन।
      • ट्रांस फैट आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत वनस्पति तेलों (PHVO) (जैसे- वनस्पति, शॉर्टिंग, मार्जरीन आदि). पके हुए और तले हुए खाद्य पदार्थों में मौजूद एक खाद्य अवयव है।
      • यह भारत में गैर-संचारी रोगों की वृद्धि में एक प्रमुख योगदानकर्त्ता है और कार्डियो-वैस्कुलर रोगों (सीवीडी) के लिये एक परिवर्तनीय जोखिम कारक भी है। सीवीडी जोखिम कारक को खत्म करना कोविड-19 के दौरान विशेष रूप से प्रासंगिक है क्योंकि सीवीडी पीड़ित लोगों के कारण मृत्यु दर पर प्रभाव डालने वाली गंभीर स्थिति उत्पन्न होने की संभावना होती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु वित्त

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु वित्त, UNFCCC,  क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइज़ेशन डायलॉग

मेन्स के लिये:

भारत में जलवायु वित्तपोषण संबंधित पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-अमेरिका आर्थिक एवं वित्तीय भागीदारी वार्ता की आठवीं मंत्रिस्तरीय बैठक का आयोजन किया गया। भारत के वित्त मंत्री और उनके अमेरिकी समकक्ष ने इस बैठक में हिस्सा लिया। 

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • जलवायु वित्त ऐसे स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण को संदर्भित करता है, जो सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोतों से प्राप्त किया गया हो। यह ऐसे शमन एवं अनुकूलन कार्यों का समर्थन करता है जो जलवायु परिवर्तन संबंधी समस्याओं का निराकरण करेंगे।
      • न्यूनीकरण के लिये जलवायु वित्त की आवश्यकता है, क्योंकि उत्सर्जन को उल्लेखनीय रूप से कम करने हेतु बड़े पैमाने पर निवेश बढ़ाने की आवश्यकता है।
      • यह अनुकूलन के लिये भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि प्रतिकूल प्रभावों के अनुकूल होने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने हेतु महत्त्वपूर्ण वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है।
  • जलवायु वित्त और यूएनएफसीसीसी (UNFCCC):
    • जलवायु वित्त के प्रावधान को सुविधाजनक बनाने के लिये, संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) ने विकासशील सदस्य देशों को वित्तीय संसाधन प्रदान करने के लिये वित्तीय तंत्र की स्थापना की है।
      • क्योटो प्रोटोकॉल के तहत अनुकूलन कोष: इसका उद्देश्य उन ठोस परियोजनाओं और कार्यक्रमों को वित्तपोषण करना है जो विकासशील देशों में कमज़ोर समुदायों की मदद करते हैं और साथ ही जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन हेतु क्योटो प्रोटोकॉल के पक्षकार हैं।
      • ग्रीन क्लाइमेट फंड: यह वर्ष 2010 में स्थापित UNFCCC का वित्तीय तंत्र है। 
        • पेरिस समझौते की जलवायु वित्त प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिये भारत प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता राशि प्राप्त करने हेतु अमीर/विकसित देशों पर जोर दे रहा है।
      • वैश्विक पर्यावरण कोष (GEF): वर्ष 1994 में कन्वेंशन के लागू होने के बाद से वैश्विक पर्यावरण कोष वित्तीय तंत्र की एक परिचालन इकाई के रूप में कार्यरत है।
        • यह एक निजी इक्विटी फंड है जो जलवायु परिवर्तन समझौतों के तहत स्वच्छ ऊर्जा में निवेश द्वारा दीर्घकालिक वित्तीय रिटर्न प्राप्त करने पर केंद्रित है।
      • GEF  दो अतिरिक्त फंड [विशेष जलवायु परिवर्तन कोष (SCCF) और सबसे कम विकसित देशों का कोष (LDCF)] को भी नियंत्रित करता है।

UNFCCC

  • भारत में जलवायु वित्तपोषण:
    • राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कोष (NAFCC): 
      • जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों हेतु जलवायु परिवर्तन अनुकूलन की लागत को पूरा करने के लिये वर्ष 2015 में इस कोष की स्थापना की गई थी।
    • राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (NCEF): 
      • उद्योगों द्वारा कोयले के उपयोग पर प्रारंभिक कार्बन टैक्स के माध्यम से वित्तपोषित स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये इस कोष का निर्माण किया गया था।
      • यह वित्त सचिव (अध्यक्ष के रूप में) के साथ एक अंतर-मंत्रालयी समूह (Inter-Ministerial Group) द्वारा शासित किया जाएगा।
      • इसका प्रमुख उद्देश्य जीवाश्म और गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित क्षेत्रों में नवीन स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के अनुसंधान एवं विकास के लिये कोष प्रदान करना है। 
    • राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAF): 
      • इस कोष की स्थापना वर्ष 2014 में 100 करोड़ रुपए की धनराशि के साथ की गई थी, इसका उद्देश्य आवश्यकता और उपलब्ध धन के बीच के अंतराल की पूर्ति करना था।
      • यह कोष पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत संचालित है।

जलवायु वित्त के सिद्धांत: 

  • प्रदूषक भुगतान सिद्धांत:
    • 'प्रदूषक भुगतान सिद्धांत' का आशय आमतौर पर एक स्वीकृत प्रथा है, जिसके अनुसार प्रदूषण उत्पन्न करने वालों को मानव स्वास्थ्य या पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने हेतु इसे प्रबंधित करने की लागत वहन करनी चाहिये।
    • यह सिद्धांत भूमि, जल और वायु को प्रभावित करने वाले प्रदूषण के अधिकांश विनियमन को मज़बूती प्रदान करता है जिसे औपचारिक रूप से वर्ष 1992 के रियो घोषणा के रूप में जाना जाता है।
    • इसे विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिये भी लागू किया गया है जो जलवायु परिवर्तन का कारण बनते हैं।
  • समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्व तथा संबंधित क्षमताएँ (CBDR–RC):
    • ‘समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्व’ (CBDR) ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ (UNFCCC) के अंतर्गत एक सिद्धांत है। यह जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने में अलग-अलग देशों की विभिन्न क्षमताओं और उत्तरयित्वों को स्वीकार करता है।
  • अतिरिक्त जलवायु वित्त आवश्यक:
    • जलवायु परिवर्तन गतिविधियों के लिये विकास की ज़रूरतों हेतु धन के विचलन से बचने के लिये मौजूदा प्रतिबद्धताओं के लिये अतिरिक्त जलवायु वित्त होना चाहिये।
    • इसमें सार्वजनिक जलवायु वित्त का उपयोग और निजी क्षेत्र द्वारा निवेश शामिल हैं।
  • पर्याप्तता और सावधानी: 
    • UNFCCC के तहत घोषित लक्ष्य के रूप में जलवायु परिवर्तन के कारणों को रोकने या कम करने हेतु एहतियाती उपाय करने, वैश्विक तापमान को यथासंभव सीमा के भीतर रखने हेतु पर्याप्त कोष का होना ज़रूरी है।
    • आवश्यक जलवायु निधियों से राष्ट्रीय अनुमानों में पर्याप्तता का एक बेहतर स्तर प्राप्त किया जा सकता है, इससे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDC) के संबंध में नियोजित निवेश में मदद मिलेगी।
  • पूर्वानुमान:
    • जलवायु वित्त के निरंतर प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिये जलवायु वित्त पूर्वानुमान योग्य होना चाहिये।
    • यह कार्य बहु-वर्षीय, मध्यम अवधि के वित्तपोषण चक्र (3-5 वर्ष) के माध्यम से किया जा सकता है।
    • यह देश के राष्ट्रीय अनुकूलन और शमन प्राथमिकताओं को बढ़ाने के लिये पर्याप्त निवेश कार्यक्रम की अनुमति देता है।

स्रोत: द हिंदू


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow