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जलवायु वित्त

  • 24 Mar 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

भारत के वित्त मंत्री ने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के लिये अपनी प्रतिबद्धताओं को बढ़ाने का आग्रह किया, जो जलवायु से संबंधित प्रतिबद्धताओं और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

  • वित्त मंत्री ने यह वक्तव्य ‘आपदा-रोधी बुनियादी ढाँचे पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन’ (ICDRI) को संबोधित करने के दौरान दिया।

प्रमुख बिंदु:

जलवायु वित्त:

  • जलवायु वित्त ऐसे स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण को संदर्भित करता है - जो कि सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोतों से प्राप्त किया गया हो।
  • यह ऐसे शमन और अनुकूलन संबंधी कार्यों का समर्थन करता है जो जलवायु परिवर्तन संबंधी समस्याओं का निराकरण करेंगे।

    UNFCCC, क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौता के तहत अधिक वित्तीय संसाधनों वाले देशों से ऐसे देशों के लिये वित्तीय सहायता की मांग की जाती है, जिनके पास कम वित्तीय संसाधन हैं और जो अधिक असुरक्षित हैं।

  • यह ‘समान लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारी और संबंधित क्षमताओं’ (CBDR-RC) के सिद्धांत के अनुसार है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न मुद्दों से निपटने और पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये जलवायु वित्त महत्त्वपूर्ण है।

उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की प्रतिबद्धता:

  • वर्ष 2010 में कानकुन समझौते के माध्यम से विकासशील देशों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये विकसित देशों ने वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष संयुक्त रूप से 100 अरब अमेरिकी डॉलर जुटाने के लक्ष्य की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
    • ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) की स्थापना कानकुन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में की गई और वर्ष 2011 में इसे वित्तीय तंत्र की संचालन इकाई के रूप में नामित किया गया।
  • वर्ष 2015 में पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों ने इस लक्ष्य की पुष्टि की और इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि वर्ष 2025 से पहले प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आधार स्तर का एक नया सामूहिक लक्ष्य निर्धारित किया जाएगा।

चुनौतियाँ:

  • जलवायु वित्तपोषण के लिये विकसित देशों द्वारा दिये गए लगभग 75% धन का उपयोग घरेलू स्तर पर किया जाता है, जबकि विकसित देशों में औद्योगीकरण अभियान के परिणामस्वरूप प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों में उत्सर्जन और उनके द्वारा उत्पन्न प्रदूषण का महत्त्वपूर्ण बोझ वहन करने वाले विकासशील देश हैं।
  • जुलाई 2019 तक GCF के तहत एकत्रित राशि केवल 10.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो कि विकासशील देशों के लिये उनके ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (NDCs) को लागू करने हेतु अनुमानित 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में अत्यधिक अपर्याप्त है।
  • अधिकांश जलवायु निधियों को अनुकूलन के बजाय शमन के अंतर्गत शामिल किया गया है (शमन नए समाधानों को तैयार करने और नई रणनीतियों को पूर्ण करने के तरीके को स्पष्ट करता है, जबकि अनुकूलन वर्तमान मुद्दों को प्रबंधित करता है)।
  • जलवायु वित्त ने ज़्यादातर नवीकरणीय ऊर्जा, हरित भवनों और शहरी परिवहन पर ध्यान केंद्रित किया है, क्योंकि उनके संबंध में नकदी प्रवाह चक्र का अनुमान लगाना आसान है एवं अन्य क्षेत्र जो हमारे प्राकृतिक और सामाजिक पारिस्थितिक तंत्रों के बराबर परिमाण रखते हैं, जैसे- कृषि, भूमि, जल का क्षरण आदि में कम रुचि देखी गई है।

भारत में जलवायु वित्तपोषण:

  • भारत में जलवायु वित्तपोषण का सबसे बड़ा स्रोत सार्वजनिक धन है, जिसे बजटीय आवंटन और भारत सरकार द्वारा स्थापित जलवायु परिवर्तन से संबंधित कई निधियों और योजनाओं जैसे- राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा निधि (NCEF) और राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAF) के माध्यम से पारित किया जाता है।
  • भारत सरकार जलवायु परिवर्तन हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना के तहत स्थापित आठ मिशनों के माध्यम से भी धन मुहैया कराती है।
  • सरकार ने वित्त मंत्रालय के तहत एक ‘जलवायु परिवर्तन वित्त इकाई’ (CCFU) की स्थापना की है, जो सभी जलवायु परिवर्तन वित्तपोषण मामलों के लिये एक नोडल एजेंसी है।
    • हालाँकि भारत में सार्वजनिक धन अपर्याप्त होने के साथ-साथ इसका दुरुपयोग भी किया जाता है। उदाहरण के लिये NCEF फंड का उपयोग नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MoNRE) में बजटीय कमी को पूरा करने के लिये किया गया है।
    • इसके अतिरिक्त भारत में सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित परियोजनाओं की जलवायु संबंधी प्रासंगिकता का कोई आकलन नहीं किया जाता है, जिससे जलवायु कार्रवाई के लिये वित्तीय आवंटन का मूल्यांकन करना मुश्किल हो जाता है।

    आगे की राह:

    • भारत में जलवायु वित्तपोषण को बढ़ाने के लिये विभिन्न नीतिगत और उद्योग संबंधी कार्यवाहियों को परिवर्तित करना होगा। यह जलवायु संबंधी मुद्दों पर वैकल्पिक समाधान की मांग को आगे बढ़ाएगा, जिससे जलवायु वित्त प्रयासों को और गति मिलेगी।
    • जलवायु वित्तपोषण को इस तरह से संबोधित करने की आवश्यकता है जो बेहतर रूप से विकासशील देशों के लिये इसके वास्तविक मूल्य और विकसित देशों द्वारा किये गए वास्तविक प्रयास को दर्शाता है।

    स्रोत- द हिंदू

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