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डेली न्यूज़

  • 19 Jun, 2023
  • 44 min read
इन्फोग्राफिक्स

विधेयकों के प्रकार


शासन व्यवस्था

सब्सिडी और जलवायु परिवर्तन

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व बैंक, सकल घरेलू उत्पाद, वायु प्रदूषण, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, जलवायु परिवर्तन

मेन्स के लिये:

सब्सिडी के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव, सब्सिडी से संबंधित चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों? 

विश्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट में कृषि, मत्स्यन और जीवाश्म ईंधन उद्योगों को अकुशल रूप से  सब्सिडी देने पर खरबों डॉलर खर्च किये जाने के हानिकारक प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है, जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ाता है।

  • इस रिपोर्ट में बताया गया है कि तीन क्षेत्रों में 7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की सब्सिडी दी गई, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 8% के बराबर है।

प्रमुख बिंदु  

  • जीवाश्म ईंधन सब्सिडी और जलवायु परिवर्तन: 
    • यह रिपोर्ट प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों हेतु प्रोत्साहन को कम करने की सीमित प्रभावशीलता को स्वीकार करती है, क्योंकि ऊर्जा की मांग मूल्य में परिवर्तन के प्रति अत्यधिक उत्तरदायी नहीं है।
    • वर्ष 2021 में देशों ने तेल, गैस और कोयले जैसे प्रदूषणकारी ईंधन की कीमतों को कम करने के उद्देश्य से सब्सिडी पर 577 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किये।
      • ये उपाय जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं और वायु प्रदूषण में योगदान करते हैं, विशेष रूप से उच्च स्वास्थ्य बोझ वाले मध्य-आय वाले देशों के औद्योगीकरण में।
    • इस रिपोर्ट में धन के असमान आवंटन पर प्रकाश डाला गया है, क्योंकि अधिकांश देश वर्ष 2015 के पेरिस समझौते के तहत की गई प्रतिबद्धताओं की तुलना में जीवाश्म ईंधन की खपत को सब्सिडी देने पर छह गुना अधिक खर्च करते हैं।
  • अक्षम कृषि सब्सिडी: 
    • सुलभ डेटा वाले देशों में कृषि क्षेत्र में प्रत्यक्ष सब्सिडी लगभग 635 बिलियन अमेरिकी डॉलर सालाना है, जबकि वैश्विक अनुमान 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
      • यह सब्सिडी किसानों को विशिष्ट इनपुट खरीदने या विशेष फसलों की खेती करने हेतु लक्षित करती है।
    • इस रिपोर्ट में प्रकाशित शोध इंगित करता है कि सब्सिडी धनी किसानों के पक्ष में होती है, भले ही कार्यक्रमों को गरीबों को लक्षित करने हेतु डिज़ाइन किया गया हो।
    • पिछले 30 वर्षों में अपर्याप्त सब्सिडी के परिणामस्वरूप जल में सभी नाइट्रोजन प्रदूषण 17% तक बढ़ गया है, जिससे स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है और श्रम उत्पादकता में 3.5% तक की कमी आई है।
  • मत्स्य क्षेत्र में दी जाने वाली सब्सिडी: 
    • मत्स्यिकी क्षेत्र को अनुमानित तौर पर प्रतिवर्ष 35.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सब्सिडी प्रदान की जाती है, जिसमें से 22.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर ओवरफिशिंग में चला जाता है।
      • ओवरफिशिंग मत्स्यिकी क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण कारक है, मछली के स्टॉक में कमी आने और फिशिंग रेंट को कम करने में यह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • मत्स्य पालन को स्थायी रूप से प्रबंधित नहीं किये जाने की स्थिति में सब्सिडी का नकारात्मक प्रभाव और भी अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगता है।
      • शेष मछली स्टॉक को सुरक्षित करने के लिये अतिरिक्त फिशिंग क्षमता को प्रोत्साहित किये बिना सब्सिडी का नए तरीके से उपयोग किया जाना चाहिये।

सब्सिडी के सकारात्मक प्रभाव: 

  • कृषि:  
    • आय में सहायता: सब्सिडी से किसानों को आय में सहायता प्राप्त हो सकती है, इससे उन्हें मूल्य में उतार-चढ़ाव, बाज़ार की अनिश्चितताओं और उत्पादन जोखिमों से निपटने में मदद मिलती है। 
    • उत्पादन में वृद्धि: उर्वरक, बीज और सिंचाई जैसे इनपुट पर सब्सिडी से कृषि उत्पादन में वृद्धि को बढ़ावा मिल सकता है।
      • पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी (NBS) योजना के माध्यम से उर्वरकों के लिये भारत सरकार का समर्थन किसानों को उचित मूल्य पर उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
  • मछली पकड़ना: 
    • आधुनिकीकरण और आधारभूत संरचना विकास: मत्स्य पालन क्षेत्र में सब्सिडी मछली पकड़ने की प्रथाओं के आधुनिकीकरण और बुनियादी ढाँचे के विकास में सहायता कर सकती है।
      • इससे उत्पादकता में वृद्धि, सुरक्षा उपायों में सुधार और बेहतर भंडारण सुविधाएँ सुनिश्चित हो सकती हैं।
      • प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) का उद्देश्य बुनियादी ढाँचे के विकास सहित विभिन्न हस्तक्षेपों के माध्यम से मछली उत्पादन और मछुआरों के कल्याण को बढ़ाना है।
    • आजीविका सहायता: सब्सिडी विशेष रूप से खराब मौसम और प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों के दौरान मछुआरों को आजीविका सहायता प्रदान कर सकती है।
      • मछुआरों के कल्याण की राष्ट्रीय योजना जैसी योजनाएँ मछुआरों को नावों के निर्माण और मरम्मत, सुरक्षा उपकरणों की आपूर्ति तथा प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं।
  • जीवाश्म ईंधन:
    • ऊर्जा की पहुँच और सामर्थ्य: LPG (तरलीकृत पेट्रोलियम गैस) एवं मिट्टी तेल जैसे जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी, समाज के कमज़ोर वर्गों के लिये ऊर्जा की पहुँच और सामर्थ्य सुनिश्चित कर सकती है।
      • भारत सरकार द्वारा शुरू की गई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) का उद्देश्य LPG के उपयोग में वृद्धि को प्रोत्साहित करना और वायु प्रदूषण, वनों की कटाई तथा स्वास्थ्य विकारों को कम करना था

सब्सिडी से संबंधित चुनौतियाँ:  

  • राजकोषीय बोझ: सब्सिडी के कारण अक्सर सरकार पर काफी राजकोषीय बोझ पड़ता है।
    • सब्सिडी की लागत के कारण सरकार के वित्त पर दबाव पड़ सकता है और इससे स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढाँचे के विकास जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को संसाधन आवंटित करने की क्षमता पर प्रभाव पड़ने की काफी संभावना होती है।
    • राजकोषीय स्थिरता के साथ सब्सिडी की आवश्यकता को संतुलित करना एक निरंतर चुनौती है।
  • अकुशल लक्ष्यीकरण: लक्षित लाभार्थियों तक सब्सिडी की प्रभावी पहुँच सुनिश्चित करना प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
    • अपात्र व्यक्तियों अथवा संस्थाओं द्वारा सब्सिडी का गलत उपयोग करने का भी जोखिम बना रहता है।
    • सब्सिडी का सफल अंतरण हो और सब्सिडी लक्षित प्राप्तकर्त्ताओं को लाभान्वित करे, यह सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी की उचित पहचान तथा लक्ष्यीकरण तंत्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • बाज़ार संबंधी विकृतियाँ: सब्सिडी से बाज़ार की गतिशीलता पर प्रभाव पड़ सकता है। सब्सिडी के कारण कुछ वस्तुओं का अतिउत्पादन हो सकता है या फिर अधिक खपत भी हो सकती है जिससे बाज़ार में असंतुलन और मूल्य संबंधी विकृतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • ये विकृतियाँ इस क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित कर सकती हैं और एक स्थायी तथा बाज़ार उन्मुख कृषि, मत्स्य अथवा ऊर्जा क्षेत्र के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी स्वच्छ और अधिक धारणीय ऊर्जा स्रोतों के संक्रमण को हतोत्साहित कर सकती है।
    • वे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को बनाए रख सकते हैं जो पर्यावरण क्षरण, वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन में योगदान दे सकते हैं।

आगे की राह  

  • लक्षित सब्सिडी सुधार:  लक्षित लाभार्थियों तक सब्सिडी की प्रभावी पहुँच सुनिश्चित करने के लिये लक्षित सब्सिडी सुधारों को लागू किये जाने की आवश्यकता है।
  • सब्सिडी में धीरे-धीरे कटौती और युक्तिकरण: राजकोषीय स्थिरता सुनिश्चित करने और बाज़ार संबंधी विकृतियों को कम करने के लिये सब्सिडी को धीरे-धीरे कम करना तथा युक्तिसंगत बनाना।
    • सब्सिडी में पूरी तरह से कटौती के करने बजाय इसके लिये चरणबद्ध दृष्टिकोण का उपयोग किया जा सकता है जिसके तहत संपन्न लोगों के लिये सब्सिडी कम करने पर ध्यान केंद्रित करना प्रमुख विषय रहा है। सब्सिडी से बचत किये गए इस वित्त का उपयोग संबंधित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे, अनुसंधान और विकास तथा क्षमता निर्माण में किया जा सकता है।
  • स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देना: सब्सिडी के माध्यम से कृषि, मत्स्य पालन और ऊर्जा क्षेत्रों में स्थायी प्रथाओं को अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। 
    • इसमें जैविक कृषि तकनीकों, कुशल सिंचाई प्रणालियों, पर्यावरण के अनुकूल मत्स्य पालन के तरीकों और नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के उपयोग के लिये प्रोत्साहन राशि प्रदान करना शामिल हो सकता है।
    • सब्सिडी को नवाचार, उत्पादकता में सुधार और पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करने हेतु डिज़ाइन किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020

  1. वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का खुदरा मूल्य बाज़ार-संचालित है और यह सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है। 
  2. अमोनिया जो यूरिया बनाने में काम आता है, प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है। 
  3. सल्फर जो फॉस्फोरिक अम्ल उर्वरक के लिये कच्चा माल है, तेल शोधन कारखानों का उपोत्पाद है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 2  
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. सहायिकियाँ सस्य प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? लघु और सीमांत कृषकों के लिये फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है? (2017) 

प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015) 

प्रश्न. राष्ट्रीय व राजकीय स्तर पर कृषकों को दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायताएँ कौन-कौन सी हैं? कृषि आर्थिक सहायता व्यवस्था का उसके द्वारा उत्पन्न विकृतियों के संदर्भ में आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (2013) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत अवसंरचना परियोजना विकास वित्तपोषण

प्रिलिम्स के लिये:

इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस सेक्रेटेरियट (IFS), IIPDF, पीपीपी, बजट 2023-24, पीएम गति शक्ति, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन

मेन्स के लिये:

भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर में निजी निवेश को बढ़ावा देना

चर्चा में क्यों? 

डिजिटल इंडिया पहल को बढ़ावा देने के लिये वित्त मंत्रालय के तहत IFS ने भारत अवसंरचना परियोजना विकास वित्तपोषण (India Infrastructure Project Development Fund- IIPDF) पोर्टल लॉन्च किया है।

  • यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म IIPDF योजना के तहत आवेदन जमा करने, प्रसंस्करण समय को कम करने, कागज़ी कार्रवाई और समय पर अनुमोदन की सुविधा प्रदान करने की अनुमति देता है।

IIPDF योजना: 

  • पृष्ठभूमि:  
    • IIPDF को आर्थिक मामलों के विभाग (DEA), वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के प्रारंभिक कोष के साथ बनाया गया था। सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं के विकास का समर्थन करने के लिये 100 करोड़ रुपए के कोष के साथ एक परिक्रामी निधि की स्थापना।
  • परिचय: 
    • DEA ने वर्ष 2022-23 से 2024-25 तक तीन साल की अवधि के लिये 150 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में मौजूदा फंड IIPDF का पुनर्गठन किया है।
    • यह परियोजना विकास लागत को पूरा करने के लिये PPP परियोजनाओं के प्रायोजक प्राधिकरणों के लिये उपलब्ध है।
      • PPP परियोजना विकास गतिविधियों को शुरू करने और बड़े नीति एवं नियामक मुद्दों को संबोधित करने के लिये PPP सेल का निर्माण तथा उन्हें सशक्त बनाने हेतु प्रायोजक प्राधिकरण के लिये यह आवश्यक होगी।
  • उद्देश्य: 
    • इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण परियोजना विकास गतिविधियों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • महत्त्व: 
    • PPP लेन-देन के खर्च के एक हिस्से को कवर करने के लिये धन जुटाकर, प्रायोजक प्राधिकरण अपने बजट पर खरीद-संबंधी लागतों के बोझ को कम करने में सक्षम होंगे।
  • वित्तीय परिव्यय: 
    • IIPDF ब्याज मुक्त ऋण के रूप में प्रायोजक प्राधिकरण को परियोजना विकास व्यय का 75% तक योगदान देगा। शेष 25% प्रायोजक प्राधिकरण द्वारा सह-वित्तपोषित किया जाएगा।
    • बोली/बिडिंग (Bidding) प्रक्रिया के सफल समापन पर सफल बिडर (Bidder) से परियोजना विकास व्यय की मांग की जाएगी।
      • हालाँकि असफल बिडिंग की स्थिति में ऋण को अनुदान में परिवर्तित कर दिया जाएगा।
    • यदि किसी कारण से प्रायोजक प्राधिकरण द्वारा बोली प्रक्रिया समाप्त नहीं की जाती है, तो योगदान की गई पूरी राशि IIPDF को वापस कर दी जाएगी।
  • अनुमोदन समिति (Approval Committee- AC): 
    • IIPDF योजना का प्रशासन अनुमोदन समिति द्वारा किया जाता है। अनुमोदन समिति की संरचना इस प्रकार है:: 
      • आर्थिक कार्य विभाग का संयुक्त सचिव- अध्यक्ष
      • नीति आयोग के प्रतिनिधि
      • उप सचिव/निजी निवेश इकाई, आर्थिक कार्य विभाग- सदस्य सचिव

भारत में अवसंरचना क्षेत्र की स्थिति: 

  • परिचय: 
    • भारत की विकास यात्रा में अवसंरचना क्षेत्र के विकास की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, यह विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक विकास हेतु एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
    • भारत सरकार ने मज़बूत बुनियादी ढाँचे/अवसंरचना के महत्त्व की पहचान करते हुए  विकास को नई गति प्रदान करने के लिये कई पहलें और निवेश प्रक्रियाएँ शुरू की हैं। 
  • बाज़ार का वर्तमान आकार और आउटलुक: 
    • भारत के बुनियादी ढाँचा क्षेत्र का वर्ष 2027 तक 8.2% की CAGR से बढ़ना आपेक्षित है।
    • केंद्रीय बजट 2023-24 में बुनियादी ढाँचे के लिये पूंजी निवेश परिव्यय को 33% बढ़ाकर 10 लाख करोड़ (122 बिलियन अमेरिकी डॉलर) रुपए किया गया है जो सकल घरेलू उत्पाद का 3.3% है। 
    • CII (भारतीय उद्योग परिसंघ) के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2047 तक भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने की उम्मीद है जो वर्ष 2022 में लगभग 3.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी तथा वर्ष 2010 के बाद से लगभग 2 गुना बढ़ गई है। 
    • इसके अतिरिक्त देश के औद्योगिक उत्पादन में वर्ष 2010 के बाद 56% की वृद्धि हुई है जिसने शहरीकरण की गति को पूरक बनाया है तथा वर्ष 2047 तक इसके और तेज़ होने की उम्मीद है।
  • सरकारी पहल:

आगे की राह 

  • भारत को वर्ष 2025 के 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक विकास लक्ष्य तक पहुँचने के लिये अपने बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना होगा। भारत की जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास के लिये सड़कों, रेलवे एवं विमानन, नौवहन तथा अंतर्देशीय जलमार्गों में निवेश सहित बेहतर परिवहन बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता है।
  • सरकार ने रेलवे के बुनियादी ढाँचे को सुदृढ़ करने हेतु 750 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश का भी सुझाव दिया है और मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 की कल्पना की है, इससे  भारतीय बंदरगाहों पर विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे के विकास में भारी निवेश का अनुमान है।
  • ऐसा अनुमान है कि भारत को तेज़ी से बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अगले 15 वर्षों में शहरी बुनियादी ढाँचे में 840 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता है। यदि हम अपने भवनों, पुलों, बंदरगाहों एवं हवाई अड्डों के टिकाऊ, दीर्घकालिक रखरखाव तथा मज़बूती पर अतिरिक्त ध्यान देंगे तो यह निवेश और अधिक तर्कसंगत होगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह नीति आयोग का अंग है। 
  2. वर्तमान में इसके पास 4,00,000 करोड़ रुपए का कोष है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष (National Investment and Infrastructure Fund- NIIF) का नियमन वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के निवेश प्रभाग द्वारा किया जाता  है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • NIIF वर्तमान में तीन फंडों का प्रबंधन कर रहा है जो सेबी विनियमों के तहत वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Funds- AIF) के रूप में पंजीकृत हैं। वे तीन फंड- मास्टर फंड, स्ट्रैटेजिक फंड और फंड ऑफ फंड्स हैं, साथ ही NIIF का प्रस्तावित कोष 40,000 करोड़ रुपए है, न कि 4,00,000 करोड़ रुपए। अतः कथन 2 सही नहीं है।

अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

भारत में गैर-संचारी रोगों में चिंताजनक वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR), गैर-संचारी रोग, मधुमेह, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM), सतत् विकास

मेन्स के लिये:

गैर-संचारी रोगों का प्रभाव, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

चर्चा में क्यों?  

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से मद्रास डायबिटीज़ रिसर्च फाउंडेशन द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में भारत में गैर-संचारी रोगों में चिंताजनक वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है।

  • यह अध्ययन 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल करने वाला पहला व्यापक महामारी विज्ञान शोध पत्र है। अध्ययन विभिन्न क्षेत्रों के डेटा को एकत्रित करके देश में मधुमेह जैसे गैर-संचारी रोग के प्रसार और प्रभाव पर महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

अध्ययन की मुख्य बातें: 

  • 25-26.4% की दर के साथ गोवा, पुद्दुचेरी और केरल में मधुमेह के मामले सबसे अधिक हैं।
  • मधुमेह: भारत में मधुमेह के रोगियों की संख्या अब 101 मिलियन है।
  • प्रीडायबिटीज़: इस अध्ययन में प्री-डायबिटीज़ वाले 136 मिलियन लोगों की पहचान की गई है।
  • उच्च रक्तचाप: अध्ययन के अनुसार, उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों की संख्या 315 मिलियन पाई गई है।
  • मोटापा: 254 मिलियन लोगों को आमतौर पर मोटे के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जबकि पेट के मोटापे अथवा एब्डोमिनल ओबेसिटी वाले लोगों की संख्या 351 मिलियन बताई गई है।
    • सामान्य तौर पर मोटापे से पीड़ित आबादी की संख्या 28.6% है, जबकि पेट के मोटापे से पीड़ित भारतीयों की संख्या 39.5% है। महिलाओं में पेट के मोटापे की शिकायत सबसे अधिक, 50% है।
  • हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया: इससे पीड़ित व्यक्तियों की संख्या 213 मिलियन है, जिनमें  धमनियों में वसा जमा होने से दिल के दौरे और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
    • अध्ययन से पता चलता है कि 24% भारतीय हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया से पीड़ित हैं।
  • उच्च LDL कोलेस्ट्रॉल: 185 मिलियन व्यक्तियों में लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ा हुआ पाया गया।
    • LDL "खराब कोलेस्ट्रॉल" है क्योंकि रक्त में इसकी बहुत अधिक मात्रा धमनियों में पट्टिका के निर्माण में योगदान कर सकती है।
    • कोलेस्ट्रॉल "लिपोप्रोटीन" नामक प्रोटीन पर रक्त के माध्यम से प्रवाह करता है। 
  • अध्ययन का महत्त्व: 
    • इस अध्ययन में विविध क्षेत्रों के 1,13,043 व्यक्तियों के एक बड़े नमूने का डेटा शामिल है।
    • इससे पता चलता है कि मधुमेह और अन्य मेटाबॉलिक NCD भारत में पहले के अनुमान से अधिक प्रचलित हैं।
    • प्री-डायबिटीज़ को छोड़कर, जबकि वर्तमान में शहरी क्षेत्रों में मेटाबॉलिक NCD की उच्च दर है तथा यदि इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में अगले पाँच वर्षों में मधुमेह के मामलों में वृद्धि होने का अनुमान है।
    • अंतर-राज्यीय और अंतर-क्षेत्रीय बदलाव राज्य-विशिष्ट नीतियों एवं हस्तक्षेपों की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।

  •  अध्ययन का भारत पर प्रभाव: 
    • यह अध्ययन NCD और स्ट्रोक सहित जीवन परिवर्तित वाली चिकित्सा स्थितियों के लिये जनसंख्या में वृद्धि को एक प्रारंभिक चेतावनी के रूप में दर्शाता है।
    • फास्ट फूड, सुस्त जीवनशैली, नींद की कमी, व्यायाम और NCD प्रसार में योगदान देने वाले तनाव के कारण भारत कुपोषण एवं मोटापे की दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है।
  • जीवन की गुणवत्ता और जीवन प्रत्याशा पर प्रभाव: 
    • NCD जैसे मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर और पुरानी साँस की बीमारियाँ देश में समग्र रोग बोझ में योगदान करती हैं।
    • NCD अकसर अक्षमता का कारण बनता है, व्यक्तियों की कार्यात्मक क्षमताओं को कम करता है तथा उनकी दैनिक गतिविधियों को भी प्रभावित करता है।
    • NCD के प्रबंधन हेतु लंबे समय तक चिकित्सा देखभाल, दवाओं एवं जीवनशैली में संशोधन की आवश्यकता होती है जो व्यक्तियों और उनके परिवारों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • NCD से स्वास्थ्य संबंधी खर्च में वृद्धि हो सकती है जिससे व्यक्तियों और परिवारों की वित्तीय स्थिति प्रभावित हो सकती है।
    • NCD का दवाब व्यक्तियों की उत्पादकता और सामाजिक-आर्थिक विकास में बाधा डाल सकता है जिससे रोज़गार एवं आर्थिक विकास के अवसर प्रभावित हो सकते हैं।
    • सही प्रकार से प्रबंधित और नियंत्रित न किये जाने पर NCD जीवन प्रत्याशा को काफी कम कर सकता है।

NCD से संबंधित पहलें: 

  • भारत की पहल: 
    • गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Programme for Prevention & Control of Non-Communicable Diseases- NP-NCD), जिसे पहले कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS) के रूप में जाना जाता था, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NHM) के तहत कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • केंद्र सरकार देश के विभिन्न हिस्सों में राज्य कैंसर संस्थानों (State Cancer Institutes- SCI) और तृतीयक देखभाल केंद्रों (Tertiary Care Centres- TCCC) की स्थापना का समर्थन करने के लिये तृतीयक देखभाल कैंसर सुविधा योजना को सुदृढ़ कर रही है।
    • प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (PMSSY) के तहत नए AIIMS और कई उन्नत संस्थानों के मामले में ऑन्कोलॉजी के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • उपचार के लिये सस्ती दवाएँ और विश्वसनीय प्रत्यारोपण (Affordable Medicines and Reliable Implants for Treatment- AMRIT) हेतु दीनदयाल आउटलेट 159 संस्थानों/अस्पतालों में खोले गए हैं, जिसका उद्देश्य कैंसर और हृदय रोग की दवाएँ तथा प्रत्यारोपण रोगियों को रियायती कीमतों पर उपचार उपलब्ध कराना है।
    • फार्मास्यूटिकल्स विभाग द्वारा कम कीमतों पर जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने हेतु जन औषधि स्टोर स्थापित किये गए हैं।
  • वैश्विक: 
    • सतत् विकास हेतु एजेंडा: राज्य एवं सरकार के प्रमुख सतत् विकास हेतु एजेंडा 2030 (SDG लक्ष्य 3.4) के हिस्से के रूप में रोकथाम और उपचार के माध्यम से NCDs के कारण समय-पूर्व होने वाली मृत्यु दर को एक-तिहाई तक कम करने तथा वर्ष 2030 तक महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय प्रतिक्रिया विकसित करने हेतु प्रतिबद्ध हैं।
      • WHO, NCD के खिलाफ वैश्विक लड़ाई हेतु समन्वय और प्रचार में एक प्रमुख नेतृत्वकारी भूमिका निभाता है।
    • वैश्विक कार्ययोजना: वर्ष 2019 में विश्व स्वास्थ्य सभा ने NCD की रोकथाम और नियंत्रण के लिये WHO की वैश्विक कार्ययोजना को वर्ष 2013-2020 की अवधि से बढ़ाकर वर्ष 2030 तक कर दिया है और NCD की रोकथाम एवं नियंत्रण हेतु प्रगति में तेज़ी लाने के लिये कार्यान्वयन रोडमैप वर्ष 2023 से 2030 के विकास का आह्वान किया।
      • यह NCD की रोकथाम और प्रबंधन की दिशा में सबसे अधिक प्रभाव वाले नौ वैश्विक लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सामूहिक कार्यों का समर्थन करता है।

गैर-संचारी रोग: 

  • परिचय
    • गैर-संचारी रोग (Non-Communicable Diseases- NCD) लंबी अवधि तक व्याप्त रहते हैं, जिसे पुरानी बीमारियों के रूप में भी जाना जाता है और आनुवंशिक, शारीरिक, पर्यावरण तथा व्यवहार संबंधी कारकों के संयोजन का परिणाम हैं।
    • NCD में प्रमुख रूप से हृदय रोग (जैसे- दिल का दौरा और स्ट्रोक), कैंसर, पुराने श्वसन रोग (जैसे- प्रतिरोधी फुफ्फुसीय रोग एवं अस्थमा) तथा मधुमेह शामिल हैं।
  • कारण: 
    • तंबाकू का उपयोग, अस्वास्थ्यकर आहार, शराब का सेवन, शारीरिक निष्क्रियता और वायु प्रदूषण जैसी स्थितियाँ जोखिम में योगदान देने वाले मुख्य कारक हैं।  

आगे की राह

  • इस बढ़ती महामारी का मुकाबला करने के लिये तंदुरूस्ती और एक स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना आवश्यक है।
  • स्वस्थ आहार और नियमित व्यायाम पर ज़ोर देना महत्त्वपूर्ण है।
  • भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हृदय रोगों, कैंसर, पुरानी साँस की बीमारियों और मधुमेह को प्रमुख NCD के रूप में पहचाना है, उन्हें स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे, मानव संसाधन विकास, स्वास्थ्य संवर्द्धन, जागरूकता बढ़ाना, रोकथाम, शीघ्र निदान और उचित स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित करने वाले कार्यक्रमों के माध्यम से संबोधित किया है।
  • राज्य-विशिष्ट नीतियाँ NCD से निपटने के प्रयासों की प्रभावशीलता को अधिकतम करते हुए प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्ट चुनौतियों और जोखिम कारकों को संबोधित करने के लिये अनुरूप हस्तक्षेप की अनुमति देती हैं।
    • प्रत्येक राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार, संसाधनों का आवंटन करके राज्य-विशिष्ट रणनीतियाँ संसाधन उपयोग का अनुकूलन करती हैं, स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे को बढ़ाती हैं और NCD के खिलाफ लड़ाई में अधिकतम प्रभाव सुनिश्चित करती हैं।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पर अमेरिका-भारत पहल

प्रिलिम्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पर अमेरिका-भारत पहल (iCET), OpenRAN नेटवर्क टेक्नोलॉजी, क्वाड, नाटो, AI, क्वांटम कंप्यूटिंग, सेमीकंडक्टर्स

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण और उभरती हुई प्रौद्योगिकी में सहयोग के संभावित लाभ, नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र की भूमिका 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपनी सामरिक साझेदारी को मज़बूत करने एवं प्रौद्योगिकी तथा रक्षा सहयोग को बनाए रखने की दिशा में एक अहम फैसला लिया है। महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पर अमेरिका-भारत पहल (initiative on Critical and Emerging Technology- iCET) के तहत दोनों देशों ने उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने के लिये एक रोडमैप पेश किया।

  • यह पहल नियामक बाधाओं को दूर करने, निर्यात नियंत्रणों को संरेखित करने और महत्त्वपूर्ण एवं उभरते क्षेत्रों में गहन सहयोग को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।

महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पर पहल:

  • परिचय: 
    • iCET की घोषणा भारत और अमेरिका द्वारा मई 2022 में की गई थी और इसे आधिकारिक तौर पर जनवरी 2023 में लॉन्च किया गया था। इसका संचालन दोनों देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद द्वारा किया जा रहा है।
    • iCET के अंतर्गत दोनों देशों ने सहयोग के छह क्षेत्रों की पहचान की है जिसमें सह-विकास और सह-उत्पादन शामिल होगा जिसे धीरे-धीरे QUAD फिर NATO, यूरोप और शेष विश्व में विस्तारित किया जाएगा।
    • iCET के अंतर्गत भारत, अमेरिका के साथ अपनी प्रमुख तकनीकों को साझा करने के लिये तैयार है और वाशिंगटन से भी ऐसा ही करने की अपेक्षा करता है।
    • इसका उद्देश्य AI, क्वांटम कंप्यूटिंग, सेमीकंडक्टर्स और वायरलेस टेलीकम्युनिकेशन सहित महत्त्वपूर्ण तथा उभरते प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना है।
  • पहल के प्रमुख क्षेत्र:
    • AI अनुसंधान साझेदारी।
    • रक्षा औद्योगिक सहयोग, रक्षा तकनीकी सहयोग और रक्षा स्टार्टअप।
    • नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र।
    • सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र का विकास।
    • मानव अंतरिक्ष उड़ान के क्षेत्र में सहयोग।
    • भारत में 5G और 6G तकनीकों में उन्नति एवं OpenRAN नेटवर्क प्रौद्योगिकी को अपनाना।
  • अब तक की प्रगति: 
    • प्रमुख उपलब्धियों में क्वांटम समन्वय तंत्र, दूरसंचार पर सार्वजनिक-निजी संवाद, AI और अंतरिक्ष के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण आदान-प्रदान, अर्द्धचालक आपूर्ति शृंखला स्थापित करने पर समझौता ज्ञापन तथा रक्षा औद्योगिक सहयोग के लिये रोडमैप का निष्कर्ष शामिल है।
    • दोनों देश विशाल जेट इंजन सौदे को अंतिम रूप देने के करीब हैं और इसके साथ ही भारत-यू.एस. डिफेंस एक्सेलेरेशन इकोसिस्टम (इंडस-एक्स) नामक एक नई पहल लॉन्च करने वाले हैं।
    • विनियामक बाधाओं को दूर करने और निर्यात नियंत्रण मानदंडों की समीक्षा करने के लिये सामरिक व्यापार संवाद स्थापित किया गया है।

अमेरिका के साथ भारत के संबंध:

  • आर्थिक संबंध:   
    • दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों के परिणामस्वरूप वर्ष 2022-23 में अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर उभरा है।
    • भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में 7.65% बढ़कर 128.55 अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 119.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • वर्ष 2022-23 में अमेरिका के साथ निर्यात 2.81% बढ़कर 78.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 76.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर था तथा आयात लगभग 16% बढ़कर 50.24 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:

Open-RAN (O-RAN) नेटवर्क टेक्नोलॉजी: 

  • परिचय: 
    • यह रेडियो एक्सेस नेटवर्क (RAN) सिस्टम का एक गैर-स्वामित्व संस्करण है।
      • RAN एक वायरलेस दूरसंचार प्रणाली का प्रमुख घटक है जो व्यक्तिगत उपकरणों को एक रेडियो लिंक के माध्यम से नेटवर्क के अन्य भागों से जोड़ता है।
    • विभिन्न विक्रेताओं के उपकरणों के बीच इंटरऑपरेबिलिटी की अनुमति देता है। 
  • Open-RAN नेटवर्क प्रौद्योगिकी के लाभ:
    • अधिक पारदर्शी और लचीला RAN आर्किटेक्चर।
    • खुले इंटरफेस और वर्चुअलाइज़ेशन के आधार पर।
    • उद्योग-व्यापी मानकों द्वारा समर्थित।
    • लागत में कमी।
    • बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा।
    • तेज़ नवाचार। 
  • Open-RAN नेटवर्क प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग:
    • 5G और 6G नेटवर्क को सपोर्ट करना।
    • नेटवर्क के प्रदर्शन और सुरक्षा को बढ़ाना।
    • नई सेवाओं और क्षमताओं को सक्षम करना।
    • डिजिटल विभाजन को पाटना।

स्रोत: द हिंदू


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