डेली न्यूज़ (19 Jan, 2022)



2021 छठा सबसे गर्म वर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

ला नीना, वनाग्नि, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC), हीटवेव, दक्षिण पश्चिम मानसून

मेन्स के लिये:

पृथ्वी का बढ़ता तापमान और उसका प्रभाव, इस दिशा में उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दो अमेरिकी एजेंसियों ने डेटा जारी कर जानकारी दी है कि वर्ष 2021 रिकॉर्ड स्तर पर पृथ्वी का छठा सबसे गर्म वर्ष था।

  • वहीं जब से तापमान के संबंध में रिकॉर्ड रखना शुरू किया गया है, तब से पिछले 10 वर्ष सबसे गर्म वर्ष रहे।
  • यह डेटा अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा और ‘नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ (NOAA) द्वारा एकत्र किया गया था।

Land-Ocean

प्रमुख बिंदु

  • वर्ष 2021 में पृथ्वी:
    • वर्ष 2021 में पृथ्वी 19वीं सदी के अंत के औसत यानी औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की तुलना में लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म थी।
  • उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध:
    • इस वर्ष उत्तरी गोलार्द्ध में भूमि की सतह का तापमान रिकॉर्ड में तीसरा सबसे उच्चतम था, जबकि वर्ष 2016 और वर्ष 2020 क्रमशः पहले और तीसरे स्थान पर हैं।
    • वर्ष 2021 में दक्षिणी गोलार्द्ध की सतह का तापमान रिकॉर्ड में नौवाँ उच्चतम था।
  • समुद्र की सतह का तापमान:
    • अटलांटिक और प्रशांत महासागरों के कुछ हिस्सों में समुद्री सतह पर रिकॉर्ड-उच्च तापमान दर्ज किया गया।
    • वर्ष 2021 में ऊपरी महासागरीय हीट रिकॉर्ड स्तर पर सबसे अधिक थी और इसने बीते वर्ष 2020 में निर्धारित रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया।
    • पिछले सात वर्षों (2015-2021) में सात उच्चतम महासागरीय हीट दर्ज की गई हैं, यानी बीते 7 वर्षों में प्रत्येक वर्ष एक नया रिकॉर्ड बना है।
  • अंटार्कटिक सागर:
    • दिसंबर 2021 के दौरान अंटार्कटिक समुद्री बर्फ की सीमा 3.55 मिलियन वर्ग मील थी।
    • यह मान औसत से 11.6% कम है और रिकॉर्ड पर तीसरी सबसे छोटी दिसंबर की सीमा थी।
    • केवल वर्ष 2016 और 2018 के दिसंबर में यह सीमा थोड़ी कम थी।
  • ला नीना के प्रभाव:
    • ला नीना के प्रभाव ने दुनिया के तापमान को कम रखा।
      • ला नीना एक मौसम पैटर्न है जो प्रशांत महासागर में घटित होती है लेकिन दुनिया भर के मौसम को प्रभावित करती है।
      • ला नीना घटना तब घटित होती है जब दक्षिण अमेरिकी उष्णकटिबंधीय के प्रशांत तट के साथ समुद्र की सतह का पानी ठंडा हो जाता है। यह लगभग हर दो से सात वर्ष में होता है।
  • तापन प्रवृत्ति के कारण:
    • दुनिया भर में यह तापन प्रवृत्ति मानवीय गतिविधियों के कारण है, जिसने वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि की है।
      • पहले से ही ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव में आर्कटिक समुद्री बर्फ पिघल रही है, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, जंगल की आग अधिक गंभीर होती जा रही है और पशु प्रवास पैटर्न बदल रहे हैं।

भारत में बढ़ता तापमान:

  • इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट (AR6) का पहला भाग क्लाइमेट चेंज 2021: द फिज़िकल साइंस बेसिस अगस्त, 2021 में जारी किया।
  • भारतीय उपमहाद्वीप विशिष्ट निष्कर्ष:
    • हीटवेव्स: 21वीं सदी के दौरान दक्षिण एशिया में हीटवेव और आर्द्र गर्मी का तनाव अधिक तीव्र और लगातार होगा।
    • मानसून: मानसून वर्षा में परिवर्तन की भी उम्मीद है, वार्षिक और ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा दोनों में वृद्धि होने का अनुमान है।
      • एरोसोल की वृद्धि के कारण पिछले कुछ दशकों में दक्षिण पश्चिम मानसून में गिरावट आई है, लेकिन एक बार यह कम हो जाने पर देश में भारी मानसूनी वर्षा का हो सकती है।
    • समुद्र का तापमान: हिंद महासागर जिसमें अरब सागर और बंगाल की खाड़ी शामिल है, वैश्विक औसत से अधिक तेजी से गर्म हुआ है।
      • हिंद महासागर के ऊपर समुद्र की सतह के तापमान उस स्थिति में 1 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना है जब ग्लोबल वार्मिंग में 1.5 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होगी।
  • भारत द्वारा हाल ही में किये गए जलवायु संबंधी उपाय:
    • COP26 में पाँच तत्त्वों  के साथ एक महत्त्वाकांक्षी क्लाइमेट एक्शन विज़न का अनावरवर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक ले जाना।
      • वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा से 50% ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना।
      • वर्ष 2030 तक कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना।
      • वर्ष 2030 तक अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को 45% से कम करना।
      • वर्ष 2070 तक "नेट ज़ीरो" के लक्ष्य को प्राप्त करना।
    • भारत अब स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता के मामले में चौथे स्थान पर है और पिछले सात वर्षों में गैर-जीवाश्म ऊर्जा में 25% से अधिक की वृद्धि हुई है तथा यह कुल ऊर्जा मिश्रण का 40% तक पहुँच गया है।
    • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI) जैसी पहलों में भी अग्रणी भूमिका निभाई है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


इंडोनेशिया द्वारा अपनी राजधानी का स्थानांतरण

प्रिलिम्स के लिये:

इंडोनेशिया की नई राजधानी, समुद्र का बढ़ता स्तर और ज़िम्मेदार कारक

मेन्स के लिये:

बढ़ते समुद्र के स्तर के कारण और इसके परिणाम, इस मुद्दे को हल करने के लिये कदम उठाए जाने की ज़रूरत, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंडोनेशिया की संसद ने अपनी राजधानी को धीरे-धीरे डूब रहे जकार्ता से जंगलयुक्त बोर्नियो द्वीप में 2,000 किलोमीटर दूर एक साइट पर स्थानांतरित करने की मंज़ूरी दे दी है, जिसे "नुसंतारा" नाम दिया जाएगा।

  • इस कदम को पहली बार अप्रैल 2019 में राष्ट्रपति जोको विडोडो ने समुद्र के बढ़ते स्तर और घनी आबादी वाले जावा द्वीप पर सर्वाधिक भीड़ का हवाला देते हुए उठाया था।
  • जकार्ता जावा के उत्तर पश्चिमी तट पर स्थित है। इंडोनेशिया में सबसे बड़े द्वीप सुमात्रा, जावा, कालीमंतन (इंडोनेशियाई बोर्नियो), सुलावेसी और न्यू गिनी का इंडोनेशियाई हिस्सा (पापुआ या इरियन जया के रूप में जाना जाता है) हैं।

Indonesia

प्रमुख बिंदु

  • स्थानांतरण का कारण:
    • जकार्ता लंबे समय से गंभीर रू[प से बुनियादी ढाँचे की समस्याओं और जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ से त्रस्त है, विशेषज्ञों का अनुमान है कि वर्ष 2050 तक शहर का एक-तिहाई हिस्सा पानी के नीचे समा सकता है।
      • जकार्ता के बड़े मेट्रो क्षेत्र में 30 मिलियन से अधिक लोग रहते हैं।
    • इसके अलावा जकार्ता प्रशासन, शासन, वित्त और व्यापार का केंद्र है, इसने अनिवार्य रूप से शहर में अथक निर्माण का नेतृत्व किया है, जिसके कारण कई क्षेत्रों में पानी ज़मीन में रिसने में सक्षम नहीं है, जिससे अपवाह में वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 1949 में देश के स्वतंत्र होने के बाद से जकार्ता इंडोनेशिया की राजधानी रहा है। पिछले कुछ दशकों से यह शहर भीड़-भाड़ वाला और बेहद प्रदूषित हो गया है।
    • राजधानी को जावा द्वीप से बोर्नियो द्वीप में स्थानांतरित करने का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण बढ़ती वित्तीय असमानता है।
      • जावा द्वीप, विशेष रूप से जकार्ता जो 661.5 वर्ग किलोमीटर से अधिक में फैला है, अत्यधिक आबादी वाला है जबकि पूर्वी कालिमंतान, 127,346.92 वर्ग किलोमीटर में फैला है यानी यह जकार्ता से बड़ा है और वर्तमान राजधानी की तुलना में बहुत कम आबादी वाला है।
  • स्थानांतरण स्थल:
    • नई राजधानी (नुसंतारा) बोर्नियो के इंडोनेशियाई हिस्से पर पूर्वी कालिमंतान प्रांत में लगभग 56,180 हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करेगी, जिसकी सीमाएँ मलेशिया और ब्रुनेई के साथ मिलती हैं।
    • हालाँकि राजधानी के स्थानांतरण के इस कदम को ल्रकर पर्यावरणविद् ने चेतावनी दी है कि यह इस क्षेत्र में पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचा सकता है, जहाँ खनन और ताड़ के बागान पहले से ही वर्षावनों के लिये खतरा बने हुए हैं, जो बोर्नियो की लुप्तप्राय प्रजातियों के निवास स्थान हैं।

नोट:

  • इंडोनेशिया इस क्षेत्र का पहला देश नहीं है, जो अधिक आबादी के कारण राजधानी स्थानांतरित कर रहा है।
  • मलेशिया ने वर्ष 2003 में अपनी राजधानी को कुआलालंपुर से पुत्रजया में स्थानांतरित कर दिया था, जबकि म्याँँमार ने वर्ष 2006 में रंगून से अपनी राजधानी नेपीडाॅ में स्थानांतरित कर दी थी।

समुद्र के स्तर में वृद्धि (SLR):

  • परिचय: SLR जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण दुनिया के महासागरों के जल स्तर में हुई वृद्धि है, विशेष रूप से ग्लोबल वार्मिंग जो कि तीन प्राथमिक कारकों से प्रेरित है:
    • ऊष्मीय विस्तार: जब पानी गर्म होता है, तो वह फैलता है। पिछले 25 वर्षों में समुद्र के स्तर में वृद्धि का लगभग आधा हिस्सा गर्म महासागरों के कारण है जो अपेक्षाकृत अधिक स्थान घेरते हैं।
    • ग्लेशियरों का पिघलना: ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप उच्च तापमान के कारण पर्वतीय हिमनद गर्मियों में अधिक पिघलते हैं।
      • यह अपवाह और समुद्र के वाष्पीकरण के बीच असंतुलन पैदा करता है, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ जाता है।
    • ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादरों को हानि: बढ़ी हुई गर्मी के कारण ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका को कवर करने वाली विशाल बर्फ की चादरें पर्वतीय ग्लेशियरों की तरह और अधिक तेज़ी से पिघल रही हैं तथा समुद्र जल में भी तेज़ी से वृद्धि हो रही है।
  • SLR की दर:
    • समुद्र के स्तर को मुख्य रूप से ज्वार स्टेशनों और उपग्रह लेज़र अल्टीमीटर का उपयोग करके मापा जाता है।
    • इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी), 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र के स्तर में वृद्धि वर्ष 1901-1971 की तुलना में तीन गुना अधिक हो गई है। आर्कटिक सागर की बर्फ 1,000 वर्षों में सबसे कम हुई है।
  • SLR के परिणाम:
    • तटीय बाढ़: विश्व के 10 सबसे बड़े शहरों में से आठ एक तट के पास हैं, जिनको तटीय बाढ़ से खतरा है
    • तटीय जैव विविधता का विनाश: SLR विनाशकारी क्षरण, आर्द्रभूमि बाढ़, जलभृत और नमक के साथ कृषि मिट्टी संदूषण व जैव विविधता आवास के विनाश का कारण बन सकता है।
    • खतरनाक तूफानों में वृद्धि: समुद्र का ऊँचा स्तर अधिक खतरनाक तूफानों का कारण बन रहा है जिससे जान-माल का नुकसान हो रहा है।
    • पार्श्व और अंतर्देशीय प्रवासन: निचले तटीय क्षेत्रों में आने वाली बाढ़ लोगों को उच्च भूमि पर प्रवास करने के लिये मजबूर कर रही है जिससे विस्थापन हो रहा है और बदले में दुनिया भर में शरणार्थी संकट पैदा हो रहा है।
    • बुनियादी ढाँचे पर प्रभाव: उच्च तटीय जल स्तर की संभावना से इंटरनेट की पहुँच जैसी बुनियादी सेवाओं को खतरा है।
    • अंतर्देशीय जीवन के लिये खतरा: बढ़ता समुद्र जल स्तर नमक के साथ मिट्टी और भूजल को दूषित कर सकता है।
    • पर्यटन और सैन्य तैयारी: तटीय क्षेत्रों में पर्यटन और सैन्य तैयारी भी एसएलआर में वृद्धि के कारण नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी।
  • SLR से निपटने के लिये उठाए गए कदम:
    • स्थानांतरण: कई तटीय शहरों ने पुनर्वास को एक शमन रणनीति के रूप में अपनाने की योजना बनाई है। उदाहरण के लिये किरिबाती द्वीप ने फिज़ी में स्थानांतरण की योजना बनाई है, जबकि इंडोनेशिया की राजधानी को जकार्ता से बोर्नियो स्थानांतरित किया जा रहा है।
    • समुद्री दीवार का निर्माण: वर्ष 2014 में इंडोनेशिया सरकार ने शहर को बाढ़ से बचाने के लिये   एक विशाल समुद्री दीवार या "विशालकाय गरुड़" नामक एक तटीय विकास परियोजना शुरू की।
    • बिल्डिंग एनक्लोज़र: शोधकर्त्ताओं ने  उत्तरी यूरोप को घेरने वाले विशाल बाँध/उत्तरी यूरोपीय एनक्लोज़र डैम (Northern European Enclosure Dam- NEED) का प्रस्ताव रखा है, जिसमें 15 उत्तरी यूरोपीय देशों को बढ़ते समुद्री स्तर से बचाने के लिये पूरे उत्तरी सागर को घेरा गया है। फारस की खाड़ी, भूमध्य सागर, बाल्टिक सागर, आयरिश सागर और लाल सागर को भी ऐसे क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया जो इसी प्रकार की विशाल घेराबंदी/ बाड़ों से लाभान्वित हो सकते हैं।
    • पानी के प्रवाह को चलाने के लिये निर्माण कार्य: डच सिटी रॉटरडैम ने अस्थायी तालाबों के साथ "वाटर स्क्वायर" जैसी बाधाओं, जल निकासी और नवीन स्थापत्य सुविधाओं का निर्माण किया।
  • भारत के संदर्भ में:

स्रोत: द हिंदू


दावोस शिखर सम्मेलन: विश्व आर्थिक मंच

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व आर्थिक मंच, दावोस एजेंडा।

मेन्स के लिये:

दावोस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री के संबोधन का महत्त्व।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रधानमंत्री ने विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum’s - WEF) के दावोस एजेंडा को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया।

  • दावोस (स्विट्जरलैंड) में WEF की वार्षिक बैठक वैश्विक, क्षेत्रीय और उद्योग एजेंडा को आकार देने के लिये विश्व  के शीर्ष नेताओं को शामिल करती है।

Davos

प्रमुख बिंदु:

  • एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य:
    • कोविड- 19 के दौरान भारत ने ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ के अपने दृष्टिकोण का पालन करते हुए आवश्यक दवाओं और टीकों का निर्यात करके कई लोगों की जान बचाई।
      • भारत ने 31 दिसंबर 2021 तक 97 देशों को कोविड- 19 टीकों की 1154.173 लाख खुराकें पहुंँचाई हैं।
    • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक देश है और इसे 'विश्व के लिये फार्मेसी' माना जाता है।
  • प्रो-प्लेनेट पीपुल्स (P3) एप्रोच: 
    • वैश्विक मंच (UNFCCC COP 26) में जलवायु परिवर्तन के प्रति भारत की प्रतिबद्धताओं को रेखांकित करने वाले "पी3 (प्रो-प्लैनेट-पीपल) मूवमेंट" के विचार का प्रस्ताव रखा गया।
      • भारत के "स्वच्छ, हरित, टिकाऊ और विश्वसनीय" ऊर्जा लक्ष्यों को दोहराया गया, जो वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन (Net-Zero Carbon Emission) प्राप्त करने पर केंद्रित हैं।
    • LIFE (पर्यावरण के लिये जीवन शैली- UNFCCC COP-26 सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा दी गई) को एक जन आंदोलन बनाना P3 के लिये एक मज़बूत आधार हो सकता है।
      • LIFE एक लचीली और टिकाऊ जीवनशैली की दृष्टि है जो जलवायु संकट व भविष्य की अन्य अप्रत्याशित चुनौतियों से निपटने में काम आएगी।
      • इस संस्कृति और उपभोक्तावाद ने जलवायु चुनौती को बढ़ा दिया है।
  • भारत द्वारा हाल ही में किये गए सुधार:
    • 6 लाख गाँवों में ऑप्टिकल फाइबर जैसे भौतिक और डिजिटल, कनेक्टिविटी से संबंधित बुनियादी ढाँचे में 1.3 ट्रिलियन डॉलर का निवेश, परिसंपत्ति मुद्रीकरण के माध्यम से 80 बिलियन डॉलर के उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
    • गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान सभी हितधारकों को एक मंच पर लाने के लिये वस्तु, लोगों और सेवाओं की निर्बाध कनेक्टिविटी के लिये नई गतिशीलता का संचार करता है।
    • आज भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा, सुरक्षित और सफल डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म है।
      • दिसंबर 2021 में भारत में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) के ज़रिये 4.4 अरब ट्रांज़ेक्शन किये गए।
    • कोरोना संक्रमणों पर नज़र रखने के लिये आरोग्य-सेतु ऐप और टीकाकरण के लिये CoWinPortal जैसे तकनीकी समाधान।
  • एक निवेश गंतव्य के रूप में भारत:
    • हाल ही में सरकार द्वारा विभिन्न सुधार उपाय किये गए हैं, जैसे कि पूर्वव्यापी कराधान को हटाना, अनुपालन आवश्यकताओं में कमी और कॉर्पोरेट टैक्स दर संरचना का सरलीकरण, जो इसे मौजूदा सबसे अच्छा निवेश गंतव्य बनाता है।
      • केवल पिछले वर्ष में ही भारत ने 25,000 से अधिक अनुपालनों को कम किया है।
    • आज भारत में विश्व के किसी भी अन्य देश की तुलना में यूनिकॉर्न की तीसरी सबसे बड़ी संख्या मौजूद है। वहीं पिछले छह महीनों में 10,000 से अधिक स्टार्ट-अप्स पंजीकृत किये गए हैं।
    • भारत विभिन्न उपायों के माध्यम से व्यापार करने में सुगमता को बढ़ावा दे रहा है और साथ ही सरकारी हस्तक्षेप को कम कर रहा है।
    • नीति-निर्माण के तहत अगले 25 वर्षों के लिये ‘स्वच्छ और हरित’ के साथ-साथ ‘सतत् एवं विश्वसनीय’ विकास की आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
  • बहुपक्षीय संगठनों के समक्ष चुनौतियाँ:
    • जब इन संस्थाओं का गठन हुआ तो स्थितियाँ काफी अलग थीं। आज परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं हैं।
    • इसलिये प्रत्येक लोकतांत्रिक देश की यह ज़िम्मेदारी है कि वह इन संस्थानों में सुधारों पर ज़ोर दे ताकि वे वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हो सकें।
  • भविष्य की चुनौतियों के लिये सामूहिक प्रयास:
    • प्रत्येक देश और प्रत्येक वैश्विक एजेंसी द्वारा एक सामूहिक और समन्वित कार्रवाई किये जाने की आवश्यकता है।
    • आपूर्ति शृंखला में व्यवधान, मुद्रास्फीति और जलवायु परिवर्तन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
    • एक अन्य उदाहरण क्रिप्टोकरेंसी है। इससे जिस प्रकार की तकनीक जुड़ी हुई है, उसमें किसी एक देश द्वारा लिये गए निर्णय संबंधित चुनौतियों से निपटने हेतु अपर्याप्त होंगे।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम 

  • परिचय:
    • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) एक स्विस गैर-लाभकारी संस्थान है जिसकी स्थापना वर्ष 1971 में जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में हुई थी।
    • स्विस सरकार द्वारा इसे सार्वजनिक-निजी सहयोग के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • मिशन:
    • WEF वैश्विक, क्षेत्रीय और उद्योग जगत की परियोजनाओं को आकार देने हेतु व्यापार, राजनीतिक, शिक्षा क्षेत्र और समाज के अन्य प्रतिनिधियों को शामिल करके विश्व की स्थिति में सुधार के लिये प्रतिबद्ध है।
  • संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष:  क्लॉस  श्वाब (Klaus Schwab)।
  • WEF द्वारा प्रकाशित प्रमुख रिपोर्टों में से कुछ निम्नलिखित हैं: 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


हूती विद्रोहियों का यूएई पर हमला

प्रिलिम्स के लिये:

हूती, यमन की अवस्थिति और उसके पड़ोसी देश, लाल सागर, अदन की खाड़ी, ड्रोन, शिया, सुन्नी, अरब स्प्रिंग, ऑपरेशन राहत

मेन्स के लिये:

हूती और संबंधित चिंताएँ, हूती संघर्ष का महत्त्व, भारत का हित

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की राजधानी अबू धाबी में एक संदिग्ध ड्रोन हमले में कई विस्फोट हुए जिसमें दो भारतीय भी मारे गए है।

Houthi-Insurgency

प्रमुख बिंदु

  • हूती :
    • हूती आंदोलन की जड़ें "बिलीविंग यूथ" (मुंतदा अल-शहाबल-मुमिन) में खोजी जा सकती हैं, जो हुसैन अल-हूती और उसके पिता बद्र अल-दीन अल-हूती द्वारा 1990 के दशक की शुरुआत में स्थापित एक ज़ायदी पुनरुत्थानवादी समूह था।
    • बद्र अल-दीन उत्तरी यमन में एक प्रभावशाली ज़ायदी मौलवी था। वर्ष 1979 की ईरानी क्रांति और 1980 के दशक में दक्षिणी लेबनान में हिज़्बुल्लाह के उदय से प्रेरित होकर बद्र अल-दीन एवं उसके बेटों ने यमन के ज़ायदियों के बीच विशाल सामाजिक और धार्मिक नेटवर्क का निर्माण कार्य शुरू किया, जो सुन्नी-बहुसंख्यक आबादी वाले देश का लगभग एक-तिहाई हिस्सा बनाते हैं।
    • लेकिन जब आंदोलन ने राजनीतिक रूप ले लिया और अली अब्दुल्ला सालेह (यमन में) के "भ्रष्ट" शासन पर हमला करना शुरू कर दिया तो आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका का युद्ध के लिये उनका समर्थन सालेह के लिये घातक बन गया।
    • उसने खुद को अंसार अल्लाह कहा और सरकार के खिलाफ उत्तर में आदिवासियों को लामबंद किया।
    • वर्ष 2004 में सालेह की सरकार ने हुसैन अल हूती के खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी किया  और इस गिरफ्तारी के विरोध में विद्रोह की शुरुआत हुई।
    • सितंबर 2004 में सरकारी सैनिकों ने विद्रोहियों पर हमला कर हुसैन को मार डाला। तब से सरकार ने प्रतिरोध को समाप्त करने के लिये ज़ायदी के गढ़ सादा में कई सैन्य अभियान शुरू किये जिसे स्थानीय रूप में हूती आंदोलन कहा गया।
    • लेकिन इसने हूती विद्रोहियों को मजबूत किया जिन्होंने वर्ष 2010 तक यानी जब यह युद्ध विराम की स्थिति तक पहुंँच गया तो सरकारी सैनिकों की मदद से सादा पर कब्ज़ा कर लिया था।

ज़ायदी

  • ज़ायदी शियाओं की सबसे पुरानी शाखा है। ज़ायदियों का नाम ज़ैद बिन अली, इमाम अली के परपोते, पैगंबर मोहम्मद के चचेरे भाई और दामाद के नाम पर रखा गया है, जो शिया, सुन्नी और ज़ायदी का सम्मान करते हैं।
  • ज़ायद बिन अली ने आठवीं शताब्दी में उम्मायद खलीफा के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था। जिसमे उसकी मृत्यु हो गई, लेकिन उसकी शहादत के कारण जायदी संप्रदाय का उदय हुआ। हाँलाकि धर्मशास्त्र और व्यवहार के संदर्भ में जायदी को इस्लाम की शिया शाखा का हिस्सा माना जाता है। वे ईरान, इराक और लेबनान के 'ट्वेल्वर' शियाओं से भिन्न हैं।
  • सदियों से यमन के भीतर जायदी एक शक्तिशाली संप्रदाय था।
  • वर्ष 1918 में ओटोमन साम्राज्य के पतन के बाद ज़ायदी देश में एक राजशाही (मुतावक्किलित साम्राज्य) स्थापित करना चाहते थे लेकिन उनका प्रभुत्व वर्ष 1962 में उस समय समाप्त हो गया जब मिस्र समर्थित गणतंत्रों ने राजशाही को उखाड़ फेंका।
  • हूती के उदय का कारण:
    • वर्ष 2011 में जब ट्यूनीशियाई और मिस्र के तानाशाहों को गिराने वाले अरब स्प्रिंग विरोध के हिस्से के रूप में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, तो हूती (Houthis), उस समय अपनी सैन्य जीत से आश्वस्त थे और सदाह में उन्हें जो समर्थन मिला, उसने आंदोलन का समर्थन किया।
    • राष्ट्रपति सालेह, (एक जायदी) जो 33 वर्षों तक सत्ता में थे, ने नवंबर 2011 में इस्तीफा दे दिया तथा  अपने डिप्टी, अब्दराबुह मंसूर हादी, जो एक सऊदी समर्थित सुन्नी था को बागडोर सौंप दी। 
    • सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के संरक्षण में यमन ने आंतरिक मतभेदों को हल करने के लिये एक राष्ट्रीय वार्ता शुरू की।
    • हूथी इस संवाद का हिस्सा थे लेकिन वे हादी की संक्रमणकालीन सरकार (Transitional Government) के साथ ही इस संवाद से बाहर हो गए तथा  यह दावा करते हुए कि प्रस्तावित संघीय समाधान, जो ज़ायदी-प्रभुत्व वाले उत्तर को दो भूमि-बंद प्रांतों में विभाजित करने की मांग करता था, का उद्देश्य आंदोलन को कमजोर करना था।
    • वे शीघ्र ही विद्रोह में पुन: शामिल हो गए। सालेह  जिन्हें अंतरिम सरकार और उसके समर्थकों द्वारा दरकिनार कर दिया गया था। अपने पूर्व प्रतिद्वंद्वियों के साथ हाथ मिलाया और एक संयुक्त सैन्य अभियान शुरू किया। 
    • जनवरी 2015 तक हूती-सालेह गठबंधन (Houthi-Saleh alliance) ने सना और उत्तरी यमन के अधिकांश हिस्से पर कब्ज़ा  कर लिया था, जिसमें महत्त्वपूर्ण लाल सागर तट भी शामिल था। (बाद में हूती, सालेह के खिलाफ हो गए और दिसंबर 2017 में उसे मार डाला)।
  • यमन पर सऊदी अरब के हमले का कारण:
    • यमन में हूती विद्रोहियों के तेज़ी से उदय ने सऊदी अरब में खतरे की घंटी बजा दी, जो कि उन्हें ईरानी प्रॉक्सी के रूप में देखता है।
    • सऊदी अरब ने मार्च 2015 में हूती विद्रोहियों के खिलाफ त्वरित जीत की उम्मीद में एक सैन्य अभियान शुरू किया था, लेकिन सऊदी अरब के हवाई हमले के बावजूद हूती विद्रोही पीछे नहीं हटे।
    • ज़मीनी स्तर पर कोई प्रभावी सहयोगी नहीं होने और कोई विशिष्ट योजना न होने के कारण, सऊदी के नेतृत्व वाला अभियान बिना किसी ठोस परिणाम के समाप्त हो गया। पिछले छह वर्षों में हूती विद्रोहियों ने सऊदी हवाई हमलों के जवाब में उत्तरी यमन के सऊदी शहरों पर कई हमले किये हैं।
    • वर्ष 2019 में हूती विद्रोहियों ने दो सऊदी तेल प्रतिष्ठानों पर हमले का दावा किया था, जो कि देश के तेल उत्पादन के आधे हिस्से हेतु उत्तरदायी है (हूती विद्रोहियों के दावे को विशेषज्ञों और सरकारों द्वारा खंडित कर दिया गया था, जिन्होंने कहा कि विद्रोहियों के लिये यह हमला करना संभव नहीं था। अमेरिका ने इसके लिये ईरान को दोषी ठहराया था)।
    • हूती विद्रोहियों ने उत्तर में एक सरकार का गठन किया। युद्ध में सऊदी अरब और हूती दोनों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
    • जबकि सऊदी बम विस्फोटों में बड़ी संख्या में नागरिक मारे गए, हूती विद्रोहियों पर अधिकार समूहों और सरकारों द्वारा, सहायता को रोकने, घनी आबादी वाले क्षेत्रों में बलों को तैनात करने तथा नागरिकों व शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल का उपयोगप्रयोग करने का आरोप लगाया गया।
  • हूती विद्रोहियों के संयुक्त अरब अमीरात पर हमला करने का कारण:
    • यह पहली बार नहीं है जब हूती विद्रोहियों ने संयुक्त अरब अमीरात पर हमला किया हो। वर्ष 2018 में जब संयुक्त अरब अमीरात समर्थित बल यमन में आगे बढ़ रहे थे, हूती विद्रोहियों ने अमीरात के खिलाफ हमलों का दावा किया।
    • तब संयुक्त अरब अमीरात ने यमन से अपने सैनिकों को वापस ले लिया और अदन स्थित विद्रोहियों के एक समूह, दक्षिणी ट्रांजीशनल परिषद को सामरिक समर्थन की पेशकश की, जो संयुक्त अरब अमीरात के सऊदी समर्थित सरकारी बलों से भी लड़ रहा था।
    • इस अवधि के दौरान हूती विद्रोही पूरी तरह से सऊदी अरब और यमन के अंदर सऊदी समर्थित बलों पर केंद्रित रहे।
    • लेकिन हाल के महीनों में, जायंट्स ब्रिगेड्स, एक मिलिशिया समूह, जो बड़े पैमाने पर दक्षिणी यमनियों (यूएई द्वारा समर्थित) से बना है और संयुक्त बलों (मारे गए पूर्व राष्ट्रपति सालेह के भतीजे के नेतृत्व में मिलिशिया) ने हूती विद्रोहियों के खिलाफ बंदूक उठा ली थी।
    • अब हमलों के साथ ऐसा प्रतीत होता है कि हूती विद्रोहियों ने अमीरात को एक स्पष्ट संदेश भेजा है कि वह यमन से दूर रहे या अधिक हमलों का सामना करें।
  • चिंताएँ:
    • यमन रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह लाल सागर को अदन की खाड़ी से जोड़ने वाले जलडमरूमध्य पर स्थित है, जिसके माध्यम से दुनिया के अधिकांश तेल शिपमेंट गुज़रते हैं।
    • यह अल-कायदा या आईएस से जुड़े-देश के हमलों के खतरे के कारण भी पश्चिम को चिंतित करता है -जो अस्थिरता को उत्पन्न करते हैं।
    • अमेरिका द्वारा विद्रोहियों को आतंकवादियों के रूप में सूचीबद्ध करने और छह साल से संघर्ष को कम करने के प्रयासों के बाद भी हूती विद्रोहियों ने राज्य पर सीमा पार हमले तेज कर दिये हैं।
    • संघर्ष को शिया शासित ईरान और सुन्नी शासित सऊदी अरब के बीच क्षेत्रीय सत्ता संघर्ष के हिस्से के रूप में भी देखा जाता है।
  • भारत का हित:
    • भारत के लिये यह एक ऐसी चुनौती है जिसे तेल सुरक्षा और इस क्षेत्र में रहने वाले 8 मिलियन प्रवासियों को ध्यान में रखकर नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता है जिनसे सालाना 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का प्रेषण होता है।
  • भारतीय पहल:
    • ऑपरेशन राहत:
      • भारत ने अप्रैल 2015 में यमन से 4000 से अधिक भारतीय नागरिकों को निकालने के लिये बड़े पैमाने पर हवाई और समुद्री अभियान शुरू किये।
    • मानवीय सहायता:
      • भारत ने अतीत में यमन को भोजन और चिकित्सा सहायता प्रदान की है और पिछले कुछ वर्षों में हजारों यमन नागरिकों ने भारत में चिकित्सा उपचार का लाभ उठाया है।
      • भारत ने विभिन्न भारतीय संस्थानों में बड़ी संख्या में यमन नागरिकों के लिये शिक्षा की सुविधा जारी रखता है।

स्रोत- द हिंद


वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स 2022: ILO

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड 2022

मेन्स के लिये:

महामारी के बाद से बेरोज़गारी, विभिन्न क्षेत्रों पर महामारी का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने ‘वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स’ (WESO Trends) 2022 शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की।

  • रिपोर्ट के मुताबिक, रोज़गार स्थिति काफी नाज़ुक बनी हुई है, क्योंकि भविष्य में महामारी को लेकर अनिश्चित स्थिति बनी हुई है।
  • वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड्स में वर्ष 2022 और वर्ष 2023 के लिये व्यापक श्रम बाज़ार अनुमान भी शामिल हैं। यह आकलन बताता है कि दुनिया भर में श्रम बाज़ार में किस प्रकार सुधार हुआ है और जो महामारी से उबरने के लिये विभिन्न राष्ट्रीय दृष्टिकोणों को दर्शाता है और श्रमिकों तथा आर्थिक क्षेत्रों के विभिन्न समूहों पर प्रभावों का विश्लेषण करता है।

प्रमुख बिंदु

  • रोज़गार
    • वैश्विक बेरोज़गारी वर्ष 2023 तक पूर्व-कोविड-19 स्तरों से ऊपर रहने की आशंका है।
    • वर्ष 2019 के 186 मिलियन की तुलना में वर्ष 2022 में यह 207 मिलियन होने का अनुमान है।
  • वैश्विक कार्य घंटे: 
    • वर्ष 2022 में यह उनके पूर्व-महामारी स्तर से लगभग 2% कम होगा, जो कि 52 मिलियन पूर्णकालिक नौकरियों के नुकसान के बराबर है। यह घाटा वर्ष 2021 में ILO के पूर्वानुमान से दोगुना है।
  • वैश्विक श्रम बल भागीदारी:
    • अनुमान है कि वर्ष 2022 में लगभग 40 मिलियन लोग वैश्विक श्रम शक्ति में भाग नहीं लेंगे।
  • क्षेत्रीय अंतर:
    • यह प्रभाव विकासशील देशों के लिये विशेष रूप से गंभीर रहा है, जिन्होंने महामारी से पहले भी उच्च स्तर की असमानता और अधिक भिन्न कार्य परिस्थितियों तथा कमज़ोर सामाजिक सुरक्षा दायित्त्वों का अनुभव किया था।
    • कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों के पास टीकों की पहुँच कम है और संकट को दूर करने के लिये सरकारी बजट का विस्तार करने की सीमित गुंज़ाइश है।
  • स्पष्ट रूप से अन्य प्रभाव:
    • रिपोर्ट में श्रमिकों और देशों के समूहों के बीच होने वाले संकट के प्रभाव में भारी अंतर की चेतावनी दी गई है, जबकि विकास की स्थिति की परवाह किये बिना यह लगभग हर राज्य के आर्थिक वित्तीय एवं सामाजिक बनावट को कमज़ोर कर रहा है।
    • श्रम बलों की घरेलू आय और सामाजिक तथा राजनीतिक सामंजस्य के लिये संभावित दीर्घकालिक परिणामों के साथ क्षतिपूर्ति हेतु अधिक समय की आवश्यकता है।
  • विभिन्न क्षेत्र:
    • कुछ क्षेत्र, जैसे यात्रा और पर्यटन विशेष रूप से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, जबकि अन्य क्षेत्र जैसे कि सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित क्षेत्र फले-फूले हैं।
  • महिलाओं और युवा जनसंख्या पर प्रभाव:
    • श्रम बाज़ार संकट से महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक प्रभावित हुई हैं और यह जारी रहने की संभावना है।
    • शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों के बंद होने से युवाओं, खासकर उन लोगों के लिये जिनके पास इंटरनेट नहीं है, दीर्घकालीन प्रभाव पड़ेगा।
  • अपेक्षित रिकवरी:
    • व्यापक श्रम बाज़ार में सुधार के बिना इस महामारी से कोई वास्तविक रिकवरी नहीं हो सकती है।
    • सतत् रिकवरी संभव है लेकिन यह अच्छे काम के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिये, जिसमें स्वास्थ्य और सुरक्षा, समानता, सामाजिक सुरक्षा और सामाजिक संवाद शामिल हैं।
      • नए श्रम बाज़ार का पूर्वानुमान भारत जैसे देश के लिये नीति नियोजन हेतु महत्त्वपूर्ण हो सकता है, जहाँ अधिकांश काम अनौपचारिक है, ताकि आगे रोज़गार संबंधी नुकसान और काम के घंटों में कटौती को रोका जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन

  • परिचय
    • इस संगठन को वर्ष 1919 में वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में बनाया गया था, जो कि इस विश्वास के साथ गठित किया गया था कि सार्वभौमिक और स्थायी शांति तभी प्राप्त की जा सकती है जब यह सामाजिक न्याय पर आधारित हो।
    • यह एक त्रिपक्षीय संगठन है, जो अपने कार्यकारी निकायों में सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाता है।
  • सदस्य
  • मुख्यालय
    • जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड)
  • पुरस्कार
    • वर्ष 1969 में ILO को राष्ट्रों के बीच भाईचारे और शांति के संदेश को बढ़ावा देने, श्रमिकों के लिये बेहतर कार्य एवं न्याय प्रणाली स्थापित करने और अन्य विकासशील देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिये नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


5G टेलीकॉम और एयरलाइन सुरक्षा

प्रिलिम्स के लिये:

5G टेक्नोलॉजी, एयरलाइन सुरक्षा

मेन्स के लिये:

एयरलाइन सुरक्षा और समाधान पर 5G सेवाओं द्वारा उत्पन्न खतरा।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, यूएस फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) ने चेतावनी दी है कि 5G तकनीक संवेदनशील नेविगेशन उपकरण, जैसे- अल्टीमीटर के साथ हस्तक्षेप कर सकती है, जिससे "विनाशकारी व्यवधान" उत्पन्न हो सकता है।

  • अमेरिकी हवाई अड्डों के पास दूरसंचार कंपनियों द्वारा 5G के रोलआउट के कारण भारत आदि दुनिया भर की एयरलाइंस अपनी निर्धारित उड़ानों को अमेरिका में समायोजित कर रही हैं।

5G तकनीक

  • 5G 5वीं पीढ़ी का मोबाइल नेटवर्क है। यह 1G, 2G, 3G और 4G नेटवर्क के बाद एक नया वैश्विक वायरलेस मानक है। 5G नेटवर्क एमएम वेव स्पेक्ट्रम में काम करेगा।
  • यह एक नए प्रकार के नेटवर्क को सक्षम बनाता है जिसे मशीनों, वस्तुओं और उपकरणों सहित लगभग सभी को एक साथ जोड़ने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • 5G के हाई-बैंड स्पेक्ट्रम में इंटरनेट स्पीड को 20 Gbps (गीगाबिट्स प्रति सेकंड) के रूप में परीक्षण किया गया है, जबकि ज्यादातर मामलों में 4G में अधिकतम इंटरनेट डेटा स्पीड 1 Gbps दर्ज की गई है।
  • भारत में सैटकॉम इंडस्ट्री एसोसिएशन-इंडिया (एसआईए) ने 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी में मिलीमीटर वेव (मिमी वेव) बैंड को शामिल करने की सरकार की योजना पर चिंता व्यक्त की है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • स्पेक्ट्रम में आवृत्ति जितनी अधिक होगी सेवाएँ उतनी ही तेज़ गति से मिलेंगी। इसलिये 5G की पूर्ण क्षमता प्राप्त करने के लिये ऑपरेटर उच्च आवृत्तियों पर कार्य करना चाहते हैं।
    • नीलाम किये गए कुछ C बैंड (3.7 और 4.2 गीगाहर्ट्ज़ के बीच एक रेडियो फ़्रीक्वेंसी बैंड) स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल सैटेलाइट रेडियो के लिये किया गया था लेकिन 5जी में संक्रमण बहुत अधिक व्यस्त होगा।
    • नई C बैंड 5जी सेवा बड़ी संख्या में विमानों को अनुपयोगी बना सकती है, जिससे अमेरिकी उड़ानों में अफरातफरी मच सकती है और हज़ारों अमेरिकी विदेशों में फंस सकते हैं।
  • चिंताएँ:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 2021 की शुरुआत में C बैंड में लगभग 80 बिलियन अमेरिकी  डॉलर में मोबाइल फोन कंपनियों को मिड-रेंज 5G बैंडविड्थ की नीलामी की है।
    • एफएए ने चेतावनी दी कि 4.2-4.4 गीगाहर्ट्ज़ रेंज में कार्य कर रहे अल्टीमीटर, जो यह मापते हैं कि एक हवाई जहाज़ ज़मीन से कितनी ऊँचाई पर यात्रा कर रहा है, की कार्यप्रणाली में बाधा आ सकती है, जो C रेंज की आवृत्ति के समान है।
      • ऊँचाई के अलावा अल्टीमीटर रीडआउट का उपयोग स्वचालित लैंडिंग की सुविधा के लिये और विंड शीयर नामक खतरनाक धाराओं का पता लगाने में मदद के लिये भी किया जाता है।
    • कंपनियों ने तर्क दिया है कि C बैंड 5G को विमानन हस्तक्षेप के मुद्दों के बिना लगभग 40 अन्य देशों में तैनात किया गया है। वे हस्तक्षेप के जोखिम को कम करने हेतु छह महीने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 50 हवाई अड्डों को बफर ज़ोन के लिये सहमत हुए हैं, जो फ्राँँस में उपयोग किये जाते हैं।
  • उपाय
    • अल्पावधि में कंपनियाँ उड़ानों में एक व्यवधान को रोकने के लिये प्रमुख हवाई अड्डों के पास कुछ वायरलेस टावरों को अस्थायी रूप से बंद करने पर सहमत हुईं हैं।
    • दीर्घावधि में यूएस फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन के लिये अमेरिकी वाणिज्यिक हवाई जहाज़ बेड़े के बड़ी संख्या को कम करने और कई हवाई अड्डों पर कम दृश्यता लैंडिंग करने की अनुमति देना अनिवार्य है, जहाँ 5G सी-बैंड तैनात किया जाएगा। इसका अर्थ एल्टीमीटर (Altimeters) को 5G बेस स्टेशनों के पास संचालित करने के लिये प्रमाणित करने से है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस