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जैव विविधता और पर्यावरण

एयरोसोल लक्षण तथा विकिरण प्रभाव

  • 09 Jun 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

एयरोसोल, ब्लैक कार्बन

मेन्स के लिये:

भारतीय मौसम प्रणाली को समझने में अध्ययन का महत्त्व  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science and Technology- DST) के अधीन एक स्‍वायत्‍त अनुसंधान संस्‍थान ‘आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्ज़र्वेशनल साइंसेज’ (Aryabhatta Research Institute of Observational Sciences- ARIES), नैनीताल के शोधकर्त्ताओं द्वारा देखा गया है कि ट्रांस हिमालय (Trans-Himalayas) पर स्वच्छ वातावरण होने के बावजूद वैश्विक औसत की तुलना में एयरोसोल विकिरण दबाव अधिक है जिसमें कुछ मात्रा में विकिरण का प्रभाव भी शामिल है।

Biomass-burning

प्रमुख बिंदु:

  • ‘साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट’(Science of the Total Environment) पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र से पता चला है कि एयरोसोल के मासिक औसत वायुमंडलीय विकिरण के कारण प्रति दिन गर्मी की मात्रा 0.04-0.13 सेल्सियस की दर से बढ़ रही है।
  • इसके अलावा, लद्दाख क्षेत्र का तापमान पिछले 3 दशकों में प्रति दशक 0.3- 0.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ रहा है।
  • वायुमंडलीय एयरोसोल पृथ्वी पर आने वाली सौर विकिरण की मात्रा तथा इसे अवशोषित करने के अलावा क्लाउड माइक्रोफिज़िक्‍स(Cloud Microphysics) को संशोधित करके क्षेत्रीय/वैश्विक जलवायु प्रणाली के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • विकिरणकारी बल पर विभिन्न एरोसोल के प्रभाव को निर्धारित करने में उल्‍लेखनीय प्रगति होने के बावजूद एरोसोल अभी भी जलवायु परिवर्तन के आकलन की प्रमुख अनिश्चितताओं में से एक है।
  • इन अनिश्चितताओं को कम करने के लिये एयरोसोल गुणों के सटीक मापन की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से समुद्रों और हिमालय में अत्‍यधिक ऊँचाई तथा दूरदराज़ वाले उन स्थानों पर जहाँ पर इनकी स्थिति दुर्लभ हैं।

अध्ययन का आधार:

  • वैज्ञानिकों द्वारा अपने अध्ययन में जनवरी, 2008 से दिसंबर, 2018 तक एयरोसोल के ऑप्टिकल, भौतिक और विकिरण संबंधी गुणों की परिवर्तनशीलता का विश्‍लेषण किया गया।
  • इसके अलावा एयरोसोल रेडिएटिव फोर्सिंग (Aerosol Radiative Forcing- ARF) में बारीक और मोटे कणों की भूमिका का भी आकलन किया।
  • इस अध्ययन में पता चलता है कि एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्‍थ (Aerosol Optical Depth- AOD) द्वारा मई में एक उच्च (0.07) तथा सर्दियों के महीनों में निम्‍न (0.03) मान के साथ एक अलग प्रकार के मौसमी बदलाव का प्रदर्शन किया गया है। 
  • बसंत के मौसम में एंगस्‍ट्रम घातांक (Ångström Exponent- AE) का मान कम रहा, जो मोटे धूल कण (एयरोसोल) की उपस्थिति का सूचक है।
  • FMF  और SSA पर आधारित एयरोसोल के वर्गीकरण से विशेष रूप से बसंत के मौसम में (53 प्रतिशत) हानले (Hanle) और मर्क (Merak) (लेह से 200 किलोमीटर दूर स्थित) क्षेत्र में मध्यम आकार के मिश्रित एरोसोल के मौज़ूदगी का पता चला। शुद्ध और प्रदूषित धूल (Pure and Polluted Dust) में 16 प्रतिशत और 23 प्रतिशत के अंतर के साथ एयरोसोल को अवशोषित करने तथा 13 प्रतिशत से कम आवृत्ति के साथ ट्रांस-हिमालय में एंथ्रोपोजेनिक एयरोसोल (Anthropogenic Aerosols ) और ब्लैक कार्बन (Black Carbon) के क्षीण प्रभाव को प्रदर्शित किया गया है। 
  • इसके अलावा, हानले और मर्क क्षेत्र में वायुमंडल के शीर्ष पर एयरोसोल रेडियोएक्टिव फोर्सिंग का मान (-1.3 Wm-2) कम था।

ट्रांस हिमालय:

  • ट्रांस हिमालय के हिमालय के उत्तर में स्थित तीन पर्वत श्रेणियों को शामिल किया जाता है जिनमें शामिल हैं- काराकोरम पर्वत श्रेणी, लद्दाख पर्वत श्रेणी तथा जास्कर पर्वत श्रेणी।
  • ट्रांस हिमालय को पार हिमालय भी कहते हैं |
  • काराकोरम पर्वत श्रेणी ट्रांस हिमालय के सबसे उत्तर में स्थित है 

एयरोसोल रेडियोएक्टिव फोर्सिंग:

  • वायुमंडल के शीर्ष और सतह पर होने वाले विकिरण प्रवाह और वायुमंडल के भीतर विकिरण के अवशोषण पर पोजेनिक एयरोसोल का प्रभाव है।
  • इसके माध्यम से बादलों एवं वर्षा पर एरोसोल के द्वारा पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। 

एंथ्रोपोज़ेनिक एरोसोल:

  • यह मानवजनित एयरोसोल के उदाहरण है। 
  • इनका निर्माण धुंध कण, प्रदूषक और धुएँ से होता है। 

अध्ययन का महत्त्व:

  • इस अध्ययन के द्वारा एयरोसोल ऑप्टिकल और माइक्रोफिज़िकल गुणों को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिल सकती है। 
  • हिमालय के दूर-दराज़  के क्षेत्रों और इंडो-गैंगेटिक मैदानी इलाकों से प्रकाश द्वारा अवशोषित कार्बोनेसियस एयरोसोल (Carbonaceous Aerosols) तथा  धूल का परिवहन एक प्रमुख जलवायु समस्‍या है जो वायुमंडलीय गर्मी और हिमनद के प्रवाह पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।
  • हिमालय पर यह गर्मी 'एलिवे‍टेड-हैट पंप' (Elevated-Hat Pump) की स्थिति बनाती है अर्थात ऐसी स्थिति जो भूमि तथा महासागर के बीच तापमान ढाल को मज़बूत देती है तथा वायुमंडलीय परिसंचरण और मानसूनी वर्षा में बदलाव के लिये भी ज़िम्मेदार है।
  • अतः इस अध्ययन के द्वारा एयरोसोल ऑप्टिकल और माइक्रोफिज़िकल गुणों की बेहतर समझ विकसित की जा सकती है जिसके द्वारा एयरोसोल जलवायु प्रभाव को ध्यान में रखते हुए वायुमंडलीय गर्मी और ट्रांस हिमालय क्षेत्र में हिम/ हिमनद की सफेदी में आये बदलाव के द्वारा एयरोसोल प्रभाव के मॉडलिंग में सुधार किया जा सकता है।

स्रोत: पीआईबी

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