जैव विविधता और पर्यावरण
ब्लैक कार्बन
- 03 Mar 2020
- 7 min read
प्रीलिम्स के लिये:ब्लैक कार्बन, समतुल्य ब्लैक कार्बन (EBC) मेन्स के लिये:कृषि अपशिष्ट दहन एवं वनाग्नि संबंधी मुद्दे, ब्लैक कार्बन और जलवायु परिवर्तन |
चर्चा में क्यों?
वैज्ञानिक पत्रिका ‘ऐटमोस्पियरिक एनवायरनमेंट’ (Atmospheric Environment) में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, कृषि अपशिष्ट दहन और वनाग्नि से उत्पन्न ‘ब्लैक कार्बन’ (Black carbon) के कारण ‘गंगोत्री हिमनद’ के पिघलने की दर में वृद्धि हो सकती है।
मुख्य बिंदु:
- यह अध्ययन वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (Wadia Institute of Himalayan Geology- WIHG) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया था। WIHG संस्थान विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology- DST) के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।
- यह अध्ययन वर्ष 2016 में गंगोत्री हिमनद के पास चिरबासा स्टेशन पर किया गया था।
हिमनद:
- पर्वतीय ढालों से घाटियों में रैखिक प्रवाह में बहते हिम संहति को हिमनद कहते हैं। भारत में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश में ऐसे हिमनद पाए जाते हैं।
गंगोत्री हिमनद:
- भागीरथी नदी का उद्गम गंगोत्री हिमनद से है, जबकि अलकनंदा का उद्गम अलकनंदा हिमनद से है, देवप्रयाग के निकट दोनों के मिलने के बाद इन्हें गंगा के रूप में जाना जाता है।
शोध के मुख्य निष्कर्ष:
- ग्रीष्मकाल में गंगोत्री हिमनद क्षेत्र में ब्लैक कार्बन की सांद्रता में 400 गुना तक वृद्धि हो जाती है। ‘समतुल्य ब्लैक कार्बन’ (Equivalent Black Carbon- EBC) की मासिक औसत सांद्रता अगस्त माह में न्यूनतम और मई माह में अधिकतम पाई गई।
- EBC की मौसमी माध्य सांद्रता में मैसमी बदलाव आता है, जिससे यहाँ प्राचीन हिमनद स्रोत (Pristine Glacial Source) की उपस्थिति तथा क्षेत्र में EBC स्रोतों की अनुपस्थिति का पता चलता है।
- शोध के अनुसार, ब्लैक कार्बन की मौसमी चक्रीय परिवर्तनीयता के उत्तरदायी कारकों में कृषि अपशिष्ट दहन (देश के पश्चिमी भाग में) तथा ग्रीष्मकालीन वनाग्नि (हिमालय के कगारों पर) प्रमुख थे।
ब्लैक कार्बन (Black Carbon):
- ब्लैक कार्बन जीवाश्म एवं अन्य जैव ईंधनों के अपूर्ण दहन, ऑटोमोबाइल तथा कोयला आधारित ऊर्जा सयंत्रों से निकलने वाला एक पार्टिकुलेट मैटर है।
- यह एक अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है जो उत्सर्जन के बाद कुछ दिनों से लेकर कई सप्ताह तक वायुमंडल में बना रहता है।
समतुल्य ब्लैक कार्बन (EBC):
- ब्लैक कार्बन अपने उत्पति स्रोत के आधार पर अलग-अलग प्रकार के होते हैं तथा वे प्रकाश के विशिष्ट तरंगदैर्ध्य का अवशोषण या परावर्तन करते हैं। इसका मापन ऐथेलोमीटर (Aethalometers) उपकरण द्वारा किया जाता है।
- ब्लैक कार्बन के इन मौलिक कणों को द्रव्यमान (Mass) इकाई में बदलने के लिये, इन उपकरणों का उपयोग किया जाता है तथा परिणाम को समतुल्य ब्लैक कार्बन (EBC) नाम दिया जाता है। यथा- यातायात के ब्लैक कार्बन द्रव्यमान को EBC-TR लिखा जाएगा।
ब्लैक कार्बन के स्रोत:
ब्लैक कार्बन के प्रभाव:
- वायुमंडल में इसके अल्प स्थायित्व के बावजूद यह जलवायु, हिमनदों, कृषि, मानव स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव डालता है।
- वैज्ञानिकों के एक समूह द्वारा समतापमंडल (stratosphere) में 18 किमी. की ऊँचाई तक इन कणों के उपस्थित होने के साक्ष्य मौजूद हैं। इसका प्रभाव यह होता है कि ये ब्लैक कार्बन कण लंबे समय तक वातावरण में उपस्थित रहते हैं तथा ‘ओज़ोन परत को नुकसान’ पहुँचाने वाली अन्य रासायनिक प्रतिक्रियाओं के लिये एक बेहतर स्थिति प्रदान करते हैं।
- ब्लैक कार्बन जैसे वायु प्रदूषक में गर्भवती माँ के फेफड़ों के माध्यम से प्लेसेंटा में स्थापित होने की क्षमता होती है जिसके ‘शिशु पर गंभीर स्वास्थ्य परिणाम’ प्रदर्शित होते हैं।
हिमनद व परमाफ्रास्ट (Permafrost) पर प्रभाव:
- वर्ष 2005 में प्रकाशित लारेंस रिपोर्ट के अनुसार, आर्कटिक क्षेत्र में समस्त मृदा का लगभग 30% ब्लैक कार्बन भंडार है। वैश्विक तापन के कारण हिमनद तथा परमाफ्रास्ट लगातार पिघल रहा है तथा इसमें दबा हुआ ब्लैक कार्बन और मीथेन बाहर आ रही है जिससे जलवायु तापन में और तेज़ी आएगी।
- ब्लैक कार्बन के कारण ‘हिमालयी ग्लेशियरों’ पिघलने की गति भी बढ़ गई है।
आगे की राह:
- वनाग्नि को जलवायु परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण आयाम मानते हुए इससे निपटने के लिये हमें वैश्विक स्तर पर नीति निर्माण की आवश्यकता है, जो ‘वनाग्नि और उससे संबंधित पहलुओं’ को संबोधित करती हो।
- कृषि अपशिष्टों यथा- ‘पराली’ आदि का व्यावसायीकरण किया जाना चाहिये ताकि इनके दहन में कमी आ सके।