भारत के शहरी बुनियादी ढाँचे हेतु वित्तपोषण
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, शहरी स्थानीय निकाय, स्मार्ट सिटीज़ मिशन (SCM), प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) मेन्स के लिये:शहरीकरण और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक द्वारा "फाइनेंसिंग इंडियाज़ अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर नीड्स: कंस्ट्रेंट्स टू कमर्शियल फाइनेंसिंग एंड प्रॉस्पेक्ट्स फॉर पॉलिसी एक्शन" शीर्षक से रिपोर्ट जारी की गई।
- यह रिपोर्ट उभरती हुई वित्तीय कमियों को पूरा करने के लिये निजी और वाणिज्यिक निवेशों का अधिक लाभ उठाने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।
प्रमुख बिंदु
- निवेश की आवश्यकता:
- अगर भारत को अपनी तेज़ी से बढ़ती शहरी आबादी की ज़रूरतों को प्रभावी ढंग से पूरा करना है तो उसे अगले 15 वर्षों में शहरी बुनियादी ढाँचे में 840 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता होगी।
- शहरों में रहने वाले लोग:
- वर्ष 2036 तक 600 मिलियन लोग भारत के शहरों में रह रहे होंगे, जो जनसंख्या का 40% प्रतिनिधित्व करते हैं।
- इससे स्वच्छ पेयजल, विश्वसनीय विद्युत् आपूर्ति, कुशल और सुरक्षित सड़क परिवहन आदि की अधिक मांग के साथ भारतीय शहरों की शहरी अवसंरचना और सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव पड़ने की संभावना है।
- वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकारें शहर के बुनियादी ढाँचे में 75% से अधिक का वित्तपोषण करती हैं, जबकि शहरी स्थानीय निकाय (ULB) अपने स्वयं के अधिशेष राजस्व के माध्यम से 15% का वित्तपोषण करते हैं।
- वर्तमान में भारतीय शहरों की बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों का केवल 5% ही निजी स्रोतों के माध्यम से वित्तपोषित किया जा रहा है।
- वर्ष 2036 तक 600 मिलियन लोग भारत के शहरों में रह रहे होंगे, जो जनसंख्या का 40% प्रतिनिधित्व करते हैं।
- केंद्र के प्रमुख शहरी मिशनों का धीमा कार्यान्वयन:
- उदाहरण के लिये स्मार्ट सिटी मिशन (SCM) और प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) जैसे केंद्र के कई प्रमुख शहरी मिशनों पर राज्यों एवं शहरी स्थानीय निकायों (ULB) द्वारा धीमा कार्यान्वयन प्रदर्शन भी चिंता का विषय है, क्योंकि इससे शहरी स्तर पर कार्यान्वयन क्षमता बाधित होती है।
- ULB ने अब तक पूरे भारत में पिछले छह वित्तीय वर्षों में SCM (कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT) के तहत अनुमोदित परियोजनाओं के संचयी लागत या परिव्यय का लगभग पाँचावाँ हिस्सा ही निष्पादित किया है।
- उदाहरण के लिये स्मार्ट सिटी मिशन (SCM) और प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) जैसे केंद्र के कई प्रमुख शहरी मिशनों पर राज्यों एवं शहरी स्थानीय निकायों (ULB) द्वारा धीमा कार्यान्वयन प्रदर्शन भी चिंता का विषय है, क्योंकि इससे शहरी स्तर पर कार्यान्वयन क्षमता बाधित होती है।
- शहरी अवसंरचना हेतु PPP अंतरण:
- भारत में शहरी बुनियादी ढाँचे के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) अंतरण ने पिछले दशक में मौद्रिक मूल्य और अंतरण की मात्रा दोनों में एक उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की है - वर्ष 2000 से शहरी क्षेत्र में 124 PPP परियोजनाओं को कुल 5.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वित्तपोषण किया गया है।
- हालाँकि PPP परियोजना वित्तपोषण में वर्ष 2007 और 2012 के बीच "संक्षिप्त लेकिन पर्याप्त वृद्धि" के बाद काफी गिरावट आई है, जब इनमें से अधिकांश परियोजनाओं को सम्मानित किया गया था। वर्ष 2000 के बाद से प्रदान किये गए सभी PPP निवेशों में से केवल एक-तिहाई निवेश पिछले दशक में हुआ जिसमें 17 बिलियन अमेरिकी डॉलर की 55 परियोजनाएँ शामिल हैं।
सुझाव:
- यह सुझाव दिया गया है कि शहरी एजेंसियों को बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को पूरा करने के लिये और अधिक अधिकार प्रदान किये जाए।
- पिछले तीन वित्तीय वर्षों में दस सबसे बड़े ULB के पूंजीगत बजट का केवल दो-तिहाई खर्च किया जा सका।
- यह रिपोर्ट मध्यम अवधि के लिये कई संरचनात्मक परिवर्तनों की सिफारिश करती है, जिसमें राजकोषीय हस्तांतरण प्रणाली और कराधान नीति शामिल हैं।
- यह शहरों को अधिक निजी वित्तपोषण का लाभ उठाने में मदद कर सकती है।
- इसने शहरों के लिये फॉर्मूला-आधारित तथा बिना शर्त वित्त अंतरण के साथ-साथ शहरी एजेंसी के अधिदेश के प्रगतिशील विस्तार का सुझाव दिया।
शहरीकरण:
- परिचय:
- जनसंख्या का ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में स्थानांतरण, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की संख्या में तदनुरूप गिरावट और जिस प्रकार से समाज इस परिवर्तन के अनुरूप स्वयं को ढालता हैं, समग्र रूप से इसे शहरीकरण कहा जाता है।
- शहरीकरण के कारण:
- प्राकृतिक रूप से जनसंख्या वृद्धि: यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब मृत्यु दर की तुलना में जन्म दर अधिक होती है।
- ग्रामीण से शहरी प्रवास: यह ऐसे कारकों जो लोगों को शहरी क्षेत्रों में आकर्षित करते हैं और ऐसे कारणों जो लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों से दूर भगाते हैं, से प्रेरित है।
- रोज़गार के अवसर, शैक्षणिक संस्थान और शहरी जीवन-शैली मुख्य आकर्षण के कारक हैं।
- साथ ही रहने की खराब स्थिति, शैक्षिक और आर्थिक अवसरों की कमी तथा खराब स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ मुख्य कारक हैं
- वैश्विक शहरीकरण:
- सबसे अधिक शहरीकृत क्षेत्रों में उत्तरी अमेरिका (2022 तक शहरी क्षेत्रों में 83% आबादी ), लैटिन अमेरिका और कैरिबियन (81%), यूरोप (75%) तथा ओशिनिया (67%) शामिल हैं।
- एशिया में शहरीकरण का स्तर लगभग 52% है।
- अफ्रीका का परिवेश अधिकांशतः ग्रामीण है, इसकी 44% आबादी शहरी क्षेत्रों में रहती है।
- संबंधित पहल:
- शहरीकरण के लिये भारत की पहल:
- शहरी विकास से संबंधित योजनाएँ/कार्यक्रम:
- स्लम वासियों/शहरी गरीबों के लिये सरकार की पहल:
- शहरीकरण के लिये भारत की पहल:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में शहरीकरण की तीव्र प्रक्रिया से उत्पन्न विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर चर्चा कीजिये। (2013) प्रश्न. भारत में शहरी जीवन की गुणवत्ता की संक्षिप्त पृष्ठभूमि के साथ 'स्मार्ट सिटी कार्यक्रम' के उद्देश्यों और रणनीति को पेश कीजिये। (2016)) |
स्रोत: द हिंदू
भारत की शुद्ध शून्य उत्सर्जन रणनीति
प्रिलिम्स के लिये:पेरिस समझौता, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (COP 27), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC), शुद्ध शून्य, इथेनॉल सम्मिश्रण, हाइड्रोजन ईंधन, प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, जैव ईंधन मेन्स के लिये:पेरिस जलवायु समझौता और इसके प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
शर्म अल-शेख, मिस्र में पार्टियों के वर्तमान 27वें सम्मेलन (COP27) में भारत ने हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के लिये अपनी दीर्घकालिक कम उत्सर्जन विकास रणनीति प्रस्तुत की।
दीर्घकालिक कम उत्सर्जन विकास रणनीति:
- यह (LT-LEDS) रणनीति प्रकृति में गुणात्मक है और 2015 के पेरिस समझौते द्वारा इसे अनिवार्य कर दिया गया है।
- पेरिस समझौते के अनुसार, राष्ट्रों को यह स्पष्ट करना चाहिये कि अपने केवल अल्पकालिक राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के लक्ष्य को प्राप्त करने के अलावा वे अपनी अर्थव्यवस्थाओं को किस प्रकार बदलेंगे ताकि वे वर्ष 2030 तक उत्सर्जन में 45% की कटौती के बड़े जलवायु उद्देश्य की दिशा में काम कर सकें और वर्ष 2050 के आसपास शुद्ध शून्य तक पहुँच सकें।
- यह रणनीति चार प्रमुख विचारों पर आधारित है जो भारत की दीर्घकालिक निम्न-कार्बन विकास रणनीति का आधार हैं।
- भारत का ग्लोबल वार्मिंग में बहुत कम योगदान है, विश्व की आबादी का 17% हिस्सा होने के बावज़ूद संचयी वैश्विक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में ऐतिहासिक रूप से भी इसका योगदान बहुत कम रहा है।
- भारत को विकास के लिये काफी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता है।
- भारत अपने विकास हेतु निम्न-कार्बन रणनीतियों को आगे बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध है और राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुसार सक्रिय रूप से उनका अनुसरण कर रहा है।
- भारत को जलवायु अनुकूल प्रणाली को अपनाने की आवश्यकता है।
- LT-LEDS भी LiFE, पर्यावरण के लिये जीवन शैली दृष्टिकोण से प्रभावित है।
- LiFE का विचार पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन-शैली को बढ़ावा देता है जो 'विवेकहीन और व्यर्थ खपत' के बजाय 'सावधानी के साथ एवं सुविचारित उपयोग' पर केंद्रित है।
एलटी-एलईडी ( LT-LEDS) की विशेषताएँ:
- यह रणनीति ऊर्जा सुरक्षा के संबंध में राष्ट्रीय संसाधनों के तर्कसंगत उपयोग पर ध्यान केंद्रित करेगी।
- इसमें जीवाश्म ईंधनों का संक्रमण एक न्यायसंगत, सुचारू, टिकाऊ और सर्व-समावेशी तरीके से किया जाएगा।
- यह रणनीति जैव ईंधन के बढ़ते उपयोग को बढ़ावा देगी, विशेष रूप से पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण, इलेक्ट्रिक वाहन प्रवेश बढ़ाने के लिये अभियान और हरित हाइड्रोजन ईंधन के बढ़ते उपयोग से परिवहन क्षेत्र में कम कार्बन उत्सर्जन होने की उम्मीद है।
- भारत इलेक्ट्रिक वाहनों के अधिकतम उपयोग, इथेनॉल सम्मिश्रण को वर्ष 2025 तक 20% तक पहुँचाने और यात्री व माल ढुलाई के लिये सार्वजनिक परिवहन मॉडल में एक मज़बूत बदलाव की इच्छा रखता है।
- निम्न-आधार, टिकाऊ भविष्य और जलवायु-अनुकूल शहरी विकास स्मार्ट सिटी पहल को ऊर्जा और संसाधन दक्षता बढ़ाने के लिये शहरों की एकीकृत योजना, प्रभावी ग्रीन बिल्डिंग कोड तथा अभिनव ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन में तेज़ी से विकास से प्रेरित होगी।
- औद्योगिक क्षेत्र का विकास 'आत्मनिर्भर भारत' और 'मेक इन इंडिया' के परिप्रेक्ष्य में जारी रहेगा।
- भारत प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT) योजना, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, विद्युतीकरण बढ़ाने, सामग्री दक्षता बढ़ाने और रीसाइक्लिंग एवं उत्सर्जन को कम करने के तरीकों से ऊर्जा दक्षता में सुधार पर भी ध्यान केंद्रित करेगा।
शुद्ध शून्य लक्ष्य:
- इसे कार्बन तटस्थता के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ यह नहीं है कि कोई देश अपने उत्सर्जन को शून्य पर लाएगा।
- बल्कि यह एक ऐसा देश है जिसमें किसी देश के उत्सर्जन की भरपाई वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों के अवशोषण और हटाने से होती है।
- इसके अलावा वनों जैसे अधिक कार्बन सिंक बनाकर उत्सर्जन के अवशोषण को बढ़ाया जा सकता है।
- जबकि वातावरण से गैसों को हटाने के लिये कार्बन कैप्चर और स्टोरेज जैसी भविष्य की तकनीकों की आवश्यकता होती है।
- इसके अलावा वनों जैसे अधिक कार्बन सिंक बनाकर उत्सर्जन के अवशोषण को बढ़ाया जा सकता है।
- 70 से अधिक देशों ने सदी के मध्य यानी वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य बनने का दावा किया है।
- भारत ने COP-26 शिखर सम्मेलन में वर्ष 2070 तक अपने उत्सर्जन को शुद्ध शून्य करने का वादा किया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: 'इच्छित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान' शब्द को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में देखा जाता है? (2016) (a) युद्ध प्रभावित मध्य-पूर्व से शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा की गई प्रतिज्ञा उत्तर: (b) व्याख्या:
प्रश्न: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) की पार्टियों के सम्मेलन (CoP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा व्यक्त की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? (मुख्य परीक्षा, 2021) |
स्रोत: द हिंदू
ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्म प्रदाताओं हेतु नियामक ढाँचा
प्रिलिम्स के लिये:सेबी, ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्म प्रदाता, बॉण्ड ऋण। मेन्स के लिये:ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्म प्रदाताओं के लिये एक नियामक ढाँचे की आवश्यकता। |
चर्चा में क्यों?
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्म प्रदाताओं के लिये एक नियामक ढाँचा पेश किया है ताकि उनके संचालन को सुव्यवस्थित किया जा सके।
- ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्म प्रदाता (OBPPs) भारत में निगमित कंपनियाँ होंगी और उन्हें स्टॉक एक्सचेंज के डेब्ट सेगमेंट में स्टॉक ब्रोकर के रूप में खुद को पंजीकृत करना होगा।
विनियामक ढाँचे की आवश्यकता:
- नए नियम:
- स्टॉक एक्सचेंज के डेब्ट सेगमेंट में स्टॉक ब्रोकर के रूप में पंजीकरण करने के बाद एक इकाई को OBPP के रूप में कार्य करने के लिये एक्सचेंज में आवेदन करना होगा।
- नए नियमों में ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्म प्रदाता के रूप में कार्य करने के लिये सेबी से स्टॉक ब्रोकर के रूप में पंजीकरण प्रमाणपत्र प्राप्त करना अनिवार्य है।
- जो 9 नवंबर 2022 से पहले पंजीकरण प्रमाणपत्र के बिना ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्म प्रदाता के रूप में कार्य कर रहे हैं, वे तीन महीने की अवधि के लिये ऐसा करना जारी रखेंगे।
- लोगों को समय-समय पर सेबी द्वारा निर्दिष्ट पंजीकरण की शर्तों का पालन करना होगा।
- सभी संस्थाओं को न्यूनतम प्रकटीकरण आवश्यकताओं का अनुपालन सुनिश्चित करना होगा। उन्हें अपने हितों संबंधी टकराव के सभी मामलों का भी खुलासा करना होगा, जो संबंधित पक्षों के साथ उनके लेनदेन या लेनदेन से उत्पन्न होते हैं।
बॉण्ड बाज़ार
- बॉण्ड:
- बॉण्ड कंपनियों द्वारा जारी कॉर्पोरेट ऋण की इकाइयाँ हैं और व्यापार योग्य संपत्ति के रूप में प्रतिभूतिकृत हैं।
- एक बॉण्ड को एक निश्चित आय साधन के रूप में संदर्भित किया जाता है क्योंकि बॉण्ड पारंपरिक रूप से देनदारों को एक निश्चित ब्याज दर (कूपन) का भुगतान करते हैं।
- परिवर्तनीय या अस्थायी ब्याज दरें भी अब काफी आम हैं।
- बॉण्ड की कीमतें ब्याज दरों के साथ विपरीत रूप से सहसंबद्ध होती हैं: जब दरें बढ़ती हैं, तो बॉण्ड की कीमतें गिरती हैं और जब दरें गिरती हैं, तो बॉण्ड की कीमतें बढ़ती है।
- बॉण्ड के प्रकार:
- परिवर्तनीय बॉण्ड:
- नियमित बॉण्ड के विपरीत जो बॉण्ड परिपक्वता पर विमोचित होते हैं उनमें एक परिवर्तनीय खरीदार को जारीकर्त्ता कंपनी के बॉण्ड को शेयरों में बदलने का अधिकार या दायित्व देता है।
- इसकी एक निश्चित अवधि होती है और पूर्व निर्धारित अंतराल पर समय-समय पर ब्याज का भुगतान किया जाता है।
- निश्चित कूपन दर बॉण्ड:
- इस प्रकार के बॉण्ड में ब्याज जारी करने की तारीख से तय किया जाता है। अधिकांश कॉर्पोरेट और सरकारी बॉण्ड निश्चित कूपन दर के होते हैं जो ब्याज या कूपन विमोचन की तिथि तक वार्षिक, अर्द्ध-वार्षिक, त्रैमासिक या मासिक रूप से प्रदान किये जाते हैं।
- फ्लोटिंग कूपन रेट बॉण्ड (FRB):
- इन बॉण्डों में परिपक्वता की तारीख तक कूपन दर में पूर्वनिर्धारित समय पर उतार-चढ़ाव होता रहता है। यहाँ ब्याज दर बेंचमार्क पर निर्भर करती है जिसका पालन वह प्रत्येक कूपन भुगतान में कूपन दर निर्धारित करने के लिये करता है। FRB बॉण्ड के मामले में कूपन दर टी-बिल यील्ड पर निर्भर करती है।
- शून्य कूपन बॉण्ड:
- ये वे बॉण्ड होते हैं जहाँ जारीकर्त्ता परिपक्वता तिथि तक धारक को कोई कूपन भुगतान प्रदान नहीं करता है। यहाँ बॉण्ड अंकित मूल्य राशि से कम और परिपक्वता की तारीख पर जारी किये जाते हैं। बॉण्ड को अंकित मूल्य की राशि पर भुनाया जाता है। यहाँ रिडेम्पशन प्राइस (रिडेम्पशन प्राइस वह मूल्य है जिस पर जारी करने वाली कंपनी अपनी परिपक्वता तिथि से पहले निवेशकों से बॉण्ड की पुनर्खरीद करेगी) और इश्यू प्राइस के बीच का अंतर एक निवेशक के लिये रिटर्न है। भारत में ट्रेज़री-बिल शून्य-कूपन बॉण्ड हैं।
- संचयी कूपन दर बॉण्ड:
- ये बॉण्ड कूपन दर के साथ जारी किये जाते हैं लेकिन कूपन का भुगतान रिडेम्पशन/मोचन के समय किया जाता है। आमतौर पर कॉरपोरेट्स इस तरह के बॉण्ड जारी करते हैं।
- मुद्रास्फीति अनुक्रमित बॉण्ड:
- ये बॉण्ड मुद्रास्फीति से सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह मुख्य रूप से सरकार द्वारा जारी किया जाता है। यहाँ कूपन रेट मुद्रास्फीति दर पर निर्भर है। आमतौर पर कूपन दर मुद्रास्फीति दर पर प्रदान की गई अतिरिक्त दर के बराबर होती है।
- सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड (SGB):
- भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, SGBs सरकारी प्रतिभूतियाँ हैं जिन्हें ग्राम सोने में दर्शाया गया है।
- ये भौतिक सोना धारण करने के विकल्प हैं। निवेशकों को निर्गम मूल्य का भुगतान नकद में करना होता है और परिपक्वता पर बॉण्ड को नकद में भुनाया जाएगा।
- परिवर्तनीय बॉण्ड:
- बॉण्ड बाज़ार:
- बॉण्ड बाज़ार मोटे तौर पर ऐसे बाज़ार का वर्णन करता है जहाँ निवेशक ऋण प्रतिभूतियाँ खरीदते हैं जो सरकारी संस्थाओं या निगमों द्वारा बाज़ार में लाई जाती हैं।
- राष्ट्रीय सरकारें आमतौर पर बॉण्ड से प्राप्त आय का उपयोग बुनियादी ढाँचे में सुधार और ऋण चुकाने के लिये करती हैं।
- कंपनियाँ संचालन को बनाए रखने, अपने उत्पाद को बढ़ाने या अपनी शाखाओं का विस्तार करने हेतु आवश्यक पूंजी जुटाने के लिये बॉण्ड जारी करती हैं।
- बॉण्ड या तो प्राथमिक बाज़ार में जारी किये जाते हैं, जो नए ऋण को रोल आउट करते हैं या द्वितीयक बाज़ार में कारोबार करते हैं, जिसमें निवेशक दलालों या अन्य तृतीय पक्ष के माध्यम से मौजूदा ऋण खरीद सकते हैं।
- ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्म:
- SEBI के अनुसार, यह एक मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज या एक इलेक्ट्रॉनिक बुक प्रदान करने वाले प्लेटफॉर्म के अलावा इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है, जिस पर ऋण प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध किया जाता है या सूचीबद्ध करने का प्रस्ताव दिया जाता है और लेन-देन किया जाता है।
- ऑनलाइन बॉण्ड प्लेटफॉर्म प्रदाता का अर्थ है ऐसा कोई भी व्यक्ति जो इस तरह के प्लेटफॉर्म का संचालन करता है या प्रदान करता है।
- SEBI के अनुसार, यह एक मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज या एक इलेक्ट्रॉनिक बुक प्रदान करने वाले प्लेटफॉर्म के अलावा इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है, जिस पर ऋण प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध किया जाता है या सूचीबद्ध करने का प्रस्ताव दिया जाता है और लेन-देन किया जाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न. परिवर्तनीय बॉण्ड के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) |
स्रोत: मिंट
भारत में रूसी बैंको के वोस्ट्रो खाते
प्रिलिम्स के लिये:विदेश व्यापार, मुद्रा मूल्यह्रास और मूल्यवृद्धि, वैश्विक प्रतिबंध, भुगतान संतुलन मेन्स के लिये:भारत की अर्थव्यवस्था पर वैश्विक प्रतिबंधों का प्रभाव, रुपए में व्यापार करने के लाभ और चुनौतियाँ, अर्थव्यवस्था में सरकार का हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भारत और रूस के बीच व्यापार हेतु रुपए में भुगतान करने के लिये दो भारतीय बैंकों (यूको बैंक और इंडसइंड बैंक) में नौ विशेष वोस्ट्रो खाते खोलने की अनुमति दी है।
- रूस के दो सबसे बड़े बैंक- ‘Sberbank’ और ‘VTB’ बैंक ऐसे पहले विदेशी ऋणदाता हैं जिन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रुपए में अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक लेन-देन करने की मंज़ूरी मिली है।
- वोस्ट्रो खाता नोस्ट्रो खाता का एक अन्य नाम है। यह एक बैंक द्वारा नियोजित खाता है जो ग्राहकों को दूसरे बैंक की ओर से पैसा ज़मा करने की सुविधा प्रदान करता है।
पृष्ठभूमि:
- जुलाई 2022 में RBI ने वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने के लिये रुपए में अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन के लिये एक क्रियाविधि का अनावरण किया था, जिसमें भारत द्वारा निर्यात पर ज़ोर दिया गया था, साथ ही रुपए को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में पहचान दिलाने के लिये किया गया था।
- इसके माध्यम से रूस जैसे प्रतिबंध-प्रभावित देशों के साथ व्यापार को सक्षम करने की भी आशा है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा तय क्रियाविधि के अनुसार, भागीदार देशों के बैंक विशेष रुपया वास्ट्रो खाता खोलने के लिये भारत में अधिकृत बैंकों से संपर्क कर सकते हैं। तब अधिकृत बैंक को ऐसी व्यवस्था के विवरण के साथ केंद्रीय बैंक से अनुमोदन लेना होगा।
नोस्ट्रो खाता (Nostro Accounts)
- नोस्ट्रो खाता का तात्पर्य एक बैंक द्वारा दूसरे बैंक में खोले गए खाता से है। इससे ग्राहकों को किसी दूसरे बैंक के खाते में पैसा जमा करने की सुविधा मिलती है। इसका उपयोग अक्सर तब किया जाता है जब किसी बैंक की विदेश में कोई शाखा नहीं होती है। नोस्ट्रो एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ " हमारा (ours) " होता है।
- मान लीजिये कि बैंक "A" की रूस में कोई शाखा नहीं है लेकिन बैंक "B" की शाखा रूस में है। रूस में अपनी जमा राशि प्राप्त करने के लिये बैंक "A" बैंक "B" में नोस्ट्रो खाता खोलेगा।
- अब यदि रूस में कोई ग्राहक "A" को पैसा भेजना चाहता है तो वह इसे "B" बैंक में खुले “A” के खाते में जमा कर सकता है। "B" बैंक इस पैसे को "A" के खाते में स्थानांतरित कर देगा।
- जमा खाते और नोस्ट्रो खाते के बीच मुख्य अंतर यह है कि जमा खाते व्यक्तिगत जमाकर्त्ताओं के पास होता है, जबकि विदेशी संस्थानों के पास नोस्ट्रो खाता होता है।
वोस्ट्रो खाता (Vostro Accounts):
- इस शब्द का लैटिन भाषा में अर्थ- तुम्हारा (yours) होता है।
- खाता खोलने वाले बैंक के लिये नोस्ट्रो खाता, एक वोस्ट्रो खाता होता है।
- उपर्युक्त उदाहरण में बैंक "B" में खुले खाते को इस बैंक के लिये वोस्ट्रो खाता कहा जाएगा। वोस्ट्रो खाता में खाताधारक के बैंक की ओर से भुगतान स्वीकार किया जाता है।
- यदि कोई व्यक्ति वोस्ट्रो खाते में पैसा जमा करता है तो यह खाताधारक के बैंक में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।
- नोस्ट्रो और वोस्ट्रो खाते, विदेशी मूल्यवर्ग में खोले जाते हैं।
- वोस्ट्रो खाते के माध्यम से घरेलू बैंक, वैश्विक बैंकिंग आवश्यकताओं वाले ग्राहकों को अंतर्राष्ट्रीय बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करते हैं।
- वोस्ट्रो खाता सेवाओं में वायर ट्रांसफर निष्पादित करना, विदेशी विनिमय करना, जमा और निकासी करना व अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में तेज़ी लाना शामिल है।
रुपया भुगतान तंत्र:
- परिचय:
- भारत में अधिकृत डीलर बैंकों को रुपया वोस्ट्रो खाते खोलने की अनुमति दी गई है (एक खाता जो एक अधिकृत बैंक दूसरे बैंक की ओर से रखता है)।
- इस तंत्र के माध्यम से आयात करने वाले भारतीय आयातक भारतीय रुपए में भुगतान करेंगे, इसमें विदेशी विक्रेता से माल या सेवाओं की आपूर्ति के लिये चालान भागीदार देश के अधिकृत बैंक के विशेष वोस्ट्रो खाते में जमा किया जाएगा।
- तंत्र का उपयोग करने वाले भारतीय निर्यातकों को भागीदार देश के अधिकृत बैंक के नामित विशेष वोस्ट्रो खाते में जमा शेष राशि से निर्यात का भुगतान भारतीय रुपए में किया जाएगा।
- भारतीय निर्यातक उपर्युक्त रुपए भुगतान तंत्र के माध्यम से विदेशी आयातकों से भारतीय रुपए में निर्यात के लिये अग्रिम भुगतान प्राप्त कर सकते हैं।
- निर्यात के लिये अग्रिम भुगतान की ऐसी किसी भी प्राप्ति की अनुमति देने से पहले भारतीय बैंकों को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इन खातों में उपलब्ध धनराशि का उपयोग पहले से ही निष्पादित निर्यात आदेशों/पाइपलाइन में निर्यात भुगतान से उत्पन्न भुगतान दायित्वों के लिये किया जाता है।
- विशेष वोस्ट्रो अकाउंट में शेष राशि का उपयोग निम्नलिखित के लिये किया जा सकता है: परियोजनाओं और निवेशों के लिये भुगतान, निर्यात/आयात अग्रिम प्रवाह प्रबंधन, सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश आदि।
- भारत में अधिकृत डीलर बैंकों को रुपया वोस्ट्रो खाते खोलने की अनुमति दी गई है (एक खाता जो एक अधिकृत बैंक दूसरे बैंक की ओर से रखता है)।
- मौजूदा तंत्र:
- यदि कोई कंपनी निर्यात या आयात करती है, तो लेन-देन (नेपाल और भूटान जैसे देशों को छोड़कर) हमेशा एक विदेशी मुद्रा में होता है।
- इसलिये आयात के मामले में भारतीय कंपनी को विदेशी मुद्रा में भुगतान करना पड़ता है (मुख्य रूप से डॉलर में और इसमें पाउंड, यूरो, येन आदि मुद्राएँ भी शामिल हो सकती हैं)।
- निर्यात के मामले में भारतीय कंपनी को विदेशी मुद्रा में भुगतान किया जाता है और कंपनी उस विदेशी मुद्रा को रुपए में परिवर्तित कर देती है क्योंकि उसे ज़्यादातर मामलों में अपनी ज़रूरतों के लिये रुपए की आवश्यकता होती है।
मौजूदा तंत्र के लाभ:
- विकास को बढ़ावा:
- यह वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देगा और भारतीय रुपए के प्रति वैश्विक व्यापारिक समुदाय की बढ़ती रुचि का समर्थन करेगा।
- स्वीकृत देशों के साथ व्यापार:
- जब से रूस पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, भुगतान की समस्या के कारण रूस के साथ व्यापार लगभग ठप है।
- RBI द्वारा शुरू किये गए व्यापार सुविधा तंत्र के परिणामस्वरूप रूस के साथ भुगतान संबंधी मुद्दे को हल करना आसान हो गया है।
- जब से रूस पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, भुगतान की समस्या के कारण रूस के साथ व्यापार लगभग ठप है।
- विदेशी मुद्रा में उतार-चढ़ाव:
- इस कदम से विदेशी मुद्रा में उतार-चढ़ाव का जोखिम भी कम होगा, विशेष रूप से यूरो-रुपया सममूल्यता को देखते हुए।
- रुपए की गिरावट पर नियंत्रण:
- इस तंत्र का उद्देश्य रुपए में लगातार गिरावट के दौरान व्यापार प्रवाह हेतु रुपए में निपटान को बढ़ावा देकर विदेशी मुद्रा की मांग को कम करना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015) (a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना (b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना (c) रुपए को अन्य मुद्राओं और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्रता के रूप में अनुज्ञा प्रदान करना (d) भारत में मुद्राओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना उत्तर: (c) |
स्रोत: मिंट
जलवायु परिवर्तन और वैश्विक स्वास्थ्य
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन, जीवाश्म ईंधन, खाद्य असुरक्षा, हीटवेव, जूनोटिक रोग, संचारी रोग, WHO मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन का वैश्विक स्वास्थ्य पर प्रभाव, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण |
चर्चा में क्यों?
स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लांसेट काउंटडाउन रिपोर्ट: हेल्थ एट द मर्सी ऑफ फॉसिल फ्यूल्स के अनुसार जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता से बीमारी, खाद्य असुरक्षा और गर्मी से संबंधित अन्य बीमारियों के जोखिम में वृद्धि हो रही है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- जलवायु परिवर्तन स्वास्थ्य के सामाजिक और पर्यावरणीय निर्धारकों को प्रभावित करता है- स्वच्छ हवा, सुरक्षित पेयजल, पर्याप्त भोजन और सुरक्षित आश्रय।
- हीटवेव से प्रभावित जनसंख्या:
- तेज़ी से बढ़ते तापमान ने लोगों, विशेष रूप से कमज़ोर वर्ग (65 वर्ष से अधिक उम्र और एक वर्ष से कम उम्र ) को अधिक प्रभावित किया है जिससे वर्ष 1986-2005 की तुलना में वर्ष 2021 में 3.7 बिलियन से अधिक लोग हीटवेव से प्रभावित हुए हैं।
- संक्रामक रोग:
- बदलती जलवायु संक्रामक रोग के प्रसार को प्रभावित कर रही है, जिससे उभरती बीमारियों और सह-महामारी का खतरा बढ़ रहा है।
- उदाहरण के लिये यह रिकॉर्ड करता है कि तटीय जल विब्रियो रोगजनकों के संचरण के लिये अधिक अनुकूल हो रहा है।
- मलेरिया संचरण के लिये उपयुक्त महीनों की संख्या अमेरिका और अफ्रीका के हाइलैंड क्षेत्रों में बढ़ी है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भविष्यवाणी की है कि 2030 और 2050 के बीच, जलवायु परिवर्तन से कुपोषण, मलेरिया, दस्त और गर्मी के कारण प्रतिवर्ष लगभग 2,50,000 अतिरिक्त मौतें होने की आशंका है।
- खाद्य सुरक्षा:
- जलवायु परिवर्तन से खाद्य सुरक्षा का हर आयाम प्रभावित हो रहा है।
- उच्च तापमान सीधे फसल की पैदावार को खतरे में डालता है, कई बार फसलों को विकसित करने के लिये मौसम कम पड़ जाता है।
- चरम मौसम की घटनाएँ आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित करती हैं, जिससे खाद्य की उपलब्धता, पहुँच, स्थिरता और उपयोग में कमी आ जाती है।
- कोविड-19 महामारी के दौरान अल्पपोषण की व्यापकता में वृद्धि हुई और वर्ष 2019 की तुलना वर्षमें 2020 में 161 मिलियन से अधिक लोगों को भूख का सामना करना पड़ा।
- यह स्थिति अब यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के कारण और भी गंभीर हो गई है।
- जीवाश्म ईंधन:
- रूस-यूक्रेन युद्ध ने कई देशों को रूसी तेल और गैस के वैकल्पिक ईंधन की खोज करने या अपनाने के लिये प्रेरित किया है तथा उनमें से कुछ अभी भी पारंपरिक तापीय ऊर्जा को ही अपना रहे हैं।
- कोयले का नए सिरे से उपयोग वायु की गुणवत्ता में परिवर्तन कर सकता है, साथ ही जलवायु परिवर्तन को तेज़ कर सकता है जो मानव अस्तित्व को खतरे में डालता है, भले ही यह एक अस्थायी परिवर्तन हो।
सुझाव:
- स्वास्थ्य केंद्रित प्रतिक्रिया:
- सह-मौजूदा जलवायु, ऊर्जा के लिये एक स्वास्थ्य केंद्रित प्रतिक्रिया और स्वस्थ, निम्न कार्बन युक्त भविष्य देने का अवसर प्रदान करता है।
- वायु गुणवत्ता में सुधार से जीवाश्म ईंधन से उत्पन्न PM2.5 के संपर्क में आने से होने वाली मौतों को रोकने में मदद मिलेगी और कम कार्बन तनाव तथा शहरी क्षेत्रों में वृद्धि के परिणामस्वरूप शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा मिलेगा जिसका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा।
- सह-मौजूदा जलवायु, ऊर्जा के लिये एक स्वास्थ्य केंद्रित प्रतिक्रिया और स्वस्थ, निम्न कार्बन युक्त भविष्य देने का अवसर प्रदान करता है।
- संतुलित और अधिक पादप-आधारित आहारों की ओर संक्रमण:
- संतुलित और अधिक पादप-आधारित आहारों की ओर त्वरित संक्रमण से मांस तथा दूध उत्पादन को कम करने में मदद करेगा साथ ही आहार से संबंधित मौतों को रोकने के अलावा ज़ूनोटिक रोगों के जोखिम को काफी हद तक कम करेगा।
- इस प्रकार के स्वास्थ्य-केंद्रित बदलाव संचारी और गैर-संचारी रोगों के बोझ में कमी लाएंगे, स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के तनाव को कम करेंगे जिससे अधिक मज़बूत स्वास्थ्य प्रणालियों का निर्माण किया जा सकेगा।
- वैश्विक समन्वय:
- सरकारों, समुदायों, नागरिक समाज, व्यवसायों और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के बीच वैश्विक समन्वय, वित्तपोषण, पारदर्शिता तथा सहयोग की आवश्यकता है ताकि उन कमज़ोरियों को दूर किया जा सके जिनसे विश्व में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होगा? भारत के हिमालयी और तटीय राज्य जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होंगे? (वर्ष 2017) |
स्रोत: द हिंदू
धर्मांतरण
प्रिलिम्स के लिये:धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने वाले राज्य, धर्म की स्वतंत्रता पर संवैधानिक प्रावधान, संविधान का अनुच्छेद 21, संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 25। मेन्स के लिये:धर्मांतरण विरोधी कानून और संबंधित मुद्दे, संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के फैसले। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र से जबरन धर्मांतरण के मुद्दे से निपटने के लिये गंभीरतापूर्वक कदम उठाने को कहा है।
याचिका और न्यायालय का फैसला:
- इस याचिका में एक स्पष्टीकरण की मांग की गई थी कि "धमकी देकर, धोखे से उपहार और मौद्रिक लाभों के माध्यम से धर्मांतरण" संविधान के अनुच्छेद 14, 21, 25 का उल्लंघन माना जाना चाहिये।
- दलील में कहा गया है कि वर्ष 1977 में रेव स्टेनिसलॉस बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था: "यह ध्यान रखना होगा कि अनुच्छेद 25 (1) प्रत्येक नागरिक को 'अंतरात्मा की स्वतंत्रता' की गारंटी देता है, न कि केवल एक विशेष धर्म के अनुयायियों को और बदले में यह माना जाता है कि किसी भी अन्य व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राज्यों को इस तरह के धर्मांतरण की जाँच के लिये कड़े कदम उठाने के निर्देश देने को कहा।
- न्यायालय ने कहा है कि जबरन धर्मांतरण बेहद खतरनाक है और इससे देश की सुरक्षा व धर्म एवं अंतरात्मा की स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि यदि कोई व्यक्ति जान-बूझकर किसी अन्य व्यक्ति का धर्मांतरण करता है (जो कि उसके धर्म के सिद्धांतों को प्रसारित करने के सिद्धांत के प्रतिकूल है) तो यह देश के नागरिकों को प्रदत्त अंतरात्मा की स्वतंत्रता के अधिकार को कमज़ोर करेगा।
धर्मांतरण:
- धर्मांतरण का तात्पर्य किसी दूसरे धर्म के बहिष्कार के क्रम में किसी विशेष धार्मिक संप्रदाय के विश्वासों को अपनाना है।
- इस प्रकार "धर्मांतरण" में किसी संप्रदाय को छोड़कर दूसरे के साथ जुड़ना शामिल होता है।
- उदाहरण के लिये ईसाई बैपटिस्ट से मेथोडिस्ट या कैथोलिक में और मुस्लिम शिया से सुन्नी में।
- कुछ मामलों में धर्मांतरण "धार्मिक पहचान के परिवर्तन और विशेष अनुष्ठानों के परिवर्तन का प्रतीक होता है"।
धर्मांतरण विरोधी कानूनों की आवश्यकता:
- धर्मांतरण कराने का अधिकार नहीं:
- संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- धर्मांतरण के तहत व्यक्ति किसी अन्य धर्म वाले को अपने धर्म में शामिल करने का प्रयास करता है।
- अंतःकरण और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार का विस्तार धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार के अर्थ में नहीं किया जा सकता है।
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्मांतरण करने वाले और परिवर्तित होने की मांग करने वाले व्यक्ति के लिये समान रूप से उपलब्ध है।
- संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- कपटपूर्ण विवाह:
- हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जिसमें लोग अपने धर्म को छुपाकर या गलत तरीके से दूसरे धर्म के व्यक्तियों के साथ शादी करते हैं तथा शादी के बाद ऐसे दूसरे व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने के लिये मजबूर करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसे मामलों का न्यायिक संज्ञान लिया है।
- न्यायालय के अनुसार, इस तरह की घटनाएँ न केवल धर्मांतरित व्यक्तियों की धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं बल्कि हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के भी खिलाफ हैं।
भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की स्थिति:
- संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद-25 के तहत भारतीय संविधान धर्म को मानने, प्रचार करने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है तथा सभी धर्म के लोगों को अपने धर्म के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है, हालाँकि यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
- कोई भी व्यक्ति अपने धार्मिक विश्वासों को ज़बरन लागू नहीं करेगा और इस प्रकार व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी धर्म का पालन करने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये।
- मौजूदा कानून: धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित या विनियमित करने वाला कोई केंद्रीय कानून नहीं है।
- हालाँकि वर्ष 1954 के बाद से कई मौकों पर धार्मिक रूपांतरणों को विनियमित करने हेतु संसद में निजी विधेयक पेश किये गए।
- इसके अलावा वर्ष 2015 में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा था कि संसद के पास धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने की विधायी शक्ति नहीं है।
- वर्षों से कई राज्यों ने बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा किये गए धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित करने हेतु 'धार्मिक स्वतंत्रता' संबंधी कानून बनाए हैं।
- विभिन्न राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून:
- पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा किये गए धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करने के लिये 'धार्मिक स्वतंत्रता' कानून लागू किया है।
- उड़ीसा धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1967; गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2003; झारखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2017; उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 2018; कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण अधिनियम, 2021।
- पिछले कुछ वर्षों में कई राज्यों ने बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा किये गए धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करने के लिये 'धार्मिक स्वतंत्रता' कानून लागू किया है।
धर्मांतरण विरोधी कानूनों से संबद्ध मुद्दे:
- अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली:
- गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, प्रलोभन जैसी अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली इसके दुरुपयोग हेतु एक गंभीर अवसर प्रस्तुत करती है।
- यह काफी अधिक अस्पष्ट और व्यापक शब्दावली है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण से परे भी कई विषयों को कवर करती है।
- अल्पसंख्यकों का विरोध:
- एक अन्य मुद्दा यह है कि वर्तमान धर्मांतरण विरोधी कानून धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु धर्मांतरण के निषेध पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
- हालाँकि धर्मांतरण निषेधात्मक कानून द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली व्यापक भाषा का इस्तेमाल अधिकारियों द्वारा अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और भेदभाव करने के लिये किया जा सकता है।
- धर्मनिरपेक्षता विरोधी:
- ये कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और हमारे समाज के आंतरिक मूल्यों व कानूनी व्यवस्था की अंतर्राष्ट्रीय धारणा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
आगे की राह
- ऐसे कानूनों को लागू करने के लिये सरकार को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सीमित न करते हों और न ही इनसे राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुँचती हो; ऐसे कानूनों के मामले में स्वतंत्रता एवं दुर्भावनापूर्ण धर्मांतरण के मध्य संतुलन बनाना बहुत ही आवश्यक है।