डेली न्यूज़ (16 Feb, 2023)



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एयर इंडिया के लिये 470 एयरबस-बोइंग विमान

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति 2016, UDAN, UDAN 2.0, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया।

मेन्स के लिये:

भारत के विमानन क्षेत्र की स्थिति, विमानन क्षेत्र से संबंधित हालिया सरकारी पहल।

चर्चा में क्यों?

एयर इंडिया ने शीर्ष विमान निर्माता एयरबस (फ्राँस) और बोइंग (संयुक्त राज्य अमेरिका) से 470 यात्री विमान खरीदने हेतु लगभग 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के दो बड़े सौदों की घोषणा की है।

भारत के लिये इस विमान सौदे का महत्त्व:  

  • यह सौदा विमानन क्षेत्र में विश्व नेता बनने की भारत की आकांक्षाओं को दर्शाता है, जिसे अगले 15 वर्षों में 2,000 से अधिक विमानों की आवश्यकता होने का अनुमान है।
  • यह 17 वर्षों में एयर इंडिया का पहला विमान ऑर्डर है और पहला A350 विमान वर्ष 2023 के अंत तक एयर इंडिया को दिया जाएगा।  
  • भारत की "मेक इन इंडिया-मेक फॉर द वर्ल्ड" दृष्टिकोण के तहत इस समझौते से भारत को विमानन उद्योग में तीसरे सबसे बड़े अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित होने और एयरोस्पेस निर्माण क्षेत्र में नए अवसर प्राप्त होने की उम्मीद है।

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भारत के विमानन क्षेत्र की स्थिति:

  • परिचय:  
    • भारत का नागर उड्डयन विश्व स्तर पर सबसे तेज़ी से बढ़ते विमानन बाज़ारों में से एक है और वर्ष 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में प्रमुख कारक होगा।
    • वर्ष 2038 तक देश के हवाई जहाज़ के बेड़े को चौगुना कर लगभग 2500 हवाई जहाज़ों की क्षमता वाला बनाने का अनुमान है।
  • विमानन क्षेत्र से संबंधित हालिया सरकारी पहलें:
    • राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति (NCAP) 2016:  
      • वहनीयता और कनेक्टिविटी को बढ़ाकर राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति, 2016 के माध्यम से सरकार आम लोगों के लिये उड़ान सुविधा को सुलभ बनाने की योजना पर काम कर रही है।
        • यह व्यापार में सुगमता, विनियमन, सरलीकृत प्रक्रियाओं और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देता है।
      • क्षेत्रीय संपर्क योजना अथवा उड़ान ('उड़े देश का आम नागरिक') राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति, 2016 का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
    • उड़ान 2.0:
      • इसका उद्देश्य कृषि उपज और हवाई परिवहन के बेहतर एकीकरण एवं अनुकूलन के माध्यम से उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त करने तथा विभिन्न व गतिशील परिस्थितियों में कृषि-मूल्य शृंखला में स्थिरता एवं लचीलापन लाने में योगदान देना है।
    • पीपीपी मोड के माध्यम से परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण: 
  • चुनौतियाँ:  
    • उच्च परिचालन लागत: भारतीय विमानन क्षेत्र के लिये प्रमुख चुनौतियों में से एक उच्च परिचालन लागत है। इसके कई कारक हैं, जैसे- ईंधन की उच्च कीमतें, हवाई अड्डा शुल्क और कर।
    • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ: भारतीय विमानन क्षेत्र को भी सीमित हवाई अड्डा क्षमता, आधुनिक हवाई यातायात नियंत्रण प्रणाली की कमी और अपर्याप्त ग्राउंड हैंडलिंग जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ता है।
    • नियामकीय ढाँचा: भारतीय विमानन क्षेत्र को नियामक ढाँचे से संबंधित चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है।  
      • यह क्षेत्र अत्यधिक विनियमित है और एयरलाइनों को विभिन्न विंडो के माध्यम से कई नियमों एवं विनियमों का पालन करना पड़ता है, जो जटिल तथा समय लेने वाला हो सकता है।

आगे की राह

  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: भारतीय विमानन क्षेत्र दक्षता और यात्री सुविधा को बढ़ाने के लिये आधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग से लाभ उठा सकता है। 
    • इसमें संचालन में सुधार, लागत कम करने और सुरक्षा बढ़ाने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स एवं बिग डेटा एनालिटिक्स का उपयोग शामिल है।
  • दीर्घकालिक प्रथाओं को प्रोत्साहित करना: भारतीय विमानन क्षेत्र को पर्यावरण पर विमानन के प्रभाव को कम करने के लिये वैकल्पिक ईंधन के उपयोग और कार्बन उत्सर्जन को कम करने सहित दीर्घकालिक प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता है। 
  • क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ावा देना: भारत सरकार को देश के दूर-दराज़ के क्षेत्रों से संपर्क बढ़ाने के लिये क्षेत्रीय हवाई अड्डों के विकास को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।
    • इसके लिये एक क्षेत्रीय हवाई परिवहन नेटवर्क विकसित करने और इन क्षेत्रों में संचालन के लिये एयरलाइनों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


मसौदा भू-विरासत स्थल और भू-अवशेष विधेयक, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

GSI, UNESCO, उचित मुआवजे का अधिकार, RFCTLARR अधिनियम।

मेन्स के लिये:

ड्राफ्ट भू-विरासत स्थल और भू-अवशेष विधेयक।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खान मंत्रालय ने मसौदा भू-विरासत स्थल और भू-अवशेष (संरक्षण एवं रखरखाव) विधेयक, 2022 अधिसूचित किया है।

  • इस विधेयक का उद्देश्य भूवैज्ञानिक अध्ययन, शिक्षा, अनुसंधान और जागरूकता बढ़ाने के लिये भू-विरासत स्थलों एवं राष्ट्रीय महत्त्व के भू-अवशेषों की घोषणा, सुरक्षा, संरक्षण तथा रखरखाव करना है।
  • भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने शिवालिक जीवाश्म उद्यान, हिमाचल प्रदेश; स्ट्रोमेटोलाइट फॉसिल उद्यान, झारमार्कोट्रा रॉक फॉस्फेट डिपॉज़िट, उदयपुर ज़िला; आकल जीवाश्म उद्यान, जैसलमेर सहित 32 भू-विरासत स्थलों की घोषणा की है। कई भू-विरासत स्थल जीर्णावस्था में हैं।

विधेयक के प्रमुख बिंदु: 

  • भू-विरासत स्थलों की परिभाषा: 
    • यह मसौदा विधेयक भू-विरासत स्थलों को "भू-अवशेषों और घटनाओं, स्ट्रैटिग्राफिक प्रकार के वर्गों, भूवैज्ञानिक संरचनाओं एवं गुफाओं सहित भू-आकृतियों, राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय हित की प्राकृतिक रॉक-मूर्तियों वाली स्थलों" के रूप में परिभाषित करता है। इसमें इन स्थलों से सटे भूमि का ऐसा हिस्सा शामिल भी है, जो उनके संरक्षण अथवा ऐसे स्थलों तक पहुँचने के लिये आवश्यक हो सकता है।
  • भू-अवशेष: 
    • भू-अवशेष को "तलछट, चट्टानों, खनिजों, उल्कापिंड या जीवाश्मों जैसे भूवैज्ञानिक महत्त्व या रुचि के किसी भी अवशेष या सामग्री" के रूप में परिभाषित किया गया है।  
  • केंद्र सरकार का अधिकार: 
    • यह केंद्र सरकार को भू-विरासत स्थल को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित करने के लिये अधिकृत करेगा। 
    • यह भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवज़ा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 (RFCTLARR Act) के प्रावधानों के अंतर्गत होगा। 
  • भूमि धारक को मुआवज़ा:
    • इस अधिनियम के तहत किसी भी अधिकार के प्रयोग के कारण भूमि के मालिक या धारक को हुए नुकसान या क्षति के लिये मुआवज़े का प्रावधान किया गया है।
    • किसी भी संपत्ति का बाज़ार मूल्य RFCTLARR अधिनियम में निर्धारित सिद्धांतों के अनुसार निर्धारित किया जाएगा।
  • निर्माण पर प्रतिबंध: 
    • विधेयक भू-विरासत स्थल क्षेत्र के भीतर किसी भी इमारत के निर्माण, पुनर्निर्माण, मरम्मत या नवीकरण या किसी अन्य तरीके से ऐसे क्षेत्र के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है, सिवाय भू-विरासत स्थल के संरक्षण एवं रखरखाव के लिये निर्माण या जनता के लिये आवश्यक किसी भी सार्वजनिक कार्य को छोड़कर।
  • दंड: 
    • भू-विरासत स्थल में GSI के महानिदेशक द्वारा जारी किये गए किसी भी निर्देश के खंडन, परिवर्तन, विरूपता या उल्लंघन के लिये दंड का उल्लेख किया गया है।
    • इसमें छह माह तक की कैद या 5 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना या दोनों लगाया जा सकता है। निरंतर उल्लंघन के मामले में प्रत्येक दिन के लिये 50,000 रुपए तक का अतिरिक्त ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है। 

चिंताएँ:

  • विधेयक में उल्लिखित अधिकारों के वितरण को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं।
  • यह बताता है कि GSI के पास तलछट, चट्टानों, खनिजों, उल्कापिंडों और जीवाश्मों के साथ-साथ भूवैज्ञानिक महत्त्व के स्थलों सहित भूवैज्ञानिक महत्त्व की किसी भी सामग्री को प्राप्त करने का अधिकार है।  
  • इन स्थलों की सुरक्षा के उद्देश्य से किया जाने वाला भूमि अधिग्रहण स्थानीय समुदायों के साथ मतभेदों को जन्म दे सकता है। 

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण:

  • इसकी स्थापना वर्ष 1851 में मुख्य रूप से रेलवे के लिये कोयला भंडार की खोज हेतु की गई थी।
  • पिछले कुछ वर्षों में यह न केवल देश में विभिन्न क्षेत्रों में आवश्यक भू-विज्ञान सूचनाओं के भंडार के रूप में विकसित हुआ है, अपितु इसने अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के रूप में भू-वैज्ञानिक संगठन का दर्जा  भी प्राप्त किया है।
  • GSI के मुख्य कार्य राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक सूचना और खनिज संसाधन मूल्यांकन एवं अद्यतन से संबंधित हैं।
  • इसका मुख्यालय कोलकाता में है और इसके छह क्षेत्रीय कार्यालय लखनऊ, जयपुर, नागपुर, हैदराबाद, शिलांग तथा कोलकाता में स्थित हैं। प्रत्येक राज्य की एक राज्य इकाई होती है।
  • वर्तमान में GSI खान मंत्रालय से संबद्ध कार्यालय है।

आगे की राह 

  • भूगर्भीय रूप से महत्त्वपूर्ण स्थलों की सुरक्षा के अलावा एक ऐसे कानून की आवश्यकता है जो विशेष रूप से भू-विरासत मूल्य के स्थलों की रक्षा करे क्योंकि भारत वर्ष 1972 से विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण से संबंधित यूनेस्को कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्त्ता है।

स्रोत: द हिंदू


2 लाख PACS, डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना की योजना

प्रिलिम्स के लिये:

प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) का डिजिटलीकरण, PMMSY, आत्मनिर्भर भारत, सहकारी समितियाँ।

मेन्स के लिये:

PACS का महत्त्व और मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों? 

केंद्र ने सहकारी आंदोलन को मज़बूत करने के लिये अगले पाँच वर्षों में देश में 2 लाख प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS), डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना की योजना को मंज़ूरी प्रदान की है।

  • इससे पहले अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से केंद्रीय बजट 2023 में अगले पाँच वर्षों में 63,000 PACS के कम्प्यूटरीकरण हेतु 2,516 करोड़ रुपए की घोषणा की गई है।

योजना के मुख्य बिंदु: 

  • उद्देश्य: सहकारिता मंत्रालय द्वारा पेश की गई योजना का उद्देश्य "देश में सहकारी आंदोलन को मज़बूत करना और ज़मीनी स्तर तक इसकी पहुँच सुनिश्चित करना" है।
  • विभिन्न योजनाओं का अभिसरण: योजना का उद्देश्य गाँवों में व्यवहार्य PACS, डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना करना है और 'संपूर्ण सरकारी' दृष्टिकोण का लाभ उठाते हुए मत्स्य पालन, पशुपालन तथा डेयरी मंत्रालय की विभिन्न योजनाओं के अभिसरण के माध्यम से मौजूदा सहकारी समितियों को सशक्त करना है।
  • कार्ययोजना: परियोजना के कार्यान्वयन हेतु कार्ययोजना को नाबार्ड (NABARD), राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) और राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (NFDB) द्वारा तैयार किया जाएगा। 
  • घटक:  
  • उच्च स्तरीय अंतर-मंत्रालयी समिति (IMC): इसे योजना के सुचारु कार्यान्वयन के लिये सहकारिता मंत्रालय के तहत स्थापित किया जाना है।

योजना का महत्त्व: 

  • वर्तमान में 1.6 लाख पंचायतों में PACS नहीं हैं और लगभग 2 लाख पंचायतें बिना किसी डेयरी सहकारी समिति के हैं।
  • देश में सभी संस्थाओं द्वारा दिये गए किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card- KCC) ऋणों का 41% (3.01 करोड़ किसान) प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ द्वारा प्रदान किया गया है।
    • नाबार्ड की वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 से पता चलता है कि कुल ऋण का 59.6 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसानों को दिया गया था। 
  • ये समितियाँ किसानों को उनके खाद्यान्न को संरक्षित और संग्रहीत करने हेतु भंडारण सेवाएँ भी प्रदान करती हैं।

प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (PACS):

  • PACS स्थानीय स्तर की सहकारी ऋण संस्थाएँ हैं जो किसानों को विभिन्न कृषि कार्यों हेतु अल्पकालिक एवं मध्यम अवधि के कृषि ऋण प्रदान करती हैं।
  • ये राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंकों (State Cooperative Banks- SCB) की अध्यक्षता वाली त्रि-स्तरीय सहकारी ऋण संरचना में अंतिम कड़ी के रूप में कार्य करती हैं। SCB से क्रेडिट का हस्तांतरण ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंकों (District Central Cooperative Banks- DCCB) को किया जाता है, जो कि ज़िला स्तर पर काम करते हैं।
  • PACS, जो सहकारी बैंकिंग प्रणाली के अनुसार काम करती हैं, ग्रामीण क्षेत्र हेतु लघु और मध्यम अवधि के ऋण प्रदान करने के लिये प्राथमिक खुदरा आउटलेट हैं।

आगे की राह

  • बेहतर कवरेज के साथ PACS को उच्च वित्तपोषक एजेंसियों से अधिक जमा और ऋण आकर्षित करने हेतु अपनी संसाधन संग्रहण क्षमता को पुनर्गठित एवं बढ़ाना चाहिये।
  • PACS  को लंबी अवधि में सुसंगत नीतिगत समर्थन प्रदान किया जाना चाहिये और आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के निर्माण में उनकी क्षमता का एहसास कराने के लिये आत्मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल पहल के भारत सरकार के दृष्टिकोण को प्रमुखता देनी चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. कृषि क्षेत्र को अल्पकालिक ऋण परिदान करने के संदर्भ में ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंक (DCCBs) अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की तुलना में अधिक ऋण प्रदान करते हैं।
  2.  DCCB का एक सबसे प्रमुख कार्य प्राथमिक कृषि साख समितियों को निधि उपलब्ध कराना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


प्रश्न: भारत में 'शहरी सहकारी बैंकों' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  

  1. राज्य सरकारों द्वारा स्थापित स्थानीय मंडलों द्वारा उनका पर्यवेक्षण और विनियमन किया जाता है। 
  2. वे इक्विटी शेयर और अधिमान शेयर जारी कर सकते हैं। 
  3. उन्हें वर्ष 1966 में एक संशोधन द्वारा बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 के कार्य-क्षेत्र में लाया गया था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3  
(c) केवल 1 और 3   
(d) 1, 2 और 3  

उत्तर: (b)  

व्याख्या: सहकारी बैंक वित्तीय संस्थाएँ हैं जो इसके सदस्यों से संबंधित हैं और एक ही समय में अपने बैंक के मालिक और ग्राहक हैं। वे राज्य के कानूनों द्वारा स्थापित हैं। 

  • भारत में सहकारी बैंक, सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं। वे आरबीआई द्वारा भी विनियमित होते हैं और बैंकिंग विनियम अधिनियम, 1949 तथा बैंकिंग कानून (सहकारी समितियाँ) अधिनियम, 1955 द्वारा शासित होते हैं। अतः कथन 3 सही हैैं। 
  • सहकारी बैंक उधार देते हैं और जमा स्वीकार करते हैं। वे कृषि तथा संबद्ध गतिविधियों के वित्तपोषण एवं ग्राम व कुटीर उद्योगों के वित्तपोषण के उद्देश्य से स्थापित किये गए हैं। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) भारत में सहकारी बैंकों का शीर्ष निकाय है।
  • शहरी सहकारी बैंकों का एकल-राज्य सहकारी बैंकों के मामले में सहकारी समितियों के राज्य रजिस्ट्रार और बहु-राज्य के मामले में सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार (CRCS) द्वारा विनियमन एवं पर्यवेक्षण किया जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है। 
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिक शहरी सहकारी बैंकों को इक्विटी शेयर, अधिमानी शेयर और ऋण लिखत जारी करने के माध्यम से पूंजी बढ़ाने की अनुमति देते हुए मसौदा दिशा-निर्देश जारी किये। 
  • शहरी सहकारी बैंक सदस्यों के रूप में नामांकित अपने परिचालन क्षेत्र के व्यक्तियों को इक्विटी जारी करके और मौजूदा सदस्यों के लिये अतिरिक्त इक्विटी शेयरों के माध्यम से शेयर पूंजी जुटा सकते हैं। 
  • अत: कथन 2 सही है। अतः विकल्प (B) सही उत्तर है। 

प्रश्न. ”गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर ऋण संगठन का कोई भी अन्य ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।”-अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन की चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्तीय संस्थाओं को किन बाध्यताओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार इस्तेमाल किया जा सकता है? (मुख्य परीक्षा- 2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


वार्मिंग को 1.8 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करना

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र द्वारा आदेशित पेरिस समझौता, समुद्र स्तर में वृद्धि, ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरें, शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन, ग्रीनहाउस गैसें, समुद्री हीटवेव।

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दे, जलवायु परिवर्तन के न्यूनीकरण के लिये पहल।

चर्चा में क्यों?   

पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया था, नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, इस लक्ष्य की प्राप्ति के बावजूद अगली सदी तक भी समुद्र के स्तर में वृद्धि को रोकना शायद असंभव है।

बढ़ते तापमान पर अध्ययन के प्रमुख बिंदु:  

  • अध्ययन के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान में 1.8 डिग्री सेल्सियस से अधिक की वृद्धि होती है, तो पश्चिम अंटार्कटिक बर्फ और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादरें स्थायी रूप से पिघल जाएंगी, जिससे समुद्र का स्तर तेज़ी से बढ़ेगा।
  • शोधकर्त्ताओं के अनुसार, अंटार्कटिक के एक बड़े ग्लेशियर थवाइट्स ग्लेशियर (जिसे डूम्सडे ग्लेशियर भी कहा जाता है) में गर्म जल का रिसाव हो रहा है। इस प्रकार बढ़ते तापमान के कारण बर्फ पिघलने की स्थिति लगातार बनी हुई है।
    • आइसफिन, मूरिंग डेटा और सेंसर के रूप में पहचाने जाने वाले जल के नीचे रोबोट वाहन का उपयोग करते हुए उन्होंने ग्लेशियर की ग्राउंडिंग लाइन की जाँच की, जहाँ ग्लेशियर से बर्फ फिसलकर समुद्र में जा मिलती है।
  • इस अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि इस तबाही से बचने के लिये वर्ष 2060 से पहले शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना अति महत्त्वपूर्ण है।
  • वर्ष 2150 तक वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि क्रमशः उच्च, मध्य और निम्न-उत्सर्जन परिदृश्यों के अनुरूप लगभग 1.4, 0.5 और 0.2 मीटर तक होने का अनुमान है।

जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आपदा की प्रमुख घटनाएँ: 

  • परिचय:  
    • जैसे-जैसे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है हिम टोपियाँ और ग्लेशियर त्वरित दर से पिघल रहे हैं। भूमि आधारित बर्फ का पिघलना जैसे कि ग्लेशियर और हिम टोपियाँ, समुद्र स्तर की वृद्धि में योगदान करती हैं क्योंकि बर्फ पिघलने से जल समुद्र में प्रवाहित होता है।
    • तापमान में वृद्धि मुख्य रूप से वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि के कारण होती है, मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड, जो जीवाश्म ईंधन के जलने और वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न होती है।
  • प्रमुख प्रभाव:  
    • ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में वृद्धि:
      • तीन मुख्य ग्रीनहाउस गैसें कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (NO2) की सांद्रता वर्ष 2021 में रिकॉर्ड उच्च स्तर पर थी।
      • मीथेन का उत्सर्जन, जो ग्लोबल वार्मिंग पैदा करने में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 25 गुना अधिक शक्तिशाली है, वास्तव में अब तक की सबसे तेज़ गति से बढ़ रहा है। 
    • तापमान: 
      • वर्ष 2022 में वैश्विक औसत तापमान वर्ष 1850-1900 के औसत से लगभग 1.15 डिग्री सेल्सियस ऊपर होने का अनुमान है। 
      • ला नीना (भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के जल का ठंडा होना) की स्थिति वर्ष 2020 के अंत से अधिक प्रभावी है।
    • समुद्र स्तर में वृद्धि:
      • उपग्रह अल्टीमीटर रिकॉर्ड के 30 वर्षों (1993-2022) में वैश्विक औसत समुद्र स्तर प्रतिवर्ष अनुमानित 3.4 ± 0.3 मिमी. बढ़ गया है।
    • महासागरीय ऊष्मा:
      • कुल मिलाकर समुद्र की सतह के 55% हिस्से ने वर्ष 2022 में कम-से-कम एक मरीन हीटवेव का अनुभव किया।
    • चरम मौसम:
      • पूर्वी अफ्रीका में लगातार चार आर्द्र मौसमों में वर्षा औसत से कम रही है, जो 40 वर्षों में सबसे लंबी अवधि है और यह इस बात का संकेत है कि वर्तमान मौसम भी शुष्क हो सकता है।
        • वर्ष 2022 में भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में अत्यधिक हीटवेव के कारण बाढ़ आई थी। 

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु लिये गए निर्णय:

  • राष्ट्रीय: 
    • जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना: 
      • जलवायु परिवर्तन से उभरते खतरों का मुकाबला करने के लिये, भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) जारी की है।
      • इसके 8 उप-मिशन हैं जिनमें राष्ट्रीय सौर मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन आदि सम्मिलित हैं। 
    • इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान:
      • यह तापमान में कमी की मांग के साथ संबंधित क्षेत्रों के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है।
        • इससे उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी जिससे ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला किया जा सकेगा। 
  • वैश्विक: 
    • पेरिस समझौता:
      • यह पूर्व-औद्योगिक समय से वैश्विक तापमान में वृद्धि को "2 डिग्री सेल्सियस से नीचे" रखना चाहता है, जबकि इसका लक्ष्य 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के "प्रयासों को आगे बढ़ाना" है।
    • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य: 
      • सतत् विकास लक्ष्य प्राप्त करने हेतु समाज में ये 17 व्यापक लक्ष्य हैं। उनमें से 13  लक्ष्य विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन से निपटने पर केंद्रित है।
    • ग्लासगो संधि: 
      • इसे अंततः COP26 वार्ताओं के दौरान वर्ष 2021 में 197 पार्टियों द्वारा अपनाया गया था।
      • इसने इस बात पर ज़ोर दिया है कि 1.5 डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने के लिये मौजूदा दशक में की गई कार्यवाही सबसे महत्त्वपूर्ण थी। 
    • शर्म-अल-शेख अनुकूलन एजेंडा (COP27 में):
      • यह वर्ष 2030 तक सबसे अधिक संवेदनशील जलवायु समुदायों के 4 अरब लोगों के लिये लचीलापन बढ़ाने हेतु 30 अनुकूलन परिणामों की रूपरेखा तैयार करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा भारत सरकार के 'हरित भारत मिशन' के उद्देश्य का सबसे अच्छा वर्णन करता है? (2016)

  1. संघ और राज्य के बजट में पर्यावरणीय लाभों और लागतों को शामिल करते हुए 'ग्रीन एकाउंटिंग' को लागू करना।
  2. कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत करना ताकि भविष्य में सभी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
  3. अनुकूलन और शमन उपायों के संयोजन द्वारा वन आवरण को बहाल करना एवं बढ़ाना तथा जलवायु परिवर्तन का जवाब देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. 'भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन संधि’ (ग्लोबल क्लाइमेट चेंज अलायन्स) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह यूरोपीय संघ की एक पहल है।
  2. यह लक्ष्याधीन विकासशील देशों को उनकी विकास नीतियों और बजट में जलवायु परिवर्तन के एकीकरण हेतु तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  3. इसका समन्वय विश्व संसाधन संस्थान (WRI) और धारणीय विकास हेतु विश्व व्यापार परिषद (WBCSD) द्वारा किया जाता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (मुख्य परीक्षा, 2021)

प्रश्न. 'जलवायु परिवर्तन' एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से कैसे प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (मुख्य परीक्षा, 2017)  

स्रोत: डाउन टू अर्थ


मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017

प्रिलिम्स के लिये:

NHRC, MHIs, धारा 19, SDG 3.4, WHO की व्यापक मानसिक कार्ययोजना 2013-2020, MANAS एप।

मेन्स के लिये:

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 और संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों? 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA), 2017 का उल्लंघन करने वाले भारत में कई मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों (MHIs) की दयनीय स्थिति पर चिंता व्यक्त की।

  • NHRC के अनुसार, MHIs रोगियों के ठीक होने के बाद भी लंबे समय तक उन्हें "अवैध रूप से" रख रहे हैं, जो न केवल अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करता है, बल्कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय अनुबंधों के तहत दायित्त्वों का निर्वहन करने में सरकारों की विफलता को भी उज़ागर करता है, जिन्हें भारत द्वारा अनुमोदित किया गया है।

मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA), 2017 की पृष्ठभूमि: 

  • मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA), 2017 से पूर्व, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 1987 अस्तित्त्व में था, जो मानसिक रोगियों के संस्थागतकरण को प्राथमिकता देता था और रोगी को कोई अधिकार नहीं देता था।
  • अधिनियम ने न्यायिक अधिकारियों और मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों को लंबे समय तक रहने हेतु प्रवेशों को प्राधिकृत करने के लिये अक्सर व्यक्ति की सूचित सहमति और इच्छाओं के विरुद्ध असंगत अधिकार प्रदान किया।
  • नतीजतन, कई व्यक्तियों को भर्ती किया जाना जारी है और उनकी इच्छा के खिलाफ मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में रखा गया है। 
  • इसने वर्ष 1912 के औपनिवेशिक युग के भारतीय पागलपन अधिनियम के लोकाचार को मूर्त रूप दिया, जो आपराधिकता और पागलपन को जोड़ता था।
    • शरण स्थल एक ऐसा स्थान है जहाँ "असामान्य" और "अनुत्पादक" व्यवहार जो कि व्यक्ति को समाज से अलग करता था, का एक व्यक्तिगत घटना के रूप में अध्ययन किया जाता था। हस्तक्षेप का उद्देश्य अंतर्निहित कमी या "असामान्यता" को ठीक करना है, जिसके परिणामस्वरूप "स्वास्थ्य लाभ" होता है। 
  • वर्ष 2017 में MHA ने शरण से जुड़ी नैदानिक विरासत को समाप्त कर दिया। 

मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम (MHA) 2017: 

  • परिचय: 
    • इस अधिनियम ने मानसिक बीमारी को "सोच, मनोदशा, धारणा, अभिविन्यास या स्मृति का एक पर्याप्त विकार के रूप में परिभाषित किया है जो क्षमता निर्णय, वास्तविकता, जीवन की सामान्य मांगों को पूरा करने के लिये व्यवहार को पहचानने की क्षमता या शराब और ड्रग्स के दुरुपयोग से जुड़ी मानसिक स्थितियों को बाधित करता है।  
    • यह मरीजों को उन सुविधाओं तक पहुँच का भी अधिकार प्रदान करता है जिनमें समुदाय और घर, आश्रय एवं समर्थित आवास तथा चिकित्सालय में पुनर्वास सेवाएँ भी शामिल हैं।
    • यह PMI (मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति) पर शोध और न्यूरोसर्जिकल उपचार के उपयोग को नियंत्रित करता है।
  • मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के तहत अधिकार:
    • अग्रिम निर्देश का अधिकार (रोगी यह बता सकता है कि मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति के दौरान बीमारी का इलाज कैसे किया जाए या नहीं किया जाए)।
    • स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अधिकार।
    • निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार।
    • समुदाय में रहने का अधिकार।
    • क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार से सुरक्षा का अधिकार।
    • निषिद्ध उपचार के तहत इलाज न करने का अधिकार।
    • समानता और गैर-भेदभाव का अधिकार।
    • सूचना का अधिकार।
    • गोपनीयता का अधिकार।
    • कानूनी सहायता और शिकायत का अधिकार।
  • आत्महत्या करने का प्रयास अपराध नहीं: 
    • कोई व्यक्ति जो आत्महत्या करने का प्रयास करता है, यह माना जाएगा कि वह "गंभीर तनाव से पीड़ित" है और किसी भी जाँच अथवा अभियोजन के अधीन नहीं होगा। 
  • इस अधिनियम में केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की स्थापना की परिकल्पना की गई है।

Mental-Healthcare

इस कार्यान्वयन से संबद्ध चुनौतियाँ: 

  • मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड (MHRBs) की अनुपस्थिति: 
    • अधिकांश राज्यों में राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण और मानसिक स्वास्थ्य समीक्षा बोर्ड (MHRBs) नहीं हैं तथा कई राज्यों ने MHI की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये न्यूनतम मानकों को अधिसूचित नहीं किया है।
      • MMHRBs ऐसे निकाय हैं जो मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों के लिये मानकों का मसौदा तैयार कर सकते हैं, उनके कामकाज़ की देख-रेख करने के साथ ही यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे अधिनियम का अनुपालन करते हैं अथवा नहीं।
    • MHRB के अभाव में लोग अपने अधिकारों का प्रयोग करने अथवा अधिकारों के हनन के मामलों में समाधान प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं।
  • खराब बजटीय आवंटन: 
    • खराब बजटीय आवंटन और धन का उपयोग एक ऐसे परिदृश्य का निर्माण करता है जिसमें आश्रयगृह में आवश्यक वस्तुओं का अभाव होता है, प्रतिष्ठान में कर्मचारियों की संख्या कम होती है और पेशेवर तथा सेवा प्रदाता मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिये पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं होते हैं।
  • लांछन की भावना: 
    • इन स्थानों में जो भी लोग रहते हैं, वे या तो अपने परिवार वालों द्वारा लाए जाते हैं अथवा पुलिस और न्यायपालिका इसके लिये उत्तरदायी होती है।
    • कई मामलों में परिवार वाले कैद से जुड़े कलंक अथवा ऐसे ही किसी विचार के कारण उन्हें ले जाने से मना कर देते हैं कि वह व्यक्ति अब समाज में कोई योगदान नहीं दे सकता है।
      • "पारिवारिक मतभेद, वैवाहिक असहमति और व्यक्तिगत संबंधों में हिंसा के कारण महिलाओं का परित्याग किये जाने की अधिक संभावना होती है, जो कुल मिलाकर इस परिस्थिति में लैंगिक भेदभाव में योगदान देते हैं।
  • समुदाय आधारित सेवाओं का अभाव: 
    • जबकि धारा 19 जो लोगों के "समाज में रहने, हिस्सा बनने और समाज से अलग न होने" के अधिकार को मान्यता प्रदान करती  है, के कार्यान्वयन हेतु कोई ठोस प्रयास नहीं किये गए हैं।
    • वैकल्पिक समुदाय-आधारित सेवाओं की कमी के कारण पुनर्वास तक पहुँच और जटिल हो जाती है, जैसे कि सहायता प्राप्त या स्वतंत्र रहने हेतु घर, समुदाय-आधारित मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ एवं सामाजिक-आर्थिक अवसर।

मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित पहल 

आगे की राह

  • यह सुनिश्चित करने हेतु अधिनियम की नियमित रूप से समीक्षा की जानी चाहिये कि यह व्यक्तियों की मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों की बदलती ज़रूरतों को पूरा करने में प्रभावी है।
  • इसके अतिरिक्त यह सुनिश्चित करने हेतु संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिये कि अधिनियम को पर्याप्त रूप से लागू किया गया है।
  • मानसिक बीमारी से जुड़े कलंक/स्टिग्मा को दूर करने, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ावा देने हेतु निरंतर प्रयास किये जाने चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू