खुदरा मुद्रास्फीति में प्रमुख रुझान और चुनौतियाँ
प्रिलिम्स के लिये:खुदरा मुद्रास्फीति, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), खाद्य मुद्रास्फीति, उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI), खरीफ, रबी, कोर मुद्रास्फीति, रुपए का मूल्यह्रास, आयातित मुद्रास्फीति, विदेशी निवेश, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), क्रय शक्ति, औद्योगिक श्रमिकों के लिये CPI (CPI-IW), कृषि मज़दूरों के लिये CPI (CPI-AL), ग्रामीण मज़दूरों के लिये CPI (CPI-RL), शहरी गैर-शारीरिक कर्मचारियों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-UNME), खाद्य और कृषि संगठन। मेन्स के लिये:मुद्रास्फीति और संबंधित चिंताओं को कम करना, मौद्रिक नीति और मुद्रास्फीति प्रबंधन। |
स्रोत: बीएस
चर्चा में क्यों?
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति, खाद्य मुद्रास्फीति में कमी के कारण, नवंबर 2024 में 5.48% से घटकर दिसंबर 2024 में 5.22% हो गई।
- खुदरा मुद्रास्फीति उस दर को मापती है जिस पर उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी गई वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें समय के साथ बढ़ती हैं, जो जीवन-यापन की लागत में परिवर्तन को दर्शाती है।
खुदरा मुद्रास्फीति में कमी के क्या कारण हैं?
- कम खाद्य मुद्रास्फीति: उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) द्वारा मूल्यांकित खाद्य मुद्रास्फीति, नवंबर 2024 में 9.04% से घटकर दिसंबर 2024 में 8.39% हो गई।
- सकारात्मक कृषि उत्पादन: अच्छी खरीफ फसल, अनुकूल रबी बुवाई की स्थिति और पर्याप्त जलाशय स्तर ने खाद्य मुद्रास्फीति को कम कर दिया।
- ईंधन की कीमतों में गिरावट: ईंधन की कीमतों में मुद्रास्फीति -1.39% पर संकुचन में रही, जबकि परिवहन (2.64%) और शिक्षा (3.89%) के लिये यह अपरिवर्तित रही, जिससे समग्र मुद्रास्फीति दबाव में कमी आई।
- कोर मुद्रास्फीति, जिसमें अस्थिर खाद्य और ईंधन वस्तुएँ शामिल नहीं हैं, दिसंबर 2024 में घटकर 3.5% हो गई।
- गैर-खाद्य श्रेणियों में स्थिरता: आवास (2.71%), वस्त्र एवं जूते (2.74%) तथा घरेलू सामान (2.75%) में मुद्रास्फीति मामूली परिवर्तन के साथ स्थिर रही।
मुद्रास्फीति से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- RBI के लक्ष्य से अधिक मुद्रास्फीति: सात राज्यों में RBI की 6% सीमा से अधिक मुद्रास्फीति दर्ज की गई, जबकि दस राज्यों में राष्ट्रीय औसत से अधिक मुद्रास्फीति दर्ज की गई।
- छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक 7.63% मुद्रास्फीति दर्ज की गई, जिसके बाद बिहार (7.4%) और ओडिशा (7%) का स्थान रहा, जो स्थानीय मुद्रास्फीति चुनौतियों को दर्शाता है।
- आयातित मुद्रास्फीति: रुपए के मूल्यह्रास से आयातित कच्चे तेल और वैश्विक वस्तुओं की लागत बढ़ जाती है, जिससे घरेलू कीमतें बढ़ जाती हैं और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना कठिन हो जाता है।
- खाद्य तेलों जैसी आयातित वस्तुओं पर निर्भरता के कारण भारत को वैश्विक मूल्य अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।
- रुपए के मूल्य पर पड़ने वाले प्रभाव से आयात की कीमतें बढ़ जाती हैं, क्योंकि समान मात्रा में आयातित वस्तुओं को खरीदने के लिये अधिक रुपए की आवश्यकता होती है।
- उच्च वैश्विक ब्याज दरें: उच्च वैश्विक ब्याज दरें भारत में विदेशी निवेश को बाधित कर सकती हैं, जिससे वित्तीय स्थिरता प्रभावित होगी तथा मुद्रा अवमूल्यन की स्थिति और खराब होगी।
- इससे निवेशक अपनी पूंजी अमेरिका और यूरोप जैसे देशों की ओर स्थानांतरित कर सकते हैं, जहाँ उच्च प्रतिफल मिलता है, जिससे भारत जैसे उभरते बाज़ारों में विदेशी निवेश का प्रवाह कम हो जाता है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक क्या है?
- परिचय: CPI 2012 को आधार वर्ष मानकर समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं के विविध समूह के आधार पर उपभोक्ता कीमतों में समग्र परिवर्तन को मापता है।
- वस्तुओं की इस शृंखला में भोजन, वस्त्र, परिवहन, चिकित्सा, विद्युत, शिक्षा आदि शामिल हैं।
- CPI को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा मासिक रूप से प्रकाशित किया जाता है।
- उद्देश्य: CPI का उपयोग मूल्य स्थिरता को लक्षित करने, महंगाई भत्ते को समायोजित करने तथा जीवन-यापन की लागत, क्रय शक्ति और वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत निर्धारित करने के लिये किया जाता है।
- गणना: CPI की गणना एक चालू वर्ष में निश्चित वस्तुओं और सेवाओं की लागत को आधार वर्ष की लागत से विभाजित करके फिर 100 से गुणा करके की जाती है।
- प्रकार: CPI माप के चार अलग-अलग प्रकार हैं।
- औद्योगिक श्रमिकों के लिये CPI (CPI-IW): यह समय के साथ औद्योगिक श्रमिकों द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के एक विविध समूह में मूल्य परिवर्तनों को ट्रैक करता है। श्रम और रोज़गार मंत्रालय के तहत श्रम ब्यूरो CPI-IW संकलित करता है।
- कृषि मज़दूरों के लिये CPI (CPI-AL): श्रम ब्यूरो विभिन्न राज्यों में कृषि मज़दूरों के लिये न्यूनतम मज़दूरी को संशोधित करने में सहायता के लिये CPI-AL संकलित करता है।
- ग्रामीण मज़दूरों के लिये CPI (CPI-RL): यह कृषि और ग्रामीण मज़दूरों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं की खुदरा कीमतों में परिवर्तन को मापता है ।
- श्रम ब्यूरो CPI-RL संकलित करता है।
- शहरी गैर-शारीरिक कर्मचारियों के लिये CPI (CPI-UNME): CPI-UNME को NSO द्वारा संकलित किया जाता है। एक शहरी गैर-शारीरिक कर्मचारी शहरी गैर-कृषि क्षेत्र में गैर-शारीरिक कार्य से अपनी आय का 50% या उससे अधिक कमाता है।
- घटक: CPI के प्राथमिक घटक (उनके भार सहित) निम्नलिखित हैं।
- खाद्य एवं पेय (45.86%)
- आवास (10.07%)
- ईंधन और प्रकाश (6.84%)
- कपड़े और जूते (6.53%)
- पान, तम्बाकू और नशीले पदार्थ (2.38%)
- विविध (28.32%)
उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक
- परिचय: उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) एक आधार वर्ष के संदर्भ में किसी निश्चित क्षेत्र में एक निर्धारित जनसंख्या समूह द्वारा उपभोग किये जाने वाले खाद्य उत्पादों के खुदरा मूल्यों में परिवर्तन का एक माप है।
- वर्तमान में प्रयुक्त आधार वर्ष 2012 है।
- जारी करने वाली संस्था: NSO, सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने मई, 2014 से अखिल भारतीय आधार पर तीन श्रेणियों अर्थात ग्रामीण, शहरी और संयुक्त के लिये CFPI जारी करना शुरू कर दिया।
- CPI की तरह CFPI की गणना भी मासिक आधार पर की जाती है।
नोट: FAO खाद्य मूल्य सूचकांक: वैश्विक स्तर पर, खाद्य मूल्य सूचकांक संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा मासिक आधार पर जारी किया जाता है।
- खाद्य वस्तुओं की टोकरी में 5 वस्तु समूह मूल्य सूचकांक (अनाज, वनस्पति तेल, डेयरी, मांस और चीनी) का औसत शामिल है, जिसे 2002-2004 के लिये प्रत्येक समूह के औसत निर्यात हिस्से के साथ भारित किया गया है।
निष्कर्ष:
- दिसंबर, 2024 में भारत में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 5.22% हो गई है, जिसका कारण खाद्य मुद्रास्फीति में कमी और गैर-खाद्य श्रेणियों के स्थिर रहना है। हालाँकि, स्थानीय मुद्रास्फीति, रुपए में गिरावट और उच्च वैश्विक ब्याज दरों के कारण चिंताएँ बनी हुई हैं, जो घरेलू मुद्रास्फीति नियंत्रण और विदेशी निवेश को प्रभावित कर सकती हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: मौद्रिक नीति को आकार प्रदान करने में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) की भूमिका और भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:Q. संभावित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) क्या है। इसके निर्धारकों की चर्चा कीजिये। उन कारकों का भी उल्लेख कीजिये जो भारत को अपनी संभावित सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त करने में बाधा डालते हैं। (2020) Q. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि स्थिर सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019) |
भारत का जनांकिकीय संक्रमण
प्रिलिम्स के लिये:जनांकिकीय लाभांश, संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड, समर्थन अनुपात, जनांकिकीय संक्रमण, प्रतिस्थापन दर मेन्स के लिये:जनांकिकीय लाभांश और इसके आर्थिक निहितार्थ, भारत का जनांकिकीय संक्रमण, रजत अर्थव्यवस्था |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
चर्चा में क्यों?
मैकिन्से एंड कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार अन्य विकसित देशों की भाँति ही भारत की अर्थव्यवस्था भी वर्ष 2050 तक एक कालप्रभावित अर्थव्यवस्था (सिल्वर इकोनॉमी) में परिणत हो जाएगी और अपने जनांकिकीय लाभांश का पूर्ण उपयोग करने के लिये देश के पास 33 वर्ष शेष हैं।
- इस रिपोर्ट में मंद संवृद्धि, बढ़ती निर्भरता और राजकोषीय दबाव पर भी प्रकाश डाला गया है, क्योंकि भारत की कार्यशील आयु वर्ग की संख्या में वृद्धजनों की तुलना में अधिक गिरावट आ रही है।
नोट: संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड के अनुसार, जनांकिकीय लाभांश का तात्पर्य उस आर्थिक विकास क्षमता से है, जब किसी देश के कार्यशील आयु वर्ग (15-64 वर्ष) की जनसंख्या उस पर आश्रित जनसंख्या (बालक और वृद्धजन) से अधिक हो जाती है, जिससे उत्पादकता और आर्थिक उत्पादन में वृद्धि के लिये उपयुक्त अवसर सर्जित होते हैं।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, भारत 2005-06 से ही जनांकिकीय लाभांश की स्थिति में है और यह स्थिति 2055-56 तक बनी रहेगी।
भारत के जनांकिकीय संक्रमण की रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- ह्वासमान समर्थन अनुपात: भारत के पास वर्ष 2050 तक अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के समान कालप्रभावित होने में 33 वर्ष शेष हैं।
- भारत का समर्थन अनुपात (65 वर्ष या उससे अधिक आयु के प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक पर कार्यशील आयु वर्ग के व्यक्ति) 1997 में 14:1 था जो वर्ष 2023 में घटकर 10:1 हो गया है तथा अनुमानतः वर्ष 2050 तक यह और घटकर 4.6:1 तथा 2100 तक 1.9:1 हो जाएगा, जो जापान जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के स्तर के समान होगा।
- लोक वित्त पर बढ़ता दबाव: 2050 तक, वृद्धजनों की हिस्सेदारी कुल खपत में 15% होगी, जो वर्तमान में 8% है।
- वृद्धजन की संख्याओं में निरंतर बढ़ोतरी से पेंशन, लोक स्वास्थ्य सेवा और पारिवारिक संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा।
- वैश्विक उपभोग में भारत की हिस्सेदारी वर्तमान में 9% है जो अनुमानतः वर्ष 2050 तक बढ़कर 16% हो जाएगी।
- निम्न उत्पादकता और श्रम बाज़ार: भारत की श्रम शक्ति भागीदारी, विशेष रूप से महिलाओं की, निम्न बनी हुई है और यह सुधार का एक प्रमुख कारक है।
- भारत में श्रमिक उत्पादकता 9 अमेरिकी डॉलर प्रति घंटा है, जो उच्च आय वाले देशों में 60 अमेरिकी डॉलर प्रति घंटा की औसत उत्पादकता से काफी कम है।
- जन्म दर में गिरावट: जन्म दर में वैश्विक गिरावट की स्थिति गंभीर है, जिसका प्रभाव भारत जैसे उभरते देशों और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं दोनों पर पड़ा है।
- इस जनांकिकीय प्रवृत्ति का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि, श्रम बाज़ार, पेंशन प्रणाली और उपभोक्ता व्यवहार पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
- अनुशंसाएँ: जनांकिकीय लाभांश को अधिकतम करने के लिये श्रम बल में, विशेष रूप से महिलाओं की, भागीदारी बढ़ाने की आवश्यकता है।
- श्रमिक उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिये, भारत को प्रौद्योगिकी अपनाने, नवाचार को बढ़ावा देने तथा बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और कौशल विकास में रणनीतिक निवेश पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
- वृद्धजन की संख्याओं में निरंतर बढ़ोतरी से उत्पन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये लोक वित्त और सामाजिक सहायता प्रणालियों को सुदृढ़ कर जनांकिकीय संक्रमण हेतु तत्पर रहने की आवश्यकता है।
जनांकिकीय संक्रमण क्या है?
- जनांकिकीय संक्रमण एक ऐसा मॉडल है जो जन्म और मृत्यु दर में परिवर्तन के साथ-साथ जनसंख्या आयु संरचना में बदलाव का वर्णन करता है और यह परिवर्तन समाज में हुए आर्थिक और तकनीकी विकास के कारण होता है। इसमें प्रायः निम्न चरण शामिल होते हैं।
- चरण 1: उच्च जन्म और मृत्यु दर के परिणामस्वरूप जनसंख्या स्थिर हो जाती है।
- चरण 2: स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छता और खाद्य उत्पादन में सुधार के कारण मृत्यु दर में कमी आती है, जबकि जन्म दर उच्च बनी रहती है। इससे जनसंख्या में तेज़ी से वृद्धि होती है।
- चरण 3: जन्म दर में गिरावट शुरू होती है, जिससे जनसंख्या वृद्धि धीमी हो जाती है। इसके कारकों में शहरीकरण, निम्न बाल मृत्यु दर, गर्भनिरोध की सुविधा और लघु परिवारों की ओर समाज का रुख शामिल हैं।
- चरण 4: जन्म और मृत्यु दर दोनों निम्न होती हैं, जिससे जनसंख्या स्थिर अथवा वृद्ध होती है। यह चरण उच्च जीवन स्तर, उन्नत प्रौद्योगिकी और सामाजिक विकास को दर्शाता है।
- भारत की जनसांख्यिकी: वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत जनसांख्यिकीय परिवर्तन के चार चरण मॉडल के तीसरे चरण में है, जो उच्च से निम्न मृत्यु दर और प्रजनन दर की ओर बढ़ रहा है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के अनुसार भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) 2.0 है, जो प्रतिस्थापन दर 2.1 से कम है।
- TFR एक महिला के प्रजनन वर्षों (15-49) के दौरान वर्तमान प्रजनन प्रारूप के आधार पर उसके बच्चों की औसत संख्या है।
- प्रजनन क्षमता की प्रतिस्थापन दर प्रति महिला बच्चों की वह औसत संख्या है जो प्रवास के अभाव में जनसंख्या को स्थिर रखने के लिये आवश्यक है।
- संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग (DESA) की वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्टस 2024 रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारत की जनसंख्या 2060 के दशक के प्रारंभ में 1.7 अरब के शिखर पर पहुँच जाएगी और उसके बाद इसमें 12% की गिरावट आएगी, फिर भी यह विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश बना रहेगा।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के अनुसार भारत की कुल प्रजनन दर (TFR) 2.0 है, जो प्रतिस्थापन दर 2.1 से कम है।
माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत
- वर्ष 1798 में अंग्रेज़ अर्थशास्त्री थॉमस माल्थस द्वारा प्रस्तावित जनसंख्या का माल्थस सिद्धांत बताता है कि जनसंख्या तेज़ी से बढ़ती है, जबकि खाद्य उत्पादन गणितीय रूप से बढ़ता है।
- इस असंतुलन के कारण जनसंख्या अधिक हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप अकाल, बीमारी और मृत्यु दर बढ़ती है जिससे अंततः जनसंख्या कम हो जाती है।
- माल्थस ने जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के तरीकों के रूप में "कृत्रिम निरोध" (जैसे, विवाह में देरी) और "प्राकृतिक निरोध " (जैसे, अकाल और बीमारी) की पहचान की।
- प्रभावशाली होने के बावजूद, इस सिद्धांत की आलोचना तकनीकी प्रगति और मानव अनुकूलनशीलता को कम आँकने के लिये की गई है।
भारत में वृद्धजनों के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?
- कार्यबल भागीदारी में गिरावट: कार्यशील आयु वर्ग के व्यक्तियों के घटते अनुपात के कारण भारत की आर्थिक वृद्धि काफी धीमी हो सकती है।
- उदाहरण के लिये, जापान, जिसकी 27% आबादी 65 वर्ष से अधिक है, को श्रम की कमी और तनावपूर्ण सामाजिक सुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है। सुस्त विकास और स्थिर मज़दूरी के कारण घरेलू खर्च में कमी आई है।
- स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर दबाव: वृद्धजनों में आमतौर पर दीर्घकालिक बीमारियों की दर अधिक होती है, जिससे भारत की पहले से ही दबावग्रस्त स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर अतिरिक्त दबाव पड़ सकता है।
- पर्याप्त बुनियादी ढाँचे के बिना स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं में वृद्धि से स्वास्थ्य संबंधी असमानताएँ बढ़ सकती हैं तथा वृद्धजनों के जीवन की गुणवत्ता में कमी आ सकती है।
- कम उत्पादकता और नवाचार: वृद्ध होती जनसंख्या के कारण आर्थिक गतिविधि और नके रता अनुपात सामाजिक और आर्थिक संसाधनों पर और अधिक दबाव डाल सकता है।
आगे की राह:
- वृद्धजनों के कार्यबल का कौशल विकास: वृद्धजनों के कार्यबल को 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था के लिये आवश्यक कौशल, जैसे डिजिटल साक्षरता, रचनात्मकता और नवाचार, तथा तकनीकी दक्षता से लैस करने के लिये शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना।
- स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना: वृद्धजनों को गुणवत्तापूर्ण और किफायती स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिये सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को मज़बूत करना।
- वित्तीय समावेशन: सुलभ और सस्ती पेंशन योजनाओं, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों और वित्तीय साक्षरता पहलों के माध्यम से वृद्धजनों के लिये वित्तीय सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- नवप्रवर्तन और उत्पादकता वृद्धि: अनुसंधान और विकास में निवेश करना, उद्यमशीलता को बढ़ावा देना, तथा उत्पादकता बढ़ाने एवं श्रम की कमी को दूर करने हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना।
- अंतर-पीढ़ीगत समावेशन: युवा और वृद्ध दोनों की चिंताओं को दूर करने के लिये अंतर-पीढ़ीगत संवाद एवं सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देना।
- जनांकिकीय लाभांश को संबोधित करना: खराब शिक्षा, लैंगिक असमानता, कौशल में कमी और अनौपचारिक क्षेत्र से बेरोज़गारी में वृद्धि, ये सभी कारक भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को बाधित कर रहे हैं। वर्ष 2023-24 मानव विकास सूचकांक रैंकिंग में 134वें स्थान पर है।
- बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और महिला कार्यबल की बढ़ी हुई भागीदारी के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान करना महत्त्वपूर्ण है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. पूर्ण आर्थिक विकास हासिल करने से पहले भारत के 'वृद्ध' अर्थव्यवस्था बन जाने के संभावित परिणाम क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. जनांकिकीय लाभांश के पूर्ण लाभ को प्राप्त करने के लिये भारत को क्या करना चाहिये? (2013) (a) कुशलता विकास का प्रोत्साहन उत्तर: (a) प्रश्न. आर्थिक विकास से जुड़े जनांकिकीय संक्रमण के निम्नलिखित विशिष्ट चरणों पर विचार कीजिये:(2012)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर उपर्युक्त चरणों का सही क्रम चुनिये: (a) 1, 2, 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. "भारत में जनांकिकीय लाभांश तब तक सैद्धांतिक ही बना रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और सृजनशील नहीं हो जाती।" सरकार ने हमारी जनसंख्या को अधिक उत्पादनशील और रोज़गार-योग्य बनने की क्षमता में वृद्धि के लिये कौन-से उपाय किये हैं? (2016) प्रश्न. "जिस समय हम भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) को शान से प्रदर्शित करते हैं, उस समय हम रोज़गार-योग्यता की पतनशील दरों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।" क्या हम ऐसा करने में कोई चूक कर रहे हैं? भारत को जिन जॉबों की बेसबरी से दरकार है, वे जॉब कहाँ से आएँगे? स्पष्ट कीजिये। (2014) |
दक्कन ज्वालामुखी और भारतीय प्लेट का संचलन
प्रिलिम्स के लिये:उष्णकटिबंधीय वनस्पति, ज्वालामुखी, भारतीय प्लेट, सामूहिक विलुप्ति, ITCZ, क्रेटेशियस-पेलियोजीन (के-पीजी), सामूहिक विलुप्ति, उष्णकटिबंधीय वर्षावन, भूमध्य रेखा, ज्वालामुखी पठार, मैंटल प्लम, ज्वालामुखी हॉटस्पॉट, रीयूनियन हॉटस्पॉट, गोंडवानालैंड, टेथिस सागर, हिमालय पर्वत, मानसून। मेन्स के लिये:भारतीय प्लेट की गति और दक्कन पठार पर इसका प्रभाव, ज्वालामुखी। |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
एक नए अध्ययन के अनुसार, दक्कन ज्वालामुखी का उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बड़े पैमाने पर जीव-जंतु विलुप्त हो गए थे।
- सामूहिक विलुप्ति विनाशकारी घटनाएँ हैं, जो तेज़ी से जैव विविधता को नुकसान पहुँचती हैं, यह अक्सर जलवायु परिवर्तन, क्षुद्रग्रहों के प्रभाव या बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी विस्फोटों के कारण होती हैं।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- जीव-जंतुओं और वनस्पतियों पर प्रभाव: दक्कन ज्वालामुखी विस्फोट के कारण डायनासोर और अन्य जीव-जंतुओं के साथ-साथ जिम्नोस्पर्म (अनावृतबीजी) भी बड़े पैमाने पर विलुप्त हो गए।
- हालाँकि, इसने वनस्पतियों के विलुप्त होने की बजाय, एंजियोस्पर्मों (आवृतबीजी) के लिये उपजाऊ, अप्रभावित आवासों का निर्माण करके अति-विविध उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों को बढ़ावा दिया।
- ज्वालामुखी निष्क्रियता के दौरान गर्म, आर्द्र जलवायु और भूमध्य रेखा के माध्यम से भारतीय प्लेट की गति ने वनस्पति विविधता में मदद की।
- वैश्विक और क्षेत्रीय निहितार्थ: दक्कन ज्वालामुखी कोक्रेटेशियस-पेलियोजीन (के-पीजी) सामूहिक विलुप्ति (66 मिलियन वर्ष पूर्व) के लिये एक योगदान कारक के रूप में पहचाना गया था, जिसने वैश्विक स्तर पर अमोनॉइड (अकशेरुकी सेफेलोपोड्स) और डायनासोर प्रजातियों को समाप्त कर दिया।
- हालाँकि, भारतीय प्लेट क्षेत्र में उष्णकटिबंधीय वर्षावनों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नही पड़ा, जो जलवायु संबंधी तनावों के प्रति उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों की अनुकूलता को दर्शाता है।
- उष्णकटिबंधीय वनस्पति: उष्णकटिबंधीय वनस्पति से तात्पर्य उन पौधों की प्रजातियों से है जो विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों (23.5° उत्तर और 23.5° दक्षिण अक्षांश के बीच) में विकसित होती हैं, इनकी आमतौर पर वर्ष भर उष्ण तापमान और उच्च आर्द्रता होती हैं।
- ये क्षेत्र भूमध्य रेखा के पास, कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच पाए जाते हैं।
- उदाहरणार्थ, महोगनी वृक्ष, ऑर्किड, नारियल के पेड़ आदि।
- जिम्नोस्पर्म: जिम्नोस्पर्म ऐसे पादप वृक्ष होते हैं जिनके बीज अंडाशय (अनावृत) के भीतर परिबद्ध नहीं होते हैं, अपितु प्रायः छोटी टहनियों या शंकुओं में खुली अवस्था में होते हैं। इनकी गिनती प्राचीनतम और आद्य पौधों में की जाती है।
- एंजियोस्पर्म: ये ऐसे पादप समूह हैं जिनके बीज फल के भीतर परिबद्ध होते हैं। निषेचन के बाद, पुष्प का अंडाशय एक फल में विकसित होता है जिसमें बीज होते हैं।
दक्कन ज्वालामुखी सिद्धांत क्या है?
- परिचय: इसके अनुसार ज्वालामुखीय उद्गारों, जिनके कारण दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ, का लगभग 66 मिलियन वर्ष पूर्व हुए व्यापक विलोपन की घटना में अहम भूमिका थी ।
- दक्कन ट्रैप प्रायद्वीपीय भारत में एक विशाल ज्वालामुखीय पठार है, जो ज्वालामुखीय उद्गारों के परिणामस्वरूप निर्मित हुआ है।
- विदरयुक्त ज्वालामुखी उद्गार तब उत्पन्न है जब मैग्मा ज्वालामुखी के केंद्रीय द्वार के बजाय लंबे दरारों या विदरों से निकलता है।
- निर्माण: ऐसा माना जाता है कि दक्कन ट्रैप का निर्माण डेक्कन मैंटल प्लम के कारण ज्वालामुखी की अत्यधिक सक्रियता से हुआ है। यह ज्वालामुखीय सक्रियता अनेक लाख वर्षों तक जारी रही।
- मैंटल प्लम पृथ्वी के मैंटल से निकलने वाला मैग्मा का बेलनाकार उत्प्रवाह है, जिससे प्लेट सीमाओं से असंबद्ध ज्वालामुखीय हॉटस्पॉट का निर्माण होता है।
- वर्तमान का दक्कन ट्रैप व्यापक ज्वालामुखी विस्फोटों से निर्मित बेसाल्टिक लावा प्रवाह की विशाल परतों से बना है।
- भारतीय प्लेट में संचलन से संबंध: भारत ऑस्ट्रेलियाई तट से सुदूर स्थित एक विशाल द्वीप था। ऐसा माना जाता है कि भारत का उत्तर दिशा की ओर संचलन लगभग 200 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ।
- रियूनियन हॉटस्पॉट पृथ्वी के केंद्र से निकला कोष्ण लावा का एक मेंटल प्लम है जो भारतीय प्लेट के नीचे स्थित है।
- जैसे-जैसे भारतीय प्लेट रियूनियन हॉटस्पॉट के ऊपर से गुज़री, विदरयुक्त ज्वालामुखी उद्गारों से दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ।
- रियूनियन हॉटस्पॉट एक ज्वालामुखीय हॉटस्पॉट है जो हिंद महासागर में रियूनियन द्वीप (फ्राँसीसी समुद्रपार क्षेत्र) के समीप स्थित है।
- दक्कन की ज्वालामुखीयता का आर्थिक महत्त्व
- प्रमुख चट्टानें: बेसाल्ट दक्कन ट्रैप में पाया जाता है तथा ग्रेनाइट और नीस की उपलब्धता दक्षिणी भारत, विशेषकर कर्नाटक और तमिलनाडु में साधारण है।
- खनिज संसाधन: कर्नाटक में लौह अयस्क प्रचुर मात्रा में है और पूर्वी घाट में बॉक्साइट पाया जाता है।
- कृषि: काली मृदा की उपस्थिति के कारण यह कपास और तंबाकू के लिये लाभदायक है।
- काली मृदा का निर्माण ज्वालामुखीय शैलों, विशेष रूप से बेसाल्ट के अपक्षय से हुआ है, जो लोहा, मैग्नीशियम, कैल्शियम और पोटेशियम जैसे खनिजों से समृद्ध है।
नोट: दक्कन ट्रैप दक्षिण भारत के महत्त्वपूर्ण भागों में विस्तृत है, जिसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के अधिकांश क्षेत्र शामिल हैं तथा तेलंगाना और केरल में इसका विस्तारण अपेक्षाकृत कम है।
भारतीय प्लेट की गति के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- गोंडवानालैंड का विखंडन: भारतीय प्लेट, पेलियोज़ोइक युग के अंत में दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, अरब, मेडागास्कर, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका के साथ गोंडवानालैंड का हिस्सा थी, जो ट्राइऐसिक काल के अंत (~215 Ma) में विखंडित होने लगी।
- लगभग 225 मिलियन वर्ष पहले तक टेथिस सागर भारत को यूरेशियन प्लेट से अलग करता था।
- पृथक्करण और विस्थापन: भारत मध्य जुरासिक (~165-150 Ma) में अफ्रीका से और प्रारंभिक क्रेटेशियस (~130-120 Ma) में अंटार्कटिका-ऑस्ट्रेलिया से अलग हुआ।
- इंडो-मेडागास्कर ब्लॉक अंटार्कटिका-ऑस्ट्रेलिया से लगभग 130-120 मिलियन वर्ष पूर्व अलग हो गया तथा सेशेल्स भारत से क्रेटेशियस-पैलियोसीन सीमा (~66 मिलियन वर्ष पूर्व) के आसपास अलग हो गया।
- दरार और मैंटल प्लम्स: दरार और मैंटल प्लम्स: मैंटल प्लम्स ने भारतीय प्लेट की दरार और विस्थापन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें महत्त्वपूर्ण बेसाल्टिक ज्वालामुखी विस्फोट भी शामिल थे।
- उदाहरण के लिये, रीयूनियन मैंटल प्लम ने भारतीय प्लेट को सेशेल्स से अलग कर दिया, जिससे डेक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ।
- एशिया से संघट्ट: इओसीन (लगभग 50-35 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान भारतीय प्लेट एशियाई प्लेट से टकराई, जिससे हिमालय पर्वत शृंखला का निर्माण हुआ और तिब्बती पठार का उत्थान हुआ।
- जैसे ही भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकराई, टेथियन सागर बंद हो गया।
- भूवैज्ञानिक प्रभाव: भारत-एशिया संघट्ट एक कठोर महाद्वीप संघट्ट है जिसके परिणामस्वरूप विश्व की सबसे बड़ी और सबसे युवा वलित पर्वत पट्टी का निर्माण हुआ जिसे हिमालय के नाम से जाना जाता है।
- इसने वैश्विक जलवायु को महत्त्वपूर्ण रूप से बदल दिया तथा भारतीय उपमहाद्वीप के लिये एक विशिष्ट मानसून प्रणाली स्थापित की।
- महाद्वीप संघट्ट तब होता है जब दो महाद्वीपीय प्लेटें आपस में टकराती हैं, जिससे विशाल पर्वत शृंखलाएँ बन जाती हैं, क्योंकि दोनों प्लेटें इतनी अधिक उत्प्लावक होती हैं कि वे मैंटल में नहीं डूब पातीं।
निष्कर्ष
अध्ययन में दक्कन ज्वालामुखी के दौरान उष्णकटिबंधीय वनस्पतियों के अनुकूलन पर प्रकाश डाला गया है, जिसके कारण जीवों के बड़े पैमाने पर विलुप्त होने की स्थिति उत्पन्न हुई, लेकिन विविध उष्णकटिबंधीय पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिला। ज्वालामुखी गतिविधि के साथ भारतीय प्लेट की गति ने वैश्विक जैव विविधता और पृथ्वी की जलवायु को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: वैश्विक जैव विविधता और जलवायु पर भारतीय प्लेट की गति के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. "छठा व्यापक विलोप /छठा विलोप" यह शब्द किसकी विवेचना के संदर्भ में समाचारों में प्रायः उल्लिखित होता है? (2018) (a) विश्व के बहुत से भागों में कृषि में व्यापक रूप मेंएकधान्य कृषि प्रथा और बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक कृषि के साथ रसायनों के अविवे की प्रयोग के परिणामस्वरूप अच्छे देशी पारितंत्र की हानि। उत्तर: (d) प्रश्न. भारत की काली कपासी मृदा का निर्माण किसके अपक्षय के कारण हुआ है? (2021) (a) भूरी वन मृदा उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न: परि-प्रशांत क्षेत्र के भू-भौतिकीय अभिलक्षणों का विवेचन कीजिये। (2020) प्रश्न: 'मैंटल प्लूम' को परिभाषित कीजिए और प्लेट विवर्तनिकी में इसकी भूमिका को स्पष्ट कीजिये। (2018) प्रश्न: इंडोनेशियाई और फिलिपीनी द्वीपसमूहों में हज़ारों द्वीपों के विरचन की व्याख्या कीजिये। (2014) |
लोकपाल स्थापना दिवस
प्रिलिम्स के लिये:लोकपाल, लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988, केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC), भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCAC), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI), द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC), ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल, लोक लेखा समिति (PAC), प्रवर्तन निदेशालय (ED) मेन्स के लिये:भ्रष्टाचार-रोधी ढाँचे में लोकपाल की भूमिका और महत्त्व, लोकपाल का सुदृढ़ीकरण |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
16 जनवरी 2025 को लोकपाल स्थापना दिवस के अवसर पर सामाजिक कार्यकर्त्ता अन्ना हजारे, न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एन. संतोष हेगड़े और अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को सम्मानित किया जाएगा।
- लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013, 16 जनवरी 2014 को प्रभावी हुआ।
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नोट: पहला लोकपाल दिवस 16 जनवरी 2025 को दिल्ली कैंट में मनाया जाएगा, जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) मुख्य अतिथि होंगे।
लोकपाल क्या है?
- परिचय: लोकपाल एक स्वतंत्र सांविधिक निकाय है जिसकी स्थापना लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत सार्वजनिक कार्यालयों में भ्रष्टाचार की रोकथाम करने और लोक पदाधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये की गई है।
- वे "लोकपाल" का कार्य करते हैं और विशिष्ट लोक पदाधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोपों और संबंधित मामलों की जाँच करते हैं।
- अधिनियम में राज्यों के लिये लोकायुक्त की स्थापना का भी प्रावधान किया गया।
- उत्पत्ति: लोकपाल/लोकायुक्त की अवधारणा स्कैंडिनेवियाई देशों की लोकपाल प्रणाली से उत्पन्न हुई है।
- भारत में, प्रशासनिक सुधार आयोग (1966-70) ने केंद्रीय स्तर पर लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्तों की स्थापना की अनुशंसा की थी।
- लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के अधिनियमित होने से पहले, कई राज्यों ने राज्य कानूनों के माध्यम से लोकायुक्त संस्था का गठन कर लिया था।
- महाराष्ट्र इस मामले में प्रथम था, जहाँ 1971 में लोकायुक्त निकाय की स्थापना की गई थी।
- वेतन और भत्ते: अध्यक्ष का वेतन और भत्ते भारत के मुख्य न्यायाधीश के समान होते हैं, जबकि सदस्यों को भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान लाभ मिलते हैं।
- लोकपाल की कार्यवाही:
- शिकायत मिलने पर, लोकपाल अपनी अन्वेषण शाखा के माध्यम से प्रारंभिक जाँच शुरू कर सकता है या मामलों को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) या केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) जैसे अभिकरणों को अग्रेषित कर सकता है।
- CVC समूह A और B के अधिकारियों के संबंध में लोकपाल को रिपोर्ट करता है, जबकि यह CVC अधिनियम, 2003 के तहत समूह C और D के संबंध में स्वतंत्र कार्रवाई करता है।
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लोकायुक्त
- परिचय: यह भारत में एक राज्य स्तरीय भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकरण है, जिसे लोक सेवकों के खिलाफ शिकायतों और आरोपों की जाँच के लिये स्थापित किया गया है।
- नियुक्ति: राज्यपाल राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता से परामर्श के बाद लोकायुक्त व उपलोकायुक्त की नियुक्ति करता है।
- कार्यकाल: अधिकांश राज्यों में लोकायुक्त का कार्यकाल 5 वर्ष अथवा 65 वर्ष की उम्र तक, जो भी पहले हो, निर्धारित है।
- पुनर्नियुक्ति की अनुमति नहीं है।
- पदच्युति; एक बार नियुक्त होने के बाद लोकायुक्त को सरकार द्वारा बर्खास्त या स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है तथा उसे केवल राज्य विधानसभा द्वारा पारित महाभियोग प्रस्ताव के माध्यम से ही हटाया जा सकता है।
लोकपाल संस्था का क्या महत्त्व है?
- भ्रष्टाचार का मुकाबला: लोकपाल और लोकायुक्तों का उद्देश्य सार्वजनिक अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की जाँच के लिये एक समर्पित मंच प्रदान करके प्रणालीगत भ्रष्टाचार को दूर करना है, जिससे भ्रष्ट आचरण को रोका जा सके तथा नैतिक शासन को बढ़ावा मिले।
- जवाबदेही बढ़ाना: ये संस्थाएँ सार्वजनिक अधिकारियों को उनके कार्यों के लिये ज़िम्मेदार ठहराकर जवाबदेही बढ़ाती हैं, जिससे सरकार में जनता का विश्वास बहाल करने में सहायता मिलती है।
- नागरिकों को सशक्त बनाना: यह अधिनियम नागरिकों को भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का अधिकार देता है तथा उन्हें शक्तिशाली अधिकारियों द्वारा प्रतिशोध से सुरक्षा प्रदान करता है।
- सुशासन को बढ़ावा देना: लोकपाल और लोकायुक्तों द्वारा स्वतंत्र निगरानी सार्वजनिक संसाधनों के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करती है और अधिकारियों को जनता के सर्वोत्तम हित में कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
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अन्य देशों में समान वैश्विक प्रथाएँ
- लोकपाल (स्कैंडिनेवियाई देश): स्वतंत्र प्राधिकारी सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध शिकायतों की जाँच करते हैं तथा निष्पक्ष व्यवहार और जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं
- भ्रष्टाचार विरोधी आयोग (हॉन्गकॉन्ग, सिंगापुर): ICAC (हॉन्गकॉन्ग) एवं CPIB (सिंगापुर) जैसी एजेंसियाँ सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार की जाँच और मुकदमा चलाती हैं।
- पब्लिक प्रोटेक्टर (दक्षिण अफ्रीका): सार्वजनिक अधिकारियों के कुप्रशासन और भ्रष्टाचार की जाँच करता है तथा उन्हें जवाबदेह ठहराता है।
- संघीय भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ब्राज़ील): उच्च पदस्थ अधिकारियों पर मुकदमा चलाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए भ्रष्टाचार जाँच की देखरेख करना।
लोकपाल से संबंधित सीमाएँ क्या हैं?
- शिकायत दर्ज करने की सीमा अवधि: लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत, सरकारी अधिकारियों के खिलाफ शिकायत कथित भ्रष्टाचार के 7 वर्ष के भीतर या जब शिकायतकर्त्ता को इसकी जानकारी हो, तब दर्ज की जानी चाहिये।
- इस समय-बद्ध प्रतिबंध के कारण भ्रष्टाचार के पुराने मामले, विशेषकर वे मामले जो बहुत बाद में पता चले, छूट सकते हैं।
- झूठी शिकायतों के लिये कठोर दंड: झूठी शिकायतें दर्ज करने पर कठोर दंड का प्रावधान, उचित होने पर भी, व्यक्तियों को शिकायत दर्ज कराने से हतोत्साहित कर सकता है।
- स्वतंत्रता के मुद्दे: लोकपाल और लोकायुक्तों को अपनी स्वतंत्रता के संबंध में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि राजनीतिक प्रभाव के कारण उनकी निष्पक्ष रूप से कार्य करने की क्षमता प्रभावित हो रही है।
- भ्रष्टाचार से निपटने में अप्रभावीता: वर्ष 2019-20 और 2023 के बीच, लोकपाल को 8,703 शिकायतें प्राप्त हुईं, जिनमें से 5,981 का समाधान किया गया, जो भ्रष्टाचार से प्रभावी ढंग से निपटने में इसकी अक्षमता को दर्शाता है।
- हालाँकि, इसने भ्रष्टाचार के लिये किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा शुरू नहीं किया है, जैसा कि अप्रैल, 2023 की संसदीय समिति की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है।
- अपवाद: प्रधानमंत्री लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय संबंध, सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबंधित मुद्दे इससे बाहर रखे गए हैं, जिससे संवेदनशील मामलों पर इसका अधिकार सीमित हो गया है।
- कोई निरीक्षण तंत्र नहीं: लोकपाल की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन करने के लिये कोई व्यापक तंत्र नहीं है, जिससे इसकी जवाबदेही को लेकर चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
आगे की राह:
- समीक्षा सीमा अवधि: विलंबित मामलों को समायोजित करने और न्याय सुनिश्चित करने के लिये शिकायत दर्ज करने की 7 वर्ष की अवधि को बढ़ाना या उसमें लचीलापन प्रदान करना।
- संतुलित दंड: दुरुपयोग को रोकने के लिये झूठी शिकायतों के लिये आनुपातिक दंड लागू तथा वैध शिकायतों को प्रोत्साहित करना।
- स्वतंत्रता सुनिश्चित करना: राजनीतिक प्रभाव के विरुद्ध सुरक्षा उपायों को मज़बूत, चयन प्रक्रियाओं में सुधार करना तथा स्वायत्तता बनाए रखने के लिये संस्थागत समर्थन प्रदान करना।
- सरकार को द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा की गई सिफारिशों को लागू करना चाहिये, जो लोकपाल की जवाबदेहिता सुनिश्चित करने, प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने तथा इसकी समग्र परिचालन दक्षता में सुधार लाने पर केंद्रित है।
- अन्य एजेंसियों के साथ स्पष्ट संबंध: CBI पर लोकपाल की पर्यवेक्षी शक्तियों का स्पष्ट चित्रण, साथ ही प्रवर्तन निदेशालय और CVC जैसी एजेंसियों के साथ सुपरिभाषित समन्वय तंत्र, क्षेत्राधिकार संबंधी विवादों से बचने तथा अंतर-एजेंसी सहयोग को बढ़ाने के लिये आवश्यक है।
- वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: भारत को भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCAC) के अनुरूप अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं, विशेष रूप से मज़बूत व्हिसलब्लोअर संरक्षण कानूनों वाले देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं को एकीकृत करना चाहिये।
- इससे नागरिकों को प्रतिशोध के भय के बिना भ्रष्टाचार की रिपोर्ट करने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे भ्रष्टाचार विरोधी उपायों की प्रभावशीलता में वृद्धि होगी।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में भ्रष्टाचार से निपटने में लोकपाल की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। इसके समक्ष कौन-सी प्रमुख चुनौतियाँ हैं तथा इसकी प्रभावशीलता को कैसे बढ़ाया जा सकता है? चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. 'ट्रान्स्पेरेन्सी इन्टरनेशनल' के ईमानदारी सूचकांक में, भारत काफी नीचे के पायदान पर है। संक्षेप में उन विधिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों पर चर्चा कीजिये, जिनके कारण भारत में सार्वजनिक नैतिकता का ह्रास हुआ है। (2016) प्रश्न. 'राष्ट्रीय लोकपाल कितना भी प्रबल क्यों न हो, सार्वजनिक मामलों में अनैतिकता की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता।' विवेचना कीजिये। (2013) |