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भारतीय अर्थव्यवस्था

खाद्य तेलों में वृद्धि हेतु नीति आयोग की रणनीतियाँ

  • 30 Aug 2024
  • 19 min read

प्रिलिम्स के लिये:

तिलहन क्षेत्र, नीति आयोग, खाद्य तेल, फसलें

मेन्स के लिये:

भारत में खाद्य तेल क्षेत्र का परिदृश्य, भारत में खाद्य तेल क्षेत्र में चुनौतियाँ, नीति आयोग की सिफारिशें

स्रोत: पी. आई. बी. 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग द्वारा “आत्मनिर्भरता के लक्ष्य की दिशा में खाद्य तेलों में वृद्धि को गति देने के लियेमार्ग और रणनीति” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई।

  • रिपोर्ट में वर्तमान खाद्य तेल क्षेत्र का विश्लेषण और भविष्य की संभावनाओं को रेखांकित किया गया है तथा चुनौतियों से निपटने के लिये विस्तृत रोडमैप प्रस्तुत किया गया है, जिसका उद्देश्य मांग-आपूर्ति के अंतर को कम करना एवं आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है।

रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?

  • तिलहन उत्पादन और क्षेत्र: नौ प्रमुख तिलहन फसलें (मूंगफली, सरसों, सोयाबीन, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, नाइजर बीज, अरंडी तथा अलसी) सकल फसल क्षेत्र का 14.3% कवर करती हैं, जो आहार ऊर्जा में 12-13% एवं कृषि निर्यात में लगभग 8% का योगदान देती हैं।
    • कुल तिलहन उत्पादन में सोयाबीन का योगदान 34% है, जिसके बाद रेपसीड-सरसों (31%) और मूंगफली (27%) का स्थान है।
  • क्षेत्रीय उत्पादन वितरण: राजस्थान और मध्य प्रदेश शीर्ष उत्पादक हैं, दोनों राष्ट्रीय उत्पादन में लगभग 21.42% का योगदान करते हैं।
    • गुजरात (17.24%) और महाराष्ट्र (15.83%) भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
  • बढ़ती खपत और आयात निर्भरता: खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति खपत पिछले दशक में बढ़कर 19.7 किलोग्राम/वर्ष हो गई है।
    • घरेलू उत्पादन मांग का केवल 40-45% ही पूरा करता है। समग्र खपत में वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप आयात 1986-87 में 1.47 मीट्रिक टन से बढ़कर 2022-23 में 16.5 मीट्रिक टन हो गया है, जिससे आयात निर्भरता अनुपात 57% तक बढ़ गया है।
    • इन आयातों में पाम तेल का प्रभुत्व है, जो 59% है, इसके बाद सोयाबीन (23%) और सूरजमुखी (16%) का स्थान है।
  • विकास के रुझान: वर्ष 1980-81 से 2022-23 तक तिलहन क्षेत्र, उत्पादन और उपज क्रमशः 0.90%, 2.84% तथा 1.91% की दर से बढ़ी।
    • हाल के दशक में उत्पादन और उपज वृद्धि दर में सुधार हुआ तथा यह 2.12% तथा 1.53% हो गई। वर्ष 1991-2000 को छोड़कर सभी दशकों में तिलहनों के अंतर्गत क्षेत्रफल में वृद्धि हुई।
    • रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि नौ प्रमुख तिलहनों का उत्पादन वर्ष 2030 तक 43 मीट्रिक टन और वर्ष 2047 तक 55 मीट्रिक टन हो जाएगा, जो कि सामान्य व्यवसाय (Business as Usual- BAU) परिदृश्य के तहत 2021-22 में 37.96 मीट्रिक टन से अधिक है।
  • मांग पूर्वानुमान हेतु दृष्टिकोण: 
    • स्थिर/घरेलू दृष्टिकोण:
      • जनसंख्या अनुमानों और प्रति व्यक्ति आधारभूत उपभोग डेटा का उपयोग करता है।  
      • अल्पकालिक स्थिर उपभोग व्यवहार को मानता है।
      • वर्ष 2030 तक 14.1 मीट्रिक टन और वर्ष 2047 तक 5.9 मीट्रिक टन की मांग-आपूर्ति अंतर का अनुमान है।
    • मानक दृष्टिकोण:
      • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद - राष्ट्रीय पोषण संस्थान(ICMR-NIN) द्वारा अनुशंसित सेवन स्तरों के आधार पर। 
      • वर्ष 2030 तक 0.13 मीट्रिक टन और वर्ष 2047 तक 9.35 मीट्रिक टन की संभावित अधिशेषता का संकेत देता है।
    • व्यवहारवादी दृष्टिकोण:
      • बदलती जीवनशैली और आय स्तर के कारण व्यवहार में होने वाले बदलावों पर विचार करता है।
      • परिदृश्य I: खपत प्रति व्यक्ति 25.3 किलोग्राम पर सीमित।
        •  मांग-आपूर्ति अंतर: वर्ष 2030 तक 22.3 मीट्रिक टन, 2047 तक 15.20 मीट्रिक टन होने का अनुमान है। 
      • परिदृश्य II: प्रति व्यक्ति 40.3 किलोग्राम की उच्च खपत।
        • मांग-आपूर्ति अंतर: वर्ष 2030 तक 29.5 मीट्रिक टन, वर्ष 2047 तक 40 मीट्रिक टन तक बढ़ सकता है।
    • BAU की स्थिति: अनुमान है कि वर्ष 2028 तक अंतर परिदृश्य-I तथा वर्ष 2038 तक परिदृश्य-II हो जाएगा।
    • उच्च आय वृद्धि परिदृश्य: वर्ष 2025 तक परिदृश्य-I और वर्ष 2031 तक परिदृश्य-II तक उन्नत मांग।

खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?

  • नीति आयोग की रिपोर्ट में इस अंतर को पाटने तथा दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये रणनीतिक हस्तक्षेप का सुझाव दिया गया है।
    • यह रणनीति तीन स्तंभों पर केंद्रित है:
      • संभावित क्षेत्रों में फसल प्रतिधारण और विविधीकरण:
        • तिलहन फसलों को बनाए रखने और उनमें विविधता लाने से उत्पादन में 20% की वृद्धि हो सकती है, जिससे 7.36 मीट्रिक टन की वृद्धि होगी तथा आयात में 2.1 मीट्रिक टन की कमी आएगी।
      • क्षैतिज विस्तार:
        • चावल की परती भूमि के एक तिहाई भाग का उपयोग तिलहन के लिये करने से उत्पादन में 3.12 मिलियन टन की वृद्धि हो सकती है तथा आयात में 1.03 मिलियन टन की कमी आ सकती है।
        • कृषि के क्षेत्र का विस्तार करना, चावल की परती भूमि और बंजर भूमि का उपयोग तिलहन एवं ताड़ की कृषि के लिये करना।
      • ऊर्ध्वगामी विस्तार:
  • रिपोर्ट में उल्लिखित 'राज्य-वार चतुर्थभाग दृष्टिकोण' खाद्य तेलों में "आत्मनिर्भरता" प्राप्त करने के लिये एक मूल्यवान उपकरण प्रदान करता है। 
    • रिपोर्ट में चार चतुर्भुजों का उपयोग करके राज्य समूहों की पहचान की गई है:
      • उच्च क्षेत्र-उच्च उपज (HA-HY) राज्य: दक्षता में सुधार करने और अग्रणी वैश्विक उत्पादकों से सर्वोत्तम विधियों को अपनाने पर फोकस कर सकते हैं।
      • उच्च क्षेत्र-कम उपज (HA-LY) राज्य: राज्यों को ऊर्ध्वगामी विस्तार (यानी उपज बढ़ाने) के उद्देश्य से हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। 
      • कम क्षेत्र-उच्च उपज (LA-HY) राज्य: दक्षता बनाए रखते हुए क्षैतिज विस्तार पर फोकस तथा कृषि का विस्तार किया जा सकता है। 
      • कम क्षेत्र-कम उपज (LA-LY) राज्य: क्षेत्र एवं उपज बढ़ाने के लिये क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर विस्तार दोनों पर फोकस करने की आवश्यकता है।
  • रणनीतिक हस्तक्षेप: इससे वर्ष 2030 तक 36.2 मीट्रिक टन और वर्ष 2047 तक 70.2 मीट्रिक टन खाद्य तेल की आपूर्ति हो सकती है, जिससे अधिकांश परिदृश्यों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित हो सकती है।
  • तकनीकी हस्तक्षेप: बीज उपयोग और प्रसंस्करण को अनुकूलित करने से उत्पादन में 15-20% की वृद्धि हो सकती है, जबकि बेहतर प्रबंधन के साथ संभावित रूप से 45% तक वृद्धि हो सकती है। वर्तमान बीज प्रतिस्थापन अनुपात (SRR) कम है, जो 25% (मूंगफली) से लेकर 62% (रेपसीड सरसों) के बीच है, जिससे उपज प्रभावित होती है।
    • मिलों का आधुनिकीकरण करना और प्रसंस्करण अवसंरचना में निवेश करना आवश्यक है, क्योंकि वर्तमान मिलें केवल 30% रिफाइनिंग क्षमता पर काम करती हैं, जिनमें से कई छोटे पैमाने की एवं कम तकनीक वाली हैं।

भारत में खाद्य तेल क्षेत्र में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • वर्षा आधारित उत्पादन निर्भरता: तिलहन की 76% कृषि वर्षा आधारित है, जो कुल उत्पादन का 80% योगदान देती है, जिससे यह अनियमित मौसम पैटर्न के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
    • पिछले दशक में सिंचाई कवरेज में केवल 4% (23% से 27% तक) की मामूली वृद्धि हुई।
  • मांग-आपूर्ति अंतर: भारत को मांग-आपूर्ति के बीच पर्याप्त अंतर का सामना करना पड़ रहा है, जिससे घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये आयात पर अधिक निर्भरता है।
    • सत्र 2022-23 में भारत की खाद्य तेल आवश्यकताओं का 60% आयात से पूरा होगा, जिसमें पाम ऑयल, सोयाबीन तेल और सूरजमुखी तेल प्रमुख योगदानकर्त्ता होंगे।
  • बढ़ी हुई खपत: खाद्य तेलों की प्रति व्यक्ति खपत सालाना लगभग 19 किलोग्राम (पिछले दशक में) तक बढ़ गई है।
  • किसानों पर प्रभाव: कम आयात शुल्क और उच्च आयात ने घरेलू तिलहन किसानों के लिये मूल्य प्राप्ति को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।
    • सरकार द्वारा आयात शुल्क में कमी का उद्देश्य खुदरा मूल्य में वृद्धि को रोकना है, लेकिन कम शुल्क के परिणामस्वरूप भारत में सस्ते तेलों की प्रवाह बढ़ सकता है, जिससे स्थानीय किसान एवं प्रसंस्करणकर्त्ता प्रभावित हो सकते हैं।

नीति आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशें क्या हैं?

  • बुंदेलखंड और भारत-गंगा के मैदान में तिलहन विकास को प्रोत्साहन:
    • आय बढ़ाने के लिये तिलहन, विशेष रूप से तिल के लिये बुंदेलखंड को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
    • मुनाफे को बढ़ाने, मृदा और जल की समस्याओं को दूर करने के लिये भारत-गंगा के मैदान में सोयाबीन, रेपसीड-सरसों तथा सूरजमुखी की खेती शुरू करने की आवश्यकता है।
  • पाम विस्तार के लिये बंजर भूमि के उपयोग को प्राथमिकता:
  • क्लस्टर-आधारित बीज गाँव:
    • उच्च गुणवत्ता वाले तिलहन आपूर्ति के लिये ब्लॉक स्तर परएक ब्लॉक-एक बीज गाँव केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये, FPO के माध्यम से SRR और VRR को बढ़ाने चाहिये।
  • जैव-प्रतिबलित तिलहन की किस्मों का संवर्द्धन:
    • तिलहन पोषण में सुधार लाने और पोषण-रोधी कारकों को कम करने के लिये राष्ट्रीय मिशनों में जैवप्रबलीकरण (Biofortification) को एकीकृत किया जाना चाहिये।
    • जारी की गई 14 जैव-प्रतिबलित किस्मों का उपयोग करने में 10-12% का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित कर इनके उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • राज्य स्तरीय सीड रोलिंग योजनाएँ और गुणवत्ता मानक:
  • उन्नत किस्मों के प्रयोग से उपज में वृद्धि:
    • उच्च क्षमता वाली भारतीय तिलहन किस्मों के उत्पादन को बढ़ाना तथा उपज एवं गुणवत्ता को बढ़ावा देने के लिये उन्नत प्रजनन तकनीकों को प्रयोग में लाना।
  • चावल की भूसी के तेल का उपयोग करना:
    • बड़े पैमाने पर उत्पादन और अंतर्राष्ट्रीय नियमों के साथ मानकीकरण का लक्ष्य निर्धारित करते हुए खाना पकाने के तेलों के साथ चावल की भूसी के तेल का उपयोग करना।
  • विलायक निष्कर्षण दक्षता में सुधार:
    • सुविधाओं का आधुनिकीकरण करके और मिल प्रबंधन में सुधार करके विलायक निष्कर्षण संयंत्रों के अल्प क्षमता उपयोग (लगभग 30%) को संबोधित करना ताकि इनकी उपयोगिता लगभग 60% की जा सके।
  • भंडारण लाभप्रदता का संतुलन:
    • बाज़ार स्थिरता सुनिश्चित करने और साथ ही ऑफ-सीज़न में बिक्री को प्रोत्साहित करते हुए उपभोक्ता की सामर्थ्य के साथ ऑफ-सीज़न भंडारण लागत को संतुलित करने हेतु मूल्य निर्धारण की उचित प्रक्रियाओं का क्रियान्वन करना।
  • विपणन अवसंरचना को उन्नत बनाना:
  • परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना:
  • पाम ऑयल क्षेत्र की दक्षता बढ़ाना:
    • बड़े पैमाने पर पाम ऑयल बागानों और बीज उद्यानों को बढ़ावा देना, पाम ऑयल को बागान फसल घोषित करके विनियमन को सुव्यवस्थित करना तथा उप-उत्पादों का उपयोग करने के लिये ज़ीरो-वेस्ट नीतियों को लागू करना।

निष्कर्ष

भारत के खाद्य तेल क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिये रणनीतिक उपायों में फसल विविधीकरण, क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर विस्तार तथा बेहतर प्रसंस्करण के माध्यम से तिलहन उत्पादन को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। बीज की गुणवत्ता को अनुकूलित करके, बुनियादी ढाँचे का आधुनिकीकरण करके तथा बंजर भूमि का प्रभावी ढंग से उपयोग करके, भारत आयात निर्भरता को काफी हद तक कम कर सकता है एवं भविष्य की मांग को पूरा कर सकता है। 2030 और उसके बाद खाद्य तेल क्षेत्र में सतत् विकास तथा अनुकूलन सुनिश्चित करने हेतु इन उपायों को अपनाना महत्त्वपूर्ण होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के खाद्य तेल क्षेत्र के संदर्भ में वर्तमान चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये और वर्ष 2030 तक आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये एक व्यापक रणनीति प्रस्तावित कीजिये।

  UPSC सिवल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. पिछले पाँच वर्षों में आयातित खाद्य तेलों की मात्रा, खाद्य तेलों के घरेलू उत्पादन से अधिक रही है। 
  2. सरकार विशेष स्थिति के तौर पर भी सभी आयातित खाद्य तेलों पर किसी प्रकार का सीमा शुल्क नहीं लगाती।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)

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