प्रारंभिक परीक्षा
दस वर्षों में धान की सबसे कम बुआई
- 19 Jul 2024
- 8 min read
स्रोत: डाउन टू अर्थ
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा जून 2024 में जारी आँकड़ों के अनुसार, धान की बुआई का क्षेत्र अभी तक केवल 2.27 मिलियन हेक्टेयर (mha) ही रहा।
- जून 2024 में भारत की प्राथमिक खरीफ फसल धान की बुआई का क्षेत्र, वर्ष 2015 के सूखा प्रभावित वर्ष के अतिरिक्त, विगत एक दशक में सबसे कम रहा।
धान की बुआई के क्षेत्र में हुई कमी के क्या कारण हैं?
- ऐतिहासिक तुलना:
- फसल मौसम निगरानी समूह के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 और वर्ष 2017 में धान की खेती का क्षेत्रफल क्रमशः 3.90 मिलियन हेक्टेयर तथा 3.89 मिलियन हेक्टेयर था एवं तब से इसमें 3.60 मिलियन हेक्टेयर व 2.69 मिलियन हेक्टेयर के बीच उतार-चढ़ाव होता रहा है तथा जून 2023 के आँकड़ों में क्षेत्रफल जून 2024 से थोड़ा अधिक था।
- धान की बुआई में गिरावट के कारण:
- वर्षा के प्रतिरूप में परिवर्तन: किसानों ने धान की बुआई हेतु आवश्यक पर्याप्त वर्षा को लेकर आशंकाएँ व्यक्त करते हुए जून माह के स्थान पर जुलाई माह में बुआई करने का निर्णय लिया।
- यह बदलाव हाल के वर्षों में देखी गई वर्षा के अनियमित पैटर्न के कारण है। उदाहरण के लिये, जून 2024 में 11% वर्षा की कमी थी।
- इन प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण लाखों किसानों के लिये जून माह अब खरीफ फसलों की बुआई के लिये उपयुक्त नहीं रहा।
- कृषि संबंधी आवश्यकताएँ: धान की खेती करने के दौरान रोपाई के समय लगातार दो सप्ताह तक खेतों को 10 सेमी. की ऊँचाई तक जल से भरने की आवश्यकता होती है।
- शुष्क जून का प्रभाव: जून माह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत का प्रतीक है जो भारत की 61% वर्षा आधारित कृषि के लिये आवश्यक मृदा को आद्रता प्रदान करता है। शुष्क जून के परिणामस्वरूप ज़मीन में आद्रता का स्तर अपर्याप्त होता है जिससे किसानों के लिये फसल की बुआई करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
- डाउन टू अर्थ द्वारा भारत के 676 ज़िलों को कवर करते हुए 1988-2018 की अवधि के आँकड़ों के विश्लेषण के अनुसार 62% ज़िलों में जून माह की वर्षा का स्तर कम रहा।
- वर्षा के प्रतिरूप में परिवर्तन: किसानों ने धान की बुआई हेतु आवश्यक पर्याप्त वर्षा को लेकर आशंकाएँ व्यक्त करते हुए जून माह के स्थान पर जुलाई माह में बुआई करने का निर्णय लिया।
- निहितार्थ:
- इन बदलावों के कारण फसल का परंपरागत कैलेंडर, जिसमें औसत वर्षा और तापमान के साथ-साथ बुआई तथा कटाई का समय उल्लिखित है, प्रासंगिक नहीं रहा।
- जून 2024 के अंत तक धान की बुआई के क्षेत्र में हुई गिरावट भारतीय कृषि के समक्ष विद्यमान व्यापक चुनौतियों, विशेष रूप से अनियमित मानसून पैटर्न के प्रभाव का संकेत है।
- हालाँकि अन्य खरीफ फसलों के बुआई क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है किंतु समग्र प्रवृत्ति जलवायु की बदलती परिस्थितियों से निपटने के लिये बेहतर मौसम पूर्वानुमान और अनुकूली कृषि पद्धतियों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
खरीफ फसलें क्या हैं?
- खरीफ फसलें वे फसलें हैं जो बरसात के मौसम में बोई जाती हैं, जो आमतौर पर जून में दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत के साथ शुरू होती हैं, जबकि फसल विपणन सीज़न अक्तूबर 2024 से सितंबर 2025 तक चलेगा।
- खरीफ की कुछ प्रमुख फसलें धान, मक्का, बाजरा, दालें, तिलहन, कपास और गन्ना हैं।
- भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन में खरीफ फसलों का योगदान लगभग 55% है।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में आगामी 2024-25 खरीफ विपणन सत्र के लिये धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को 5.35% बढ़ाकर 2,300 रुपए प्रति क्विंटल करने को मंज़ूरी दी।
- मंत्रिमंडल ने सभी 14 खरीफ सीजन की फसलों के लिये MSP बढ़ोतरी को मंज़ूरी दे दी है, जो सरकार की “स्पष्ट नीति” के अनुरूप है, जिसमें MSP को सरकार द्वारा गणना की गई उत्पादन लागत से कम-से-कम 15 गुना अधिक रखने की बात कही गई है।
- हालाँकि इनमें से केवल चार फसलों के MSP ऐसे हैं जो किसानों को उनकी उत्पादन लागत से 50% से अधिक का मार्जिन प्रदान करेंगे अर्थात् बाजरा (77%), उसके बाद अरहर दाल (59%), मक्का (54%) और काला चना (52%)।
- वर्ष 2024 में MSP वृद्धि से कुल 2 लाख करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ पड़ने की संभावना है, जो पिछले सीज़न की तुलना में लगभग 35,000 करोड़ रुपए अधिक है।
और पढ़ें: केंद्र खरीफ फसलों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं? (a) केवल एक उत्तर: c प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: D |