सामाजिक न्याय
सिल्वर इकॉनमी
- 23 Oct 2021
- 13 min read
चर्चा में क्यों?
भारत में बुजुर्ग आबादी बढ़ रही है। सर्वेक्षणों के अनुसार, देश में कुल जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में बुजुर्गों की हिस्सेदारी वर्ष 2011 के 8.6% से बढ़कर वर्ष 2036 तक लगभग 12.5% और वर्ष 2050 तक 19.5% से अधिक होने की उम्मीद है।
- भारत में बुजुर्ग आबादी में अनुमानित तेज़ वृद्धि को देखते हुए विशेष रूप से कोविड के बाद के चरण में बुजुर्गों की देखभाल के लिये अधिक मज़बूत इकोसिस्टम बनाने की तत्काल आवश्यकता है।
प्रमुख बिंदु
- बुजुर्ग एक संसाधन के रूप में: वृद्ध व्यक्तियों पर राष्ट्रीय नीति (NPOP), 1999 कहती है कि बुजुर्ग ऐसे संसाधन हैं जिन्हें आर्थिक विकास का एक हिस्सा होना चाहिये।
- सिल्वर अर्थव्यवस्था की मज़बूती के लिये इन लोगों को निष्क्रिय प्राप्तकर्त्ताओं के बजाय सक्रिय प्रतिभागियों के रूप में अर्थव्यवस्था में एकीकृत करना होगा।
- सिल्वर अर्थव्यवस्था: सिल्वर अर्थव्यवस्था वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण और खपत की प्रणाली है जिसका उद्देश्य वृद्ध और वरिष्ठ लोगों की क्रय क्षमता का उपयोग करना और उनके उपभोग, जीवन और स्वास्थ्य की ज़रूरतों को पूरा करना है।
- शुरुआती अनुमान बताते हैं कि फिलहाल सिल्वर इकॉनमी करीब 73,082 करोड़ रुपए की है।
- सिल्वर अर्थव्यवस्था के लिये पहल: सरकार सिल्वर अर्थव्यवस्था के विचार को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न कदम उठा रही है।
- सिल्वर अर्थव्यवस्था पर विशेषज्ञ समूह की सिफारिशों के आधार पर निजी उद्यमों को बढ़ावा देने के लिये SAGE पहल शुरू की गई है जो बुजुर्गों के लाभप्रद उत्पादों और प्रक्रियाओं में नवाचार लाते हैं।
- हाल ही में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू द्वारा निजी क्षेत्र में नौकरी प्रदाताओं के साथ वरिष्ठ नागरिकों को जोड़ने के लिये SACRED पोर्टल लॉन्च किया गया।
भारत में बुजुर्ग
- संवैधानिक प्रावधान: संविधान के अनुच्छेद 41 में कहा गया है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता और विकास की सीमा के भीतर बेरोज़गारी, वृद्धावस्था, बीमारी एवं अपंगता के मामलों में शिक्षा, सार्वजनिक सहायता व काम के अधिकार हासिल करने के लिये प्रभावी प्रावधान करेगा।
- जनसंख्या : वर्ष 2011 की जनगणना में 60+ जनसंख्या की दर भारत की जनसंख्या का 8.6% थी।
- सालाना लगभग 3% की दर से बढ़ते हुए वर्ष 2050 में बुजुर्गों की संख्या 319 मिलियन (कुल जनसंख्या का ~ 20%) हो जाएगी।
- बुजुर्ग महिलाएँ: बुजुर्ग महिलाओं की विशेष रूप से देखभाल की जानी चाहिये, क्योंकि महिलाओं की उम्र पुरुषों की तुलना में लंबी होती है।
- ऐसे में वृद्ध महिलाओं के लिये अवसरों की अनुपलब्धता उन्हें दूसरों पर निर्भर बना देगी और उनके अस्तित्व से जुड़ी कई कमज़ोरियों से उजागर कर देती है।
- हाल के दिनों में सुधार: हाल के दिनों में अधिक-से-अधिक बुजुर्ग अकेले रह रहे हैं, अतः वरिष्ठ नागरिक आवास और उनके लिये सुरक्षा एवं स्वास्थ्य उपकरणों के विकास की आवश्यकता है। ये सभी पहल स्टार्टअप सेक्टर से हो रही हैं।
- हालाँकि बुजुर्ग आबादी का एक बड़ा वर्ग गरीब है और इन सुविधाओं के दायरे से उनके बाहर होने की संभावना सबसे अधिक है।
अर्थव्यवस्था में बुजुर्गों को शामिल करने के लिये फोकस का केंद्र:
- पुनः कौशल प्रदान करना: जो पीढ़ी बुजुर्ग होती जा रही है उसे वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुसार पुनः कुशल प्रदान करने की आवश्यकता है क्योंकि कम उम्र में जो सीखा जाता है उसे फिर से याद करने की आवश्यकता होती है ताकि वे वृद्धावस्था में अपनी अधिकतम क्षमता का योगदान कर सकें।
- कामकाजी उम्र की आबादी के प्रति व्यवहार में बदलाव: भारत में 58 साल की उम्र को सेवानिवृत्त होने और काम नहीं करने के लिये उपयुक्त माना जाता है।
- हालाँकि अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में सेवानिवृत्ति के लिये कोई अधिकतम आयु नहीं है।
- यह सुनिश्चित करने के लिये व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता है कि बुजुर्ग सक्रिय भागीदार के रूप में देश के लिये योगदान दे रहे हैं।
भारत में बुजुर्गों के लिये पहल:
- SACRED पोर्टल
- SAGE (सीनियरकेयर एजिंग ग्रोथ इंजन)
- Elder Line (अखिल भारतीय बुजुर्ग सहायता हेतु टोल फ्री नंबर)
- वृद्ध व्यक्तियों के लिये एकीकृत कार्यक्रम (IPOP)
- राष्ट्रीय वयोश्री योजना (RVY)
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS)
- प्रधानमंत्री वय वंदना योजना
- वयोश्रेष्ठ सम्मान
- माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (MWPSC) अधिनियम, 2007
अर्थव्यवस्था में बुजुर्गों को शामिल करने का महत्त्व
- सामाजिक और व्यावसायिक अनुभव: बुजुर्ग लोग अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन का अपार अनुभव रखते हैं। बड़े पैमाने पर समाज को बेहतर कल के लिये उन अनुभवों को चैनलाइज़ करने की ज़रूरत है।
- वे आने वाली पीढ़ियों के लिये एक महत्त्वपूर्ण पीढ़ीगत लिंक प्रदान कर सकते हैं। यह बड़े पैमाने पर परिवारों और समाज को समर्थन व स्थिरता प्रदान कर सकता है।
- नैतिक मूल्यों को विकसित करना: संयुक्त परिवारों में दादा-दादी अपने शुरुआती वर्षों में मूल्यों और नैतिकता को युवा पीढ़ी में स्थानांतरित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो बेहतर इंसान व ज़िम्मेदार नागरिक बनाने में सहायक हो सकता है।
- एकीकृत समाज: वरिष्ठों के योगदान को स्वीकार करने से हमारे समाज को एक अधिक आयु-समावेशी समाज बनाने में मदद मिलेगी जो एक पीढ़ी को दूसरी पीढ़ी के खिलाफ खड़ा नहीं करता बल्कि सामंजस्य बनाने में सहायता करेगा।
- भारत को भविष्य के लिये तैयार होने की आवश्यकता: भारत को वर्ष 2050 से आगे की तैयारी करने की ज़रूरत है, जब बुजुर्ग आबादी भारतीय आबादी का सबसे बड़ा वर्ग होगा।
- अर्थव्यवस्था में सक्रिय योगदानकर्त्ताओं के रूप में बुजुर्गों को शामिल करना भारत को भविष्य के लिये तैयार करेगा, जब इसकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा वृद्ध होगा।
संबंधित मुद्दे
- असंगठित क्षेत्रों में बुजुर्गों की स्थिति: SAGE पहल संगठित अर्थव्यवस्था के बारे में बात करती है, न कि असंगठित क्षेत्र के बारे में जिस कारण बड़ी संख्या में बुजुर्ग लाभ के दायरे से बाहर हो जाते हैं।
- जो लोग बाज़ार से जुड़े नहीं हैं वे या तो पैसे की कमी के कारण या प्रौद्योगिकी तक पहुँच की कमी के कारण उत्पादों तक नहीं पहुँच पा रहे हैं।
- पुनः कौशल प्रदान करने में आने वाली समस्या: बुजुर्ग आबादी को बड़े पैमाने पर पुनः कौशल प्रदान करने के लिये उचित तकनीक, सुविधाएँ आदि सुनिश्चित करना एक चुनौती है।
- उदाहरण के लिये सेना के पास सेवानिवृत्त अधिकारियों को नागरिक व्यवस्था में एकीकृत करने का एक उत्कृष्ट व्यवस्थित तरीका है।
- हालाँकि सिस्टम के एक हिस्से के रूप में पुनः कौशल प्रदान करना काफी बड़ा काम है और यह कुछ ही क्षेत्रों में संभव है।
- नो-रिटायरमेंट से संबंधित मुद्दे: सेवानिवृत्ति की आयु को हटाना एक ऐसी अर्थव्यवस्था के लिये समस्या पैदा करता है जो अभी भी जनसांख्यिकीय लाभांश से निपट रही है, जैसे कि भारत।
- सवाल यह उठता है कि क्या बुजुर्ग उसी नौकरी में या किसी ऐसे काम जो उन्होंने पहले कभी नहीं किया है, में कुशल होंगे, अतः ऐसी नौकरी चुनने के लिये प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
- सुविधाओं, उत्पादों तक पहुँच का एकमात्र माध्यम के रूप में डिजिटल माध्यम की उपलब्धता: भारत के वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए सिर्फ डिजिटल माध्यम के ज़रिये प्रत्येक बुजुर्ग तक सुविधा प्रदान करना एक बुद्धिमान विकल्प नहीं है, अतः इसके लिये वैकल्पिक विकल्प भी उपलब्ध कराने होंगे।
आगे की राह
- समुदाय आधारित दृष्टिकोण: यूरोप जैसे देश में छोटे समुदाय हैं जहाँ बुजुर्गों की देखभाल और समुदाय से संबंधित सुविधाएँ उपलब्ध हैं; समुदाय के स्वयंसेवक बुजुर्गों की मदद करते हैं।
- भारत को दूर-दराज़ के इलाकों में बुजुर्गों की मदद के लिये इस तरह की युवा सेना बनाने की ज़रूरत है।
- साथ ही बुजुर्गों के लिये यह अधिक महत्त्वपूर्ण है कि इन उत्पादों और सेवाओं को केवल डिजिटल प्लेटफॉर्म के बजाय उनके समुदायों के भीतर उपलब्ध कराया जाए।
- बुजुर्गों को मुख्यधारा में एकीकृत करना: केवल बुजुर्गों के लिये नई आवास प्रणालियों का निर्माण या एक नया पारिस्थितिकी तंत्र बनाना विश्वसनीय समाधान नहीं है। बुजुर्गों को आइसोलेशन कॉम्प्लेक्स या अकेलेपन का शिकार नहीं बनाया जाना चाहिये।
- बुजुर्गों का सबसे अच्छा आर्थिक और सामाजिक लाभ लेने का तरीका यह है कि उन्हें बाकी आबादी से अलग न किया जाए बल्कि उन्हें मुख्यधारा में आत्मसात कर लिया जाए।
- अमेरिका और यूरोपीय देशों के रास्ते पर चलना और बुजुर्गों को मुख्यधारा से अलग करना भारत जैसे देश के लिये सबसे अच्छा तरीका नहीं हो सकता है, जहाँ दादा-दादी परिवार के बच्चों को नैतिक मूल्य प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- कल्याणकारी योजनाओं को बुजुर्ग-समावेशी बनाना: बुजुर्गों के बड़े वर्ग को कल्याणकारी योजनाओं के दायरे में लाना।
- इसका परिप्रेक्ष्य व्यापक होना चाहिये। उन्हें केवल उत्पादों और सेवाओं को बेचने की तुलना में अर्थव्यवस्था में उत्पादकों के रूप में शामिल करने के तरीकों पर कार्य करना चाहिये।
- बुजुर्गों के अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि कवरेज अंतिम व्यक्ति तक हो।