डेली न्यूज़ (15 Jul, 2023)



इंडिया मोबाइल कॉन्ग्रेस 2023

प्रिलिम्स के लिये:

इंडिया मोबाइल कॉन्ग्रेस (IMC), आत्मनिर्भर भारत पहल, साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

मेन्स के लिये:

भारत के डिजिटल परिवर्तन में इंडिया मोबाइल कॉन्ग्रेस का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मिनिस्ट्री फॉर कम्युनिकेशंस एंड सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) द्वारा इंडिया मोबाइल कॉन्ग्रेस (IMC) 2023 के 7वें संस्करण का उद्घाटन किया गया।

  • IMC 2023 का विषय "वैश्विक डिजिटल नवाचार" है, जिसका उद्देश्य भारत को एक अग्रणी प्रौद्योगिकी डेवलपर, दूरसंचार विनिर्माता और निर्यातक के रूप में स्थापित करना है।

IMC 2023: 

  • इंडिया मोबाइल कॉन्ग्रेस (2023) एक प्रमुख वार्षिक कार्यक्रम है जो मोबाइल और डिजिटल प्रौद्योगिकी क्षेत्र में नवीनतम प्रगति और नवाचारों को प्रदर्शित करता है। 
  • यह उद्योग के अभिकर्त्ताओं, नीति निर्माताओं, प्रौद्योगिकी समर्थक और हितधारकों को एक साथ आने और डिजिटल परिदृश्य के भविष्य पर चर्चा करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।

IMC प्रौद्योगिकी और समाज कल्याण को प्रोत्साहन:  

  • भारत ने दूरसंचार क्षेत्र के कई पहलुओं में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है, जैसे आत्मनिर्भर भारत योजना, 5G तकनीक का 6G तकनीक से प्रतिस्थापन एवं  6G के रोडमैप का विकास।
  • नवाचार और स्वदेशी प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना:
    • IMC 2023 उद्योग के अभिकर्त्ताओं, स्टार्टअप और शिक्षाविदों के बीच सहयोग की सुविधा प्रदान करके एक अभिनव पारिस्थितिकी तंत्र के पोषण पर केंद्रित है
    • कम-से-कम 100 विश्वविद्यालयों की भागीदारी के साथ आयोजन में छात्रों का समावेश, ज्ञान-साझाकरण के लिये एक मंच प्रदान करता है और युवाओं को डिजिटल परिवर्तन में योगदान करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • यह आयोजन आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण का समर्थन करने के लिये दूरसंचार और सेमीकंडक्टर विनिर्माण सहित स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के विकास पर ज़ोर देता है।
  • भारत की तकनीकी उन्नति पर IMC का प्रभाव:
    • IMC ने भारत के तकनीकी परिवर्तन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, देश में तेज़ी से बढ़ते 5जी रोलआउट ने आत्मनिर्भर भारत की पहल और 6जी तकनीक के रोडमैप में योगदान दिया है।
  • विस्तारित क्षितिज:
  • साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करना:  
    • साइबर सुरक्षा के महत्त्व को पहचानते हुए IMC 2023 ने उपभोक्ताओं के समक्ष आने वाले साइबर खतरों को संबोधित करने के लिये एक समर्पित अनुभाग की व्यवस्था की है है, जिसका उद्देश्य साइबर धोखाधड़ी से संगठनात्मक और सार्वजनिक सुरक्षा प्रदान करना है।
    • यह जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ प्रभावी साइबर सुरक्षा उपायों पर आयोजित डिजिटल बुनियादी ढाँचे और गोपनीयता की सुरक्षा में योगदान देता है।
  • आभासी प्रदर्शन एवं दृष्टिकोण:
    • IMC 2023 व्यापक पहुँच और भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये एक आभासी प्रदर्शन की अवधारणा पेश करता है, जो देश के विभिन्न दूरस्थ हिस्सों के व्यक्तियों को इस कार्यक्रम से जुड़ने में सक्षम बनाता है।
    • यह विविध दर्शकों तक पहुँचने और राष्ट्रीय स्तर पर डिजिटल नवाचार को बढ़ावा देने के लिये कार्यक्रम की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • एस्पायर: भविष्य की उद्यमशीलता को बढ़ावा देना:
    • यह एक समर्पित स्टार्ट-अप कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य दूरसंचार और डिजिटल डोमेन में युवा नवप्रवर्तकों के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देने की महत्त्वाकांक्षा व्यक्त करना है।
    • इन्वेस्टर ज़ोन, पिचिंग ज़ोन, वर्कशॉप ज़ोन और नेटवर्किंग ज़ोन जैसे वर्गों के साथ एस्पायर का लक्ष्य एक अद्वितीय अनुभव हासिल करना तथा इच्छुक उद्यमियों के विकास में तीव्रता लाना है।

निष्कर्ष 

  • इंडिया मोबाइल कॉन्ग्रेस 2023 विश्वव्यापी डिजिटल क्रांति में भारत की अहम भूमिका का प्रतीक है। वैश्विक डिजिटल नवाचार, स्वदेशी प्रौद्योगिकी के विकास और क्रॉस-इंडस्ट्री सहयोग पर ज़ोर देने के साथ IMC भारत की तकनीकी प्रगति के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
  • नवाचार को बढ़ावा, इसके दायरे का विस्तार, साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करना, वैश्विक सहयोग और उद्यमिता को बढ़ावा देकर, IMC प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत के नेतृत्व को मज़बूती प्रदान करता है तथा देश को डिजिटल प्रगति की सहायता से सशक्त भविष्य की ओर अग्रसर करता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:  

प्रश्न. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है"। विवेचना कीजिये। (2020) 

स्रोत: पी.आई.बी.


एंथ्रोपोसीन युग

प्रिलिम्स के लिये:

एंथ्रोपोसीन युग, एंथ्रोपोसीन वर्किंग ग्रुप, GSSP, होलोसीन युग, भू-वैज्ञानिक युग

मेन्स के लिये:

एंथ्रोपोसीन युग

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में एंथ्रोपोसीन वर्किंग ग्रुप (AWG) ने प्रस्तावित किया है कि एंथ्रोपोसीन एक नया भू-वैज्ञानिक युग है जो पृथ्वी की व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण मानव प्रभाव को दर्शाता है, यह वर्ष 1950 में शुरू हुआ।

  • AWG एक अंतःविषय अनुसंधान समूह है जो एंथ्रोपोसीन की जाँच के लिये समर्पित है।
  • यदि प्रस्ताव को आवश्यक बहुमत का समर्थन मिलता है, तो अंतर्राष्ट्रीय भू-वैज्ञानिक विज्ञान संघ अगस्त 2024 में आधिकारिक तौर पर नई वैश्विक सीमा स्ट्रैटोटाइप अनुभाग और बिंदु (GSSP) की पुष्टि कर सकता है।

नोट:. GSSP एक निर्दिष्ट भू-वैज्ञानिक संदर्भ बिंदु है जो दो भू-वैज्ञानिक समय इकाइयों के बीच की सीमा को चिह्नित करता है। यह पृथ्वी के इतिहास में विभिन्न अवधियों को परिभाषित करने और सह-संबंधित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमत मानक के रूप में कार्य करता है। भू-वैज्ञानिक समय पैमाने के भीतर युगों और अन्य प्रभागों की सीमाओं को स्थापित करने के लिये  GSSP महत्त्वपूर्ण है।

पृष्ठभूमि:

  • एंथ्रोपोसीन की आरंभिक तिथि कनाडा के टोरंटो के समीप क्रॉफर्ड झील के साक्ष्य से समर्थित है, जिसमें रेडियोधर्मी तत्त्व प्लूटोनियम के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।
  • वर्ष 1950 के आसपास प्लूटोनियम कणों की सांद्रता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। यह महत्त्वपूर्ण परिवर्तन मानव प्रभाव के स्पष्ट संकेत को प्रदर्शित करता है जिसके परिणामस्वरूप एंथ्रोपोसीन युग के प्रमाण प्राप्त होते है।
  • क्रॉफर्ड लेक के शोध निष्कर्षों ने AWG’s की परिकल्पना के लिये मज़बूत साक्ष्य प्रदान किये कि बीसवीं शताब्दी के मध्य के आसपास ग्रेट-एक्सेलेरेशन की औद्योगिक तथा सामाजिक आर्थिक गतिविधियों में अभूतपूर्व वृद्धि ने पृथ्वी प्रणाली में बड़े पैमाने पर बदलाव किये हैं, जो लगभग 11,700 वर्षों के स्थिर स्तर को समाप्त कर देते हैं। यह होलोसीन स्थितियों के साथ एक नए पृथ्वी युग की शुरुआत का प्रतीक है।

एंथ्रोपोसीन: 

  • एक शब्द के रूप में एंथ्रोपोसीन युग को औद्योगिक क्रांति के प्रारंभ में प्रथम बार नोबेल पुरस्कार विजेता रसायन शास्त्री पॉल क्रुटज़ेन तथा जीव विज्ञान के प्रोफेसर यूजीन स्टोएमर द्वारा वर्तमान भू-वैज्ञानिक समय अंतराल को दर्शाने के लिये गढ़ा गया था, जिसमें पृथ्वी का पारिस्थितिकी तंत्र मानव प्रभाव के कारण आमूल-चूल परिवर्तनों से गुज़रा।
  • इस युग से संबंधित कई घटनाएँ हैं, जैसे- ग्लोबल वार्मिंग, समुद्र के स्तर में वृद्धि, महासागर का अम्लीकरण, बड़े पैमाने पर मृदा क्षरण, घातक ग्रीष्म लहरों का आगमन, जीवमंडल का बिगड़ना एवं पर्यावरण में अन्य हानिकारक परिवर्तन आदि।

होलोसीन युग:

  • होलोसीन वर्तमान भूवैज्ञानिक युग है, जिसकी शुरुआत लगभग 11,700 वर्ष पूर्व अंतिम प्रमुख हिमयुग के अंत में हुई थी।
  • यह अपेक्षाकृत स्थिर एवं गर्म जलवायु के साथ-साथ मानव सभ्यता के विकास की विशेषता है।
  • होलोसीन प्लेइस्टोसिन युग का अनुसरण करता है जो बड़े चतुर्धातुक युग का हिस्सा है।
  • होलोसीन के दौरान पृथ्वी की जलवायु में उतार-चढ़ाव का अनुभव हुआ, यह पूर्ववर्ती हिमयुग की तुलना में अपेक्षाकृत नरम और अधिक स्थिर स्थितियों का काल रहा है। इसमें ग्लेशियरों के खिसकने तथा वैश्विक तापमान में वृद्धि से वनों, घास के मैदानों एवं विविध पारिस्थितिक तंत्रों का विस्तार हुआ है।

भू-वैज्ञानिक काल मापक्रम: 

  • भू-वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के 4.6 अरब वर्ष के अस्तित्व को ईयान (Eon), महाकल्प (Era), कल्प (Period), युग (Epoch) और आयु (Age) समय क्रमों में विभाजित किया है।
  • ईयान को महाकल्पों में, महाकल्पों को कल्पों में, कल्पों को युगों में और युगों को आयु में विभाजित किया गया है। 

  • प्रत्येक विभाजन का संबंध महत्त्वपूर्ण घटनाओं से है, जैसे- महाद्वीपों का विखंडन जलवायु में नाटकीय बदलाव और यहाँ तक कि विशेष प्रकार के पशुओं तथा पादपों के जीवन का उद्भव।

इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोलॉजिकल साइंसेज़: 

  • इंटरनेशनल यूनियन ऑफ जियोलॉजिकल साइंसेज़ (IUGS) एक वैश्विक गैर-सरकारी संगठन है जिसका उद्देश्य पृथ्वी विज्ञान के विकास को बढ़ावा देना और आगे बढ़ाना है। यह पेशेवर भूवैज्ञानिक अनुसंधान तथा शिक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय समन्वय निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • IUGS की स्थापना वर्ष 1961 में हुई थी और यह अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान परिषद (ISC) का सदस्य है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


कल्याणकारी योजनाएँ एवं मस्तिष्क क्षमता विकास

प्रिलिम्स के लिये:

हिप्पोकैम्पस, गरीबी-विरोधी नीतियाँ

मेन्स के लिये:

गरीबी और मस्तिष्क क्षमता विकास के बीच संबंध, सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में निवेश का महत्त्व

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने विशेष रूप से कम आय वाले परिवारों के बच्चों के मस्तिष्क क्षमता विकास पर कल्याणकारी योजनाओं के प्रभाव पर प्रकाश डाला है।

  • अमेरिका के 17 राज्यों के 9-11 वर्ष की आयु के 10,000 से अधिक बच्चों के मस्तिष्क स्कैन पर आधारित इस अध्ययन का उद्देश्य गरीबी और मस्तिष्क क्षमता के विकास के बीच संबंध तथा इसके प्रभावों को कम करने में गरीबी-विरोधी नीतियों की भूमिका का पता लगाना है।

प्रमुख बिंदु: 

  • मस्तिष्क क्षमता के विकास पर गरीबी का प्रभाव: 
    • इसी प्रकार के पिछले अध्ययनों से पता चलता है कि कम आय वाले परिवारों में पलने से मस्तिष्क क्षमता के विकास और संज्ञानात्मक क्षमताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
    • वर्ष 2015 में किये गए तीन अध्ययनों से पता चला कि कम आय वाले परिवारों में पले-बढ़े बच्चों और युवा वयस्कों में कॉर्टिकल वॉल्यूम कम था तथा शैक्षणिक प्रदर्शन के लिये किये जाने वाले परीक्षणों में उनका प्रदर्शन अपेक्षाकृत खराब पाया गया था। कॉर्टेक्स मस्तिष्क की बाहरी परत होती है।
    • कम आय वाले परिवारों के बच्चों में सीखने और स्मरण क्षमता के लिये महत्त्वपूर्ण लोवर हिप्पोकैम्पस होने का अधिक जोखिम देखा गया। 

  • गरीबी निवारण नीतियों का प्रभाव:  
    • यह पाया गया कि उदार गरीबी निवारण नीतियों से कम आय वाले परिवारों के बच्चों में छोटे हिप्पोकैम्पस का जोखिम काफी हद तक कम हो गया है।
    • हिप्पोकैम्पस का आकार पारिवारिक सामाजिक आर्थिक स्थिति के साथ सकारात्मक रूप से संबंधित है।
    • शोधकर्त्ताओं ने हिप्पोकैम्पस के आकार की भविष्यवाणी करने में पारिवारिक आय, जीवन यापन की लागत एवं नकद सहायता कार्यक्रमों के बीच एक महत्त्वपूर्ण तीन-तरफा वार्ता की।
      • उच्च जीवन-यापन की लागत वाले राज्यों के कम आय वाले परिवारों और उदार नकद लाभ प्राप्त करने वालों के हिप्पोकैम्पस वॉल्यूम औसतन पाए गए, जबकि जीवन-यापन की अपेक्षाकृत अधिक लागत तथा कम नकद लाभ वाले राज्यों में कम आय वाले घरों में रहने वाले लोगों की तुलना में यह 34% अधिक था।
  • कल्याणकारी योजनाएँ तथा जैविक प्रभावों को कम करना: 
    • कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से अधिक वित्तीय संसाधनों तक पहुँच परिवारों को कम आय से जुड़े दीर्घकालिक तनाव से बचा सकती है, जो संभावित रूप से हिप्पोकैम्पस विकास को प्रभावित कर सकता है।
    • गरीबी-निवारण नीतियाँ तनाव के स्तर को कम कर सकती हैं और परिवारों को ऐसे निर्णय लेने की अनुमति दे सकती हैं जिससे तनाव कम हो, जैसे- कम करने के कम घंटे। 
  • भविष्य के प्रभाव और सीमाएँ: 
    • अनुदैर्ध्य अध्ययन:
      • शोधकर्त्ता यह जाँच करने की योजना बना रहे हैं कि डेटा संग्रह अवधि के बाद से नीति में बदलाव ने प्रतिभागियों के मानसिक स्वास्थ्य के साथ मस्तिष्क विकास पथ को कैसे प्रभावित किया है।
      • नीतिगत परिवर्तनों के दीर्घकालिक प्रभाव की निगरानी से निर्धनता-विरोधी उपायों की प्रभावशीलता में मूल्यवान अंतर्दृष्टि मिल सकती है।
    • सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को संबोधित करना:
      • यह अध्ययन तंत्रिका विकास संबंधों में सामाजिक आर्थिक असमानताओं को दूर करने के लिये सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में निवेश के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
      • ऐसे कार्यक्रम संभावित रूप से मानसिक स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं से उत्पन्न आर्थिक चुनौतियों से संबंधित लागत को कम कर सकते हैं।

भारत में प्रमुख गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम: 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत में कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं, क्योंकि-

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है
(b) कीमत-स्तर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणता अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है

उत्तर : (b) 

व्याख्या : 

  • भारत में गरीबी का अनुमान पूर्ण स्तर या निर्वाह के लिये आवश्यक न्यूनतम धन के आधार पर लगाया जाता है। वर्तमान में गरीबी रेखा को शहरी क्षेत्र में 2,100 कैलोरी और ग्रामीण क्षेत्र में 2,400 कैलोरी प्रति व्यक्ति कैलोरी सेवन बनाए रखने के लिये आवश्यक न्यूनतम धन के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • इस प्रकार योजना आयोग के गरीबी अनुमान (वर्ष 2011-12) के अनुसार, गरीबी रेखा अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है क्योंकि अंतर-राज्यीय मूल्य अंतर के कारण प्रति व्यक्ति वस्तुओं की कीमत अलग-अलग होती है।

अतः विकल्प (B) सही उत्तर है।


मेन्स: 

प्रश्न ."केवल आय आधारित गरीबी के निर्धारण में गरीबी का आपतन और तीव्रता अधिक महत्त्वपूर्ण है"। इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी गरीबी सूचकांक की नवीनतम रिपोर्ट का विश्लेषण कीजिये। (2020) 

स्रोत: द हिंदू


चुनावी बॉण्ड

प्रिलिम्स के लिये:

चुनावी बॉण्ड, राजनीतिक दल, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

मेन्स के लिये:

चुनाव प्रक्रिया पर चुनावी बॉण्ड का प्रभाव, नीतियों के डिज़ाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे

चर्चा में क्यों?  

वर्ष 1999 में नई दिल्ली में स्थापित एक भारतीय गैर-सरकारी संगठन (NGO) एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक हालिया रिपोर्ट भारत में राजनीतिक दलों के लिये दान के प्राथमिक स्रोत के रूप में चुनावी बॉण्ड द्वारा निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालती है।

  • वर्ष 2016-17 और 2021-22 के बीच 7 राष्ट्रीय दलों और 24 क्षेत्रीय दलों को चुनावी बॉण्ड से कुल 9,188.35 करोड़ रुपए की दान राशि प्राप्त हुई। 
    • रिपोर्ट में गुमनाम चुनावी बॉण्ड, प्रत्यक्ष कॉर्पोरेट दान, सांसदों/विधायकों के योगदान, बैठकों, मोर्चों और पार्टी इकाइयों द्वारा संग्रह से प्राप्त दान का विश्लेषण किया गया। 

ADR रिपोर्ट के मुख्य तथ्य: 

  • दान और धन स्रोतों का विश्लेषण:
    • चुनावी बॉण्ड से सबसे अधिक दान, कुल 3,438.8237 करोड़ रुपए, आम चुनाव के वर्ष 2019-20 में प्राप्त हुआ। 
    • वर्ष 2021-22, जिसमें 11 विधानसभा चुनाव हुए, में चुनावी बॉण्ड के माध्यम से 2,664.2725 करोड़ रुपए का दान मिला।
    • विश्लेषण किये गए 31 राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त 16,437.635 करोड़ रुपए के कुल दान में से 55.90% चुनावी बॉण्ड से, 28.07% कॉर्पोरेट क्षेत्र से और 16.03% अन्य स्रोतों से प्राप्त हुए है।
  • राष्ट्रीय दल:  
    • वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2021-22 के बीच राष्ट्रीय दलों ने चुनावी बॉण्ड दान में 743% की वृद्धि देखी गई।
    • इसके विपरीत इसी अवधि के दौरान राष्ट्रीय दलों के कॉर्पोरेट दान में केवल 48% की वृद्धि हुई।
  • क्षेत्रीय दल और चुनावी बॉण्ड योगदान: 
    • क्षेत्रीय दलों को भी अपने चंदे का एक बड़ा हिस्सा चुनावी बॉण्ड से प्राप्त हुआ।
  • चुनावी  बॉण्ड  का सत्ता-पक्षपाती दान: 
    • सत्ता में रहने वाली पार्टी के रूप में भाजपा को राष्ट्रीय राजनीतिक दलों में सबसे अधिक दान मिलता है। भाजपा के कुल दान का 52% से अधिक हिस्सा चुनावी बॉण्ड से प्राप्त हुआ, जिसकी राशि 5,271.9751 करोड़ रुपए थी।
    • कॉन्ग्रेस ने 952.2955 करोड़ रुपए (कुल दान का 61.54%) के साथ दूसरा सबसे बड़ा चुनावी बॉण्ड दान हासिल किया, इसके बाद तृणमूल कॉन्ग्रेस 767.8876 करोड़ रुपए (93.27%) के साथ दूसरे स्थान पर रही।

चुनावी बॉण्ड:  

  • परिचय: 
    • चुनावी बॉण्ड प्रणाली को वर्ष 2017 में एक वित्त विधेयक के माध्यम से पेश किया गया था और इसे वर्ष 2018 में लागू किया गया था।
    • वे दाता की गुमनामी बनाए रखते हुए पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिये व्यक्तियों और संस्थाओं हेतु एक साधन के रूप में काम करते हैं।
  • विशेषताएँ:
    • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए तथा 1 करोड़ रुपए मूल्यवर्ग में बॉण्ड जारी करता है।
    • धारक की मांग पर देय और ब्याज मुक्त।
    • भारतीय नागरिकों या भारत में स्थापित संस्थाओं द्वारा क्रय योग्य।
    • व्यक्तिगत रूप से या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से क्रय योग्य।
    • जारी होने की तारीख से 15 दिनों के लिये वैध।
  • अधिकृत जारीकर्त्ता:
    • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) अधिकृत जारीकर्त्ता है।
    • चुनावी बॉण्ड नामित SBI शाखाओं के माध्यम से जारी किये जाते हैं।
  • राजनीतिक दलों की पात्रता:
    • केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं, जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिये डाले गए वोटों में से कम-से-कम 1% वोट हासिल किये हों, वे ही चुनावी बॉण्ड हासिल करने के पात्र हैं।
  • क्रय एवं नकदीकरण:
    • चुनावी बॉण्ड डिजिटल या चेक के माध्यम से क्रय किये जा सकते हैं।
    • जबकि नकदीकरण केवल राजनीतिक दल के अधिकृत बैंक खाते के माध्यम से।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही:
    • दलों को भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के साथ अपने बैंक खाते का खुलासा करना होगा।
    • पारदर्शिता सुनिश्चित करते हुए दान बैंकिंग चैनलों के माध्यम से किया जाता है।
    • राजनीतिक दल प्राप्त धनराशि के उपयोग के बारे में बताने के लिये बाध्य हैं।
  • लाभ:
    • राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ी।
    • दान राशि के उपयोग को बताने की जवाबदेही।
    • नकद लेन-देन को हतोत्साहित करना।
    • दान दाता गुमनामी का संरक्षण।
  • चुनौतियाँ:
    • चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दलों को दी जाने वाली दान राशि है जो दानदाताओं और प्राप्तकर्ताओं की पहचान को गुमनाम रखती है। वे जानने के अधिकार से समझौता कर सकते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा है।
    • दान दाता के डेटा तक सरकारी पहुँच के चलते गुमनामी से समझौता किया जा सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि सत्ता में मौजूद सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को बाधित कर सकता है।
    • अनधिकृत दान की संभावना का उल्लंघन।
    • घोर पूंजीवाद और काले धन के उपयोग का खतरा।
    • घोर पूंजीवाद एक आर्थिक प्रणाली है जो व्यापारियों और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों की विशेषता है।
    • कॉर्पोरेट संस्थाओं के लिये पारदर्शिता और दान सीमा के संबंध में खामियाँ।
      • कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार, कोई कंपनी तभी राजनीतिक योगदान दे सकती है जब उसका पिछले तीन वित्तीय वर्षों का शुद्ध औसत लाभ 7.5% हो। इस धारा के हटने से शेल कंपनियों के ज़रिये राजनीतिक फंडिंग में काले धन के योगदान को लेकर चिंता बढ़ गई है।

आगे की राह

  • चुनावी बॉण्ड योजना में पारदर्शिता बढ़ाने के उपाय लागू करना।
  • राजनीतिक दलों के लिये स्पष्टीकरण संबंधी सख्त नियम लागू करना और भारत निर्वाचन आयोग को किसी भी प्रकार के दान की जाँच करने तथा बॉण्ड एवं व्यय दोनों के संबंध में अवलोकन करने का प्रावधान किया जाना।
  • संभावित दुरुपयोग, दान सीमा के उल्लंघन और क्रोनी पूंजीवाद तथा काले धन के प्रवाह जैसे जोखिमों को रोकने के लिये चुनावी बॉण्ड में खामियों की पहचान करके उसका हल निकालना।
  • उभरती चिंताओं को दूर करने, बदलते परिदृश्यों के अनुकूल ढलने और अधिक समावेशी निर्णय लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिये न्यायिक जाँच, आवधिक समीक्षा तथा सार्वजनिक भागीदारी के माध्यम से चुनावी बॉण्ड योजना की समयबद्ध निगरानी करना। 

स्रोत: द हिंदू