कृषि
सतत् कृषि के संवर्द्धन हेतु पहल
प्रिलिम्स के लिये:कृषि सखी अनुकूलन कार्यक्रम, स्कूल मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम, भौगोलिक सूचना प्रणाली, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, नाबार्ड, प्राकृतिक कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन मेन्स के लिये:सतत् कृषि, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप एवं उनके डिज़ाइन तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
कृषि क्षेत्र में क्रांति लाने और सतत्/संधारणीय कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहन प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने नई दिल्ली में आयोजित सम्मलेन में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के साथ संयुक्त रूप से चार प्रमुख पहलों का शुभारंभ किया।
- इन पहलों में संशोधित मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल और मोबाइल एप्लिकेशन, स्कूल मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम, कृषि सखी कन्वर्जेंस कार्यक्रम (KSCP) तथा उर्वरक नमूना/प्रतिदर्श परीक्षण के लिये CFQCTI पोर्टल का शुभारंभ शामिल है। इन पहलों का उद्देश्य देश के कृषि क्षेत्र में परिवर्तन लाना है।
मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के लिये आरंभ की गई पहल क्या हैं?
- संशोधित मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल और मोबाइल एप्लिकेशन:
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल में संशोधन किया गया है और मृदा को प्रतिदर्श एकत्र करने एवं उसका परीक्षण करने के लिये एक मोबाइल एप्लिकेशन का शुभारंभ किया गया है। इस पोर्टल में मृदा प्रयोगशाला रजिस्ट्री है तथा प्रयोगशालाओं की स्थिति वास्तविक समय के आधार पर देखी जा सकती है। प्रयोगशालाओं को पोर्टल पर भू-निर्देशांक के साथ मैप किया जाता है।
- इस पोर्टल में मृदा नमूना संग्रह, प्रयोगशालाओं में परीक्षण और मृदा स्वास्थ्य कार्ड के निर्माण का वास्तविक समय डेटा प्रदर्शित करने की सुविधा है।
- इस संशोधित पोर्टल में राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर एक केंद्रीकृत डैशबोर्ड उपलब्ध कराया गया है तथा साथ ही इसमें भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) विश्लेषण भी शामिल है।
- इस पोर्टल में उर्वरक प्रबंधन, पोषक तत्त्व डैशबोर्ड और पोषक तत्त्वों के हीट मैप जैसी सुविधाएँ भी शामिल हैं।
- इस पहल के माध्यम से प्रगति की वास्तविक समय के आधार पर निगरानी की जा सकती है और साथ ही इसमें मृदा का नमूना एकत्र करने के दौरान मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से भू-निर्देशांक को स्वचालित रूप से कैप्चर करने की सुविधा है। इस ऐप के माध्यम से प्लॉट विवरण का पंजीकरण भी किया जा सकता है।
- स्कूल मृदा स्वास्थ्य कार्यक्रम:
- कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (DA&FW) ने स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के सहयोग से, इस पायलट परियोजना की शुरुआत की है। इस परियोजना के तहत ग्रामीण केंद्रीय विद्यालयों तथा नवोदय विद्यालयों में 20 मृदा प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई है।
- इसके तहत अध्ययन मॉड्यूल विकसित किये गए और विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया गया। स्कूल कार्यक्रम के लिये एक मोबाइल एप्लीकेशन विकसित किया गया गया था और पोर्टल में कार्यक्रम के लिये एक अलग खंड है जहाँ विद्यार्थियों की सभी गतिविधियों का दस्तावेज़ीकरण किया गया है।
- इस कार्यक्रम के तहत स्कूल के विद्यार्थी मिट्टी के नमूने एकत्र करेंगे, स्कूलों में स्थापित प्रयोगशालाओं में उनका परीक्षण करेंगे तथा मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाएंगे।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाने के बाद, वे किसानों के पास जाएँगे और उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड की अनुशंसा के बारे में शिक्षित करेंगे।
- मृदा प्रयोगशाला कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों में पर्यावरण के प्रति ज़िम्मेदारी और सम्मान की भावना पैदा करना तथा उन्हें सतत् कृषि एवं मृदा के स्वास्थ्य पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव के बारे में जागरूक करना है।
- अब, इस कार्यक्रम को 1000 स्कूलों तक विस्तारित किया गया है तथा केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और एकलव्य मॉडल स्कूलों को इसके अंतर्गत शामिल किया गया है।
- राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के माध्यम से कृषि एवं किसान कल्याण विभाग इन स्कूलों में मृदा प्रयोगशालाएँ स्थापित करेगा।
- कृषि एवं किसान कल्याण विभाग (DA&FW) ने स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग के सहयोग से, इस पायलट परियोजना की शुरुआत की है। इस परियोजना के तहत ग्रामीण केंद्रीय विद्यालयों तथा नवोदय विद्यालयों में 20 मृदा प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई है।
- कृषि सखी अनुकूलन कार्यक्रम (KSCP):
- कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय के बीच एक समझौता ज्ञापन के साथ कृषि सखी अनुकूलन कार्यक्रम (Krishi Sakhi Convergence Programme- KSCP) की शुरुआत हुई, जिसका उद्देश्य कृषि सखी के सशक्तीकरण के माध्यम से ग्रामीण भारत में परिवर्तन लाना है।
- कार्यक्रम में 70,000 कृषि सखियों को "पैरा-एक्सटेंशन वर्कर्स" के रूप में प्रमाणित करने हेतु कृषि सखी प्रशिक्षण कार्यक्रम भी शामिल है।
- कृषि सखियाँ किसानों और प्रशिक्षित पैरा-एक्सटेंशन वर्कर्स का अभ्यास कर रही हैं। वे किसान-मित्रों के रूप में काम करती हैं तथा प्राकृतिक खेती और मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के संबंध में उनका मार्गदर्शन करती हैं।
- कृषि सखियाँ राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (National Mission of Natural Farming- NMNF), प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) जैसी विभिन्न योजनाओं को लागू करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं
- प्रमाणित कृषि सखियाँ किसानों में जागरूकता पैदा करने और क्षमता निर्माण के लिये पैरा-एक्सटेंशन वर्कर्स के रूप में कार्य करती हैं।
- ये किसानों, कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) तथा कृषि एवं संबद्ध विभागों के बीच एक कड़ी के रूप में काम करते हैं।
- कृषि सखियों को कृषि विज्ञान, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, फसल-विविधता तथा स्वास्थ्य एवं पोषण सुरक्षा आदि के बारे में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
- ये जनभागीदारी के हिस्से के रूप में प्राकृतिक खेती तथा मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन जैसे विषयों पर जागरूकता सृजन बैठकें आयोजित करती हैं।
- इस कार्यक्रम के तहत लगभग 3500 कृषि सखियों को प्रशिक्षित किया गया है और इसे 13 राज्यों में लागू किया जा रहा है, जो सतत् कृषि एवं ग्रामीण विकास में योगदान देगा।
- ये परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में कार्य करती हैं तथा सतत् कृषि के भविष्य का पोषण करते हुए ग्रामीण भारत को नया आकार प्रदान कर रही हैं।
- कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय तथा ग्रामीण विकास मंत्रालय के बीच एक समझौता ज्ञापन के साथ कृषि सखी अनुकूलन कार्यक्रम (Krishi Sakhi Convergence Programme- KSCP) की शुरुआत हुई, जिसका उद्देश्य कृषि सखी के सशक्तीकरण के माध्यम से ग्रामीण भारत में परिवर्तन लाना है।
- CFQCTI पोर्टल:
- केंद्रीय उर्वरक गुणवत्ता नियंत्रण और प्रशिक्षण संस्थान (CFQCTI) पोर्टल उर्वरक प्रबंधन में गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करने के लिये नमूना संग्रह एवं परीक्षण की सुविधाएँ प्रदान करता है।
- पोर्टल नमूना सत्यापन, प्रयोगशालाओं को स्वचालित आवंटन एवं विश्लेषण रिपोर्ट जारी करने, गुणवत्ता मूल्यांकन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये OTP जेनरेट करने की सुविधा भी प्रदान करता है।
इन पहलों से किस प्रभाव की परिकल्पना की गई है?
- धारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना:
- इन पहलों का उद्देश्य दीर्घकालिक पर्यावरणीय तथा आर्थिक लाभ सुनिश्चित करने हेतु जैविक कृषि जैसी धारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना है।
- कृषकों की आजीविका में वृद्धि:
- मृदा स्वास्थ्य, उर्वरक गुणवत्ता एवं धारणीय कृषि से संबंधित चिंताओं का समाधान करके, ये पहल किसानों की आजीविका बढ़ाने के साथ-साथ उनके आर्थिक कल्याण में भी सुधार करने का प्रयास करती हैं।
- जैविक कृषि की विश्वसनीयता:
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड पोर्टल तथा कृषि सखी अभिसरण कार्यक्रम जैसी पहलों के माध्यम से जैविक कृषि की विश्वसनीयता में वृद्धि के प्रयासों से जैविक उत्पादों में विश्वास बढ़ने के साथ-साथ उन्हें अपनाने हेतु प्रोत्साहित होने की आशा है।
- उर्वरकों की गुणवत्ता एवं दक्षता:
- उर्वरकों की गुणवत्ता एवं दक्षता से संबंधित चिंताओं को दूर करने की पहल, जैसे कि CFQCTI पोर्टल का उद्देश्य विश्वसनीय इनपुट के उपयोग को सुनिश्चित करके किसानों के हितों की रक्षा करना है।
भारत में मृदा स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ क्या हैं?
- मृदा एवं जल जीविका के मूलभूत संसाधन हैं, 95% से अधिक भोजन इन्हीं से निर्मित होता है।
- कृषि प्रणालियों एवं संयुक्त राष्ट्र एजेंडा 2030 को प्राप्त करने के लिये मृदा और जल के बीच सहजीवी संबंध महत्त्वपूर्ण है।
- वर्तमान जलवायु परिवर्तन एवं मानवीय गतिविधियों के कारण मृदा और जल संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ रहा है।
- भारत में देश के कुल बोए गए क्षेत्र का लगभग 50% वर्षा आधारित है, जो कुल खाद्य उत्पादन में 40% का योगदान देता है।
- भारत में मृदा स्वास्थ्य के न्यूनतम पोषक तत्त्व स्तर जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, औसत मृदा कार्बनिक कार्बन (SOC) लगभग 0.54% है।
- भूमि क्षरण एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, जिससे कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 30% प्रभावित होता है, जिससे पौधों में पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है और साथ ही आबादी के बीच पोषण स्तर को प्रभावित करता है।
- पोषक तत्त्वों की कमी एवं कमी के साथ-साथ अनुचित उर्वरक अनुप्रयोग के परिणामस्वरूप उत्पादकता में गिरावट आती है।
- सतत् खाद्य उत्पादन के लिये पोषक तत्त्वों की पर्याप्त पुनःपूर्ति, मृदा के विश्लेषण के आधार पर उर्वरकों का उपयुक्त अनुप्रयोग एवं मृदा में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा को बढ़ाना जैसी विधियों की आवश्यकता होती है।
- भारत में जल एवं वायु के द्वारा कटाव के कारण प्रतिवर्ष अनुमानित 3 अरब टन मृदा नष्ट हो जाती है।
मृदा संरक्षण से संबंधित अन्य पहल
- मृदा संरक्षण का पाँच-स्तरीय कार्यक्रम:
- मृदा संरक्षण के लिये भारत की पाँच-स्तरीय रणनीति जिसमें मृदा को रसायन मुक्त बनाना, मिट्टी की जैवविविधता का संरक्षण करना, मृदा के कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाना, मृदा की नमी बनाए रखना, मृदा के क्षरण को कम करना और साथ ही मृदा के कटाव को रोकना भी शामिल है।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना:
- वर्ष 2015 में शुरू की गई भारत सरकार की मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, मृदा स्वास्थ्य संकेतक एवं संबंधित वर्णनात्मक शब्द प्रदर्शित करती है, जो किसानों को आवश्यक मृदा सुधार के लिये मार्गदर्शन प्रदान करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत की काली कपासी मृदा का निर्माण किसके अपक्षय के कारण हुआ है? (2021) (a) भूरी वन मृदा उत्तर: (b) प्रश्न. भारत की लेटराइट मिट्टियों के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. 1 विज्ञान हमारे जीवन में गहराई तक कैसे गुथा हुआ है? विज्ञान-आधारित प्रौद्योगिकियों द्वारा कृषि में उत्पन्न हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तन क्या हैं? (2020) प्रश्न. 2 सिक्किम भारत में प्रथम ‘जैविक राज्य’ है। जैविक राज्य के पारिस्थितिक एवं आर्थिक लाभ क्या-क्या होते हैं? (2018) प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस.) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में बेरोज़गारी
प्रिलिम्स के लिये:आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO), कोविड-19 महामारी, श्रमिक जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर मेन्स के लिये:भारत में बेरोज़गारी तथा इसे संबंधित प्रमुख मुद्दे |
स्रोत: MOSPI
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office- NSSO) द्वारा आयोजित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) के अनुसार, वर्ष 2023 में भारत की बेरोज़गारी दर में महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई, जो विगत तीन वर्षों में सबसे कम है।
- PLFS प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों, जैसे– श्रम बल भागीदारी दर (LFPR), श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR), बेरोज़गारी दर (UR) आदि तथा गतिविधियों की स्थिति- 'सामान्य स्थिति' और 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' व 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' का आकलन प्रदान करता है।
नोट:
- श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR): इसे जनसंख्या में श्रम बल (यानी काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले या काम के लिये उपलब्ध) व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
- श्रमिक जनसंख्या अनुपात (Worker Population Ratio- WPR): WPR को जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
- बेरोज़गारी दर (Unemployment Rate- UR): UR को श्रम बल में शामिल व्यक्तियों के बीच बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
- गतिविधि स्थिति- सामान्य गतिविधि स्थिति (CWS): किसी व्यक्ति की गतिविधि की स्थिति निर्दिष्ट संदर्भ अवधि के दौरान व्यक्ति द्वारा की गई गतिविधियों के आधार पर निर्धारित की जाती है।
- जब गतिविधि की स्थिति सर्वेक्षण की तारीख से पिछले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित की जाती है, तो इसे व्यक्ति की सामान्य गतिविधि स्थिति के रूप में जाना जाता है।
- गतिविधि स्थिति- वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS): सर्वेक्षण की तिथि से पहले पिछले 7 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित गतिविधि स्थिति को व्यक्ति की वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) के रूप में जाना जाता है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- भारत की बेरोज़गारी दर:
- 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये भारत की बेरोज़गारी दर वर्ष 2023 में घटकर 3.1% के स्तर पर पहुँच गई, जो कि पिछले तीन वर्षों में न्यूनतम है।
- बेरोज़गारी की दर वर्ष 2022 में 3.6% तथा वर्ष 2021 में 4.2% थी।
- वर्ष 2023 में महिलाओं के बीच बेरोज़गारी दर घटकर 3% हो गई है जो कि वर्ष 2022 में 3.3% और वर्ष 2021 में 3.4% थी।
- इसी प्रकार, पुरुषों के लिये यह दर वर्ष 2023 में घटकर 3.2% पर पहुँच गई जबकि वर्ष 2022 में यह 3.7% और वर्ष 2021 में 4.5% थी।
- 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये भारत की बेरोज़गारी दर वर्ष 2023 में घटकर 3.1% के स्तर पर पहुँच गई, जो कि पिछले तीन वर्षों में न्यूनतम है।
- रोज़गार परिदृश्य में सुधार:
- कोविड-19 महामारी के प्रभाव के बाद केंद्र और राज्यों द्वारा लॉकडाउन हटाए जाने से आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि हुई है तथा रोज़गार परिदृश्य में सुधार हुआ है।
- शहरी और ग्रामीण बेरोज़गारी:
- वर्ष 2023 में शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी की दर घटकर 5.2% तक पहुँच गई जो कि वर्ष 2022 में 5.9% और वर्ष 2021 में 6.5% थी। जबकि, ग्रामीण बेरोज़गारी जो कि वर्ष 2022 में 2.8% तथा वर्ष 2021 में 3.3% थी, वर्ष 2023 में घटकर 2.4% हो गई।
- शहरी क्षेत्रों में 15 और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) में LFPR वर्ष 2023 में बढ़कर 56.2% तक पहुँच गया, जो कि वर्ष 2022 में 52.8% और वर्ष 2021 में 51.8 प्रतिशत था।
- आर्थिक वृद्धि:
- रोज़गार संबंधी ये सकारात्मक आँकड़े हाल की उन रिपोर्टों के बाद सामने आए हैं जिनमें कहा गया है कि वर्ष 2023-24 की तीसरी तिमाही में भारत की आर्थिक वृद्धि 8.4 प्रतिशत हो गई है।
- NSO द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, विनिर्माण, खनन और खदान एवं निर्माण जैसे क्षेत्रों ने इस वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- NSO के दूसरे अग्रिम अनुमान, वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिये समग्र रूप से भारत की वृद्धि दर 7.6% होने का अनुमान व्यक्त किया गया है, जो जनवरी 2024 में जारी 7.3% के प्रारंभिक पूर्वानुमान से ऊपर है।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण क्या है?
- परिचय:
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय शहरी क्षेत्रों के लिये त्रैमासिक अनुमानों के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों हेतु रोज़गार एवं बेरोज़गारी संबंधी विशेषताओं के वार्षिक आँकड़े तैयार करने के उद्देश्य से PLFS का संचालन करता है।
- जुलाई 2017 से जून 2018 के दौरान PLFS में एकत्र आँकड़ों पर आधारित पहली वार्षिक रिपोर्ट मई 2019 में प्रकाशित की गई थी।
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय शहरी क्षेत्रों के लिये त्रैमासिक अनुमानों के साथ-साथ ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों हेतु रोज़गार एवं बेरोज़गारी संबंधी विशेषताओं के वार्षिक आँकड़े तैयार करने के उद्देश्य से PLFS का संचालन करता है।
- PLFS के उद्देश्य:
- वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
- प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति तथा CWS, दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।
बेरोज़गारी क्या है?
- परिचय:
- बेरोज़गारी उस स्थिति को संदर्भित करती है जहाँ काम करने में सक्षम व्यक्ति सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश कर रहे हैं लेकिन उपयुक्त नौकरियाँ प्राप्त करने में असमर्थ हैं।
- बेरोज़गार व्यक्ति वह है जो श्रम शक्ति का हिस्सा है और साथ ही उसके पास अपेक्षित कौशल भी होता है लेकिन वर्तमान में उसके पास लाभकारी रोज़गार का अभाव है।
- मूल रूप से एक बेरोज़गार व्यक्ति वह होता है जो काम करने में सक्षमता के साथ-साथ काम करने का इच्छुक भी होता है और सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश में होता है।
- बेरोज़गारी का मापन:
- देश में बेरोज़गारी की गणना आमतौर पर सूत्र का उपयोग करके की जाती है:
- बेरोज़गारी दर = [बेरोज़गार श्रमिकों की संख्या/कुल श्रम बल] x 100
- यहाँ, 'कुल श्रम शक्ति' में नियोजित व्यक्तियों के साथ-साथ बेरोज़गार भी शामिल हैं। जो लोग न तो नियोजित हैं और न ही बेरोज़गार हैं, उदाहरण के लिये– छात्र, उन्हें श्रम शक्ति का हिस्सा नहीं माना जाता है।
- बेरोज़गारी दर = [बेरोज़गार श्रमिकों की संख्या/कुल श्रम बल] x 100
- देश में बेरोज़गारी की गणना आमतौर पर सूत्र का उपयोग करके की जाती है:
- बेरोज़गारी के प्रकार:
- संरचनात्मक बेरोज़गारी: कार्यबल के पास मौजूद कौशल एवं उपलब्ध पदों की आवश्यकताओं के बीच के अंतराल में निहित बेरोज़गारी का यह रूप श्रम बाज़ार के प्रणालीगत मुद्दों पर प्रकाश डालता है।
- चक्रीय बेरोज़गारी: यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है, जो व्यापक आर्थिक स्थितियों के लिये नौकरी की उपलब्धता की संवेदनशीलता को दर्शाता है।
- घर्षणात्मक बेरोज़गारी/संक्रमणकालीन बेरोज़गारी: इसे संक्रमणकालीन बेरोज़गारी भी कहा जाता है, जो नौकरियों के बीच प्राकृतिक संक्रमण से उत्पन्न होती है, यह प्रकार उस अस्थायी अवधि को दर्शाता है जो व्यक्ति नए रोज़गार के अवसरों की तलाश में व्यतीत होते हैं।
- अल्परोज़गार: अल्परोज़गारी, हालाँकि पूर्ण बेरोज़गारी नहीं है, यह अवधारणा उन पदों पर कार्यरत व्यक्तियों से संबंधित है जो अपने कौशल का कम उपयोग करते हैं या अपर्याप्त कार्य घंटे प्रदान करते हैं, जिससे आर्थिक अक्षमता की भावना उत्पन्न होती है।
- छिपी हुई बेरोज़गारी: ऐसे व्यक्तियों को संदर्भित करता है जो निराशा अथवा अन्य कारकों के कारण सक्रिय रूप से रोज़गार की तलाश नहीं कर रहे हैं, लेकिन स्थिति में सुधार होने पर संभावित रूप से नौकरी बाज़ार में प्रवेश कर सकते हैं।
- प्रच्छन्न बेरोजगारी: यह इसलिये उत्पन्न होती है क्योंकि कारखाने में अथवा भूमि पर आवश्यकता से अधिक मज़दूर काम करते हैं। अतः श्रम की प्रति इकाई उत्पादकता कम होगी।
भारत में बेरोज़गारी के प्रमुख कारण क्या हैं?
- जनसंख्या का आकार:
- भारत की अधिक जनसंख्या रोज़गार के अवसरों के लिये प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाती है, जिससे नौकरी बाज़ार पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
- इस जनसांख्यिकीय चुनौती से निपटने हेतु आर्थिक विकास एवं रोज़गार सृजन के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- प्रतिकूल कौशल:
- एक प्रमुख कारण, जहाँ कार्यबल के पास मौजूद कौशल नौकरी बाज़ार की उभरती मांगों के अनुरूप नहीं हो सकते हैं। इस मुद्दे के समाधान के लिये शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाने पर केंद्रित पहल की आवश्यकता है।
- अनौपचारिक क्षेत्र की गतिशीलता:
- अनौपचारिक क्षेत्र की व्यापकता बेरोज़गारी पर नज़र रखने और उसका समाधान करने में जटिलताएँ उत्पन्न करती है। इस क्षेत्र को औपचारिक बनाने के साथ विनियमित करने के प्रयास रोज़गार स्थितियों के अधिक सटीक प्रतिनिधित्व करने में योगदान कर सकते हैं।
- नीति क्रियान्वयन में चुनौतियाँ:
- सकारात्मक नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे रोज़गार सृजित करने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है। नीति कार्यान्वयन को सुव्यवस्थित करने के साथ ही आधारभूत वास्तविकता के साथ तालमेल सुनिश्चित करना अत्यावश्यक है।
- वैश्विक आर्थिक कारक:
- वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रभाव, जैसे व्यापार गतिशीलता एवं भू-राजनीतिक बदलाव तथा भारत के रोज़गार परिदृश्य को प्रभावित कर सकते हैं। बाह्य कारकों के प्रति आर्थिक लचीलापन बढ़ाने वाली नीतियाों के निर्माण की आवश्यकता है।
रोज़गार से जुड़ी सरकार की पहल क्या हैं?
आगे की राह
- प्रासंगिक कौशल प्रदान करने हेतु पाठ्यक्रम को अद्यतन करते हुए व्यावसायिक प्रशिक्षण पर ज़ोर देकर एवं रोज़गार क्षमता बढ़ाने हेतु आजीवन सीखने को बढ़ावा देकर शिक्षा को वर्तमान बाज़ार की मांगों के साथ संरेखित करना।
- वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करके, नौकरशाही बाधाओं को कम करके तथा उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिये मेंटरशिप कार्यक्रमों को प्रस्तुत करके स्टार्टअप के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा देना।
- ऐसी नीतियाँ बनाना और लागू करना जो रोज़गार सृजन को बढ़ावा दें, जिसमें बुनियादी ढाँचे में निवेश, उद्योग-अनुकूल नियम के साथ-साथ रोज़गार सृजित करने वाले व्यवसायों हेतु वित्तीय प्रोत्साहन शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है- (2013) (a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं उत्तर:(c) मेन्स:प्रश्न: भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023) |
शासन व्यवस्था
संशोधित औषध प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना और UCPMP 2024
प्रिलिम्स के लिये:औषध प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना (PTUAS), फार्मास्युटिकल एंड मेडिकल डिवाइसेस प्रमोशन एंड डेवलपमेंट स्कीम, फार्मास्युटिकल्स के लिये PLI योजना, अनुसूची M और डब्ल्यूएचओ-जीएमपी मानक मेन्स के लिये:भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग, स्वास्थ्य, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
रसायन और उर्वरक मंत्रालय के औषध विभाग (DoP) ने संशोधित औषध प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना (Revamped Pharmaceuticals Technology Upgradation Assistance Scheme- RPTUAS) की घोषणा की है।
- इसका उद्देश्य वैश्विक मानकों के अनुरूप फार्मास्युटिकल उद्योग की तकनीकी क्षमताओं को उन्नत करना है।
- इसके अतिरिक्त, DoP ने यूनिफॉर्म कोड फॉर फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेज (UCPMP), 2024 जारी किया। कोड का उद्देश्य ज़िम्मेदार विपणन प्रथाओं को सुनिश्चित करना और भ्रामक प्रचार गतिविधियों पर अंकुश लगाना है।
RPTUAS की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- उद्देश्य:
- RPTUAS के माध्यम से औषध विभाग का लक्ष्य फार्मास्युटिकल/औषध उद्योग के विकास में योगदान देना और वैश्विक विनिर्माण मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करना है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- विस्तृत पात्रता मानदंड:
- 500 करोड़ रुपए से कम टर्नओवर वाली किसी भी फार्मास्युटिकल विनिर्माण इकाई को शामिल करने के लिये सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों से अलग विस्तारित पात्रता।
- उच्च गुणवत्ता वाले विनिर्माण मानकों को प्राप्त करने में छोटे अभिकर्त्ता का समर्थन करते हुए, MSME को प्राथमिकता दी गई है।
- अनुकूल वित्तपोषण विकल्प:
- पारंपरिक क्रेडिट-लिंक्ड दृष्टिकोण की तुलना में अधिक लचीलेपन की पेशकश करते हुए, प्रतिपूर्ति के आधार पर सब्सिडी की शुरुआत की गई है।
- अनुपालन के लिये व्यापक समर्थन:
- संशोधित अनुसूची-M और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुरूप तकनीकी उन्नयन की एक विस्तृत शृंखला HVAC सिस्टम, परीक्षण प्रयोगशालाएँ, स्वच्छ कमरे की सुविधाएँ आदि सहित अच्छे विनिर्माण अभ्यास (GMP) मानक का समर्थन करता है।
- गतिशील प्रोत्साहन संरचना:
- 50 करोड़ रुपए से कम, 50 रुपए से 250 तक और 250 रुपए से 500 करोड़ रुपए से कम के टर्नओवर के लिये योग्य गतिविधियों में निवेश पर क्रमशः 20%, 15% एवं 10% तक टर्नओवर-आधारित प्रोत्साहन प्रदान करता है।
- राज्य सरकार योजना एकीकरण:
- अतिरिक्त टॉप-अप सहायता प्रदान करने के लिये राज्य सरकार की योजनाओं के साथ एकीकरण की अनुमति देता है।
- उन्नत सत्यापन तंत्र:
- यह योजना पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये एक परियोजना प्रबंधन एजेंसी के माध्यम से एक मज़बूत सत्यापन तंत्र लागू करती है।
- विस्तृत पात्रता मानदंड:
औषध प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता (PTUAS) योजना
- PTUAS दवा कंपनियों को वैश्विक मानकों के अनुरूप दवाओं के उत्पादन के लिये अपनी सुविधाओं को उन्नत करने में मदद करता है। इसे जुलाई 2022 में लॉन्च किया गया था।
- योजना के तहत प्रोत्साहन:
- ब्याज अनुदान:
- योजना के तहत पात्र ऋण घटक के लिये अधिकतम 5% प्रति वर्ष (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के स्वामित्व और प्रबंधन वाली इकाइयों के लिये 6%) ब्याज छूट दी जाती है, जो अधिकतम 10 करोड़ रुपए तक सीमित है।
- यह सब्सिडी सार्वजनिक और निज़ी दोनों क्षेत्रों में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों/वित्तीय संस्थानों द्वारा स्वीकृत ऋणों के लिये कम शेष राशि पर अधिकतम 3 वर्ष की अवधि के लिये लागू है।
- ब्याज अनुदान:
संशोधित अनुसूची M और WHO-GMP मानक क्या हैं?
- जनवरी 2024 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की अधिसूचना में फार्मास्युटिकल और बायोफार्मास्युटिकल उत्पादों के लिये मज़बूत गुणवत्ता नियंत्रण उपायों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 की अनुसूची M में संशोधन प्रस्तुत किया गया।
- अनुसूची M फार्मास्युटिकल उत्पादों के लिये गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) निर्धारित करती है।
- GMP को पहली बार वर्ष 1988 में औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 की अनुसूची M में शामिल किया गया था तथा अंतिम संशोधन जून 2005 में किया गया था।
- संशोधन के साथ, 'गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) शब्दों को 'गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस और फार्मास्युटिकल उत्पादों के लिये परिसर, संयंत्र तथा उपकरण की आवश्यकताएँ' से प्रतिस्थापित कर दिया गया है।
- GMP को पहली बार वर्ष 1988 में औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 की अनुसूची M में शामिल किया गया था तथा अंतिम संशोधन जून 2005 में किया गया था।
- अनुसूची M फार्मास्युटिकल उत्पादों के लिये गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) निर्धारित करती है।
- संशोधित अनुसूची M GMP के पालन पर ज़ोर देती है और परिसर, संयंत्र तथा उपकरण की आवश्यकताओं को शामिल करती है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) GMP मानकों के साथ संरेखण सुनिश्चित करता है।
- GMP एक अनिवार्य मानक है जो सामग्री, विधियों, मशीनों, प्रक्रियाओं, कर्मियों, सुविधा/पर्यावरण आदि पर नियंत्रण के माध्यम से उत्पाद में गुणवत्ता बनाता है और लाता है।
- अद्यतन अनुसूची M में एक फार्मास्युटिकल गुणवत्ता प्रणाली (PQS), गुणवत्ता जोखिम प्रबंधन (QRM), उत्पाद गुणवत्ता समीक्षा (PQR), उपकरणों की योग्यता और सत्यापन तथा सभी दवा उत्पादों के लिये एक कंप्यूटरीकृत भंडारण प्रणाली का परिचय दिया गया है।
भारतीय दवाओं में गुणवत्ता संबंधी हालिया मामले
- दिसंबर 2023 में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO) के आँकड़ों से पता चलता है कि 54 भारतीय निर्माताओं के कम-से-कम 6% कफ सिरप नमूने निर्यात के लिये अनिवार्य गुणवत्ता परीक्षण में विफल रहे।
- गाम्बिया, उज्बेकिस्तान, कैमरून और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इन दवाओं को लेने वाले बच्चों की मौत के बाद चिंता व्यक्त की।
- अप्रैल 2023 में, यूएस सेंटर फॉर डिजीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) और फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (USFDA) ने कथित तौर पर भारत से आयातित आई ड्रॉप्स से जुड़े दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया स्ट्रेन पर चिंता जताई थी।
UCPMP 2024 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- प्रलोभनों पर प्रतिबंध:
- चिकित्सा प्रतिनिधियों (Medical Representatives) को स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों तक पहुँच प्राप्त करने के लिये प्रलोभन का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
- भुगतान और उपहार का निषेध:
- कंपनियों को स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों या उनके परिवार के सदस्यों को नकद, मौद्रिक अनुदान या आर्थिक लाभ देने से रोक दिया गया है।
- फार्मास्युटिकल कंपनियों को दवाओं के प्रिस्क्रिप्शन या आपूर्ति करने के लिये योग्य व्यक्तियों को उपहार या कोई आर्थिक लाभ देने से मना किया गया है।
- साक्ष्य-आधारित दावे:
- किसी दवा के लाभ के दावों को अद्यतन साक्ष्य द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये और "सुरक्षित" (Safe) तथा "नया" (New) जैसे शब्दों का समुचित उपयोग किया जाना चाहिये।
- केवल पारदर्शी CME कार्यक्रम:
- फार्मास्युटिकल कंपनियाँ केवल सुपरिभाषित, पारदर्शी और सत्यापन योग्य दिशा-निर्देशों के माध्यम से सतत् चिकित्सा शिक्षा (CME) के लिये स्वास्थ्य पेशेवरों (HCPs) के साथ जुड़ सकती हैं।
- सख्त अनुपालन:
- UCPMP को सभी फार्मास्युटिकल कंपनियों और एसोसिएशनों द्वारा सख्ती से अनुपालन के लिये प्रसारित किया जाएगा।
- सभी एसोसिएशनों को फार्मास्युटिकल विपणन प्रथाओं के लिये एक आचार समिति का गठन करना होगा।
भारत में फार्मास्युटिकल उद्योग
- आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में उल्लेख किया गया है कि भारत दुनिया भर में फार्मा उत्पादों के उत्पादन में मात्रा के अनुसार तीसरे स्थान पर और मूल्य के अनुसार से 14वें स्थान पर है।
- फार्मा उद्योग के वर्ष 2030 तक 130 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। भारत फार्मास्यूटिकल्स का एक प्रमुख निर्यातक है और 200 से अधिक देशों में भारतीय फार्मा उत्पादों का निर्यात होता है।
- यह वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है, मात्रा के अनुसार वैश्विक आपूर्ति में 20% हिस्सेदारी रखता है और विश्व स्तर पर अग्रणी वैक्सीन निर्माता है।
- भारत अफ्रीका की जेनरिक दवाओं की मांग का 50%, अमेरिका में जेनेरिक मांग का 40% और ब्रिटेन में सभी दवाओं की 25% आपूर्ति करता है।
- वैश्विक वैक्सीन मांग की लगभग 60% आपूर्ति भारत द्वारा की जाती है। WHO की 70% वैक्सीन भारत द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं।
फार्मा सेक्टर से संबंधित योजनाएँ:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारत सरकार दवा के पारंपरिक ज्ञान को दवा कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019) |
जैव विविधता और पर्यावरण
ग्रेट बैरियर रीफ में कोरल ब्लीचिंग
प्रिलिम्स के लिये:प्रवाल विरंजन ,ग्रेट बैरियर रीफ, अल नीनो, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल मेन्स के लिये:समुद्री जैवविविधता, जलवायु परिवर्तन पर प्रवाल विरंजन का प्रभाव |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
ऑस्ट्रेलियाई के अधिकारियों द्वारा हाल ही में किये गए हवाई सर्वेक्षणों से ग्रेट बैरियर रीफ के दो-तिहाई भाग में बड़े पैमाने पर प्रवाल विरंजन की पुष्टि हुई है, जो जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर रूप से संकतग्रस्त का संकेत है। प्रभावों को कम करने के साथ ही इस महत्त्वपूर्ण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा के लिये तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता भी है।
ग्रेट बैरियर रीफ (GBR)
- GBR विश्व की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति प्रणाली है। यह ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के तट पर कोरल सागर में स्थित है।
- GBR 2,300 किमी. तक विस्तृत है और लगभग 3,000 चट्टानों के साथ 900 द्वीपों से निर्मित है।
- GBR 400 प्रकार के प्रवालों तथा 1,500 मछलियों की प्रजातियों का आवास भी है। यह डुगोंग एवं बड़े हरे कछुए जैसी लुप्तप्राय प्रजातियों का भी आवास है। GBR को एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में वर्ष 1981 में चिह्नित किया गया था।
- वर्ष 2023 में यूनेस्को हेरिटेज कमेटी द्वारा ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ को "संकतग्रस्त" साइट के रूप में सूचीबद्ध करने में प्रतिबद्धता नहीं दिखाई, किंतु चेतावनी दी कि विश्व की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्र प्रदूषण एवं महासागरों के गर्म होने से "गंभीर रूप से संकतग्रस्त" में है।
- ग्रेट बैरियर रीफ में पहली बार वर्ष 1998 में बड़े पैमाने पर विरंजन देखा गया, इसके बाद वर्ष 2002, 2016, 2017, 2020, 2022 और 2024 में विरंजन की घटनाएँ देखी गई।
ग्रेट बैरियर रीफ में प्रवाल विरंजन में कौन-से कारक योगदान दे रहे हैं?
- तापमान तनाव:
- जल का अधिक तापमान प्रवाल विरंजन की घटना में वृद्धि कर सकता है, जिससे प्रवाल अपने ऊतकों में रहने वाले शैवाल (ज़ूक्सैन्थेला) को बाहर निकाल देते हैं और सफेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं।
- दीर्घकाल तक सागर की सतह का तापमान औसत से अधिक होने के कारण प्रवाल पर तापमान तनाव उत्पन्न होता है, जिससे विरंजन की घटना में वृद्धि होती है।
- विरंजित प्रवाल मृत नहीं होते, बल्कि संवेदनशील हैं और कुपोषण तथा रोग से ग्रस्त है। लगातार तापमान तनाव प्रवाल मृत्यु का कारण बन सकता है।
- जल का अधिक तापमान प्रवाल विरंजन की घटना में वृद्धि कर सकता है, जिससे प्रवाल अपने ऊतकों में रहने वाले शैवाल (ज़ूक्सैन्थेला) को बाहर निकाल देते हैं और सफेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
- जलवायु परिवर्तन क कारण समुद्र का तापमान बढ़ने से तनाव और मृत्यु दर के प्रति प्रवाल की संवेदनशीलता बढ़ जाती है, जिससे अल नीनो स्थितियों के कारण विश्व स्तर पर बड़े पैमाने पर विरंजन की घटनाएँ होती हैं।
- अन्य पर्यावरणीय तनाव:
- जल का कम तापमान, प्रदूषण, अपवाह और अत्यधिक निम्न ज्वार भी प्रवाल विरंजन को प्रेरित कर सकते हैं, जो इस घटना की बहुमुखी प्रकृति को उजागर करता है।
- शैवाल संबंध:
- प्रवाल विरंजन तब होता है, जब प्रवालों और शैवाल के बीच सहजीवी संबंध बाधित हो जाता है, जिससे प्रवाल के पोषण स्रोत पर असर पड़ता है तथा वे रोग के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
प्रवाल विरंजन के निहितार्थ क्या हैं?
- पारिस्थितिक प्रभाव:
- प्रवाल भित्ति (जिन्हें समुद्र का वर्षावन भी कहा जाता है) महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र हैं जो समुद्री जीवन की एक विविध शृंखला का समर्थन करते हैं। प्रवाल विरंजन से निवास स्थान और जैवविविधता का नुकसान हो सकता है, जिससे मछलियों की आबादी, समुद्री पौधे तथा अन्य जीव प्रभावित हो सकते हैं जो जीवित रहने के लिये मूंगा चट्टानों पर निर्भर हैं।
- आर्थिक परिणाम:
- प्रवाल भित्ति तटीय सुरक्षा, पर्यटन और मत्स्य पालन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्र समाज को प्रति वर्ष 375 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के संसाधन और सेवाएँ प्रदान करता है। विरंजन के कारण प्रवाल भित्ति के क्षरण से आर्थिक परिणाम हो सकते हैं, जिससे पर्यटन और मछली पकड़ने जैसे उद्योग प्रभावित हो सकते हैं, जो स्वस्थ चट्टान पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर हैं।
- खाद्य सुरक्षा:
- प्रवाल भित्ति दुनिया भर में लाखों लोगों को भोजन और आजीविका प्रदान करती हैं। प्रवाल विरंजन से समुद्री भोजन की उपलब्धता को खतरा है और मछली पकड़ने और चट्टान से संबंधित पर्यटन पर निर्भर समुदायों की आजीविका बाधित हो सकती है।
- जलवायु परिवर्तन संकेतक:
- प्रवाल विरंजन समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के एक दृश्य संकेतक के रूप में कार्य करता है।
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की हानि:
- प्रवाल भित्तियाँ आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करती हैं, जिनमें तटरेखा संरक्षण, पोषक चक्रण और कार्बन पृथक्करण शामिल हैं।
- विरंजन से इन सेवाओं को प्रदान करने के लिये चट्टानों की क्षमता कम हो जाती है, जिससे समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और तटीय समुदायों का समग्र स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित स्थितियों में से किस एक में “जैवशैल प्रौद्योगिकी (बायोरॉक टेक्नोलॉजी )” की बातें होती हैं? (2022) (a) क्षतिग्रस्त प्रवाल भित्तियों (कोरल रीफ्स) की बहाली उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित में से किनमें प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं? (2014)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. उदाहरण के साथ प्रवाल जीवन प्रणाली पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव का आकलन कीजिये। (2019) |
जैव विविधता और पर्यावरण
मानव-पशु संघर्ष
प्रीलिम्स:मानव-पशु संघर्ष, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, जैवविविधता अधिनियम, 2002 मेन्स:मानव-पशु संघर्ष, मानव-वन्यजीव संघर्ष के मुद्दे और समाधान। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
पशुओं के हमलों से लगातार हो रही मौतों और उन पर बढ़ते गुस्से के बीच, केरल ने मानव-पशु संघर्ष को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित कर दिया है।
- यह घोषणा एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का संकेत देती है कि सरकार इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे को कैसे संबोधित करती है, इसमें शामिल ज़िम्मेदारियों और अधिकारियों को बदल दिया जाता है।
राज्य-विशिष्ट आपदा के रूप में राज्य मानव-पशु संघर्ष को कैसे नियंत्रण करते हैं?
स्थिति |
वर्तमान प्रबंधन |
प्रस्तावित परिवर्तन (राज्य विशिष्ट आपदा) |
उत्तरदायित्व |
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत वन विभाग। |
आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण |
निर्णयदाता अधिकारी |
मुख्य वन्यजीव वार्डन |
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री) |
ज़िला स्तरीय प्राधिकरण |
ज़िला कलेक्टर कार्यकारी मजिस्ट्रेट के रूप में |
ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में ज़िला कलेक्टर |
हस्तक्षेप क्षमता |
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम द्वारा सीमित |
आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के तहत निर्णायक कार्रवाई करने की शक्तियों में वृद्धि |
न्यायिक निरीक्षण |
वन्यजीव कानूनों के तहत निर्णयों पर न्यायालय में प्रश्न उठाए जा सकते हैं |
आपदा प्रबंधन अधिनियम के प्रावधानों के कारण सीमित न्यायिक हस्तक्षेप |
न्यायालयों का क्षेत्राधिकार |
न्यायालय प्रासंगिक वन्यजीव कानूनों के तहत मुकदमों पर विचार कर सकती हैं |
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2025 (धारा 71) के तहत कार्रवाई से संबंधित मुकदमों पर केवल उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय ही विचार कर सकता है। |
मानदंडों को ओवरराइड करने की क्षमता |
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत सीमित |
घोषित आपदा अवधि के दौरान वन्यजीव कानूनों सहित अन्य मानदंडों को समाप्त करने का अधिकार (धारा 72 के तहत) |
- आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 71 के अनुसार, कोई भी न्यायालय (उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय को छोड़कर) को इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त किसी भी शक्ति के अनुसरण में संबंधित अधिकारियों द्वारा किये गए किसी भी मामले के संबंध में किसी भी मुकदमे या कार्यवाही पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं होगा।
- अधिनियम की धारा 72 में कहा गया है कि इस अधिनियम के प्रावधानों का आपदा घोषित होने की विशिष्ट अवधि के दौरान किसी अन्य कानून पर अत्यधिक प्रभाव पड़ेगा।
- अन्य राज्य-विशिष्ट आपदाएँ:
- वर्ष 2015 में ओडिशा ने सर्पदंश को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया।
- वर्ष 2020 में केरल ने कोविड-19 को राज्य विशिष्ट आपदा घोषित किया।
- इसके अतिरिक्त वर्ष 2019 में हीट वेव, सनबर्न और सनस्ट्रोक, वर्ष 2017 में साॅइल पाइपिंग की परिघटना और वर्ष 2015 में आकाशीय बिजली/तड़ित तथा तटीय क्षरण को भी राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया गया।
मानव-पशु संघर्ष क्या है?
- परिचय:
- मानव-पशु संघर्ष उन स्थितियों को संदर्भित करता है जहाँ मानव गतिविधियों, जैसे कि कृषि, बुनियादी ढाँचे का विकास अथवा संसाधन निष्कर्षण, में वन्य पशुओं के साथ संघर्ष की स्थिति होती हैं, इसकी वजह से मानव एवं पशुओं दोनों के लिये नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं।
- प्रभाव:
- आर्थिक क्षति: मानव-पशु संघर्ष के परिणामस्वरूप लोगों, विशेष रूप से किसानों और पशुपालकों की आर्थिक क्षति हो सकती है। वन्य पशु फसलों को नष्ट कर सकते हैं, बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचा सकते हैं तथा पशुधन को हानि पहुँचा सकते हैं जिससे वित्तीय कठिनाई हो सकती है।
- मानव सुरक्षा के लिये खतरा: जंगली जानवर मानव सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न कर सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मानव और वन्यजीव सह-अस्तित्व में रहते हैं। शेर, बाघ और भालू जैसे बड़े शिकारियों के हमलों के परिणामस्वरूप गंभीर चोट या मृत्यु हो सकती है।
- पारिस्थितिक क्षति: मानव-पशु संघर्ष पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। उदाहरण के लिये, यदि मानव शिकारी-पशुओं को मारते हैं तो शिकार-पशुओं की आबादी में वृद्धि हो सकती है, जो पारिस्थितिक असंतुलन का कारण बन सकती है।
- संरक्षण चुनौतियाँ: मानव-पशु संघर्ष भी संरक्षण प्रयासों के लिये एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि इससे वन्यजीवों की नकारात्मक धारणा हो सकती हैं तथा संरक्षण उपायों को लागू करना कठिन हो सकता है।
- मनोवैज्ञानिक प्रभाव: मानव-पशु संघर्ष का लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी हो सकता है, विशेष रूप से उन लोगों पर जिन्होंने हमलों या संपत्ति के नुकसान का अनुभव किया है। यह भय, चिंता और आघात का कारण बन सकता है।
मानव-पशु संघर्ष की रोकथाम करने के लिये कौन-सी रणनीतियाँ लागू की जा सकती हैं?
- पर्यावास प्रबंधन:
- वन्यजीवों के लिये प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा और बहाली से भोजन तथा आश्रय की तलाश में मानव बस्तियों में प्रवेश करने की उनकी आवश्यकता कम हो सकती है।
- इसमें वन्यजीव गलियारे निर्मित करना, संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना करना और सतत् भूमि-उपयोग प्रथाओं को लागू करना शामिल हो सकता है।
- फसल सुरक्षा के उपाय:
- बाड़ व्यवस्था, पशुओं को भयभीत करने वाले उपकरण और फसल विविधीकरण जैसी विधियों से फसलों को वन्यजीवों द्वारा की जाने वाली क्षति से बचाया जा सकता है जिससे किसानों का आर्थिक नुकसान कम हो सकता है।
- त्वरित चेतावनी प्रणाली:
- त्वरित चेतावनी प्रणालियों का विकास और कार्यान्वन जैसे समुदायों को निकटवर्ती वन्यजीवों की उपस्थिति के बारे में सचेत करना, मानव-वन्यजीव संघर्ष की रोकथाम करने एवं मानव सुरक्षा के सम्मुख खतरों को कम करने में मदद कर सकता है।
- सामुदायिक सहभागिता एवं शिक्षा:
- स्थानीय समुदायों को वन्यजीवों के साथ सहअस्तित्व के बारे में शिक्षित करना, संरक्षण के महत्त्व के संबंध में जागरूकता बढ़ाना और संघर्ष समाधान तकनीकों में प्रशिक्षण प्रदान करने से वन्य पशुओं के प्रति अधिक समझ तथा सहिष्णुता को बढ़ावा मिल सकता है।
- संघर्ष समाधान तंत्र:
- वन्यजीव संघर्ष प्रतिक्रिया दल अथवा हॉटलाइन जैसे संघर्ष समाधान तंत्र स्थापित करने से समय पर निर्णय करने की सुविधा मिल सकती है और मनुष्यों एवं पशुओं के बीच संघर्ष को कम किया जा सकता है।
मानव-पशु संघर्ष से निपटने के लिये सरकारी उपाय क्या हैं?
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972: यह अधिनियम गतिविधियों, शिकार पर प्रतिबंध, वन्यजीव आवासों की सुरक्षा और प्रबंधन तथा संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना आदि के लिये कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
- जैविक विविधता अधिनियम, 2002: भारत, जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का एक हिस्सा है। यह सुनिश्चित करता है कि जैविक विविधता अधिनियम वनों और वन्यजीवों से संबंधित मौजूदा कानूनों का खंडन करने के बजाय पूरक है।
- राष्ट्रीय वन्यजीव कार्य योजना (2002-2016): यह संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क को मज़बूत करने और बढ़ाने, लुप्तप्राय वन्यजीवों तथा उनके आवासों के संरक्षण, वन्यजीव उत्पादों में व्यापार को नियंत्रित करने एवं अनुसंधान, शिक्षा व प्रशिक्षण पर केंद्रित है।
- प्रोजेक्ट टाइगर: प्रोजेक्ट टाइगर एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जो वर्ष 1973 में शुरू की गई थी। यह देश के राष्ट्रीय उद्यानों में बाघों के लिये आश्रय प्रदान करती है।
- हाथी परियोजना: यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है और हाथियों, उनके आवासों तथा गलियारों की सुरक्षा के लिये फरवरी 1992 में शुरू की गई थी।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: यह अपनी विकास योजनाओं और परियोजनाओं में आपदा की रोकथाम या इसके प्रभावों को कम करने के उपायों को एकीकृत करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों या विभागों द्वारा पालन किये जाने वाले दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. वाणिज्य में प्राणिजात और वनस्पति-जात के व्यापार-संबंधी विश्लेषण (ट्रेड रिलेटेड एनालिसिस ऑफ फौना एंड फ्लौरा इन कॉमर्स/TRAFFIC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. पहले के प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण से हटकर भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन हेतु शुरू किये गए हालिया उपायों की चर्चा कीजिये। (2020) प्रश्न. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के दिशा-निर्देशों के संदर्भ में उत्तराखंड के कई स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के प्रभाव को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (2016) |