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डेली न्यूज़

  • 12 Nov, 2022
  • 65 min read
इन्फोग्राफिक्स

राज्यपाल (भाग-1)

Governor


इन्फोग्राफिक्स

राज्यपाल भाग-II

Governor-2


शासन व्यवस्था

ग्लोबल वैक्सीन मार्केट रिपोर्ट 2022

प्रिलिम्स के लिये:

वैक्सीन असमानता, विश्व स्वास्थ्य संगठन, कोविड-19, ग्लोबल वैक्सीन मार्केट रिपोर्ट 2022, टीकाकरण एजेंडा 2030 (IA2030)

मेन्स के लिये:

वैक्सीन असमानता का मुद्दा, चुनौतियाँ और समाधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 'ग्लोबल वैक्सीन मार्केट रिपोर्ट 2022' जारी की।

  • वैक्सीन बाज़ार पर कोविड-19 के प्रभावों को शामिल करते हुए वैक्सीन के असमान वितरण की समस्या को उज़ागर करने वाली यह पहली रिपोर्ट है।

प्रमुख बिंदु

  • वैक्सीन का असमान वितरण, कोई असमान्य घटना नहीं:
    • यह दर्शाता है कि असमान वितरण कोविड-19 वैक्सीन के लिये अद्वितीय नहीं है, कम आय वाले देश लगातार उन वैक्सीनों तक पहुँचने हेतु संघर्ष कर रहे हैं जिनकी उच्च आय वाले देशों द्वारा मांग की जा रही है। सीमित वैक्सीन आपूर्ति और असमान वितरण वैश्विक असमानताओं को बढ़ाता है।
      • गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर के खिलाफ मानव पेपिलोमावायरस (HPV) वैक्सीन केवल 41% कम आय वाले देशों को प्रदान की गई है, जबकि वे उच्च आय वाले देशों की तुलना में 83% अधिक बीमारी के बोझ का वहन करते हैं।
  • मूल्य असमानताएँ:
    • वैक्सीन की पहुँच में वहनीयता एक बड़ी बाधा है, जबकि कीमतें आय के आधार पर निर्धारित होती हैं, मूल्य असमानता के कारण मध्यम-आय वाले देशों को कई वैक्सीन उत्पादों के लिये धनी देशों की तुलना में अधिक या उससे भी अधिक भुगतान करना पड़ता है।
  • मुक्त बाज़ार गतिशीलता:
    • मुक्त बाज़ार की गतिशीलता दुनिया के कुछ सबसे गरीब और सबसे कमज़ोर लोगों को उनके स्वास्थ्य के अधिकार से वंचित कर रही है। इसलिये जीवन बचाने, बीमारी को रोकने और भविष्य के संकटों के लिये तैयार रहने हेतु वैश्विक वैक्सीन बाज़ार में बदलाव की आवश्यकता है।
  • स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान स्केल-अप:
    • वर्ष 2021 में 141 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की लगभग 16 बिलियन वैक्सीन की आपूर्ति की गई, जो वर्ष 2019 के बाज़ार की मात्रा (5.8 बिलियन) से लगभग तीन गुना और वर्ष 2019 के बाज़ार मूल्य (38 बिलियन अमेरिकी डॉलर) से लगभग साढ़े तीन गुना अधिक है।
      • यह वृद्धि मुख्य रूप से कोविड -19 वैक्सीन के कारण देखी गई, जो इस बात की पुष्टि करती है कि स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिये वैक्सीन निर्माण को कैसे बढ़ाया जा सकता है।
  • विनिर्माण केंद्रित आधार:
    • हालाँकि दुनिया भर में विनिर्माण क्षमता में वृद्धि हुई है लेकिन यह अत्यधिक केंद्रित है।
      • अकेले दस निर्माता वैक्सीन की 70% खुराक प्रदान करते हैं (कोविड-19 को छोड़कर)।
      • व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले शीर्ष 20 वैक्सीन (जैसे PCV, HPV, खसरा और रूबेला की वैक्सीन) में से प्रत्येक वर्तमान में मुख्य रूप से दो आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरे हैं।
      • वर्ष 2021 में अफ्रीकी और पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र वैक्सीन खरीद के मामले में अपनी 90% आपूर्ति के लिये उन निर्माताओं पर निर्भर थे जिनका मुख्यालय कहीं और था।
    • इन केंद्रीकृत विनिर्माण इकाइयों के कारण वैक्सीन की कमी संबंधी ज़ोखिम के साथ-साथ क्षेत्रीय आपूर्ति असुरक्षा का भी भय बना रहता है।
    • मज़बूत बौद्धिक संपदा एकाधिकार तथा सीमित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण स्थानीय विनिर्माण क्षमता निर्माण एवं उपयोग की क्षमता को और भी सीमित करता है।
  • कोविड-19 के अलावा अन्य वैक्सीन में सीमित निवेश:
    • आमतौर पर आपात जैसी स्थितियों के लिये आवश्यक कई वैक्सीनों के लिये बाज़ारों की स्थिति भी चिंता का विषय है, जैसे कि हैजा, टाइफाइड, चेचक/मंकीपॉक्स, इबोला, मेनिंगोकोकल रोग के प्रकोप के साथ-साथ वैक्सीन की मांग भी बढ़ती है, इसलिये इस संबंध में कम अनुमान लगाया जा सकता है।
      • निरंतर हीं इन वैक्सीन के विनिर्माण में सीमित निवेश के कारण आम जन-जीवन के स्वास्थ्य के लिये यह विनाशकारी हो सकता है।
  • प्रतिरक्षण रणनीति- 2030 (IA 2030):
    • यह रिपोर्ट प्रतिरक्षण रणनीति- 2030 (IA 2030) लक्ष्यों को प्राप्त करने और महामारी की रोकथाम, तैयारी और प्रतिक्रिया प्रयासों को सूचित करने की दिशा में सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंडा के साथ वैक्सीनों के विकास, उत्पादन एवं वितरण के अधिक संरेखण के अवसरों पर प्रकाश डालती है।

रिपोर्ट की सिफारिशें:

  • सरकारों के लिये:
    • प्रतिरक्षण हेतु एक स्पष्ट टीकाकरण योजना तैयार करने के साथ व्यापक निवेश की व्यवस्था करना।
    • वैक्सीन के विकास, उत्पादन और वितरण की मज़बूत निगरानी व्यवस्था सुनिश्चि करना।
    • क्षेत्रीय अनुसंधान और विनिर्माण केंद्रों पर ज़ोर देना।
    • वैक्सीन वितरण, बौद्धिक संपदा और वस्तुओं के आदान-प्रदान तथा प्रसार की कमी जैसे मुद्दों पर सरकारी सहयोग के लिये पूर्व-सहमत नियम तैयार करना।
  • उद्योग के लिये:
    • WHO द्वारा निर्धारित प्राथमिकता वाले रोगजनकों के लिये अनुसंधान प्रयासों पर ध्यान देना।
    • पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
    • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुगम बनाना।
    • विशिष्ट इक्विटी-संचालित आवंटन उपायों के लिये प्रतिबद्ध होना।
  • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और भागीदारों के लिये:
    • प्रतिरक्षण रणनीति 2030 के लक्ष्यों को प्राथमिकता देना।
    • देशों द्वारा संचालित पहलों का समर्थन करना।
    • बाज़ार पारदर्शिता के संकल्पों को लागू करने के लिये दबाव बनाना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. कोविड-19 वैश्विक महामारी को रोकने के लिये बनाई जा रही वैक्सीनों के प्रसंग में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. सीरम संस्थान ने mRNA प्लेटफॉर्म का प्रयोग कर कोविशील्ड नामक कोविड-19 वैक्सीन निर्मित की।
  2. स्पुतनिक V वैक्सीन रोगवाहक (वेक्टर) आधारित प्लेटफॉर्म का प्रयोग कर बनाई गई है।
  3. कोवैक्सीन एक निष्कृत रोगजनक आधारित वैक्सीन है।

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: B

 व्याख्या:

  • COVISHIELD वैक्सीन उस प्लेटफॉर्म पर आधारित है जो SARS-CoV-2 स्पाइक (S) ग्लाइकोप्रोटीन को एन्कोडिंग करने वाले एक पुनःसंयोजक, प्रतिकृति-रहित चिंपैंजी एडेनोवायरस वेक्टर का उपयोग करता है। इसे लगाए जाने के बाद, कोरोनावायरस के हिस्से की आनुवंशिक सामग्री प्रकट होती है जो एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को उत्तेजित करती है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • स्पुतनिक V एक अच्छी तरह से अध्ययन किये गए मानव एडेनोवायरस वेक्टर प्लेटफॉर्म पर आधारित विश्व का पहला पंजीकृत टीका है। इसे 4 अरब लोगों की कुल आबादी वाले 71 देशों में उपयोग के लिये मंज़ूरी दी गई है। वैक्सीन का नाम पहले सोवियत अंतरिक्ष उपग्रह के नाम पर रखा गया है। 5 दिसंबर, 2020 और 31 मार्च, 2021 के बीच दोनों वैक्सीन घटकों के साथ टीके लगाए गए रूसियों के बीच कोरोनावायरस की घटनाओं के आँकड़ों के विश्लेषण के आधार पर वैक्सीन की प्रभावकारिता 97.6% है। अतः कथन 2 सही है।
  • Covaxin एक निष्क्रिय वायरल टीका है। इस वैक्सीन को होल-विरियन इनएक्टिवेटेड वेरो सेल-व्युत्पन्न तकनीक से विकसित किया गया है। उनमें निष्क्रिय वायरस होते हैं, जो किसी व्यक्ति को संक्रमित नहीं कर सकते हैं, लेकिन फिर भी प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय वायरस के खिलाफ एक रक्षा तंत्र तैयार करने में सक्षम बनाया जा सकता है। अतः कथन 3 सही है।

अत:  विकल्प B सही है।


मेंस

प्रश्न. वैक्सीन के विकास के पीछे मूल सिद्धांत क्या है? वैक्सीन कैसे काम करती हैं? कोविड-19 वैक्सीन के उत्पादन के लिये भारतीय वैक्सीन निर्माताओं द्वारा क्या दृष्टिकोण अपनाए गए थे? (2022)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

'ईट राइट स्टेशन' सर्टिफिकेशन

प्रिलिम्स के लिये:

'ईट राइट स्टेशन' सर्टिफिकेशन, खाद्य सुरक्षा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017, आयुष्मान भारत, पोषण अभियान, एनीमिया मुक्त भारत, स्वच्छ भारत मिशन

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा और संबंधित पहल का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भोपाल रेलवे स्टेशन को यात्रियों को उच्च-गुणवत्ता युक्त पौष्टिक भोजन प्रदान करने के लिये 4-स्टार 'ईट राइट स्टेशन' सर्टिफिकेशन से सम्मानित किया गया है।

  • 4-स्टार रेटिंग, यात्रियों को सुरक्षित और स्वच्छ भोजन उपलब्ध कराने के लिये स्टेशन द्वारा मानकों के पूर्ण रूप से अनुपालन का संकेत है।

'ईट राइट स्टेशन' सर्टिफिकेशन:

  • परिचय:
    • भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा 'ईट राइट स्टेशन' सर्टिफिकेशन या प्रमाणन उन रेलवे स्टेशनों को प्रदान किया जाता है जो यात्रियों को सुरक्षित और पौष्टिक भोजन प्रदान करने में मानक (खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के अनुसार) स्थापित करते हैं।
    • रेलवे स्टेशन को 1 से 5 तक की रेटिंग वाली FSSAI पैनल की तृतीय-पक्ष ऑडिट एजेंसी के निष्कर्ष पर उक्त प्रमाण पत्र से सम्मानित किया गया है।
    • यह प्रमाणन 'ईट राइट इंडिया' अभियान का हिस्सा है।
  • प्रमाणन वाले अन्य रेलवे स्टेशन:
    • आनंद विहार टर्मिनल रेलवे स्टेशन (दिल्ली), छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (मुंबई), मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन (मुंबई), वडोदरा रेलवे स्टेशन, चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन।

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  • ईट राइट मूवमेंट
    • यह सभी भारतीयों हेतु सुरक्षित, स्वस्थ और टिकाऊ भोजन सुनिश्चित कर देश की खाद्य प्रणाली को बदलने के लिये भारत और FSSAI की एक पहल है। इसकी टैगलाइन है- 'सही भोजन बेहतर जीवन'।
    • ईट राइट इंडिया, राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 से जुड़ा हुआ है, जिसमें आयुष्मान भारत, पोषण अभियान, एनीमिया मुक्त भारत और स्वच्छ भारत मिशन जैसे प्रमुख कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • यह खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये नियामक, क्षमता निर्माण, सहयोगात्मक और सशक्तीकरण दृष्टिकोण के विवेकपूर्ण संयोजन को अपनाता है।

संबंधित पहल:

  • राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक:
    • FSSAI ने खाद्य सुरक्षा के पाँच मापदंडों पर राज्यों के प्रदर्शन को मापने के लिये राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक (SFSI) विकसित किया है। इसमे मानव संसाधन और संस्थागत डेटा, अनुपालन, खाद्य परीक्षण, बुनियादी ढाँचा तथा निगरानी, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण और उपभोक्ता सशक्तीकरण शामिल है।
  • ईट राइट अवार्ड्स:
    • FSSAI ने नागरिकों को सुरक्षित और स्वस्थ भोजन विकल्प चुनने तथा खाद्यान्न कंपनियों तएवं व्यक्तियों के योगदान को मान्यता देने हेतु 'ईट राइट अवार्ड्स' की स्थापना की है, जो नागरिकों के बेहतर स्वास्थ्य और देखभाल सुनिश्चित करने में सहायक होगा।
  • ईट राइट मेला:
    • FSSAI द्वारा आयोजित यह मेला नागरिकों को सही खान-पान हेतु प्रेरित करने के लिये एक आउटरीच गतिविधि है।

खाद्य सुरक्षा का महत्त्व:

  • पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित भोजन की उपलब्धता एवं पहुँच जीवन और अच्छे स्वास्थ्य की कुंजी है।
    • खाद्य जनित बीमारियाँ आमतौर पर प्रकृति में संक्रामक अथवा विषाक्त होती हैं और अक्सर बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी या रासायनिक पदार्थों से दूषित भोजन या पानी के माध्यम से शरीर में प्रवेश करने के कारण होती हैं।
    • अनुमानित रूप से विश्व भर में 4,20,000 लोग प्रतिवर्ष दूषित भोजन खाने के कारण मर जाते हैं। खाद्य जनित बीमारी के कारण होने वाली 40% मौतों में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या 1,25,000 है।
  • खाद्य शृंखला के हर चरण, यथा उत्पादन से लेकर कटाई, प्रसंस्करण, भंडारण, वितरण में खाद्य पदार्थों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
    • खाद्य पदार्थों का उत्पादन ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देने वाले वैश्विक ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन के 30% के लिये ज़िम्मेदार है।

FSSAI:

  • यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त निकाय है। इसे खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत स्थापित किया गया है, यह विभिन्न अधिनियमों एवं आदेशों को समेकित करता है जिसने अब तक विभिन्न मंत्रालयों तथा विभागों में खाद्य संबंधी मुद्दों के समाधान में सहायता की है।
  • खाद्य मानक और सुरक्षा अधिनियम, 2006 को खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954, फल उत्पाद आदेश, 1955 जैसे कई अधिनियमों और आदेशों के स्थान पर लाया गया।
  • FSSAI का नेतृत्त्व एक गैर-कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा किया जाता है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। वह भारत सरकार के अंतर्गत सचिव पद के समकक्ष हो अथवा सचिव पद से नीचे कार्यरत न रहा हो। FASSAI स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक के अधीन नहीं है।
  • FSSAI को मानव उपभोग के लिये सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु खाद्य पदार्थों के लिये विज्ञान आधारित मानकों को निर्धारित करने तथा उनके निर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात को विनियमित करने के लिये बनाया गया है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. भारत में पूर्व-संवेष्टित वस्तुओं के संदर्भ में खाद्य सुरक्षा और मानक (पैकेजिंग और लेबलिंग) विनियम, 2011 के अनुसार किसी निर्माता को मुख्य लेबल पर निम्नलिखित में से कौन-सी सूचना को अंकित करना अनिवार्य है? (2016)

1- संघटकों की सूची, जिसमें संयोजी शामिल हैं
2- पोषण-विषयक सूचना।
3- चिकित्सा व्यवसाय द्वारा दी गई किसी एलर्जी प्रतिक्रिया की संभावना के संदर्भ में संस्तुतियाँ यदि कोई हैं
4- शाकाहारी/मांसाहारी

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (c)

व्याख्या;

  • प्रीपैकेज्ड खाद्य पदार्थों की लेबलिंग के लिये खाद्य सुरक्षा और मानक (पैकेजिंग और लेबलिंग) विनियम, 2011 के अनुसार, खाद्य के प्रत्येक पैकेज पर निम्नलिखित जानकारी होगी:
    • भोजन का नाम: भोजन के नाम में व्यापारिक नाम या पैकेज में निहित भोजन का विवरण शामिल होगा।
    • सामग्री की सूची: एकल घटक खाद्य पदार्थों को छोड़कर, लेबल पर सामग्री की एक सूची घोषित की जाएगी। अतः 1 सही है।
    • "मांसाहारी" भोजन के प्रत्येक पैकेज पर एक प्रतीक और रंग कोड द्वारा इस आशय की घोषणा की जाएगी ताकि यह इंगित किया जा सके कि उत्पाद मांसाहारी भोजन है। प्रतीक में भूरे रंग का एक भरा हुआ वृत्त होगा, जिसका व्यास निर्दिष्ट न्यूनतम आकार से कम नहीं होगा। अतः 4 सही है।
    • पोषण संबंधी जानकारी या पोषण संबंधी तथ्य प्रति 100 ग्राम या 100 मिलीलीटर या उत्पाद के लेबल पर निम्नलिखित रूप में प्रदर्शित किये जाएंगे:
      • किलो कैलोरी में ऊर्जा मूल्य;
      • प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट (चीनी की निर्दिष्ट मात्रा) और ग्राम (g) में वसा की मात्रा;
      • किसी अन्य पोषक तत्त्व की मात्रा जिसके लिये पोषण या स्वास्थ्य का दावा किया जाता है;
  • जहाँ भी विटामिन और खनिजों पर संख्यात्मक जानकारी दी जाएगी, इसे मीट्रिक इकाइयों में व्यक्त किया जाएगा।
  • अतः 2 सही है।

अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।


प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 ने खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 का स्थान लिया।
  2. भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक के प्रभार में है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (A)

स्रोत:पी.आई.बी.


भारतीय इतिहास

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद

प्रिलिम्स के लिये:

मॉर्ले-मिंटो सुधार (1909), असहयोग आंदोलन, गांधीजी का नमक सत्याग्रह।

मेन्स के लिये:

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और उनका योगदान।

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री ने देश के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को उनकी 134वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

  • वर्ष 2008 से प्रतिवर्ष 11 नवंबर को मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जयंती को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

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मौलाना अबुल कलाम आज़ाद:

  • जन्म: मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जिनका मूल नाम मुहियुद्दीन अहमद था, का जन्म 11 नवंबर, 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था।
    • आज़ाद एक उत्कृष्ट वक्ता थे, जैसा कि उनके नाम से संकेत मिलता है- ‘अबुल कलाम’ का शाब्दिक अर्थ है ‘संवादों का देवता’ (Lord of Dialogues)।
  • संक्षिप्त परिचय:
    • वे एक पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद् थे।
  • योगदान (स्वतंत्रता पूर्व):
    • ये विभाजन के कट्टर विरोधी थे तथा हिंदू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे।
      • वर्ष 1912 में उन्होंने उर्दू में अल-हिलाल नामक एक साप्ताहिक पत्रिका शुरू की, जिसने मॉर्ले-मिंटो सुधारों (1909) के बाद दो समुदायों के बीच हुए मनमुटाव को समाप्त कर हिंदू-मुस्लिम एकता को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
        • वर्ष 1909 के सुधारों के तहत मुसलमानों के लिये अलग निर्वाचक मंडल के प्रावधान का हिंदुओं द्वारा विरोध किया गया था।
      • सरकार ने अल-हिलाल पत्रिका को अलगाववादी विचारों का प्रचारक माना और 1914 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया।
      • मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने हिंदू-मुस्लिम एकता पर आधारित भारतीय राष्ट्रवाद और क्रांतिकारी विचारों के प्रचार के समान मिशन के साथ अल-बालाग नामक एक अन्य साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन शुरू किया।
        • वर्ष 1916 में ब्रिटिश सरकार ने इस पत्र पर भी प्रतिबंध लगा दिया तथा मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को कलकत्ता से निष्कासित कर बिहार निर्वासित कर दिया गया, जहाँ से उन्हें वर्ष 1920 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद रिहा कर दिया गया था।
    • आज़ाद ने गांधीजी द्वारा शुरू किये गए असहयोग आंदोलन (1920-22) का समर्थन किया और 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस में शामिल हुए।
      • वर्ष 1923 में उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। 35 वर्ष की आयु में वह भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस की अध्यक्षता करने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति बन गए।
    • वर्ष 1930 में मौलाना आज़ाद को गांधीजी के नमक सत्याग्रह में शामिल होने तथा नमक कानून का उल्लंघन करने के लिये गिरफ्तार किया गया था। उन्हें डेढ़ साल तक मेरठ जेल में रखा गया था।
    • वे 1940 में फिर से कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष बने और 1946 तक इस पद पर बने रहे।
  • एक शिक्षाविद्:
    • शिक्षा के क्षेत्र में मौलाना आज़ाद उदारवादी सर्वहितवाद/सार्वभौमिकता के प्रतिपादक थे, जो वास्तव में उदार मानवीय शिक्षा प्रणाली थी।
    • शिक्षा के संदर्भ में आज़ाद की विचारधारा पूर्वी और पश्चिमी अवधारणाओं के सम्मिलन पर केंद्रित थी जिससे पूरी तरह से एकीकृत व्यक्तित्व का निर्माण हो सके। जहाँ पूर्वी अवधारणा आध्यात्मिक उत्कृष्टता एवं व्यक्तिगत मोक्ष पर आधारित थी वहीं पश्चिमी अवधारणा ने सांसारिक उपलब्धियों और सामाजिक प्रगति पर अधिक बल दिया।
    • वे जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापक सदस्यों में से एक थे जिसे मूल रूप से वर्ष 1920 में संयुक्त प्रांत के अलीगढ़ में स्थापित किया गया था।
  • उनकी रचनाएँ: बेसिक कॉन्सेप्ट ऑफ कुरान, गुबार-ए-खातिर, दर्श-ए-वफा, इंडिया विन्स फ्रीडम आदि।
  • योगदान (स्वतंत्रता के पश्चात्):
    • वर्ष 1947 में वह स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री बने और वर्ष 1958 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर बने रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने देश के उत्थान के लिये उल्लेखनीय कार्य किये।
      • शिक्षा मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान देश में पहले IIT, IISc, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की गई थी।
    • अन्य देशों में भारतीय संस्कृति के परिचय हेतु भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (Indian Council for Cultural Relations-ICCR) का गठन किया।
    • उन्होंने निम्नलिखित तीन अकादमियों का गठन किया:
  • मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को मरणोपरांत वर्ष 1992 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सी एक पत्रिका अबुल कलाम आज़ाद द्वारा निकाली गई थी? (2008)

(a) अल-हिलाल
(b) कॉमरेड
(c) भारतीय समाजशास्त्री
(d) ज़मींदार

उत्तर: (a)

प्रश्न. आज़ादी से पहले और बाद के भारत में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के योगदान पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2013)

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


जैव विविधता और पर्यावरण

विश्व वन लक्ष्यों को हासिल करने की राह पर नहीं

प्रिलिम्स के लिये:

पेरिस समझौता, वन, क्योटो प्रोटोकॉल, ग्रीन हाउस गैस, पार्टियों का सम्मेलन, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (COP 26), राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC)

मेन्स के लिये:

पेरिस जलवायु समझौता और इसके प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया वर्ष 2030 तक वनों की कटाई को रोकने और पूर्व स्थिति को प्राप्त करने संबंधी वन लक्ष्यों को हासिल करने की राह पर नहीं है।

  • पेरिस समझौते के तहत ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु वनों की कटाई को रोकना आवश्यक  है।

प्रमुख बिंदु:

  • उत्सर्जन में कटौती के लिये आवश्यक प्रतिबद्धताओं का केवल 24% ही अब तक पूरा किया गया है।
  • वन आधारित कार्य पेरिस समझौते की महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने में एक आवश्यक योगदान दे सकते हैं। यह जलवायु आपदा को रोकने में मदद करने के लिये लगभग 27% समाधान प्रदान कर सकता है।
  • वन आधारित समाधान वर्ष 2030 तक लगभग 4 गीगाटन की एक महत्त्वपूर्ण वार्षिक शमन क्षमता प्रदान करते हैं
  • स्वदेशी लोग और स्थानीय समुदाय इन परिणामों को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • हाई फारेस्ट लो डिफॉरेस्टशन (HFLD) देश दुनिया भर में उष्णकटिबंधीय वन कार्बन का 18% संग्रहीत करते हैं और पर्याप्त जलवायु वित्त तक उनकी पहुँच में तेज़ी  से सुधार किया जाना चाहिये।
  • लेकिन वर्तमान वन जलवायु वित्त तंत्र उनके ऐतिहासिक संरक्षण को पुरस्कृत करने और वनों की कटाई के बढ़ते दबावों का विरोध करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।

रिपोर्ट में दिये गए सुझाव:

  • मौजूदा प्रतिबद्धताओं को वास्तविकता में परिवर्तित किया जाना चाहिये और वनों के वित्तपोषण के लिये तत्काल नई प्रतिबद्धताएँ की जानी चाहिये।
  • इनमें से केवल आधी प्रतिबद्धताओं को ‘उत्सर्जन में कमी खरीद समझौतों’ के माध्यम से प्राप्त किया गया है। इन प्रतिबद्धताओं के लिये धन अभी तक उपलब्ध नहीं कराया गया है।
  • महत्त्वाकांक्षी वन-आधारित जलवायु समाधानों को विकसित करने और कार्यान्वित करने के लिये देशों को अपने कार्यों को बढ़ाने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
  • वनों की रक्षा, स्थायी प्रबंधन और पुनर्स्थापना के लिये प्रभावी कार्य लागत जलवायु परिवर्तन शमन प्रदान कर सकते हैं। ये क्रियाएँ जैवविविधता में गिरावट को भी कम कर सकती हैं तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ा सकती हैं।
  • वर्ष 2030 के लक्ष्यों को पहुँच के भीतर बनाए रखने के लिये वर्ष 2025 के बाद से प्रत्येक वर्ष उत्सर्जन में कमी की जानी चाहिये।

पेरिस समझौता:

  • परिचय:
    • पेरिस समझौते (जिसे कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़-21 या COP-21 के रूप में भी जाना जाता है) को वर्ष 2015 में अपनाया गया था।
      • इसने क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लिया जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये पूर्व में किया गया समझौता था।
    • पेरिस समझौता एक वैश्विक संधि है जिसमें लगभग 200 देश, ग्रीनहाउस गैसों (GHGs) के उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण के लिये सहयोग करने पर सहमत हुए हैं।
      • यह पूर्व-उद्योग स्तरों की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे, अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का प्रयास करता है।
  • कार्य:
    • ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती के अलावा पेरिस समझौते में हर पाँच वर्ष में उत्सर्जन में कटौती के लिये प्रत्येक देश के योगदान की समीक्षा करने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है ताकि वे संभावित चुनौती के लिये तैयार हो सकें। वर्ष 2020 तक, देशों ने NDCs के रूप में ज्ञात जलवायु कार्रवाई के लिये अपनी योजनाएँ प्रस्तुत की थीं।
    • दीर्घकालिक रणनीतियाँ: पेरिस समझौते के तहत दीर्घकालिक लक्ष्य की दिशा में उचित प्रयास करने के लिये देशों को वर्ष 2020 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने हेतु दीर्घकालिक विकास रणनीति (LT-LEDS) तैयार करने एवं प्रस्तुत करने को कहा गया है।
    • दीर्घकाल में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने हेतु विकास रणनीतियांँ (LT-LEDS) NDC के लिये दीर्घकालिक क्षितिज प्रदान करती हैं परंतु NDC की तरह वे अनिवार्य नहीं हैं।
  • प्रगति रिपोर्ट:
    • पेरिस समझौते के सहयोग से देशों ने उन्नत पारदर्शी ढाँचा (ETF) स्थापित किया है। वर्ष 2024 से शुरू होने वाले ETF के तहत देश जलवायु परिवर्तन शमन, अनुकूलन उपायों और प्रदत्त या प्राप्त समर्थन से की गई कार्रवाइयों एवं प्रगति की पारदर्शी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।
      • इसमें प्रस्तुत रिपोर्टों की समीक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रक्रियाओं का भी प्रावधान है।
      • ETF के माध्यम से एकत्र की गई जानकारी वैश्विक स्टॉकटेक में उपलब्ध होगी जो दीर्घकालिक जलवायु लक्ष्यों की दिशा में सामूहिक प्रगति का आकलन करेगी।

आगे की राह

  • इस दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये देशों को सदी के मध्य तक जलवायु-तटस्थ विश्व निर्माण के लिये जल्द-से-जल्द ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी हेतु वैश्विक लक्ष्य रखना चाहिये।
  • मध्यम अवधि के डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये स्पष्ट मार्ग के साथ विश्वसनीय अल्पकालिक प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता है, जो वायु प्रदूषण जैसी कई चुनौतियों को ध्यान में रखता हो, साथ ही विकास के लिये अधिक रक्षात्मक विकल्प हो सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. समझौते पर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे और यह वर्ष 2017 में लागू हुआ था।
  2. समझौते का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करना है ताकि इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस या 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो।
  3. विकसित देशों ने ग्लोबल वार्मिंग में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकार किया और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद करने हेतु वर्ष 2020 से सालाना 1000 अरब डॉलर की मदद के लिये प्रतिबद्ध हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का चाय उद्योग

प्रिलिम्स के लिये:

चाय, भारतीय चाय उद्योग, भौगोलिक संकेत (GI) टैग, दार्जिलिंग चाय, भारतीय चाय बोर्ड, एक ज़िला और एक उत्पाद (ODOP) योजना, चाय संवर्द्धन एवं विकास योजना, चाय सहयोग मोबाइल एप।

मेन्स के लिये:

भारतीय चाय उद्योग की स्थिति और संबंधित सरकारी पहलें।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्री ने भारतीय चाय संघ (ITA) के अंतर्राष्ट्रीय लघु चाय उत्पादक सम्मेलन को संबोधित किया।

  • वर्ष 1881 में स्थापित भारतीय चाय संघ (ITA) भारत में चाय उत्पादकों का प्रमुख और सबसे पुराना संगठन है। इसने नीतियाँ बनाने और उद्योग की वृद्धि एवं विकास के लिये कार्रवाई शुरू करने की दिशा में एक बहुआयामी भूमिका निभाई है।

भारतीय चाय उद्योग की स्थिति:

  • उत्पादन:
    • भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक है
    • भारत का उत्तरी भाग 2021-22 में देश के वार्षिक चाय उत्पादन का लगभग 83% के साथ सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसमें अधिकांश उत्पादन असम में होता है तथा उसके बाद पश्चिम बंगाल का स्थान है।
      • असम घाटी और कछार असम के दो चाय उत्पादक क्षेत्र हैं।
      • पश्चिम बंगाल में डुआर्स, तराई और दार्जिलिंग तीन प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्र हैं।
      • भारत का दक्षिणी भाग देश के कुल उत्पादन का लगभग 17% उत्पादन करता है, जिसमें प्रमुख उत्पादक राज्य तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक हैं।
      • वित्त वर्ष 2020-21 के लिये भारत का कुल चाय उत्पादन 1,283 मिलियन किलोग्राम था।
    • खपत:
      • भारत दुनिया के शीर्ष चाय खपत करने वाले देशों में से एक है, जहाँ देश में उत्पादित चाय का 80% घरेलू आबादी द्वारा उपभोग किया जाता है।
        • भारत का दक्षिणी भाग देश के कुल उत्पादन का लगभग 17% उत्पादन करता है, जिसमें प्रमुख उत्पादक राज्य तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक हैं।
        • वित्त वर्ष 2020-21 में भारत का कुल चाय उत्पादन 1,283 मिलियन किलोग्राम था।
    • निर्यात:
      • भारत दुनिया के शीर्ष 5 चाय निर्यातकों में से एक है, जो कुल निर्यात का लगभग 10% निर्यात करता है।
      • वर्ष 2021 में भारत से चाय निर्यात का कुल मूल्य लगभग9 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • भारत दुनिया भर के 25 से अधिक देशों में चाय का निर्यात करता है।
      • रूस, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और चीन जैसे देश भारत से चाय के सबसे बड़े आयातकों में से हैं।
    • वर्ष 2021-22 के दौरान भारत का कुल चाय निर्यात मात्रा में 201 मिलियन किलोग्राम था।
    • भारत से निर्यात की जाने वाली अधिकांश चाय काली चाय है जो कुल निर्यात का लगभग 96% है।
      • भारत के माध्यम से निर्यात की जाने वाली चाय के प्रकार हैं: काली चाय, नियमित चाय, हरी चाय, हर्बल चाय, मसाला चाय और नींबू चाय।
        • इनमें से काली चाय, नियमित चाय और हरी चाय भारत से निर्यात की जाने वाली कुल चाय का लगभग 80%, 16% और5% है।
      • भारत की असम, दार्जिलिंग और नीलगिरि चाय को दुनिया में बेहतरीन चाय में से एक माना जाता है।
        • मज़बूत भौगोलिक संकेतों, चाय प्रसंस्करण इकाइयों में भारी निवेश, निरंतर नवाचार, संवर्द्धित उत्पाद मिश्रण और रणनीतिक बाज़ार विस्तार के परिणामस्वरूप भारतीय चाय दुनिया में सर्वश्रेष्ठ में से एक है।
  • भौगोलिक संकेत (GI) टैग:
    • दार्जिलिंग चाय जिसे "चाय की शैंपेन" के रूप में भी जाना जाता है, इसकी आकर्षक खुशबू के कारण दुनिया भर में पहला GI टैग उत्पाद था।
    • दार्जिलिंग चाय के अन्य दो प्रकार यानी ग्रीन और व्हाइट टी (सफ़ेद चाय) में भी GI टैग है।
  • उद्योग का विनियमन:
    • भारतीय चाय बोर्ड भारत में चाय उद्योग के विकास और संवर्द्धन का प्रभारी है।

भारतीय चाय बोर्ड:

  • परिचय:
    • यह वाणिज्य मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय है जिसे 1953 में भारत में चाय उद्योग के विकास के लिये स्थापित किया गया था। इसने 1954 में काम करना शुरू किया।
  • दृष्टिकोण:
    • इसका दृष्टिकोण और मिशन देश को दुनिया भर में चाय का एक प्रमुख उत्पाद बनाना है जिसके लिये इसने कई कार्यक्रम और योजनाएं स्थापित की हैं।
  • सदस्य:
    • बोर्ड का गठन संसद सदस्यों, चाय उत्पादकों, चाय व्यापारियों, चाय दलालों, उपभोक्ताओं और प्रमुख चाय उत्पादक राज्यों की सरकारों के प्रतिनिधियों तथा ट्रेड यूनियनों के 31 सदस्यों (अध्यक्ष सहित) से किया जाता है।
    • बोर्ड का हर तीन साल में पुनर्गठन किया जाता है।
  • भारत में कार्यालय:
    • बोर्ड का मुख्यालय कोलकाता में स्थित है और पूरे भारत में 17 अन्य कार्यालय हैं।
  • विदेश कार्यालय:
    • वर्तमान में चाय बोर्ड के दुबई और मॉस्को में स्थित दो विदेशी कार्यालय हैं।

भारतीय चाय बोर्ड की पहल:

  • भारतीय मूल की पैकेज़्ड चाय को बढ़ावा:
    • यह योजना संवर्द्धनात्मक अभियानों में लागत प्रतिपूर्ति का 25% तक, अंतर्राष्ट्रीय विभागीय स्टोर, उत्पाद साहित्य और वेबसाइट विकास में प्रदर्शन, तथा निरीक्षण शुल्क की प्रतिपूर्ति में 25% तक सहायता प्रदान करती है।
  • घरेलू निर्यातकों के लिये सब्सिडी:
    • चाय बोर्ड घरेलू निर्यातकों को अंतर्राष्ट्रीय मेलों और प्रदर्शनियों में भाग लेने के लिये सब्सिडी भी प्रदान करता है।
  • चाय विकास और संवर्द्धन योजना:
    • यह योजना 2021-26 की अवधि के लिये भारतीय चाय बोर्ड द्वारा नवंबर 2021 में शुरू की गई थी।
    • इस योजना का उद्देश्य भारत में उत्पादन की उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाना है।
  • इस योजना के सात महत्त्वपूर्ण घटक हैं:
    • छोटे किसानों के चाय रोपण को बढ़ावा
    • पूर्वोत्तर भारत के लिये क्षेत्र विशिष्ट कार्य योजना का सृजन
    • बाज़ार संवर्द्धन गतिविधियों में चाय उत्पादकों और व्यापारियों का समर्थन करना
    • श्रमिकों का कल्याण
    • अनुसंधान और विकास गतिविधियाँ
    • नियामकीय सुधार
    • स्थापना का खर्च
    • ऑनलाइन लाइसेंसिंग प्रणाली (3 प्रकार के लाइसेंस अर्थात् निर्यातक लाइसेंस, चाय अपशिष्ट लाइसेंस और चाय गोदाम लाइसेंस का स्वत:-नवीकरण)
  • चाय सहयोग मोबाइल एप:
    • यह छोटे चाय उत्पादकों के विभिन्न मुद्दों को संबोधित करता है।

चाय:

  • परिचय:
    • चाय कैमेलिया साइनेंसिस के पौधे से बना एक पेय है। पानी के बाद यह दुनिया का सबसे ज़्यादा पिया जाने वाला पेय है।
  • उत्पत्ति:
    • ऐसा माना जाता है कि चाय की उत्पत्ति उत्तर-पूर्वी भारत, उत्तरी म्याँमार और दक्षिण-पश्चिम चीन में हुई थी, लेकिन यह निश्चित नहीं किया जा सका है कि इनमें से वास्तव में यह पहली बार कहाँ पाई गई थी। इस बात के प्रमाण हैं कि 5,000 साल पहले चीन में चाय का सेवन किया जाता था।
  • विकास की आवश्यक दशाएँ:
    • जलवायु: चाय एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय पौधा है तथा गर्म एवं आर्द्र जलवायु में इसकी पैदावार अच्छी होती है।
    • तापमान: इसकी वृद्धि हेतु आदर्श तापमान 20-30°C होता है तथा 35°C से ऊपर और 10°C से नीचे का तापमान इसके लिये हानिकारक होता है।
    • वर्षा: इसके लिये पूरे वर्ष समान रूप से वितरित 150-300 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
    • मिट्टी: चाय की खेती के लिये सबसे उपयुक्त छिद्रयुक्त अम्लीय मृदा (कैल्शियम के बिना) होती है, जिसमें जल आसानी से प्रवेश कर सके।
  • महत्त्व:
    • चाय उद्योग सबसे महत्त्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है, जो कुछ सबसे गरीब देशों के लिये आय और निर्यात राजस्व का एक मुख्य स्रोत है तथा श्रम प्रधान क्षेत्र के रूप में, विशेष रूप से दूरस्थ एवं आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में रोज़गार प्रदान करता है।
      • चाय उत्पादन और प्रसंस्करण सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) में योगदान देता है जिसमें अत्यधिक गरीबी को कम करना (लक्ष्य 1), भूख के खिलाफ लड़ाई (लक्ष्य 2), महिलाओं का सशक्तीकरण (लक्ष्य 5) और स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र का सतत् उपयोग (लक्ष्य 15) शामिल है।
    • कई समाजों में इसका सांस्कृतिक महत्त्व भी है।
  • स्वास्थ्य लाभ:
    • उत्तेजक विरोधी, एंटीऑक्सिडेंट और वज़न घटाने के प्रभावों के कारण चाय का सेवन स्वास्थ्य लाभ प्रदान कर सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस:
    • यह दिसंबर 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा घोषित किये जाने के बाद से प्रत्येक वर्ष 21 मई को मनाया जाता है।

भारतीय चाय उद्योग के विकास को प्रोत्साहन:

  • एक ज़िला और एक उत्पाद (ODOP) योजना भारतीय चाय की प्रतिष्ठा फैलाने में मदद कर सकती है।
  • चाय क्षेत्र को लाभदायक, व्यवहार्य और टिकाऊ बनाने के लिये चाय की 'सुगंध'(AROMA) को बढ़ाया जाना चाहिये:
    • समर्थन: स्थिरता के साथ गुणवत्ता में सुधार के लिये छोटे उत्पादकों का समर्थन करना, घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय मांग को पूरा करने के लिये उत्पादन बढ़ाना।
    • पुन: सक्रियता: निर्यात बढ़ाने के लिये बुनियादी ढाँचा तैयार करना और यूरोपीय संघ, कनाडा, दक्षिण अमेरिका तथा मध्यपूर्व जैसे उच्च मूल्य वाले बाज़ारों पर ध्यान केंद्रित करना।
    • जैविक: बॉण्ड प्रचार और विपणन के माध्यम से जैविक और जीआई चाय का प्रचार करना।
    • आधुनिकीकरण: चाय किसानों को आत्मनिर्भर बनने और स्थानीय आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करने में सक्षम बनाना।
    • अनुकूलनशीलता: एक जोखिम मुक्त पारिस्थितिकी तंत्र के महत्त्व यानी चाय बागानों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने के लिये स्थायी समाधान की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रश्न: भारत में ‘‘चाय बोर्ड’’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. चाय बोर्ड सांविधिक निकाय है।
  2. यह कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से संलग्न नियामक निकाय है।
  3. चाय बोर्ड का प्रधान कार्यालय बंगलूरु में स्थित है।
  4. इस बोर्ड के दुबई और मॉस्को में विदेश स्थितकार्यालय हैं।

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 3 और 4         
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • चाय बोर्ड केंद्र सरकार के एक सांविधिक निकाय के रूप में कार्य कर रहा है। अतः कथन 1 सही है।
  • यह वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत आता है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • बोर्ड का गठन 31 सदस्यों (अध्यक्ष सहित) से होता है, जो संसद सदस्यों, चाय उत्पादकों, चाय व्यापारियों, चाय दलालों, उपभोक्ताओं और प्रमुख चाय उत्पादक राज्यों की सरकारों के प्रतिनिधियों एवं ट्रेड यूनियनों में से चुने जाते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष में बोर्ड का पुनर्गठन किया जाता है।
  • विदेशों में कार्यालय: वर्तमान में चाय बोर्ड के दो विदेशी कार्यालय (दुबई और मॉस्को में) हैं। बोर्ड के इन सभी विदेशी कार्यालयों को भारतीय चाय के निर्यात को बढ़ावा देने हेतु विभिन्न प्रचार उपायों के लिये डिज़ाइन किया गया है। ये कार्यालय संबंधित क्षेत्रों में भारतीय चाय के आयातकों के साथ-साथ भारतीय निर्यातकों के बीच बातचीत के लिये एक संपर्क कार्यालय के रूप में भी कार्य करते हैं। अतः कथन 4 सही है।
  • इसका मुख्यालय कोलकाता में स्थित है। अतः कथन 3 सही नहीं है।

प्रश्न. निम्नलिखित राज्यों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. आंध्र प्रदेश
  2. केरल
  3. हिमाचल प्रदेश
  4. त्रिपुरा

उपर्युक्त में से कितने सामान्यतः चाय उत्पादक राज्यों के रूप में जाने जाते हैं?

(a) केवल एक राज्य
(b) केवल दो राज्य
(c) केवल तीन राज्य
(d) सभी चार राज्य

उत्तर: C

व्याख्या:

  • भारतीय चाय बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट 2019-2020 के अनुसार, आमतौर पर ज्ञात चाय उत्पादक राज्य असम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, हिमाचल प्रदेश हैं।

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अतः विकल्प C सही है।


प्रश्न. ब्रिटिश बागान मालिकों ने असम से हिमाचल प्रदेश तक शिवालिक और लघु हिमालय के चारों ओर चाय बागान विकसित किये थे, जबकि वास्तव में वे दार्जिलिंग क्षेत्र से आगे सफल नहीं हुए। चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014)

स्रोत: पी.आई.बी.


जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु के लिये मैंग्रोव गठबंधन

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु के लिये मैंग्रोव गठबंधन, मैंग्रोव, ग्लोबल वार्मिंग, सुंदरबन

मेन्स के लिये:

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

मिस्र के शर्म अल शेख में COP-27 जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया ने "जलवायु के लिये मैंग्रोव गठबंधन (Mangrove Alliance for Climate- MAC)" की घोषणा की।

जलवायु के लिये मैंग्रोव गठबंधन (MAC):

  • इसमें यूएई, इंडोनेशिया, भारत, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और स्पेन शामिल हैं।
  • इसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग को रोकने में मैंग्रोव की भूमिका और जलवायु परिवर्तन के समाधान के रूप में इसकी क्षमता के बारे में दुनिया भर को बताना तथा जागरूकता का प्रसार करना है।
  • हालाँकि अंतर-सरकारी गठबंधन स्वैच्छिक आधार पर काम करता है जिसका अर्थ है कि सदस्यों को जवाबदेह ठहराने के लिये कोई वास्तविक ‘चेक एंड बैलेंस’ नहीं है।
  • इसके बज़ाय, पार्टियाँ मैंग्रोव लगाने और बहाल करने के बारे में अपनी प्रतिबद्धताओं एवं समय-सीमा को तय करेंगी।
  • सदस्य तटीय क्षेत्रों के अनुसंधान, प्रबंधन और संरक्षण में विशेषज्ञता साझा करेंगे और एक-दूसरे का समर्थन करेंगे।

मैंग्रोव:

  • परिचय:
    • मैंग्रोव को लवणीय पौधों और झाड़ियों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय समुद्र तटों के अंतर-ज्वारीय क्षेत्रों में उगते हैं।
    • वे उन जगहों पर बड़े पैमाने पर उगते हैं जहाँ स्वच्छ जल समुद्री जल के साथ मिलता है और जहाँ तलछट मिट्टी जमा होती है।
  • विशेषताएँ:
    • लवणीय वातावरण: वे अत्यधिक प्रतिकूल वातावरण, जैसे अधिक खारेपनऔर कम ऑक्सीजन की स्थिति, में भी जीवित रह सकते हैं।
    • कम ऑक्सीजन: किसी भी पौधे के भूमिगत ऊतक को श्वसन के लिये ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है लेकिन मैंग्रोव वातावरण में मिट्टी में ऑक्सीजन सीमित या शून्य होती है।
      • इसलिये मैंग्रोव जड़ प्रणाली वातावरण से ऑक्सीजन को अवशोषित करती है।
      • इस उद्देश्य के लिये मैंग्रोव की जड़ें आम पौधों से अलग होती हैं जिन्हें ब्रीदिंग रूट्स या न्यूमेटोफोर्स कहा जाता है।
      • इन जड़ों में कई छिद्र होते हैं जिनके माध्यम से ऑक्सीजन भूमिगत ऊतकों में प्रवेश करती है।
    • चरम स्थितियों में उत्तरजीविता: जड़ें पानी में डूबे रहने के कारण मैंग्रोव के पेड़ गर्म, कीचड़युक्त, खारे परिस्थितियों में पनपते हैं, जिसमें दूसरे पौधे जीवित नहीं रह पाते हैं।
    • मोमयुक्त पत्ते: मैंग्रोव, रेगिस्तानी पौधों की तरह मोटे पत्तों में ताज़ा पानी जमा करते हैं।
      • पत्तियों पर एक मोम का लेप जल को अपने अंदर अवशोषित रखता है और वाष्पीकरण को कम करता है।
    • विवियोपोरस: उनके बीज मूल वृक्ष से जुड़े रहते हुए अंकुरित होते हैं। एक बार अंकुरित होने के बाद अंकुर बढ़ने लगते है।
      • परिपक्व अंकुर पानी में गिर जाता है और किसी अलग स्थान पर पहुँच कर ठोस ज़मीन में जड़ें जमा लेता है।
  • महत्त्व:
    • मैंग्रोव तटीय पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न कार्बनिक पदार्थों, रासायनिक तत्त्वों और महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों को रोकते हैं।
    • वे समुद्री जीवों के लिये बुनियादी खाद्य शृंखला संसाधन प्रदान करते हैं।
    • वे विभिन्न प्रकार के समुद्री जीवों के लिये भौतिक आवास और नर्सरी प्रदान करते हैं, जिनमें से कई का महत्त्वपूर्ण मनोरंजक या व्यावसायिक मूल्य है।
    • मैंग्रोव उथले तटरेखा क्षेत्रों में हवा और लहर की गतिविधियों को कम करके बफर के रूप में भी काम करते हैं।
  • शामिल क्षेत्र:
    • वैश्विक मैंग्रोव कवर:
    • दुनिया में कुल मैंग्रोव कवर 1,50,000 वर्ग किमी. है।
    • एशिया में दुनिया भर में मैंग्रोव की सबसे बड़ी संख्या है।
      • दक्षिण एशिया में दुनिया के मैंग्रोव कवर का 6.8% हिस्सा शामिल है।
    • भारत में मैंग्रोव :
      • दक्षिण एशिया में कुल मैंग्रोव कवर में भारत का योगदान 45.8% है।
      • भारतीय राज्य वन रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत में मैंग्रोव कवर 4992 वर्ग किमी. है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है।
      • सबसे बड़ा मैंग्रोव वन: पश्चिम बंगाल में सुंदरबन दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव वन क्षेत्र हैं। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध है।
        • इसके बाद गुजरात और अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह हैं।

मैंग्रोव द्वारा सामना किये जाने वाले खतरे:

  • तटीय क्षेत्रों का व्यावसायीकरण:
    • जलीय कृषि, तटीय विकास, चावल और ताड़ के तेल की खेती तथा औद्योगिक गतिविधियाँ तेज़ी से इन मैंग्रोव व उनके पारिस्थितिक तंत्र की जगह ले रही हैं।
  • झींगा फार्म:
    • मैंग्रोव वनों के कुल नुकसान का कम-से-कम 35% झींगा फार्मों के उद्भव से हुआ है।
    • झींगा की कृषि का उदय हाल के दशकों में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप, जापान और चीन में झींगा के प्रति बढ़ते झुकाव की प्रतिक्रिया है।
  • तापमान संबंधित मुद्दे:
    • कम समय में दस डिग्री का उतार-चढ़ाव पौधे को नुकसान पहुँचाने के लिये पर्याप्त होता है और कुछ घंटों के लिये भी बेहद कम तापमान कुछ मैंग्रोव प्रजातियों के लिये अत्यधिक खतरनाक या जानलेवा हो सकता है।
  • मृदा से संबंधित मुद्दे:
    • जिस मिट्टी में मैंग्रोव की जड़ें होती हैं, वह पौधों के लिये एक चुनौती बन जाती है क्योंकि इसमें ऑक्सीजन की भारी कमी होती है।
  • अत्यधिक मानव हस्तक्षेप:
    • पिछले कुछ समय से समुद्र के स्तर में परिवर्तनों के दौरान मैंग्रोव ज़मीन की तरफ बढ़ गए हैं, लेकिन कई जगहों पर मानव विकास अब एक बाधा है जो मैंग्रोव के विस्तार को सीमित करता है।
    • मैंग्रोव अक्सर तेल रिसाव के कारण भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं।

संबंधित पहलें:

  • यूनेस्को नामित साइटें: बायोस्फीयर रिज़र्व, विश्व धरोहर स्थलों और यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क में मैंग्रोव का समावेशन दुनिया भर में मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के प्रबंधन एवं संरक्षण में सुधार करने में योगदान देता है।
  • इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर मैंग्रोव इकोसिस्टम (ISME): ISME एक गैर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1990 में मैंग्रोव के अध्ययन, उनके संरक्षण, तर्कसंगत प्रबंधन और टिकाऊ उपयोग को बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी।
  • ब्लू कार्बन इनिशिएटिव: अंतर्राष्ट्रीय ब्लू कार्बन पहल तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण एवं पुनरुत्थान के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को कम करने पर केंद्रित है।
    • यह कंज़र्वेशन इंटरनेशनल (CI), IUCN, और इंटरगवर्नमेंटल ओशनोग्राफिक कमीशन-यूनेस्को (IOC-यूनेस्को) द्वारा समन्वित है।
  • मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस: यूनेस्को 26 जुलाई को मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके स्थायी प्रबंधन एवं संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मैंग्रोव दिवस मनाता है।

आगे की राह

  • मैंग्रोव के संरक्षण को सक्रिय सामुदायिक भागीदारी, पर्यावरण सुरक्षा और प्राकृतिक आपदाओं से किसी भी जोखिम को कम करने के साथ व्यापक परिप्रेक्ष्य से जोड़ने की आवश्यकता है।
    • ऐसे उपायों को अग्रिम अनुकूलन उपायों के मद्देनज़र अधिक समग्र रूप से अपनाए जाने की आवश्यकता है जो सफल और प्रभावी प्रबंधन के लिये आवश्यक हैं। 
  • वनों की कटाई और वन क्षरण से उत्सर्जन को कम करने के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रमों में मैंग्रोव का एकीकरण समय की मांग है।
  • मैंग्रोव वनीकरण से एक नया कार्बन सिंक बनाना और मैंग्रोव वनों की कटाई से उत्सर्जन को कम करना देशों के लिये अपने NDC लक्ष्यों को पूरा करने तथा कार्बन तटस्थता प्राप्त करने के दो संभावित तरीके हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रीलिम्स:

प्रश्न. भारत के निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में मैंग्रोव वन, सदाबहार वन और पर्णपाती वन का संयोजन है? (2015)

(a) उत्तर तटीय आंध्र प्रदेश
(b) दक्षिण-पश्चिम बंगाल
(c) दक्षिणी सौराष्ट्र
(d) अंडमान और निकोबार द्वीप समूह

उत्तर: (D)


प्रश्न. मैंग्रोव की कमी के कारणों पर चर्चा कीजिये और तटीय पारिस्थितिकी को बनाए रखने में उनके महत्त्व को समझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2019)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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