डेली न्यूज़ (12 Oct, 2023)



नोबेल पुरस्कार 2023

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विश्व पर्यावास दिवस 2023 और भारत का शहरी परिदृश्य

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व पर्यावास दिवस, संयुक्त राष्ट्र, यू.एन.-हैबिटेट स्क्रॉल ऑफ ऑनर अवार्ड, स्मार्ट सिटीज़, AMRUT मिशन, स्वच्छ भारत मिशन-शहरी, HRIDAY योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी, आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

वर्तमान में भारत में शहरी परिदृश्य से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ, आर्थिक सुधार में शहरों की भूमिका

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार के आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने विश्व पर्यावास दिवस के उपलक्ष्य में 9 अक्तूबर, 2023 को विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम का आयोजन कियाशहरी विकास, संधारणीयता और भारत के आर्थिक विकास में शहरों के योगदान पर केंद्रित विश्व पर्यावास दिवस की अवधारणा ने चुनौतियों एवं उपलब्धियों की  एक लंबी यात्रा तय की है।  

विश्व पर्यावास दिवस: 

  • परिचय: संयुक्त राष्ट्र ने प्रत्येक वर्ष अक्तूबर के पहले सोमवार को विश्व पर्यावास दिवस के रूप में नामित किया है जो हमारे आवासों की स्थिति और सभी के लिये पर्याप्त आश्रय के मूल अधिकार को प्रतिबिंबित करता है। 
    • इस दिवस का उद्देश्य विश्व को यह याद दिलाना है कि हम सभी के पास अपने शहरों एवं कस्बों के भविष्य को आकार देने की शक्ति और ज़िम्मेदारी है।
  • शुरुआत: विश्व पर्यावास दिवस पहली बार वर्ष 1986 में केन्या के नैरोबी में मनाया गया था। पहले विश्व पर्यावास दिवस का विषय 'आश्रय मेरा अधिकार है' था, जो शहरों में अपर्याप्त आश्रय की गंभीर समस्या पर केंद्रित था।
  • वर्ष 2023 की थीम: 'लचीली शहरी अर्थव्यवस्ठाएँ, विकास और बहाली के चालक के रूप में शहर' है।
    • वर्ष 2023 शहरी अर्थव्यवस्थाओं के लिये चुनौतीपूर्ण रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटकर लगभग 2.5% रह गई है और वर्ष 2020 के प्रारंभ में कोविड-19 संकट तथा वर्ष 2009 में वैश्विक वित्तीय संकट के अतिरिक्त यह वर्ष 2001 के बाद सबसे निम्न वृद्धि दर है।

नोट: संयुक्त राष्ट्र मानव अधिवासन कार्यक्रम द्वारा वर्ष 1989 में यू.एन.-हैबिटेट स्क्रॉल ऑफ ऑनर अवार्ड की शुरुआत की गई थी। यह वर्तमान में विश्व का सबसे प्रतिष्ठित मानव अधिवासन पुरस्कार (ह्यूमन सेटलमेंट अवार्ड) है।

आर्थिक सुधार में शहरों की भूमिका: 

  • आर्थिक विकास के वाहक: देश की GDP में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले शहरों को आर्थिक विकास का प्रमुख वाहक माना जाता है।
    • शहरी क्षेत्र अर्थव्यवस्थाओं के उत्पादक केंद्र हैं जो विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का 75% से अधिक उत्पन्न करते हैं, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले व्यवसायों, प्रतिभाओं और निवेशों को आकर्षित करते हैं
  • रोज़गार के अवसर: शहरों में रोज़गार की विविधता कुशल और अनेक क्षेत्रों से संबंधित कार्यबल को आकर्षित करती है।
    • आर्थिक सुधार की अवधि के दौरान बेरोज़गारी को कम करने और यहाँ रहने वालों का समग्र देखभाल करने में शहरों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • नवाचार और प्रौद्योगिकी केंद्र: देश के कई शहर नवाचार व प्रौद्योगिकी का प्रमुख केंद्र हैं।
    • इन शहरों में मौजूद अनुसंधान केंद्र, विश्वविद्यालय और तकनीक कंपनियाँ तकनीकी प्रगति को आगे बढ़ाने के साथ ही नवाचार केंद्रित विकास के माध्यम से आर्थिक सुधार को बढ़ावा देती हैं।
  • बुनियादी ढाँचा विकास: आर्थिक सुधार चरणों के दौरान शहरों को बुनियादी ढाँचा के निर्माण हेतु अक्सर पर्याप्त निवेश प्रदान किया जाता है।
    • परिवहन, उपयोगिता संबंधी और सार्वजनिक सेवाओं में किये जाने वाले इन निवेशों से न केवल तत्काल रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिलता है बल्कि इससे दीर्घकालिक उत्पादकता एवं जीवन की गुणवत्ता को भी बढ़ाने में भी मदद मिलती है।
  • सांस्कृतिक और रचनात्मक क्षेत्रों से जुड़े उद्योग: शहरें सांस्कृतिक और रचनात्मक क्षेत्रों से जुड़े उद्योगों के विकास के लिये सबसे उपयुक्त हैं, ये पर्यटन, कला तथा मनोरंजन के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं।
    • ये क्षेत्र न केवल राजस्व उत्पन्न करते हैं बल्कि शहरों को वैश्विक स्तर पर आकर्षक और प्रतिस्पर्द्धी भी बनाते हैं।

भारत में वर्तमान शहरी परिदृश्य:

  • स्थिति: 
    • भारत विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है जिसके विकास को यहाँ के शहरों से गति मिलती है।
      • राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में शहरों का योगदान 66% है, वर्ष 2050 तक यह संख्या बढ़कर 80% होने की उम्मीद है।
  • वर्तमान प्रमुख चुनौतियाँ:
    • अधिक जनसंख्या और तीव्र शहरीकरण:
      • भारत विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश है, जहाँ आबादी का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन/प्रवासन करता है।
        • यह तीव्र शहरीकरण शहरी संसाधनों और बुनियादी ढाँचे पर अत्यधिक दबाव डालता है।
    • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा:
      • आवास: किफायती आवास की कमी के परिणामस्वरूप झुग्गी और अनौपचारिक बस्तियों का विकास होता है, जहाँ रहने की स्थिति प्रायः घटिया होती है।
      • जल आपूर्ति और स्वच्छता: कई भारतीय शहर अपने निवासियों को स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल एवं उचित स्वच्छता सुविधाएँ प्रदान करने के लिये संघर्ष करते हैं।
        • इससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ और जल निकायों का प्रदूषण होता है।
      • परिवहन: भीड़भाड़ वाली सड़कें और कुशल सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों की कमी यातायात की भीड़, प्रदूषण एवं यात्रा के समय में वृद्धि में योगदान करती है।
    • पर्यावरण निम्नीकरण:
      • वायु प्रदूषण: कई भारतीय शहर वायु प्रदूषण के उच्च स्तर से पीड़ित हैं जिससे श्वसन संबंधी बीमारियाँ होती हैं और निवासियों के जीवन की गुणवत्ता कम हो जाती है।
      • जल प्रदूषण: औद्योगिक निर्वहन, सीवेज और अनुचित अपशिष्ट निपटान जल निकायों को प्रदूषित करते हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं पर्यावरण प्रभावित होता है।
    • असमानता और सामाजिक विषमताएँ:
      • आर्थिक विषमताएँ: भारत के शहरी क्षेत्रों में आय असमानताएँ देखी जा रही है, जिसमें अमीर और निर्धन के बीच अंतर बढ़ रहा है।
      • सेवाओं तक पहुँच: कई शहरी निवासियों के पास स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुँच नहीं है, जिससे कल्याण एवं जीवन की गुणवत्ता में असमानताएँ उत्पन्न होती हैं।
    • अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन: अकेले शहरी भारत में प्रतिदिन लगभग 0.15 मिलियन टन नगरीय ठोस अपशिष्ट का उत्सर्जन होता है।
      • भारत सरकार के अनुसार, भारत में उत्पन्न लगभग 78% सीवेज अनुपचारित रह जाता है जिसका निपटान नदियों, झीलों या समुद्र में किया जाता है।
      • यदि मौजूदा नीतियों, कार्यक्रमों और प्रबंधन रणनीतियों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया तो अपशिष्ट की मात्रा वर्ष 2031 तक 165 मिलियन टन तथा वर्ष 2050 तक 436 मिलियन टन तक पहुँच जाने का अनुमान है।
    • जल की कमी: शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण भू-जल का अत्यधिक दोहन हो रहा है, जिससे कई शहरों में विशेषकर शुष्क मौसम के दौरान जल की कमी हो रही है।
    • जलवायु परिवर्तन की संवेदनशीलता: शहरी क्षेत्र विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं, जैसे अत्यधिक तापमान, बाढ़ और तीव्र उष्मा द्वीप, जो पर्यावरण एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को बढ़ा सकते हैं।

आगे की राह 

  • एकीकृत शहरी योजना: व्यापक शहरी योजनाएँ विकसित करने की आवश्यकता है जो दीर्घकालिक स्थिरता, जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रत्यास्थता और संसाधनों के संतुलित उपयोग पर विचार करती हैं।
    • इसके अलावा, मिश्रित भूमि उपयोग, कुशल भूमि प्रबंधन और ज़ोनिंग नियमों को बढ़ावा देना चाहिये जो व्यवस्थित विकास को प्रोत्साहित करते हैं।
  • शहरी विकास के लिये नवोन्मेषी वित्तीयता: शहर संसाधन जुटाने के लिये नगर निगम बॉण्ड जैसे नवोन्मेषी वित्तीयता माध्यमों का पता लगा सकते हैं।
    • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation- AMRUT) के माध्यम से सरकार ने शहरों को पूंजी निवेश बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित किया है।
    • वर्तमान में 12 शहरों ने नगर निगम बॉण्ड के माध्यम से 4,384 करोड़ रुपए से अधिक धनराशि एकत्र कर ली है।  
  • शहरी रोज़गार गारंटी: शहरी क्षेत्रों में रहने वाली गरीब आबादी को बुनियादी/मूल जीवन स्तर प्रदान करने के लिये शहरी क्षेत्रों को मनरेगा (MGNREGA) के समान एक योजना की आवश्यकता है।
    • राजस्थान में शुरू की गई इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
  • उचित अपशिष्ट प्रबंधन: अपशिष्ट उत्पादन के स्रोत स्थान पर अपशिष्टों का ध्यानपूर्वक पृथक्करण और अपशिष्ट के औपचारिक पुनः चक्रण एवं उससे खाद बनाने की प्रथाओं को बढ़ावा देने पर ज़ोर देने की आवश्यकता है।
    • इसके अतिरिक्त अपशिष्ट निपटान के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये अपशिष्ट-से-ऊर्जा (waste-to-energy) प्रौद्योगिकियों तथा आधुनिक लैंडफिल प्रबंधन में निवेश करना चाहिये।
  • समावेशी विकास: मूलभूत सेवाओं, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुँच प्रदान करके हाशिये पर मौजूद लोगों और सुभेद्य (कम हो रही) आबादी की ज़रूरतों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
    • प्रवासी श्रमिकों के हित के लिये प्रवासियों के डेटा को संकलित कर शहरी विकास गतिविधियों में उपयोग करने की आवश्यकता है।
    • साथ ही निवास की स्थिति में सुधार के लिये सामाजिक आवासन और झुग्गी-झोपड़ी/स्लम पुनर्विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद की भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. शहरी क्षेत्रों में श्रमिक की उत्पादकता (2004-05 की कीमतों पर प्रति श्रमिक ₹) में वृद्धि हुई जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में इसमें कमी हुई।
  2. कार्यबल में ग्रामीण क्षेत्रों की प्रतिशत हिस्सेदारी में वृद्धि हुई। 
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में, गैर कृषि अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई।
  4. ग्रामीण रोज़गार की वृद्धि दर में कमी आई।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 3
(d) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2019)

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग- अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे।
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और ब्यौरेवार मानदंड उपबंधित हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारम्बारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए, इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने के की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये। (2016)

प्रश्न. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के दौरान, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती है? (2014)


समतापमंडलीय ऐरोसोल हस्तक्षेप का वैश्विक खाद्य उत्पादन पर प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

समतापमंडलीय ऐरोसोल हस्तक्षेप (स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंटरवेंशन), जियोइंजीनियरिंग तकनीक

मेन्स के लिये:

जियोइंजीनियरिंग तकनीकों का अनुप्रयोग और संबद्ध चिंताएँ, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी-विकास और उनके अनुप्रयोग तथा प्रभाव, जलवायु परिवर्तन

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

नेचर फूड जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में वैश्विक खाद्य उत्पादन पर जियोइंजीनियरिंग तकनीक-समतापमंडलीय ऐरोसोल हस्तक्षेप (stratospheric aerosol intervention- SAI) के संभावित परिणामों पर प्रकाश डाला गया है।

अध्ययन के मुख्य बिंदु:

  • जलवायु हस्तक्षेप के रूप में SAI की भूमिका:
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में उपयोग की जाने वाली पारंपरिक शमन रणनीतियों की विफलता की स्थिति में SAI को वैकल्पिक योजना अथवा प्लान B माना जाता है।
    • समतापमंडल (वायुमंडल की एक परत जो सतह से लगभग 10 से 50 किलोमीटर ऊपर तक फैली हुई है) में सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जित करके SAI ज्वालामुखी जैसा विस्फोट करता है। जहाँ यह ऑक्सीकरण द्वारा सल्फ्यूरिक एसिड उत्पन्न करता है, जो बाद में रिफ्लेक्टिव ऐरोसोल कण का निर्माण करता है।
      • उदाहरण के लिये, फिलीपींस में वर्ष 2001 में माउंट पिनाटुबो में हुए विस्फोट से लगभग 15 मिलियन टन सल्फर डाइऑक्साइड समताप मंडल में उत्सर्जित हुआ, जो बाद में ऐरोसोल कण बना।
      • नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) के अनुसार, इस घटना के बाद अगले 15 महीनों में औसत वैश्विक तापमान में लगभग 0.6 डिग्री सेल्सियस की गिरावट दर्ज की गई
  • कृषि क्षेत्र पर विविध प्रभाव:
    • SAI के कारण तापमान में कमी आने की वजह से वर्षा और सौर विकिरण जैसे कारकों के आधार पर कृषि क्षेत्र पर विभिन्न प्रकार के प्रभाव देखे जाते हैं।
      • फसल उत्पादन हेतु सूचित निर्णय लेने के लिये आदर्श वैश्विक तापमान की समझ होना  महत्त्वपूर्ण है।
    • मक्का, चावल, सोयाबीन और वसंत ऋतु में बोए जाने वाले गेहूँ जैसी फसलों पर SAI के प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिये शोधकर्त्ताओं द्वारा कंप्यूटर मॉडल का उपयोग किया जाता हैं।
    • अनियंत्रित जलवायु परिवर्तन की स्थिति में भी कनाडा और रूस जैसे ठंडे, उच्च अक्षांश वाले क्षेत्रों में फसल उत्पादन की जाती है।
    •   मध्यम SAI स्तर उत्तरी अमेरिका और यूरेशिया जैसे मध्य अक्षांश वाले समशीतोष्ण क्षेत्रों में खाद्य उत्पादकता बढ़ा सकते हैं।
    • बड़ी मात्रा में जलवायु हस्तक्षेप के तहत, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कृषि उत्पादन में वृद्धि देखी जा सकती है।
      • इन क्षेत्रों में मेक्सिको, मध्य अमेरिका, कैरेबियन और दक्षिण अमेरिका का ऊपरी आधा हिस्सा, अधिकांश अफ्रीका, मध्य पूर्व के कुछ हिस्से, भारत का अधिकांश, संपूर्ण दक्षिण पूर्व एशिया, अधिकांश ऑस्ट्रेलिया और ओशिनिया के अधिकांश द्वीप राष्ट्र शामिल हैं।
    • विभिन्न राष्ट्र अपनी भौगोलिक स्थिति और जलवायु स्थितियों को ध्यान में रखते हुए, फसल उत्पादन को अधिकतम करने के लिये अलग-अलग SAI स्तरों का विकल्प चुन सकते हैं।
  • व्यापक प्रभाव आकलन:
    • फसल उत्पादन से परे, अध्ययन अन्य परिणामों का पता लगाने की आवश्यकता पर बल देता है, जैसे: मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव।

स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंटरवेंशन (SAI)

  • SAI ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिये सौर जियोइंजीनियरिंग (या सौर विकिरण संशोधन) की एक प्रस्तावित विधि है। 
    • इसके तहत वैश्विक दीप्तिमंदकता (Global Dimming) और बढ़े हुए अल्बेडो के माध्यम से शीतलन प्रभाव पैदा करने के लिये समताप मंडल में एरोसोल को मुक्त किया जाएगा, जो कि ज्वालामुखी सर्दियों के दौरान  स्वाभाविक रूप से होता है।
  • हालाँकि, SAI के कुछ संभावित नुकसान यह हैं कि इसके पर्यावरण और मानव समाज के लिये अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं, जैसे कि ओज़ोन परत, जल विज्ञान चक्र, मानसून प्रणाली और फसल की पैदावार को प्रभावित करना।

जियोइंजीनियरिंग तकनीक

  • परिचय:
    • यह एक ऐसा शब्द है जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिते पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में इच्छित रूप से बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप को संदर्भित करता है।
    • ये हस्तक्षेप आम तौर पर दो श्रेणियों में आते हैं: कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (Carbon Dioxide Removal- CDR) और सौर विकिरण प्रबंधन (Solar Radiation Management- SRM)।
  • कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (CDR): 
    • इन तकनीकों का लक्ष्य वायुमंडल से अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड को हटाना है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव कम हो सके।
    • CDR तकनीकों के उदाहरण:
      • Afforestation and Reforestation: वनरोपण और पुनर्वनीकरण:
        • पौधों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के प्राकृतिक अवशोषण को बढ़ाने के लिये पेड़ लगाना या वनों को बहाल करना।
      • बायोचार:
        • बायोमास को चारकोल में परिवर्तित करना और इसकी कार्बन भंडारण क्षमता को बढ़ाने के लिये इसे मृदा में दबा देना।
      • बायोएनर्जी विथ कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (BECCS):
        • जैव ईंधन उत्पादन के लिये फसलें उगाना और दहन के दौरान उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड को एकत्र करना तथा भूतल के नीचे अथवा समुद्र में इसे संग्रहीत/इसका भंडारण करना।
      • महासागरीय निषेचन: 
        • फाइटोप्लैंकटन के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये समुद्र में लौह अथवा नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्त्वों का विसर्जन किया जाता है जो जल में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करता है तथा पोषक तत्त्वों को समुद्र के तल में स्थानांतरित करता है।
  • सौर विकिरण प्रबंधन (SRM):
    • इन तकनीकों का लक्ष्य पृथ्वी की सतह तक पहुँचने वाली सौर ऊर्जा की मात्रा को कम करना है जिससे ग्रह की ऊष्मा को संतुलित रखने में सहायता मिल सके। 
    • SRM तकनीकों के उदाहरण:
      • स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंटरवेंशन (SAI)
      • स्पेस बेस्ड रिफ्लेक्टर (SBR):
        • सौर विकिरण को आंशिक रूप से अवरुद्ध अथवा विक्षेपित करने के लिये पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में दर्पण अथवा अन्य उपकरण स्थापित करना।
      • मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग (MCB): 
        • मरीन क्लाउड ब्राइटनिंग एक अल्बेडो संशोधन तकनीक को संदर्भित करती है जिसका उद्देश्य कुछ बादलों की परावर्तनशीलता और संभवतः जीवनकाल को भी बढ़ाना है ताकि अधिकतम सूर्य के प्रकाश को वापस अंतरिक्ष में प्रतिबिंबित किया जा सके तथा जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रभावों को आंशिक रूप से कम किया जा सके।
      • मेघ विरलन तकनीक (Cirrus Cloud Thinning- CCT):
        • उच्च-स्तरीय सिरस मेघों के गठन अथवा उनकी दृढ़ता को कम करना जो बर्फ के क्रिस्टल अथवा अन्य पदार्थों की सहायता से क्लाउड सीडिंग द्वारा ताप को अवशोषित करते हैं।
      • सर्फेस अल्बेडो मोडिफिकेशन (SAM):
        • इस प्रक्रिया में छतों को सफेद रंग से रंगकर, रेगिस्तानों को परावर्तक चादरों से ढककर भूमि अथवा समुद्र की सतह की परावर्तनशीलता को बदलने का प्रयास किया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में कुछ वैज्ञानिक पक्षाभ मेघ विरलन तकनीक तथा समताप मंडल में सल्फेट वायुविलय अंतःक्षेपण के उपयोग का सुझाव देते हैं? (2019) 

(a) कुछ क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा करवाने के लिये
(b) उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बारंबारता और तीव्रता को कम करने के लिये
(c) पृथ्वी पर सौर पवनों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिये
(d) ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिये

उत्तर: (d)


सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद

प्रिलिम्स के लिये:

सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद, सिंधु जल संधि, सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 143

मेन्स के लिये:

सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद और इसके निहितार्थ, महत्त्वपूर्ण भौगोलिक रूपों (जल निकायों और बर्फ-चोटियों सहित) एवं वनस्पतियों व जीवों में बदलाव तथा इन बदलावों के प्रभाव, वैधानिक, नियामक व विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब सरकार को उसके आदेश का अनुपालन करने की सलाह देते हुए कहा है कि वह अपने हिस्से के सतलुज-यमुना लिंक नहर के निर्माण कार्य को यथाशीघ्र पूरा करे।

  • न्यायालय ने केंद्र सरकार को इस विषय पर पंजाब और हरियाणा सरकारों के बीच संवादों के अनुवीक्षण का निर्देश दिया है; हालाँकि हरियाणा सरकार ने नहर के अपने आधे हिस्से का निर्माण पूरा कर लिया है।
  • इस मुद्दे की मूल जड़ वर्ष 1966 में हरियाणा को पंजाब से अलग किये जाने के बाद वर्ष 1981 का एक विवादास्पद जल-बँटवारा समझौता है।

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 1960:
    • इस विवाद की शुरुआत भारत तथा पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि से होती है, जिसके अंतर्गत भारत को रावी, ब्यास और सतलुज नदी के 'मुक्त एवं अप्रतिबंधित उपयोग' की अनुमति दी गई थी।
  • वर्ष 1966:
    • अविभाजित/पुराने पंजाब से हरियाणा के निर्माण के बाद हरियाणा को उसके हिस्से का नदी जल प्राप्त करने में काफी समस्याएँ हुई।
      • हरियाणा को सतलुज और उसकी सहायक नदी ब्यास के जल का हिस्सा प्रदान करने के लिये, सतलुज को यमुना से जोड़ने वाली एक नहर (SYL नहर) की योजना तैयार की गई थी।
      • पंजाब ने हरियाणा के साथ जल साझा करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि जल साझाकरण का यह निर्णय तटवर्ती सिद्धांत के खिलाफ है, जिसके अनुसार किसी नदी का जल केवल उस राज्य/राज्यों एवं देश/ देशों का है जहाँ से होकर नदी बहती है।
  • वर्ष 1981:
    • दोनों राज्यों ने आपसी सहमति से जल के पुनः आवंटन पर सहमति जताई।
  • वर्ष 1982:
    • पंजाब के कपूरी गाँव में 214 किलोमीटर लंबी सतलुज-यमुना लिंक (SYL) का निर्माण शुरू किया गया।
    • इसी समय राज्य में आतंक का माहौल बनाने तथा राष्ट्रीय सुरक्षा को मुद्दा बनाने के विरोध में आंदोलन, विरोध प्रदर्शन और हत्याएँ हुई।
  • वर्ष 1985:
    • इस दौरान प्रधानमंत्री राजीव गांधी और तत्कालीन अकाली दल के प्रमुख ने जल साझाकरण मामले के आकलन के लिये एक नए प्राधिकरण के निर्माण पर सहमति व्यक्त करते हुए एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
    • जल की उपलब्धता और बँटवारे का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी. बालकृष्ण इराडी की अध्यक्षता में इराडी प्राधिकरण की स्थापना की गई।
    • वर्ष 1987 में इस प्राधिकरण ने पंजाब और हरियाणा के हिस्सों को क्रमशः 5 MAF व 3.83 MAF तक विस्तृत करने की सिफारिश की।
  • वर्ष 1996:
    • हरियाणा ने सतलुज-यमुना लिंक का काम पूरा करने के लिये पंजाब को निर्देश देने की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
  • वर्ष 2002 और 2004:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने पंजाब को अपने क्षेत्र में कार्य पूर्ण करने का निर्देश दिया।
  • वर्ष 2004:
    • पंजाब विधानसभा ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट पारित किया, जिससे जल-साझाकरण समझौता निरस्त हो गया और इस तरह पंजाब में सतलुज-यमुना लिंक का निर्माण बाधित हो गया।
  • वर्ष 2016:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2004 के पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट की वैधता पर निर्णय लेने के लिये राष्ट्रपतीय संदर्भ (अनुच्छेद 143) पर सुनवाई शुरू की और पंजाब द्वारा नदी जल को साझा करने की वचनबद्धता के उल्लंघन को देखते हुए उक्त अधिनियम को संवैधानिक रूप से अवैध करार दिया गया।
  • वर्ष 2020:
    • इस वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को केंद्र की मध्यस्थता में उच्चतम राजनीतिक स्तर पर सतलुज-यमुना लिंक नहर मुद्दे पर संवाद करने और हल निकालने का निर्देश दिया।
    • पंजाब ने जल की उपलब्धता के समयबद्ध आकलन के लिये एक न्यायाधिकरण की मांग की है।
      • पंजाब राज्य के अनुसार, आज तक राज्य में नदी जल का कोई न्यायनिर्णयन अथवा वैज्ञानिक मूल्यांकन नहीं किया गया है।
      • रावी-ब्यास जल की उपलब्धता भी वर्ष 1981 में अनुमानित 17.17 MAF से घटकर वर्ष 2013 में 13.38 MAF हो गई है। एक नया न्यायाधिकरण इन सभी की जाँच सुनिश्चित करेगा।

पंजाब और हरियाणा राज्यों के तर्क:

  • पंजाब:
    • पंजाब पड़ोसी राज्यों के साथ किसी भी अतिरिक्त जल के बंटवारे का कड़ा विरोध करता है। वे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि पंजाब में अतिरिक्त जल की कमी है और पिछले कुछ वर्षों में उनके जल आवंटन में कमी हुई है।
    • वर्ष 2029 के बाद पंजाब के कई क्षेत्रों में जल समाप्त हो सकता है और सिंचाई के लिये राज्य पहले ही अपने भूजल का अत्यधिक दोहन कर चुका है क्योंकि गेहूंँ और धान की खेती करके यह केंद्र सरकार को हर साल लगभग 70,000 करोड़ रुपए मूल्य का अन्न भंडार उपलब्ध कराता है।
      • राज्य के लगभग 79% क्षेत्र में पानी का अत्यधिक दोहन है और ऐसे में सरकार का कहना है कि किसी अन्य राज्य के साथ पानी साझा करना असंभव है।
  • हरियाणा:
    • पंजाब, हरियाणा के हिस्से का जल उपयोग कर रहा है, इसलिये हरियाणा बढ़ते जल संकट का हवाला देते हुए नहर के कार्य को पूरा करने की मांग करता है।
    • हरियाणा का तर्क है कि राज्य में सिंचाई के लिये जल उपलब्ध कराना कठिन है और हरियाणा के दक्षिणी हिस्सों में पीने के पानी की समस्या है जहांँ भूजल स्तर 1,700 फीट तक कम हो गया है।
    • हरियाणा केंद्रीय खाद्य पूल (Central Food Pool) में अपने योगदान का हवाला देता रहा है और तर्क देता है कि एक न्यायाधिकरण द्वारा किये गए मूल्यांकन के अनुसार उसे उसके जल के उचित हिस्से से वंचित किया जा रहा है।

सतलुज-यमुना लिंक नहर का महत्त्व:

  • एकसमान जल बंटवारे की सुविधा:
    • SYL नहर का उद्देश्य हरियाणा और पंजाब के बीच नदी जल के समान बंटवारे को सुविधाजनक बनाना है। एक बार पूरा होने पर यह नहर क्षेत्र के प्रमुख जल स्रोतों रावी और ब्यास नदियों से जल के वितरण को सक्षम करेगी। जल संसाधनों तक उचित पहुँच सुनिश्चित करने और असमान वितरण से उत्पन्न होने वाले संभावित संघर्षों को रोकने के लिये यह दोनों राज्यों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • दीर्घकालिक जल विवादों का समाधान:
    • यह हरियाणा और पंजाब के बीच लंबे समय से चले आ रहे जल विवादों का समाधान कर सकता है। इसका उद्देश्य जल हस्तांतरण के लिये एक सुगम मार्ग प्रदान करके, जल आवंटन और उपयोग से संबंधित असहमति को सुलझाना है जो दशकों से चली आ रही है तथा कई बार कानूनी लड़ाई व राजनीतिक तनाव का कारण बनी है।
  • कृषि उत्पादकता में वृद्धि:
    • SYL नहर बेहतर जल वितरण की सुविधा प्रदान करके, कृषि उत्पादकता और स्थिरता को बढ़ाने में योगदान कर सकती है।
    • यह किसानों को उनकी भूमि पर प्रभावी ढंग से खेती करने में सहायता कर सकती है, जिससे बेहतर पैदावार तथा सामाजिक-आर्थिक विकास हो सकता है।
  • सामाजिक-आर्थिक विकास:
    • SYL नहर दोनों राज्यों में समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
    • शहरीकरण, औद्योगीकरण और समग्र विकास के लिये जल तक निर्बाध पहुँच आवश्यक है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों को लाभ होता है तथा लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।

विभिन्न राज्यों के बीच जल बंटवारे के विवादों का कारण:

  • न केवल भारत में अपितु विश्व के कई हिस्सों में विभिन्न राज्यों के बीच जल बंटवारे के मुद्दे जटिल और बहुआयामी हैं, जिनमें अमूमन कई कारक शामिल होते हैं। कुछ सामान्य कारक जो राज्यों के बीच जल बंटवारे के मुद्दों का कारण बनते हैं:
    • जल उपलब्धता में भौगोलिक भिन्नताएँ: विभिन्न राज्यों में उनकी भौगोलिक स्थिति, स्थलाकृति और नदियों, झीलों या पानी के अन्य स्रोतों से निकटता के कारण जल संसाधनों तक पहुँच का स्तर अलग-अलग है।
      • कुछ राज्यों में स्वाभाविक रूप से जल संसाधन अधिक प्रचुर हो सकते हैं जबकि अन्य को जल की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
    • जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग: जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग मौसम के पैटर्न को बदल रहे हैं और वर्षा के स्तर को प्रभावित कर रहे हैं, जिससे जल की उपलब्धता एवं वितरण में बदलाव आ रहा है।
      • अनियमित वर्षा, लंबे समय तक सूखा और बदलते मानसून पैटर्न से जल की कमी की समस्या बढ़ सकती है तथा जल वितरण संबंधी संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।
    • नदियों और जल स्रोतों का असमान वितरण: राज्यों में नदियों और अन्य जल स्रोतों का वितरण प्रायः असमान होता है, जिससे जल के अभिगम व उपयोग पर विवाद होता है।
      • नदी के ऊर्ध्वप्रवाह वाले भाग में स्थित राज्यों का नदी के स्रोत पर प्रभावी नियंत्रण हो सकता है जबकि अधोप्रवाह वाले हिस्से में स्थित राज्यों को जल का उचित भाग प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
    • बाँधों और जलाशयों का निर्माण कार्य: विभिन्न उद्देश्यों के लिये बाँधों और जलाशयों का निर्माण नदियों के प्रवाह को महत्त्वपूर्ण रूप से परिवर्तित कर सकता है तथा अधोप्रवाह वाले हिस्से की ओर जल की उपलब्धता को प्रभावित कर सकता है।
    • जनसंख्या वृद्धि और बढ़ी हुई मांग: कुछ राज्यों में तेज़ी से जनसंख्या वृद्धि से कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिये जल की मांग बढ़ जाती है।
      • यह बढ़ी हुई मांग उपलब्ध जल संसाधनों पर दबाव डालती है, जिससे आवंटन और वितरण पर संघर्ष होता है।
    • राजनीतिक और अंतर-राज्य संबंध: राजनीतिक कारक, अंतर्राज्यीय संबंध और राज्यों के बीच अलग-अलग प्राथमिकताएँ जल वितरण से संबंधित वार्ता एवं समझौतों को प्रभावित कर सकती हैं।
      • राजनीतिक विचार, सत्ता की गतिशीलता और चुनावी हित जल विवादों के समाधान को जटिल बना सकते हैं।

जल वितरण के मुद्दों का स्थायी समाधान:

  • जल संरक्षण एवं दक्षता उपाय:
    • जल-बचत प्रौद्योगिकियों को लागू करने और कृषि, उद्योग एवं घरों में जल संरक्षण प्रथाओं को बढ़ावा देने से जल की मांग में काफी कमी आ सकती है।
  • सिंचाई प्रणालियों का आधुनिकीकरण:
    • सिंचाई के बुनियादी ढाँचे को ड्रिप सिंचाई जैसी अधिक कुशल प्रणालियों में अपग्रेड करने से कृषि (एक ऐसा क्षेत्र जो अधिकांश जल संसाधनों का उपभोग करता है) में जल की बर्बादी को कम किया जा सकता है।
  • वास्तविक समय की निगरानी और पूर्वानुमान:
    • जलाशय के स्तर, नदी के प्रवाह और मौसम के पैटर्न की वास्तविक समय की निगरानी के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग प्रभावी जल प्रबंधन तथा विशेषकर जलवायु अनिश्चितताओं के दौरान समय पर निर्णय लेने में सहायता कर सकता है।
  • संघर्ष समाधान तंत्र:
    • संभवतः कानूनी संरचना के परे कुशल संघर्ष समाधान तंत्र स्थापित करने से राज्यों को जल-वितरण विवादों को अधिक तेज़ी और सहयोगात्मक ढंग से हल करने में मदद मिल सकती है।
      • जल विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने के लिये पड़ोसी राज्यों के बीच सहयोग और समझ का की भावना विकसित होना आवश्यक है।
  • नदी बेसिन पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली:
    • नदी बेसिन पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने और संरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करने से जल संसाधनों की संधारणीयता में वृद्धि हो सकती है। स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र जल की गुणवत्ता और उपलब्धता में योगदान देता है।
    • किसी भी जल-संबंधित परियोजना को शुरू करने से पहले व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) सुनिश्चित करने से जल स्रोतों और पारिस्थितिक तंत्र पर प्रतिकूल प्रभावों को रोका या नियंत्रित किया जा सकता है।

आगे की राह

  • जल विवादों को न्यायाधिकरण के निर्णय पर सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार के साथ एक स्थायी न्यायाधिकरण स्थापित करके हल या नियंत्रित किया जा सकता है।
  • किसी भी संवैधानिक सरकार का तात्कालिक लक्ष्य अनुच्छेद 262 (अंतरराज्यीय नदियों या नदी घाटियों के जल से संबंधित विवादों का न्यायनिर्णयन) और अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम में संशोधन तथा समान स्तर पर इसका कार्यान्वयन होना चाहिये।

मल्टीमॉडल ए.आई का उद्भव

प्रिलिम्स के लिये:

मल्टीमोडल AI उद्भव, AI(कृत्रिम बुद्धिमत्ता), ह्यूमन-लाइक कॉग्निशन, ओपन AI चैट जीपीटी, गूगल जेमिनी मॉडल।

मेन्स के लिये:

मल्टीमोडल AI का उद्भव और उसके निहितार्थ, मल्टीमॉडल AI का विकास और उसके अनुप्रयोग तथा दैनंदिन के जीवन पर प्रभाव

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

AI (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) ने मल्टीमोडल सिस्टम की दिशा में एक आदर्श परिवर्तन किया है, जो लोगों को टेक्स्ट, छवियों, ध्वनियों और वीडियो के माध्यम से AI के साथ बातचीत करने में सक्षम बनाता है।

  • इन प्रणालियों का लक्ष्य विभिन्न प्रकार के संवेदी प्रसंस्करण (Sensory Input) का उपयोग करके मानव जैसे संज्ञान की नकल करना है।

मल्टीमोडल AI सिस्टम 

  • परिचय:
    • मल्टीमोडल AI कृत्रिम बुद्धिमत्ता को संदर्भित करता है जो वास्तविक दुनिया के मुद्दों के संबंध में अधिक सटीक पूर्वानुमान, व्यावहारिक निष्कर्ष अथवा निर्णय करने के लिये कई डेटा प्रकारों अथवा मोड को एकीकृत कर सकता है
    • वीडियो, ऑडियो, भाषण, चित्र, पाठ और विभिन्न प्रकार के पारंपरिक संख्यात्मक डेटा सेट का उपयोग तथा प्रशिक्षण मल्टीमोडल AI सिस्टम द्वारा किया जाता है।
    • उदाहरणत: व्हिस्पर, ओपन-AI का ओपन-सोर्स स्पीच-टू-टेक्स्ट ट्रांसलेशन मोडल, जीपीटी की वॉयस प्रोसेसिंग क्षमताओं का आधार है। मल्टीमोडल ऑडियो सिस्टम समान सिद्धांतों पर कार्य करते हैं।

  • मल्टीमोडल AI में हालिया विकास: 
    • OpenAI ने अपने GPT-3.5 और GPT-4 मोडल में संवर्द्धन की घोषणा की, जिससे उन्हें छवियों का विश्लेषण करने तथा स्पीच सिंथेसिस में संलग्न होने में सहायता मिली, जिससे उपयोगकर्त्ताओं के साथ अधिक गहन इंटरेक्शन संभव हो सका।
      • यह "गोबी" नाम के एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है, जिसका लक्ष्य GPT मॉडल से अलग एक नए सिरे से मल्टीमोडल AI सिस्टम बनाना है।
    • गूगल का जेमिनी मोडल:
      • इस क्षेत्र में एक अन्य प्रमुख दिग्गज Google का नया मल्टीमोडल लार्ज लैंग्वेज मोडल जो अब तक रिलीज़ नहीं हुआ है, Gemini है।
        • अपने सर्च इंजन और यूट्यूब से छवियों एवं वीडियो के विशाल संग्रह के कारण, Google को मल्टीमोडल डोमेन में अपने प्रतिद्वंद्वियों पर स्पष्ट बढ़त हासिल थी।
        • यह अन्य AI प्रणालियों पर अपनी मल्टीमोडल क्षमताओं को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिये अत्यधिक दबाव डालता है।

यूनिमोडल AI की तुलना में मल्टीमॉडल AI के फायदे:

  • मल्टीमोडल AI, यूनिमोडल AI के विपरीत टेक्स्ट, चित्र और ऑडियो जैसे विविध डेटा प्रकारों का लाभ उठाता है, जो जानकारी का एक समृद्ध प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं।
  • यह दृष्टिकोण प्रासंगिक समझ को बढ़ाता है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक सटीक अनुमान और सूचित निर्णय सुनिश्चित होते हैं।
  • कई तौर-तरीकों से डेटा को फ्यूज़ करके, मल्टीमोडल AI बेहतर प्रदर्शन, सुदृढ़ता और अस्पष्टता को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करने की क्षमता अर्जित करता है।
  • यह विभिन्न डोमेन में प्रयोज्यता को व्यापक बनाता है और क्रॉस-मोडल लर्निंग को सक्षम बनाता है।
  • मल्टीमोडल ए.आई. डेटा की अधिक समग्र और मानव-जैसी समझ प्रदान करता है, यह इसके नवीन अनुप्रयोगों तथा जटिल वास्तविक वैश्विक परिदृश्यों की गहन समझ का मार्ग प्रशस्त करता है।

मल्टीमोडल ए.आई.के अनुप्रयोग:

  • मल्टीमोडल ए.आई का  उपयोग स्वायत्त ड्राइविंग, रोबोटिक्स और चिकित्सा सहित विभिन्न क्षेत्रों में संभव है।
    • उदाहरण के लिये, चिकित्सा क्षेत्र में सी.टी. स्कैन द्वारा जटिल डेटासेट का विश्लेषण और आनुवंशिक विविधताओं की पहचान का कार्य, चिकित्सा पेशेवरों के लिये परिणामों की साझाकरण प्रक्रिया को सरल बनाना आदि कार्य महत्त्वपूर्ण हैं।
  • गूगल ट्रांसलेट और Meta के Seamless M4T जैसे स्पीच ट्रांसलेशन मॉडल को मल्टीमोडलिटी से लाभ मिलता है, ये सभी मॉडल विभिन्न भाषाओं में अनुवाद सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  • हाल के इस क्षेत्र में हुए विकासों में मेटा का इमेजबाइंड (ImageBind) प्रमुख है, यह एक मल्टीमोडल प्रणाली है जो टेक्स्ट, विज़ुअल डेटा, ऑडियो, तापमान और मूवमेंट रीडिंग को संसाधित करने में सक्षम है।
    • इसमें स्पर्श, गंध, भाषण और MRI मस्तिष्क संकेतों जैसे अतिरिक्त संवेदी डेटा को एकीकृत करने की संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है, ताकि भविष्य में ए.आई. प्रणाली को जटिल वातावरण का अनुकरण करने में सक्षम बनाया जा सके।

मल्टीमोडल ए.आई. की चुनौतियाँ:

  • डेटा की मात्रा और भंडारण:
    • मल्टीमोडल ए.आई. के लिये विविध और विशाल डेटा की आवश्यक होती है जो डेटा गुणवत्ता, भंडारण लागत एवं अतिरेक प्रबंधन के मुद्दों के कारण महंगा और संसाधन-गहन(जिनके लिये व्यापक संसाधनों और ऊर्जा की आवश्यकता होती है) है।
  • संदर्भ और बारीकियों की समझ:
    • एक समान इनपुट के विभिन्न सूक्ष्म अर्थों की समझ तैयार करने के लिये AI को प्रशिक्षित करने का कार्य विशेष रूप से भाषाओं अथवा संदर्भ आधारित अर्थों वाली अभिव्यक्तियों में स्वर, चेहरे के भाव जैसे अन्य प्रासंगिक संकेतों के बिना चुनौतीपूर्ण साबित होता है।
  • सीमित और अपूर्ण डेटा:
    • असीमित और आसानी से पहुँच योग्य डेटा समूह की उपलब्धता एक चुनौती है। सार्वजनिक डेटा समूह सीमित, महँगे या एकत्रीकरण समस्याओं से ग्रस्त हो सकते हैं, जिससे AI मोडल प्रशिक्षण में डेटा अखंडता और पूर्वाग्रह प्रभावित हो सकते हैं।
  • गुम डेटा प्रबंधन:
    • एकाधिक स्रोतों से डेटा पर निर्भरता के परिणामस्वरूप AI में खराबी हो सकती है या किसी भी डेटा स्रोत की गलत व्याख्या हो सकती है, जिससे AI प्रतिक्रिया में अनिश्चितता उत्पन्न हो सकती है।
  • निर्णय लेने की जटिलता:
    • मल्टीमोडल AI में तंत्रिका नेटवर्क की व्याख्या करना जटिल और चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिससे यह समझना मुश्किल हो जाता है कि AI डेटा का मूल्यांकन किस प्रकार करता है तथा निर्णय कैसे लेता है। पारदर्शिता की यह कमी डिबगिंग और पूर्वाग्रह उन्मूलन प्रयासों में बाधा बन सकती है।

निष्कर्ष:

  • मल्टीमोडल AI सिस्टम का आगमन कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है।
  • इन प्रणालियों में विभिन्न उद्योगों में क्रांति लाने, मानव-कंप्यूटर इंटरैक्शन को बढ़ाने और जटिल वास्तविक दुनिया की समस्याओं का समाधान करने की क्षमता है।
  • जैसे-जैसे AI का विकास जारी है, मल्टीमोडैलिटी कृत्रिम सामान्य बुद्धिमत्ता प्राप्त करने और AI अनुप्रयोगों की सीमाओं का विस्तार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये तैयार है।

मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता

प्रिलिम्स के लिये:

मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (ASHA), राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन

मेन्स के लिये:

भारत की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में ASHA की भूमिका और महत्त्व, स्वास्थ्य एवं मानव संसाधन से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के प्रबंधन से संबंधित मुद्दे

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सोशल साइंस एंड मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने भारत में मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं (ASHA) द्वारा सामना किये जाने वाले अप्रत्यक्ष/प्रछन्न संघर्षों का खुलासा किया है।

  • यह अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण शोध अंतर को उजागर करता है जिसमें 50% से अधिक पूर्व के लेख पूर्ण रूप से स्वास्थ्य प्रणाली के परिप्रेक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं और आशा कार्यकर्त्ताओं के व्यक्तिगत संघर्षों की अनदेखी करते हैं। इसमें छह फोकस समूहों में 59 आशा कार्यकर्त्ताओं को शामिल किया गया, जिससे उन्हें अपने काम से संबंधित तनाव, कार्य के बोझ, लिंग, जातिगत भेदभाव और संबंधों की गतिशीलता पर खुलकर चर्चा करने में सहायता मिली।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:

  • जातिगत भेदभाव:
    • कई आशा कार्यकर्त्ताओं (ASHA) ने ऐसे उदाहरणों का जिक्र किया जहाँ उनकी जाति के आधार पर उनके साथ भेदभाव किया गया था।
      • कुछ आशा कार्यकर्त्ताओं को अभिजात वर्ग के निवासियों के घरों के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी। कुछ मामलों में उन्हें प्रवेश की अनुमति तो दी गई लेकिन कुर्सी पर बैठने की अनुमति नहीं दी गई।
  • लिंग आधारित अनादर:
    • आशा कार्यकर्त्ताओं को सार्वजनिक रूप से ऐसे पुरुषों के साथ देखे जाने पर समुदाय के सदस्यों से अपमानजनक टिप्पणियों और भेदभावपूर्ण व्यवहार का अनुभव हुआ जो उनके परिवार के सदस्य नहीं थे।
      • ये घटनाएँ रोगियों के पुरुष रिश्तेदारों के साथ उनकी बातचीत या प्रजनन स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन पर पुरुष सेवार्थियों को परामर्श देने तक भी विस्तारित हुईं।
  • अनुचित व्यवहार:
    • आशा कार्यकर्त्ताओं ने पर्यवेक्षकों, सहायक मिडवाइफ नर्स (ANM), चिकित्सा अधिकारियों और अस्पताल के कर्मचारियों के साथ अपनी बातचीत को असम्मानजनक एवं अनुचित स्तर तक का बताया। असंवेदनशीलता और समर्थन की कमी के उदाहरण आम बात थे।
  • घरेलू कलह:
    • अपने काम और घरेलू ज़िम्मेदारियों के बीच संतुलन स्थापित करने के कारण प्राय: घर में झगड़े होना, कभी-कभी कलह तलाक की धमकी तक पहुँच जाते हैं।
      • अपने कठिन कार्यों के अतिरिक्त कई आशा कार्यकर्त्ताओं को अपने परिवारों के प्रति दायित्वों को संतुलित करना पड़ा।
  • समर्थन और विरोध करने के समाधान की आवश्यक:
    • अध्ययन से पता चलता है कि उचित समर्थन और मुकाबला करने की व्यवस्था के साथ आशा कार्यकर्त्ता अपने तनाव को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर सकती हैं।

मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (ASHA):

  • परिचय:
    • आशा कार्यक्रम वर्ष 2005-06 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के भाग के रूप में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रारंभ किया गया था।
      • बाद में वर्ष 2013 में इसमें शहरी क्षेत्रों को समाहित करते हुए राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन प्रारंभ किया गया।
    • आशा कार्यक्रम को सामुदायिक प्रक्रिया हस्तक्षेप के एक प्रमुख घटक के रूप में प्रस्तुत किया गया था, साथ ही अब यह विश्व में सबसे बड़े सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता कार्यक्रम के रूप में उभरा है एवं इसे स्वास्थ्य में लोगों की भागीदारी को सक्षम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान माना जाता है।
      • जून 2022 तक सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों (गोवा को छोड़कर) में 10.52 लाख से अधिक आशा कार्यकर्त्ता हैं।
  • आशा कार्यकर्त्ता की भूमिका:
    • आशा कार्यकर्त्ता एक सामुदायिक स्तर की कार्यकर्त्ता है जिसकी प्रमुख भूमिका स्वास्थ्य देखभाल सुविधा प्रदाता और सेवा प्रदाता के रूप में कार्य करना तथा स्वास्थ्य मुद्दों पर जागरूकता उत्पन्न करना है।
    • मातृ शिशु स्वास्थ्य और परिवार नियोजन के लिये प्रमुख सेवाएँ प्रदान करने के अतिरिक्त वे राष्ट्रीय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत भी महत्त्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करती हैं।
    • आशा कार्यकर्त्ताएँ, जिनमें सभी महिलाएँ होती हैं, ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 1,000 और शहरी क्षेत्रों में 2,000 की आबादी की सेवा करती हैं।
      • आमतौर पर "प्रति 1000 जनसंख्या के लिये 1 आशा कार्यकर्त्ता" होती है। हालाँकि, कार्यभार के आधार पर जनजातीय, पहाड़ी और रेगिस्तानी क्षेत्रों में इस मानदंड में बदलाव करके इसे "प्रति बस्ती 1 आशा कार्यकर्त्ता" तक किया जा सकता है।
  • आशा कार्यकर्त्ताओं का चयन:
    • आशा कार्यकर्त्ता 25 से 45 वर्ष की आयु वर्ग की मुख्य रूप से ग्रामीण निवासी, विवाहित/विधवा/तलाकशुदा महिला होनी चाहिये।
    • वह एक साक्षर महिला होनी चाहिये और चयन में उन लोगों को उचित प्राथमिकता दी जानी चाहिये जो 10वीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की हो। इसमें छूट तभी दी जा सकती है जब इस योग्यता वाला कोई उपयुक्त व्यक्ति उपलब्ध न हो।
    • आशा कार्यकर्त्ताओं को सरकार के "कार्यकर्त्ता" के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है, बल्कि उन्हें "मानद/स्वयंसेवक" पद धारण करने वाले के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

आगे की राह

  • आशा कार्यकर्त्ता को भावनात्मक समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करने के लिये परामर्श पहल स्थापित करना। उनके सामने आने वाली जटिलताओं से निपटने के लिये उन्हें सशक्त बनाया जाना चाहिये।
  • जाति और लिंग के भेदभाव को संबोधित करने के लिये समर्थन के प्रयासों को मज़बूत करना तथा यह सुनिश्चित करना कि आशा कार्यकर्त्ताओं के साथ उनके समूहों में प्रतिष्ठा और सम्मान का व्यवहार किया जाए।
  • रचनात्मक संवाद, समझ और सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिये आशा कार्यकर्त्ताओं एवं उनके पर्यवेक्षकों के बीच संचार का खुला वातावरण बनाना।
  • आशा कार्यकर्त्ताओं के परिवारों को समर्थन और समझ बढ़ाने के लिये उनके काम के महत्त्व के बारे में शिक्षित करना। इस बात पर प्रकाश डालना कि उनके प्रयासों से पूरे समुदाय को कैसे लाभ होता है।
    • आशा कार्यकर्त्ताओं को अपने काम और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से संतुलित करने में मदद के लिये लचीली कार्य व्यवस्था सुनिश्चित करना।
  • आशा कार्यकर्त्ताओं के योगदान की समुदाय-व्यापी मान्यता को बढ़ावा देना, उनमें गर्व और प्रशंसा की भावना पैदा करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के संदर्भ में प्रशिक्षित सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता ‘आशा’ के कार्य निम्नलिखित में से कौन-से हैं? (2012)

  1. स्त्रियों को प्रसवपूर्व देखभाल जाँच के लिये स्वास्थ्य सुविधा केंद्र साथ ले जाना।
  2. गर्भावस्था के प्रारंभिक संसूचन के लिये गर्भावस्था परीक्षण किट का उपयोग करना।
  3. पोषण एवं टीकाकरण पर जानकारी प्रदान करना।
  4. बच्चे का प्रसव कराना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a)केवल 1, 2 और 3
(b)केवल 2 और 4
(c)केवल 1 और 3
(d)1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


भारत तंज़ानिया संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

तंज़ानिया के सीमावर्ती देश, विक्टोरिया झील, न्गोरोंगोरो क्रेटर, माउंट किलिमंजारो, तांगानिका झील।

मेन्स के लिये:

भारत और तंज़ानिया के बीच सहयोग के क्षेत्र, द्विपक्षीय समूह और समझौते, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन

स्रोत: पी. आई. बी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नई दिल्ली में भारत-तंज़ानिया निवेश फोरम में तंज़ानिया के राष्ट्रपति का स्वागत किया।

  • भारत और तंज़ानिया ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर पर उन्नत किया है।

इस यात्रा से प्रमुख बिंदु:

  • दोनों देशों ने विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग को मज़बूत करने के लिये छह समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
    • इसमें डिजिटल डोमेन, संस्कृति, खेल, समुद्री उद्योग और व्हाइट शिपिंग सूचना साझाकरण में सहयोग शामिल है।
    • ये समझौते दोनों देशों के बीच तकनीकी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने की नींव रखते हैं।
  • दोनों देश भारत में अधिकृत बैंकों को तंज़ानिया में संपर्की बैंकों के विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते (Special Rupee Vostro Accounts- SRVA) खोलने में सक्षम बनाकर भारतीय रुपए और तंज़ानियन शिलिंग के बीच व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं।
    • वर्तमान में समास्याओं को दूर करने और इस मुद्रा व्यापार तंत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के प्रयास किये जा रहे हैं।
  • नव स्थापित पंच-वर्षीय रक्षा रोडमैप सैन्य प्रशिक्षण, समुद्री सहयोग, क्षमता निर्माण और रक्षा क्षेत्र में विस्तारित सहयोग में सहायता प्रदान करेगा।
  • दोनों देशों ने हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई है।
    • जुलाई 2023 में पहली बार हुए भारत-तंज़ानिया संयुक्त विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) अनुवीक्षण अभ्यास की सफलता इस दिशा में एक सकारात्मक कदम था।
  • तंज़ानिया की राष्ट्रपति सामिया सुलुहू हसन को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली।
    • वह भारत और तंज़ानिया के बीच आर्थिक कूटनीति, क्षेत्रीय एकीकरण और बहुपक्षवाद को बढ़ावा देने में योगदान के लिये यह सम्मान प्राप्त करने वाली प्रथम महिला हैं।
  • तंज़ानिया सरकार ने यह भी घोषणा की कि वे इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस और ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस में शामिल होंगे।

तंज़ानिया से संबंधित मुख्य तथ्य: 

  • परिचय: तंज़ानिया पूर्वी अफ्रीका का सबसे बड़ा देश है। आठ पड़ोसी राष्ट्रों के साथ यह सर्वाधिक अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं वाले दुनिया के शीर्ष 10 देशों में से एक है।
    • ज़ांज़ीबार, पेम्बा और माफिया द्वीप भी तंज़ानिया का हिस्सा हैं।

  • राजधानी: दार-एस-सलाम देश की प्रशासनिक राजधानी है जबकि डोडोमा विधायी राजधानी है।
  • मुद्रा: तंज़ानियन शिलिंग
  • भू-आकृति:
    • इसके उत्तरी क्षेत्र में विक्टोरिया झील का दक्षिणी भाग है जो नील नदी का स्रोत है।
      • इसके अतिरिक्त उत्तर में विश्व प्रसिद्ध नागोरोंगोरो क्रेटर है, जो विश्व का सबसे बड़ा ज्वालामुखी काल्डेरा है।
    • इसका उत्तरपूर्वी भाग पहाड़ी क्षेत्र से घिरा है। इसी क्षेत्र में सक्रिय ज्वालामुखी माउंट मेरु और अफ्रीका का सबसे ऊँचा पर्वत एवं विश्व का सबसे ऊँचा एकल मुक्त खड़ा पर्वत माउंट किलिमंजारो है।
    • पश्चिम में तांगानिका झील है जो विश्व की दूसरी सबसे गहरी झील है।
    • पूर्वी क्षेत्र में हिंद महासागर और अन्य तटीय तराई क्षेत्र हैं।

भारत और तंज़ानिया के बीच सहयोग के अन्य क्षेत्र:

  • परिचय:
    • भारत तंज़ानिया को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक प्रमुख भागीदार के रूप में देखता है, यह दोनों देशों के व्यापक भू-राजनीतिक संदर्भ को दर्शाता है।
      • तंज़ानिया भारत-अफ्रीका संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • आर्थिक सहयोग:
    • भारत तंज़ानिया के निर्यात के लिये सबसे बड़ा गंतव्य देश है और दोनों देशों के बीच वर्ष 2022-23 में कुल व्यापार 6.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें 3.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का भारतीय निर्यात भी शामिल था।
      • भारत तंज़ानिया में पाँचवाँ सबसे बड़ा निवेशक है।
    • भारत द्वारा तंज़ानिया को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएँ: पेट्रोलियम उत्पाद, फार्मास्युटिकल उत्पाद, मशीनरी, परमाणु रिक्टर, बॉयलर, इलेक्ट्रिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, चीनी और चीनी कन्फेक्शनरी आदि।
    • भारत में तंज़ानिया द्वारा आयत किये जाने वाले प्रमुख वस्तुएँ: सोने के अयस्क, काजू, मसाले (मुख्य रूप से लौंग), अयस्क और धातु स्क्रैप, रत्न, आदि।