शासन व्यवस्था
चारधाम परियोजना
प्रिलिम्स के लिये:चारधाम परियोजना, सीमा सड़क संगठन मेन्स के लिये:चारधाम परियोजना से संबंधित पर्यवरणीय मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत-चीन सीमा की ओर जाने वाली ‘चारधाम परियोजना’ (CDP) के तहत सड़कों के विस्तार के सेना के अनुरोध के संदर्भ में पर्यावरण संबंधी मुद्दों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को संतुलित करने की आवश्यकता की बात कही है।
- यह अनुरोध चीन द्वारा सीमा पार किये जा रहे निर्माण के संदर्भ में आया है। हालाँकि पर्यावरण संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा सड़कों के विस्तार का विरोध किया गया है।
प्रमुख बिंदु
- चारधाम परियोजना के विषय में:
- उद्देश्य: चारधाम परियोजना का उद्देश्य हिमालय में चारधाम तीर्थस्थलों (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री) के लिये कनेक्टिविटी में सुधार करना है, जिससे इन केंद्रों की यात्रा सुरक्षित, तीव्र और अधिक सुविधाजनक हो सके।
- यह परियोजना तीर्थ स्थलों और कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग-125) के टनकपुर-पिथौरागढ़ खंड को जोड़ने वाले लगभग 900 किलोमीटर के राजमार्गों को चौड़ा करेगी।
- राष्ट्रीय सुरक्षा में भूमिका: यह परियोजना रणनीतिक सड़कों के रूप में कार्य कर सकती है, जो भारत-चीन सीमा को देहरादून और मेरठ में सेना के शिविरों से जोड़ती है, जहाँ मिसाइल बेस और भारी मशीनरी मौजूद हैं।
- कार्यान्वयन एजेंसियाँ: उत्तराखंड राज्य लोक निर्माण विभाग (PWD), सीमा सड़क संगठन (BRO) और राष्ट्रीय राजमार्ग एवं बुनियादी अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (NHIDCL)।
- ‘राष्ट्रीय राजमार्ग एवं बुनियादी अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड’ सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है।
- उद्देश्य: चारधाम परियोजना का उद्देश्य हिमालय में चारधाम तीर्थस्थलों (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री) के लिये कनेक्टिविटी में सुधार करना है, जिससे इन केंद्रों की यात्रा सुरक्षित, तीव्र और अधिक सुविधाजनक हो सके।
- परियोजना के विषय में पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:
- यह परियोजना 55,000 पेड़ों के साथ लगभग 690 हेक्टेयर वनों को नष्ट कर सकती है और अनुमानित 20 मिलियन क्यूबिक मीटर मिट्टी को प्रभावित कर सकती है।
- सड़कों के विस्तार में पेड़ों की निर्मम कटाई या वनस्पति को उखाड़ना जैव विविधता और क्षेत्रीय पारिस्थितिकी के लिये भी खतरनाक साबित हो सकता है।
- कलिज तीतर (लोफुरा ल्यूकोमेलानोस, अनुसूची-I), ट्रैगोपैन (ट्रैगोपन मेलानोसेफालस तथा ट्रैगोपन सत्यरा, अनुसूची-I) और गिद्धों की विभिन्न प्रजातियाँ (अनुसूची- I) जैसी प्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं।
- यद्यपि चारधाम परियोजना और हाल ही में चमोली की ग्लेशियर त्रासदी के बीच कोई संबंध नहीं है, किंतु सड़क निर्माण के दौरान अंधाधुंध विस्फोट से मिट्टी और चट्टानों में दरारें आ जाती हैं जो भविष्य में अचानक बाढ़ की संभावना को बढ़ा सकती हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अफगानिस्तान पर दिल्ली घोषणा
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय सुरक्षा सलाहकार, संयुक्त राष्ट्र, मौलिक अधिकार मेन्स के लिये:दिल्ली घोषणा की मुख्य विशेषताएंँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता (Delhi Regional Security Dialogue) का आयोजन किया गया। इस बैठक में क्षेत्रीय देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (National Security Advisors- NSA) ने हिस्सा लिया तथा इसकी अध्यक्षता भारतीय सुरक्षा सलाहकार ( Indian NSA) द्वारा की गई।
- बैठक में अफगान लोगों को ‘तत्काल मानवीय सहायता’ (Urgent Humanitarian Assistance) का आह्वान किया गया और अफगान परिदृश्य पर क्षेत्रीय देशों के मध्य घनिष्ठ सहयोग एवं परामर्श का आग्रह किया गया।
- यह क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता की तीसरी बैठक है (इससे पहले की दो बैठकें वर्ष 2018 और 2019 में ईरान में संपन्न हुईं)।
प्रमुख बिंदु
- आमंत्रित प्रतिभागी: अफगानिस्तान के पड़ोसी देश जैसे- पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और रूस तथा चीन सहित अन्य प्रमुख प्रतिभागी देश।
- आवश्यकता: अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान द्वारा कब्ज़ा करने के बाद भारत इस क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर चिंतित है।
- अफगानिस्तान के क्षेत्र से आतंकवाद फैलने की आशंका बनी हुई है।
- दिल्ली घोषणा की विशेषताएंँ:
- सुरक्षित और स्थिर अफगानिस्तान: संप्रभुता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान और आंतरिक मामलों में अहस्तक्षेप पर ज़ोर देते हुए अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा व स्थिरता हेतु समर्थन को दोहराया गया।
- आतंकवाद की निंदा करना: आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों से निपटने के लिये प्रतिबद्धता की बात की गई।
- क्षेत्रीय सदस्यों से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है कि अफगानिस्तान कभी भी वैश्विक आतंकवाद के लिये सुरक्षित स्थान नहीं बनेगा।
- मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करना: इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यक समुदायों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो।
- अफगान समाज के सभी वर्गों को भेदभाव रहित सहायता प्रदान की जानी चाहिये।
- सामूहिक सहयोग: क्षेत्र में कट्टरपंथ, उग्रवाद, अलगाववाद और मादक पदार्थों की तस्करी के खतरे के खिलाफ सामूहिक सहयोग का आह्वान किया गया।
- संयुक्त राष्ट्र की केंद्रीय भूमिका: अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) के प्रासंगिक प्रस्तावों को दोहराते हुए कहा गया कि देश में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की निरंतर उपस्थिति को संरक्षित किया जाना चाहिये।
- हाल ही में संयुक्त राष्ट्र का संकल्प 2593 अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने के महत्त्व को दोहराता है, जिसमें वे व्यक्ति और संस्थाएंँ शामिल हैं जिन्हें संकल्प 1267 के अनुसार नामित किया गया है।
- क्षेत्रीय देशों द्वारा प्रतिक्रिया:
- रूस ने माना कि तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान में संवाद तंत्रों को जटिल नहीं होना चाहिये।
- पाकिस्तान और चीन को भी परामर्श में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया गया था लेकिन दोनों इससे दूर रहे।
- इसके अलावा तत्कालीन अफगान सरकार या तालिबान का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था।
- उज़्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के NSA ने अपने शुरुआती बयानों में आतंकवाद शब्द का बिल्कुल भी उल्लेख नहीं किया।
- अन्य अफगान शांति प्रक्रिया :
- अफगानिस्तान पर ‘ट्रोइका प्लस’ बैठक: अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया पर यू.एस, रूस, चीन, पाकिस्तान समूह।
- अफगानिस्तान पर ‘मास्को फोरमैट’: यह अफगानिस्तान में शांति और स्थिरता के लिये वर्ष 2017 में रूस द्वारा स्थापित किया गया था।
- यह छह-पक्षीय तंत्र है। इसमें रूस, भारत, अफगानिस्तान, ईरान, चीन और पाकिस्तान शामिल थे।
आगे की राह:
- समावेशी सरकार: सभी जातीय समूहों की भागीदारी के साथ एक समावेशी सरकार के गठन के माध्यम से ही समाधान प्राप्त किया जा सकता है।
- रूसी समर्थन: रूस ने हाल के वर्षों में तालिबान के साथ संबंध विकसित किये हैं। तालिबान के साथ किसी भी तरह के सीधे जुड़ाव हेतु भारत को रूस के समर्थन की आवश्यकता होगी।
- चीन के साथ संबंध: भारत को अफगानिस्तान में राजनीतिक समाधान और स्थायी स्थिरता प्राप्त करने के उद्देश्य से चीन के साथ बातचीत करनी चाहिये।
- तालिबान से जुड़ना: तालिबान से बात करने से भारत उन्हें निरंतर विकास सहायता एवं पाकिस्तान से तालिबान की स्वायत्तता की संभावना का पता लगाने में समर्थ होगा।
स्रोत- द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-स्वीडन इनोवेशन समिट
प्रिलिम्स के लिये:G-20, नवाचार दिवस, पेरिस जलवायु समझौता, लीडरशिप ग्रुप फॉर इंडस्ट्री ट्रांज़िशन मेन्स के लिये:भारत-स्वीडन संबंध |
चर्चा में क्यों?
भारत और स्वीडन ने 26 अक्तूबर, 2021 को 8वाँ नवाचार दिवस (Innovation Day) मनाया।
- थीम: 'एक्सेलरेटिंग इंडिया-स्वीडन ग्रीन ट्रांज़िशन' (Accelerating India Sweden Green Transition)।
प्रमुख बिंदु
- ग्रीन ट्रांज़िशन:
- भारत अपनी पेरिस जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने और इन प्रतिबद्धताओं से और अधिक बेहतर लक्ष्य प्राप्त करने की राह पर है।
- स्वीडन का उद्देश्य वर्ष 2045 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के पश्चात् नकारात्मक शुद्ध उत्सर्जन हासिल करना है।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) के नेतृत्व वाले इंडस्ट्री ट्रांज़िशन कार्यक्रम (लीडरशिप ग्रुप फॉर इंडस्ट्री ट्रांज़िशन) में भारत और स्वीडन एक साथ हैं।
- हाइब्रिड ग्रीन स्टील (कम कार्बन फुटप्रिंट के साथ) के लॉन्च के साथ नवाचार का प्रभाव दोनों पर पड़ेगा, जो वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग 30% है।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा अनुसंधान व नवाचार:
- भारत-स्वीडन नवाचार सहयोग, भारत-स्वीडन नवाचार भागीदारी और संयुक्त कार्य योजना (JAP) द्वारा निर्देशित है।
- वर्ष 2018 में स्मार्ट शहरों, नवाचार और अगली पीढ़ी के परिवहन को शामिल करने के लिये संयुक्त कार्य योजना (JAP) पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- इसके अलावा जैव प्रौद्योगिकी विभाग पहले से ही इनक्यूबेटर कनेक्ट, डिजिटल हेल्थ केयर और ग्लोबल बायो इंडिया कार्यक्रमों पर स्वीडिश भागीदारों के साथ जुड़ा हुआ है, जिससे जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भागीदारी बढ़ रही है।
- सर्कुलर इकॉनमी पर विचार:
- दोनों देशों ने चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) पर एक नए संयुक्त कार्य योजना का आह्वान किया, जिसमें स्वास्थ्य विज्ञान और वेस्ट टू वेल्थ जैसे विषय शामिल थे।
- सर्कुलर इकॉनमी में ऐसे बाज़ार शामिल हैं जो उत्पादों को स्क्रैप करने और फिर नए संसाधनों के उपयोग के बजाय पुन: उपयोग करने के लिये प्रोत्साहन देते हैं।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य, रोकथाम और स्वास्थ्य संवर्द्धन संगठन तथा बुजुर्गों की देखभाल के प्रावधान जैसे व्यापक विषयों पर 2021-2022 में नई योजना शुरू करने पर सहमति व्यक्त की गई।
- दोनों देशों ने चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) पर एक नए संयुक्त कार्य योजना का आह्वान किया, जिसमें स्वास्थ्य विज्ञान और वेस्ट टू वेल्थ जैसे विषय शामिल थे।
भारत-स्वीडन संबंध
- राजनीतिक संबंध:
- वर्ष 1948 में राजनयिक संबंध स्थापित हुए और दशकों से लगातार मज़बूत स्थिति में हैं।
- पहला भारत-नॉर्डिक शिखर सम्मेलन (भारत, स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड, आइसलैंड और डेनमार्क) वर्ष 2018 में स्वीडन में आयोजित किया गया था।
- स्वीडन ने नवंबर 2020 में भारत की सह-अध्यक्षता में प्रथम भारत-नॉर्डिक-बाल्टिक (एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया सहित) कॉन्क्लेव में भी भाग लिया।
- बहुपक्षीय जुड़ाव:
- भारत और स्वीडन ने संयुक्त रूप से वर्ष 2019 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) के सहयोग से लीडरशिप ग्रुप ऑन इंडस्ट्री ट्रांज़िशन (LeadIT) लॉन्च किया।
- 1980 के दशक में भारत और स्वीडन ने 'सिक्स नेशन पीस समिट' (जिसमें अर्जेंटीना, ग्रीस, मैक्सिको और तंजानिया भी शामिल थे) के फ्रेमवर्क के अंतर्गत परमाणु निरस्त्रीकरण के मुद्दों पर एक साथ काम किया।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत और स्वीडन मानवीय मामलों पर एक वार्षिक संयुक्त वक्तव्य प्रस्तुत करते हैं।
- वर्ष 2013 में स्वीडिश प्रेसीडेंसी के दौरान भारत किरुना मंत्रिस्तरीय बैठक में एक पर्यवेक्षक के रूप में आर्कटिक परिषद में शामिल हुआ।
- आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
- एशिया में चीन तथा जापान के बाद भारत, स्वीडन का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार (Trade Partner) है।
- वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2016) से बढ़कर 4.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (2019) हो गया है।
- रक्षा और एयरोस्पेस (स्वीडन-भारत संयुक्त कार्य योजना 2018): यह अंतरिक्ष अनुसंधान, प्रौद्योगिकी, नवाचार और अनुप्रयोगों के क्षेत्र में सहयोग पर प्रकाश डालता है।
आगे की राह
- यूरोपीय संघ का सदस्य होने के नाते स्वीडन यूरोपीय संघ और यूरोपीय संघ के देशों के साथ भारत की साझेदारी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- सामरिक जुड़ाव, द्विपक्षीय व्यापार और निवेश परिदृश्यों से पारस्परिक रूप से लाभकारी पद्धति के तहत साझा आर्थिक प्रगति को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
- मार्च 2021 के शिखर सम्मेलन के बाद नई दिल्ली और स्टॉकहोम के बीच रणनीतिक हितों के समेकन की संचालित गतिविधियों से क्षेत्रीय एवं वैश्विक स्तरों पर विशेष रूप से कोविड-19 भू-राजनीतिक कूटनीति को परिभाषित करने में एक त्रुटिहीन प्रभाव पड़ने की संभावना है (विशेष रूप से वर्ष 2023 में जी-20 प्रेसीडेंसी हेतु भारत का बढ़ता प्रभुत्त्व)।
स्रोत: पीआईबी
शासन व्यवस्था
सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय क्षेत्रक योजना, 15वाँ वित्त आयोग, स्वच्छ भारत अभियान, सुगम्य भारत अभियान,सांसद आदर्श ग्राम योजना मेन्स के लिये:MPLADS से संबंधी मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वित्तीय वर्ष 2021-22 की शेष अवधि से वर्ष 2025-26 तक सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना (Member of Parliament Local Area Development Scheme- MPLADS) की बहाली को मंज़ूरी प्रदान की है।
- यह योजना 15वें वित्त आयोग की अवधि की समाप्ति के साथ समाप्त होगी।
- इस योजना को दो वित्तीय वर्षों (2020-21 और 2021-22) के लिये निलंबित कर दिया गया था।
प्रमुख बिंदु
- MPLADS के बारे में:
- यह एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना (Central Sector Scheme) है जिसकी घोषणा दिसंबर 1993 में की गई थी।
- उद्देश्य:
- इस योजना का उद्देश्य सांसदों को मुख्य रूप से अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्यों की सिफारिश करने में सक्षम बनाना है जिसके तहत पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और सड़कों इत्यादि क्षेत्रों में टिकाऊ सामुदायिक परिसंपत्तियों के निर्माण पर विशेष ज़ोर दिया जाता है।
- जून 2016 से MPLADS फंड का उपयोग स्वच्छ भारत अभियान, सुगम्य भारत अभियान, वर्षा जल संचयन के माध्यम से जल संरक्षण और सांसद आदर्श ग्राम योजना आदि के कार्यान्वयन के लिये भी किया जा सकता है।
- इस योजना का उद्देश्य सांसदों को मुख्य रूप से अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्यों की सिफारिश करने में सक्षम बनाना है जिसके तहत पेयजल, प्राथमिक शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और सड़कों इत्यादि क्षेत्रों में टिकाऊ सामुदायिक परिसंपत्तियों के निर्माण पर विशेष ज़ोर दिया जाता है।
- कार्यान्वयन:
- MPLADS की प्रक्रिया संसद सदस्यों द्वारा नोडल ज़िला प्राधिकरण को कार्यों की सिफारिश करने के साथ शुरू होती है।
- संबंधित नोडल ज़िला, संसद सदस्यों द्वारा अनुशंसित कार्यों को लागू करने तथा योजना के तहत निष्पादित कार्यों और खर्च की गई राशि के विवरण हेतु ज़िम्मेदार है।
- कार्य पद्धति:
- प्रति सांसद निर्वाचन क्षेत्र हेतु निर्दिष्ट वार्षिक MPLADS राशि 5 करोड़ रुपए है, जो प्रत्येक 2.5 करोड़ रुपए की दो किस्तों में जारी की जाती है। MPLADS के तहत जारी वित्त गैर-व्यपगत (Non-Lapsable) है।
- लोकसभा सांसदों को अपने लोकसभा क्षेत्रों में ज़िला प्राधिकरण परियोजनाओं की सिफारिश करनी होती है, जबकि राज्यसभा सांसदों को इसे उस राज्य में खर्च करना होता है जिसने उन्हें सदन के लिये चुना है।
- राज्यसभा और लोकसभा दोनों के मनोनीत सदस्य देश में कहीं भी कार्यों की सिफारिश कर सकते हैं।
- योजना की बहाली का महत्त्व:
- यह स्थानीय समुदायों की आकांक्षाओं और विकासात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने तथा टिकाऊ संपत्तियों का निर्माण फिर से शुरू करेगा, जो कि MPLADS का प्राथमिक उद्देश्य है।
- यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में भी मदद करेगा।
- MPLADS संबंधी मुद्दे:
- कार्यान्वयन चूक: भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने वित्तीय कुप्रबंधन और खर्च की गई राशि की कृत्रिम मुद्रास्फीति संबंधी मुद्दों को उठाया है।
- कोई वैधानिक समर्थन नहीं: यह योजना किसी भी वैधानिक कानून द्वारा शासित नहीं है और यह उस समय की सरकार की मर्जी और कल्पनाओं के अधीन प्रारंभ की गई थी।
- निगरानी और विनियमन: यह योजना विकास भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गई थी लेकिन भागीदारी के स्तर को मापने हेतु कोई संकेतक उपलब्ध नहीं है।
- संघवाद का उल्लंघन: MPLADS स्थानीय स्वशासी संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करता है और इस प्रकार संविधान के भाग IX और IX-A का उल्लंघन करता है।
- शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के साथ संघर्ष: सांसद कार्यकारी कार्यों में शामिल हो रहे हैं।
स्रोत: पीआईबी
शासन व्यवस्था
खनिज रियायत (चौथा संशोधन) नियम, 2021
प्रिलिम्स के लिये:खनिज रियायत नियम-2016, व्यापार सुगमता, राष्ट्रीय खनिज नीति 2019, आत्मनिर्भर भारत मेन्स के लिये:खनिज रियायत (चौथा संशोधन) नियम, 2021 की प्रमुख विशेषताएँ, भारत का खनन क्षेत्र |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खान मंत्रालय ने खनिज (परमाणु और हाइड्रो कार्बन ऊर्जा खनिज के अतिरिक्त) रियायत (चौथा संशोधन) नियम, 2021 को अधिसूचित किया है।
- यह खनिज (परमाणु और हाइड्रो कार्बन ऊर्जा खनिज के अलावा) रियायत नियम, 2016 [MCR, 2016] में संशोधन करेगा।
प्रमुख बिंदु
- संशोधन:
- कैप्टिव पट्टों से बिक्री:
- कैप्टिव पट्टों से उत्पादित 50% खनिजों की बिक्री के तरीके प्रदान करने के लिये नए नियम जोड़े गए।
- इस संशोधन से कैप्टिव खानों की खनन क्षमता का अधिक-से-अधिक उपयोग करके अतिरिक्त खनिजों को बाज़ार में जारी करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
- कैप्टिव खदानें वे हैं जिनका खदानों के स्वामित्व कंपनी द्वारा विशेष उपयोग हेतु कोयले या खनिज का उत्पादन किया जाता है, जबकि गैर-कैप्टिव खदानें वे हैं जो ईंधन का उत्पादन और बिक्री करती हैं।
- अधिभार का निपटान (OB):
- अधिभार/अपशिष्ट चट्टान/थ्रेशोल्ड मूल्य से नीचे के खनिज जो खनन या खनिज को लाभकारी बनाने के दौरान उत्पन्न होते हैं, के निपटान की अनुमति देने के लिये प्रावधान जोड़ा गया।
- इससे खनिकों को व्यापार करने में सुगमता होगी।
- खनन पट्टा प्रदान करने के लिये क्षेत्र:
- खनन पट्टा प्रदान करने के लिये न्यूनतम क्षेत्र 5 हेक्टेयर से संशोधित कर यानी घटाकर 4 हेक्टेयर कर दिया गया है। वैसे क्षेत्र जहाँ खनिज की विशेष उपलब्धता हो वहाँ खनन पट्टा प्रदान करने हेतु न्यूनतम क्षेत्र 2 हेक्टेयर कर दिया गया है।
- सभी मामलों हेतु आंशिक समर्पण:
- सभी मामलों में खनन पट्टा क्षेत्र के आंशिक समर्पण की अनुमति है।
- पहले आंशिक समर्पण की अनुमति केवल वन मंज़ूरी न मिलने की स्थिति में ही दी जाती थी।
- समग्र लाइसेंस का हस्तांतरण:
- सभी प्रकार की खदानों के समग्र लाइसेंस या खनन पट्टे के हस्तांतरण की अनुमति देने के लिये नियमों में संशोधन किया गया।
- कैप्टिव पट्टों से बिक्री:
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य खनन क्षेत्र में रोज़गार एवं निवेश में वृद्धि, राज्यों के राजस्व में वृद्धि, खदानों के उत्पादन एवं समयबद्ध संचालन में वृद्धि, खनिज संसाधनों के अन्वेषण एवं नीलामी की गति में वृद्धि आदि है।
भारत में खनन क्षेत्र:
- परिचय:
- स्टील और एल्युमिनियम के उत्पादन और रूपांतरण लागत में भारत शुद्ध लाभ की स्थिति में है। इसकी रणनीतिक स्थिति निर्यात के अवसरों को विकसित करने के साथ-साथ तेज़ी से विकासशील एशियाई बाज़ारों को सक्षम बनाती है।
- भारत वर्ष 2021 तक दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश है।
- भारत 2020 तक दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा इस्पात उत्पादक था।
- भारत की खनिज क्षमता दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के समान है। भारत वर्तमान में 95 प्रकार के खनिजों का उत्पादन करता है, लेकिन इस वृहद् खनिज क्षमता के बावजूद भारत का खनन क्षेत्र अभी भी अस्पष्ट है।
- भारत के खनन क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में केवल 1.75% का योगदान है, जबकि दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की जीडीपी में खनन क्षेत्र का योगदान लगभग 7 से 7.5% तक है।
- संचालित खानों की कुल संख्या का 90% हिस्सा इन 11 राज्यों (आंध्र प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक) में है।
- खनन से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- भारतीय संविधान की सूची-II (राज्य सूची) के क्रम संख्या-23 में प्रावधान है कि राज्य सरकार को अपनी सीमा के अंदर मौजूद खनिजों पर नियंत्रण रखने का अधिकार है।
- सूची-I (केंद्रीय सूची) के क्रमांक-54 में प्रावधान है कि केंद्र सरकार को भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के भीतर खनिजों पर नियंत्रण रखने का अधिकार है।
- सभी अपतटीय खनिजों (भारतीय समुद्री क्षेत्र में स्थित समुद्र या समुद्र तल से निकाले गए खनिज जैसे- प्रादेशिक जल, महाद्वीपीय शेल्फ और अनन्य आर्थिक क्षेत्र) पर केंद्र सरकार का स्वामित्व है।
- संबंधित योजनाएँ:
- राष्ट्रीय खनिज नीति 2019
- नीलाम किये गए ग्रीनफील्ड खनिज ब्लॉकों का शीघ्र संचालन सुनिश्चित करने हेतु पहल की जा रही है।
- खनन क्षेत्र में करों को युक्तिसंगत बनाने पर भी विचार किया जा रहा है।
- आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत खनिज क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने और अन्य सुधार लाने की घोषणा की गई है।
- ज़िला खनिज फाउंडेशन ट्रस्ट।
स्रोत: पीआईबी
शासन व्यवस्था
खनिज संरक्षण और विकास (संशोधन) नियम, 2021
प्रिलिम्स के लिये:खनिज संरक्षण और विकास (संशोधन) नियम, 2021, भारतीय खान ब्यूरो, ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम मेन्स के लिये:खनिज संरक्षण और विकास (संशोधन) नियम, 2021 के मुख्य प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में खान मंत्रालय ने खनिज संरक्षण और विकास (संशोधन) नियम, 2021 को खनिज संरक्षण और विकास नियम (MCDR), 2017 में संशोधन करने के लिये अधिसूचित किया है।
- MCDR को खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 [MMDR Act] की धारा 18 के तहत तैयार किया गया है।
- ये नियम खनिजों के संरक्षण, व्यवस्थित और वैज्ञानिक खनन, देश में खनिजों के विकास और पर्यावरण की सुरक्षा के लिये नियम प्रदान करते हैं।
प्रमुख बिंदु
- अनिवार्य ड्रोन सर्वेक्षण:
- ये नियम निर्धारित करते हैं कि भारतीय खान ब्यूरो (IBM Nagpur) द्वारा निर्दिष्ट कुछ या सभी पट्टों के संबंध में डिजिटल ‘ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम’ (DGPS) या ‘टोटल स्टेशन’ या ‘ड्रोन सर्वेक्षण’ के संयोजन से खान संबंधित सभी योजनाएँ और अनुभाग तैयार किये जाएंगे।
- ‘टोटल स्टेशन’ एक ऑप्टिकल उपकरण है जो आमतौर पर निर्माण, सर्वेक्षण और सिविल इंजीनियरिंग में उपयोग किया जाता है। यह क्षैतिज कोणों, लंबवत कोणों तथा दूरी को मापने के लिये उपयोगी है।
- ये नियम निर्धारित करते हैं कि भारतीय खान ब्यूरो (IBM Nagpur) द्वारा निर्दिष्ट कुछ या सभी पट्टों के संबंध में डिजिटल ‘ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम’ (DGPS) या ‘टोटल स्टेशन’ या ‘ड्रोन सर्वेक्षण’ के संयोजन से खान संबंधित सभी योजनाएँ और अनुभाग तैयार किये जाएंगे।
- डिजिटल इमेज सबमिशन:
- पट्टेदारों और आशय पत्र धारकों द्वारा खनन क्षेत्रों की डिजिटल छवियों को प्रस्तुत करने का प्रावधान करने के लिये नया नियम लाया गया है।
- 1 मिलियन टन या उससे अधिक की वार्षिक उत्खनन योजना वाले या 50 हेक्टेयर या उससे अधिक के पट्टे वाले क्षेत्र के पट्टेदारों को हर वर्ष पट्टे की सीमा के बाहर और 100 मीटर तक के पट्टे वाले क्षेत्र की ड्रोन सर्वेक्षण छवियाँ प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है।
- अन्य पट्टेदार उच्च विभेदन उपग्रह चित्र प्रस्तुत करते हैं।
- इस कदम से न केवल खान नियोजन प्रथाओं, खानों में सुरक्षा और बचाव में सुधार होगा बल्कि खनन कार्यों का बेहतर पर्यवेक्षण भी सुनिश्चित होगा।
- अनुपालन बोझ में कमी:
- अनुपालन बोझ को कम करने के लिये दैनिक रिटर्न में छूट का प्रावधान।
- राज्य सरकार के अलावा आईबीएम को दी गई मासिक या वार्षिक रिटर्न में अधूरी या गलत जानकारी के खिलाफ कार्रवाई करने की शक्ति।
- दंड प्रावधान:
- नियमों में दंड संबंधी प्रावधानों को युक्तिसंगत बनाया गया है। नियमों में संशोधन निम्नलिखित प्रमुख शीर्षकों के तहत नियमों के उल्लंघन को वर्गीकृत करता है:
- बड़े उल्लंघन: कारावास की सज़ा, जुर्माना या दोनों।
- मामूली उल्लंघन: जुर्माने को कम किया गया, ऐसे उल्लंघनों के लिये केवल जुर्माने का दंड निर्धारित किया गया है।
- नियमों को अपराध की श्रेणी से हटाना: अन्य नियमों के उल्लंघन को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया है। इन नियमों में रियायत पाने वाले या किसी अन्य व्यक्ति पर कोई विशिष्ट बाध्यता को आरोपित नहीं किया गया है।
- नियमों में दंड संबंधी प्रावधानों को युक्तिसंगत बनाया गया है। नियमों में संशोधन निम्नलिखित प्रमुख शीर्षकों के तहत नियमों के उल्लंघन को वर्गीकृत करता है:
- वित्तीय आश्वासन:
- निर्धारित अवधि के भीतर अंतिम खदान बंद करने की योजना प्रस्तुत न करने की स्थिति में पट्टाधारक के वित्तीय बीमा या परफॉरमेंस सिक्योरिटी को जब्त करने के प्रावधान को जोड़ा गया है।
- रोज़गार के अवसर बढ़ाना:
- छोटी खदानों के लिये एक अंशकालिक खनन इंजीनियर या एक अंशकालिक भूविज्ञानी की नियुक्ति की अनुमति है जो छोटे खनिकों के अनुपालन बोझ को कम करेगा।
- खान सुरक्षा महानिदेशक द्वारा जारी पात्रता के एक द्वितीय श्रेणी प्रमाण पत्र के साथ विधिवत मान्यता प्राप्त संस्थान की ओर से दिया गया खनन और खान सर्वेक्षण में डिप्लोमा को पूर्णकालिक खनन इंजीनियर के लिये तय पात्रता में जोड़ा गया है।
- इसके अलावा अंशकालिक खनन इंजीनियर के लिये भी पात्रता जोड़ी गई है।
स्रोत: पीआईबी
सामाजिक न्याय
पोषण स्मार्ट गाँव कार्यक्रम
प्रिलिम्स के लिये:पोषण अभियान, पोषण स्मार्ट गाँव, आज़ादी का अमृत महोत्सव, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मेन्स के लिये:कुपोषण को दूर करने संबंधित कार्यक्रम, पोषण अभियान का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
पोषण अभियान को मज़बूत करने के लिये "पोषण स्मार्ट गाँव" नामक एक कार्यक्रम शुरू किया जाएगा।
- यह भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में आज़ादी का अमृत महोत्सव का अंग होगा।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह पहल प्रधानमंत्री के आह्वान के अनुरूप 75 गाँवों को गोद लेने और उन्हें स्मार्ट गाँव में बदलने को संदर्भित करता है।
- अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (AICRP) केंद्रों और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-केंद्रीय कृषिरत महिला संस्थान (ICAR-CIWA) द्वारा कुल 75 गाँवों को गोद लिया जाएगा।
- उद्देश्य:
- कृषि कार्यों में संलग्न महिलाओं और स्कूली बच्चों को शामिल करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में पोषण संबंधी जागरूकता, शिक्षा और व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देना।
- कुपोषण को दूर करने के लिये स्थानीय विधि के माध्यम से पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करना।
- घरेलू कृषि एवं न्यूट्री-गार्डन के माध्यम से पोषण-संवेदी कृषि को क्रियान्वित करना।
- पोषण अभियान:
- परिचय:
- 8 मार्च, 2018 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सरकार द्वारा राष्ट्रीय पोषण मिशन शुरू किया गया था।
- अभियान का उद्देश्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों में) तथा जन्म के समय कम वज़न को क्रमशः 2%, 2%, 3% और 2% प्रतिवर्ष कम करना है।
- इसमें वर्ष 2022 तक 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों में स्टंटिंग को 38.4% से कम कर 25% तक करने का भी लक्ष्य शामिल है।
- पोषण 2.0:
- हाल ही में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने पोषण 2.0 का उद्घाटन किया और सभी आकांक्षी ज़िलों से पोषण माह (1 सितंबर, 2021 से) के दौरान एक पोषण वाटिका (पोषण उद्यान) स्थापित करने का आग्रह किया।
- परिचय:
- भारत में कुपोषण परिदृश्य:
- इस अस्वस्थता से निपटने के लिये दशकों के निवेश के बावजूद भारत की बाल कुपोषण दर अभी भी दुनिया में सबसे जोखिमयुक्त देशों में से एक है।
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स (2021): इसकी गणना जनसंख्या के कुल अल्पपोषण, चाइल्ड स्टंटिंग, वेस्टिंग और बाल मृत्यु दर के आधार पर की जाती है। भारत को 116 देशों में 101वें स्थान पर रखा गया है।
- भारत के कुल रोग भार के 15% के लिये बच्चे और मातृ कुपोषण संबंधी समस्या ज़िम्मेदार है।
- अब तक किये गए 22 राज्यों के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) (2019-2021) के पाँचवें दौर के आँकड़ों के अनुसार, केवल 9 राज्यों में अविकसित बच्चों की संख्या में कमी, 10 राज्यों में कमज़ोर बच्चों में और छह में कम वज़न वाले बच्चों की संख्या में गिरावट देखी गई। .
- शोध से पता चलता है कि भारत में बाल कुपोषण के कारण संबंधी हस्तक्षेपों पर खर्च किया गया। 1 अमरीकी डालर सार्वजनिक आर्थिक प्रतिफल में वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक अमरीकी डालर (34.1 से 38.6) उत्पन्न कर सकता है।
- अध्ययनों से पता चलता है कि भारत बाल कुपोषण के कारण अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4% तक और अपनी उत्पादकता का 8% तक खो देता है।
- इस अस्वस्थता से निपटने के लिये दशकों के निवेश के बावजूद भारत की बाल कुपोषण दर अभी भी दुनिया में सबसे जोखिमयुक्त देशों में से एक है।
- अन्य संबंधित सरकारी पहलें:
- एनीमिया मुक्त भारत अभियान
- प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण (पीएम पोषण)
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई)
- एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस)
स्रोत: पीआईबी
सामाजिक न्याय
सुगम्यता मानकों के लिये नए मसौदा दिशा-निर्देश
प्रिलिम्स के लिये:दिव्यांगों के लिये संवैधानिक और कानूनी ढाँचा मेन्स के लिये:दिव्यांगों हेतु सुगम्यता मानक सुनिश्चित करने हेतु किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नए ‘सुगम्यता मानकों’ हेतु मसौदा दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
- इनके तहत लगभग सभी टेलीविज़न चैनलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे या तो कैप्शन या सांकेतिक भाषा का उपयोग करें, ताकि श्रवण बाधितों को प्रोग्रामिंग को समझने में मदद मिल सके।
- इससे पहले ‘भारतीय सांकेतिक भाषा अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र’ (ISLRTC) तथा ‘राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद’ (NCERT) ने पाठ्य-पुस्तकों को सांकेतिक भाषा में श्रवण-बाधित छात्रों के लिये सुलभ बनाने हेतु एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये थे।.
प्रमुख बिंदु
- मसौदा दिशा-निर्देशों के विषय में:
- उद्देश्य: इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य ‘श्रवण बाधित लोगों के लिये टेलीविज़न कार्यक्रमों हेतु सुगम्यता मानक’ प्रदान करना है।
- इन मानकों को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत अधिसूचित किया जाएगा, ताकि सुनने में अक्षम व्यक्तियों के लिये टेलीविज़न सामग्री को अधिक समावेशी बनाया जा सके।
- स्कोप: सभी प्रोग्रामिंग या सामग्री जैसे- संगीत शो, वाद-विवाद, स्क्रिप्टेड/अनस्क्रिप्टेड रियलिटी शो, आदि और विज्ञापनों एवं टेलीशॉपिंग सामग्री के लिये इन मानकों का पालन करना होगा।
- अपवाद:
- लाइव कार्यक्रम जैसे- खेल, लाइव समाचार, लाइव संगीत शो, पुरस्कार शो, लाइव रियलिटी शो आदि।
- वे चैनल जिनके पास एक वर्ष में 1% से कम औसत दर्शक हैं।
- सेवा का प्रकार: सेवा प्रदाताओं या प्रसारकों को ‘क्लोज़्ड कैप्शनिंग, सबटाइटल्स, ओपन कैप्शनिंग और/या साइन लैंग्वेज (न केवल हाथ बल्कि चेहरे की अभिव्यक्ति भी) में से कोई एक या अधिक विकल्प चुनने का अधिकार होगा।
- ओपन कैप्शन बंद नहीं किये जा सकते, जबकि क्लोज़्ड कैप्शन को दर्शक द्वारा चालू और बंद किया जा सकता है।
- उत्तरदायित्व: कंटेंट के निर्माता इन सेवाओं के लिये सामग्री निर्माण और इसे संबंधित चैनलों एवं प्रसारकों को वितरित करने के लिये उत्तरदायी होंगे।
- उद्देश्य: इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य ‘श्रवण बाधित लोगों के लिये टेलीविज़न कार्यक्रमों हेतु सुगम्यता मानक’ प्रदान करना है।
- श्रवण बाधितों की सहायता संबंधी उदाहरण:
- दूरदर्शन पर स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर भारत के राष्ट्रपति के अभिभाषण और प्रत्येक वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के अभिभाषण की सांकेतिक भाषा में व्याख्या की जाती है।
- हाल ही में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने निजी सैटेलाइट समाचार टीवी चैनलों को भी 15 अगस्त की दोपहर/शाम में स्वतंत्रता दिवस समारोह के संबोधन को सांकेतिक भाषा में एक लघु कार्यक्रम के माध्यम से प्रसारित करने को कहा है।
दिव्यांगों के लिये संवैधानिक और कानूनी ढाँचा
- अनुच्छेद 14: राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।
- इस संदर्भ में दिव्यांग व्यक्तियों को संविधान की नज़र में समान और समान अधिकार होने चाहिये।
- दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन: भारत, दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है, जो वर्ष 2007 में लागू हुआ था।
- यह कन्वेंशन ‘सुगम्यता’ को एक मानवाधिकार के रूप में मान्यता देता है और हस्ताक्षरकर्त्ताओं के लिये दिव्यांग व्यक्तियों हेतु आवश्यक पहुँच अनिवार्य बनाता है।
- सुगम्य भारत अभियान: सुगम्य भारत अभियान दिव्यांग व्यक्तियों को सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करने और विकास के समान अवसर प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।
- यह अभियान बुनियादी अवसंरचना, सूचना और संचार प्रणालियों में महत्त्वपूर्ण बदलाव करके पहुँच को बढ़ाने का प्रयास करता है।
- दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016: भारत सरकार ने दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 को अधिनियमित किया, जो दिव्यांग व्यक्तियों से संबंधित प्रमुख और व्यापक कानून है।
- यह अधिनियम दिव्यांग व्यक्तियों के लिये सेवाओं के संबंध में केंद्र और राज्य सरकारों के दायित्त्वों को परिभाषित करता है।
- अधिनियम दिव्यांग व्यक्तियों के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को दूर करके एक बाधा मुक्त वातावरण बनाने की भी सिफारिश करता है।