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डेली न्यूज़

  • 11 Oct, 2021
  • 51 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण (MBED) चरण 1

प्रिलिम्स के लिये:

डे-फॉरवर्ड मार्केट, बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण

मेन्स के लिये:

विद्युत क्षेत्र के लिये साइबर सुरक्षा दिशा-निर्देश, एक राष्ट्र, एक ग्रिड, एक आवृत्ति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने उपभोक्ताओं की बिजली खरीद लागत को 5% तक कम करने के लिये बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण (Market Based Economic Despatch- MBED) चरण 1 के कार्यान्वयन के लिये फ्रेमवर्क जारी किया।

  • यह बिजली बाज़ार के संचालन में सुधार और "एक राष्ट्र, एक ग्रिड, एक आवृत्ति, एक मूल्य" ढाँचे की ओर बढ़ने में महत्त्वपूर्ण कदम है। इसका कार्यान्वयन 1 अप्रैल, 2022 से शुरू करने की योजना है।
  • इससे पहले सरकार ने विद्युत क्षेत्र के लिये साइबर सुरक्षा दिशा-निर्देश जारी किये थे।

प्रमुख बिंदु 

  • परिचय:
    • सभी राज्यों की बिजली की मांग को इष्टतम मूल्य पर बिजली आवंटित करने वाले केंद्रीय पूल के माध्यम से पूरा करने का प्रस्ताव है।
      • वर्तमान में विद्युत वितरण कंपनियाँ (डिस्कॉम) राज्यों के भीतर उपलब्ध स्रोतों से बिजली का वितरण  कर रही हैं, जो हमेशा उच्च ऊर्जा लागत के साथ समाप्त होती है।
    • MBED यह सुनिश्चित करेगा कि देश भर में सबसे सस्ते उत्पादन के संसाधनों को समग्र प्रणाली की मांग को पूरा करने के लिये उपयोग किया जाए।
    • इस प्रकार यह व्यवस्था वितरण कंपनियों और बिजली उत्पादकों दोनों के लिये ही एक सफल प्रयास होगा और अंततः इससे बिजली उपभोक्ताओं को महत्त्वपूर्ण वार्षिक बचत भी होगी।
    • MBED का लक्ष्य एक समान मूल्य निर्धारण ढाँचा स्थापित करना है जो अधिक खर्चीले उपकरणों को कम करते हुए सस्ते लागत और सबसे कुशल जनरेटर को प्राथमिकता देता है, जो राष्ट्रीय क्षमता में क्रमबद्ध रूप से सुधार सुनिश्चित करेगा। 
    • यह राष्ट्रीय विद्युत नीति (NEP) 2021 के मसौदे के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य 2023-2024 तक अल्पकालिक बिजली बाज़ारों की पहुँच को दोगुने से अधिक करना है। 
  • एक राष्ट्र, एक ग्रिड, एक आवृत्ति:
    • भारत के पास अपने जटिल इंटरकनेक्टेड पावर ग्रिड के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण अंतर-क्षेत्रीय विद्युत पारेषण क्षमता है जिसके लिये केंद्र, राज्यों और निजी क्षेत्र द्वारा संचालित कोयला, गैस, हाइड्रो, परमाणु व हरित ऊर्जा स्रोतों में ग्रिड ऑपरेटरों एवं बिजली परियोजना जनरेटर के बीच घनिष्ठ समन्वय की आवश्यकता होती है।
    • पिछले दशक में महत्त्वपूर्ण निवेश के साथ भारतीय बिजली प्रणाली ने बिजली क्षेत्र में बड़े अंतर-क्षेत्रीय हस्तांतरण किये हैं और "एक राष्ट्र, एक ग्रिड, एक आवृत्ति (One Nation, One Grid, One Frequency)" के रूप में अपनी स्थिति का आकलन कर अधिकांश बाधाओं को समाप्त कर दिया है।
    • यह राज्य के स्वामित्व वाली पावर सिस्टम ऑपरेशन कार्पोरेशन लिमिटेड (Power System Operation Corporation Limited- POSOCO) है, जो इन जटिल कार्यों का प्रबंधन राष्ट्रीय भार प्रेषण केंद्र (National Load Despatch Centre- NLDC), क्षेत्रीय भार प्रेषण केंद्र (Regional Load Despatch Centres- RLDC) और राज्य भार प्रेषण केंद्र (State Load Despatch Centres- SLDC) के माध्यम से करती है।
      • देश में 33 SLDC, पाँच RLDC (राष्ट्रीय ग्रिड बनाने वाले पाँच क्षेत्रीय ग्रिड के लिये) और एक NLDC है।
    • इस सक्षमता के बावजूद देश में मौजूदा बिजली निर्धारण और प्रेषण तंत्र की स्थिति निष्क्रिय बनी हुई है तथा दिन-प्रतिदिन की प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप देश के उत्पादन संसाधनों का उपानुकूलतम उपयोग होता है।
      • डे-फॉरवर्ड मार्केट (Day-Ahead Market) एक वित्तीय बाज़ार है जहाँ बाज़ार सहभागियों ने अगले दिन के लिये वित्तीय रूप से बाध्यकारी डे-फॉरवर्ड कीमतों पर विद्युत ऊर्जा की खरीद और बिक्री की है।

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

सार्वभौमिक मानव अधिकार, द्वितीय विश्वयुद्ध, अर्थ समिट

मेन्स  के लिये:

स्वच्छ पर्यावरण का अधिकारऔर उसकी प्रासंगिकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) ने सर्वसम्मति से एक स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण को सार्वभौमिक मानव अधिकार के रूप में मान्यता देने के लिये मतदान किया।

  • यदि सभी सदस्यों द्वारा मान्यता प्राप्त होती है तो वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) को अपनाने के 70 से अधिक वर्षों के पश्चात् यह इस तरह का पहला अधिकार होगा।
  • मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) : इसके अंतर्गत अधिकारों और स्वतंत्रता से संबंधित कुल 30 अनुच्छेदों को सम्मिलित किया गया है, जिसमें जीवन, स्वतंत्रता और गोपनीयता जैसे नागरिक और राजनीतिक अधिकार तथा सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • पृष्ठभूमि:
    • सामान्य तौर पर मानव अधिकारों की अवधारणा द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45) के बाद उभरी, लेकिन उन मानवाधिकारों में से स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को किसी भी रूप में कभी भी प्राथमिकता नहीं दी गई थी।
    • स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार 1972 के स्टॉकहोम घोषणा में निहित है, जिसे लोकप्रिय रूप से मानव पर्यावरण का मैग्ना कार्टा कहा जाता है।
      • इसमें पर्यावरण नीति के सिद्धांत और सिफारिशें शामिल थीं।
    • 'केयरिंग फॉर द अर्थ 1991' और 1992 के 'अर्थ समिट' ने भी घोषित किया कि मनुष्य प्रकृति के साथ एक स्वस्थ और उत्पादक जीवन का हकदार है।
  • परिचय:
    • स्वस्थ पर्यावरण का मानव अधिकार नागरिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों के पर्यावरणीय आयामों को एक साथ लाता है तथा प्राकृतिक पर्यावरण के मूल तत्त्वों की रक्षा करता है, जो कि गरिमापूर्ण जीवन को सक्षम बनाते हैं।
    • जीवन के अधिकार’ (अनुच्छेद-21) का उपयोग भारत में विविध प्रकार से किया गया है। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ जीवित रहने का अधिकार, जीवन की गुणवत्ता, गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार और आजीविका का अधिकार शामिल है।
      • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के मुताबिक,  'किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।'
    • इसके अलावा 42वें संविधान संशोधन (1976) के माध्यम से संविधान में दो महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद [अनुच्छेद 48A और 51A (g)] शामिल किये गए थे, जो कि भारतीय संविधान को पर्यावरण संरक्षण का संवैधानिक दर्जा प्रदान करने वाला दुनिया का पहला संविधान बनाते हैं।
      • अनुच्छेद 48A: राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के वनों और वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
      • अनुच्छेद 51A (g): पर्यावरण की रक्षा एवं संरक्षण करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
  • भारत में पर्यावरण संरक्षण कानून:
  • पर्यावरणीय सिद्धांत:
    • अंतर-पीढ़ीगत समानता: इसके मुताबिक, प्रत्येक पीढ़ी के लिये पृथ्वी की महत्ता समान है, इसलिये इसके संसाधनों का न्यायिक और सामान्य लाभ के लिये उचित उपयोग किया जाना चाहिये।
    • ‘प्रदूषणकर्त्ता द्वारा भुगतान’ का सिद्धांत: इस सिद्धांत के अनुसार, प्राकृतिक पर्यावरण को होने वाले नुकसान की कीमत प्रदूषक द्वारा ही वहन की जानी चाहिये।
    • निवारक सिद्धांत: इस सिद्धांत के अनुसार, वैज्ञानिक प्रमाणों के अभाव में भी पर्यावरणीय क्षरण के कारणों का अनुमान लगाने और उन्हें रोकने के उपाय किये जाने चाहिये। किसी भी संभावित जोखिम से जनता की रक्षा करना राज्य का सामाजिक दायित्व है।
    • लोक विश्वास सिद्धांत: इसमें कहा गया है कि जल, वायु, समुद्र और जंगल जैसे संसाधन आम जनता के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं, इसलिये इन्हें निजी स्वामित्व का विषय बनाना अनुचित होगा। यह राज्य का कर्तव्य है कि वह सभी के लाभ के लिये ऐसे संसाधनों की रक्षा करे और इसके किसी भी व्यावसायिक उपयोग की अनुमति न दी जाए।
    • सतत् विकास सिद्धांत: इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य को विकास एवं पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करना चाहिये।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

  • परिचय:
    • यह संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है जो विश्व भर में मानवाधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण को मज़बूती प्रदान करने के लिये उत्तरदायी है।
  • गठन:
    • इस परिषद का गठन वर्ष 2006 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) द्वारा किया गया था। इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
  • सदस्य:
    • इसका गठन 47 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों से मिलकर हुआ है जो संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा चुने जाते हैं।
      • भारत को जनवरी 2019 में तीन वर्ष की अवधि के लिये चुना गया था।
  • प्रक्रिया और तंत्र:
    • सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा: सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (Universal Periodic Review- UPR) यूपीआर सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों में मानवाधिकार स्थितियों का आकलन का कार्य करता है।  
    • संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रक्रिया: ये विशेष प्रतिवेदक, विशेष प्रतिनिधियों, स्वतंत्र विशेषज्ञों और कार्य समूहों से बने होते हैं जो विशिष्ट देशों में विषयगत मुद्दों या मानव अधिकारों की स्थितियों की निगरानी, जाँच करने, सलाह देने और सार्वजनिक रूप से रिपोर्ट करने का कार्य करते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नेपाल और भारत के बीच रेल लिंक

प्रिलिम्स के लिये:

कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड

मेन्स के लिये:

भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता, भारत-नेपाल संबंध

चर्चा में क्यों?

नेपाल और भारत के बीच रेल लिंक का पहला चरण पड़ोसी देश की पहली ब्रॉड गेज यात्री सेवा (जयनगर-बिजलपुरा-बरदीबास रेलवे परियोजना) को फिर से शुरू करने के लिये तैयार किया गया है।

Janakpur-Railway

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि: 
    • नेपाल और भारत के बीच रेल संपर्क 20वीं सदी की शुरुआत से ही लोकप्रिय रहा है।
    • 1937 में अंग्रेज़ों ने नेपाल से भारत के लिये मुख्य रूप से लोगों या वस्तुओं को लाने-ले जाने हेतु एक नैरो गेज लाइन का निर्माण किया था। 
    • हालाँकि समय के साथ यह एक लोकप्रिय यात्री सेवा बन गई, इससे पहले इसे 2014 में ब्रॉड गेज में बदलने के लिये रोक दिया गया था।
  • पुर्नोत्थान परियोजनाएँ:  
    • पहला चरण: बिहार के जयनगर और नेपाल के कुर्था के बीच [हिंदू तीर्थ शहर जनकपुर धाम (नेपाल में)] 34 किलोमीटर की लाइन का विस्तार किया जाएगा।
    • दूसरा चरण: कुर्था से बिजलपुरा तक 17 किमी. लंबी रेलवे लाइन को भी अंतिम रूप दिया जा रहा है।
      • बरदीबास तक के शेष भाग के लिये भूमि इरकॉन (IRCON) इंटरनेशनल लिमिटेड (भारत सरकार का उपक्रम) को सौंपी जा रही है।
    • परियोजना की लागत: सभी चरणों की कुल निर्माण लागत 784 करोड़ रुपए अनुमानित है, यह राशि नेपाल को अनुदान के रूप में भारत द्वारा वहन की जा रही है।
    • प्रबंधन निकाय: कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड को लाइन के संचालन और रखरखाव के लिये अनुबंध मिला है तथा द्विपक्षीय समझौते के अनुसार, यह नेपाल द्वारा प्रदान की गई जनशक्ति को प्रशिक्षित औरउसका विकास करेगा।
  • इलेक्ट्रिक रेल ट्रैक:
    • भारत में काठमांडू को रक्सौल (बिहार) से जोड़ने वाला इलेक्ट्रिक रेल ट्रैक बिछाने हेतु दोनों सरकारों के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
  • परिवहन ट्रेन सेवाएँ:
    • भारत और नेपाल ने भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता (RSA), 2004 हेतु एक विनिमय पत्र (एलओई) पर हस्ताक्षर किये हैं।
    • यह सभी अधिकृत कार्गो ट्रेन ऑपरेटरों को कंटेनर और अन्य माल को नेपाल ले जाने के लिये भारतीय रेलवे नेटवर्क का उपयोग करने की अनुमति देगा (भारत तथा नेपाल या तीसरे देश के बीच भारतीय बंदरगाहों से नेपाल तक)।
  • महत्त्व
    • रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण इस क्षेत्र में अन्य पड़ोसी देशों के प्रभाव को दरकिनार करते हुए रेलवे के माध्यम से नेपाल के साथ भारत के संबंधों को मज़बूत करने की एक बड़ी योजना के लिये इस लाइन को एक छोटी सी कड़ी के रूप में देखा जा रहा है।

अन्य कनेक्टिविटी परियोजना

  • अंतर्देशीय जलमार्ग: भारत व्यापार और पारगमन व्यवस्था के ढाँचे के भीतर कार्गो की आवाजाही हेतु अंतर्देशीय जलमार्ग विकसित करना चाहता है, यह नेपाल को सागर (हिंद महासागर) के साथ सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) को जोड़ने के लिये समुद्र तक अतिरिक्त पहुँच प्रदान करता है।
  • पेट्रोलियम पाइपलाइन: वर्ष 2019 में भारत और नेपाल ने संयुक्त रूप से एक सीमा पार पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन का उद्घाटन किया था।
    • पाइपलाइन भारत में मोतिहारी (बिहार) से पेट्रोलियम उत्पादों को नेपाल के अमलेखगंज तक ले जाती है।
    • यह दक्षिण एशिया की पहली सीमा पार पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

लूसी मिशन : नासा

प्रिलिम्स के लिये:

बृहस्पति ट्रोजन क्षुद्रग्रह, होमिनिन, बृहस्पति ग्रह

मेन्स के लिये:

लूसी मिशन का संक्षिप्त परिचय एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) बृहस्पति ट्रोजन क्षुद्रग्रहों का पता लगाने के लिये पहला 'लूसी' (Lucy) मिशन लॉन्च करने के लिये तत्पर है।

Lucy-Mission

प्रमुख बिंदु

  • 'लूसी' मिशन:
    • अवधि:
      • सौर ऊर्जा द्वारा संचालित इस मिशन में 12 वर्ष से अधिक समय लगने का अनुमान है, जिसके दौरान अंतरिक्षयान 'युवा सौर मंडल' (Young Solar System) के बारे में अधिक-से-अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिये लगभग 6.3 बिलियन किमी. की दूरी तय कर आठ क्षुद्रग्रहों का परिभ्रमण करेगा।
    • नाम और लॉन्च:
      • मिशन का नाम 3.2 मिलियन वर्षीय पूर्वज 'लूसी' के नाम पर रखा गया है, जो होमिनिन की एक प्रजाति (जिसमें मनुष्य और उनके पूर्वज शामिल हैं) से संबंधित थे। अंतरिक्षयान को एटलस वी 401( Atlas V 401) रॉकेट द्वारा लॉन्च किया जाएगा।
    • क्षुद्रग्रह डोनाल्ड जॉनसन:
      • इस अंतरिक्षयान का पहला सामना एक क्षुद्रग्रह के साथ होगा जो मुख्य बेल्ट में स्थित है, यह मंगल और बृहस्पति के बीच पाया जा सकता है। इस क्षुद्रग्रह का नाम 'डोनाल्ड जॉनसन' रखा गया है, जिसने 'लूसी' के जीवाश्म अवशेषों की खोज की थी।
  • महत्त्व:
    • ऐसा माना जाता है कि ट्रोजन क्षुद्रग्रहों का निर्माण उसी सामग्री से हुआ था जिसके कारण लगभग 4 अरब साल पहले ग्रहों और सौरमंडल का निर्माण हुआ था।
    • इसलिये मिशन को विभिन्न क्षुद्रग्रहों की संरचना को समझने हेतु डिज़ाइन किया गया है जो ट्रोजन क्षुद्रग्रहों का एक हिस्सा है, इसका उपयोग सामग्री के द्रव्यमान और घनत्व को निर्धारित करने के लिये एवं ट्रोजन क्षुद्रग्रहों की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों एवं रिंग्स को देखने तथा उनका अध्ययन करने के लिये किया जाएगा।
    • उनके अध्ययन से वैज्ञानिकों को इसकी उत्पत्ति और विकास को समझने में मदद मिलेगी, साथ ही यह ऐसा क्यों दिखाई देता है, इस बात का पता लगाएगा।

क्षुद्रग्रह 

  • परिचय:
    • क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा करने वाले चट्टानी पिंड हैं जो ग्रहों की तुलना में काफी छोटे होते हैं। इन्हें लघु ग्रह (Minor Planets) भी कहा जाता है।
  • श्रेणियाँ:
    • क्षुद्रग्रहों की मुख्य बेल्ट:
      • पहली श्रेणी में वे क्षुद्रग्रह आते हैं जो मंगल तथा बृहस्पति के बीच क्षुद्रग्रह बेल्ट/पट्टी में पाए जाते हैं। अनुमानतः इस बेल्ट में 1.1-1.9 मिलियन तक क्षुद्रग्रह मौजूद हैं। 
    • ट्रोजन्स
      • दूसरी श्रेणी के तहत ट्रोजन्स को शामिल किया गया है। ट्रोजन्स ऐसे क्षुद्रग्रह हैं जो एक बड़े ग्रह के साथ कक्षा (Orbit) साझा करते हैं। 
      • नासा ने बृहस्पति, नेपच्यून और मार्स ग्रहों के ट्रोजन क्षुद्रग्रहों की जानकारी दी है। वर्ष 2011 में नासा ने पृथ्वी के ट्रोजन क्षुद्रग्रह की भी सूचना दी थी।
      • बृहस्पति के क्षुद्रग्रहों को “झुंड” के रूप में संदर्भित किया जा सकता है जो सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा के साथ बृहस्पति ग्रह का नेतृत्व और अनुसरण करते हैं। 
        • ‘लूसी’ अगस्त 2027 तक बृहस्पति की कक्षा में पहुँचने से पूर्व इन क्षुद्रग्रहों के समूह में पहुँच जाएगा।
      • इन क्षुद्रग्रहों को प्रारंभिक सौरमंडल के अवशेष माना जाता है।
    • नियर-अर्थ क्षुद्रग्रह:
      • इसमें नियर-अर्थ क्षुद्रग्रह (NEA) शामिल होते हैं, जिनकी कक्षा पृथ्वी के पास से गुज़रती हैं। वे क्षुद्रग्रह जो पृथ्वी की कक्षा को पार करते हैं उन्हें अर्थ -क्रॉसर्स कहा जाता है।
      • अब तक कुल 10,000 से अधिक नियर-अर्थ क्षुद्रग्रहों के बारे में सूचना प्राप्त हुई है, जिनमें से 1,400 से अधिक को ‘संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह’ (PHA) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

बृहस्पति

  • सूर्य से पाँचवीं पंक्ति में बृहस्पति, सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है जो अन्य सभी ग्रहों के मुकाबले दोगुने से अधिक बड़ा है।
  • बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून को जोवियन ग्रह या गैसीय विशालकाय ग्रह कहा जाता है। इनमें वायुमंडल की मोटी परत पाई जाती है जिसमें ज़्यादातर हीलियम और हाइड्रोजन गैस होती है।
  • बृहस्पति लगभग हर 10 घंटे में एक बार घूर्णन (एक जोवियन दिवस) करता है, परंतु सूर्य की परिक्रमा (एक जोवियन वर्ष) करने में इसे लगभग 12 वर्ष लगते हैं। बृहस्पति के 75 से अधिक चंद्रमा हैं।
  • बृहस्पति के प्रमुख चंद्रमाओं को आयो, यूरोपा, गेनीमेड और कैलिस्टो नाम दिया गया है।
  • वर्ष 1979 में वॉयजर मिशन ने बृहस्पति की धुँधली वलय प्रणाली की खोज की। नौ अंतरिक्षयानों को बृहस्पति पर भेजा जा चुका है। सबसे बाद में जूनो वर्ष 2016 में बृहस्पति पर पहुँचा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण (QES)

प्रिलिम्स के लिये 

त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, राष्ट्रीय रोज़गार नीति

मेन्स के लिये 

भारत में रोज़गार की स्थिति और सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

‘श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय’ के तहत ‘श्रम ब्यूरो’ ने वर्ष 2021 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) के लिये ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES) के परिणाम जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण:
    • परिचय:
      • ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES) ‘ऑल-इंडिया क्वार्टरली एस्टाब्लिश्मेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे’ (AQEES) का हिस्सा है।
      • इसमें कुल 9 क्षेत्रों के संगठित खंड में 10 या अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठान शामिल हैं।
      • ये 9 क्षेत्र हैं- विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास एवं रेस्तरां, आईटी/बीपीओ और वित्तीय सेवा गतिविधियाँ।
    • उद्देश्य: सरकार को ‘रोज़गार के क्षेत्र में एक बेहतर राष्ट्रीय नीति’ तैयार करने में सक्षम बनाना।
      • भारत ने वर्ष 1998 में ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन’ (ILO) के ‘एम्प्लॉयमेंट पाॅलिसी कन्वेंशन (1964) की पुष्टि की, जिसके तहत अनुसमर्थन करने वाले देशों को ‘पूर्ण, उत्पादक और स्वतंत्र रूप से चुने गए रोज़गार को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन की गई एक सक्रिय नीति’ को लागू करने की आवश्यकता है। ज्ञात हो कि भारत के पास अभी तक कोई ‘राष्ट्रीय रोज़गार नीति’ (NEP) नहीं है।
    • QES vs PLFS:
      • जहाँ एक ओर त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण (QES) मांग पक्ष की तस्वीर प्रदान करता है, वहीं ‘राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण’ या ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (PLFS) श्रम बाज़ार की आपूर्ति पक्ष की तस्वीर प्रस्तुत करता है।
        • ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ का संचालन ‘सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय’ के तहत ‘राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन’ (NSO) द्वारा किया जाता है।
    • QES डेटा से संबंधित समस्याएँ: ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES) में कम-से-कम 10 श्रमिकों वाले प्रतिष्ठानों को ही  शामिल किया गया है, इस प्रकार यह केवल औपचारिक अर्थव्यवस्था संबंधित डेटा ही प्रदान करता है।
      • यह देखते हुए कि अनौपचारिक श्रमिक (बिना लिखित अनुबंध के) भारत में श्रम शक्ति का लगभग 90% हिस्सा हैं, ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ इस प्रकार श्रम बाज़ार की केवल एक आंशिक तस्वीर प्रदान करता है।
  • QES 2021 डेटा की मुख्य विशेषताएँ:
    • वर्ष 2013-14 (छठी आर्थिक जनगणना) के आधार पर अप्रैल-जून 2021 के आँकड़े चरम कोविड-19 महीनों के दौरान नौ क्षेत्रों में रोज़गार में 29% की वृद्धि दर्शाते हैं।
    • इस दौरान महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी में गिरावट आई है। छठी आर्थिक जनगणना (2013) के दौरान यह 31% थी, जो कि ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (2021) के अनुसार वर्तमान में 29% है।
    • 9 क्षेत्रों में से 7 क्षेत्रों में रोज़गार में वृद्धि देखी गई, जबकि केवल 2 क्षेत्रों (व्यापार और आवास एवं रेस्तरां) में रोज़गार के आँकड़ों में गिरावट देखी गई।
      • 2013-2021 की अवधि के दौरान आईटी/बीपीओ क्षेत्र में 152% की रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई।
    • वर्ष 1998-2021 के बीच रोज़गार के आँकड़ों में पर्याप्त वृद्धि हुई है। वर्ष 1998 (चौथे आर्थिक सर्वेक्षण) के बाद से रोज़गार में उच्चतम वृद्धि दर (38%) वर्ष 2005-2013 की अवधि में दर्ज की गई थी।
      • वर्ष 1998-2021 के बीच रोज़गार की साधारण वृद्धि दर में उतार-चढ़ाव रहा है।
  • ऑल-इंडिया क्वार्टरली एस्टाब्लिश्मेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे
    • श्रम ब्यूरो द्वारा ‘ऑल-इंडिया क्वार्टरली एस्टाब्लिश्मेंट-बेस्ड एम्प्लॉयमेंट सर्वे’ को नौ चयनित क्षेत्रों के संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में रोज़गार एवं प्रतिष्ठानों के संबंध में तिमाही आधार पर अद्यतन करने के लिये आयोजित किया जाता है।
      • ये क्षेत्र गैर-कृषि प्रतिष्ठानों में कुल रोज़गार में वृद्धि हेतु उत्तरदायी हैं।
    • AQEES के तहत मुख्यतः दो घटक हैं:
      • ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ (QES) और
      • ‘एरिया फ्रेम एस्टाब्लिश्मेंट सर्वे’ (AFES)
    • ‘त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण’ 10 या अधिक श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों का सर्वेक्षण प्रदान करता है।
    • वहीं AFES नमूना सर्वेक्षण के माध्यम से असंगठित क्षेत्र (10 से कम श्रमिकों के साथ) को कवर करता है।

आर्थिक जनगणना

  • आर्थिक जनगणना भारत की भौगोलिक सीमा के भीतर स्थित सभी प्रतिष्ठानों की पूर्ण गणना है।
  • आर्थिक जनगणना देश में सभी आर्थिक प्रतिष्ठानों की आर्थिक गतिविधियों के भौगोलिक विस्तार/क्लस्टरों, स्वामित्व पद्धति, जुड़े हुए व्यक्तियों इत्यादि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी भी उपलब्ध कराती है।
  • यह हर पाँच वर्ष में आयोजित की जाती है और सरकार एवं अन्य संगठनों हेतु नीतियाँ तथा योजना बनाने के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  • अब तक केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने 6 आर्थिक जनगणनाएँ (Economic censuses) संचालित की हैं।
    • पहली आर्थिक जनगणना वर्ष 1977 में
    • दूसरी आर्थिक जनगणना वर्ष 1980 में
    • तीसरी आर्थिक जनगणना वर्ष 1990 में
    • चौथी आर्थिक जनगणना वर्ष 1998 में
    • पाँचवीं आर्थिक जनगणना वर्ष 2005 में
    • छठी आर्थिक जनगणना वर्ष 2013 में
  • 7वीं आर्थिक जनगणना, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा वर्ष 2019 से आयोजित की जा रही है।
    • यह कार्य इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV), कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) के सहयोग से MoSPI द्वारा किया जा रहा है।
    • पहली बार आँकड़ों के संग्रहण, सत्यापन, रिपोर्ट सृजन और प्रसार के लिये एक  आईटी-आधारित डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जा रहा है।
    • 7वीं आर्थिक जनगणना के तहत गैर-फार्म कृषि एवं गैर-कृषि क्षेत्र में वस्तुओं/सेवाओं (स्वयं के उपभोग के एकमात्र प्रयोजन के अतिरिक्त) के उत्पादन या वितरण से जुड़े घरेलू उद्यमों सहित सभी प्रतिष्ठानों को शामिल किया जाएगा।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2021

प्रिलिम्स के लिये:

गरीबी, बहुआयामी गरीबी सूचकांक, UNDP, OPHI

मेन्स के लिये:

वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (OPHI) द्वारा वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2021 जारी किया गया था।

  • सूचकांक 109 देशों और 5.9 अरब लोगों के डेटा का आकलन करता है।

प्रमुख बिंदु

  • वैश्विक डेटा:
    • 1.3 अरब लोग बहुआयामी गरीब हैं।
    • इनमें से लगभग आधे (644 मिलियन) 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे हैं।
    • लगभग 85% उप-सहारा अफ्रीका (556 मिलियन) या दक्षिण एशिया (532 मिलियन) में रहते हैं।
    • 67% से अधिक मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
  • गरीबी में आवधिक कमी:
    • 80 देशों और पाँच अरब लोगों (जिनके आवधिक और डेटा दोनों उपलब्ध है) में से कम-से-कम एक अवधि में 70 देशों ने MPI को कम कर दिया, जिसमें सिएरा लियोन (2013-2017) में सबसे तेज़ी से बदलाव आए, इसके बाद टोगो (2013/2014-2017) का स्थान है।
  • गरीबी में पूर्ण कमी:
    • कुछ देशों ने अपने सबसे गरीब क्षेत्रों में सबसे तेज़ी से पूर्ण कटौती देखी, जिसने किसी को भी पीछे नहीं छोड़ने की उनकी प्रतिज्ञा को पूरा करने में मदद की।
      • इन क्षेत्रों में लाइबेरिया में उत्तर मध्य (2013-2019/2020) और नेपाल में प्रांत 2 (2016-2019) शामिल हैं।
  •  जातीय और नस्लीय समूहों में गरीबी:
    • कुछ मामलों में जातीय और नस्लीय समूहों में बहुआयामी गरीबी में असमानताएँ भौगोलिक उपराष्ट्रीय क्षेत्रों में असमानताओं से अधिक है।
    • एक देश के भीतर विभिन्न जातीय समूहों के बीच बहुआयामी गरीबी बहुत भिन्न हो सकती है। 
    • इसलिये बहुआयामी गरीबी को कम करने के लिये विभिन्न नीतिगत कार्रवाइयों की आवश्यकता है।
  • शिक्षा:
    • दुनिया भर में लगभग दो-तिहाई बहुआयामी गरीब (836 मिलियन) ऐसे घरों में रहते हैं जहाँ किसी भी महिला या लड़की ने कम-से-कम छह साल की स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की है।
      • 227 मिलियन गरीब भारत में रहते हैं।
    • सभी बहुआयामी गरीब लोगों में से ⅙ (215 मिलियन) ऐसे घरों में रहते हैं जिनमें कम-से-कम एक लड़के या पुरुष ने स्कूली शिक्षा के छह या अधिक वर्ष पूरे कर लिये हैं लेकिन किसी लड़की या महिला ने नहीं।
    • रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि बहुआयामी गरीबी में रहने वाली महिलाओं और लड़कियों को अंतरंग साथी से हिंसा का अधिक खतरा होता है।
  • जीवन स्तर:
    • 1 अरब लोग ठोस अपशिष्ट आधारित भोजन पकाने के ईंधन के संपर्क में हैं, अन्य लोग (अरब) अपर्याप्त स्वच्छता के साथ रहते हैं, साथ ही  कई (अरबों) के पास निम्न कोटि का आवास है।
    • 788 मिलियन लोग कम-से-कम एक कुपोषित व्यक्ति वाले घर में रहते हैं।
    • 30 मिनट के राउंड ट्रिप वॉक के भीतर 568 मिलियन के पास बेहतर पेयजल की कमी है।
  • कोविड का प्रभाव:
    • कोविड-19 महामारी ने दुनिया भर में विकास की प्रगति को नष्ट कर दिया है और हम अभी भी इसके पूर्ण प्रभावों को समझने के लिये जूझ रहे हैं।
    • इसने दुनिया भर में सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों, शिक्षा और श्रमिकों की भेद्यता में कमज़ोरी को उजागर किया है।
      • बहुआयामी गरीबी के उच्च स्तर वाले देशों में ये कमज़ोरियाँ सबसे अधिक हैं।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • चूँकि भारत में जातियों और जनजातियों के बीच सामाजिक स्तरीकरण की एक अधिक प्रचलित रेखा है, यह सूचकांक जातियों और जनजातियों तथा उन व्यक्तियों के बीच बहुआयामी गरीबी की घटना एवं तीव्रता को प्रस्तुत करता है जो किसी जाति या जनजाति के सदस्य नहीं हैं।
    • भारत में छह बहुआयामी गरीब लोगों में से पाँच निचली जनजातियों या जातियों से हैं।
    • भारत में लगभग 12% जनसंख्या महिला प्रधान परिवारों में रहती है।

बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI)

  • इसे ‘ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनीशिएटिव (OPHI) और ‘संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (UNDP) द्वारा वर्ष 2010 में विकसित किया गया था।
  • MPI इस विचार पर आधारित है कि गरीबी एक आयाम नहीं है (यह न केवल आय पर निर्भर करती है और एक व्यक्ति में शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जैसी कई बुनियादी ज़रूरतों की कमी हो सकती है), बल्कि यह बहुआयामी है।
  • यह सूचकांक वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक पर आधारित है, जो प्रत्येक वर्ष व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से गरीब लोगों के जीवन की जटिलताओं की माप करता है।
  • MPI तीन आयामों और दस संकेतकों का उपयोग करता है जो इस प्रकार हैं:
    • शिक्षा: स्कूली शिक्षा और बाल नामांकन के वर्ष (प्रत्येक का 1/6 भार, कुल 2/6)
    • स्वास्थ्य: बाल मृत्यु दर और पोषण (प्रत्येक का 1/6 भार, कुल 2/6)
    • जीवन स्तर: बिजली, फर्श, पीने का पानी, स्वच्छता, खाना पकाने का ईंधन और संपत्ति (प्रत्येक का 1/18 भार, कुल 2/6)

10-Indicators

  • यह बताता है कि लोग तीन प्रमुख आयामों में किस प्रकार पीछे रह जाते हैं: स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर, जिसमें 10 संकेतक शामिल हैं। जो लोग इन भारित संकेतकों में से कम-से-कम एक-तिहाई (अर्थात् 33% या अधिक) में अभाव का अनुभव करते हैं, वे बहुआयामी रूप से गरीब की श्रेणी में आते हैं।
  • MPI इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पारंपरिक पद्धति की तुलना में गरीबी को विभिन्न आयामों से पहचानता है जो केवल आय या मौद्रिक शर्तों से गरीबी को मापता है।

स्रोत: यूएनडीपी


सामाजिक न्याय

शिक्षा में डिजिटल डिवाइड

प्रिलिम्स के लिये 

अनुच्छेद-21A, शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009, राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत

मेन्स के लिये 

शिक्षा में डिजिटल डिवाइड के परिणाम और सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने चेतावनी दी है कि ऑनलाइन कक्षाओं के कारण होने वाला ‘डिजिटल डिवाइड’ प्रत्येक गरीब बच्चे के स्कूल में पढ़ने के मौलिक अधिकार का उल्लंघन कर रहा है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने अफसोस जताया कि छोटे बच्चों का ‘शिक्षा का अधिकार’ अब इस बात पर निर्भर करता है कि कौन ऑनलाइन कक्षाओं के लिये ‘गैजेट्स’ खरीद सकता है और कौन नहीं।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान जैसे-जैसे स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा की ओर रुख किया है, डिजिटल डिवाइड के गंभीर परिणाम सामने आए हैं।

प्रमुख बिंदु

  • डिजिटल डिवाइड:
    • ‘डिजिटल डिवाइड’ उन क्षेत्रों अथवा जनसांख्यिकी के बीच के अंतर को संदर्भित करता है, जिनके पास आधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तक पहुँच है और जिनके पास इन आधुनिक प्रोद्योगिकियों तक पहुँच नहीं है।
      • यह मुख्यतः आधुनिक सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तक पहुँच रखने वाले और पहुँच न रखने वाले व्यक्तियों के बीच मौजूद अंतर है।
    • ‘डिजिटल डिवाइड’ की स्थिति विकसित एवं विकासशील देशों, शहरी एवं ग्रामीण आबादी, युवा एवं शिक्षित और वृद्ध एवं कम शिक्षित व्यक्तियों तथा पुरुषों एवं महिलाओं के बीच मौजूद होती है।
    • भारत में शहरी-ग्रामीण विभाजन ‘डिजिटल डिवाइड’ का सबसे बड़ा उदाहरण है।
  • पूर्व-महामारी विभाजन:
    • महामारी से पूर्व शहरी क्षेत्र और अमीर परिवारों के बच्चे आधुनिक तकनीक एवं अन्य ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म की मदद से विज्ञान की अवधारणाओं को आसानी से सीख रहे थे, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों एवं गरीब परिवारों में शौचालय, उचित कक्षाओं व पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी थी।
    • ग्रामीण भारत में बालिकाओं की स्थिति लड़कों से बदतर थी, यह देखा गया कि प्रायः मासिक धर्म शुरू होते ही कई लड़कियाँ स्कूलों से बाहर हो रही थीं, क्योंकि स्कूलों में शौचालय और प्राथमिक देखभाल जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी थी।
    • कुछ क्षेत्रों में छात्रों को बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिये 10-12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था।
  • महामारी के बाद ‘डिजिटल डिवाइड’:
    • शहरी क्षेत्रों और समृद्ध परिवारों में छात्र एवं शिक्षक डिजिटल शिक्षा से परिचित हैं और तुलनात्मक रूप से उच्च आय के कारण परिवार शिक्षा के लिये डिजिटल उपकरणों को आसानी से खरीद सकते हैं तथा साथ ही विभिन्न ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म का खर्च उठा सकते हैं।
    • ग्रामीण क्षेत्रों और गरीब परिवारों में यह स्थिति लगभग विपरीत है। अधिकांश मामलों में परिवार में केवल एक ही सदस्य के पास स्मार्टफोन होता है, इस प्रकार छात्रों को ऑनलाइन लेक्चर में हिस्सा लेने में बहुत मुश्किलें आ रही हैं। जो लोग स्मार्टफोन खरीद सकते हैं, उन्हें नेटवर्क की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
    • कुछ मामलों में शिक्षक भी ऑनलाइन शिक्षा तकनीक से परिचित नहीं हैं।
  • परिणाम
    • वंचितों पर सर्वाधिक दबदबा:
      • ‘आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों’ [EWS]/वंचित समूहों [DG] से संबंधित बच्चों को अपनी शिक्षा पूरी नहीं करने का परिणाम भुगतना पड़ रहा है, साथ ही इस दौरान इंटरनेट और कंप्यूटर तक पहुँच की कमी के कारण कुछ बच्चों को पढ़ाई भी छोड़नी पड़ी है।
      • वे बच्चे बाल श्रम अथवा बाल तस्करी के प्रति भी सुभेद्य हो गए हैं।
    • अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा:
      • गरीब बच्चे प्रायः ऑनलाइन मौजूद सूचनाओं से वंचित रह जाते हैं और इस प्रकार वे हमेशा के लिये पिछड़ जाते हैं, जिसका प्रभाव उनके शैक्षिक प्रदर्शन पर पड़ता है।
      • इस प्रकार इंटरनेट का उपयोग करने में सक्षम छात्र और कम विशेषाधिकार प्राप्त छात्रों के बीच अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिलता है।
    • सीखने की क्षमता में असमानता:
      • निम्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों के लोग प्रायः वंचित होते हैं और पाठ्यक्रम को पूरा करने के लिये उन्हें लंबे समय तक बोझिल अध्ययन की स्थिति से गुज़रना पड़ता है।
      • जबकि अमीर परिवारों से संबंधित छात्र आसानी से स्कूली शिक्षा सामग्री को ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं।
    • गरीबों के बीच उत्पादकता में कमी:
      • अधिकांश अविकसित देशों या ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित अनुसंधान क्षमताओं और अपर्याप्त प्रशिक्षण के कारण आधे-अधूरे स्नातक पैदा होते हैं, क्योंकि प्रशिक्षण उपकरणों की कमी के साथ-साथ इन क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी भी सीमित है।
  • शिक्षा के अधिकार हेतु संवैधानिक प्रावधान:
    • मूलतः भारतीय संविधान के ‘भाग-IV’ [‘राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत’ के तहत अनुच्छेद-45 और अनुच्छेद 39-(f)] में राज्य द्वारा वित्तपोषित शिक्षा के साथ-साथ समान एवं सुलभ शिक्षा का प्रावधान किया गया है।
    • वर्ष 2002 में 86वें संविधान संशोधन ने ‘शिक्षा के अधिकार’ को संविधान के भाग-III में मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया था।
  • संबंधित पहलें:

आगे की राह

  • यद्यपि स्कूल अब धीरे-धीरे महामारी के घटते वक्र के कारण फिर से खुल रहे हैं, किंतु अभी भी ‘बच्चों के लिये ऑनलाइन सुविधाओं तक पहुँच सुनिश्चित करने के साथ-साथ उन्हें पर्याप्त कंप्यूटर-आधारित उपकरण प्रदान करने की आवश्यकता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है’।
  • कम सुविधा प्राप्त वाले उन छात्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, जिनके पास ई-लर्निंग तक पहुँच नहीं है।
  • प्रत्येक बच्चे के लिये मौलिक अधिकार के रूप में अच्छी गुणवत्ता वाली समान शिक्षा सुनिश्चित करने हेतु भी प्रयास किया जाना आवश्यक है।
  • सरकार को राज्य एवं केंद्र के सभी स्तरों पर समाधान खोजने का प्रयास करना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी सामाजिक स्तर के बच्चों को पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हों और संसाधनों की कमी से प्रभावित लोग शिक्षा तक पहुँच से वंचित न रह जाएँ।

स्रोत: द हिंदू


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