अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता
- 10 Jul 2021
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प्रिलिम्स के लिये:भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता (RSA), 2004 मेन्स के लिये:भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता (RSA), 2004 का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारत और नेपाल ने भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता (RSA), 2004 हेतु एक विनिमय पत्र (एलओई) पर हस्ताक्षर किये हैं।
- यह सभी अधिकृत कार्गो ट्रेन ऑपरेटरों को कंटेनर और अन्य माल को नेपाल ले जाने के लिये भारतीय रेलवे नेटवर्क का उपयोग करने की अनुमति देगा (भारत तथा नेपाल या तीसरे देश के बीच भारतीय बंदरगाहों से नेपाल तक)।
- अधिकृत कार्गो ट्रेन ऑपरेटरों में सार्वजनिक और निजी कंटेनर ट्रेन ऑपरेटर, ऑटोमोबाइल फ्रेट ट्रेन ऑपरेटर, विशेष माल ट्रेन ऑपरेटर या भारतीय रेलवे द्वारा अधिकृत कोई अन्य ऑपरेटर शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु:
रेल सेवा समझौता, 2004:
- रेल सेवा समझौता, 2004 को दोनों देशों के बीच रक्सौल (भारत) के रास्ते बीरगंज (नेपाल) से मालगाड़ी सेवाओं की शुरुआत के लिये रेल मंत्रालय, भारत सरकार और वाणिज्य मंत्रालय तथा नेपाल सरकार के बीच निष्पादित किया गया था।
- यह समझौता भारत और नेपाल के बीच रेल द्वारा आवाजाही का मार्गदर्शन करता है।
- समझौते की समीक्षा हर पाँच वर्ष में की जाएगी और इसे आपसी सहमति से अनुबंध करने वाले पक्षों द्वारा संशोधित (एक्सचेंज के पत्रों के माध्यम से) किया जा सकता है।
- अतीत में तीन अवसरों पर LoE के माध्यम से RSA में संशोधन किया गया है।
- ऐसा पहला संशोधन वर्ष 2004 में किया गया था।
- दूसरा एलओई वर्ष 2008 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कार्गो की शुरूआत के समय हस्ताक्षरित किया गया था, जिसके लिये नई सीमा शुल्क प्रक्रियाओं की शुरूआत की आवश्यकता थी।
- तीसरे एलओई पर 2016 में हस्ताक्षर किये गए थे, जो कोलकाता/हल्दिया बंदरगाह के माध्यम से रेल परिवहन के मौजूदा प्रावधान के अलावा विशाखापत्तनम बंदरगाह तक/से रेल परिवहन यातायात को सक्षम बनाता है।
नवीनतम समझौते के लाभ:
- बाज़ार की ताकतों को संचालित करने की अनुमति: यह उदारीकरण नेपाल के रेल खंड में बाज़ार की ताकतों (जैसे उपभोक्ताओं और खरीदारों) को आने की अनुमति देगा और इससे दक्षता और लागत-प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि होने की संभावना है, अंततः नेपाल के उपभोक्ताओं को इससे लाभ होगा।
- परिवहन लागत कम होगी: उदारीकरण विशेष रूप से ऑटोमोबाइल और कुछ अन्य उत्पादों के लिये परिवहन लागत को कम करेगा जिनकी ढुलाई विशेष वैगनों द्वारा होती है तथा यह दोनों देशों के बीच रेल कार्गो गतिविधियों को बढ़ावा देगा।
- क्षेत्रीय संपर्क में वृद्धि: नेपाल रेलवे कंपनी के स्वामित्व वाले वैगनों को भी IR मानकों और प्रक्रियाओं के अनुसार भारतीय रेलवे नेटवर्क पर नेपाल जाने वाले माल (कोलकाता/हल्दिया से विराटनगर/बीरगंज मार्गों पर आने वाली और बाहर जाने वाली) को ले जाने के लिये अधिकृत किया जाएगा।
- इस LoE पर हस्ताक्षर "नेबरहुड फर्स्ट" नीति के तहत क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के भारत के प्रयासों में एक और मील का पत्थर है।
अन्य कनेक्टिविटी परियोजना:
- नेपाल तीन तरफ से भारत से घिरा हुआ है और एक तरफ तिब्बत की ओर खुला है जहाँ बहुत सीमित वाहनों की पहुँच है।
- भारत-नेपाल ने लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न संपर्क कार्यक्रम शुरू किये हैं।
- भारत में काठमांडू को रक्सौल से जोड़ने वाला इलेक्ट्रिक रेल ट्रैक बिछाने हेतु दोनों सरकारों के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- भारत व्यापार और पारगमन व्यवस्था के ढाँचे के भीतर कार्गो की आवाजाही हेतु अंतर्देशीय जलमार्ग विकसित करना चाहता है, यह नेपाल को सागर (हिंद महासागर) के साथ सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) को जोड़ने के लिये समुद्र तक अतिरिक्त पहुँच प्रदान करता है।
- वर्ष 2019 में भारत और नेपाल ने संयुक्त रूप से एक सीमा पार पेट्रोलियम पाइपलाइन का उद्घाटन किया है।
- यह पाइपलाइन भारत के मोतिहारी से पेट्रोलियम उत्पादों को नेपाल के अमलेखगंज तक ले जाती है।
- यह दक्षिण एशिया की पहली सीमा पार पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन है।
नेबरहुड फर्स्ट नीति (Neighbourhood first policy)
- यह भारत की विदेश नीति का हिस्सा है जो सक्रिय रूप से भारत के सीमावर्ती पड़ोसियों के साथ संबंधों को सुधारने पर केंद्रित है जिसे मीडिया में नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी कहा जा रहा है।
- पीएम नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशियाई देशों के सभी राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों को आमंत्रित करके इसकी अच्छी शुरुआत की गई थी और बाद में उन सभी के साथ व्यक्तिगत रूप से द्विपक्षीय वार्ता की गई, जिसे मिनी सार्क शिखर सम्मेलन करार दिया गया।
- वर्ष 2019 में दूसरे शपथ ग्रहण समारोह में भारत ने बिम्सटेक देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया था।
भारत-नेपाल संबंध
- पड़ोसी: नेपाल, भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है और सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों के कारण वह हमारी विदेश नीति में भी विशेष महत्त्व रखता है।
- वर्ष 1950 की ‘भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि’ दोनों देशों के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार है।
- सांस्कृतिक संबंध: भारत और नेपाल हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म के संदर्भ में समान संबंध साझा करते हैं, उल्लेखनीय है कि बुद्ध का जन्मस्थान लुम्बिनी नेपाल में है और उनका निर्वाण स्थान कुशीनगर भारत में स्थित है।
- खुली सीमाएँ : दोनों देश न सिर्फ एक खुली सीमा और लोगों की निर्बाध आवाजाही को साझा करते हैं, बल्कि उनके बीच विवाह और पारिवारिक संबंधों जैसे घनिष्ठ संबंध भी हैं, जिसे 'रोटी-बेटी के रिश्ते' के रूप में जाना जाता है।
- बहुपक्षीय साझेदारी: भारत और नेपाल कई बहुपक्षीय मंचों को साझा करते हैं, जैसे- BBIN (बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल), बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation), गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (The South Asian Association for Regional Cooperation-SAARC) आदि।
मुद्दे:
- वर्ष 2017 में नेपाल ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर हस्ताक्षर किये, जिसने देश में राजमार्ग, हवाई अड्डे तथा अन्य बुनियादी ढाँचे के निर्माण की मांग की।
- BRI को भारत ने खारिज कर दिया था तथा नेपाल के इस कदम को चीन के प्रति झुकाव के तौर पर देखा जा रहा था।
- वर्तमान में भारत-नेपाल और चीन के बीच कालापानी (Kalapani), लिंपियाधुरा (Limpiyadhura), लिपुलेख (Lipulekh), ट्राइजंक्शन और सुस्ता क्षेत्र (पश्चिम चंपारण ज़िला, बिहार) को लेकर भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद है।