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रोज़गार सृजन की चुनौतियाँ एवं आगे की राह

  • 14 Oct 2017
  • 8 min read

संदर्भ

आज भारत में कम से कम तीन जनसांख्यिकीय समूहों को फौरन रोज़गार की ज़रूरत है। ये समूह हैं: बेहतर शिक्षित युवाओं की बढ़ती संख्या वाला समूह, अशिक्षित कृषि मज़दूरों का समूह जो कृषिगत समस्यायों का समाधान चाहता है और युवा महिलाओं का वह समूह जो आज पहले से कहीं बेहतर शिक्षित है।

भारत वास्तव में दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में एक है, लेकिन निवेश, उद्योग क्षमता, कृषि विकास आदि की चिंताजनक स्थिति के कारण यह रोज़गार सृजन के मोर्चे पर काफी कमज़ोर स्थिति में है। इस लेख में हम निवेश, क्रेडिट निर्माण आदि कमज़ोर क्यों हैं? रोज़गार सृजन हेतु क्या आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये? जैसे प्रश्नों पर विचार करेंगे।

रोज़गार में कमी के कारण

  • बड़ी संख्या में उपलब्ध रोज़गारों का ख़त्म हो जाना और नई नौकरियों का सृजन नहीं होना, दरअसल कमज़ोर आर्थिक विकास के कारण नहीं, बल्कि आर्थिक विकास के बिगड़े हुए पैटर्न के कारण है।
  • एलपीजी सुधारों के बाद से विनिर्माण क्षेत्र नहीं बल्कि वह सेवा क्षेत्र है जो बाज़ार का प्रतिनिधित्व कर रहा है। विनिर्मित वस्तुओं को उपभोक्ता तक पहुँचाना सेवा क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। ऐसे में विनिर्माण को प्रोत्साहन दिये बिना सेवा क्षेत्र में बेहतरी की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
  • वर्ष 1991 में जब आर्थिक सुधारों की पहल आरंभ हुई तो भारत के पास कोई भी राष्ट्रीय विनिर्माण नीति नहीं थी और जब 2011 में एक नीति बनाई भी गई तो उसे लागू नहीं किया गया। 12वीं पंचवर्षीय योजना में राष्ट्रीय विनिर्माण नीति का उल्लेख तो था लेकिन तब तक यूपीए सरकार की तमाम नीतियों को लकवा मार गया था।
  • अत्यधिक आयात के कारण भारतीय उत्पादन कमज़ोर हुआ है। एल्युमीनियम, स्टील, केमिकल्स, कैपिटल गुड्स और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में घरेलू निर्माताओं को पिछले 12-15 वर्षों के दौरान उच्च टैरिफ दरों का सामना करना पड़ा है। यही कारण है कि विनिर्माण क्षेत्र गति हासिल नहीं कर पाया।

आगे की राह

  • रोज़गार सृजन के लिये पहले विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना होगा और इसके लिये ज़रूरत है मज़बूत राष्ट्रीय विनिर्माण नीति की। विदित हो कि औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (The Department of Industrial Policy and Promotion-DIPP) द्वारा एक राष्ट्रीय विनिर्माण नीति बनाई जा रही है।
  • बीते तीन साल में सरकार ने मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया व स्किल इंडिया जैसी अनेक पहल की हैं और विदेशी निवेश नीति को बहुत उदार बनाया है। ऐसे में राष्ट्रीय विनिर्माण नीति में उन बातों की शामिल करना होगा जिससे कि व्यापार नीति और विनिर्माण नीति में सामंजस्य बना रहे।
  • रोज़गार सृजन के लिये श्रम आधारित विनिर्माण क्षेत्र के लिये विशेष पैकेज देना होगा। भारत में कई विनिर्माण क्षेत्र हैं, जहाँ मुख्य रूप से श्रम शक्ति के ज़रिये उत्पादन किया जाता है, जैसे- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग , चमड़ा उद्योग, फर्नीचर निर्माण उद्योग, वस्त्र एवं परिधान उद्योग आदि। ज्ञात हो कि परिधान एवं वस्त्र क्षेत्र को लगभग एक साल पहले भारत सरकार से पैकेज प्राप्त हुआ था, जबकि अन्य श्रम बाहुल्य क्षेत्रों को नज़रअंदाज कर दिया गया है। हमें यह स्थिति बदलनी होगी।
  • सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग की देश के कुल विनिर्माण में 45% योगदान  है और कुल निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 40% है किन्तु सरकार के पास इस क्षेत्र के विकास के लिये कोई एकीकृत दृष्टिकोण नहीं है। अतः केंद्र सरकार को इस दिशा में व्यापक नीतियों का निर्माण करना चाहिये। निर्माण समूहों को शहरी विकास जोड़ना भी अहम् साबित हो सकता है।
  • शिक्षित महिलाओं को रोज़गार देने के लिये चलाए जा रहे कौशल विकास कार्यक्रमों में सुधार करना होगा। यह देखा गया है कि कौशल प्राप्त महिलाएँ भी रोज़गार नहीं प्राप्त कर पाती। इसका कारण है उत्पादन केन्द्रों तक उनकी सीमित पहुँच। इसके लिये हमें कौशल विकास केन्द्रों एवं उत्पादन केन्द्रों को आस-पास लाना होगा। स्वास्थ्य, शिक्षा, पुलिस और न्यायपालिका आदि के विकास में सार्वजनिक निवेश के माध्यम से बड़ी मात्रा में सरकारी नौकरियाँ सृजित की जा सकती हैं।

निष्कर्ष

  • आज जहाँ रोज़गार के सीमित अवसर दिख रहे हैं वहीं कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं डिजिटल तकनीक के विस्तार ने चुनौतियाँ और भी बढ़ा दी हैं। इन परिस्थितियों में हमें नीतिगत बदलाव पर ध्यान देना होगा। रोज़गार के इच्छुक लोगों को उद्यमिता के अवसर प्रदान करने होंगे, ताकि वे औरों को भी रोज़गार दे सकें।
  • स्टार्टअप इंडिया जैसे अभियानों को और अधिक प्रभावी बनाए जाने की ज़रूरत है, यद्यपि इस योजना के तहत स्टार्टअप की परिभाषा में बदलाव समेत कई आवश्यक कदम सरकार ने उठाए हैं।
  • मुकम्मल भूमि सुधार, चौतरफा कृषि विकास और कृषि आधारित उद्यमों का जाल हमारी संपूर्ण अर्थव्यवस्था के पुनर्जीवन की ज़रूरी शर्त तो है ही, लेकिन रोज़गार की दृष्टि से भी इसका केंद्रीय महत्त्व है।
  • छोटे उद्योग रोज़गार सृजन के लिये आवश्यक हैं, क्योंकि ऑटोमेशन और उच्च प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाले पूंजीगत भारी उद्योग रोज़गार प्रेरक नहीं हो सकते। निर्माण, अवसंरचना विकास, लॉजिस्टिक कारोबार, वस्त्र एवं हथकरघा क्षेत्र में रोज़गार सृजन की असीम संभावनाएँ हैं।
  • श्रमशक्ति को न सिर्फ रोज़गार के लायक बनाना होगा, बल्कि वो अपना सर्वोत्तम दे सके इसके लिये मानव संसाधन के विकास हेतु किये जाने वाले निवेश में वृद्धि करनी होगी। चीन की आर्थिक प्रगति का राज शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास में उसके द्वारा किये गए भारी सार्वजनिक निवेश में छिपा है।
  • इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था लगातार प्रगति कर रही है लेकिन राह में अनेक चुनौतियाँ हैं और रोज़गार सृजन की समस्या उन्हीं चुनौतियों में से एक है। वक्त है हम अपनी प्राथमिकताएँ तय करें और उनमें इसे पहले स्थान पर रखें।
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