डेली न्यूज़ (11 Jun, 2024)



वैश्विक ऋण संकट पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक ऋण रुझान और निहितार्थ, ऋण, मंदी, सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP), अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF)

मेन्स के लिये:

वैश्विक ऋण रुझान और निहितार्थ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास (UN Trade and Development- UNCTAD) द्वारा जारी "ऋण की दुनिया 2024: वैश्विक समृद्धि पर बढ़ता बोझ" शीर्षक रिपोर्ट में विश्व में अभूतपूर्व वैश्विक ऋण संकट का खुलासा किया गया है।

  • वर्तमान में लगभग 3.3 बिलियन लोग ऐसे देशों में रहते हैं जहाँ ऋण पर ब्याज का भुगतान शिक्षा या स्वास्थ्य पर होने वाले व्यय से अधिक है।

वैश्विक ऋण क्या है?  

  • परिचय: ऋण वह धनराशि है जो व्यक्ति उधार लेता है और बाद में उसे चुकाना होता है।
    • वैश्विक ऋण से तात्पर्य विश्व भर में सरकारों, व्यवसायों और व्यक्तियों द्वारा ऋण ली जाने वाली कुल बकाया राशि से है।
      • इसमें सार्वजनिक और निजी दोनों ऋण शामिल हैं।
  • वैश्विक ऋण की संरचना:
    • सार्वजनिक ऋण: यह वह धनराशि है जो सरकार द्वारा घरेलू और विदेशी ऋणदाताओं को दी जाती है।
      • इसका वित्तपोषण आमतौर पर बॉण्ड, ट्रेज़री बिल या अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से ऋण जारी करके किया जाता है।
    • निजी ऋण: यह वह धनराशि है जो व्यवसायों और व्यक्तियों द्वारा बैंकों, उधारदाताओं तथा अन्य वित्तीय संस्थानों को दी जाती है। 
      • इसमें बंधक, कॉर्पोरेट बॉण्ड, छात्र ऋण और क्रेडिट कार्ड ऋण शामिल हैं।

रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?

  • सार्वजनिक ऋण में तीव्र वृद्धि:
    • अंतर्राष्ट्रीय वित्त संस्थान (वित्तीय संस्थानों का एक वैश्विक संघ) ने अनुमान लगाया है कि वैश्विक ऋण (परिवारों, व्यवसायों और सरकारों के उधार सहित) वर्ष 2024 में 315 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, जो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) का 3 गुना है।
      • हाल के संकटों (जैसे कोविड-19, खाद्य और ऊर्जा की बढ़ती कीमतें, जलवायु परिवर्तन, आदि) तथा सुस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था (अर्थव्यवस्था की धीमी वृद्धि, बैंक ब्याज दरों में वृद्धि आदि) के संयोजन के कारण वैश्विक सार्वजनिक ऋण तेज़ी से बढ़ रहा है।
    • विकासशील देशों में सार्वजनिक ऋण पर शुद्ध ब्याज भुगतान वर्ष 2023 में 847 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो वर्ष 2021 की तुलना में 26% की वृद्धि को दर्शाता है।

Global Public Debt in 2024

  • ऋण वृद्धि में क्षेत्रीय असमानता:
    • यह 2023 में 29 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर (कुल वैश्विक का 30%) तक पहुँच जाएगा, जो 2010 में 16% था।
    • 60% से अधिक ऋण-GDP अनुपात वाले अफ्रीकी देशों की संख्या 2013 और 2023 के बीच 6 से बढ़कर 27 हो गई है।
    • इसका मुख्य कारण अप्रत्याशित वैश्विक मुद्दे हैं, जो उनके विस्तार को प्रभावित कर रहे हैं तथा धीमी अर्थव्यवस्था के परिणामस्वरूप घरेलू आय में कमी आई है।
    • विकासशील देशों में सार्वजनिक ऋण विकसित देशों की तुलना में दोगुनी दर से बढ़ रहा है।
    • अफ्रीका का ऋण बोझ उसकी अर्थव्यवस्था की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप ऋण-GDP अनुपात में वृद्धि हो रही है। 

ublic Debt Growth in Developing and Developed Countries

  • आय में ऋण सेवा का उच्च हिस्सा और जलवायु पहलों पर प्रभाव:
    • लगभग 50% विकासशील देश अब अपने सरकारी राजस्व का कम से कम 8% अपने ऋणों की चुकौती के लिये समर्पित कर रहे हैं, यह संख्या पिछले दस वर्षों में दोगुनी हो गई है।
    • वर्तमान में विकासशील देश अपने सकल घरेलू उत्पाद का एक बड़ा हिस्सा जलवायु प्रयासों (2.1%) की तुलना में ब्याज चुकाने (2.4%) पर खर्च कर रहे हैं।
      • जलवायु परिवर्तन से निपटने की उनकी क्षमता ऋण के कारण बाधित हो रही है। पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये वर्ष 2030 तक जलवायु निवेश को 6.9% तक बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • आधिकारिक विकास सहायता (Official Development Assistance- ODA) में बदलाव:
    • ODA सरकारी सहायता है जिसका उद्देश्य विकासशील देशों में आर्थिक विकास एवं कल्याण को बढ़ावा देना है।
    • विदेशी सहायता की प्रकृति में हाल ही में किये गए परिवर्तनों के कारण विकासशील देशों के लिये ऋण चुकाना अधिक कठिन हो गया है, जैसे:
      • समग्र सहायता में कमी: ODA में लगातार दो वर्षों से कमी हो रही है, जो वर्ष 2022 में घटकर 164 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो जाएगी।
      • ऋण वृद्धि और अनुदान में कमी: ऋण के रूप में दी जाने वाली सहायता का अनुपात बढ़ रहा है, जो वर्ष 2012 में 28% से बढ़कर वर्ष 2022 में 34% हो जाएगा। इससे विकासशील देशों पर ऋण का बोझ बढ़ सकता है।
      • मौजूदा ऋण से निपटने के लिये सहायता में कमी: ऋण पुनर्गठन और राहत जैसी ऋण प्रबंधन रणनीतियों के लिये आवंटित धनराशि में भारी कमी आई है, जो वर्ष 2012 में 4.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर वर्ष 2022 में केवल 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर रह गई है। इससे भविष्य में उनकी ऋण तक पहुँच सीमित हो सकती है और उनके लिये अपने वर्तमान ऋण का प्रबंधन करना अधिक कठिन हो सकता है।

ऋण संकट को हल करने से संबंधित पहल क्या हैं?

  • हैविली इन्डेब्टेड पुअर कन्ट्रीज़ (Heavily Indebted Poor Countries- HIPC) पहल: 
    • विश्व बैंक और IMF की यह परियोजना विश्व के सबसे निर्धन देशों में ऋण संबंधी कठिनाइयों को संबोधित करती है। यह ऋण चुकाने के दौरान आवश्यक निवेश करने में उन देशों की कठिनाई को स्वीकार करती है। यह पहल ऋण राहत प्रदान करके संसाधनों को मुक्त करती है।
      • इससे इन देशों को स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और निर्धनता उन्मूलन में निवेश करने का अवसर मिलेगा, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास एवं सामाजिक प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।
  • ऋण प्रबंधन और वित्तीय विश्लेषण प्रणाली (Debt Management and Financial Analysis System- DMFAS) कार्यक्रम: 
    • UNCTAD का DMFAS कार्यक्रम विकासशील देशों को ज़िम्मेदारी से ऋण प्रबंधन में सहायता करता है। यह उनके ऋण प्राप्त करने के तरीकों को बेहतर बनाने के लिये प्रशिक्षण, दिशानिर्देश और तकनीकी सहायता प्रदान करता है, जिसमें ऋण का रिकॉर्ड रखने, जोखिमों का आकलन करने तथा प्रभावी ढंग से ऋण का प्रबंधन करने हेतु आवश्यक उपकरण शामिल हैं।
      • यह कार्यक्रम सतत् ऋण प्रबंधन को बढ़ावा देता है ताकि ये देश भविष्य में बिना किसी समस्या के विकास के लिये ऋण प्राप्त कर सकें।
  • वैश्विक संप्रभु ऋण गोलमेज सम्मेलन (Global Sovereign Debt Roundtable- GSDR):
    • इस गोलमेज सम्मेलन की सह-अध्यक्षता IMF, विश्व बैंक और G20 प्रेसीडेंसी द्वारा की जाती है, जिसका उद्देश्य ऋण चुनौतियों का व्यापक रूप से समाधान करना है। यह ऋणदाता देशों और लेनदारों को समायोजित करता है, जिसका उद्देश्य ऋण स्थिरता, ऋण पुनर्गठन चुनौतियों एवं संभावित समाधानों से संबंधित मुद्दों पर प्रमुख हितधारकों के बीच सामान्य समझ को बढ़ावा देना है।

वैश्विक ऋण संकट से निपटने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  • समावेशी शासन, पारदर्शिता और जवाबदेही:
    • विश्व बैंक द्वारा जारी 2022 की अंतर्राष्ट्रीय ऋण सांख्यिकी रिपोर्ट में सार्वजनिक ऋण से संबंधित चिंताजनक वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, विशेष रूप से निम्न आय वाले देशों के लिये, इसलिये निर्णय लेने संबंधी प्रक्रियाओं में इन देशों की भागीदारी बढ़ाना आवश्यक है।
    • सतत् विकास के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय इस तथ्य पर ज़ोर देता है कि ऋण संकट को नियंत्रित करने के लिये वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही महत्त्वपूर्ण है।
  • आकस्मिक वित्तपोषण:
    • IMF आपातकालीन वित्तीय सहायता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • "(ऋण संकट को टालने के तीन कदम  Three Steps to Avert a Debt Crisis)" शीर्षक वाली आपात स्थितियों के दौरान विकासशील देशों के भंडार को बढ़ाने के लिये विशेष आहरण अधिकार (Special Drawing Rights- SDR) तक पहुँच बढ़ाने जैसे उपायों का प्रस्ताव किये गए the।
  • असंवहनीय ऋण का प्रबंधन (ऋण चुनौतियों का प्रबंधन):
    • ऋण पुनर्गठन के लिये मौजूदा ढाँचे, जैसे कि ऋण उपचार के लिये जी-20 सामान्य ढाँचे में सुधार किया जाना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त, संकटग्रस्त देशों के लिये ऋण भुगतान को निलंबित करने हेतु स्वचालित प्रावधानों को शामिल करने से उन्हें अपनी अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर करने में सहायता करने हेतु आवश्यक लचीलापन मिलेगा।
  • सतत् वित्तपोषण को बढ़ाना:
    • बहुपक्षीय विकास बैंकों (Multilateral Development Banks- MDB) को सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) के लिये दीर्घकालिक वित्तपोषण में प्रमुख भूमिका निभाने हेतु रूपांतरित किये जाने की आवश्यकता है।
    • स्वच्छ ऊर्जा जैसी सतत् परियोजनाओं हेतु निजी निवेश को आकर्षित करना भी आवश्यक है। सहायता और जलवायु वित्त के लिये मौजूदा प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करना, विशेष रूप से विकासशील देशों के लिये, इस परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने हेतु आवश्यक है।

ऋण उपचार के लिये G20 सामान्य ढाँचा:

  • यह वर्ष 2020 में शुरु की गई एक पहल है, जिसे पेरिस क्लब के सहयोग से G20 द्वारा समर्थित किया गया है, ताकि अस्थिर ऋण बोझ का सामना कर रहे निम्न-आय वाले देशों (Low-Income Countries- LIC) को संरचनात्मक सहायता प्रदान की जा सके।
  • इस ढाँचे का उद्देश्य LIC के समक्ष आने वाली गंभीर ऋण चुनौतियों से निपटने के लिये एक समन्वित एवं व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करना है, जो कोविड-19 महामारी से और भी बदतर हो गई है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: बढ़ते वैश्विक ऋण संकट में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों पर विवेचना कीजिये तथा इस संकट को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये विकसित और विकासशील दोनों अर्थव्यवस्थाओं द्वारा अपनाए जा सकने वाले संभावित उपायों का मूल्यांकन कीजिये।


RBI के आकांक्षात्मक लक्ष्य

प्रिलिम्स के लिये:

RBI, पूंजी खाता, भारतीय रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण, पूंजी खाता परिवर्तनीयता, अनिवासी जमा, भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ और वैश्विक ब्रांड, डिजिटल भुगतान प्रणाली, UPI, RTGS NEFT, केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (e-Rupee), वैश्वीकरण, गिफ्ट सिटी, मौद्रिक नीति ढाँचा, जलवायु परिवर्तन पहल, रुपया मसाला बॉण्ड 

मेन्स के लिये:

पूंजी खाता उदारीकरण और INR अंतर्राष्ट्रीयकरण में चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने भारत की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिये कई आकांक्षात्मक लक्ष्यों की रूपरेखा तैयार की है, जिसका लक्ष्य है कि जब तक यह अपने शताब्दी वर्ष, आरबीआई@100 तक पहुँचे, तब तक इसे "भविष्य के लिये तैयार" किया जाए।

RBI के आकांक्षात्मक लक्ष्य क्या हैं?

  • पूंजी खाता उदारीकरण और INR अंतर्राष्ट्रीयकरण:
    • पूंजी खाता परिवर्तनीयता: पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता का प्रस्ताव, जिससे पूंजी लेनदेन के लिये रुपए और विदेशी मुद्राओं के बीच मुक्त परिवर्तन की अनुमति मिल सके।
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण: गैर-निवासियों को सीमा पार लेनदेन के लिये रुपए का उपयोग करने में सक्षम बनाना तथा भारत से बाहर के व्यक्तियों के लिये रुपया खाता पहुँच को बढ़ाना।
    • कैलिब्रेटेड ब्याज-असर वाली गैर-निवासी जमाराशियाँ: गैर-निवासियों के लिये ब्याज-असर वाली जमाराशियों के प्रति सावधानीपूर्वक दृष्टिकोण अपनाना।
    • भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनियों और वैश्विक ब्रांडों को बढ़ावा देना: भारतीय बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा विदेशी निवेश को समर्थन देना।
  • डिजिटल भुगतान प्रणाली का सार्वभौमिकरण:
    • घरेलू और वैश्विक विस्तार: भारत की डिजिटल भुगतान प्रणालियों (UPI, RTGS NEFT) के उपयोग को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विस्तारित करना तथा भुगतान प्रणालियों को अन्य देशों से जोड़ना।
    • केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (e-Rupee): e-Rupee का चरणबद्ध कार्यान्वयन।
  • भारत के वित्तीय क्षेत्र का वैश्वीकरण:
    • घरेलू बैंकिंग विस्तार: बैंकिंग क्षेत्र के विकास को राष्ट्रीय आर्थिक विकास के साथ संरेखित करना।
    • शीर्ष वैश्विक बैंक: इसका लक्ष्य आकार और परिचालन के संदर्भ में शीर्ष 100 वैश्विक बैंकों में 3-5 भारतीय बैंकों इस श्रेणी के अंतर्गत लाना है तथा भारतीय रिज़र्व बैंक को ग्लोबल साउथ  के एक आदर्श केंद्रीय बैंक के रूप में स्थापित करना है।
    • गिफ्ट सिटी के लिये समर्थन: गिफ्ट सिटी को एक अग्रणी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्र बनाने में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (International Financial Services Centres Authority- IFSCA) की सहायता करना।
  • मौद्रिक नीति रूपरेखा की समीक्षा:
    • संतुलन कार्य: उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य से मूल्य स्थिरता और आर्थिक विकास के बीच संतुलन को संबोधित करना।
    • नीति संचार: मौद्रिक नीति संचार को परिष्कृत करना तथा महत्त्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में ऋण के प्रभाव को कम करना।
  • जलवायु परिवर्तन पहल: परिसंपत्ति पोर्टफोलियो के तनाव परीक्षण के लिये मार्गदर्शन प्रदान करना, जलवायु जोखिमों के विरुद्ध भुगतान प्रणालियों को मज़बूत करना तथा जलवायु जोखिमों के लिये प्रकटीकरण मानदंड और सरकारी वर्गीकरण का प्रस्ताव करना।
  • लघु एवं मध्यम अवधि के उपाय:
    • व्यापार व्यवस्था: द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार चालान, निपटान तथा रुपए के साथ-साथ स्थानीय मुद्राओं में भुगतान के लिये आवश्यक दृष्टिकोण का मानकीकरण।
    • वित्तीय बाज़ार को सुदृढ़ बनाना: वैश्विक रुपया बाज़ार को बढ़ावा देना और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक व्यवस्था को पुनः संतुलित करना।
    • रुपया मसाला बॉण्ड: रुपया मसाला बॉण्ड पर करों की समीक्षा।
    • वैश्विक बॉण्ड सूचकांक: वैश्विक बॉण्ड सूचकांक में भारतीय सरकारी बॉण्ड को शामिल करना।

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में कदम:

  • गिफ्ट सिटी में विकास
  • एशियाई क्लियरिंग यूनियन (Asian Clearing Union- ACU), एक क्षेत्रीय भुगतान व्यवस्था है जो अपने सदस्य देशों के बीच बहुपक्षीय आधार पर व्यापार लेनदेन के निपटान की सुविधा प्रदान करती है। ACU में वर्तमान में 13 देश सदस्य हैं, भारत भी ACU का सदस्य है।
  • मार्च 2023 में RBI ने 18 देशों के साथ रुपया व्यापार निपटान की व्यवस्था लागू की।
  • जुलाई 2022 में RBI ने “भारतीय रुपये में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निपटान” पर एक परिपत्र जारी किया।
  • RBI ने रुपए में बाह्य वाणिज्यिक उधार (विशेष रूप से मसाला बॉण्ड) को सक्षम किया।

नरसिम्हम समिति:

  • डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत के बैंकिंग क्षेत्र का विश्लेषण और सुधारों की सिफारिश करने हेतु वर्ष 1991 में नरसिम्हम समिति की स्थापना की। इसके बाद वर्ष 1998 में नरसिम्हम समिति गठित की गई जिसे नरसिम्हम समिति II के नाम से जाना जाता है।
  • नरसिम्हम समिति- I की सिफारिशें:
  •  नरसिम्हम समिति- II की सिफारिशें:
    • मज़बूत बैंकिंग प्रणालीः समिति ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिये प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की सिफारिश की। हालाँकि, समिति ने कमज़ोर बैंकों के साथ मज़बूत बैंकों के विलय के खिलाफ चेतावनी दी। 
    • RBI की भूमिका में सुधार: समिति ने बैंकिंग क्षेत्र में RBI की भूमिका में सुधार की भी सिफारिश की। समिति ने अनुभव किया कि RBI एक नियामक निकाय है, इसलिये इसे किसी भी बैंक में स्वामित्व नहीं रखना चाहिये।
    • NPA: समिति चाहती थी कि बैंक वर्ष 2002 तक अपने NPA को घटाकर 3% पर लाएँ। इसने परिसंपत्ति पुनर्निर्माण निधि या परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों के गठन की भी सिफारिश की।
    • विदेशी बैंक: इस समिति के द्वारा विदेशी बैंकों के लिये न्यूनतम स्टार्ट-अप पूंजी को 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर करने का भी प्रस्ताव किया गया।

तारापोर समिति:

  • RBI ने 1997 में तारापोर समिति की नियुक्ति की थी। समिति का गठन पूंजी खाता लेनदेन के प्रगतिशील उदारीकरण के उद्देश्य से किया गया था।
    • इसने सुझाव दिया कि पूर्ण परिवर्तनीयता तीन चरणों में प्राप्त की जानी चाहिये और यह प्रक्रिया कुछ महत्त्वपूर्ण पूर्व शर्तों एवं संकेतकों के अधीन होनी चाहिये।
    • इसके द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और पोर्टफोलियो निवेश तथा विनिवेश के लिये RBI की पूर्व स्वीकृति समाप्त कर दी गई।
    • बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को स्थानीय और विदेशी स्वर्ण बाज़ारों में कारोबार करने की अनुमति दी गई।
    • FII, NRI, अनिवासी बैंकों को वायदा विनिमय बाज़ारों में प्रवेश की अनुमति दी गई।
    • वित्तीय संस्थाओं को पूर्णतः अधिकृत डीलर बनने की अनुमति दी गई।

INTERNATIONALISATION_OF_RUPEE

RBI के आकांक्षात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • ट्रिफिन दुविधा: यह किसी देश के घरेलू मौद्रिक नीति लक्ष्यों और अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित मुद्रा जारीकर्त्ता के रूप में उसकी भूमिका के बीच संघर्ष का वर्णन करता है।
    • ट्रिफिन दुविधा भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखने और रुपए की वैश्विक मांग को पूरा करने के बीच संघर्ष के रूप में प्रकट हो सकती है। 
  • विनिमय दर में अस्थिरता: मुद्रा को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के लिये जारी करने से इसकी विनिमय दर में अस्थिरता बढ़ सकती है, मुख्यतौर पर शुरुआती चरणों में उतार-चढ़ाव व्यापार और निवेश को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।
  • निर्यात पर प्रभाव: रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण से वैश्विक बाज़ारों में मुद्रा की मांग बढ़ेगी, जिससे भारतीय निर्यात महँगा हो सकता है।
  • सीमित अंतर्राष्ट्रीय मांग: वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार में रुपए का दैनिक औसत भाग केवल 1.6% के निकट है, जबकि वैश्विक वस्तु व्यापार में भारत का हिस्सेदारी लगभग 2% है। मुख्य चुनौती वर्तमान प्रतिस्पर्द्धी वैश्विक बाज़ार में भारतीय उत्पादों की हिस्सेदारी को बढ़ाना है।
  • परिवर्तनीयता संबंधी चिंता: पूंजीगत लेनदेन के लिये भारतीय रुपए की पूर्ण परिवर्तनीयता का अभाव, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्त में इसके व्यापक उपयोग को प्रतिबंधित करेगा।
  • साइबर सुरक्षा संबंधी खतरे: डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ साइबर हमलों के प्रति संवेदनशील हैं, जिससे धोखाधड़ी और धन की हानि हो सकती है। विश्वास बनाने के लिये उपयोगकर्त्ता डेटा की सुरक्षा और लेनदेन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मज़बूत सुरक्षा उपायों की आवश्यकता होती है।
  • उच्च गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA): भारतीय बैंक, विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ ऋण के उच्च प्रतिशत (ऋण जिन्हें चुकाया नहीं जा सकता) से जूझ रहे हैं, जिससे वैश्विक वित्तीय संकट की स्थिति में उनके आघात को सहन करने की संभावना कम हो जाती है।

आकांक्षात्मक लक्ष्यों तक पहुँचने हेतु क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?

  • रुपए की परिवर्तनीयता: तारापोरे समिति की सिफारिश के अनुसार, वर्ष 2060 तक पूर्ण परिवर्तनीयता का लक्ष्य होना चाहिये, ताकि भारत और विदेशों के मध्य वित्तीय निवेशों का मुक्त आवागमन हो सके।
    • इससे विदेशी निवेशकों को सरलता से रुपया खरीदने और बेचने की सुविधा मिलेगी, जिससे इसकी तरलता बढ़ेगी तथा यह अधिक आकर्षक बनेगा। टोबिन टैक्स (Tobin Tax) का प्रयोग RBI द्वारा मुद्रा सट्टेबाज़ी के खिलाफ सुरक्षा उपाय के रूप में किया जा सकता है।
  • तारापोरे समिति द्वारा सुझाए गए सुधार:
    • इसमें पूंजी खाता उदारीकरण प्राप्त करने के लिये राजकोषीय समेकन, मुद्रास्फीति नियंत्रण, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों का स्तर कम करना, चालू खाता घाटे को कम करना और वित्तीय बाज़ारों को मज़बूत बनाने जैसी कई महत्त्वपूर्ण शर्तें सूचीबद्ध की गई थीं।
    • मज़बूत राजकोषीय प्रबंधन: जैसे राजकोषीय घाटे को 3.5% से कम करना, सकल मुद्रास्फीति दर को 3-5% तक कम करना और सकल बैंकिंग गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को 5% से कम करना।
    • व्यक्तिगत धन प्रेषण के लिये उदारीकृत योजना: विदेशी मुद्रा से संबंधित लेन-देन करने वाले व्यक्तियों, सरल लेन-देन की सुविधा, व्यक्तिगत धन प्रेषण के लिये अधिक उदार योजना की शुरुआत।
  • बॉण्ड बाज़ार का निर्माण करना: विदेशी निवेशकों और भारतीय व्यापार साझेदारों को रुपए में अधिक निवेश विकल्प उपलब्ध कराना, भारत में कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार के विकास के अलावा इसके अंतर्राष्ट्रीय उपयोग को सक्षम बनाना।
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में रुपए की वृद्धि: रुपए में आयात/निर्यात लेन-देन हेतु व्यापार निपटान औपचारिकताओं को अनुकूलित करना एक लंबा रास्ता तय करेगा। उदाहरण के लिये विभिन्न देशों के साथ रुपया स्वैप समझौते, रूसी तेल (Russian Oil) का भुगतान भारतीय रुपए में करना आदि।
  • भारत के वित्तीय क्षेत्र का वैश्वीकरण: लाइसेंसिंग सुधारों के माध्यम से घरेलू बैंकिंग विस्तार को प्रोत्साहित करना और शाखा नेटवर्क विस्तार को प्रोत्साहित करना। रणनीतिक साझेदारी तथा अधिग्रहण के माध्यम से भारतीय बैंकों को उनकी वैश्विक उपस्थिति बढ़ाने में सहायता करना।
    • उदाहरण के लिये खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड को प्रदान की गई सहायता के समान ही बैंकों को अधिग्रहण, विलय और विदेशी बैंकिंग संस्थानों के साथ सहयोग के लिये सहायता प्रदान की जा सकती है।
  • मौद्रिक नीति ढाँचे की समीक्षा: मौद्रिक नीति ढाँचे की व्यापक समीक्षा करना, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह मूल्य स्थिरता और आर्थिक विकास लक्ष्यों के अनुरूप है।
    • बाज़ार की अपेक्षाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने हेतु मौद्रिक नीति संचार में पारदर्शिता और स्पष्टता बढ़ाना। उदाहरण के लिये बैठक के विवरण जारी करना।
  • जलवायु परिवर्तन पहल: जलवायु परिवर्तन जोखिमों का आकलन करने के लिये परिसंपत्ति पोर्टफोलियो के तनाव परीक्षण हेतु दिशा-निर्देश जारी करना। भुगतान प्रणालियों में जलवायु-संबंधी जोखिमों के विरुद्ध लचीलापन अपनाने हेतु उपाय विकसित करना तथा वित्तीय संस्थाओं के साथ कार्य करना। जलवायु जोखिमों की रिपोर्टिंग के लिये प्रकटीकरण मानदंड प्रस्तावित करना तथा एक मानकीकृत सरकारी वर्गीकरण के विकास में योगदान देने की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के प्रयासों में भारतीय रिज़र्व बैंक के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इन चुनौतियों से निपटने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. रुपए की परिवर्तनीयता से का तात्पर्य है?(2015)

(a) रुपए के नोटों को सोना प्राप्त करना
(b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना

उत्तर: (c)


प्रश्न. भुगतान संतुलन केसंदर्भ में निम्नलिखित में से किससे/किनसे चालू खाता बनता है? (2014)

  1. व्यापार संतुलन
  2. विदेशी परिसंपत्तियाँ
  3. अदृश्यों का संतुलन
  4. विशेष आहरण अधिकार

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) 1, 2 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. सूचना एवं संप्रेषण प्रौद्योगिकी (आई. सी. टी.) आधारित परियोजनाओं/कार्यक्रमों के कार्यान्वयन आमतौर पर कुछ विशेष महत्त्वपूर्ण कारकों की दृष्टि से ठीक नहीं  है। इन कारकों की पहचान कीजिये और उनके प्रभावी कार्यान्वयन के उपाय सुझाइये। (2019)


अग्निपथ योजना

प्रिलिम्स के लिये:

अग्निवीर को मुआवज़ा, अग्निपथ योजना, सेवा निधि, तीनों सेवाएँ (सेना, नौसेना और वायु सेना), सशस्त्र सेना युद्ध हताहत निधि।

मुख्य परीक्षा के लिये:

अग्निपथ योजना का महत्त्व, आलोचनाएँ , सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

जून 2022 में घोषित सत्तारूढ़ पार्टी सरकार की महत्त्वाकांक्षी अग्निपथ योजना को विभिन्न राजनीतिक दलों और सशस्त्र बलों के दिग्गजों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

  • वर्तमान में चल रही चिंताएँ इस योजना के सैन्य भर्ती और सैनिकों के कल्याण पर पड़ने वाले प्रभाव को उजागर करती हैं।

अग्निपथ योजना क्या है?

  • परिचय:
    • "अग्निवीर" शब्द का अर्थ "अग्नि-योद्धा" है और यह एक नया सैन्य पद है।
    • यह अधिकारी रैंक से नीचे के सैन्य कार्मिकों जैसे सैनिकों, वायुसैनिकों और नाविकों की भर्ती की एक योजना है, जो भारतीय सशस्त्र बलों में कमीशन प्राप्त अधिकारी नहीं हैं।
    • उन्हें 4 वर्ष की अवधि के लिये भर्ती किया जाता है, जिसके बाद इनमें से 25% तक (जिन्हें अग्निवीर कहा जाता है), योग्यता और संगठनात्मक आवश्यकताओं के अधीन, स्थायी कमीशन (अन्य 15 वर्ष) पर सेवाओं में शामिल हो सकते हैं।
    • वर्तमान में चिकित्सा शाखा के तकनीकी संवर्ग को छोड़कर सभी नाविकों, वायुसैनिकों और सैनिकों को इस योजना के तहत सेवाओं में भर्ती किया जाता है।
  • पात्रता मापदंड:
    • 17.5 वर्ष से 23 वर्ष की आयु के अभ्यर्थी आवेदन (ऊपरी आयु सीमा 21 वर्ष से बढ़ा दी गई है)  करने के पात्र हैं।
    • निर्धारित आयु सीमा से कम आयु की लड़कियाँ अग्निपथ में प्रवेश हेतु खुली हैं, जबकि इस योजना के तहत महिलाओं के लिये ऐसा कोई आरक्षण नहीं है।
  • वेतन एवं लाभ:
    • ड्यूटी पर मृत्यु: परिवार को संयुक्त रूप से 1 करोड़ रुपए मिलते हैं, जिसमें सेवा निधि पैकेज और सैनिक का वेतन दोनों शामिल होते हैं।
    • दिव्यांगता: दिव्यांगता की गंभीरता के आधार पर अग्निवीर को 44 लाख रुपए तक का मुआवजा मिल सकता है। यह राशि केवल तभी प्रदान की जाती है जब दिव्यांगता सैन्य सेवा के कारण हुई हो या और भी खराब हो गई हो।
    • पेंशन: अग्निवीरों को पारंपरिक प्रणाली के सैनिकों के विपरीत 4 वर्ष की सेवा के बाद नियमित पेंशन नहीं मिलेगी।
      • स्थायी कमीशन हेतु चयनित होने वाले केवल 25% लोग ही पेंशन के लिये पात्र होंगे।
  • अग्निपथ का लक्ष्य:
    • यह योजना सशस्त्र बलों को युवा बनाए रखने तथा सेना में स्थायी सैनिकों की संख्या में कमी लाने के लिये तैयार की गई है, जिससे रक्षा बलों पर सरकार के पेंशन व्यय में उल्लेखनीय कमी आएगी।

अग्निपथ योजना क्यों शुरू की गई?

  • युवा, अधिक स्वस्थ बल: सरकार का मानना ​​है कि अग्निपथ में युवा भर्तियों पर जोर दिये जाने के कारण यह अधिक चुस्त लड़ाकू बल तैयार करेगा, जिससे प्रतिक्रिया समय में तेज़ी आएगी और युद्ध के मैदान में बेहतर अनुकूलन होगा।
    • वर्तमान में सशस्त्र बलों में औसत आयु 32 वर्ष है, जो अग्निपथ के कार्यान्वयन से घटकर 26 वर्ष हो जाएगी।
  • पेंशन बिल को कम करना: इसका उद्देश्य लगातार देश के बढ़ते रक्षा पेंशन बिल के बोझ को कम करना भी है। रक्षा पर संसदीय स्थायी समिति की 2022 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि भारतीय सशस्त्र बलों का पेंशन बिल 2025 तक लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच जाएगा।
    • अग्निपथ, जिसमें अधिकांश भर्तियों के लिये सेवा की अवधि कम है, संभावित रूप से इस व्यय का प्रबंधन करने में सहायता कर सकता है।
  • तकनीकी एकीकरण: इस योजना का उद्देश्य सशस्त्र बलों में उभरती प्रौद्योगिकियों को बेहतर ढंग से एकीकृत करने के लिये युवा रंगरूटों की तकनीक-प्रियता का लाभ उठाना है।
  • नागरिक क्षेत्र के लिये कुशल कार्यबल: सरकार की परिकल्पना है कि अग्निवीर अपनी सेवा के दौरान अर्जित मूल्यवान कौशल और अनुशासन के साथ नागरिक कार्यबल में शामिल होंगे।
    • इससे संभावित रूप से अधिक कुशल राष्ट्रीय कार्यबल और आर्थिक विकास में योगदान मिल सकता है।
    • अधिक रोज़गार के अवसर: इससे रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे और चार साल की सेवा के दौरान अर्जित कौशल एवं अनुभव के कारण ऐसे सैनिकों को विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार मिल सकेगा।

अन्य देशों में भी इसी प्रकार के कार्यक्रम:

  • स्वैच्छिक ड्यूटी दौरा: सेना और सेवा शाखा की आवश्यकताओं के आधार पर, अमेरिका में स्वैच्छिक ड्यूटी दौरा 6 से 9 महीने से लेकर पूरे एक वर्ष तक चल सकता है।
  • आवश्यक सैन्य सेवा (अनिवार्य सैन्य सेवा): इज़रायल, नॉर्वे, उत्तर कोरिया, सिंगापुर और स्वीडन उन देशों में शामिल हैं जो इस पद्धति का उपयोग करते हैं।

अग्निपथ योजना से जुड़े मुद्दे क्या हैं?

  • सेवानिवृत्ति लाभ का अभाव: यह योजना 4 वर्ष की अवधि पूरी होने पर एक अग्निवीर को लगभग 11.71 लाख रुपए का एकमुश्त भुगतान प्रदान करती है, लेकिन निर्धारित कोई ग्रेच्युटी या पेंशन नहीं देती है।
    • इससे नौकरी की सुरक्षा और पेंशन लाभ चाहने वाले अभ्यर्थियों में व्यापक असंतोष उत्पन्न सकता है।
  • लघु सेवा अवधि: 4 वर्ष का कार्यकाल अपर्याप्त माना जाता है, क्योंकि इसमें यह चिंता है कि अग्निपथ के तहत भर्ती होने वाले सैनिकों में स्थायी सैनिकों के समान प्रेरणा और प्रशिक्षण का अभाव हो सकता है।
    • इसके अलावा, यह दीर्घावधि में सैनिकों को प्रशिक्षित करने और कुशल बनाने के लिये अपर्याप्त है, क्योंकि इससे सशस्त्र बलों में कौशल एवं अनुभव की कमी हो सकती है।
  • आयु सीमा संबंधी मुद्दे: 23 वर्ष की वर्तमान अधिकतम आयु सीमा ने कई युवाओं को इसके दायरे से बाहर कर दिया है, जो महामारी के दौरान भर्ती की कमी के कारण इसके लिये आवेदन नहीं कर सके।
  • बेरोज़गारी संबंधी चिंताएँ: सीमित स्थायी समावेशन (केवल 25%) के कारण, इस योजना को देश में पहले से ही उच्च युवा बेरोज़गारी को और बढ़ाने वाला माना जा रहा है।
    • यह स्थिति बढ़ती मुद्रास्फीति और असमानताओं जैसी व्यापक आर्थिक चुनौतियों के बीच उत्पन्न हुई है।
  • राजनीतिक उद्देश्य: विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इस योजना को बिना परामर्श के जल्दबाजी में, संभवतः चुनावों से पहले एक राजनीतिक कदम के रूप में में लागू किया गया। रक्षा बलों के समर्थन की कमी भी संदेह उत्पन्न करती है।
  • पेंशन बिल में कमी: इस योजना को सरकार द्वारा अपने बढ़ते रक्षा पेंशन व्यय को कम करने के एक तरीके के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें दीर्घकालिक बल निर्माण की तुलना में वित्तीय बचत को प्राथमिकता दी जा रही है।

आगे की राह 

  • आयु सीमा और स्थायी प्रतिधारण कोटा में वृद्धि करना: अग्निवीरों के लिये सेवा अवधि 7-8 वर्ष तक बढ़ाई जानी चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त, तकनीकी भूमिकाओं के लिये प्रवेश आयु को बढ़ाकर 23 वर्ष किया जाना चाहिये तथा अग्निवीरों के लिये नियमित सेवा प्रतिधारण दर को वर्तमान 25% से बढ़ाकर 60-70% किया जाना चाहिये।
  • पात्रताएँ और लाभ में वृद्धि करना: अग्निवीरों को अंशदायी पेंशन योजना, उदार ग्रेच्युटी और प्रशिक्षण के दौरान विकलांगता के लिये अनुग्रह राशि प्रदान की जानी चाहिये।
    • उन्हें अन्य सुरक्षा बलों में सेवा के अवसर प्रदान किये जाने चाहिये, अनुभवी का दर्ज़ा दिया जाना चाहिये तथा सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जानी चाहिये और अग्निवीरों को बनाए रखने के लिये पारदर्शी, योग्यता-आधारित प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये।
  • मज़बूत कौशल और पुनर्वास कार्यक्रम लागू करना: अग्निवीरों के लिये नागरिक जीवन में सुचारू संक्रमण को सुविधाजनक बनाने के लिये निजी क्षेत्र और सरकारी एजेंसियों के सहयोग से एक व्यापक कौशल एवं पुनर्वास कार्यक्रमों का विकास किया जाना चाहिये।
    • कुछ ऐसे कानून भी बनाए जाने चाहिये जो निजी नियोक्ताओं और निगमों द्वारा अग्निवीरों को अनिवार्य रूप से अपने अधीन करने को अनिवार्य बनाएँ।
  • शैक्षिक मानकों को बढ़ाना: अग्निवीरों के लिये शैक्षिक आवश्यकताओं को 10वीं से बढ़ाकर 10+2 किया जाना चाहिये तथा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की जाने वाली प्रवेश परीक्षाओं को और अधिक कठिन बनाया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

भारत में अग्निपथ योजना रक्षा नीति में एक बड़ा सुधार है जो सशस्त्र बलों के लिये भर्ती प्रक्रिया को परिवर्तित करता है। प्रारंभिक कार्यान्वयन से इस योजना के तहत भर्ती किये गए अग्निवीरों की प्रेरणा, बुद्धिमत्ता और शारीरिक मानकों में सकारात्मक संकेत मिलते हैं। सैन्य अभियानों में तकनीकी प्रगति की तुलना में मानवीय तत्त्व को अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है, जो यूनिट के गौरव और सामंजस्य के साथ अग्निवीरों के चरित्र विकास एवं मनोवैज्ञानिक कल्याण की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. सशस्त्र बलों में भर्ती के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू की गई अग्निवीर योजना के महत्त्व और चुनौतियों पर विवेचना कीजिये। इसकी सफलता सुनिश्चित करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. सीमा प्रबंधन विभाग निम्नलिखित में से किस केंद्रीय मंत्रालय का एक विभाग है? (2008)

(a) रक्षा मंत्रालय
(b) गृह मंत्रालय
(c) नौवहन, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय
(d) पर्यावरण और वन मंत्रालय

उत्तर: (b)


मेन्स: 

प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों की भी चर्चा कीजिये। (2021)