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डेली न्यूज़

  • 11 Jun, 2021
  • 51 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन-आसियान बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

आसियान

मेन्स के लिये:

आसियान में भारत की भूमिका तथा एशियाई क्षेत्र 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन ने 10 दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) देशों के विदेश मंत्रियों की एक बैठक की मेज़बानी की।

  • बैठक चीन-आसियान वार्ता की 30वीं वर्षगाँठ का प्रतीक है।
  • इस बैठक के माध्यम से चीन इस क्षेत्र के साथ अपने आर्थिक संबंधों को गहरा करने, अमेरिका के साथ-साथ क्वाड (चतुर्भुज फ्रेमवर्क) समूह से क्षेत्रीय जुड़ाव पर नए सिरे से प्रयास करना चाहता है।
    • QUAD इस वर्ष की शुरुआत में एक क्षेत्रीय वैक्सीन पहल के साथ सामने आया था।

प्रमुख बिंदु:

चीन का पक्ष:

  • चीन की सांस्कृतिक कूटनीति:
    • चीन ने दोहराया कि चीन और आसियान को संयुक्त रूप से पश्चिम में एशियाई मूल्यों को आगे बढ़ाना चाहिये। 
      • चीन ने वर्ष 2014 में इस विचार को सामने रखा था कि यह "एशियाई लोगों के एशिया की सुरक्षा को बनाए रखने के लिये" था।
  • कोविड-वैक्सीन:
    • चीन ने आसियान देशों को अपने टीके के साथ-साथ संयुक्त वैक्सीन विकास और उत्पादन पर घनिष्ठ सहयोग की पेशकश की।
  • समुद्री सुरक्षा और विवाद:
    • चीन ने व्यापक रणनीतिक साझेदारी के लिये चीन-आसियान संबंधों  पर बल देने, विचार करने और दक्षिण चीन सागर में आचार संहिता पर शीघ्र समझौते हेतु प्रयास करने का आह्वान किया।
    • दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के बारे में उनकी चिंताओं के बीच चीन ऑफसेट समुद्री विवादों और कुछ आसियान देशों के अमेरिका के साथ घनिष्ठ रक्षा संबंधों हेतु गहरे आर्थिक संबंधों पर निर्भर है।
  •  क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी:
    • चीन ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के शीघ्र कार्यान्वयन पर ज़ोर दिया, जिस पर नवंबर 2020 में चीन, आसियान देशों, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे।
      • चीन के साथ पहले से ही व्यापक व्यापार असंतुलन और सेवाओं की विफलता के बीच भारत ने RCEP से मुख्य रूप से चिंताओं के कारण इसे चीनी सामानों हेतु खोल दिया।

आसियान का चीन के लिये महत्त्व:

  • आसियान चीन के आर्थिक और सामरिक हितों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह क्षेत्र संचार के महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों का विस्तार करता है जो मध्य पूर्वी क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण तेल आयात सहित वैश्विक बाज़ार तक चीन की पहुँच का प्रतिनिधित्व करता है।
  • चीन के साथ आर्थिक रूप से जुड़े हुए इस क्षेत्र के अपेक्षाकृत छोटे राष्ट्र भी चीन को अपने प्रभाव को बढ़ाने हेतु पर्याप्त अवसर प्रदान करते हैं और चीनी रणनीतिकारों को चीन की मुख्य भूमि के चारों ओर घेरने की एक यूएस (अमेरिका की उपस्थिति) शृंखला के रूप में देखते हैं।

आसियान और भारत:

  • परंपरागत रूप से भारत-आसियान संबंधों का आधार साझा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जड़ों के कारण व्यापार एवं व्यक्तियों के बीच संबंध रहा है, अभिसरण का एक और हालिया व ज़रूरी क्षेत्र चीन के उदय को संतुलित कर रहा है।
    • वर्ष 2020 में 17वाँ आसियान-भारत आभासी शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था।
    • 8वीं पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन आर्थिक मंत्रियों की बैठक (EAS-EMM) भी वर्ष 2020 में आयोजित की गई थी। इसमें आसियान के दस सदस्य देशों के साथ-साथ 8 अन्य देश ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, भारत, न्यूजीलैंड, कोरिया, रूस और अमेरिका शामिल हैं। 
    • भारत और आसियान दोनों का लक्ष्य चीन की आक्रामक नीतियों के विपरीत क्षेत्र में शांतिपूर्ण विकास के लिये एक नियम-आधारित सुरक्षा ढाँचा स्थापित करना है।
  • भारत की तरह वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और ब्रुनेई जैसे कई आसियान सदस्यों का चीन के साथ क्षेत्रीय विवाद है, जो कि चीन के संबंधों का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
  • भारत ने वर्ष 2014 में अपने पिछले दृष्टिकोण की तुलना में अधिक रणनीतिक दृष्टिकोण के साथ न केवल दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ बल्कि प्रशांत क्षेत्र में भी जुड़ाव पर ध्यान केंद्रित करते हुए ‘पूर्व की ओर देखो’ नीति को एक्ट ईस्ट में फिर से जीवंत कर दिया।
    • ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का मुख्य फोकस भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच कनेक्टिविटी बढ़ाने पर है।

दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ:

  • यह एक क्षेत्रीय समूह है जो आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • इसकी स्थापना अगस्त 1967 में बैंकॉक, थाईलैंड में आसियान के संस्थापकों, अर्थात् इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड द्वारा आसियान घोषणा (बैंकॉक घोषणा) पर हस्ताक्षर के साथ की गई।
  • इसके सदस्य राज्यों के अंग्रेज़ी नामों के वर्णानुक्रम के आधार पर इसकी अध्यक्षता वार्षिक रूप से प्रदान की जाती है।
  • आसियान देशों की कुल आबादी 650 मिलियन है और संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है। यह लगभग 86.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार के साथ भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।

सदस्य:

  • ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम

Asean-Grouping

आगे की राह:

  • जैसा कि डोकलाम गतिरोध में देखा गया है, चीन अक्सर भारत को चुनौती देने के इरादे से अपनी क्षमता प्रदर्शित करता है, यह उचित है कि भारत क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की रक्षा के लिये मिलकर काम करने में रुचि रखने वाले अधिक समान विचारधारा वाले देशों को ढूॅढता है।
  • इस संदर्भ में आसियान पूरी तरह उपयोगी है। आसियान भारत के अविकसित पूर्वोत्तर क्षेत्र के तेज़ी से विकास को भी प्रेरित कर सकता है यदि लोगों और सामानों की आवाज़ाही को सक्षम करने वाले संबंध जल्दी से स्थापित किये जा सकें।
  • लेकिन ऐसा करने के लिये भारत को कनेक्टिविटी परियोजनाओं में तेज़ी लाने और आसियान देशों के साथ अपने असमान व्यापार संतुलन को दूर करने पर ध्यान देना चाहिये।

स्रोत-द हिंदू


शासन व्यवस्था

भारत में फास्ट ट्रैकिंग फ्रेट: नीति आयोग

प्रीलिम्स के लिये

भारत में फास्ट ट्रैकिंग फ्रेट, नीति आयोग, सकल घरेलू उत्पाद, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, फेम योजना 

मेन्स के लिये

भारत में स्वच्छ एवं प्रभावी माल परिवहन हेतु रोडमैप की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

नीति आयोग, रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट (RMI) और RMI इंडिया की नई रिपोर्ट, ‘भारत में फास्ट ट्रैकिंग फ्रेट, स्वच्छ और लागत प्रभावी माल परिवहन के लिये एक रोडमैप’ (Fast Tracking Freight in India: A Roadmap for Clean and Cost-Effective Goods Transport), भारत के लिये अपनी लॉजिस्टिक्स लागत को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती है।

  •  RMI वर्ष 1982 में स्थापित एक स्वतंत्र गैर-लाभकारी संगठन है।

नीति आयोग

  • यह भारत सरकार का एक सार्वजनिक नीति थिंक टैंक है, जिसे बॉटम-अप दृष्टिकोण (Bottom-Up Approach) का उपयोग करके आर्थिक नीति-निर्माण प्रक्रिया में भारत की राज्य सरकारों की भागीदारी को बढ़ावा देकर सहकारी संघवाद के साथ सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है।
  • इसे योजना आयोग के स्थान पर स्थापित किया गया है। प्रधानमंत्री इसका पदेन अध्यक्ष होता है।

प्रमुख बिंदु

माल ढुलाई की बढ़ती मांग:

  • वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती मांग के कारण भविष्य में माल परिवहन में वृद्धि की उम्मीद की जाती है। 
  • जबकि माल परिवहन आर्थिक विकास के लिये आवश्यक है लेकिन यह लॉजिस्टिक की उच्च लागत से ग्रस्त है और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि तथा शहरों में वायु प्रदूषण में भी योगदान देता है।

भारत की क्षमता: 

  • रिपोर्ट के अनुसार भारत में निम्नलिखित क्षमताएँ हैः
    • अपनी रसद लागत में सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) के 4 प्रतिशत तक कमी लाने की क्षमता।
    • वर्ष 2020-2050 के बीच संचयी CO2 के 10 गीगाटन बचाने की क्षमता।
    • वर्ष 2050 तक नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter- PM) क्रमशः 35 प्रतिशत और 28 प्रतिशत तक घटाने की क्षमता।

अधिक शहरी नागरिकों को समायोजित करना:

  • भारत की माल परिवहन गतिविधि वर्ष  2050 तक पाँच गुनी हो जाएगी और लगभग 400 मिलियन नागरिक शहरों की ओर जाएंगे। ऐसे में संपूर्ण प्रणाली में परिवर्तन ही माल ढुलाई क्षेत्र को ऊपर उठा सकता है।
  • इस परिवर्तन को इस तरह के अवसरों का दोहन कर परिभाषित किया जाएगा:
    • कुशल रेल आधारित परिवहन।
    • रसद और आपूर्ति शृंखला का अनुकूलन।
    • इलेक्ट्रिक और अन्य स्वच्छ-ईंधन वाले वाहनों में बदलाव।
  • इन समाधानों से भारत को अगले तीन दशकों में 311 लाख करोड़ रुपए की बचत करने में मदद मिल सकती है।

माल ढुलाई लागत को प्रभावी बनाने की आवश्यकता:

  • माल परिवहन भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण आधार है और अब पहले से कहीं ज़्यादा इस परिवहन प्रणाली को अधिक लागत प्रभावी, कुशल और स्वच्छ बनाना महत्त्वपूर्ण है।
  • मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और डिजिटल इंडिया जैसी मौजूदा सरकारी पहलों के लाभों को साकार करने में कुशल माल परिवहन भी एक आवश्यक भूमिका निभाएगा।

सिफारिश:

  • इन सिफारिशों में रेल नेटवर्क की क्षमता बढ़ाना, इंटरमोडल परिवहन को बढ़ावा देना, वेयरहाउसिंग और ट्रक परिचालन व्यवहारों में सुधार, नीतिगत उपायों तथा स्वच्छ प्रौद्योगिकी अपनाने के लिये पायलट परियोजनाओं एवं ईंधन अर्थव्यवस्था के कठोर मानक शामिल हैं।
  • सफलतापूर्वक एक पैमाने पर तैनात किये जाने से प्रस्तावित समाधान लॉजिस्टिक नवाचार में तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र एवं उससे आगे भी भारत का नेतृत्त्व स्थापित करने में सहायता कर सकते हैं।

हाल की पहल:

  • डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (DFC):
    • यह उच्च गति और उच्च क्षमता वाला विश्व स्तरीय तकनीक के अनुसार बनाया गया एक रेल मार्ग है, जिसे विशेष तौर पर माल एवं वस्तुओं के परिवहन हेतु बनाया जाता है।
    • फास्टैग, आरएफआईडी के साथ ई-वे बिल एकीकरण: 
    • यह कर अधिकारियों को व्यवसायों द्वारा ई-वे बिल अनुपालन के संबंध में लाइव सतर्कता बरतने, राजस्व के रिसाव को रोकने और बड़े माल वाहनों की आवाजाही की सुविधा प्रदान करने में सक्षम बनाएगा।
  • फेम योजना: 
    • सरकार द्वारा फेम इंडिया योजना [Faster Adoption and Manufacturing of (Hybrid and) Electric Vehicles- FAME] के माध्यम से वर्ष 2030 तक भारतीय परिवहन क्षेत्र में इलेक्ट्रिक वाहनों की भागीदारी को बढ़ाकर 30% करने का लक्ष्य रखा गया है।  
  • भारत स्‍टेज-VI मानदंड:
    • इसमें प्रौद्योगिकी संशोधनों की एक विस्तृत सूची शामिल है जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण OBD (ऑन-बोर्ड डायग्नोस्टिक्स) को सभी वाहनों के लिये अनिवार्य बनाना है।
  • कॉर्पोरेट औसत ईंधन दक्षता (CAFE) विनियम:
    • CAFE मानकों को पहली बार वर्ष 2017 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम (Energy Conservation Act), 2001 के तहत केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय (Union Ministry of Power) द्वारा अधिसूचित किया गया था।
    • यह विनियमन वर्ष 2015 के ईंधन खपत मानकों के अनुसार है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक वाहनों की ईंधन दक्षता को 35% तक बढ़ाना है।

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

हिंदूकुश हिमालय पर्वत

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम, हिंदूकुश हिमालय पर्वत

मेन्स के लिये:

भारत के लिये हिंदूकुश हिमालय पर्वत की भूमिका

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के अनुसार, हिंदूकुश हिमालयन (HKH) पर्वत श्रृंखलाएँ वर्ष 2100 तक अपनी दो-तिहाई बर्फ से विहीन सकती हैं।

  • वर्ष 2100 तक लगभग 2 अरब लोगों को भोजन, पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है।

प्रमुख बिंदु:

HKH क्षेत्र:

  • इसे अक्सर पृथ्वी पर 'तीसरे ध्रुव' के रूप में जाना जाता है, यह भारत, नेपाल और चीन सहित आठ देशों में 3,500 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
  • इसमें अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाद जमे हुए पानी का दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा भंडारण है।
  • इस क्षेत्र के पहाड़ों में 240 मिलियन से अधिक लोग रहते हैं। 1.7 अरब नदी घाटियों में नीचे की ओर रहते हैं, जबकि इन घाटियों में उगाए जाने वाले भोजन तीन अरब लोगों तक पहुँचते हैं।
  • ग्लेशियर कम से कम 10 प्रमुख नदी प्रणालियों को जीवित रखते हैं जो इस क्षेत्र में कृषि गतिविधियों, पेयजल और जलविद्युत उत्पादन पर असर डालते हैं।

Himalaya-Parvat

चुनौतियाँ:

  • ICIMOD’s (इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट) 2019 के आकलन के अनुसार, HKH क्षेत्र 21वीं सदी तक गर्म रहेगा, भले ही दुनिया ग्लोबल वार्मिंग को सहमत 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने में सक्षम हो।
    • पेरिस समझौते का उद्देश्य इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करना है, जबकि वृद्धि को 1.5 डिग्री तक सीमित करने के साधनों का पीछा करना है।
  • भविष्य में भले ही ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगीकरण के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर रखा गया हो, HKH क्षेत्र में वार्मिंग कम से कम 0.3 डिग्री सेल्सियस अधिक होने की संभावना है और उत्तर-पश्चिम हिमालय तथा काराकोरम में कम-से कम 0.7 डिग्री सेल्सियस अधिक है। 

खतरा:

  • हाई माउंटेन एशिया (तिब्बती पठार के आसपास की एशियाई पर्वत श्रृंखला) अगले दशकों में अपने क्रायोस्फीयर का एक बड़ा हिस्सा खो देगी और इस तरह यह जल भंडारण क्षमताओं का एक बड़ा हिस्सा खो देगी। इससे ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में जल संकट बढ़ेगा।
    • क्रायोस्फीयर में पृथ्वी की सतह के कुछ हिस्से शामिल होते हैं जहाँ पानी ठोस रूप में होता है, जिसमें समुद्री बर्फ, झील की बर्फ, नदी की बर्फ, बर्फ का आवरण, ग्लेशियर,, बर्फ की चादरें आदि शामिल हैं।

ग्लेशियरों के पिघलने का कारण:

  • ग्लेशियरों का पिघलने के कारण वातावरण में मानवजनित संशोधन (अर्थात मनुष्यों द्वारा प्रभावित) द्वारा संचालित होती हैं।
  • HKH क्षेत्र पृथ्वी पर सबसे अधिक प्रदूषित स्थानों में एक है। इससे कृषि, जलवायु के साथ-साथ मानसून पैटर्न को भी खतरा है।

अनुशंसाएँ:

  • ग्रीनहाउस गैसों के शुद्ध-शून्य उत्सर्जन को प्राप्त करने के लिये आहार और कृषि पद्धतियों को बदलते हुए ऊर्जा, परिवहन तथा अन्य क्षेत्रों में जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने की सिफारिश की जाती है।
  • इस क्षेत्र के देशों को ब्लैक कार्बन और अन्य वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन को भी कम करने की आवश्यकता है।

समस्या को कम करने के लिये सुझाई गई नीतियाँ और कार्य:

  • किसानों को स्थानीय रूप से उपयुक्त जल भंडारण समाधानों को डिज़ाइन करने और निवेश करने के लिये या कम पानी की खपत वाली कृषि पद्धतियों में अपनाने हेतु समर्थन की आवश्यकता होगी।
  • नए जलविद्युत संयंत्रों और ग्रिडों के डिज़ाइन में बदलती जलवायु और पानी की उपलब्धता को ध्यान में रखना होगा।
  • डेटा और सूचना, क्षमता निर्माण तथा पूर्व चेतावनी प्रणाली एवं बुनियादी ढाँचे के डिज़ाइन में सुधार की आवश्यकता होगी। इसके लिये पर्याप्त धन और बड़े पैमाने पर समन्वय की आवश्यकता है।

भारत द्वारा की गई संबंधित पहल:

  • नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन इकोसिस्टम (NMSHE) जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है।
  • YAH जनादेश हिमालय के ग्लेशियरों, पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों, जैव विविधता और वन्यजीव संरक्षण तथा संरक्षण को बनाए रखना एवं उनकी सुरक्षा के उपायों को विकसित करना है।

एकीकृत पर्वतीय विकास हेतु अंतर्राष्ट्रीय केंद्र

  • ICIMOD हिंदूकुश हिमालय (HKH) के लोगों के लिये काम करने वाला एक अंतर-सरकारी ज्ञान और शिक्षण केंद्र है।
  • यह काठमांडू, नेपाल में स्थित है और आठ क्षेत्रीय सदस्य देशों - अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्याँमार, नेपाल और पाकिस्तान में कार्यरत है।

स्रोत-डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

सेना में महिलाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

सेना विमानन कोर, मानचित्र में सियाचिन ग्लेशियर की अवस्थिति

मेन्स के लिये:

सेना में महिलाओं की भूमिका, लैंगिक समानता से संबंधित प्रश्न

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सेना विमानन कोर में पहली बार हेलीकॉप्टर पायलट ट्रेनिंग के लिये दो महिला अधिकारियों का चयन किया गया है। वे जुलाई 2022 में अपना प्रशिक्षण पूरा करने के बाद फ्रंट-लाइन फ्लाइंग ड्यूटी में शामिल होंगी।

  • वर्तमान तक सेना विमानन कोर  में महिला अधिकारियों को सिर्फ ग्राउंड ड्यूटी दी जाती थी।

प्रमुख बिंदु

सशस्त्र बलों में तैनाती:

  • सेना, वायु सेना और नौसेना ने वर्ष 1992 में महिलाओं को शॉर्ट-सर्विस कमीशन (Short-Service Commission- SSC) अधिकारियों के रूप में शामिल करना शुरू किया।
    • यह पहली बार था जब महिलाओं को मेडिकल स्ट्रीम के बाहर सेना में शामिल होने की अनुमति दी गई थी।
  • सेना में महिलाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण मोड़ वर्ष 2015 में आया जब भारतीय वायु सेना (Indian Air Force- IAF) ने उन्हें लड़ाकू स्ट्रीम में शामिल करने का फैसला किया।
  • वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने केंद्र सरकार को सेना की गैर-लड़ाकू सहायता इकाइयों में महिला अधिकारियों को उनके पुरुष समकक्षों के समान स्थायी कमीशन (Permanent Commission- PC) देने का आदेश दिया था।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने "लैंगिक रूढ़िवादिता" और "महिलाओं के खिलाफ लैंगिंक भेदभाव" के आधार पर महिला अधिकारियों की शारीरिक सीमाओं (Physiological Limitations) के प्रति सरकार के रुख को खारिज कर दिया था।
    • महिला अधिकारियों को भारतीय सेना में उन सभी दस शाखाओं में PC दिया गया है जिन शाखाओं में महिलाओं को SSC के लिये शामिल किया गया है।
    • महिलाएँ अब पुरुष अधिकारियों के समान सभी कमांड नियुक्तियों में पद ग्रहण करने के लिये पात्र हैं, जो उनके लिये उच्च पदों पर आगे पदोन्नति के रास्ता खोलेगा।
  • वर्ष 2021 की शुरुआत में भारतीय नौसेना ने लगभग 25 वर्षों के अंतराल के बाद चार महिला अधिकारियों को युद्धपोतों पर तैनात किया।
    • भारत के  विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य (INS Vikramaditya) और बेड़े के टैंकर आईएनएस शक्ति (INS Shakti) एकमात्र ऐसे युद्धपोत हैं जिन्हें 1990 के दशक के बाद से अपनी पहली महिला चालक दल सौंपी गई है।
  • मई 2021 में सेना ने कोर ऑफ़ मिलिट्री पुलिस में महिलाओं के पहले बैच को शामिल किया, यह पहली बार था जब महिलाएँ गैर-अधिकारी कैडर में सेना में शामिल हुईं।
    • हालाँकि महिलाओं को अभी भी इन्फैंट्री और आर्म्ड कॉर्प्स जैसे लड़ाकू हथियारों के प्रयोग वाले बेड़ों पर नियुक्ति करने की अनुमति नहीं है।

सेना विमानन कोर (Army Aviation Corps- ACC):

संख्या में वृद्धि:

  • पिछले छह वर्षों में यह संख्या लगभग तीन गुना बढ़ गई है और महिलाओं के लिये स्थिर गति से अधिक रास्ते खोले जा रहे हैं।
  • वर्तमान में 9,118 महिलाएँ थल सेना, नौसेना और वायु सेना में सेवारत हैं।
  • वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार, विश्व की दूसरी सबसे बड़ी थल सेना में महिलाओं की संख्या केवल 3.8% है जबकि वायु सेना में इनकी संख्या 13% और नौसेना में 6% है।

लाभ:

  • लैंगिकता बाधक नहीं: यदि आवेदक किसी पद के लिये योग्य है तो लैंगिकता उसकी योग्यता में बाधा नहीं बन सकती। आधुनिक उच्च प्रौद्योगिकी युद्धक्षेत्र में तकनीकी विशेषज्ञता और निर्णय लेने के कौशल साधारण पाशविक शक्ति की तुलना में अधिक मूल्यवान होते जा रहे हैं।
  • सैन्य तैयारी: मिश्रित लैंगिक बल की अनुमति देने से सेना मज़बूत रहती है। वर्तमान में रिटेंशन और भर्ती दरों में गिरावट से सशस्त्र बल गंभीर रूप से परेशान हैं। महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में अनुमति देकर इस परेशानी को कम किया जा सकता है।
  • प्रभावशीलता: महिलाओं पर पूर्ण प्रतिबंध, सेना में कमांडरों की नौकरी के लिये सबसे सक्षम व्यक्ति को चुनने की क्षमता को सीमित करता है।
  • परंपरा: युद्ध इकाइयों में महिलाओं के एकीकरण की सुविधा के लिये प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। समय के साथ संस्कृतियाँ बदलती हैं और इससे मातृ उपसंस्कृति भी विकसित हो सकती है।
  • वैश्विक परिदृश्य: जब वर्ष 2013 में महिलाओं को आधिकारिक तौर पर अमेरिकी सेना में लड़ाकू पदों के लिये योग्य माना गया तो इसे व्यापक रूप से लिंग समानता की दिशा में एक और कदम के रूप में देखा गया। वर्ष 2018 में यूके की सेना ने महिलाओं के लिये करीबी युद्धक भूमिकाओं में सेवा करने पर प्रतिबंध हटा दिया, जिससे उनके लिये विशिष्ट बलों में सेवा करने की राह आसान हुई।

आगे की राह:

  • महिलाओं को इस कारण से कमांड पोस्ट से बाहर रखा जा रहा था कि बड़े पैमाने पर रैंक और कमांडिंग ऑफिसर के रूप में महिलाओं के साथ समस्या होगी। इस प्रकार न केवल सेना की रैंक और फाइल बल्कि बड़े पैमाने पर समाज की संस्कृति, मानदंडों और मूल्यों में परिवर्तन होगा। इन परिवर्तनों को लाने की ज़िम्मेदारी वरिष्ठ सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व की है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, इज़राइल, उत्तर कोरिया, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की सेना उन वैश्विक सेनाओं में से हैं जो युद्ध की स्थिति में महिलाओं को अग्रिम पंक्ति में  नियुक्त करती हैं।
  • हर महिला का अपनी पसंद के व्यवसाय को चुनने और शीर्ष पर पहुँचने का अधिकार है क्योंकि समानता का अधिकार एक संवैधानिक गारंटी है। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स: विश्व बैंक

प्रिलिम्स के लिये 

विश्व बैंक, ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स, सकल घरेलू उत्पाद

मेन्स के लिये

रिपोर्ट में भारत की आर्थिक वृद्धि संबंधी अनुमान और इसके कारण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक ने अपनी जून 2021 की ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्स रिपोर्ट जारी की है, जिसके तहत वर्ष 2021-22 के लिये भारत की GDP वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।

प्रमुख बिंदु

जीडीपी अनुमान

  • भारत के लिये
    • वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिये भारत की अर्थव्यवस्था 8.3%, वर्ष 2022-23 के लिये 7.5% और वर्ष 2023-24 के लिये 6.5% की दर से बढ़ने की उम्मीद है।
  • विश्व के लिये
    • विश्व अर्थव्यवस्था के 5.6% की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जो बीते 80 वर्षों में किसी भी मंदी के बाद सबसे तेज़ विकास दर है।
    • हालाँकि वैश्विक उत्पादन अभी भी वर्ष के अंत तक पूर्व-महामारी अनुमानों से 2% तक कम रहेगा।

Global-Economic-Highlights

कारण

  • वित्त वर्ष 2020-21 के लिये
    •  वर्ष 2019-20 में 4% की वृद्धि दर की तुलना में वित्त वर्ष 2020-21 में 7.3% की सबसे खराब संकुचन दर देखी गई।
    • महामारी की शुरुआत के बाद से किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत पर सबसे अधिक गंभीर प्रभाव देखा गया है, जो कि भारत की आर्थिक रिकवरी में बाधा बन रहा है।
  • वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिये
    • विश्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिये आर्थिक वृद्धि दर अनुमान (8.3 प्रतिशत) में कमी व्यक्त की है, जिसके प्रमुख कारणों में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के गंभीर प्रभाव और मार्च 2021 के बाद लागू किये गए स्थानीय गतिशीलता प्रतिबंध आदि शामिल हैं।
  • वित्त वर्ष 2022-23 के लिये
    • वित्त वर्ष 2022-23 में घरों, कंपनियों और बैंकों की वित्तीय स्थिति पर महामारी के प्रभाव, उपभोक्ता विश्वास का निम्न स्तर और रोज़गार तथा आय संबंधी अनिश्चितता के परिणामस्वरूप विकास दर (7.5%) में कमी होने की आशंका है।

भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम फर्मों (MSMEs) को तरलता प्रदान करने के उपायों की घोषणा की है और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के प्रावधान पर नियामक आवश्यकताओं में ढील दी है।
  • वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में नीतिगत बदलाव करते हुए स्वास्थ्य देखभाल और बुनियादी अवसंरचना पर लक्षित व्यय में बढ़ोतरी की गई, ताकि महामारी के बाद रिकवरी को बढ़ावा दिया जा सके।

सुझाव

  • निम्न आय वाले देशों के लिये वैक्सीन वितरण और ऋण राहत कार्यक्रम में तेज़ी लाने हेतु विश्व स्तर पर समन्वित प्रयास किये जाने आवश्यक हैं।
  • जैसे-जैसे स्वास्थ्य संकट कम होगा, नीति निर्माताओं को महामारी के स्थायी प्रभावों को दूर करने और व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए हरित, लचीले और समावेशी विकास को बढ़ावा देने हेतु कदम उठाने की आवश्यकता होगी।
  • निम्न आय वाले देशों के लिये सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को बढ़ाने, रसद में सुधार करने और स्थानीय खाद्य आपूर्ति को जलवायु की दृष्टि से लचीला बनाने संबंधी नीतियाँ महत्त्वपूर्ण हो सकती हैं।

प्रमुख शब्दावली

  • सकल घरेलू उत्पाद
    • सकल घरेलू उत्पाद किसी देश में आर्थिक गतिविधि का एक माप होता है। यह किसी देश में वस्तुओं और सेवाओं के वार्षिक उत्पादन का कुल मूल्य है। यह उपभोक्ताओं की ओर से आर्थिक उत्पादन को दर्शाता है। 
    • जीडीपी = निजी खपत + सकल निवेश + सरकारी निवेश + सरकारी खर्च + (निर्यात-आयात)।
  • मंदी और अवसाद या महामंदी
    • मंदी: यह एक व्यापक आर्थिक शब्द है, जो एक लंबी अवधि के लिये आर्थिक गतिविधियों में व्यापक पैमाने पर संकुचन को संदर्भित करता है या यह कहा जा सकता है कि जब स्लोडाउन काफी लंबे समय तक बना रहता है, तो इसे मंदी कहा जाता है।
    • अवसाद या महामंदी: इस स्थिति में मंदी का वातावरण बना रहता है तथा अर्थव्यवस्था की स्थिति और भी खराब हो जाती है। यह नकारात्मक आर्थिक विकास की एक लंबे समय तक चलने वाली अवधि है, जिसमें उत्पादन कम-से-कम 12 महीने तक गिरता है और जीडीपी 10% से अधिक गिर जाती है।
  • राजकोषीय नीति
    • राजकोषीय नीति का तात्पर्य आर्थिक स्थितियों को प्रभावित करने के लिये सरकारी खर्च और कर नीतियों के उपयोग से है।
    • मंदी के दौरान सरकार कुल मांग को बढ़ाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये कर दरों को कम करके विस्तारवादी राजकोषीय नीति का प्रयोग करती है।
    • मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी और अन्य विस्तारवादी लक्षणों का मुकाबला करने के लिये सरकार संकुचनकारी राजकोषीय नीति का प्रयोग करती है।

विश्व बैंक

परिचय

  • अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD) तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की स्थापना एक साथ वर्ष 1944 में अमेरिका के न्यू हैम्पशायर में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के दौरान हुई थी।
  • अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD) को ही विश्व बैंक के रूप में जाना जाता है।
  • विश्व बैंक समूह विकासशील देशों में गरीबी को कम करने और साझा समृद्धि का निर्माण करने वाले स्थायी समाधानों के लिये काम कर रहे पाँच संस्थानों की एक अनूठी वैश्विक साझेदारी है।

सदस्य

  • इसके 189 सदस्य देश हैं। भारत भी एक सदस्य देश है।

प्रमुख रिपोर्ट

पाँच प्रमुख संस्थान

  • अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD): यह लोन, ऋण और अनुदान प्रदान करता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA): यह निम्न आय वाले देशों को कम या बिना ब्याज वाले ऋण प्रदान करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC): यह कंपनियों और सरकारों को निवेश, सलाह तथा परिसंपत्तियों के प्रबंधन संबंधी सहायता प्रदान करता है।
  • बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA): यह ऋणदाताओं और निवेशकों को युद्ध जैसे राजनीतिक जोखिम के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने का काम करती है।
  • निवेश विवादों के निपटारे के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICSID): यह निवेशकों और देशों के मध्य उत्पन्न निवेश-विवादों के सुलह और मध्यस्थता के लिये सुविधाएँ प्रदान करता है। 
    • भारत इसका सदस्य नहीं है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

रेलवे को मिला 5 मेगाहर्ट्ज़ स्पेक्ट्रम

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ऑप्टिकल फाइबर

मेन्स के लिये:

रेलवे के आधुनिकीकरण हेतु किये गए सुधार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय रेलवे के संचार और सिग्नलिंग सिस्टम में सुधार के लिये 700 मेगाहर्ट्ज़ फ्रीक्वेंसी बैंड में 5 मेगाहर्ट्ज़ स्पेक्ट्रम के आवंटन को मंज़ूरी दी है।

  • रेलवे ने स्वदेशी रूप से विकसित ट्रेन कोलिज़न अवॉइडेंस सिस्टम (Collision Avoidance System- TCAS) को भी मंज़ूरी दे दी है।

प्रमुख बिंदु:

 संदर्भ:

  • इस परियोजना को पाँच साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसकी अनुमानित लागत लगभग 25,000 करोड़ रुपए है।
  • भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) द्वारा अनुशंसित रॉयल्टी शुल्क और कैप्टिव उपयोग हेतु लाइसेंस शुल्क के लिये दूरसंचार विभाग द्वारा निर्धारित फॉर्मूले के आधार पर स्पेक्ट्रम शुल्क लगाया जाएगा।
  • इस स्पेक्ट्रम के साथ रेलवे अपने मार्गों पर लॉन्ग-टर्म इवोल्यूशन (Long-Term Evolution- LTE) आधारित मोबाइल ट्रेन रेडियो कम्युनिकेशन (MTRC) शुरू करेगा।
    • रेलवे वर्तमान में अपने संचार नेटवर्क के लिये ऑप्टिकल फाइबर पर निर्भर है परंतु नए स्पेक्ट्रम के आवंटन के साथ यह वास्तविक समय के आधार पर उच्च गति वाले रेडियो का उपयोग करने में सक्षम होगा।
    • LTE चौथी पीढ़ी का (4G) वायरलेस मानक है जो तीसरी पीढ़ी (3G) तकनीक की तुलना में सेलफोन और अन्य सेलुलर उपकरणों के लिये बढ़ी हुई नेटवर्क क्षमता तथा गति प्रदान करता है।

लाभ:

  • निर्बाध संचार:
    • इसका उपयोग आधुनिक सिग्नलिंग और ट्रेन सुरक्षा प्रणालियों के लिये किया जाएगा तथा लोको पायलटों एवं गार्डों के बीच निर्बाध संचार सुनिश्चित किया जाएगा।
    • भारतीय रेलवे के लिये LTE का उद्देश्य परिचालन, कुशल अनुप्रयोगों के लिये सुरक्षित तथा विश्वसनीय वोईस, वीडियो एवं डेटा संचार सेवाएँ प्रदान करना है।
  • दुर्घटनाओं और देरी में कमी:
    • यह लोको पायलट, स्टेशन मास्टर और नियंत्रण केंद्र के बीच रियल-टाइम बातचीत को सक्षम करके ट्रेन दुर्घटनाओं को रोकने तथा देरी को कम करने में मदद करेगा।
  • इंटरनेट ऑफ थिंग्स:
    • यह रेलवे को इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) आधारित रिमोट एसेट मॉनीटरिंग, विशेष रूप से कोचों, वैगनों और लोको की निगरानी करने में सक्षम बनाएगा तथा कुशल, सुरक्षित एवं तेज़ गति से ट्रेन संचालन सुनिश्चित करने के लिये कोचों में सीसीटीवी कैमरों की लाइव वीडियो फीड की निगरानी करेगा।
      • IoT दूसरों के साथ संचार करने के बाद बंद निजी इंटरनेट कनेक्शन पर उपकरणों की अनुमति देता है और इंटरनेट ऑफ थिंग्स उन नेटवर्क को एक साथ लाता है। यह उपकरणों के लिये न केवल एक समान नेटवर्क में बल्कि विभिन्न नेटवर्किंग प्रकारों में संचार करने का अवसर देता है जिससे एक मज़बूत नेटवर्क बनता है।

ट्रेन कोलिज़न अवॉइडेंस सिस्टम (TCAS).

  • यह एक माइक्रोप्रोसेसर आधारित नियंत्रण प्रणाली है जो लगातार गति, यात्रा की दिशा, तय की गई दूरी, पारित सिग्नल के पहलू और मोटरमैन की सतर्कता की निगरानी करता है तथा इस प्रकार रेलवे प्रणाली की सुरक्षा को बढ़ाता है।
  • यह मौज़ूदा बुनियादी ढाँचे का उपयोग करके अधिक ट्रेनों को समायोजित करने के लिये सुरक्षा में सुधार और लाइन क्षमता बढ़ाने में मदद करेगा। इसके अलावा आधुनिक रेल नेटवर्क के परिणामस्वरूप परिवहन लागत कम होगी तथा दक्षता में सुधार होगा।

रेडियो स्पेक्ट्रम (Radio Spectrum):

  • रेडियो स्पेक्ट्रम (इसे रेडियो फ्रीक्वेंसी या RF के रूप में भी जाना जाता है) विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम का एक हिस्सा है, इस आवृत्ति रेंज में विद्युत चुंबकीय तरंगों को रेडियो फ्रीक्वेंसी बैंड या केवल  'रेडियो तरंग' कहा जाता है।
    • विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम में रेडियो तरंगों की तरंगदैर्ध्य सबसे लंबी होती है। इनकी खोज 1880 के दशक के अंत में हेनरिक हर्ट्ज़ ने की थी।
  • RF बैंड 30 किलोहर्ट्ज़ और 300 गीगाहर्ट्ज़ के बीच की सीमा में फैले हुए हैं।

RF-Band

  • विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं के बीच हस्तक्षेप को रोकने के लिये रेडियो फ़्रीक्वेंसी बैंड के निर्माण और प्रसारण को राष्ट्रीय कानूनों द्वारा कड़ाई से विनियमित किया जाता है, जिसे एक अंतर्राष्ट्रीय निकाय, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा समन्वित किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

देहिंग पटकाई और रायमोना राष्ट्रीय उद्यान: असम

प्रिलिम्स के लिये

देहिंग पटकाई और रायमोना राष्ट्रीय उद्यान

मेन्स के लिये

राष्ट्रीय उद्यान का आशय और उसके निर्धारण का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, असम सरकार ने देहिंग पटकाई को राज्य के 7वें राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया।

  • इससे पूर्व विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) के अवसर पर पश्चिमी असम के कोकराझार ज़िले में रायमोना रिज़र्व फॉरेस्ट को राष्ट्रीय उद्यान (6वाँ) के रूप में अपग्रेड किया गया था।

राष्ट्रीय उद्यान

  • राज्य सरकार किसी भी क्षेत्र, चाहे वह किसी अभयारण्य के भीतर हो अथवा बाहर, को उसके पारिस्थितिक, जीव, पुष्प, या प्राणी संघ के महत्त्व अथवा उसमें मौजूद वन्य जीवन या पर्यावरण के विकास, संरक्षण एवं प्रचार सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित कर सकती है।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन द्वारा अनुमत लोगों के अतिरिक्त राष्ट्रीय उद्यान के अंदर किसी भी मानव गतिविधि की अनुमति नहीं होती है।
  • वन्यजीव अभयारण्य के अंदर कुछ मानवीय गतिविधियों की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन राष्ट्रीय उद्यान में किसी भी प्रकार की मानवीय गतिविधि की अनुमति नहीं होती है।

प्रमुख बिंदु

देहिंग पटकाई राष्ट्रीय उद्यान के विषय में

  • अवस्थिति
    • यह देहिंग पटकाई एलीफैंट रिज़र्व के भीतर स्थित है और ऊपरी असम के कोयले एवं तेल-समृद्ध ज़िलों (डिब्रूगढ़, तिनसुकिया एवं शिवसागर) में फैला हुआ है।
    • डिगबोई की एशिया की सबसे पुरानी रिफाइनरी और लीडो की 'ओपन कास्ट' कोयला खान इस अभयारण्य के पास ही स्थित हैं।
    • देहिंग पटकाई वन्यजीव अभयारण्य को जेयपोर वर्षावन के रूप में भी जाना जाता है।
  • नामकरण
    • देहिंग उस नदी का नाम है जो इस जंगल से होकर बहती है और पटकाई वह पहाड़ी है जिसके तल पर अभयारण्य स्थित है।
  • वनस्पति
    • इस क्षेत्र को असम में तराई के वर्षावन क्षेत्र का अंतिम शेष हिस्सा माना जाता है।
  • प्राणीजगत
    • इस क्षेत्र में पाए जाने वाले दुर्लभ जीवों में चीनी पैंगोलिन, फ्लाइंग फॉक्स, जंगली सुअर, सांभर, बार्किंग डियर, गौर, सीरो और मलय विशाल गिलहरी आदि शामिल हैं।
    • यह भारत का एकमात्र अभयारण्य है जो जंगली बिल्लियों की सात अलग-अलग प्रजातियों का घर है, जिसमें बाघ, तेंदुआ, क्लाउडेड तेंदुआ, तेंदुआ बिल्ली, गोल्डन कैट, जंगली बिल्ली और मार्बल कैट शामिल हैं।
    • यहाँ पाए जाने वाला एक प्राइमेट- असमिया मकाक को IUCN की रेड लिस्ट में ‘संकटग्रस्त’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
    • इसमें दुर्लभ लुप्तप्राय व्हाइट विंग्ड वुड डक भी मौजूद है।

रायमोना राष्ट्रीय उद्यान

  • अवस्थिति
    • रायमोना राष्ट्रीय उद्यान बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र के भीतर स्थिति है।
    • पार्क के क्षेत्र में अधिसूचित रिपू ​​रिज़र्व फॉरेस्टका उत्तरी भाग शामिल है, जो भारत-भूटान सीमा पर फैले मानस नेशनल पार्क के लिये बफर बनाता है।
  • सीमाएँ
    • यह पश्चिम में सोनकोश नदी और पूर्व में सरलभंगा नदी से घिरा है।
      • दोनों नदियाँ ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ हैं।
    • पेकुआ नदी रायमोना की दक्षिणी सीमा का निर्धारण करती है।
  • ट्रांसबाउंड्री कंज़र्वेशन लैंडस्केप 
    • यह फिप्सू वन्यजीव अभयारण्य और भूटान के जिग्मे सिंग्ये वांगचुक राष्ट्रीय उद्यान के समीपवर्ती वन क्षेत्र के साथ सीमा साझा करता है, जो 2,400 वर्ग किलोमीटर से अधिक का एक ट्रांसबाउंड्री कंज़र्वेशन लैंडस्केप बनाता है।
  • वनस्पति और प्राणीजगत
    • यह एक स्थानिक प्रजाति गोल्डन लंगूर के लिये प्रसिद्ध है जिसे बोडोलैंड क्षेत्र के शुभंकर के रूप में नामित किया गया है।
    • इसमें एशियाई हाथी, रॉयल बंगाल टाइगर, क्लाउडेड लेपर्ड, इंडियन गौर, जंगली जल भैंस, चित्तीदार हिरण, हॉर्नबिल, तितलियों की 150 से अधिक प्रजातियाँ, पक्षियों की 170 प्रजातियाँ, पौधों की 380 किस्में और ऑर्किड भी शामिल हैं।

असम के राष्ट्रीय उद्यान

  • असम में अब मध्य प्रदेश (12 राष्ट्रीय उद्यान) और अंडमान (9 राष्ट्रीय उद्यान) के बाद सबसे अधिक वन्य राष्ट्रीय उद्यान मौजूद हैं।
  • राज्य के सात राष्ट्रीय उद्यानों में देहिंग पटकाई, रायमोना, काजीरंगा, मानस, नामेरी, ओरंग और डिब्रू-सैखोवा शामिल हैं।
  • काजीरंगा और मानस यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल हैं। 

Assam-National-Park

स्रोत: द हिंदू


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