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डेली न्यूज़

  • 10 Dec, 2021
  • 59 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

मौद्रिक नीति रिपोर्ट : भारतीय रिज़र्व बैंक

प्रिलिम्स के लिये:

मौद्रिक नीति रिपोर्ट,RBI, GDP, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय

मेन्स के लिये:

मौद्रिक नीति समीक्षा का उद्देश्य

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वर्ष 2021 के दिसंबर माह के लिये मौद्रिक नीति रिपोर्ट (Monetary Policy Report- MPR) जारी की है।

  • इसने लगातार नौवीं बार नीतिगत दर को अपरिवर्तित रखते हुए एक उदार रुख को बनाए रखा है।

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प्रमुख बिंदु

  • अपरिवर्तित रेट/दर:
    • रेपो दर - 4%.
    • रिवर्स रेपो दर - 3.35%.
    • सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) - 4.25%.
    • बैंक दर- 4.25%.
  • GDP आकलन:
  • मुद्रास्फीति:
  • परिवर्तनीय दर प्रतिवर्ती रेपो (Variable Rate Reverse Repos):
    • इसने दिसंबर 2021 के अंत तक VRRR के तहत अवशोषित की जाने वाली राशि को 7.5 लाख करोड़ रुपए तक बढ़ा दिया है।
      • अगस्त 2021 में अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करने के लिये RBI ने फिक्स्ड रेट ओवरनाइट रिवर्स रेपो की तुलना में अधिक यील्ड की संभावनाओं के कारण एक परिवर्तनीय दर रिवर्स रेपो (VRRR) कार्यक्रम आयोजित करने की घोषणा की।
  • अनुकूल रुख:
    • RBI ने अर्थव्यवस्था में स्थायी सुधार होने तक एक उदार रुख जारी रखने का फैसला लिया है।
      • एक उदार रुख का अर्थ है कि मौद्रिक नीति समिति (MPC) या तो दरों को कम करने या उन्हें अपरिवर्तित रखने का निर्णय ले सकती है।
    • महत्त्व:
      • यह अल्पकालिक ब्याज दरों को कम करके उधार लेने के लिये धन को कम खर्चीला बनाकर उपभोक्ताओं और व्यवसायों द्वारा अधिक खर्च को प्रोत्साहित करता है।
      • जब बैंकों के माध्यम से पैसा आसानी से उपलब्ध हो जाता है, तो अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति बढ़ जाती है, परिणामस्वरूप व्यय में वृद्धि होती है।
      • यह राष्ट्रीय आय और धन/मुद्रा की मांग के सकारात्मक कार्य संबंध में राजकोषीय भंडार को बढ़ाने की अनुमति देता है।
      • यह राष्ट्रीय मुद्रा भंडार को सक्रिय करने में मदद करता है और आर्थिक मंदी से बचने के लिये कमज़ोर समग्र मांग को रोकता है।
      • इसलिये यह कहा जा सकता है कि एक उदार दृष्टिकोण भारत के विकास को बेहतर बनाने में मदद करेगा।
  • पूंजी लगाने की अनुमति नहीं:
    • RBI ने बैंकों को अपनी विदेशी शाखाओं में पूंजी डालने के साथ-साथ कुछ नियामक पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करने के अंतर्गत अपनी पूर्व स्वीकृति के बिना मुनाफे को प्रत्यावर्तित करने की अनुमति दी।
      • वर्तमान में भारत में निगमित बैंक अपनी विदेशी शाखाओं और सहायक कंपनियों में पूंजी लगा सकते हैं, इनमें अपने लाभ को बनाए रख सकते हैं और भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्वानुमोदन से मुनाफे को प्रत्यावर्तित/स्थानांतरित कर सकते हैं।
    • बैंकों को परिचालनात्मक लचीलापन (Operational Flexibility) प्रदान करने की दृष्टि से, यह निर्णय लिया गया है कि यदि बैंक विनियामक पूंजी की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं तो उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्वानुमोदन की आवश्यकता नहीं है।

मौद्रिक नीति रिपोर्ट

  • मौद्रिक नीति रिपोर्ट को RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा प्रकाशित किया जाता है। MPC विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिये RBI अधिनियम, 1934 के तहत एक वैधानिक और संस्थागत ढाँचा है।
  • MPC, 4% के मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आवश्यक नीति ब्याज़ दर (रेपो दर) निर्धारित करती है, जिसमें दोनों तरफ 2% अंक होते हैं। RBI का गवर्नर MPC का पदेन अध्यक्ष है।

प्रमुख शब्दावली

  • रेपो और रिवर्स रेपो दर:
    • रेपो दर वह दर है जिस पर किसी देश का केंद्रीय बैंक (भारत के मामले में भारतीय रिज़र्व बैंक) किसी भी तरह की धनराशि की कमी होने पर वाणिज्यिक बैंकों को धन देता है। इस प्रक्रिया में केंद्रीय बैंक प्रतिभूति खरीदता है।
    • रिवर्स रेपो दर वह दर है जिस पर RBI देश के भीतर वाणिज्यिक बैंकों से धन उधार लेता है।
  • बैंक दर:
    • यह वाणिज्यिक बैंकों को निधियों को उधार देने के लिये RBI द्वारा प्रभारित दर है।
  • सीमांत स्थायी सुविधा (MSF):
    • MSF ऐसी स्थिति में अनुसूचित बैंकों के लिये आपातकालीन स्थिति में RBI से ओवरनाइट (रातों-रात) ऋण लेने की सुविधा है जब अंतर-बैंक तरलता पूरी तरह से कम हो जाती है।
  • खुला बाज़ार परिचालन:
    • ये RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री/खरीद के माध्यम से बाज़ार से रुपए की तरलता की स्थिति को समायोजित करने के उद्देश्य से किये गए बाज़ार संचालन हैं।
  • सरकारी प्रतिभूति:
    • सरकारी प्रतिभूतियाँ केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाने वाली एक व्यापार योग्य साधन होती हैं। ये सरकार के ऋण दायित्व को स्वीकार करती हैं। 
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक:
    • यह खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य परिवर्तन को मापता है। यह राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी किया जाता है।
    • CPI खाद्य, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में अंतर की गणना करता है, जिसे भारतीय उपभोक्ता उपभोग के लिये खरीदते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

संशोधित कोयला भंडारण मानदंड

प्रिलिम्स के लिये

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, कोयला

मेन्स के लिये

कोयला संकट और इसके निहितार्थ, संशोधित कोयला भंडारण मानदंड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) ने विभिन्न संयंत्रों में कोयला स्टॉक संकट की स्थिति की पुनरावृत्ति को रोकने के उद्देश्य से ताप विद्युत उत्पादन संयंत्रों में ‘कोल स्टॉकिंग मानदंडों’ को संशोधित किया है।

  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA), विद्युत अधिनियम 2003 के तहत स्थापित एक संगठन है। इसका उद्देश्य बिजली उत्पादन के लिये उपलब्ध संसाधनों के इष्टतम उपयोग हेतु प्रत्येक पाँच वर्ष में एक ‘राष्ट्रीय बिजली योजना’ तैयार करना है।

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प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि
    • अक्तूबर 2021 में भारत के ‘थर्मल पावर प्लांटों’ को कोयले की भारी कमी का सामना करना पड़ा था, इस संकट के तहत थर्मल स्टेशनों में कोयले का स्टॉक औसतन चार दिनों तक कम हो गया था।
    • मांग में तीव्र वृद्धि, आयातित कोयले की कीमत में वृद्धि और मानसून से पहले विद्युत स्टेशनों द्वारा कम कोयले की खरीद आदि कम स्टॉक की स्थिति हेतु उत्तरदायी कारक थे।
    • यह भारत में सबसे बड़े कोयला संकटों में से एक था, जिसने आर्थिक रिकवरी को धीमा कर दिया और कुछ व्यवसायों के उत्पादन में कमी को प्रभावित किया।
    • कम कोयला स्टॉक की स्थिति ने कई राज्यों को ऊर्जा एक्सचेंज पर बिजली खरीदने के लिये मज़बूर किया था, अक्तूबर माह में बिजली की औसत बाज़ार समाशोधन कीमत 16.4 रुपए प्रति यूनिट थी, जिसने सरकार को कोयला स्टॉकिंग मानदंडों को संशोधित करने हेतु प्रेरित किया गया था।
  • पुराने मानदंड:
    • पूर्व में कोयले के स्रोत से संयंत्र की दूरी के आधार पर 15-30 दिनों के कोयला स्टॉक को बनाए रखना अनिवार्य था। 
    • इससे पहले पिट हेड स्टेशनों (Pit Head Stations) में स्थित बिजली संयंत्रों के लिये 15 दिनों के लिये कोयला स्टॉक  रखना अनिवार्य था, जबकि खदानों से 200 किमी. के भीतर स्थित संयंत्रों के लिये इस आवश्यकता को बढ़ाकर 20 दिन, 1,000 किमी के भीतर वाले संयंत्रों के लिये 25 दिन और खदानों से अधिक दूर स्थित संयंत्रों के लिये 30 दिन किया गया था। 
  • संशोधित मानदंड:
    • यह प्रति वर्ष  फरवरी से जून तक बिजली संयंत्रों द्वारा बनाए जाने वाले पिट हेड स्टेशनों (Pit Head Stations) पर 17 दिनों और नॉन-पिट हेड स्टेशनों (Non-Pit Head Stations)  पर 26 दिनों के कोयले स्टॉक को बनाए रखना अनिवार्य करता है।
      • नॉन-पिट हेड प्लांट ऐसे बिजली संयंत्र हैं जो कोयले की खदान 1,500 किमी. से अधिक दूर स्थित होते हैं।
    • किसी भी दिन बिजली संयंत्र में कोयले की दैनिक आवश्यकता की गणना 85% प्लांट लोड फैक्टर (Plant Load Factor- PLF) के आधार पर की जाएगी।
      • पूर्ववर्ती मानदंडों के तहत पिछले सात दिनों में न्यूनतम 55% PLF पर संयंत्र की औसत खपत पैटर्न के अनुसार कोयला स्टॉक की मात्रा निर्धारित की गई थी।
      • PLF, संयंत्र द्वारा उत्पन्न वास्तविक ऊर्जा और अधिकतम संभव ऊर्जा के बीच का अनुपात है जो संयंत्र द्वारा उसकी निर्धारित शक्ति पर कार्य करने हेतु पूरे एक वर्ष की अवधि के लिये उत्पन्न किया जा सकता है।
    • नई कार्यप्रणाली का तात्पर्य है कि जिन बिजली संयंत्रों की उपयोगिता दर कम है, उन्हें पहले की तुलना में अधिक कोयले का स्टॉक करना होगा।
    • बिजली संयंत्रों को इन मापदंडों का सख्ती से पालन करना होगा, ऐसा न करने पर जुर्माना लगाया जाएगा यह एक ऐसा पहलू है जो CEA के नियमों में अब तक मौजूद नहीं था।
  • महत्त्व:
    • यह ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर अंकुश लगाएगा जिसका सामना हाल ही में देश को करना पड़ा था, जब मानसून के बाद देश में 135 कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में से कई महत्त्वपूर्ण कोयला स्टॉक स्तर के कम होने के कारण केवल तीन से चार दिनों की आपूर्ति को पूरा करने के लिये पर्याप्त थे।
    • कोयले के भंडारण के नियमों में ढील से उत्पादन स्टेशनों के बीच ईंधन का बेहतर वितरण होगा।
      • यह कमी को रोकेगा और देश में मांग की स्थिति के बावजूद निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करेगा।
    • यह प्रत्येक बिजली संयंत्र के लिये ईंधन की आवश्यकता को भी कम करेगा और सभी स्टेशनों के बीच बेहतर वितरण को सक्षम करेगा।

कोयला

  • यह सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। इसका उपयोग घरेलू ईंधन के रूप में, लोहा, इस्पात, भाप इंजन जैसे उद्योगों में और बिजली पैदा करने के लिये किया जाता है। कोयले से से उत्पन्न बिजली को ‘थर्मल पावर’ कहते हैं।
  • आज हम जिस कोयले का उपयोग कर रहे हैं वह लाखों साल पहले बना था, जब विशाल फर्न और दलदल पृथ्वी की परतों के नीचे दब गए थे। इसलिये कोयले को बरीड सनशाइन (Buried Sunshine) भी कहा जाता है।
  • चीन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और भारत दुनिया के प्रमुख कोयला उत्पादकों में शामिल हैं।
  • भारत के प्रमुख कोयला उत्पादक क्षेत्रों में झारखंड का रानीगंज, झरिया, धनबाद और बोकारो शामिल हैं।
  • कोयले को भी चार रैंकों में वर्गीकृत किया गया है: एन्थ्रेसाइट, बिटुमिनस, सबबिटुमिनस और लिग्नाइट। यह रैंकिंग कोयले में मौजूद कार्बन के प्रकार व मात्रा और कोयले की उष्मा ऊर्जा की मात्रा पर निर्भर करती है।

स्रोत्र: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

'मैं भी डिजिटल 3.0' अभियान

प्रिलिम्स के लिये

प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि’ योजना, 'मैं भी डिजिटल 3.0' अभियान

मेन्स के लिये

स्ट्रीट वेंडर्स की आर्थिक सहायता हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने ‘प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि’ योजना के तहत 'मैं भी डिजिटल 3.0' अभियान शुरू किया।

प्रमुख बिंदु

  • मैं भी डिजिटल 3.0
    • यह स्ट्रीट वेंडर्स के लिये डिजिटल ऑनबोर्डिंग एंड ट्रेनिंग (DOaT) हेतु एक विशेष अभियान है।
    • इसका उद्देश्य उन स्ट्रीट वेंडर्स को डिजिटल रूप से शामिल करना है, जिन्हें पहले ही प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत ऋण प्रदान किया जा चुका है।
    • इसके तहत ऋण देने वाली संस्थाओं (LIs) को संवितरण के समय एक स्थायी क्यूआर कोड और ‘एकीकृत भुगतान इंटरफेस’ (UPI) आईडी जारी करने और डिजिटल लेनदेन के संचालन में लाभार्थियों को प्रशिक्षित करने का निर्देश दिया गया है।
    • इस योजना के कार्यान्वयन के लिये एक एकीकृत आईटी प्लेटफॉर्म विकसित किया गया है। स्ट्रीट वेंडर्स सीधे प्रधानमंत्री स्वनिधि पोर्टल के माध्यम से ऋण के लिये आवेदन कर सकते हैं।
  • प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि
    • परिचय:
      • इसे आत्मानिर्भर भारत अभियान के तहत आर्थिक प्रोत्साहन- II के एक हिस्से के रूप में घोषित किया गया था।
      • इसे 1 जून, 2020 से लागू किया गया है, ताकि स्ट्रीट वेंडरों को उनकी आजीविका को फिर से शुरू करने के लिये किफायती कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान किया जा सके, जो कोविड -19 लॉकडाउन के कारण प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए हैं। इसे 700 करोड़ रुपए के स्वीकृत बजट के साथ लागू किया गया था।
    • उद्देश्य
      • 50 लाख से अधिक स्ट्रीट वेंडरों को लाभान्वित करना, जो 24 मार्च, 2020 को या उससे पहले शहरी क्षेत्रों में वेंडिंग कर रहे थे, जिनमें आसपास के शहरी/ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी शामिल थे।
      • 1,200 रुपए प्रति वर्ष की राशि तक कैश-बैक प्रोत्साहन के माध्यम से डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना।।
        • 31 जनवरी, 2021 तक, पीएम स्वनिधि योजना के तहत 13.82 लाख लाभार्थियों को 1,363.88 करोड़ रुपए के ऋण वितरित किये गये हैं।
    • विशेषताएँ:
      • विक्रेता 10,00 रुपए तक का कार्यशील पूंजी ऋण प्राप्त कर सकते हैं। जो एक वर्ष के कार्यकाल में मासिक किस्तों में चुकाया जा सकता है।
      • ऋण को समय पर/जल्दी चुकता करने पर, त्रैमासिक आधार पर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से लाभार्थियों के बैंक खातों में 7% प्रतिवर्ष की ब्याज सब्सिडी जमा की जाएगी।
      • ऋण की शीघ्र अदायगी पर कोई ज़ुर्माना नहीं लगेगा। विक्रेता ऋण की समय पर/शीघ्र अदायगी पर बढ़ी हुई ऋण सीमा की सुविधा का लाभ उठा सकते हैं।
    • चुनौतियाँ:
      • कई बैंक 100 और रु. 500. रुपए के बीच के आवेदन स्टांप पेपर पर मांग रहे हैं। 
      • बैंकों द्वारा पैन कार्ड मांगने और यहाँ तक ​​कि आवेदकों के CIBIL या क्रेडिट स्कोर की जाँच करने अथवा राज्य के अधिकारियों द्वारा मतदाता पहचान पत्र मांगने के भी मामले सामने आए हैं, जबकि प्रायः प्रवासी विक्रेता अपने साथ ये दस्तावेज़ नहीं रखते हैं।
        • CIBIL स्कोर किसी के क्रेडिट इतिहास का मूल्यांकन है और ऋण के लिये उनकी पात्रता निर्धारित करता है।
      • पुलिस और नगर निगम के अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न की शिकायतें भी सामने आई हैं।

स्ट्रीट वेंडर्स के लिये अन्य पहलें:

आगे की राह

  • PM SVANidhi योजना स्थायी होनी चाहिये: इसे 'अल्ट्रा-सूक्ष्म उद्योगों' (स्ट्रीट वेंडर्स) के लिये एक स्थायी विकास योजना के रूप में फिर से तैयार किया जाना चाहिये। यह उन्हें स्थायी आधार पर ऋण प्राप्त करने की अनुमति देगा।
  • निगरानी समितियों में अखिल भारतीय विक्रेता प्रतिनिधियों को शामिल करना: पीएम स्वनिधि योजना दिशा-निर्देशों की धारा 19 (इसकी प्रगति का आकलन करने के लिये केंद्रीय, राज्य और स्थानीय निगरानी समितियों की स्थापना) को संशोधित किया जाना चाहिये ताकि वेंडर यूनियनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जा सके। ये योजना की अवधारणा में शामिल थे, इसलिये इसके कार्यान्वयन में भी शामिल किया जाना चाहिये।
  • स्थानीय प्रशासन का स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट के अनुसार काम करना: स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट, 2014 में विभिन्न ज़िलों में टीवीसी (टाउन वेंडिंग कमेटी) के गठन की परिकल्पना की गई है ताकि सरकार द्वारा पहचाने गए सभी स्ट्रीट वेंडर्स को मानदंडों के अधीन वेंडिंग ज़ोन में समायोजित किया जा सके।
    • विक्रेताओं की व्यापक बेदखली और उत्पीड़न से बचने के लिये योजना के साथ-साथ संबंधित प्रक्रियाओं जैसे कि वेंडिंग ज़ोन घोषित करना, राज्य के नियमों, योजनाओं और उप-नियमों का मसौदा तैयार करने को भी इस अधिनियम के तहत शामिल किया जाना चाहिये।

स्रोत- पी.आई.बी


शासन व्यवस्था

वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक 2021

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक 2021, नीति आयोग

मेन्स के लिये:

वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक 2021 में विभिन्न देशों एवं भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक (Global Health Security Index) 2021 जारी किया गया है।

  • भारत में नीति आयोग स्वयं का स्वास्थ्य सूचकांक जारी करता है।

प्रमुख बिंदु

  • वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक 2021 
    • परिचय:
      • इसमें 195 देशों में स्वास्थ्य सुरक्षा और संबंधित क्षमताओं का आकलन और बेंचमार्किंग की गई है।
      • इसे न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव (NTI) और जॉन्स हॉपकिन्स सेंटर की साझेदारी में विकसित किया गया है।
        • NTI एक गैर-लाभकारी वैश्विक सुरक्षा संगठन है जो मानवता को खतरे में डालने वाले परमाणु एवं जैविक खतरों को कम करने पर केंद्रित है।
        • जॉन्स हॉपकिन्स सेंटर सार्वजनिक स्वास्थ्य में संचार की महत्त्वपूर्ण भूमिका को पहचानने के लिये बनाया गया था।

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  • रैंकिंग के तरीके:
    • वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक छह श्रेणियों में देशों की स्वास्थ्य सुरक्षा और क्षमताओं का आकलन करता है।
    • छह श्रेणियाँ इस प्रकार हैं:
      • रोकथाम: रोगजनकों के उद्भव की रोकथाम।
      • पता लगाना और रिपोर्टिंग: संभावित अंतर्राष्ट्रीय चिंता की महामारी के लिये प्रारंभिक पहचान और रिपोर्टिंग।
      • तीव्र प्रतिक्रिया: एक महामारी के प्रसार की तीव्र प्रतिक्रिया और शमन।
      • स्वास्थ्य प्रणाली: बीमारों के इलाज और स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिये पर्याप्त और मज़बूत स्वास्थ्य प्रणाली।
      • अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों का अनुपालन: राष्ट्रीय क्षमता में सुधार के लिये प्रतिबद्धता, कमियों को दूर करने हेतु वित्तीय योजनाओं और वैश्विक मानदंडों का पालन करना।
      • पर्यावरण जोखिम: समग्र पर्यावरण जोखिम और जैविक खतरों के प्रति देश की संवेदनशीलता।
    •  सूचकांक 0-100 अंकों के आधार पर देशों की क्षमताओं का आकलन करता है, जिसमें 100 अंक उच्चतम स्तर की तैयारी का प्रतिनिधित्व करता है। वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा (GHS) सूचकांक की स्कोरिंग प्रणाली में तीन स्तर शामिल हैं:
      • निम्न स्कोर: 0 और 33.3 के बीच अंक प्राप्त करने वाले देश निचले स्तर पर हैं।
      • मध्यम स्कोर: 33.4 और 66.6 के बीच अंक प्राप्त करने वाले देश मध्यम  स्तर पर हैं।
      • उच्च स्कोर: 66.7 और 100 के बीच स्कोर करने वाले देश उच्च या "शीर्ष" स्तर पर हैं।
  • रैंकिंग:
    • भारत:
      • भारत का स्कोर 42.8 (100 में से) है और वर्ष 2019 की तुलना में इसमें 0.8 अंकों की गिरावट हुई है।
    • विश्व:
      • भारत के तीन पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव ने अपने स्कोर में 1-1.2 अंकों तक का सुधार किया है।
      • GHS सूचकांक स्कोर के मामले में विश्व का समग्र प्रदर्शन वर्ष 2021 में घटकर 38.9 अंक (100 में से) हो गया है, जबकि GHS सूचकांक, 2019 में यह स्कोर 40.2  था।
      • वर्ष 2021 में किसी भी देश ने रैंकिंग के शीर्ष स्तर में अंक प्राप्त नहीं किया है और किसी भी देश ने 75.9 अंक से अधिक अंक प्राप्त नहीं किया।
  • देशों का समग्र प्रदर्शन:
    • भविष्य की महामारी
      • समग्र आय स्तर वाले देश भविष्य की एपिडेमिक और पेंडेमिक के खतरों से निपटने के लिये व्यापक रूप से तैयार नहीं हैं।
        • जिसके परिणामस्वरूप संक्रामक रोगों के कारण अगले दशक में वैश्विक अर्थव्यवस्था पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है।
    • अपर्याप्त स्वास्थ्य क्षमताएँ:
      • सभी देशों में स्वास्थ्य क्षमताएँ अपर्याप्त थीं। 
        • एपिडेमिक और पेंडेमिक की तैयारी के लिये 195 देशों की क्षमता को मापने वाले सूचकांक के अनुसार, इस अपर्याप्तता ने विश्व को भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों के प्रति गंभीर रूप से सुभेद्य बना दिया।
    • राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल:
      • मूल्यांकन किये गए देशों में से 65% ने महामारी या महामारी वाले रोगों के लिये एक व्यापक राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना को प्रकाशित और कार्यान्वित नहीं किया।
    • चिकित्सा प्रत्युपाय/प्रतिवाद:
      • 73% देशों के पास सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान, टीके और एंटीवायरल दवाओं जैसे चिकित्सा प्रतिवादों हेतु  शीघ्र अनुमोदन प्रदान नहीं हुआ।
      • इस प्रकार, विश्व भविष्य में स्वास्थ्य आपात स्थितियों के प्रति गंभीर रूप से सुभेद्य है।
    • वित्तीय निवेश की कमी:
      • उच्च आय वाले देशों सहित अधिकांश देशों ने महामारी या महामारी की तैयारियों को मज़बूत करने के लिये समर्पित वित्तीय निवेश नहीं किया है।
        • मूल्यांकन में शामिल 195 देशों में से लगभग 79% ने महामारी के खतरों से निपटने के लिये अपनी क्षमता में सुधार करने हेतु  पिछले तीन वर्षों के भीतर राष्ट्रीय धन आवंटित नहीं किया था।
    • सरकारों में जनता का विश्वास:
      • 82% देशों में सरकार के प्रति जनता का विश्वास निम्न से मध्यम स्तर पर है।
        • स्वास्थ्य आपात स्थिति प्रभावी शासन के साथ एक मज़बूत सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे की मांग करती है। लेकिन सरकार पर भरोसा, जो कि कोविड-19 के प्रति देशों की प्रतिक्रियाओं की सफलता से जुड़ा एक प्रमुख कारक रहा है, कम हुआ है तथा इसमें निरंतरता बनी हुई है।
  • सिफारिशें:
    • स्वास्थ्य सुरक्षा निधि का आवंटन:
      • देशों को राष्ट्रीय बजट में स्वास्थ्य सुरक्षा निधि आवंटित करनी चाहिये तथा अपने जोखिमों की पहचान कर अंतराल को भरने के लिये एक राष्ट्रीय योजना विकसित करने हेतु GHS 2021 सूचकांक की सहायता से आकलन करना चाहिये।
    • अतिरिक्त सहायता:
      • GHS सूचकांक का उपयोग अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता वाले देशों की पहचान करने हेतु किया जाना चाहिये।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी:
      • निजी क्षेत्र को सरकारों के साथ साझेदारी करने के अवसर तलाशने हेतु भी ‘वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक’ का उपयोग करना चाहिये।
    • नई वित्त व्यवस्था:
      • सामाजिक कार्यों हेतु वित्तपोषण प्रदान करने वाले समूहों को नए वित्तपोषण तंत्र विकसित करने चाहिये और संसाधनों को प्राथमिकता देने के लिये इस सूचकांक का उपयोग करना चाहिये।

भारत की स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति

  • पर्याप्त सुविधाओं का अभाव: 
    • वर्ष 2009 से राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और अन्य राज्यों में देखे जा रहे ‘इन्फ्लूएंज़ा-ए (H1N1) प्रकोप ने रोग की पहचान, लक्षणों के बारे में जागरूकता और क्वारंटाइन की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
    • कोविड-19 महामारी ने स्वयं भारत की स्वास्थ्य प्रणाली की नींव को हिला दिया है।
  • कम व्यय:
    • भारत में सरकार द्वारा स्वास्थ्य क्षेत्र पर किये जाने वाला व्यय ‘सकल घरेलू उत्पाद’ के 1.35% से भी कम है, जो एक मध्यम आय वाले देश के लिये काफी कम है।
  • स्वास्थ्य पेशेवरों की उपलब्धता:
    • मौजूदा आँकड़ों की मानें तो देश की वर्तमान जनसंख्या (135 करोड़) के अनुरूप प्रत्येक 1,445 भारतीयों पर एक डॉक्टर मौजूद है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा प्रस्तावित 1,000 लोगों के लिये एक डॉक्टर के निर्धारित मानदंड से कम है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से भारत की स्वास्थ्य स्थिति खराब होती जा रही है।
    • जलवायु संवेदनशीलता सूचकांक के अनुसार, 80% से अधिक भारतीय जलवायु संवेदनशील ज़िलों में रहते हैं।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

भारत में सड़क दुर्घटनाएंँ

प्रिलिम्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद, लोकसभा, 

मेन्स के लिये:

सड़क दुर्घटनाओं का प्रभाव एवं कारण, मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री (Minister of Road Transport and Highways) ने लोकसभा को एक लिखित उत्तर में भारत में सड़क दुर्घटना के कारण मौत की जानकारी साझा की है।

  • मंत्री द्वारा जानकारी दी गई है कि मंत्रालय ने स्वतंत्र सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों को शामिल करके सभी चरणों (डिजाइन चरण, निर्माण चरण और संचालन और प्रबंधन चरण) पर सड़क सुरक्षा ऑडिट के माध्यम से सड़क सुरक्षा में सुधार हेतु दिशानिर्देश जारी किये हैं।

प्रमुख बिंदु 

  • सड़क दुर्घटनाएँ:
    • संबंधित डेटा:
      • वर्ष 2020 के दौरान सड़क दुर्घटनाओं में राष्ट्रीय राजमार्गों (NH) पर 47,984 लोग मारे गए, जिनमें एक्सप्रेसवे भी शामिल हैं तथा वर्ष 2019 में 53,872 लोग मारे गए।
      • विश्व स्तर पर, सड़क दुर्घटनाओं में 1.3 मिलियन मौतें होती हैं और 50 मिलियन लोग घायल हुए हैं। इसमें से 11% मौते भारत में हुई है।
    • प्रमुख कारण:
      • राष्ट्रीय राजमार्गों पर दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में वाहन का डिज़ाइन और स्थिति, सड़क इंजीनियरिंग, तेज गति से और  शराब तथा नशीली दवाओं का सेवन कर वाहन चलाना, गलत दिशा में गाड़ी चलाना, लाल बत्ती का उलंघन, मोबाइल फोन का उपयोग आदि शामिल थे।
  • सड़क दुर्घटनाओं का प्रभाव:
    • आर्थिक:
      • वर्ष 2019 के लिये भारत की सड़क यातायात दुर्घटनाओं की सामाजिक-आर्थिक लागत 15.71 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से 38.81 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के मध्य थी, जो सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) का 0.55–1.35% है।
    • सामाजिक:
      • परिवारों पर भार:
        • सड़क दुर्घटना तथा इससे होने वाली मृत्यु ने व्यक्तिगत स्तर पर जहाँ आर्थिक दृष्टि से मज़बूत परिवारों के गंभीर वित्तीय बोझ में वृद्धि की है वहीं उन परिवारों को कर्ज़ लेने के लिये बाध्य किया है जो पहले से ही गरीब हैं।
        • सड़क दुर्घटना के कारण होने वाली मृत्यु की वजह से गरीब परिवारों की लगभग सात माह की घरेलू आय कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित परिवार गरीबी और कर्ज़ के चक्र में फँस जाता है।
      • संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ता (VRUs):
        • संवेदनशील सड़क उपयोगकर्त्ता (Vulnerable Road Users- VRUs) वर्ग द्वारा दुर्घटनाओं के बड़े बोझ को सहन किया जाता है। देश में सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली मौतों और गंभीर चोटों के कुल मामलों में से आधे से अधिक हिस्सेदारी VRUs वर्ग की है।
        • VRUs वर्ग में सामान्यत: गरीब विशेष रूप से कामकाज़ी उम्र के पुरुष जिनके द्वारा सड़क का उपयोग किया जाता  है, को शामिल किया जाता है।
          • अनौपचारिक क्षेत्र की गतिविधियों में आकस्मिक श्रमिकों के रूप में कार्यरत दैनिक वेतन पर कार्य करने वाले श्रमिक और कर्मचारी, नियमित गतिविधियों में लगे श्रमिकों की तुलना में सड़क दुर्घटना के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
        • भारत में जहाँ VRUs को अन्य कम कमज़ोर सड़क उपयोगकर्ताओं के साथ स्थान साझा करने के लिये मजबूर किया जाता है, इससे एक व्यक्ति के आय स्तर का उपयोग किये जाने वाले परिवहन के तरीके पर सीधा असर पड़ता है।
      • लिंग विशिष्ट प्रभाव:
        • पीड़ितों के परिवारों में महिलाएँ गरीब और अमीर दोनों घरों में समस्याओं का सामना करती हैं, अक्सर अतिरिक्त काम करती हैं, अधिक जिम्मेदारियां लेती हैं, और देखभाल करने वाली गतिविधियां करती हैं।
          • लगभग 50% महिलाएँ दुर्घटना के बाद अपनी घरेलू आय में गिरावट से गंभीर रूप से प्रभावित हुईं।
          • लगभग 40% महिलाओं ने दुर्घटना के बाद अपने काम करने के तरीके में बदलाव की सूचना दी, जबकि लगभग 11% ने वित्तीय संकट से निपटने के लिये अतिरिक्त काम करने की सूचना दी।
      • ग्रामीण नगरीय विभाजन:
        • कम आय वाले ग्रामीण परिवारों (56%) की आय में गिरावट निम्न-आय वाले शहरी (29.5%) और उच्च आय वाले ग्रामीण परिवारों (39.5%) की तुलना में सबसे गंभीर थी।
  • संबंधित पहल:
    • विश्व:
      • सड़क सुरक्षा पर ब्राज़ीलिया घोषणा (2015):
        • ब्राज़ील में आयोजित सड़क सुरक्षा पर दूसरे वैश्विक उच्च स्तरीय सम्मेलन में घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए। भारत घोषणापत्र का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।
        • देशों ने सतत् विकास लक्ष्य 3.6 यानी वर्ष 2030 तक सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली वैश्विक मौतों और दुर्घटनाओं की आधी संख्या हासिल करने की योजना बनाई है।
      • संयुक्त राष्ट्र वैश्विक सड़क सुरक्षा सप्ताह:
        • यह प्रत्येक दो वर्ष में मनाया जाता है, इसके पाँचवें संस्करण (6-12 मई 2019 से आयोजित) में सड़क सुरक्षा के लिये मज़बूत नेतृत्व की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
      • अंतर्राष्ट्रीय सड़क मूल्यांकन कार्यक्रम (iRAP):
        • यह एक पंजीकृत चैरिटी है जो सुरक्षित सड़कों के माध्यम से लोगों की जान बचाने के लिये समर्पित है।
    • भारत:
      • मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019:
        • यह अधिनियम यातायात उल्लंघन, दोषपूर्ण वाहन, नाबलिकों द्वारा वाहन चलाने आदि के लिये दंड की मात्रा में वृद्धि करता है।
        • यह अधिनियम मोटर वाहन दुर्घटना हेतु निधि प्रदान करता है जो भारत में कुछ विशेष प्रकार की दुर्घटनाओं पर सभी सड़क उपयोगकर्त्ताओं को अनिवार्य बीमा कवरेज प्रदान करता है।
        • अधिनियम एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड को मंज़ूरी प्रदान करता है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा एक अधिसूचना के माध्यम से स्थापित किया  जाना है।
        • यह मदद करने वाले व्यक्तियों के संरक्षण का भी प्रावधान करता है। 
      • सड़क मार्ग द्वारा वहन अधिनियम, 2007: 
        • यह अधिनियम सामान्य माल वाहकों के विनियमन से संबंधित प्रावधान करता है, उनकी देयता को सीमित करता है और उन्हें वितरित किये गए माल के मूल्य की घोषणा करता है ताकि ऐसे सामानों के नुकसान, या क्षति के लिये उनकी देयता का निर्धारण किया जा सके, जो लापरवाही या आपराधिक कृत्यों के कारण स्वयं, उनके नौकरों या एजेंटों के कारण हुआ हो। 
      • राष्ट्रीय राजमार्ग नियंत्रण (भूमि और यातायात) अधिनियम, 2000:
        • यह अधिनियम राष्ट्रीय राजमार्गों के भीतर भूमि का नियंत्रण, रास्ते का अधिकार और राष्ट्रीय राजमार्गों पर यातायात का नियंत्रण करने संबंधी प्रावधान प्रदान करता है और साथ ही उन पर अनधिकृत कब्ज़े को हटाने का भी प्रावधान करता है।
      • भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1998:
        • यह अधिनियम राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, रखरखाव और प्रबंधन के लिये एक प्राधिकरण के गठन और उससे जुड़े या उसके आनुषंगिक मामलों से संबंधित प्रावधान प्रस्तुत करता है।

आगे की राह

  • सड़कों की सुरक्षा को परिवहन के मुद्दे के बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिये।
    • अब समाज में व्यवहार परिवर्तन पर ध्यान देने की ज़रूरत है। सड़क सुरक्षा से संबंधित चुनौती से मिशन मोड में निपटा जाना चाहिये।
  • सड़कों के डिज़ाइन के बारे में किसी भी कार्रवाई से पहले पूरी तरह से ऑडिट किया जाना चाहिये।
  • सड़क सुरक्षा को गतिशीलता के दृष्टिकोण से भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है; किस प्रकार एक बेहतर, तीव्र एवं सुरक्षित तरीके से माल को स्थानांतरित किया जा सकता है।
  • सड़क दुर्घटनाओं के संबंध में सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए समाज की संवेदनशील आबादी को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • सड़क की डिज़ाइनिंग इस तरह से की जानी चाहिये कि सबसे संवेदनशील उपयोगकर्त्ता भी सुरक्षित हो और अंततः लोगों की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय इतिहास

सी. राजगोपालाचारी

प्रिलिम्स के लिये

सी. राजगोपालाचारी, महात्मा गांधी, असहयोग आंदोलन

मेन्स के लिये 

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सी. राजगोपालाचारी की भूमिका

प्रमुख बिंदु

हाल ही में ‘सी. राजगोपालाचारी’ की 143वीं जयंती मनाई गई।

  • उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान तथा प्रशासनिक एवं बौद्धिक कौशल के लिये याद किया जाता है।

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प्रमुख बिंदु

  • चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
    • राजाजी के नाम से मशहूर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर, 1878 को हुआ था।
    • उन्होंने मद्रास (अब चेन्नई) में प्रेसीडेंसी कॉलेज से कानून की पढ़ाई की और वर्ष 1900 में ‘सेलम’ में अपनी प्रैक्टिस शुरू की।
    • वर्ष 1916 में ‘उन्होंने तमिल साइंटिफिक टर्म्स सोसाइटी’ का गठन किया, यह एक ऐसा संगठन जिसने रसायन विज्ञान, भौतिकी, गणित, खगोल विज्ञान और जीव विज्ञान के वैज्ञानिक शब्दों का सरल तमिल शब्दों में अनुवाद किया।
    • वह वर्ष 1917 में सलेम की नगर पालिका के अध्यक्ष बने और वहाँ दो वर्ष तक सेवा की।
    • वर्ष 1955 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
    • 25 दिसंबर, 1972 को उनका निधन हो गया।

राजनीतिक जीवन

  • स्वतंत्रता से पूर्व:
    • वह भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस में शामिल हुए और वहाँ उन्होंने कानूनी सलाहकार के रूप में काम किया।
    • वर्ष 1917 में उन्होंने देशद्रोह के आरोपों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्त्ता- पी. वरदराजुलु नायडू का बचाव किया।
    • उन्हें वर्ष 1937 में मद्रास प्रेसीडेंसी के पहले प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था।
    • वर्ष 1939 में राजगोपालाचारी ने अस्पृश्यता और जातिगत पूर्वाग्रह को खत्म करने के लिये एक कदम उठाया और मद्रास मंदिर प्रवेश प्राधिकरण और क्षतिपूर्ति अधिनियम जारी किया।
      • मद्रास मंदिर प्रवेश प्राधिकरण के बाद दलितों को मंदिरों के अंदर प्रवेश करने की अनुमति दी गई।
    • विभाजन के समय उन्हें पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था।
    • वर्ष 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन की अनुपस्थिति के दौरान अंतिम ब्रिटिश वायसराय और स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी को अस्थायी रूप से पद संभालने के लिये चुना गया था।
      • इसलिये वह भारत के अंतिम गवर्नर जनरल थे।
  • स्वतंत्रता के पश्चात
    • राजगोपालाचारी ने अप्रैल 1952 में मद्रास के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला।
    • मद्रास के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने शिक्षा प्रणाली में सुधार और समाज में बदलाव लाने में सक्रिय रूप से भाग लिया।
      • उन्होंने तमिल स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य भाषा भी बनाया।
      • उनके इस कदम से उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसके बाद राजगोपालाचारी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
    • वह सामाजिक रूढ़िवादी थे लेकिन मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था का समर्थन करते थे।
      • वह वर्ण व्यवस्था को समाज में पुनः लाना चाहते थे।
      • वह समाज के लिये धर्म के महत्त्व में विश्वास करते थे।
    • वर्ष 1950 में सरदार पटेल की मृत्यु के बाद राजगोपालाचारी को गृह मंत्री बनाया गया था।
    • वर्ष 1959 में, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की।
  • स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
    • असहयोग आंदोलन:वह महात्मा गांधी से पहली बार वर्ष 1919 में मद्रास (अब चेन्नई) में मिले और गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
      • वर्ष 1920 में उन्हें  वेल्लोर में दो साल की जेल भी हुई थी।
      • जेल से रिहा होने के बाद, उन्होंने गांधी के हिंदू-मुस्लिम सद्भाव और अस्पृश्यता के उन्मूलन के सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिये अपना आश्रम खोला।
      • वे खादी के भी समर्थक थे।
    • वायकोम सत्याग्रह: वे अस्पृश्यता के खिलाफ वायकोम सत्याग्रह आंदोलन (Vaikom Satyagraha Movement) में भी शामिल थे।
    • दांडी मार्च: वर्ष 1930 में जब गांधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिये दांडी मार्च का नेतृत्व किया, तो राजगोपालाचारी ने मद्रास प्रेसीडेंसी दांडी मार्च के समर्थन में वेदारण्यम में एक  मार्च निकाला।
      • वह गांधी के अखबार यंग इंडिया के संपादक भी बने।
    • भारत छोड़ो आंदोलन: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, राजगोपालाचारी ने गांधी का विरोध किया।
      • उनका विचार था कि अंग्रेज अंततः देश छोड़ने ही वाले थे तो  एक और सत्याग्रह शुरू करना एक अच्छा निर्णय नहीं था।
  • साहित्यिक योगदान:
    • इस पुस्तक ने 1958 में तमिल भाषा में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता।
      • उन्होंने रामायण का तमिल अनुवाद लिखा, जिसे बाद में चक्रवर्ती थिरुमगन के रूप में प्रकाशित किया गया।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

केन-बेतवा इंटर-लिंकिंग परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

केन-बेतवा इंटर-लिंकिंग परियोजना, केन और बेतवा नदी, बेतवा नदी

मेन्स के लिये:

केन-बेतवा इंटर-लिंकिंग परियोजना से जुड़े विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केन-बेतवा नदियों को जोड़ने की परियोजना के वित्तपोषण और कार्यान्वयन को मंज़ूरी दी है।

  • इस परियोजना में केन नदी से बेतवा नदी में जल स्थानांतरित करने की परिकल्पना की गई है, ये दोनों ही यमुना की सहायक नदियाँ हैं। यह परियोजना आठ वर्षों में पूरी होगी।

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प्रमुख बिंदु

  • परिचय: यह नदियों को आपस में जोड़ने के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत पहली परियोजना है। केन-बेतवा लिंक नहर 221 किमी. लंबी होगी, जिसमें 2 किमी. लंबी सुरंग भी शामिल है।

केन और बेतवा नदी: 

  • केन और बेतवा नदियों का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश में है, ये यमुना की सहायक नदियाँ हैं।
  • केन नदी उत्तर प्रदेश के बांदा ज़िले में यमुना नदी में मिलती है तथा बेतवा नदी से यह उत्तर प्रदेश के हमीरपुर ज़िले में मिलती है।
  • राजघाट, पारीछा और माताटीला बाँध बेतवा नदी पर निर्मित हैं।
  • केन नदी पन्ना बाघ अभयारण्य से होकर गुज़रती है।
  • पृष्ठभूमि: केन को बेतवा से जोड़ने के विचार को अगस्त 2005 में एक बड़ा झटका तब लगा, जब केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश की सरकारों के बीच एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करने के लिये एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
    • वर्ष 2008 में, केंद्र ने KBLP को एक राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया। बाद में इसे सूखाग्रस्त बुंदेलखंड क्षेत्र के विकास के लिये प्रधानमंत्री के पैकेज के हिस्से के रूप में शामिल किया गया था।
    • इस परियोजना के कार्यान्वयन के लिये वर्ष 2021 में ही जल शक्ति मंत्रालय और दोनों राज्यों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किये गए थे।
  • कार्यान्वयन एजेंसी: 
    • परियोजना को लागू करने के लिये केन-बेतवा लिंक परियोजना प्राधिकरण (KBLPA) नामक एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) की स्थापना की जाएगी।
    • अलग-अलग लिंक परियोजनाओं के लिये SPV स्थापित करने की शक्तियाँ राष्ट्रीय नदी अन्तराबंधन प्राधिकरण (National Interlinking of Rivers Authority- NIRA) में निहित हैं।
  • परियोजना के चरण: परियोजना के दो चरण हैं, जिसमें मुख्य रूप से चार घटक शामिल हैं। 
    • चरण- I में एक घटक शामिल होगा- दौधन बाँध परिसर और इसकी सहायक इकाइयाँ जिसमें निम्न स्तरीय सुरंग, उच्च स्तरीय सुरंग, केन-बेतवा लिंक नहर और बिजली घर शामिल हैं।
    • चरण- II में तीन घटक शामिल होंगे- ‘लोअर और बाँध’, बीना कॉम्प्लेक्स परियोजना और कोठा बैराज।
  • लाभ: यह परियोजना बुंदेलखंड में है, जो एक सूखाग्रस्त क्षेत्र है तथा इसका विस्तार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 ज़िलों में है।
    • जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से जल की कमी वाले इस क्षेत्र को अत्यधिक लाभ प्राप्त होगा।
    • इसके अलावा, यह नदी परियोजनाओं को जोड़ने की दिशा में मार्ग प्रशस्त करेगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जल की कमी देश के विकास में अवरोधक न बने।
    • जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर की वार्षिक सिंचाई, लगभग 62 लाख लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति और 103 मेगावाट जलविद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न होने की उम्मीद है।
  • संबंधित चुनौतियांँ: 
    • पन्ना टाइगर रिज़र्व का जलमग्न होना: राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी के अनुसार, दौधन बाँध के जलाशय से 9000 हेक्टेयर का क्षेत्र जलमग्न होगा जिसमें से 5803 हेक्टेयर क्षेत्र पन्ना टाइगर रिज़र्व (Panna Tiger Reserve- PTR) के अंतर्गत आता है।
      • इसे कम करने के लिये तीन वन्यजीव अभयारण्यों (WLS), अर्थात् नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य, मध्यप्रदेश के रानी दुर्गावती और उत्तरप्रदेश के रानीपुर वन्यजीव अभयारण्य को PTR के साथ एकीकृत करने की योजना है।
    • विभिन्न मंज़ूरियों की आवश्यकता: परियोजना के कार्यान्वयन हेतु विभिन्न प्रकार की मंज़ूरी प्राप्त करना आवश्यक है, जैसे:
      • केंद्रीय जल आयोग द्वारा तकनीकी-आर्थिक मंज़ूरी।
      • वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन एवं पर्यावरण संबंधी मंज़ूरी। 
      • जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा आदिवासी आबादी के पुनःस्थापन और पुनर्वास की योजना को मंज़ूरी।

भारत में रिवर इंटर-लिंकिंग का इतिहास:

  • औपनिवेशिक अवधारणा
    • यह विचार पहली बार ब्रिटिश राज के दौरान रखा गया था, जब एक ब्रिटिश सिंचाई इंजीनियर सर आर्थर थॉमस कॉटन (Sir Arthur Thomas Cotton) ने नौवहन उद्देश्यों के लिये गंगा और कावेरी को जोड़ने का सुझाव दिया था।
  • अंग्रेज़ों द्वारा शुरू की गई परियोजनाएँ:
    • अतीत में कई रिवर इंटर-लिंकिंग परियोजनाएँ शुरू की गई हैं। उदाहरण के लिये पेरियार परियोजना, जिसके तहत पेरियार बेसिन से वैगई बेसिन में पानी के हस्तांतरण की परिकल्पना की गई थी, को वर्ष 1895 में चालू किया गया था।
      • अन्य परियोजनाएँ जैसे परम्बिकुलम अलियार, कुरनूल कडप्पा नहर, तेलुगु गंगा परियोजना, और रावी-ब्यास-सतलज भी शुरू की गईं हैं।
  • राष्ट्रीय जल ग्रिड:
    • 1970 के दशक में, एक नदी के अधिशेष जल को जल संकट वाले क्षेत्र में स्थानांतरित करने का विचार तत्कालीन केंद्रीय सिंचाई मंत्री ‘डॉ के. एल. राव’ ने रखा था।
    • उन्होंने जल से समृद्ध क्षेत्रों से पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पानी स्थानांतरित करने के लिये एक राष्ट्रीय जल ग्रिड के निर्माण का सुझाव दिया था।
  • माला नहर:
    • बाद में कैप्टन ‘दिनशॉ जे दस्तूर’ ने एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पानी के पुनर्वितरण के लिये ‘गारलैंड नहर’ का प्रस्ताव रखा था। हालाँकि, सरकार ने इन दोनों विचारों को आगे नहीं बढ़ाया।
  • राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना:
    • अगस्त 1980 में सिंचाई मंत्रालय ने जल संसाधन विकास के लिये एक ‘राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना’ तैयार की, जिसमें अंतर-बेसिन जल अंतरण की परिकल्पना की गई थी।
    • ‘राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना’ में दो घटक शामिल थे: हिमालयी नदियों का विकास और प्रायद्वीपीय नदियों का विकास।
    • राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के आधार पर ‘राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी’ (NWDA) ने 30 नदी लिंकों की पहचान की- 16 प्रायद्वीपीय घटक के तहत और 14 हिमालयी घटक के तहत।
    • केन-बेतवा लिंक परियोजना प्रायद्वीपीय घटक के तहत 16 परियोजनाओं में से एक है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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