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डेली न्यूज़

  • 10 Nov, 2022
  • 69 min read
इन्फोग्राफिक्स

आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिये आरक्षण

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शासन व्यवस्था

किशोरों हेतु सहमति की आयु

प्रिलिम्स के लिये:

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012, भारतीय दंड संहिता।

मेन्स के लिये:

POCSO अधिनियम और संबंधित चिंताओं के तहत किशोरों हेतु सहमति की आयु।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) के तहत दायर एक मामले को खारिज करते हुए कहा कि भारत के विधि आयोग को किशोरों हेतु सहमति की उम्र पर पुनर्विचार करना होगा।

  • न्यायालय ने कहा, 18 साल से कम उम्र की लड़की द्वारा सहमति के पहलू पर विचार करना होगा अगर यह वास्तव में भारतीय दंड संहिता और/या पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध है।

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012:

  • यह 18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है और बच्चे के स्वस्थ शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास को सुनिश्चित करने के लिये हर स्तर पर बच्चे के सर्वोत्तम हित तथा कल्याण को सर्वोपरि मानता है।
  • यह यौन शोषण के विभिन्न रूपों को परिभाषित करता है, जिसमें भेदक और गैर-भेदक हमले, साथ ही यौन उत्पीड़न एवं अश्लील साहित्य शामिल हैं।
  • ऐसा लगता है कि कुछ परिस्थितियों में यौन हमलों की घटनाएँ बढ़ गई हैं, जैसे कि जब दुर्व्यवहार का सामना करने वाला बच्चा मानसिक रूप से बीमार होता है अथवा जब दुर्व्यवहार परिवार के किसी सदस्य, पुलिस अधिकारी, शिक्षक या डॉक्टर जैसे विश्वसनीय लोगों द्वारा किया जाता है।
  • यह जाँच प्रक्रिया के दौरान पुलिस को बाल संरक्षक की भूमिका भी प्रदान करता है।
  • अधिनियम में कहा गया है कि बाल यौन शोषण के मामले का निपटारा अपराध की रिपोर्ट की तारीख से एक वर्ष के भीतर किया जाना चाहिये।
  • अगस्त 2019 में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों में मृत्युदंड सहित कठोर सज़ा देने के लिये इसमें संशोधन किया गया था।

संबंधित चिंताएँ:

  • कानून का दुरुपयोग:
    • पिछले कुछ वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब न्यायालयों ने बलात्कार और अपहरण की आपराधिक कार्यवाही को यह मानते हुए रद्द कर दिया कि कानून का दुरुपयोग एक या दूसरे पक्ष के लिये किया जा रहा है।
    • कई मामलों में युगल, माता-पिता के विरोध के डर से घर से भाग जाता है, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जब परिवार द्वारा पुलिस में मामला दर्ज़ किया जाता है, जिसमें लड़के पर POCSO अधिनियम के तहत बलात्कार और IPC या बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत शादी करने के प्रयास के साथ अपहरण का मामला दर्ज़ किया जाता है।
      • यहाँ तक कि अगर लड़की 16 साल की है, तो उसे POCSO अधिनियम के तहत "नाबालिग" माना जाता है, इसलिये उसकी सहमति कोई मायने नहीं रखती है अर्थात् सहमति से बने शारीरिक संबंध को भी बलात्कार के रूप में माना जाता है, इस प्रकार यह कड़ी सज़ा का आधार बन जाताा है।
  • आपराधिक न्याय प्रणाली:
    • गैर-शोषणकारी और सहमति वाले संबंधों में कई युवा जोड़ों ने स्वयं को आपराधिक न्याय प्रणाली में उलझा हुआ पाया है।
  • ब्लैंकेट क्रिमनलाइज़ेशन:
    • सहमति वाली यौन गतिविधियों के कारण किसी भी अधिक उम्र के किशोर की गरिमा, हित, स्वतंत्रता, गोपनीयता, स्वायत्तता विकसित करने की तथा विकासात्मक क्षमता कमज़ोर होती हैं।
  • अदालतों पर दबाव:
    • इन मामलों की वजह से न्यायालयों पर अत्यधिक दबाव के कारण न्यायिक प्रक्रिया भी प्रभावित होती है।
    • न्यायालयों पर दबाव के कारण बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार के वास्तविक मामलों की जाँच एवं अभियोजन पर ध्यान केंद्रित करने में समस्याएँ आती हैं।

आगे की राह

  • किशोरों को संबद्ध अधिनियम और IPC के कड़े प्रावधानों से अवगत कराना एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा।
  • सहमति की उम्र को संशोधित करने और तथ्यात्मक रूप से सहमति से और गैर-शोषणकारी कृत्यों में संलग्न अधिक उम्र के किशोरों के अपराधीकरण को रोकने के लिये कानून में अनिवार्य रूप से सुधार किये जाने की आवश्यकता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. विकास का अधिकार
  2. अभिव्यक्ति का अधिकार
  3. मनोरंजन का अधिकार

उपर्युक्त में से कौन-सा/से बच्चे का अधिकार है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने 1946 में संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) की स्थापना करके बाल अधिकारों के महत्त्व को घोषित करने की दिशा में अपना पहला कदम उठाया। वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अपनाया, जिससे यह बच्चों की सुरक्षा की आवश्यकता को पहचानने वाला पहला संयुक्त राष्ट्र दस्तावेज़ बन गया।
  • बाल अधिकारों पर विशेष रूप से केंद्रित संयुक्त राष्ट्र का पहला दस्तावेज़ बाल अधिकारों की घोषणा था, लेकिन कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ होने के बजाय यह सरकारों के लिये आचरण के नैतिक मार्गदर्शक की तरह था। यह 1989 तक नहीं था कि वैश्विक समुदाय ने बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन को अपनाया, जिससे यह बाल अधिकारों से संबंधित पहला अंतर्राष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ बन गया।
  • कन्वेंशन, जो 2 सितंबर, 1990 को लागू हुआ, में जीवन के अधिकार, विकास का अधिकार, खेल और मनोरंजक गतिविधियों में संलग्न होने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, भागीदारी का अधिकार, अभिव्यक्ति सहित बाल अधिकारों की विभिन्न श्रेणियों को शामिल करते हुए 54 अनुच्छेद शामिल हैं। अत: 1, 2 और 3 सही हैं।

अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्रीनवॉशिंग

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीनवॉशिंग, कार्बन क्रेडिट

मेन्स के लिये:

ग्रीनवॉशिंग और इसकी चुनौतियाँ, कार्बन मार्केट पर ग्रीनवॉशिंग का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने निजी निगमों को ग्रीनवॉशिंग की प्रथा को बंद करने और एक साल के भीतर अपने तरीकों में सुधार करने की चेतावनी दी है।

  • महासचिव ने पूरी तरह से इससे संबंधित अभ्यास की निगरानी हेतु एक विशेषज्ञ समूह गठित करने का भी निर्देश दिया है।

ग्रीनवॉशिंग:

  • परिचय:
    • ग्रीनवॉशिंग शब्द का प्रयोग पहली बार वर्ष 1986 में एक अमेरिकी पर्यावरणविद् और शोधकर्त्ता जे वेस्टरवेल्ड द्वारा किया गया था।
    • ग्रीनवॉशिंग कंपनियों और सरकारों की गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला को पर्यावरण के अनुकूल के रूप में चित्रित करने का एक अभ्यास है, जिसके परिणामस्वरूप उत्सर्जन से बचा या इसे कम किया जा सकता है।
      • इनमें से कई दावे असत्यापित, भ्रामक या संदिग्ध होते हैं।
      • हालाँकि यह संस्था की छवि को बेहतर करने में मदद करता है, लेकिन वे जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में किसी प्रकार का विशेष सहयोग नहीं करता है।
      • शेल और BP जैसे तेल दिग्गजों तथा कोका कोला सहित कई बहुराष्ट्रीय निगमों को ग्रीनवॉशिंग के आरोपों का सामना करना पड़ा है।
    • पर्यावरणीय गतिविधियों की एक पूरी शृंखला में ग्रीनवॉशिंग सामान्य बात है।
      • अक्सर विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में वित्तीय प्रवाह के जलवायु सह-लाभों का सहारा लिया जाता है, जो कि कभी-कभी बहुत कम तर्कसंगत होते है, इन विकसित देशों के इस प्रकार के व्यवसाय निवेशों पर ग्रीनवॉशिंग का आरोप लगता रहता है।
  • ग्रीनवॉशिंग का प्रभाव:
    • ग्रीनवॉशिंग जलवायु परिवर्तन से निपटने के संदर्भ में प्रगति और विकास के गलत आँकड़े पेश करता है जो विश्व को आपदा की ओर अग्रसर करते हैं। इसी के साथ यह गैर-ज़िम्मेदार व्यवहार के लिये विभिन्न संस्थाओं को पुरस्कृत भी करता है।
  • विनियमन में चुनौतियाँ:
    • उत्सर्जन में संभावित कटौती करने वाली प्रक्रियाओं और उत्पादों की संख्या इतनी अधिक है कि उन सभी की निगरानी एवं सत्यापन करना व्यावहारिक रूप से असंभव है।
    • मापने, रिपोर्ट करने, मानक स्थापित करने, दावों को सत्यापित करने और प्रमाणन प्रदान करने के लिये अभी भी प्रक्रियाओं, कार्यप्रणालियों एवं संस्थानों की स्थापना की जा रही है।
    • बड़ी संख्या में संगठन इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता का दावा कर रहे हैं और शुल्क के आधार पर अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। इनमें से कई संगठनों में सत्यनिष्ठा और सशक्तता का अभाव है, लेकिन विभिन्न निगमों द्वारा अभी भी उनकी सेवाओं का लाभ उठाया जाता है ताकि इससे वे स्वयं को अच्छा प्रदर्शित कर सकें।
    • ग्रीनवॉशिंग कार्बन क्रेडिट को कैसे प्रभावित करता है?

कार्बन क्रेडिट :

  • कार्बन क्रेडिट (इसे कार्बन ऑफ़सेट के रूप में भी जाना जाता है) वातावरण में ग्रीनहाउस उत्सर्जन में कमी लाने के सापेक्ष दिया जाने वाला एक क्रेडिट है, जिसका उपयोग सरकारों, उद्योग या व्यक्तियों द्वारा उत्सर्जन के लिये क्षतिपूर्ति के रुप में किया जा सकता है।
  • इसके द्वारा आसानी से उत्सर्जन को कम नहीं कर पाने वाले उद्योग वित्तीय लागत वहन कर अपना संचालन कर सकते हैं।
  • कार्बन क्रेडिट "कैप-एंड-ट्रेड" मॉडल पर आधारित हैं जिसका उपयोग 1990 के दशक में सल्फर प्रदूषण को कम करने के लिये किया गया था।
  • एक कार्बन क्रेडिट, एक मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर है या कुछ बाज़ारों में कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष गैसों (CO2-eq) के बराबर है।

कार्बन क्रेडिट पर ग्रीनवॉशिंग का प्रभाव:

  • अनौपचारिक बाजार:
    • अब सभी प्रकार की गतिविधियों जैसे कि पेड़ लगाने, एक निश्चित प्रकार की फसल उगाने,कार्यालय भवनों में ऊर्जा कुशल उपकरण स्थापित करने के लिये क्रेडिट उपलब्ध हैं।
    • ऐसी गतिविधियों के लिये क्रेडिट अक्सर अनौपचारिक तृतीय-पक्ष की कंपनियों द्वारा प्रमाणित किया जाता है और दूसरों को बेचा जाता है।
    • इस तरह के लेन-देन को ईमानदारी की कमी के रूप में चिह्नित किया गया है
  • साख:
    • भारत या ब्राज़ील जैसे देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल के तहत भारी कार्बन क्रेडिट जमा किया था और वे चाहते थे कि इन्हें पेरिस समझौते के तहत स्थापित किये जा रहे नए बाजार में स्थानांतरित किया जाए।
    • लेकिन कई विकसित देशों ने इसका विरोध किया, क्रेडिट की अखंडता पर सवाल उठाया और दावा किया कि वे उत्सर्जन में कमी का सही प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
    • जंगलों से कार्बन ऑफसेट सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक है।

आगे की राह

  • शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य का अनुकरण करने वाले निगमों को जीवाश्म ईंधन में नए निवेश करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
  • उन्हें शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने के मार्ग पर अल्पकालिक उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को प्रस्तुत करने के लिये भी कहा जाना चाहिये।
  • निगमों को नेट-शून्य स्थिति के लिये अपने लक्ष्य की शुरुआत में ऑफसेट तंत्र का भी उपयोग करना चाहिये।
  • ग्रीनवॉशिंग की निगरानी के लिये नियामक संरचनाओं और मानकों के निर्माण की दिशा में प्राथमिकता से ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. "कार्बन क्रेडिट" के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा सही नहीं है? (2011)

(a) कार्बन क्रेडिट प्रणाली क्योटो प्रोटोकॉल के संयोजन में सम्पुष्ट की गई थी।
(b) कार्बन क्रेडिट उन देशों या समूहों को प्रदान किया जाता है जो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाकर उसे उत्सर्जन अभ्यंश के नीचे ला चुके होते हैं।
(c) कार्बन क्रेडिट का लक्ष्य कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में हो रही वृद्धि पर अंकुश लगाना है।
(d) कार्बन क्रेडिट का क्रय-विक्रय संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा समय-समय पर नियत मूल्यों के आधार पर किया जाता है।

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • उत्सर्जन व्यापार, जैसा कि क्योटो प्रोटोकॉल के अनुच्छेद 17 में निर्धारित किया गया है, उन देशों को अनुमति देता है जिनके पास कार्बन उत्सर्जन इकाइयाँ (यानी, कुल उत्सर्जन और उत्सर्जन के बीच का अंतर) हैं, लेकिन इस अतिरिक्त क्षमता को उन देशों को बेचने के लिये "उपयोग" नहीं किया जाता है जो अपने लक्ष्य से अधिक उत्सर्जन करतें हैं।
  • यदि कोई देश अपने लक्ष्य से कम हाइड्रोकार्बन का उत्सर्जन करता है, तो वह उत्सर्जन न्यूनीकरण खरीद समझौते (ERPA) के माध्यम से अपने अधिशेष क्रेडिट को उन देशों को बेच सकता है जो अपने क्योटो स्तर के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं करते हैं।
  • प्रमाणित उत्सर्जन कटौती (CER) एक प्रकार की उत्सर्जन इकाइयाँ (या कार्बन क्रेडिट) हैं जो स्वच्छ विकास तंत्र परियोजनाओं द्वारा प्राप्त उत्सर्जन में कमी के लिये स्वच्छ विकास तंत्र (CDM) के कार्यकारी बोर्ड द्वारा जारी की जाती हैं।
  • यह क्योटो प्रोटोकॉल के नियमों के तहत एक नामित परिचालन इकाई (DOE) सत्यापित है।
  • पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों के सतत् अभ्यास और अनुप्रयोग कार्बन-क्रेडिट को बढ़ाता हैं जिनका व्यापार किया जा सकता है। इस प्रकार इससे GHG उत्सर्जन में कमी आती है क्योंकि यह एक प्रतिस्पर्द्धी और लाभकारी बाज़ार सुनिश्चित करता है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने कार्बन क्रेडिट व्यवस्था को "बाज़ार-उन्मुख तंत्र" के रूप में विकसित किया।

अतः विकल्प (d) सही है।


प्रश्न. क्या कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट के बावजूद जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के तहत स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास तंत्र को बनाए रखा जाना चाहिये? आर्थिक विकास के लिये भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के संबंध में चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भूगोल

हिमालयी क्षेत्र में पूर्व चेतावनी प्रणाली

प्रिलिम्स े लिये:

भूकंप, सेंदाई फ्रेमवर्क (2015-2030), बाढ़, , हिमस्खलन, सुनामी, सूखा, आपदा प्रबंधन।

मेन्स के लिये:

प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) के राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (NGRI) ने अचानक आने वाली बाढ़, चट्टानों के स्खलन, स्खलन, ग्लेशियर झील के फटने और हिमस्खलन के खिलाफ हिमालयी राज्यों में पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित करने के लिये क्षेत्रीय अध्ययन शुरू किया है।

प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली क्या है?

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली खतरे की निगरानी, पूर्वानुमान और भविष्यवाणी, आपदा जोखिम मूल्यांकन, संचार और तैयारी गतिविधियों, प्रणालियों एवं प्रक्रियाओं की एक एकीकृत प्रणाली है जो व्यक्तियों, समुदायों, सरकारों, व्यवसायों तथा अन्य लोगों को खतरनाक घटनाओं से पहले आपदा जोखिमों को कम करने के लिये समय पर कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है।
  • यह तूफान, सुनामी, सूखा और हीटवेव सहित आसन्न खतरों से पहले लोगों एवं संपत्ति के नुकसान को कम करने में मदद करती है।
  • बहु-खतरा प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली कई खतरों को संबोधित करती है जो अकेले या एक साथ हो सकटे हैं।
    • बहु-खतरे वाली पूर्व चेतावनी प्रणालियों और आपदा जोखिम जानकारी की उपलब्धता बढ़ाना आपदा जोखिम न्यूनीकरण 2015-2030 के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क द्वारा निर्धारित सात वैश्विक लक्ष्यों में से एक है।

आपदा प्रबंधन हेतु भारत के प्रयास:

  • राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) की स्थापना:
    • भारत ने सभी प्रकार की आपदाओं के न्यूनीकरण के संदर्भ में तेज़ी से कार्य किया है तथा आपदा प्रतिक्रिया के लिये समर्पित विश्व के सबसे बड़े बल ‘राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल’ (NDRF) की स्थापना के साथ सभी प्रकार की आपदाओं की स्थिति में तेज़ी से प्रतिक्रिया की है।
  • NDMA की स्थापना:
    • भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), भारत में आपदा प्रबंधन के लिये शीर्ष निकाय है। आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 द्वारा NDMA की स्थापना और राज्य एवं ज़िला स्तरों पर संस्थागत तंत्र हेतु सक्षम वातावरण का निर्माण अनिवार्य है।
    • यह आपदा प्रबंधन पर नीतियाँ निर्धारित करता है।
  • अन्य देशों को आपदा राहत प्रदान करने में भारत की भूमिका:
    • भारत की विदेशी मानवीय सहायता में इसकी सैन्य शक्ति को भी तेज़ी से शामिल किया गया है जिसके तहत आपदा के समय देशों को राहत प्रदान करने के लिये नौसेना के जहाज़ों या विमानों को तैनात किया जाता है।
    • "नेबरहुड फर्स्ट" की इसकी कूटनीति के अनुरूप, राहत प्राप्तकर्त्ता देश दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के हैं।
  • क्षेत्रीय आपदा तैयारियों में योगदान:
  • जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदा का प्रबंधन:

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डी. आर. आर.) के लिये सेंदाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप (2015-30) हस्ताक्षरित करने से पूर्व एवं उसके पश्चात किये गए विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिये। यह प्रारूप 'ह्योगो कार्यवाही प्रारूप, 2005' से किस प्रकार भिन्न है? (2018)

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

गतिशील भूजल संसाधन आकलन, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय भूजल बोर्ड, भारी धातु, अटल भूजल योजना, जल शक्ति अभियान

मेन्स के लिये:

भूजल और इसके प्रबंधन की चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने वर्ष 2022 हेतु पूरे देश के लिये गतिशील भूजल संसाधन आकलन रिपोर्ट जारी की।

प्रमुख बिंदु

  • निष्कर्ष:
    • कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण 437.60 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) है और वार्षिक भूजल निकासी 239.16 BCM है।
      • आकलन में भूजल पुनर्भरण में वृद्धि के संकेत हैं।
      • तुलनात्मक रूप से वर्ष 2020 में एक आकलन में पाया गया कि वार्षिक भूजल पुनर्भरण 436 BCM और निष्कर्षण 245 BCM था।
        • यह भूजल पुनर्भरण (हाइड्रोलॉजिक) प्रक्रिया है जिसमें पृथ्वी की सतह से जल नीचे की ओर रिसता है और जलभृतों में एकत्र हो जाता है। इसलिये इस प्रक्रिया को डीप ड्रेनेज या डीप परकोलेशन के रूप में भी जाना जाता है।
      • वर्ष 2022 के आकलन से पता चलता है कि भूजल निष्कर्षण वर्ष 2004 के बाद से सबसे कम है, उस समय यह 231 BCM था।
    • इसके अलावा देश में कुल 7089 मूल्यांकन इकाइयों में से 1006 इकाइयों को 'अतिदोहित के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • कुल वार्षिक भूजल निष्कर्षण का लगभग 87% अर्थात् 20849 BCM सिंचाई उपयोग के लिये है। केवल 30.69 BCM घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिये है, जो कुल निष्कर्षण का लगभग 13% है।
  • राज्यवार भूजल निष्कर्षण:
    • देश में भूजल निष्कर्षण का कुल स्तर 60.08% है।
    • हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दादरा और नगर हवेली, दमन एवं दीव राज्यों में भूजल निष्कर्षण का स्तर बहुत अधिक है जहाँ यह 100% से अधिक है।
    • दिल्ली, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़, लक्षद्वीप और पुद्दुचेरी में भूजल निष्कर्षण की स्थिति 60-100% के बीच है।
    • बाकी राज्यों में भूजल निकासी का स्तर 60% से नीचे है।

भारत में भूजल की स्थिति:

  • परिचय:
    • भारत कुल वैश्विक निकासी का एक-चौथाई भाग के साथ भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता है। भारतीय शहर अपनी जल आपूर्ति का लगभग 48% भूजल से पूरा करते हैं।
      • भारत में लगभग 400 मिलियन निवासियों के साथ 4,400 से अधिक वैधानिक कस्बे और शहर हैं, जो वर्ष 2050 तक 300 मिलियन तक बढ़ जाएंगे।
  • भूजल की कमी से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ:
    • अप्रबंधित भूजल उपयोग और बढ़ती आबादी के परिणामस्वरूप अनुमानित 3.1 बिलियन लोगों के लिये वर्ष 2050 तक मौसमी जल की कमी और लगभग 1 बिलियन लोगों के लिये सामान्य जल की कमी हो सकती है
    • इसके अलावा जल और खाद्य सुरक्षा संबंधी खतरे भी उत्पन्न हो सकते हैं तथा अच्छे बुनियादी ढाँचे के विकास के बावजूद शहरों में गरीबी की समस्या होगी।

भारत में भूजल प्रबंधन से संबंधित चुनौतियाँ:

  • अनियमित निष्कर्षण:
    • भूजल, जिसे "सामान्य पूल संसाधन" के रूप में माना जाता है, ऐतिहासिक रूप से इसके निष्कर्षण पर नियंत्रण संबंधी ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
    • बढ़ती आबादी, शहरीकरण और सिंचाई गतिविधियों के विस्तार के कारण कई दशकों से भूजल के दोहन में काफी वृद्धि हो रही हैै।
  • अत्यधिक सिंचाई:
    • 1970 के दशक में लोकप्रिय हुई भूजल सिंचाई ने सामाजिक-आर्थिक कल्याण, उत्पादकता में वृद्धि के साथ बेहतर आजीविका का नेतृत्त्व किया है।
  • भूजल प्रबंधन प्रणालियों से संबंधित जानकारी की कमी:
    • स्थानीय स्तर पर मांग और आपूर्ति में समन्वय की कमी, भारत एक बड़े हिस्से की समस्या है।
    • बढ़ती आबादी या फिर बड़े पैमाने पर शहरी विकास इसके कारणों के दो उदाहरण हैं, लेकिन उन्हें इतना भी प्रत्यक्ष कारण नहीं माना जा सकता है।
    • उदाहरण के लिये किसी आबादी की बेहतर आर्थिक स्थिति जल आपूर्ति और वितरण की अधिक मांग कर सकती है।
  • भूजल प्रदूषण:
    • केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) द्वारा प्राप्त पानी की गुणवत्ता के आँकड़ों से पता चलता है कि 21 राज्यों के 154 ज़िलों में भूजल में आर्सेनिक संदूषण है।
    • मानवजनित गतिविधियों और भूगर्भीय स्रोतों के कारण गुणवत्ता में बहुत कमी आ गई है।
    • यह संदूषण के स्तर में वृद्धि करता है क्योंकि पृथ्वी की पर्पटी (Crust) में भारी धातु की सांद्रता सतह की तुलना में अधिक होती है।
    • इसके अतिरिक्त, सतही जल प्रदूषण भूजल की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है क्योंकि पानी की सतह पर प्रदूषक भूमि की परतों के माध्यम से रिसते हैं, भूजल को दूषित करते हैं तथा तेल रिसाव या सामान्य रिसाव के माध्यम से मिट्टी की संरचना को भी बदल सकते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • उपरोक्त सभी चुनौतियों का समग्र प्रभाव देश पर जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले प्रभावों से भी तेज़ होता है।
    • भारत में भूजल की जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है, वे जलवायु संकट को और भी बदतर बना देती हैं, जो भूजल की उपलब्धता से जुड़े संकट को गहरा कर देता है।
    • हाइड्रोलॉजिकल चक्र में गड़बड़ी के कारण लंबे समय तक बाढ़ एवं सूखे की स्थिति पैदा होती है जिससे भूजल की गुणवत्ता तथा मात्रा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
      • उदाहरण के लिये बाढ़ की घटनाओं ने भूजल में रसायनों और जैविक संदूषकों के अपवाह को बढ़ा दिया है।

सरकार द्वारा की गई पहल:

  • अटल भूजल योजना (अटल जल): यह सामुदायिक भागीदारी के साथ भूजल संसाधनों के सतत् प्रबंधन के लिये विश्व बैंक की सहायता से 6000 करोड़ रुपए की केंद्रीय क्षेत्र की योजना है।
  • जल शक्ति अभियान (JSA): इन क्षेत्रों में भूजल की स्थिति सहित जल की उपलब्धता में सुधार हेतु देश के 256 जल संकटग्रस्त ज़िलों में वर्ष 2019 में इसे शुरू किया गया था।
    • इसमें पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण, पारंपरिक जल निकायों के कायाकल्प, गहन वनीकरण आदि पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
  • जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम: CGWB द्वारा जलभृत मानचित्रण कार्यक्रम (Aquifer Mapping Programme) शुरू किया गया है।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के साथ जलभृत/क्षेत्र विशिष्ट भूजल प्रबंधन योजना तैयार करने हेतु जलभृत की स्थिति और उनके लक्षण व वर्णन को चित्रित करना है।
  • कायाकल्प और शहरी परिवर्तन हेतु अटल मिशन (AMRUT): मिशन अमृत शहरों में शहरी बुनियादी ढाँचे के विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, जैसे कि जल की आपूर्ति, सीवरेज़ और सेप्टेज प्रबंधन, बेहतर जल निकासी, पर्यावरणीय अनुकूल स्थान और पार्क व गैर-मोटर चालित शहरी परिवहन आदि।

आगे की राह

  • एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन ढाँचा:
    • एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन ढाँचे पर ध्यान देने की आवश्यकता है। यह जल, भूमि और संबंधित संसाधनों के समन्वित विकास एवं प्रबंधन को बढ़ावा देता है।
  • जल संवेदनशील शहरी ढाँचा अपनाना:
    • सबसे पहले, जल के प्रति संवेदनशील शहरी ढाँचा और योजना को अपनाने से जल की मांग एवं आपूर्ति के लिये भूजल, सतही जल तथा वर्षा जल का प्रबंधन करके जल चक्र को बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
  • जल पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग के लिये प्रावधान:
    • अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण के प्रावधान और एक जल चक्र की चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये इसके पुन: उपयोग से स्रोत स्थिरता एवं भूजल प्रदूषण शमन में भी मदद मिलेगी।
  • अन्य हस्तक्षेप:
    • वर्षा जल संचयन, झंझावात जल संचयन, वर्षा-उद्यान और जैव-प्रतिधारण तालाब जैसे हस्तक्षेप जो वनस्पति भूमि के साथ वर्षा को रोकते हैं पारंपरिक प्रणालियों के कम रखरखाव विकल्प हैं। ये भूजल पुनर्भरण और शहरी बाढ़ शमन में मदद करते हैं।

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. भारत के 36% ज़िलों को केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA) द्वारा "अतिदोहित" या "गंभीर" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  2. CGWA का गठन पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के तहत किया गया था।
  3. भारत में भूजल सिंचाई के तहत दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्र है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • भूजल स्तर के आधार पर देश भर के क्षेत्रों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है: अति-दोहन वाले क्षेत्र, गंभीर और कम गंभीर। अति-दोहन वाले क्षेत्रों में भूजल की पुनर्भरण दर की तुलना में अधिक दर (100 प्रतिशत से अधिक) से भूजल का दोहन किया जा रहा है। गंभीर स्थिति में भूजल दोहन, पुनर्भरण का 90-100 प्रतिशत है और कम गंभीर स्थिति में भूजल दोहन पुनर्भरण के सापेक्ष 70-90 प्रतिशत है।
  • भारत के गतिशील भूजल संसाधनों पर राष्ट्रीय संकलन रिपोर्ट 2017 के अनुसार देश में कुल 6881 मूल्यांकन इकाइयों (ब्लॉकों/मंडलों/ताल्लुकों) में से विभिन्न राज्यों में 1186 इकाइयों (17%) को अतिशोषित, 313 इकाइयों ( 5%) को गंभीर और 972 इकाइयों (14%) को कम गंभीर के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • नोट: भारत के गतिशील भूजल संसाधनों पर राष्ट्रीय संकलन, 2020 के अनुसार; देश में कुल 6965 मूल्यांकन इकाइयों (ब्लॉक/मंडल/ताल्लुकों) में से 16% को 'अति-शोषित, 4% को गंभीर, 15% को कम गंभीर और 64%' को 'सुरक्षित' के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इनके अलावा 97 (1%) मूल्यांकन इकाइयाँ ऐसी हैं, जिन्हें खारे (Saline) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (CGWA) का गठन पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 3 (3) के तहत भूजल संसाधनों के विकास और प्रबंधन को विनियमित एवं नियंत्रित करने के लिये किया गया था। अत: कथन 2 सही है।
  • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत (39 मिलियन हेक्टेयर), चीन (19 मिलियन हेक्टेयर) और संयुक्त राज्य अमेरिका (17 मिलियन हेक्टेयर) भूजल से सिंचाई करने वाले सबसे बड़े देश हैं। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न. “भारत में अवक्षयी (depleting) भूजल संसाधनों का आदर्श समाधान जल संचयन प्रणाली है"। शहरी क्षेत्रों में  इसको किस प्रकार प्रभावी बनाया जा सकता है?  (2018)

प्रश्न. भारत अलवणजल (फ्रेश वाटर) संसाधनों से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है। (2015)

स्रोत : पी.आई.बी


भूगोल

भूकंप

प्रिलिम्स के लिये:

भारत और यूरेशियन प्लेटें,  भूकंप  के प्रकार

मेन्स के लिये:

भूकंप, इसका वितरण और प्रकार

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेपाल में 6.6 तीव्रता का भूकंप आया,जिसमें कुछ लोगों की मौत हो गई और कई घर नष्ट हो गए थे, भारत में भी इसके शक्तिशाली झटके महसूस किये गए।

इन झटकों का कारण क्या है?

  • संयुक्त राष्ट्र भूगर्भीय सर्वेक्षण (USGS) के अनुसार, इन झटकों का प्रमुख कारण भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के महाद्वीपीय टकराव है जो हिमालय में भूकंप के लिये प्रमुख कारक है।
  • ये प्लेटें प्रतिवर्ष 40-50 मिलीमीटर की सापेक्ष दर से करीब आती जा रही हैं।
  • यूरेशिया के नीचे भारत के उत्तर की ओर धकेलने/बढ़ने से कई भूकंप उत्पन्न होते हैं, फलस्वरूप यह इस क्षेत्र को पृथ्वी पर भूकंपीय रूप से सबसे अधिक खतरनाक क्षेत्रों में से एक बनाता है।
    • हिमालय और इसके आसपास के क्षेत्रों में कुछ सबसे खतरनाक भूकंप देखे गए हैं जैसे कि वर्ष 1934 में 8.1 तीव्रता वाला, कांगड़ा में वर्ष 1905 में 7.5 की तीव्रता का और कश्मीर में वर्ष 2005 में 6 तीव्रता का भूकंप।

भूकंप

  • परिचय:
    • साधारण शब्दों में भूकंप का अर्थ पृथ्वी की कंपन से होता है। यह एक प्राकृतिक घटना है, जिसमें पृथ्वी के अंदर से ऊर्जा के निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न होती हैं जो सभी दिशाओं में फैलकर पृथ्वी को कंपित करती हैं।
    • भूकंप से उत्पन्न तरगों को भूकंपीय तरगें कहा जाता है, जो पृथ्वी की सतह पर गति करती हैं तथा इन्हें ‘सिस्मोग्राफ’ (Seismographs) से मापा जाता है।
    • पृथ्वी की सतह के नीचे का स्थान जहाँ भूकंप का केंद्र स्थित होता है, हाइपोसेंटर (Hypocenter) कहलाता है और पृथ्वी की सतह के ऊपर स्थित वह स्थान जहाँ भूकंपीय तरगें सबसे पहले पहुँचती है अधिकेंद्र (Epicenter) कहलाता है।
    • भूकंप के प्रकार: फाल्ट ज़ोन, विवर्तनिक भूकंप, ज्वालामुखी भूकंप, मानव प्रेरित भूकंप।
    • भूकंप की घटनाओं को या तो कंपन की तीव्रता या तीव्रता के अनुसार मापा जाता है। परिमाण पैमाने को रिक्टर पैमाने के रूप में जाना जाता है। परिमाण भूकंप के दौरान उत्पन्न ऊर्जा से संबंधित है। परिमाण को निरपेक्ष संख्या, 0-10 में व्यक्त किया जाता है।
    • तीव्रता के पैमाने का नाम इटली के भूकंपविज्ञानी मर्केली के नाम पर रखा गया है। तीव्रता का पैमाना घटना के कारण होने वाली दृश्य क्षति को ध्यान में रखता है। तीव्रता पैमाने की सीमा 1-12 है।
  • भूकंप का वितरण:
    • परि-प्रशांत भूकंपीय पेटी: विश्व की सबसे बड़ी भूकंप पेटी, परि-प्रशांत भूकंपीय पेटी, प्रशांत महासागर के किनारे पाई जाती है, जहाँ हमारे ग्रह के सबसे बड़े भूकंपों के लगभग 81% आते हैं। इसने "रिंग ऑफ फायर" उपनाम अर्जित किया है।
      • यह पेटी विवर्तनिक प्लेटों की सीमाओं में मौजूद है, जहाँ अधिकतर समुद्री क्रस्ट की प्लेटें दूसरी प्लेट के नीचे जा रही हैं। इसका कारण इन ‘सबडक्शन ज़ोन’ में भूकंप, प्लेटों के बीच फिसलन और प्लेटों का भीतर से टूटना है।
    • मध्य महाद्वीपीय बेल्ट: अल्पाइन-हिमालयी बेल्ट (मध्य-महाद्वीपीय बेल्ट) यूरोप से सुमात्रा तक हिमालय, भूमध्यसागरीय और अटलांटिक में फैली हुई है।
      • इस बेल्ट में दुनिया के सबसे बड़े भूकंपों का लगभग 17% भूकंप आते है, जिसमें कुछ सबसे विनाशकारी भी शामिल हैं।
    • मध्य अटलांटिक कटक: तीसरा प्रमुख बेल्ट जलमग्न मध्य-अटलांटिक रिज में है। रिज वह क्षेत्र होता है, जहाँ दो टेक्टोनिक प्लेट अलग-अलग विस्तृत होती हैं।
      • मध्य अटलांटिक रिज का अधिकांश भाग गहरे पानी के भीतर है और मानव हस्तक्षेप से बहुत दूर है।

South-America

भारत में भूकंप जोखिम मानचित्रण:

  • तकनीकी रूप से सक्रिय वलित हिमालय पर्वत की उपस्थिति के कारण भारत भूकंप प्रभावित देशों में से एक है।
  • अतीत में आए भूकंप तथा विवर्तनिक झटकों के आधार पर भारत को चार भूकंपीय क्षेत्रों (II, III, IV और V) में विभाजित किया गया है।
  • पहले भूकंप क्षेत्रों को भूकंप की गंभीरता के संबंध में पाँच क्षेत्रों में विभाजित किया गया था, लेकिन भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) ने पहले दो क्षेत्रों को एक साथ मिलाकर देश को चार भूकंपीय क्षेत्रों में विभाजित किया है।
    • BIS भूकंपीय खतरे के नक्शे और कोड को प्रकाशित करने हेतु एक आधिकारिक एजेंसी है।

Seismic-Zone

  • भूकंपीय ज़ोन II:
    • मामूली क्षति वाला भूकंपीय ज़ोन, जहाँ तीव्रता MM (संशोधित मरकली तीव्रता पैमाना) के पैमाने पर V से VI तक होती है।
  • भूकंपीय ज़ोन III:
    • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप मध्यम क्षति वाला ज़ोन।
  • भूकंपीय ज़ोन IV:
    • MM पैमाने की तीव्रता VII के अनुरूप अधिक क्षति वाला ज़ोन।
  • भूकंपीय ज़ोन V:
    • यह क्षेत्र फाॅल्ट प्रणालियों की उपस्थिति के कारण भूकंपीय रूप से सर्वाधिक सक्रिय होता है।
    • भूकंपीय ज़ोन V भूकंप के लिये सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र है, जहाँ ऐतिहासिक रूप से देश में भूकंप के कुछ सबसे तीव्र झटके देखे गए हैं।
    • इन क्षेत्रों में 7.0 से अधिक तीव्रता वाले भूकंप देखे गए हैं और यह IX की तुलना में अधिक तीव्र होते हैं।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय उप-महाद्वीप में भूकंपों की आवृत्ति बढ़ती हुई प्रतीत होती है। फिर भी, इनके प्रभाव के न्यूनीकरण हेतु भारत की तैयारी (तत्परता) में महत्त्वपूर्ण कमियाँ हैं। विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिये। (मेन्स-2015)

 प्रश्न. भूकंप संबंधित संकटों के लिये भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिये। पिछले तीन दशकों में भारत के विभिन्न भागों में भूकंप द्वारा उत्पन्न बड़ी आपदाओं के उदाहरण प्रमुख विशेषताओं के साथ दीजिये। (मेन्स-2021)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत का पहला सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड फ्रेमवर्क

प्रिलिम्स के लिये:

सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड की विशेषताएँ, सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड फ्रेमवर्क

मेन्स के लिये:

सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड, बजट के तहत घोषणा, ग्रीन बॉण्ड की स्थिति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री ने भारत के पहले सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड फ्रेमवर्क को मंज़ूरी दी है।

  • हरित परियोजनाओं के लिये संसाधन जुटाने हेतु सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड जारी किये जाएंगे।

सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड फ्रेमवर्क:

  • यह फ्रेमवर्क ‘पंचामृत’ के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के नक्शेकदम पर मंज़ूरी दी गई है, जैसा कि नवंबर, 2021 में ग्लासगो में ‘COP26’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्पष्ट किया गया था।
  • इस मंजूरी से पेरिस समझौते के तहत अपनाए गए अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और भी अधिक मज़बूत होगी।
  • सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड जारी करने हेतु लिये गए महत्त्वपूर्ण निर्णयों का अनुमोदन करने के लिये हरित वित्त कार्यकारी समिति (GFWC) का गठन किया गया है।
  • व्‍यापक विचार-विमर्श करने और गंभीरतापूर्वक गौर करने के बाद CICERO ने भारत के ग्रीन बॉण्ड की रूपरेखा को ‘गुड’ गवर्नेंस स्कोर के साथ ‘मीडियम ग्रीन’ की रेटिंग दी है।
    • 'मीडियम ग्रीन' रेटिंग उन परियोजनाओं और समाधानों को दी जाती है जो दीर्घकालिक दृष्टि की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदमों का प्रतिनिधित्व करते हैंं।
  • सभी जीवाश्म ईंधन से संबंधित परियोजनाओं को बायोमास आधारित नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के साथ ढाँचे से बाहर रखा गया है जो 'संरक्षित क्षेत्रों' से फीडस्टॉक पर निर्भर हैं।

सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड:

  • परिचय:
    • ग्रीन बॉण्ड विभिन्न कंपनियों, देशों एवं बहुपक्षीय संगठनों द्वारा विशेष रूप से सकारात्मक पर्यावरणीय या जलवायु लाभ वाली परियोजनाओं को वित्तपोषित करने हेतु जारी किये जाते हैं और निवेशकों को निश्चित आय भुगतान प्रदान करते हैं।
    • इन परियोजनाओं में नवीकरणीय ऊर्जा, स्वच्छ परिवहन एवं हरित भवन आदि शामिल हो सकते हैं।
    • ग्रीन बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त आय को हरित परियोजनाओं के लिये प्रयोग किया जाता है। यह अन्य मानक बॉण्डों के विपरीत है, जिसको आय जारीकर्त्ता के विवेक पर विभिन्न उद्देश्यों हेतु उपयोग किया जा सकता है।
    • लंदन स्थित ‘क्लाइमेट बॉण्ड्स इनिशिएटिव’ के अनुसार, वर्ष 2020 के अंत तक 24 राष्ट्रीय सरकारों ने कुल मिलाकर 111 बिलियन डॉलर के संप्रभु ग्रीन, सोशल और सस्टेनेबिलिटी बॉण्ड जारी किये थे।
  • सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड के लाभ:
    • सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड जारी करना सरकारों और नियामकों को जलवायु कार्रवाई और सतत् विकास संबंधी मंशा का एक प्रबल संकेत भेजता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency-IEA) ने वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक (WEO) रिपोर्ट, 2021 में अनुमान लगाया है कि शुद्ध-शून्य की प्राप्ति के लिये अतिरिक्त 4 ट्रिलियन डॉलर के व्यय में से 70% विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिये आवश्यक होगा। इस दृष्टिकोण से सॉवरेन बॉण्ड जारी किया जाना पूंजी के इन बड़े प्रवाहों को गति देने में सहायता कर सकता है।
    • एक सॉवरेन ग्रीन बेंचमार्क के विकास से अंततः अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों से हरित बॉण्ड जुटाने के एक जीवंत पारितंत्र का निर्माण हो सकता है।
  •    स्थिति:
    • वैश्विक स्थिति:
      • पर्यावरण, सामाजिक और शासन (Environmental, Social and Governance- ESG) फंड या ईएसजी फंड लगभग 40 ट्रिलियन डॉलर का है, जिसमें यूरोप लगभग आधी हिस्सेदारी रखता है।
      • अनुमान है कि वर्ष 2025 तक प्रबंधन के तहत कुल वैश्विक परिसंपत्ति का लगभग एक-तिहाई भाग ESG परिसंपत्ति का होगा।
      • ईएसजी डेट फंड (ESG debt funds) की हिस्सेदारी लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर है, जिसमें से 80% से अधिक ‘पर्यावरणीय’ या ग्रीन बॉण्ड हैं और शेष सामाजिक एवं संवहनीयता बॉण्ड (Social and Sustainability Bonds) हैं।
    • राष्ट्रीय स्थिति:
      • जलवायु कार्रवाई के लिये वैश्विक पूंजी जुटाने के क्षेत्र में कार्यरत एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ‘क्लाइमेट बॉण्ड्स इनिशिएटिव’ के अनुसार, भारतीय संस्थानों ने 18 बिलियन डॉलर से अधिक के ग्रीन बॉण्ड जारी किये हैं।

बजट में घोषित जलवायु कार्रवाई पर अन्य उपाय क्या हैं?

  • बजट में जलवायु कार्रवाई पर कई उपाय शामिल थे, जैसे:
    • बैटरी स्वैपिंग नीति
    • उच्च दक्षता वाले सौर मॉड्यूल के निर्माण के लिये पीएलआई योजना के तहत अतिरिक्त आवंटन।
    • सरकार एक नया विधेयक पेश कर रही है जिसका उद्देश्य भारत में कार्बन बाज़ार के लिये एक नियामक ढाँचा प्रदान करना है ताकि ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा के प्रवेश को प्रोत्साहित किया जा सके।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू)  

प्रश्न. भारत सरकार की बॉण्ड यील्ड निम्नलिखित में से किससे प्रभावित होती है? (2021)

  1. युनाइटेड स्टेट्स फेडरल रिज़र्व की कार्रवाइयों से।
  2. भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्य से।
  3. मुद्रास्फीति और अल्पकालिक ब्याज़ं दरों के कारण।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • बॉण्ड पैसा उधार लेने का साधन है। किसी देश की सरकार या किसी कंपनी द्वारा धन जुटाने के लिये बॉण्ड जारी किया जा सकता है।
  • बॉण्ड यील्ड वह रिटर्न है जो एक निवेशक को बॉण्ड पर मिलता है। प्रतिफल की गणना के लिये गणितीय सूत्र बॉण्ड के मौजूदा बाज़ार मूल्य से विभाजित वार्षिक कूपन दर है।
  • प्रतिफल में उतार-चढ़ाव ब्याज़ दरों के रुझान पर निर्भर करता है, इसके परिणामस्वरूप निवेशकों को पूंजीगत लाभ या हानि हो सकती है।
  • बाज़ार में बॉण्ड यील्ड बढ़ने से बॉण्ड की कीमत नीचे आ जाएगी।
  • बॉण्ड यील्ड में गिरावट से निवेशक को फायदा होगा क्योंकि बॉण्ड की कीमत बढ़ेगी, जिससे पूंजीगत लाभ होगा।
  • फेड टेपरिंग अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के बॉण्ड खरीद कार्यक्रम में क्रमिक कमी हुई है। इसलिये युनाइटेड स्टेट्स फेडरल रिज़र्व की कोई भी कार्रवाई भारत में बॉण्ड यील्ड को प्रभावित करती है। अत: कथन 1 सही है।
  • सरकारी बॉण्ड का प्रतिफल निर्धारित करने में RBI की कार्रवाइयाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अर्थव्यवस्था में ब्याज़ दरों की एक विस्तृत शृंखला को प्रभावित करने में मौद्रिक नीति के लिये संप्रभु यील्ड वक्र का विशेष महत्त्व है। अत: कथन 2 सही है।
  • मुद्रास्फीति और अल्पकालिक ब्याज़ दरें भी सरकारी बॉण्ड यील्ड को प्रभावित करती हैं। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (d) सही है।


प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में दिखने वाले 'आइएफसी मसाला बॉण्ड (IFC Masals Bonds)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

  1. अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (इंरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन), जो इन बॉण्डों को प्रस्तावित करता है, विश्व बैंक की एक शाखा है।
  2. ये रुपया अंकित मूल्य वाले बॉण्ड (Rupee-denominated Bonds) हैं और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के ऋण वित्तीयन के स्रोत हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • विश्व बैंक समूह, जो कि विकासशील देशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है, में पाँच विशिष्ट लेकिन पूरक संगठन शामिल हैं
  • पुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक (IBRD) ।
  • अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA)।
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC)। अतः कथन 1 सही है।
  • बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA)।
  • निवेश विवादों के निपटान के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICSID)।
  • IFC में सदस्यता केवल विश्व बैंक के सदस्य देशों के लिये खुली है। इसका बोर्ड वर्ष 1956 में स्थापित किया गया था। IFC का स्वामित्व 184 सदस्य देशों के पास है, जो सामूहिक रूप से नीतियों को निर्धारित करते हैं। बोर्ड ऑफ गवर्नर्स और निदेशक मंडल के माध्यम से सदस्य देश IFC के कार्यक्रमों एवं गतिविधियों का मार्गदर्शन करते हैं।
  • मसाला बॉण्ड भारत के बाहर जारी किये गए बॉण्ड होते हैं, लेकिन स्थानीय मुद्रा की बजाय इन्हें भारतीय मुद्रा में निर्दिष्ट किया जाता है। मसाला का अर्थ है 'मसाले' और इस शब्द का इस्तेमाल अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) द्वारा विदेशी प्लेटफॅार्मों पर भारत की संस्कृति व व्यंजनों को लोकप्रिय बनाने के लिये किया गया था। मसाला बॉण्ड का उद्देश्य भारत में बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करना, उधार के माध्यम से आंतरिक विकास को बढ़ावा देना तथा भारतीय मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना है। अत: कथन 2 सही है।

अतः विकल्प (C) सही उत्तर है।

स्रोत: पी. आई. बी


जैव विविधता और पर्यावरण

कार्बन पृथक्करण

प्रिलिम्स के लिये:

कार्बन पृथक्करण

मेन्स के लिये:

कार्बन पृथक्करण, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महाराष्ट्र और ओडिशा में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, मृदा कार्बन पृथक्करण जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद कर सकता है।

  • अध्ययन सतत् विकास लक्ष्य 13 (एसडीजी 13: जलवायु कार्रवाई) के अनुरूप है जो जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों से निपटने के लिये तत्काल कार्रवाई करने से संबंधित है।
  • अध्ययन से पता चला कि कैसे उर्वरक, बायोचर और सिंचाई का सही संयोजन संभावित रूप से मृदा कार्बन को 300% तक बढ़ा सकता है और जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद कर सकता है।

कार्बन पृथक्करण:

  • परिचय:
    • कार्बन पृथक्करण के तहत पौधों, मिट्टी, भूगर्भिक संरचनाओं और महासागर में कार्बन का दीर्घकालिक भंडारण होता है।
    • कार्बन पृथक्करण स्वाभाविक रूप से मानव जनित गतिविधियों और कार्बन के भंडारण को संदर्भित करता है।
  • प्रकार:
    • स्थलीय कार्बन पृथक्करण:
      • स्थलीय कार्बन पृथक्करण (Terrestrial Carbon Sequestration) वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से वायुमंडल से CO2 को प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा पेड़-पौधों से अवशोषित कर मिट्टी और बायोमास (पेड़ की शाखाओं, पर्ण और जड़ों) में कार्बन के रूप में संग्रहीत किया जाता है।
    • भूगर्भीय कार्बन पृथक्करण:
      • इसमें CO2 का भंडारण किया जा सकता है, जिसमें तेल भंडार, गैस के कुओं, बिना खनन किये गए कोल भंडार, नमक निर्माण और उच्च कार्बनिक सामग्री के साथ मिश्रित संरचनाएंँ शामिल होती हैं।
    • महासागरीय कार्बन पृथक्करण:
      • महासागरीय कार्बन पृथक्करण द्वारा वातावरण से CO2 को  बड़ी मात्रा में अवशोषित, मुक्त और संग्रहीत किया जाता है। इसके दो प्रकार हैं- पहला, लौह उर्वरीकरण (Iron Fertilization) के माध्यम से महासागरीय जैविक प्रणालियों की उत्पादकता बढ़ाना तथा दूसरा, गहरे समुद्र में CO2 को इंजेक्ट करना।
      • लोहे की डंपिंग फाइटोप्लांकटन ( Phytoplankton) की उत्पादन दर को तीव्र करती है, परिणामस्वरूप फाइटोप्लांकटन प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को तीव्र कर देते हैं जो CO2 को अवशोषित करने में सहायक हैं।
      • एक प्रस्तावित विधि महासागरीय पृथक्करण है जिसके द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को समुद्र में गहराई से अंतःक्षिप्त किया जाता है, जिससे CO2 की झीलें बनती हैं। सिद्धांत रूप में, आसपास के पानी के दबाव और तापमान के कारण CO2 गहराई से नीचे रहेगा, धीरे-धीरे समय के साथ उस पानी में घुल जाएगा।
      • एक अन्य उदाहरण भूवैज्ञानिक अनुक्रम है जहाँ कार्बन डाइऑक्साइड को पुराने तेल भंडारों, जलभृत और कोयला संस्तरों जैसे भूमिगत कक्षों में पंप किया जाता है जिनका खनन नहीं किया जा सकता है।

कार्बन अनुक्रमण के विभिन्न तरीके:

  • प्राकृतिक कार्बन अनुक्रमण:
    • यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रकृति ने हमारे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन प्राप्त किया है जो जीवन को बनाए रखने के लिये उपयुक्त है। जानवर कार्बन डाइऑक्साइड को वेसे ही बाहर निकालते हैं, जैसा कि रात के दौरान पौधे करते हैं।
    • प्रकृति ने पेड़ों, महासागरों, पृथ्वी और जानवरों को कार्बन सिंक, या स्पंज के रूप में प्रदान किया है। इस ग्रह पर सभी जैविक जीवन कार्बन आधारित हैं और जब पौधे एवं जानवर मर जाते हैं, तो अधिकांश कार्बन ज़मीन पर वापस चला जाता है जहाँ ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देने में इसका बहुत कम प्रभाव हैै।
  • कृत्रिम कार्बन अनुक्रमण:
    • कृत्रिम कार्बन अनुक्रमण की कई प्रक्रियाओं को संदर्भित करता है जिससे कार्बन उत्सर्जन के उत्पादन बिंदु पर कब्ज़ा कर लिया जाता है और फिर इसे दबाया जाता है। (उदाहरण के लिये चिमनी फैक्ट्री)
    • यह एक प्रस्तावित विधि महासागरीय अनुक्रम है जिससे कार्बन डाइऑक्साइड को समुद्र में गहराई से इंजेक्ट किया जाता है, जिससे CO2 की झीलें बनती हैं। CO2 आसपास के पानी के दबाव और तापमान के कारण गहराई में रहता है, धीरे-धीरे समय के साथ पानी में घुल जाता है।
      • एक अन्य उदाहरण भूवैज्ञानिक अनुक्रमण है जहाँ कार्बन डाइऑक्साइड को भूमिगत कक्षों जैसे पुराने तेल जलाशयों, जलभृतों और कोयले की तह में पंप किया जाता है जो खनन करने में असमर्थ हैं।

कृषि के लिये एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में कार्बन अनुक्रमण:

  • जलवायु के अनुकूल: कार्बन फार्मिंग (कार्बन सीक्वेस्ट्रैट में ऐसे अभ्यास शामिल हैं जो उस दर में सुधार करने के लिये जानी जाती हैं जिस दर पर वातावरण से CO2 को हटाकर पौधों की सामग्री और मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित कर दिया जाता है। यह ऐसे नए कृषि व्यवसाय मॉडल की संभावनाओं को साकार करने का प्रयास करता है जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करता है, रोज़गार सृजित करता है, सामान्य रूप से खेतों को अनुपयोगी होने से बचाता है।
    • संक्षेप में, यह जलवायु समाधान, आय सृजन के अवसरों में वृद्धि और आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • कार्बन कैप्चर का अनुकूलन: यह उन प्रथाओं को लागू करके सक्रिय परिदृश्य पर कार्बन कैप्चर को अनुकूलित करने के लिये एक संपूर्ण कृषि दृष्टिकोण है जो उस दर में सुधार करने के लिये जाने जाते हैं जिस पर वातावरण से CO2 को रिमूव करके पौधों/या मृदा कार्बनिक पदार्थों में संग्रहीत किया जाता है।
    • यह हमारे किसानों को उनकी कृषि प्रक्रियाओं में पुनर्योजी कार्यप्रणालियों को शुरू करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे उन्हें अपना ध्यान पैदावार में सुधार से लेकर कामकाजी पारिस्थितिक तंत्र और कार्बन पृथक्करण या कार्बन बाज़ारों में व्यापार करने के लिये स्थानांतरित करने में मदद मिलती है।
  • कृषक वर्ग के अनुकूल: यह न केवल मृदा के स्वास्थ्य में सुधार करता है, बल्कि हाशिये के किसानों को कार्बन क्रेडिट से प्राप्त बढ़ी हुई आय के साथ-साथ बेहतर गुणवत्ता, जैविक और रासायनिक मुक्त भोजन (फार्म टू फोर्क मॉडल) भी प्रदान कर सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. निम्नलिखित कृषि पद्धतियों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. कंटूर बंडलिंग
  2. रिले फसल
  3. शून्य जुताई

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उपर्युक्त में से कौन मिट्टी में कार्बन को अलग करने/भंडारण में मदद करता है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (b)


प्रश्न. कार्बन डाइऑक्साइड के मानवजनित उत्सर्जन के कारण होने वाले ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन कार्बन पृथक्करण के लिये संभावित स्थल हो सकता है? (2017)

  1. परित्यक्त और गैर-आर्थिक कोयले की तह
  2. तेल और गैस भंडारण में कमी
  3. भूमिगत गहरी लवणीय संरचनाएँ

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. कृषि में शून्य जुताई के क्या-क्या लाभ हैं? (2020)

  1. पिछली फसल के अवशेषों को जलाए बिना गेहूँ की बुवाई संभव है।
  2. धान के पौधों की नर्सरी की आवश्यकता के बिना गीली मृदा में धान के बीज की सीधी बुवाई संभव है।
  3. मृदा में कार्बन पृथक्करण संभव है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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