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भूगोल

जल-मौसम संबंधी आपदाओं की व्यापकता

  • 20 Aug 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये 

भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण

मेन्स के लिये 

आपदा प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मंत्रालय ने सूचित किया है कि पिछले तीन वर्षों में अचानक बाढ़, भूस्खलन और चक्रवात जैसी जल-मौसम संबंधी आपदाओं के कारण देश (पश्चिम बंगाल सूची में सबसे ऊपर है) में लगभग 6,800 लोगों की जान चली गई।

प्रमुख बिंदु 

जल-मौसम संबंधी आपदाएँ:

  • प्राकृतिक विपत्ति गंभीर प्राकृतिक घटनाएँ होती हैं, जिन्हें सामान्य तौर पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है: जल-मौसम विज्ञान और भूवैज्ञानिक खतरे।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात, भारी वर्षा, तेज आँधी, बाढ़ और सूखा जल-मौसम संबंधी खतरे हैं, जबकि भूकंप तथा ज्वालामुखी विस्फोट को भूवैज्ञानिक खतरों के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है।
  • भूस्खलन और हिमस्खलन भूवैज्ञानिक तथा जल-मौसम संबंधी कारकों के संयोजन के कारण होते हैं।

भारत की संवेदनशीलता:

  • प्राकृतिक आपदाओं के प्रति देश की उच्च संवेदनशीलता का मूल कारण इसकी अनूठी भौगोलिक और भूवैज्ञानिक स्थितियाँ हैं।
  • जहाँ तक आपदा की संवेदनशीलता का संबंध है, देश के चार विशिष्ट क्षेत्रों अर्थात् हिमालयी क्षेत्र, जलोढ़ मैदान, प्रायद्वीप के पहाड़ी भाग और तटीय क्षेत्र की अपनी विशिष्ट समस्याएँ हैं।
  • जहाँ एक ओर हिमालय क्षेत्र भूकंप और भूस्खलन जैसी आपदाओं से ग्रस्त है, वहीं मैदानी क्षेत्र लगभग प्रत्येक वर्ष बाढ़ से प्रभावित होता है।
  • देश का रेगिस्तानी हिस्सा सूखे और अकाल से प्रभावित है, जबकि तटीय क्षेत्र चक्रवात तथा तूफान के लिये अतिसंवेदनशील है।
  • विभिन्न मानव प्रेरित गतिविधियाँ जैसे- बढ़ती जनसांख्यिकीय दबाव, बिगड़ती पर्यावरणीय स्थिति, वनों की कटाई, अवैज्ञानिक विकास, दोषपूर्ण कृषि पद्धतियाँ और चराई, अनियोजित शहरीकरण, नदी चैनलों पर बड़े बाँधों का निर्माण आदि देश में आपदाओं की आवृत्ति में वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार हैं।

आपदा का प्रभाव:

  • शारीरिक और मनोवैज्ञानिक:
    • आपदा व्यक्तियों को शारीरिक तौर पर (जीवन की हानि, चोट, स्वास्थ्य, विकलांगता आदि) और मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित करती है।
    • आपदा के परिणामस्वरूप लोगों का विस्थापन होता है तथा विस्थापित आबादी को अक्सर नई बस्तियों में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, इस प्रक्रिया में गरीब और अधिक गरीब हो जाते हैं।
  • प्राकृतिक पर्यावरण में बदलाव:
    • आपदा प्राकृतिक पर्यावरण को बदल सकती है, जो कई पौधों और जानवरों के आवास का नुकसान तथा पारिस्थितिक तनाव उत्पन्न कर सकती है जिसके परिणामस्वरूप जैव विविधता का नुकसान हो सकता है।

आपदा प्रबंधन:

  • भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: इसकी स्थापना वर्ष 2005 में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत की गई थी।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना: वर्ष 2016 में जारी यह आपदा प्रबंधन के लिये देश में तैयार की गई पहली राष्ट्रीय योजना है।
  • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में यह राज्य में आपदा प्रबंधन के लिये नीतियों और योजनाओं को निर्धारित करता है।
  • ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: इस अधिनियम की धारा 25 में राज्य के प्रत्येक ज़िले के लिये ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (District Disaster Management Authority) के गठन का प्रावधान है।
  • अन्य उपायों में राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया रिज़र्व, आपदा मित्र योजना आदि शामिल हैं।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण में चुनौतियाँ :

  • निगरानी गतिविधि का खराब कार्यान्वयन :
    • प्रत्येक निगरानी गतिविधि हेतु कार्यान्वयन का अपर्याप्त स्तर है। उदाहरण- आपदा जोखिम प्रबंधन योजनाएँ या जोखिम संवेदनशील बिल्डिंग कोड मौजूद हैं लेकिन सरकारी क्षमता या जन-जागरूकता की कमी के कारण उन्हें लागू नहीं किया जाता है।
  • स्थानीय क्षमताओं की कमी:
    • स्थानीय स्तर पर कमज़ोर क्षमता आपदा तैयारी योजनाओं के कार्यान्वयन को बाधित करती है।
  • जलवायु परिवर्तन:
  • आपदा जोखिम प्रबंधन योजनाओं में जलवायु परिवर्तन के एकीकरण का अभाव।
  • प्रतिबद्धताओं में अंतर:
    • अन्य प्रतिस्पर्द्धी आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं जैसे- गरीबी में कमी, सामाजिक कल्याण, शिक्षा आदि के कारण राजनीतिक तथा आर्थिक प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने में भिन्नता की स्थिति है, जिस पर अधिक ध्यान देने के साथ ही धन की आवश्यकता होती है।
  • समन्वय की कमी:
    • हितधारकों के बीच खराब समन्वय के कारण जोखिम मूल्यांकन, निगरानी, ​​पूर्व चेतावनी, आपदा प्रतिक्रिया तथा अन्य आपदा संबंधी गतिविधियों के संबंध में अपर्याप्त पहुँच है।
  • अपर्याप्त निवेश:
    • आपदा प्रतिरोधी रणनीतियों के निर्माण में अपर्याप्त निवेश, निवेश के हिस्से में निजी क्षेत्र का सबसे कम योगदान है।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये पहल:

  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क 2015-2030
    • वर्तमान ढाँचा प्राकृतिक या मानव निर्मित खतरों के साथ-साथ पर्यावरणीय, तकनीकी एवं जैविक खतरों तथा जोखिमों के सभी प्रासंगिक क्षेत्रों पर लागू होता है।
    • इसको ह्यूगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (Hyogo Framework for Action) 2005-2015 के उत्तराधिकारी समझौते के रूप में माना जाता है। 
  • संयुक्त राष्ट्र आपदा जोखिम न्यूनीकरण कार्यालय (UNDRR):
    • UNDRR (पूर्व में UNISDR) आपदा जोखिम में कमी के लिये संयुक्त राष्ट्र का केंद्रबिंदु है। 
    • यह 2015-2030 के लिये आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर सेंदाई फ्रेमवर्क को लागू करने हेतु एक निर्दिष्ट राष्ट्रीय केंद्रबिंदु है, जो कार्यान्वयन, निगरानी और साझाकरण के कार्यों में  देशों का समर्थन करता है और मौजूदा जोखिम को कम करने तथा नए जोखिम को रोकने में काम करता है। 
  • आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI): 
    • भारत के नेतृत्व में वर्ष 2019 में स्थापित इस गठबंधन का उद्देश्य सतत् विकास के समर्थन में जलवायु और आपदा जोखिमों के लिये नए और मौजूदा बुनियादी ढाँचे से संबंधित प्रणालियों के लचीलेपन को बढ़ावा देना है।

आगे की राह 

  • हालाँकि आपदा प्रबंधन अधिनियम ने निस्संदेह आपदाओं से निपटने की दिशा में सरकारी कार्यों की योजना में एक बड़ा अंतर को समाप्त कर दिया है, केवल कागज़ पर विस्तृत योजनाएँ तैयार करने से उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती है जब तक कि उनका प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित नहीं किया जाता है।
  • नागरिक समाज, निजी उद्यम और गैर-सरकारी संगठन (NGO) एक सुरक्षित भारत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

स्रोत : द हिंदू

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