डेली न्यूज़ (10 Oct, 2023)



चीन-तिब्बत मुद्दा

प्रिलिम्स के लिये:

चीन-तिब्बत मुद्दा, दलाई लामा

मेन्स के लिये:

भारत के हितों पर विभिन्न देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में धर्मशाला में पत्रकारों के साथ बातचीत के दौरान दलाई लामा ने तिब्बती लोगों द्वारा चीन के भीतर अधिक स्वायत्तता की मांग के संबंध में अपना रुख स्पष्ट किया, साथ ही उन्होंने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा रहते हुए तिब्बती लोगों के स्वशासन की इच्छा पर बल दिया।

चीन-तिब्बत मुद्दा:

  • तिब्बत की स्वतंत्रता:
    • यह एशिया में तिब्बती पठार पर लगभग 2.4 मिलियन वर्ग किमी. में विस्तृत क्षेत्र है जो चीन के क्षेत्रफल का लगभग एक-चौथाई है।
    • यह तिब्बती लोगों के साथ-साथ कुछ अन्य जातीय समूहों की पारंपरिक मातृभूमि है।
    • तिब्बत पृथ्वी पर सबसे ऊँचा क्षेत्र है, जिसकी औसत ऊँचाई 4,900 मीटर है। तिब्बत में माउंट एवरेस्ट (पृथ्वी का सबसे ऊँचा पर्वत) समुद्र तल से 8,848 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
    • 13वें दलाई लामा, थुबटेन ग्यात्सो ने वर्ष 1913 की शुरुआत में तिब्बती स्वतंत्रता की घोषणा की।
      • चीन ने तिब्बत की स्वतंत्रता को मान्यता न देते हुए इस क्षेत्र पर संप्रभुता के दावे को कायम रखा।

  • चीनी आक्रमण और सत्रह सूत्रीय समझौता:
    • वर्ष 1912 से लेकर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना (वर्ष 1949) तक किसी भी चीनी सरकार ने वर्तमान में चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region- TAR) पर नियंत्रण नहीं रखा।
    • इस क्षेत्र पर दलाई लामा की सरकार ने वर्ष 1951 तक शासन किया था। माओत्से तुंग की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के तिब्बत में प्रवेश करने और उस पर आक्रमण करने के पहले तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र था।
    • वर्ष 1951 में तिब्बती नेताओं को चीन द्वारा निर्धारित एक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिये विवश किया गया था। यह संधि ‘सत्रह सूत्री समझौते’ के नाम से जानी जाती है जो तिब्बती स्वायत्तता की गारंटी/सुनिश्चितता सहित बौद्ध धर्म का सम्मान करने का दावा करती है, किंतु साथ ही ल्हासा (तिब्बत की राजधानी) में चीनी सिविल तथा मिलिट्री (सैन्य) मुख्यालय की स्थापना की भी अनुमति देती है।
      • हालाँकि दलाई लामा सहित तिब्बती लोग इसे अमान्य करार देते हैं।
      • तिब्बती तथा अन्य लोगों द्वारा इस संधि को ‘सांस्कृतिक नरसंहार’ (Cultural Genocide) के रूप में वर्णित किया जाता है।
  • 1959 का तिब्बती विद्रोह:
    • तिब्बत और चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण वर्ष 1959 में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ आया जब दलाई लामा को अपने अनुयायियों के एक समूह के साथ शरण की तलाश में भारत भागना पड़ा।
    • दलाई लामा का अनुसरण करने वाले तिब्बतियों ने भारत के धर्मशाला स्थित क्षेत्र में एक निर्वासित सरकार बनाई, जिसे केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (CTA) के नाम से जाना जाता है।
  • 1959 में हुए तिब्बती विद्रोह के परिणाम:
    • 1959 के विद्रोह के बाद से चीन की केंद्र सरकार लगातार तिब्बत पर अपनी पकड़ मज़बूत करती जा रही है।
    • वर्तमान में तिब्बत में भाषण, धर्म अथवा प्रेस की स्वतंत्रता नहीं है एवं चीन द्वारा तिब्बती लोगों की विधि विरुद्ध गिरफ्तारी जारी है।
    • जबरन गर्भपात, तिब्बती महिलाओं का बंध्यकरण तथा निम्न आय वाले चीनी नागरिकों के तिब्बत में स्थानांतरण से तिब्बती संस्कृति के अस्तित्व को खतरा पहुँचा है।
    • हालाँकि चीन ने संबद्ध क्षेत्र, विशेषकर ल्हासा में आधारभूत अवसंरचना में सुधार हेतु निवेश किया है, जिससे हज़ारों हान समुदाय के चीनी लोगों को तिब्बत में बसने को प्रोत्साहित किया गया। जिसके परिणामस्वरूप तिब्बत में जनसांख्यिकीय बदलाव आया है।

तिब्बत और दलाई लामा का भारत-चीन संबंधों पर प्रभाव:

  • तिब्बत वास्तव में सदियों से भारत का पड़ोसी रहा, क्योंकि भारत की अधिकांश सीमाएँ तथा 3500 किमी. LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के साथ है, न कि शेष चीन के साथ।
  • वर्ष 1914 में ये तिब्बती प्रतिनिधि ही थे, जिन्होंने चीनियों के साथ मिलकर ब्रिटिश भारत के साथ शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किये और जिसने सीमाओं का रेखांकन किया।
  • हालाँकि वर्ष 1950 में चीन द्वारा तिब्बत के पूर्ण विलय के बाद चीन ने उस समझौते और मैकमोहन लाइन को अस्वीकार कर दिया जिसने दोनों देशों को विभाजित किया था।
  • इसके अलावा वर्ष 1954 में भारत ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें तिब्बत को ‘चीन के तिब्बत क्षेत्र’ के रूप में मान्यता देने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • भारत में दलाई लामा की मौजूदगी भारत-चीन संबंधों में लगातार कड़वाहट उत्पन्न करती रही है, क्योंकि चीन उन्हें अलगाववादी मानता है।
  • जल संसाधनों और भू-राजनीतिक विचारों के संदर्भ में तिब्बती पठार का महत्त्व भारत-चीन-तिब्बत समीकरण को जटिल बनाता है। 

तिब्बत में हाल के घटनाक्रम:

  • चीन, तिब्बत में अगली पीढ़ी के बुनियादी ढाँचे का निर्माण और विकास कार्य कर रहा है, जैसे कि सीमा रक्षा गाँव, बाँध, सभी मौसम के लिये तेल पाइपलाइन और इंटरनेट कनेक्टिविटी परियोजनाएँ।
  • ‘तिब्बती बौद्ध धर्म हमेशा से चीनी संस्कृति का हिस्सा रहा है’, चीन इस बात का प्रचार करके अगले दलाई लामा के चयन को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है।
  • भारत सरकार वर्ष 1987 के कट-ऑफ वर्ष के बाद भारत में पैदा हुए तिब्बतियों को नागरिकता नहीं देती है।
    • इससे तिब्बती समुदाय के युवाओं में असंतोष की भावना पैदा हो गई है।

दलाई लामा:

  • परिचय:
    • दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म की गेलुग्पा परंपरा से संबंधित हैं, जो तिब्बत में सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली परंपरा है।
    • तिब्बती बौद्ध धर्म के इतिहास में केवल 14 दलाई लामा हुए हैं और पहले तथा दूसरे दलाई लामा को मरणोपरांत यह उपाधि दी गई थी।
      • 14वें और वर्तमान दलाई लामा तेनज़िन ग्यात्सो हैं।
    • माना जाता है कि दलाई लामा करुणा के बोधिसत्व और तिब्बत के संरक्षक संत, अवलोकितेश्वर या चेनरेज़िग की अभिव्यक्ति हैं।
      • बोधिसत्व ऐसे साकार प्राणी हैं जिन्होंने मानवता की सहायता के लिये पृथ्वी पर लौटने का प्रण किया है और सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिये बुद्धत्व प्राप्त करने की इच्छा से प्रेरित हैं।
  • दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया:
    • दलाई लामा को चुनने की प्रक्रिया में पारंपरिक रूप से पूर्व दलाई लामा के पुनर्जन्म की पहचान करना शामिल है, जिन्हें तिब्बती बौद्ध धर्म का आध्यात्मिक मार्ग दर्शक माना जाता है।
    • दलाई लामा के पुनर्जन्म की खोज सामान्यतः पूर्व दलाई लामा के निधन के बाद शुरू होती है।
      • बौद्ध विद्वानों के अनुसार, वर्तमान दलाई लामा की मृत्यु के बाद अगले दलाई लामा की खोज करना गेलुग्पा परंपरा के उच्च लामाओं और तिब्बती सरकार की ज़िम्मेदारी है।
    • यदि एक से अधिक उम्मीदवारों की पहचान की जाती है, तो उचित उत्तराधिकारी का चुनाव अधिकारियों और भिक्षुओं द्वारा एक सार्वजनिक समारोह में चिट्ठी डालकर किया जाता है।
    • चयनित उम्मीदवार, जो आमतौर पर बहुत कम उम्र का होता है, को दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में पहचाना जाता है और उसे कठोर आध्यात्मिक एवं शैक्षिक प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ता है।
    • दलाई लामा की भूमिका में तिब्बती बौद्ध धर्म में आध्यात्मिक और राजनीतिक नेतृत्व दोनों शामिल हैं तथा इनकी चयन प्रक्रिया तिब्बती सांस्कृतिक व धार्मिक परंपराओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • इस प्रक्रिया में कई वर्ष लग सकते हैं: 14वें (वर्तमान) दलाई लामा को खोजने में चार वर्ष लग गए थे।
      • यह खोज आमतौर पर तिब्बत तक ही सीमित है, हालाँकि वर्तमान दलाई लामा ने कहा है कि ऐसी संभावना है कि उनका पुनर्जन्म नहीं होगा और यदि उनका पुनर्जन्म होगा, तो वह चीनी शासन के तहत किसी देश में नहीं होगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन भावी बुद्ध है, जो संसार की रक्षा हेतु अवतरित होंगे? (2018)

(a) अवलोकितेश्वर
(b) लोकेश्वर
(c) मैत्रेय
(d) पद्मपाणि

उत्तर: (C)


प्रश्न. बोधिसत्व पद्मपाणि का चित्र सर्वाधिक प्रसिद्ध और प्रायः चित्रित चित्रकारी है, जो: (2017)

(a) अजंता में है 
(b) बदामी में है
(c) बाघ में है
(d) एलोरा में है

उत्तर: (A)


गर्भाशय प्रत्यारोपण

प्रिलिम्स के लिये:

गर्भाशय प्रत्यारोपण, कृत्रिम गर्भाशय, इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन

मेन्स के लिये:

विज्ञान और प्रौद्योगिकी- विकास तथा उनके अनुप्रयोग, जैव-प्रौद्योगिकी

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन) में पहला गर्भाशय प्रत्यारोपण किया गया, यह प्रजनन संबंधी चुनौतियों से जूझ रही महिलाओं के लिये आशा की नई किरण है।

  • भारत सफलतापूर्वक गर्भाशय प्रत्यारोपण करने वाले कुछ देशों में से एक है; अन्य देश तुर्किये, स्वीडन और अमेरिका हैं।
  • डॉक्टरों का लक्ष्य अब प्रत्यारोपण सर्जरी की लागत को कम करना है, भारत में वर्तमान में इसकी लागत 15-17 लाख रुपए है। साथ ही उनका लक्ष्य प्रत्यारोपण को सरल बनाना और अंग प्रत्यारोपण तथा अंगदान संबंधी नैतिक चिंताओं को दूर करते हुए एक बायोइंजीनियर्ड कृत्रिम गर्भाशय विकसित करना है।

गर्भाशय प्रत्यारोपण:

  • परिचय:
    • हृदय अथवा यकृत प्रत्यारोपण, जो कि व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करते हैं, के विपरीत गर्भाशय प्रत्यारोपण जीवन रक्षक प्रत्यारोपण नहीं है। 
    • गर्भाशय प्रत्यारोपण उन महिलाओं के लिये मददगार साबित हो सकता है जो गर्भाशय की कमी का सामना कर रही हैं, इससे उनकी प्रजनन संबंधी ज़रूरत पूरी हो सकती है
    • वर्ष 2014 में स्वीडन में गर्भाशय प्रत्यारोपण के बाद पहला सजीव/जीवित जन्म संभव हुआ, जो यूटरिन फैक्टर इनफर्टिलिटी के उपचार में एक सफल प्रयास है।
  • गर्भाशय प्रत्यारोपण में शामिल चरण:
    • प्रत्यारोपण से पूर्व प्राप्तकर्त्ता का संपूर्ण शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य मूल्यांकन किया जाता है।
    • दाता से प्राप्त गर्भाशय, चाहे जीवित दाता हो अथवा मृत दाता, की व्यवहार्यता के लिये उसकी गहनता से जाँच की जाती है।
      • जीवित दाता को स्त्री रोग संबंधी परीक्षण तथा कैंसर स्क्रीनिंग सहित विभिन्न परीक्षणों से गुज़रना पड़ता है।
    • इस प्रक्रिया में अंडाणु को अंडाशय से गर्भाशय में भेजा जाता है क्योंकि गर्भाशय और फैलोपियन ट्यूब जुड़े नहीं होते हैं तथा ऐसे में एक महिला को कृत्रिम गर्भधारण का सहारा लेना पड़ता है।
      • इसके बजाय डॉक्टर प्राप्तकर्त्ता के अंडाणु को हटा देते हैं, पात्रे निषेचन/इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन का उपयोग करके भ्रूण बनाते हैं और उन भ्रूण को फ्रीज़ कर देते हैं (क्रायोप्रिज़र्वेशन)।
        • एक बार जब नया प्रत्यारोपित गर्भाशय 'तैयार' हो जाता है, तो डॉक्टर भ्रूण को गर्भाशय में प्रत्यारोपित करते हैं।
    • रोबोट-सहायक लैप्रोस्कोपी का उपयोग दाता के गर्भाशय को सटीक रूप से निकालने के लिये किया जाता है, जिससे प्रक्रिया कम जटिल हो जाती है।
    • प्रत्यारोपण प्रक्रिया के बाद महत्त्वपूर्ण गर्भाशय वाहिका (हृदय को शरीर के अन्य अंगों और ऊतकों से जोड़ने वाली वाहिकाओं का नेटवर्क) तथा अन्य महत्त्वपूर्ण धमनियों को विधिपूर्वक पुनः व्यवस्थित किया जाता है।
  • प्रत्यारोपण के बाद गर्भावस्था:
    • इसकी सफलता तीन चरणों में निर्धारित होती है:
      • पहले तीन माह में निरोप (Graft) व्यवहार्यता की निगरानी करना।
      • छह माह से एक वर्ष के बीच गर्भाशय की कार्यप्रणाली का आकलन करना।
      • इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन के साथ गर्भावस्था का प्रयास करना, लेकिन इसमें अस्वीकृति या जटिलताओं जैसे उच्च जोखिम होते है।
      • सफलता का अंतिम चरण सफल प्रसव है।
    • अस्वीकृति, गर्भपात, जन्म के समय कम वज़न और समय से पहले जन्म जैसे संभावित जोखिमों के कारण बार-बार जाँच आवश्यक है।
  • विचार और दुष्प्रभाव:
    • अस्वीकृति को रोकने के लिये इम्यूनोसप्रेसेन्ट दवाएँ आवश्यक हैं लेकिन इसके दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
    • साइड इफेक्ट्स में किडनी और अस्थि मज्जा विषाक्तता एवं मधुमेह तथा कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
    • इन चिंताओं के चलते सफल प्रसव के बाद गर्भाशय को हटा दिया जाना चाहिये और शिशु के जन्म के बाद कम-से-कम एक दशक तक नियमित जाँच की जाती है।

कृत्रिम गर्भाशय: 

  • गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ता बायोइंजीनियर्ड गर्भाशय पर काम कर रहे हैं। इन्हें 3D स्कैफोल्ड की नींव के रूप में एक महिला के रक्त या अस्थि मज्जा से ली गई स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करके बनाया गया है।
    • चूहों के साथ इनके प्रारंभिक अनुप्रयोग ने आशाजनक संकेत दिये है।
  • कृत्रिम गर्भाशय जीवित प्रदाता की आवश्यकता को समाप्त कर सकता है, नैतिक चिंताओं को दूर कर सकता है और स्वस्थ प्रदाताओं के लिये संभावित जोखिमों को कम कर सकता है।
  • कृत्रिम गर्भाशय की वजह से बाँझपन की समस्या का सामना कर रही महिलाओं के साथ-साथ LGBTQ+ समुदाय के सदस्यों को भी फायदा हो सकता है। 
    • हालाँकि ट्रांस-महिला धारकों को अभी भी अतिरिक्त प्रक्रियाओं की आवश्यकता हो सकती है, जैसे- वंध्यकरण (नर पशु या मानव के अंडकोष को हटाना) और हार्मोन थेरेपी।
    • इसके अलावा विकासशील भ्रूण को सहारा देने के लिये लगातार रक्त प्रवाह सुनिश्चित करना कृत्रिम गर्भाशय के निर्माण में एक चुनौती है, क्योंकि पुरुष शरीर में गर्भाशय और भ्रूण के विकास के लिये आवश्यक संरचनाओं का अभाव होता है।
  • भविष्य की संभावनाएँ:
    • कृत्रिम गर्भाशय प्रजनन चिकित्सा में रोमांचक संभावनाएँ प्रदान कर सकता है लेकिन मानव प्रजनन के लिये व्यावहारिक समाधान बनने से पूर्व इसमें और अधिक शोध एवं विकास की आवश्यकता है।

छत्रपति शिवाजी महाराज का वाघ नख

प्रिलिम्स के लिये:

वाघ नख, छत्रपति शिवाजी, चौथ, सरदेशमुखी, सरंजाम प्रणाली

मेन्स के लिये:

मराठा साम्राज्य और प्रशासन

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

महाराष्ट्र के सांस्कृतिक कार्य मंत्रालय ने छत्रपति शिवाजी महाराज के अस्त्र "वाघ नख" को राज्य में वापस लाने के लिये लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • इस समझौता ज्ञापन के अनुसार, प्राचीन हथियार को तीन वर्ष की अवधि के लिये ऋणात्मक आधार पर महाराष्ट्र सरकार को सौंपा जाएगा, उक्त अवधि के दौरान इसे राज्य भर के संग्रहालयों में प्रदर्शित किया जाएगा।

वाघ नख:

  • 'वाघ नख', जिसका शाब्दिक अर्थ है 'बाघ का पंजा', एक विशिष्ट मध्यकालीन खंजर है जिसका उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप में किया जाता है।
    • इस घातक हथियार में एक दस्ताने और एक छड़ से जुड़े चार अथवा पाँच घुमावदार ब्लेड होते हैं, जिसे व्यक्तिगत सुरक्षा अथवा गुप्त तरीके से हमला करने के लिये डिज़ाइन किया गया था
    • इसके नुकीले ब्लेड काफी तेज़ थे।
  • छत्रपति शिवाजी द्वारा 'वाघ नख' का उपयोग:
    • कोंकण क्षेत्र में शिवाजी की मज़बूत पकड़ व अभियानों को कमज़ोर करने के लिये नियुक्त किये गए बीजापुर के सेनापति अफज़ल खान और छत्रपति शिवाजी के बीच मुठभेड़ हुई थी। अफज़ल खान ने शांतिपूर्ण सुलह का सुझाव दिया था किंतु संभावित खतरे की आशंका को देखते हुए शिवाजी पूरी तैयारी के साथ आए थे।
      • उन्होंने 'वाघ नख' को छुपाए रखा था और अपनी पोशाक के नीचे चेनमेल (छोटे धातु के छल्ले से बना कवच) पहन रखा था। आपसी संघर्ष में शिवाजी ने अफज़ल खान पर 'वाघ नख' से हमला किया जिसके परिणामस्वरूप खान की मृत्यु हो गई, अंततः शिवाजी की जीत हुई।

छत्रपति शिवाजी महाराज से संबंधित प्रमुख बिंदु:

  • जन्म:
    • उनका जन्म 19 फरवरी, 1630 को महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के शिवनेरी किले में हुआ था, वह बीजापुर सल्तनत के तहत पुणे और सुपे की जागीरदारी रखने वाले मराठा सेनापति शाहजी भोंसले तथा एक धार्मिक महिला जीजाबाई के पुत्र थे, जिनका शिवाजी के जीवन पर काफी प्रभाव पड़ा।

  • उपाधियाँ: 
    • उनके द्वारा छत्रपति, शाककार्ता, क्षत्रिय कुलवंत तथा हैंदव धर्मोधारक की उपाधियाँ धारण की गई।
  • शिवाजी के अधीन प्रशासन:
    • केंद्रीय प्रशासन:
      • उन्होंने आठ मंत्रियों की एक परिषद (अष्टप्रधान) के साथ एक केंद्रीकृत प्रशासन की स्थापना की, जो प्रत्यक्ष रूप से उनके प्रति ज़िम्मेदार थे और राज्य के विभिन्न मामलों पर उन्हें सलाह देते थे।
      • पेशवा, जिसे मुख्य प्रधान के रूप में भी जाना जाता है, मूल रूप से राजा शिवाजी की सलाहकार परिषद का नेतृत्व करता था।
    • प्रांतीय प्रशासन:
      • शिवाजी ने अपने राज्य को चार प्रांतों में विभाजित किया। प्रत्येक प्रांत को ज़िलों और ग्राम में विभाजित किया गया था। प्रशासन की मूल इकाई ग्राम थी तथा यह ग्राम पंचायत की मदद से देशपांडे द्वारा शासित था।
      • केंद्र की भांति ,आठ मंत्रियों की एक समिति अथवा परिषद होती थी। जिसमें सर-ए- 'कारकुन' अथवा 'प्रांतपति' (प्रांत का प्रमुख) होता था।
    • राजस्व प्रशासन:
      • शिवाजी ने जागीरदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया और इसे रैयतवारी प्रणाली में बदल दिया तथा वंशानुगत राजस्व अधिकारियों की स्थिति में परिवर्तन किया, जिन्हें देशमुख, देशपांडे, पाटिल एवं कुलकर्णी के नाम से जाना जाता था।
      • शिवाजी उन मीरासदारों (Mirasdar) का कड़ाई से पर्यवेक्षण करते थे जिनके पास भूमि पर वंशानुगत अधिकार था।
      • राजस्व प्रणाली मलिक अंबर की काठी प्रणाली (Kathi System) से प्रेरित थी, जिसमें भूमि के प्रत्येक टुकड़े को रॉड अथवा काठी द्वारा मापा जाता था।
      • चौथ और सरदेशमुखी आय के अन्य स्रोत थे।
        • चौथ कुल राजस्व का 1/4 भाग था जिसे गैर-मराठा क्षेत्रों से मराठा आक्रमण से बचने के बदले वसूला जाता था।
        • यह आय का 10 प्रतिशत होता था जो अतिरिक्त कर के रूप में था।
  • सैन्य प्रशासन:
    • शिवाजी ने एक अनुशासित और कुशल सेना का गठन किया। सामान्य सैनिकों को नकद में भुगतान किया जाता था, लेकिन प्रमुख एवं सैन्य कमांडर को जागीर अनुदान (सरंजाम) के माध्यम से भुगतान किया जाता था।
      • उनकी सेना में इन्फैंट्री सेना (मावली पैदल सैनिक), घुड़सवार सेना (घुड़सवार और उपकरण संचालक) तथा एक नौसेना शामिल थी।
    • मुख्य भूमिकाओं में सेना के प्रभारी सर-ए-नौबत (सेनापति), किलों की देख-रेख करने वाले किलेदार, पैदल सेना इकाइयों का नेतृत्व करने वाले नायक, पाँच नायकों के समूहों का नेतृत्व करने वाले हवलदार तथा पाँच नायकों की देखरेख करने वाले जुमलादार शामिल थे।
  • मृत्यु:
    • शिवाजी का निधन वर्ष 1680 में रायगढ़ में हुआ तथा उनका अंतिम संस्कार रायगढ़ किले में किया गया। उनके साहस, युद्ध रणनीति और प्रशासनिक कौशल की स्मृति एवं सम्मान में प्रत्येक वर्ष 19 फरवरी को शिवाजी महाराज जयंती मनाई जाती है।

इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

इज़रायल, फिलिस्तीन, मध्य-पूर्व, अरब वर्ल्ड, योम किप्पुर युद्ध, ज़ायोनीवाद, अल-अक्सा मस्ज़िद, गाज़ा पट्टी, येरुशलम, फिलिस्तीनी लिबरेशन ओर्गेनाईज़ेशन(PLO)

मेन्स के लिये:

इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का भारत और अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीतिक परिदृश्य पर प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गाज़ा पट्टी पर शासन करने वाले उग्रवादी समूह हमास ने जल, थल और वायु मार्ग से इज़रायल पर विनाशकारी हमला किया, जिसमें कई लोगों की जान गई है। इससे इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के बीच सदियों से चला आ रहा विवाद पुनर्जीवित हो गया है, जिसमें वैश्विक एवं क्षेत्रीय शक्तियों के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

  • हालिया कुछ समय पहले इज़राइल ने यूएई, सऊदी अरब आदि पड़ोसी देशों के साथ कई शांति समझौते किये हैं, इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष से इन समझौतों पर प्रभाव पड़ना निश्चित है।

इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष:

  • बॅल्फोर घोषणा:
    • इज़रायल-फिलिस्तीन के बीच संघर्ष की नींव वर्ष 1917 में रखी गई थी जब तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव आर्थर जेम्स बॅल्फोर ने बॅल्फोर घोषणा के तहत फिलिस्तीन में यहूदियों के लिये "नेशनल होम" हेतु ब्रिटेन का आधिकारिक समर्थन व्यक्त किया था।
  • फिलिस्तीन का निर्माण:
    • अरब और यहूदी हिंसा को रोकने में असमर्थ ब्रिटेन ने वर्ष 1948 में फिलिस्तीन से अपनी सेनाएँ वापस बुला लीं और प्रतिस्पर्द्धी दावों का निपटान करने की ज़िम्मेदारी नवनिर्मित संयुक्त राष्ट्र पर छोड़ दी।
      • संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन में स्वतंत्र यहूदी और अरब राज्य के निर्माण के लिये एक विभाजन योजना प्रस्तुत की जिसे अधिकांश अरब देशों ने अस्वीकार कर दिया।
  • अरब इज़रायल युद्ध (1948):
    • वर्ष 1948 में इज़रायल की स्वतंत्रता की यहूदी घोषणा के बाद से पड़ोसी अरब राज्यों ने इज़रायल पर आक्रमण शुरू कर दिया। इन युद्धों के अंत में इज़रायल ने संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना की अपेक्षा लगभग 50% अधिक क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया।
  • संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना:
    • इस योजना के अनुसार, जॉर्डन ने वेस्ट बैंक और यरूशलम के पवित्र स्थलों तथा मिस्र ने गाज़ा पट्टी पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया किंतु यह फिलिस्तीनी संकट को हल करने में विफल रहा जिसके कारण वर्ष 1964 में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन का गठन हुआ।
  • फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO):
    • फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन की स्थापना फिलिस्तीन को इज़रायल और यहूदी प्रभुत्व से मुक्त कराने तथा अरब राज्यों पर मुस्लिम राज्यों का प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य से की गई थी।
      • संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1975 में PLO को पर्यवेक्षक का दर्जा प्रदान किया तथा फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार को मान्यता दी।
  • छह दिवसीय युद्ध: वर्ष 1967 के युद्ध में इज़रायली सेना ने सीरिया से गोलान हाइट्स, जॉर्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम तथा मिस्र के सिनाई प्रायद्वीप व गाज़ा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया।
  • कैंप डेविड एकॉर्ड्स (1978):
    • अमेरिका की मध्यस्थता में "मध्य-पूर्व क्षेत्र में शांति के लिये रूपरेखा" ने इज़रायल और उसके पड़ोसी राज्यों के बीच शांति वार्ता तथा "फिलिस्तीनी समस्या" के समाधान के लिये मंच प्रदान किया किंतु इसकी उपयोगिता न के बराबर रही।
  • हमास का उदय:
    • वर्ष 1987: हमास मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड की एक हिंसक शाखा थी, जो हिंसक जिहाद के माध्यम से अपने एजेंडे को पूरा करना चाहती थी।
      • हमास: अमेरिका इसे एक आतंकवादी संगठन मानता है। वर्ष 2006 में हमास ने फिलिस्तीनी प्राधिकरण के विधायी चुनाव में जीत दर्ज की और वर्ष 2007 में फतह को गाज़ा से अलग कर दिया, साथ ही फिलिस्तीनी आंदोलन को भौगोलिक रूप से भी विभाजित कर दिया।
    • वर्ष 1987: वेस्ट बैंक और गाज़ा के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में तनाव चरम पर पहुँच गया जिसके परिणामस्वरूप पहला इंतिफादा (फिलिस्तीनी विद्रोह) हुआ। यह फिलिस्तीनी उग्रवादियों तथा इज़रायली सेना के बीच एक छोटे युद्ध में परिवर्तित हो गया।
  • ओस्लो समझौता:
    • वर्ष 1993: ओस्लो समझौते के तहत इज़रायल और PLO आधिकारिक तौर पर एक-दूसरे को मान्यता देने एवं हिंसात्मक गतिविधियों पर रोक लगाने पर सहमत हुए। ओस्लो समझौते द्वारा फिलिस्तीनी प्राधिकरण की भी स्थापना की गई, जिसे गाज़ा पट्टी तथा वेस्ट बैंक के कुछ हिस्सों में सीमित स्वायत्तता स्थापित हुई।
    • वर्ष 2005: इज़रायल ने गाज़ा क्षेत्र से यहूदियों को वापस लाना शुरू कर दिया।। हालाँकि इज़रायल ने सभी सीमा पारगमन पर कड़ी निगरानी बनाए रखी।
    • वर्ष 2012: संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन का दर्जा अब "गैर-सदस्य पर्यवेक्षक राज्य" का है।
  • पड़ोसी देशों के साथ इज़रायल का क्षेत्रीय विवाद:
    • वेस्ट बैंक: वेस्ट बैंक इज़रायल और जॉर्डन के बीच स्थित है। रामल्लाह वेस्ट बैंक के प्रमुख शहरों में से एक है, जो फिलिस्तीन की वास्तविक प्रशासनिक राजधानी है। वर्ष 1967 के युद्ध में इज़रायल ने इस पर कब्ज़ा कर लिया तथा पिछले कुछ वर्षों में वहाँ बस्तियाँ भी बसा लीं हैं।
    • गाज़ा: गाज़ा पट्टी इज़रायल और मिस्र के बीच स्थित है। इज़रायल ने वर्ष 1967 के बाद इस पर नियंत्रण कर लिया, किंतु ओस्लो शांति प्रक्रिया के दौरान अधिकांश क्षेत्र में गाज़ा शहर व दिन-प्रतिदिन के प्रशासन से नियंत्रण हटा लिया। वर्ष 2005 में इज़रायल ने एकतरफा यहूदी बस्तियों को गाज़ा क्षेत्र से हटा दिया, लेकिन इसने यहाँ पर अन्य राज्यों की पहुँच को नियंत्रित करना जारी रखा है।
    • गोलान हाइट्स: वर्ष 1967 के युद्ध के दौरान इज़रायल ने सीरिया से गोलान हाइट्स पर कब्ज़ा कर लिया और वर्ष 1981 में इस पर पूर्ण रूप से कब्ज़ा कर लिया। हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर यरुशलम और गोलान हाइट्स को इज़रायल के हिस्से के रूप में मान्यता दी है।

पिछले कुछ वर्षों में इज़रायल और भारत के संबंध:

  • इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत का रुख:
    • भारत वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र की विभाजन योजना का विरोध करने वाले कुछ देशों में से एक था।
    • भारत ने वर्ष 1950 में इज़रायल को मान्यता दी थी लेकिन फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (PLO) को फिलिस्तीन के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला यह पहला गैर-अरब देश भी है। भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीन को राज्य का दर्जा देने वाले पहले देशों में से एक है।
    • हाल के दिनों में भारत का रुख डी-हाईफेनेशन नीति की ओर देखा जा रहा है।
    • डी-हाईफेनेशन नीति:
      • विश्व में सबसे लंबे समय तक चलने वाले इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत की नीति पहले चार दशकों के लिये स्पष्ट रूप से फिलिस्तीन समर्थक होने से लेकर बाद के तीन दशक में इज़रायल के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंधों के साथ संतुलन बनाने वाली रही।
      • हाल के वर्षों में भारत की स्थिति को भी इज़रायल समर्थक के रूप में देखा जा रहा है।
    • इसके अतिरिक्त भारत इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के संबंध में दो-राज्य समाधान (Two-State Solution) में विश्वास करता है तथा शांतिपूर्ण तरीके से दोनों देशों के लिये आत्मनिर्णय के अधिकार का प्रस्ताव करता है।

इज़रायल-सऊदी अरब संबंधों पर हमले का प्रभाव:

  • इज़रायल पर हमास के हमले का एक कारण सऊदी अरब तथा इज़रायल के साथ-साथ अन्य देशों को एक साथ लाने के प्रयासों को बाधित करना माना जा सकता है जो इज़रायल के साथ अपने संबंधों को मैत्रीपूर्ण बनाना चाहते हैं।
  • हमास ने यरूशलम की अल-अक्सा मस्जिद के लिये खतरों, गाज़ा पर इज़रायल की नाकाबंदी जारी रखने तथा संबद्ध क्षेत्र के देशों के साथ इज़रायल के सामान्यीकरण पर प्रकाश डाला था।
  • सऊदी अरब को इज़रायल से अलग करने से मुस्लिम ब्रदरहुड के एजेंडे तथा अरब और मध्य-पूर्व क्षेत्र पर क्षेत्रीय संप्रभुता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
  • इज़रायल के साथ क्षेत्रीय शक्तियों के संबंधों के सामान्यीकरण से फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर पुनः कब्ज़ा करने के मामले में इज़रायल की स्थिति और मज़बूत होगी।
  • संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, सऊदी अरब आदि के साथ संबंधों से आधारभूत अवसंरचना के विकास को काफी बढ़ावा मिलेगा तथा इन देशों के बीच अंतर-निर्भरता और अंतर-संबंध की स्थिति बनेगी, जो फिलिस्तीन के लिये चिंता का विषय बनेगा।

आगे की राह

  • बड़े पैमाने पर विश्व को शांतिपूर्ण समाधान के लिये एक साथ आने की ज़रूरत है किंतु इज़रायली सरकार तथा अन्य संबंधित पक्षों की अनिच्छा ने इस मुद्दे को और अधिक बढ़ा दिया है। एक संतुलित दृष्टिकोण अरब देशों के साथ-साथ इज़रायल के साथ भी अनुकूल संबंध बनाए रखने में मदद करेगा।
  • इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्को के बीच संबंधों में हालिया सामान्यीकरण समझौते, जिन्हें अब्राहम एकॉर्ड कहा जाता है, आपसी परस्परता को प्रदर्शित करते हैं। सभी क्षेत्रीय शक्तियों को अब्राहम एकॉर्ड की तर्ज पर दोनों देशों के बीच शांति की परिकल्पना करनी चाहिये।
  • बहुपक्षीय संगठनों में भारत की भूमिका के लिये "मध्य-पूर्व और पश्चिम एशिया में सुरक्षा एवं स्थिरता के लिये सभी संबंधित पक्षों के सहयोग से कड़े प्रयासों" की आवश्यकता है।
  • भारत वर्तमान में 2021-22 की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का एक गैर-स्थायी सदस्य है तथा 2022-24 के लिये मानवाधिकार परिषद के लिये पुनः चुना गया था। भारत को इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे को सुलझाने के लिये मध्यस्थ के रूप में कार्य करने हेतु इन बहुपक्षीय मंचों का उपयोग करना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. दक्षिण-पश्चिमी एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक नहीं फैला है? (2015)

(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इज़रायल

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. ‘आवश्यकता से कम नगदी, अत्यधिक राजनीति ने यूनेस्को को जीवन- रक्षण की स्थिति में पहुँचा दिया है।’ अमेरिका द्वारा सदस्यता परित्याग करने और सांस्कृतिक संस्था पर ‘इज़रायल विरोधी पूर्वाग्रह’ होने का दोषारोपण करने के प्रकाश में इस कथन की विवेचना कीजिये।’ (2019)

प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (2018)


लोकसभा में नैतिकता और पारदर्शिता सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

आचरण संहिता को बढ़ावा देना, सदस्यों के व्यावसायिक हितों की घोषणा, आचार संहिता, नैतिकता पर संसदीय स्थायी समितियाँ, लोकसभा, राज्यसभा, RTI (सूचना का अधिकार) अधिनियम

मेन्स के लिये:

लोकसभा, संसद और राज्य विधानमंडलों में नैतिकता एवं पारदर्शिता बढ़ाने के लिये सुधार, शासन के महत्त्वपूर्ण पहलू, पारदर्शिता और जवाबदेही।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

वर्तमान में लोकसभा में दो महत्त्वपूर्ण सुधार लंबित हैं, जिनका उद्देश्य सदस्यों के बीच आचरण संहिता तथा पारदर्शिता को बढ़ावा देना है। ये दो सुधार लोकसभा सदस्यों के लिये आचार संहिता का निर्माण तथा सदस्यों के व्यावसायिक हितों की घोषणा हैं।

आचार संहिता

    • पृष्ठभूमि:
      • केंद्रीय मंत्रियों के लिये एक संहिता अपनाई गई तथा राज्य सरकारों को भी इसे अपनाने की सलाह दी गई।
        • वर्तमान में आचार संहिता केंद्र और राज्य दोनों के मंत्रियों पर लागू होती है।
      • सांसदों के मामले में पहला कदम दोनों सदनों में नैतिकता पर संसदीय स्थायी समितियों का गठन करना था।
        • राज्यसभा में समिति का उद्घाटन वर्ष 1997 में सदस्यों के आचार और नैतिक आचरण की निगरानी करने तथा सदस्यों के नैतिक तथा अन्य कदाचार के संदर्भ में संदर्भित मामलों की जाँच करने के लिये किया गया था।
        • में पहली आचार समिति का गठन वर्ष 2000 में किया गया था और तब से आचार संहिता के मुद्दे पर समय-समय पर चर्चा तथा सिफारिशें की जाती रही हैं।
    • विलंब एवं वर्तमान स्थिति:
      • लोकसभा की आचार समिति आठ वर्षों से अधिक समय से आचार संहिता पर विचार-विमर्श कर रही है, जो इस महत्त्वपूर्ण मुद्दे को संबोधित करने में लंबे समय से देरी को दर्शाता है।
      • यह मामला पहली बार दिसंबर 2014 में सामने आया था जब लोकसभा की नैतिक/आचार समिति ने लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों में प्रस्तावित संशोधनों के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
        • आचार संहिता लंबे समय से राज्यसभा के सदस्यों पर लागू है।
    • आचार संहिता की आवश्यकता:
      • संहिता का उद्देश्य संसदीय कार्यवाही की अखंडता को बढ़ाते हुए लोकसभा सांसदों के बीच उचित व्यवहार और आचरण का मार्गदर्शन करना है।
      • लगभग एक शताब्दी पुराना ऐतिहासिक संदर्भ हितों के टकराव और नियामक ढाँचे की आवश्यकता के बारे में लंबे समय से चली आ रही चिंताओं को रेखांकित करता है।
      • सुशासन को बढ़ावा देने, पारदर्शिता बनाए रखने और सांसदों द्वारा नैतिक मानकों का पालन सुनिश्चित करने में आचार संहिता के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।

नैतिक संहिता और आचार संहिता में अंतर:

  • नैतिक संहिता एक महत्त्वाकांक्षी दस्तावेज़ है, जिसे निदेशक मंडल द्वारा जारी किया जाता है, जिसमें संगठन के मूल नैतिक मूल्यों, सिद्धांतों और आदर्शों को शामिल किया जाता है।
    • आचार संहिता एक दिशात्मक दस्तावेज़ है जिसमें, विशिष्ट प्रथाओं और व्यवहारों का समावेश होता है जिनका संगठन के तहत पालन किया जाता है या प्रतिबंध लगाया जाता है।
  • आचार संहिता की उत्पत्ति नैतिक संहिता से हुई है और यह नियमों को विशिष्ट दिशानिर्देशों में परिवर्तित करती है जिनका संगठन के सदस्यों द्वारा पालन किया जाना चाहिये।
    • इसलिये बाद वाली अवधारणा पूर्व की तुलना में व्यापक है।
  • नैतिक संहिता संगठन के निर्णय को नियंत्रित करती है जबकि आचार संहिता कार्यों को नियंत्रित करती है।
  • नैतिक संहिता मूल्यों या सिद्धांतों पर केंद्रित है। दूसरी ओर आचार संहिता अनुपालन और नियमों पर केंद्रित है।
  • नैतिक संहिता सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है, यानी कोई भी इसका उपयोग कर सकता है। इसके विपरीत, आचार संहिता केवल कर्मचारियों को नियंत्रित करती है।

सदस्यों के व्यावसायिक हितों की घोषणा:

  • परिचय:
    • राज्यसभा सदस्यों के लिये यह प्रथा पहले से ही लागू है।
    • इसका उद्देश्य किसी भी व्यक्तिगत, आर्थिक या प्रत्यक्ष हितों की पहचान करना और उनका खुलासा करना है जो संभावित रूप से हितों का टकराव उत्पन्न कर सकते हैं, पारदर्शिता एवं जवाबदेही को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • लंबे समय से चलने वाली प्रक्रिया:
    • संसद सदस्यों (सांसदों) के हितों के टकराव के बारे में चिंताएँ वर्ष 1925 में ही उठाई गई थीं।
    • वर्ष 2012 में, लोकसभा नैतिक समिति ने 'सदस्यों के हितों का रजिस्टर' बनाए रखने की राज्यसभा की प्रक्रिया को अपनाने का सुझाव दिया।
      • यह रजिस्टर संसद सदस्यों के वित्तीय और व्यक्तिगत हितों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
    • राज्यसभा में नियम 293 इस रजिस्टर की आवश्यकता को रेखांकित करता है, जिसे संसद सदस्य और यहाँ तक कि आम नागरिक भी RTI (सूचना का अधिकार) अधिनियम के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।
    • लोकसभा सचिवालय ने 'लोकसभा अध्यक्ष द्वारा निर्देश' शीर्षक से संसद के एक प्रकाशन से एक उद्धरण, पैराग्राफ 52A प्रदान किया।
      • यह अनुच्छेद संसदीय समितियों के सदस्यों पर लागू होता है, सभी सांसदों पर नहीं।
      • उद्धरण ("व्यक्तिगत, आर्थिक या सदस्य का प्रत्यक्ष हित") के अनुसार: "
        • (1) जहाँ समिति के किसी सदस्य का समिति द्वारा विचार किये जाने वाले किसी मामले में व्यक्तिगत, आर्थिक या प्रत्यक्ष हित हो, तो ऐसा सदस्य समिति के अध्यक्ष को अपना हित बताएगा।
        • (2) मामले पर विचार करने के बाद अध्यक्ष एक निर्णय देगा जो अंतिम होगा।

द्वितीय ARC की सिफारिशें:

  • मंत्रियों को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में संवैधानिक और नैतिक व्यवहार के उच्चतम मानकों का पालन कैसे करना चाहिये, इस पर मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु मंत्रियों के लिये वर्तमान आचार संहिता के अलावा एक अन्य आचार संहिता होनी चाहिये।
  • आचार संहिता और इसके पालन की निगरानी हेतु प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्रियों के कार्यालयों में समर्पित इकाइयाँ स्थापित की जानी चाहिये। इकाई को आचार संहिता के उल्लंघन के संबंध में सार्वजनिक शिकायतें प्राप्त करने का भी अधिकार दिया जाना चाहिये।
  • प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को मंत्रियों द्वारा नैतिक संहिता तथा आचार संहिता का पालन सुनिश्चित करने हेतु बाध्य होना चाहिये।
  • इन संहिताओं के पालन के संबंध में एक वार्षिक रिपोर्ट उपयुक्त विधायिका को प्रस्तुत की जानी चाहिये। इस रिपोर्ट में उल्लंघन के विशिष्ट मामले यदि कोई हों और उन पर की गई कार्रवाई शामिल होनी चाहिये।
  • आचार संहिता में अन्य बातों के साथ-साथ मंत्री-सिविल सेवक संबंध और आचार संहिता के व्यापक सिद्धांत शामिल होने चाहिये।
  • नैतिक संहिता, आचार संहिता और वार्षिक रिपोर्ट को सार्वजनिक रूप में होना चाहिये।

निष्कर्ष:

  • लोकसभा के भीतर नैतिक आचरण एवं पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिये इन सुधारों को अपनाना और लागू करना महत्त्वपूर्ण है।
  • ये पहलें अधिक जवाबदेह और ज़िम्मेदार संसदीय प्रणाली में योगदान देंगी, जिससे अंततः लोकतांत्रिक प्रक्रिया तथा पूरे देश को लाभ होगा।

भारत का विमानन उद्योग

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का विमानन उद्योग, विमानन टरबाइन ईंधन, RCS-UDAN, राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति- 2016, सतत् विमानन ईंधन

मेन्स के लिये:

भारत में विमानन उद्योग की स्थिति, भारत में विमानन क्षेत्र को पुनः सक्रिय करने के उपाय

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत के विमानन उद्योग में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। हालाँकि इस द्रुत विस्तार ने अनुभवी पायलटों की गंभीर कमी सहित महत्त्वपूर्ण मुद्दों को भी उजागर किया है।

भारत में विमानन उद्योग की स्थिति: 

  • परिचय: भारत का विमानन उद्योग एक सामूहिक क्षेत्र है जो देश के भीतर नागरिक उड्डयन के सभी पहलुओं को शामिल करता है।
    • इसमें विभिन्न घटक शामिल हैं, जैसे एयरलाइंस, विमान पत्तन, विमान निर्माण, विमानन सेवाएँ और नियामक प्राधिकरण।
  • स्थिति:
    • भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार बन गया है। भारत के विमान पत्तन की क्षमता के आधार पर वर्ष 2023 तक सालाना 1 अरब यात्राओं के परिचालन की उम्मीद है।
    • उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade- DPIIT) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, भारत के हवाई परिवहन क्षेत्र (हवाई माल ढुलाई समेत) में FDI प्रवाह अप्रैल 2000 से दिसंबर 2022 के दौरान 3.73 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
  • संबद्ध चुनौतियाँ: 
    • बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ:
      • हवाई अड्डों पर भीड़भाड़: मुंबई और दिल्ली सहित भारत के कई प्रमुख हवाई अड्डों को व्यापक भीड़ का सामना करना पड़ता है, जिससे विलंब एवं परिचालन अक्षमता जैसी स्थिति उत्पन्न होती है।
      • सीमित क्षेत्रीय कनेक्टिविटी: हालाँकि प्रमुख शहर अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं, छोटे शहरों और क्षेत्रों में प्रायः पर्याप्त हवाई अड्डा बुनियादी ढाँचे और हवाई कनेक्टिविटी का अभाव होता है।
    • उच्च परिचालन लागत:
      • विमानन टर्बाइन ईंधन (ATF) और हवाई अड्डे के शुल्क पर उच्च कर परिचालन, लागत में वृद्धि में योगदान करते हैं।
        • कुछ भारतीय राज्य जेट ईंधन पर 30% तक कर वसूलते हैं, जिससे छोटे उड़ान मार्ग छोटी एयरलाइन्स के लिये अलाभकारी हो जाते हैं।
    • पायलट की कमी:
      • भारत में एयरलाइंस प्रायः अनुभवी पायलटों की भर्ती करने और उन्हें बनाए रखने के लिये संघर्षरत रहते हैं, जिससे व्यवधान उत्पन्न होता है और श्रम लागत में वृद्धि होती है।
        • विमान ऑर्डरों में बढ़ोतरी, कुल 1,100 से अधिक नए विमानों के कारण उड़ान चालक दल के हज़ारों सदस्यों की आवश्यकता है।
        • हालाँकि भारत में पायलट प्रशिक्षण की औसत लागत लगभग 1 करोड़ रुपए है।
          • एयरलाइंस प्रायः विभिन्न बहाने से कैडेट पायलटों से अतिरिक्त शुल्क वसूलते हैं, जिससे वित्तीय बोझ काफी बढ़ जाता है।
    • सुरक्षा खतरे: आतंकवाद और अपहरण से परे विमानन बुनियादी ढाँचे को अब साइबर खतरों का सामना करना पड़ रहा है जो संचालन को बाधित कर सकता है और यात्री डेटा को उजागर कर सकता है।
    • अन्य चुनौतियाँ: आलोचकों का तर्क है कि भारतीय वायु सेना के डॉक्टरों द्वारा चिकित्सा मानकों के प्रबंधन के कारण बड़ी संख्या में नागरिक पायलटों को नौकरी से निकाल दिया गया है।
      • इसके अलावा उड़ान प्रशिक्षण केंद्र के संचालन से जुड़ी कई चुनौतियाँ हैं, जो स्वतंत्रता-पूर्व समय के नियमों को लागू करने वाले अधिकारियों के बीच भ्रष्टाचार के कारण और भी बढ़ गई हैं।
  • संबंधित सरकारी पहल: 

भारत में विमानन क्षेत्र को पुनः सक्रिय करने के उपाय:

  • पर्यावरण-अनुकूल पहल: उत्सर्जन एवं परिचालन लागत को कम करने, कम दूरी की उड़ानों के लिये इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड विमानों के विकास और प्रयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • साथ ही उद्योग के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये सतत् विमानन ईंधन (SAF) और कार्बन ऑफसेट कार्यक्रमों के प्रयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
      • जून 2021 में स्पाइसजेट ने विश्व आर्थिक मंच (WEF) के तत्वावधान में वर्ष 2030 तक 100 मिलियन घरेलू यात्रियों के लिये SAF ब्लेंड आधारित उड़ान के अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा की।
  • रख-रखाव हेतु डिजिटल ट्विन्स:
    • विमान की आभासी प्रतिकृतियाँ बनाने, पूर्वानुमानित रख-रखाव को सक्षम करने और डाउनटाइम को कम करने के लिये डिजिटल ट्विन तकनीक को लागू करने की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP):
    • विश्वस्तरीय सुविधाएँ सुनिश्चित करते हुए हवाई अड्डे के बुनियादी ढाँचे के विकास में सह-निवेश हेतु सरकार और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
      • भारत में PPP हवाई अड्डों की संख्या वर्ष 2014 के 5 से बढ़कर वर्ष 2024 में 24 हो जाने की संभावना है।
  • पायलट की कमी का समाधान:
    • विमानन स्कूलों और अकादमियों के सहयोग से सब्सिडी आधारित पायलट प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थापित करने की आवश्यकता है।
      • यह इच्छुक एविएटर्स के लिये पायलट प्रशिक्षण को और अधिक किफायती बना सकता है।
  • विमानन पर्यटन पैकेज: भारत को विमानन पर्यटन का केंद्र बनाने के लिये विमानन उद्योग को पर्यटन उद्योग के साथ मिलकर अभिनव विमानन-आधारित पर्यटन पैकेज तैयार करने की आवश्यकता है, जो सुरम्य उड़ानें, साहसिक अनुभव और हवाई फोटोग्राफी पर्यटन की पेशकश कर सकें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के अधीन संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से भारत में विमान पत्तनों के विकास का परीक्षण कीजिये। इस संबंध में प्राधिकरणों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं? (2017)


स्वच्छ भारत मिशन-शहरी

प्रिलिम्स के लिये:

स्वच्छ भारत मिशन-शहरी, एक तारीख, एक घंटा, एक साथ, कचरा मुक्त भारत, ओडीएफ-प्लस स्थिति

मेन्स के लिये:

स्वच्छ भारत मिशन शहरी, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनके डिज़ाइन एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

स्वच्छ भारत दिवस के आलोक में स्वच्छ भारत मिशन-शहरी और ग्रामीण द्वारा 15 सितंबर से 2 अक्तूबर, 2023 के बीच वार्षिक रूप से स्वच्छता ही सेवा (SHS) पखवाड़ा का आयोजन किया गया था।

  • इस पखवाड़े का लक्ष्य इंडियन स्वच्छता लीग 2.0, सफाई मित्र सुरक्षा शिविर और सामूहिक स्वच्छता अभियान जैसी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से देश भर में करोड़ों नागरिकों को इसमें भागीदार बनाना है। 

क्या है स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 

  • परिचय:
    • आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs) ने 2 अक्तूबर, 2014 को शहरी क्षेत्रों में स्वच्छता, सफाई और उचित अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (SBM-U) की शुरुआत एक राष्ट्रीय अभियान के रूप में  की थी। 
    • इसका उद्देश्य पूरे भारत के शहरों और कस्बों को स्वच्छ एवं खुले में शौच से मुक्त बनाना है।
  •  स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 1.0:
    • SBM-U का पहला चरण शौचालयों तक पहुँच और व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देकर शहरी भारत को खुले में शौच से मुक्त (ODF) बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने पर केंद्रित था।
    • SBM-U 1.0 अपना लक्ष्य हासिल करने में सफल रहा और 100% शहरी भारत को ODF घोषित किया गया।
  •  स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 (2021-2026):
    • बजट 2021-22 में घोषित SBM-U 2.0, SBM-U के पहले चरण की ही निरंतरता है।
    • SBM-U के दूसरे चरण का लक्ष्य ODF से आगे बढ़कर  ODF+ और ODF++, तक जाना तथा शहरी भारत को कचरा-मुक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित करना है।
    • इसमें स्थायी स्वच्छता प्रथाओं, अपशिष्ट प्रबंधन एवं एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने पर बल दिया गया।

स्वच्छ भारत मिशन की उपलब्धियाँ: 

  • पिछले 9 वर्षों में 12 करोड़ शौचालय बनाए गए हैं, जिससे देश को खुले में शौच के संकट से मुक्ति मिली है और साथ ही कुल गाँवों में से 75% ने खुले में शौच मुक्त (ODF) प्लस का दर्जा प्राप्त कर लिया है।
  • शहरी भारत खुले में शौच से मुक्त (ODF) हो गया है, सभी 4,715 शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) पूरी तरह से ODF हो गए हैं।
  • 3,547 ULBs कार्यात्मक तथा स्वच्छ सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों के साथ ओडीएफ+ हैं, साथ ही 1,191 ULBs पूर्ण मल कीचड़ प्रबंधन के साथ ODF++ हैं।
  • 14 शहर Water+ प्रमाणित हैं, जिसमें अपशिष्ट जल के उपचार के साथ इसका इष्टतम पुन: उपयोग भी शामिल है।

SBM की कमियाँ: 

  • शौचालय के नियमित उपयोग में गिरावट:
    • शौचालय तक पहुँच बढ़ाने में शुरुआती सफलता के बावजूद पृष्ठ पर वर्ष 2018-19 के बाद से ग्रामीण भारत में नियमित शौचालय के उपयोग में हुई गिरावट पर प्रकाश डाला गया है, जिससे कार्यक्रम की स्थिरता के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • हाशिये पर मौजूद समूहों पर असंगत प्रभाव:
    • शौचालय के उपयोग में सबसे बड़ी गिरावट अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST), सामाजिक-आर्थिक समूहों के बीच देखी गई, जो दर्शाता है कि कार्यक्रम का लाभ समाज के सभी क्षेत्रों में समान रूप से नहीं प्राप्त हुआ है।
  • स्थिरता संबंधी चिंताएँ:
    • हाल के वर्षों में शौचालय के उपयोग में गिरावट आने से इस कार्यक्रम की उपलब्धियों की स्थिरता पर सवाल उठता है, जिससे SBM द्वारा लक्षित दीर्घकालिक प्रभाव और व्यवहार परिवर्तन के संबंध में संदेह पैदा होता है।
  • शौचालय के उपयोग में स्थानिक भिन्नता:
    • राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2015-16 और वर्ष 2019-21 के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में किसी भी शौचालय (बेहतर या गैर-सुधारित) का नियमित उपयोग औसतन 46% से बढ़कर 75% हो गया।
      • यह वृद्धि सभी जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक उप-समूहों तथा विशेष रूप से गरीब एवं सामाजिक रूप से वंचित समूहों के मामले में देखी गई।
      • लेकिन वर्ष 2015-16 और 2018-19 के बीच अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिये किसी भी शौचालय के नियमित उपयोग में क्रमशः 51 तथा 58% की वृद्धि देखी गई, यह सामान्य श्रेणी के लगभग समान स्तर पर पहुँच गई, जो दर्शाता है कि लाभ उठाने की प्रक्रिया विपरीत है।
    • अमीर राज्यों में चुनौतियाँ:
      • प्रगति के बावजूद अमीर राज्यों ने आर्थिक रूप से गरीब राज्यों की तुलना में शौचालय के उपयोग में मिश्रित प्रदर्शन और कम लाभ प्रदर्शित किया है, जो विभिन्न सामाजिक-आर्थिक संदर्भों में अनुरूप रणनीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
      • तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गुजरात जैसे राज्यों ने आर्थिक रूप से वंचित राज्यों की तुलना में नियमित शौचालय के उपयोग में कम प्रगति दिखाई है, जो दर्शाता है कि कार्यक्रम का सभी राज्यों में समान प्रभाव नहीं था।

खुले में शौच मुक्त स्थिति: 

  • ODF: किसी क्षेत्र को ODF के रूप में अधिसूचित या घोषित किया जा सकता है, यदि दिन के किसी भी समय एक भी व्यक्ति खुले में शौच करते हुए नहीं पाया जाता है।
  • ODF+: यह दर्जा तब दिया जाता है जब दिन के किसी भी समय, एक भी व्यक्ति खुले में शौच करते हुए नहीं पाया जाता है और सभी सामुदायिक तथा सार्वजनिक शौचालय कार्यात्मक एवं अच्छी तरह से बनाए हुए हैं।
  • ODF++:  यह दर्जा तब दिया जाता है जब क्षेत्र पहले से ही ODF+ की स्थिति है और मल कीचड़/सेप्टेज तथा सीवेज को सुरक्षित रूप से प्रबंधित एवं उपचारित किया जाता है, जिसमें अनुपचारित मल कीचड़ और सीवेज को खुली नालियों, जल निकायों या क्षेत्रों में छोड़ा या डंप नहीं किया जाता है।

आगे की राह

  • नियमित शौचालय उपयोग, स्वच्छता और सुरक्षित स्वच्छता प्रथाओं के महत्त्व पर बल देते हुए लक्षित व समुदाय-विशिष्ट अभियानों के माध्यम से व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने के प्रयासों को तीव्र करना चाहिये।
  • स्वच्छता सुविधाओं एवं प्रथाओं का स्वामित्व लेने के लिये समुदायों को शामिल करना चाहिये, स्वच्छ व कार्यात्मक शौचालयों को बनाए रखने में ज़िम्मेदारी तथा गर्व की भावना को बढ़ावा देना चाहिये।
  • कमज़ोर और हाशिये पर रहने वाले समूहों को लक्षित करके उन्हें स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच प्रदान कर जागरूकता व शिक्षा के माध्यम से निरंतर उपयोग पर ज़ोर देकर लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2019)

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे।
(c) इस नियम में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और ब्यौरेवार मानदंड उपबंधित हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न हो रहे और भारी मात्रा में छोड़े गए ठोस कचरे के निपटान में क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य वातावरण में जमा हो रहे जहरीले कचरे को सुरक्षित रूप से कैसे हटा सकते हैं? (2021)