डेली न्यूज़ (10 Oct, 2020)



नोबेल शांति पुरस्कार- 2020

प्रिलिम्स के लिये:

नोबेल शांति पुरस्कार, विश्व खाद्य कार्यक्रम, सतत् विकास लक्ष्य  

मेन्स के लिये:   

खाद्य सुरक्षा और संयुक्त राष्ट्र, खाद्य सुरक्षा पर COVID-19 का प्रभाव  

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र के ‘विश्व खाद्य कार्यक्रम’ (World Food Programme-WFP) को वर्ष 2020 के नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) से सम्मानित किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘विश्व खाद्य कार्यक्रम’ (WFP) को यह सम्मान ‘भूख से लड़ने, संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में शांति के लिये स्थितियों को बेहतर बनाने में योगदान देने और युद्ध व संघर्ष में भूख को एक हथियार के रूप में प्रयोग किये जाने से रोकने के प्रयासों में एक प्रेरक शक्ति के रूप में कार्य करने के लिये’ प्रदान किया गया है।
  • इस वर्ष नोबेल  शांति पुरस्कार के लिये WFP के चयन के माध्यम से नोबेल समिति ने विश्व के उन लाखों लोगों की तरफ लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है, जो भुखमरी से पीड़ित हैं या इसके खतरे का सामना कर रहे हैं।   
  • वर्ष 1901 में नोबेल शांति पुरस्कार की स्थापना के बाद से WFP 28वाँ संगठन है जिसे यह सम्मान दिया गया है। 
  •  यह 12वाँ मौका है जब संयुक्त राष्ट्र/इसकी किसी एजेंसी या इससे जुड़े किसी व्यक्ति को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया है। 

 ‘विश्व खाद्य कार्यक्रम’

(World Food Programme-WFP): 

  • विश्व खाद्य कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र की खाद्य-सहायता शाखा है,  यह वैश्विक स्तर पर भुखमरी की समस्या से लड़ने और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये कार्य करने वाली सबसे बड़ी मानवीय संस्था है।
  • विश्व खाद्य कार्यक्रम की स्थापना वर्ष 1961 में की गई थी।
  • इसका मुख्यालय रोम (इटली) में स्थित है।
  • विश्व खाद्य कार्यक्रम का संचालन एक कार्यकारी बोर्ड द्वारा किया जाता है, जिसमें 36 सदस्य देश शामिल होते हैं।
  • इसकी अध्यक्षता एक कार्यकारी निदेशक द्वारा की जाती है, जिसकी नियुक्ति संयुक्त राष्ट्र महासचिव और संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के महानिदेशक द्वारा की जाती है। कार्यकारी निदेशक को पाँच वर्ष के कार्यकाल के लिये नियुक्त किया जाता है। 

विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्य: 

  • इसकी स्थापना के कुछ ही माह बाद वर्ष 1962 में उत्तरी ईरान के बोईन ज़हरा शहर में आए भूकंप के दौरान WFP द्वारा बड़ी मात्रा में गेहूँ, चीनी आदि उपलब्ध कराया गया। 
  • इसके बाद WFP ने थाईलैंड और अल्जीरिया में खाद्य सहायता प्रदान करने में  महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • वर्ष 1963 में WFP द्वारा पहले विकास कार्यक्रम  (सूडान में न्युबियन समुदाय के लिये) की शुरुआत की गई और इसी वर्ष  WFP की पहली स्कूली भोजन परियोजना (टोगो गणराज्य में) को मंज़ूरी दी गई।
  • वर्ष 2019 में WFP द्वारा  विश्व के 88 देशों में 97 मिलियन लोगों को सहायता उपलब्ध कराई गई।
  • वर्ष 2019 के दौरान WFP ने लगभग 4.4 टन खाद्य सामग्री का वितरण किया और 91 देशों से 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के खाद्य पदार्थों की खरीद की। 

खाद्य सुरक्षा में WFP की भूमिका:

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals-SDG) के तहत वर्ष 2030 तक विश्व भर से भुखमरी की समस्या को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
  • इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये WFP संयुक्त राष्ट्र की प्राथमिक एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
  • WFP के अनुसार, विश्व भर में 690 मिलियन लोगों को  भोजन की कमी का सामना करना पड़ता है और इनमें से 60% लोग संघर्ष प्रभावित देशों में रहते हैं।

भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में WFP की भूमिका:

  • भारत में WFP  वर्ष 1963 से कार्य कर रहा है। भारत की लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System) में सुधारों पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा यह लोगों तक भोजन की  पहुँच में सुधार के लिये नीतिगत इनपुट, तकनीकी सहायता आदि प्रदान करता है। 
  • WFP द्वारा TPDS के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु ‘स्वचालित अन्न वितरण मशीन’ (अन्नपूर्ति) और ‘मोबाइल स्टोरेज यूनिट’ (Mobile Storage Units-MSU) जैसी कुछ पहलों का प्रस्ताव किया गया है।
    • अन्नपूर्ति, लाभार्थियों को किसी भी समय अपने खाद्यान्न कोटे से सटीक मात्रा में अनाज प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करती है। यह दो खाद्यान्नों को 25 किलोग्राम प्रति 1.3 मिनट की गति से वितरित कर सकती है। इसकी भंडारण क्षमता 200 किलोग्राम से 500 किलोग्राम है।
    • इसके तहत देश के पाँच राज्यों - उत्तराखंड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में स्वचालित अनाज वितरण मशीनों की स्थापना की जाएगी।
    • मोबाइल स्टोरेज यूनिट (MSU), खाद्यान्न भंडारण के लिये एक किफायती उपाय है। इसका संचालन ओडिशा और उत्तराखंड में एक पायलट योजना के तहत किया जा रहा है। 
  • WFP के अनुसार, दिसंबर 2018 से  4,145 टन ‘फोर्टिफाइड चावल' का उत्पादन किया गया है और इसे वाराणसी में एक पायलट योजना के तहत 3 लाख स्कूली बच्चों में वितरित किया गया ।

COVID-19 और WFP:

  • नोबेल समिति के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण दुनिया में भुखमरी के शिकार लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। 
  • यमन, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, नाइजीरिया, दक्षिण सूडान और बुर्किना फासो आदि देशों में हिंसक संघर्ष और COVID-19 महामारी के संयोजन से भुखमरी के कगार पर पहुँचने वाले लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है।
  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा जुलाई 2020 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 से होने वाली वैश्विक मंदी के कारण 83 से 132 मिलियन लोगों के सामने भुखमरी का संकट उत्पन्न हो सकता है।
  • COVID-19 महामारी के दौरान WFP की भारतीय इकाई द्वारा उत्तर प्रदेश के 18 ज़िलों में पूरक पोषण उत्पादन इकाइयों की स्थापना में तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिये उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
    • इस समझौते के तहत WFP द्वारा आँगनवाड़ी योजना  के लगभग 33 लाख लाभार्थियों को गुणवत्ता वाले भोजन की आपूर्ति के लिये पूरक पोषण उत्पादन इकाइयों की स्थापना में तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी।
  • COVID-19 के दौरान  स्वचालित अन्न वितरण मशीन का प्रयोग और अधिक प्रासंगिक हुआ है क्योंकि इसके माध्यम से लाभार्थी अपने चुने हुए समय पर निर्धारित अनाज प्राप्त कर सकते हैं, इसके माध्यम से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सुनिश्चित करने में आसानी होती है।

चुनौतियाँ:

  •  विशेषज्ञों के अनुसार,  पिछले तीन दशकों की प्रगति के बावजूद वर्ष 2030 तक भुखमरी को समाप्त करने के संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य को प्राप्त करना बहुत ही कठिन होगा।
  • शांति और स्थिरता वाले देशों में रहने वाले लोगों की तुलना में संघर्ष के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के कुपोषित होने की संभावना तीन गुना अधिक होती है।
  • उदाहरण के लिये वर्ष 2015 में यमन में सऊदी अरब के नेतृत्त्व वाली सेना और ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों के बीच शुरू हुए संघर्ष के कारण हज़ारों लोगों की मौत हो गई है। इस संघर्ष ने तीस लाख लोगों को विस्थापित किया है और देश को अकाल की ओर धकेल दिया। 

भारत सरकार के प्रयास: 

स्रोत: द हिंदू


RBI द्वारा जीडीपी पुनरुद्धार पूर्वानुमान

प्रिलिम्स के लिये:

मौद्रिक नीति, मौद्रिक नीति से जुड़ी महत्त्वपूर्ण शब्दावली जैसे- LAF, SLR, CRR, RRR, RR, MSF, MSS, OMO आदि 

मेन्स के लिये:

अर्थव्यवस्था की गति एवं विकास आदि से संबंधित विशलेष्णात्मक अध्ययन, मौद्रिक नीति समिति से संबद्ध पक्ष 

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) ने इस वर्ष की शेष अवधि तथा वर्ष 2021-22 की अवधि के लिये अपनी उदार नीति के विस्तार की घोषणा की है और आने वाले महीनों में GDP में पुनरुद्धार का अनुमान व्यक्त किया है।

प्रमुख  बिंदु

समिति के निर्णय:

  • RBI ने अर्थव्यवस्था की वृद्धि को पुनर्जीवित करने और कोविड -19 महामारी के आर्थिक प्रभाव को कम करने के लिये प्रमुख नीतिगत दरों को अपरिवर्तित रखा है अर्थात् इनमें कोई परिवर्तन नहीं किया है।
  • उच्च मुद्रास्फीति के कारण रेपो और रिवर्स रेपो दर को क्रमशः 4% और 3.35% की दर पर अपरिवर्तित रखा गया है।
  • जोखिम अधिभार यानी अलग-अलग होम लोन के लिये निर्धारित की गई आवश्यक पूंजी, में छूट दी गई है तथा खुदरा एवं छोटे व्यवसायियों के लिये ऋण सीमा में वृद्धि की गई है।
    • इससे रोज़गार-सघन रियल एस्टेट सेक्टर को प्रोत्साहन मिलेगा जो महामारी के चलते अत्यधिक प्रभावित हुआ है।
  • रियल-टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) की सुविधा चौबीसों घंटे उपलब्ध होगी।
  • यह निर्णय किया गया है कि पॉलिसी रेपो दर से सहलग्न अस्थायी दर पर कुल 1,00,000 करोड़ रुपए तक की राशि के लिये तीन वर्षों तक के लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालन (Targeted Long Term Repo Operations- TLTRO) को मांग पर संचालित किया जाए। 
  • चलनिधि में सुधार और कुशल मूल्य निर्धारण की सुविधा के लिये राज्य विकास ऋण (State Development Loans- SDLs) में चालू वित्त वर्ष के दौरान एक विशेष मामले के रूप में खुले बाज़ार परिचालन(Open Market Operations- OMOs) आयोजित करने का निर्णय लिया गया है।
    • यह बाज़ार प्रतिभागियों को तरलता और आसान वित्त स्थितियों तक पहुँच का आश्वासन देगा।
    • दीर्घकालिक रेपो परिचालन (LTRO) मौद्रिक नीति क्रियाओं के प्रसारण और अर्थव्यवस्था में ऋण के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के लिये एक तंत्र है। यह बैंकिंग प्रणाली में तरलता को प्रवेश कराने में मदद करता है।
    • खुला  बाज़ार परिचालन (OMO) एक मात्रात्मक मौद्रिक नीति उपकरण है जिसे अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिये देश के केंद्रीय बैंक द्वारा नियोजित किया जाता है।
    • OMO का संचालन RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री (खरीद-बिक्री) के माध्यम से किया जाता है ताकि धन आपूर्ति की स्थिति को समायोजित किया जा सके।
    • केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में संचालित मुद्रा को नियंत्रित करने के लिये वाणिज्यिक बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियाँ बेचता और खरीदता है।

Governor-prescription

अनुमान:

  • GDP में पुनः सुधार 
    • वित्त वर्ष 2021 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 9.5% की गिरावट आने की संभावना है।
    • मामूली रिकवरी से शुरुआत करके आर्थिक गतिविधियों की दर में तीसरी तिमाही में सुधार होने का अनुमान है।
    • वर्ष 2021-22  के पहले तिमाही में वास्तविक जीडीपी में 20.6% वृद्धि होने की संभावना है।
    • वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही में वास्तविक जीडीपी वृद्धि -9.8%, तीसरी तिमाही में -5.6% और चौथी तिमाही में 0.5% होने की उम्मीद है।
  • मुद्रास्फीति में गिरावट:
    • अगले 3 महीनों में मुद्रास्फीति में कमी आने की संभावना है, यह वित्त वर्ष 2021 के चौमाही तक लगभग 4% (2% +/-) के अनुमानित लक्ष्य में भी कमी आने की संभावना जताई जा रही है।
    • आपूर्ति शृंखला में आने वाला अंतर मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि का एक प्रमुख कारक है। जैसे ही आपूर्ति शृंखला बहाल होती है, मुद्रास्फीति स्वाभाविक रूप से कम हो जाएगी।
    • अगस्त 2020 में खुदरा मुद्रास्फीति की वृद्धि दर 6.69% थी।
  • अर्थव्यवस्था का पुनः सुचारू रूप से संचालन होना:
    • अर्थव्यवस्था में त्रिस्तरीय रिकवरी देखने को मिलेगी, अर्थात् क्षेत्र विशेष में अत्यधिक तेज़, मामूली और बहुत धीमी रिकवरी दर से सुधार होने की संभावना है।
    • कृषि के अलावा, तीव्रता से वृद्धि करने वाले क्षेत्र जैसे- उपभोक्ता उत्पाद, ऑटोमोबाइल, फार्मा और विद्युत आदि में सबसे पहले सुधार देखने को मिलेगा।

मौद्रिक नीति समिति 

(Monetary Policy Committee)

  • मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee), भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 (Reserve Bank of India Act, 1934) के अंतर्गत विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिये एक वैधानिक और संस्थागत ढाँचा है।
  • RBI का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है।
  • अध्यक्ष सहित समिति में छह सदस्य (RBI के तीन अधिकारी और भारत सरकार द्वारा नामित तीन बाह्य सदस्य) शामिल होते हैं।
  • समिति के निर्णय बहुमत के आधार पर लिए जाते हैं तथा टाई (Tie) होने की स्थिति में गवर्नर को वोट डालने का अधिकार है।
  • MPC मुद्रास्फीति के लक्ष्य (4%) को प्राप्त करने के लिये आवश्यक नीतिगत ब्याज दर (रेपो दर) निर्धारित करता है।
  • वर्ष 2014 में तत्कालीन डिप्टी गवर्नर उर्जित पटेल के नेतृत्त्व में RBI द्वारा नियुक्त समिति ने मौद्रिक नीति समिति की स्थापना की सिफारिश की थी।

स्रोत: द हिंदू


रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय रिज़र्व बैंक, रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम, नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर

मेन्स के लिये

इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली का महत्त्व, RBI के हालिया निर्णय का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की हालिया घोषणा के अनुसार, अधिक मूल्य के लेन-देन हेतु प्रयोग होने वाले रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम (RTGS) को अब दिसंबर माह से चौबीसों घंटे उपलब्ध कराया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • वर्तमान स्थिति: वर्तमान में ग्राहकों के लिये रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम (RTGS) की सुविधा प्रत्येक माह के दूसरे और चौथे शनिवार को छोड़कर सप्ताह के सभी कार्यदिवसों पर सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक उपलब्ध है।
  • ध्यातव्य है कि बीते वर्ष दिसंबर 2019 में नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) को ग्राहकों को चौबीसों घंटे और 365 दिन उपलब्ध कराने का निर्णय लिया था। 
    • जुलाई 2019 से RBI ने देश में डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से NEFT और RTGS के माध्यम से होने वाले लेन-देन पर शुल्क लगाना बंद कर दिया था।
  • महत्त्व
    • रिज़र्व बैंक का यह निर्णय भारत में मूल्य भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में नवाचारों की सुविधा प्रदान करेगा और व्यापार सुगमता को बढ़ावा देगा।
    • इससे भारतीय बाज़ारों के वैश्विक एकीकरण में मदद मिलेगी और भारत को वैश्विक वित्तीय केंद्र के रूप में विकसित करने में भी सहायता प्राप्त होगी।
    • इस निर्णय के साथ भारत वैश्विक स्तर पर उन कुछ चुनिंदा देशों में शामिल हो जाएगा, जिनके पास व्यापक मूल्य भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र है।

रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम (RTGS)

  • रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम (RTGS) ग्राहकों के खाते में वास्तविक समय पर धनराशि हस्तांतरण की सुविधा को सक्षम बनाता है और इसका प्रयोग मुख्य तौर पर बड़े लेन-देनों के लिये किया जाता है। 
    • यहाँ ‘रियल टाइम’ अथवा वास्तविक समय का अभिप्राय निर्देश प्राप्त करने के साथ ही उनके प्रसंस्करण (Processing) से है, जबकि ‘ग्रॉस सेटलमेंट’ या सकल निपटान का तात्पर्य है कि धन हस्तांतरण निर्देशों का निपटान व्यक्तिगत रूप से किया जाता है।
  • रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम (RTGS) मूल रूप से अधिक राशि के लेन-देन के लिये प्रयोग किया जाता है। इस प्रणाली के माध्यम से हस्तांतरित न्यूनतम राशि दो लाख रुपए है, जबकि इसके माध्यम से हस्तांतरित अधिकतम राशि की कोई सीमा निर्धारित नहीं है।

नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT)

  • नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) एक देशव्यापी भुगतान प्रणाली है, जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से धन के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है।
  • वर्ष 2005 में शुरू की गई NEFT प्रणाली की हाल के वर्षों में लोकप्रियता बढ़ने के साथ-साथ इसके ग्राहकों की संख्या में भी तेज़ी देखी गई है।
  • इस प्रणाली के तहत कोई व्यक्ति, फर्म और कंपनी दूसरी बैंक शाखा में खाता रखने वाले किसी भी अन्य व्यक्ति, फर्म या कंपनी के बैंक खाते में तथा देश में स्थित किसी अन्य बैंक शाखा में इलेक्ट्रॉनिक रूप से धन हस्तांतरित कर सकता है।

RTGS बनाम NEFT

  • नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर (NEFT) में मुद्रा के लेन-देन को बैचेज़ (Batches) अर्थात् समूह में पूरा किया जाता है, यानी इस प्रणाली के तहत एक निश्चित समयसीमा तक प्राप्त सभी लेन-देनों का निपटान एक साथ किया जाता है।
    • निश्चित समयसीमा के बाद वाले लेन-देनों के निर्देशों को अगले समूह अथवा बैच में शामिल कर लिया जाता है, इस प्रकार इस प्रणाली में देरी की संभावना होती है।
  • इसके विपरीत RTGS में निर्देश प्राप्त करने के साथ ही उसका प्रसंस्करण कर दिया जाता है।
  • जहाँ RTGS का प्रयोग बड़े मूल्य के लेन-देनों के लिये किया जाता है, वहीं NEFT का प्रयोग आमतौर पर कम राशि के हस्तांतरण हेतु किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक-2020

प्रिलिम्स के लिये:

सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक-2020, इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन, सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019

मेन्स के लिये:

सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक-2020 से संबंधित चिंताएँ   

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक-2020 [Assisted Reproductive Technology (Regulation) Bill-2020] को लोकसभा में पेश किया गया था।

प्रमुख बिंदु: 

  • सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive Technology-ART):
    • सहायक प्रजनन तकनीक का प्रयोग बाँझपन की समस्या के समाधान के लिये किया जाता है। इसमें बाँझपन के ऐसे उपचार शामिल हैं जो महिलाओं के अंडे और पुरुषों के शुक्राणु दोनों का प्रयोग करते हैं।
    • इसमें महिलाओं के शरीर से अंडे प्राप्त कर भ्रूण बनाने के लिये शुक्राणु के साथ मिलाया जाता है। इसके बाद भ्रूण को दोबारा महिला के शरीर में डाल दिया जाता है।
    • इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (In Vitro fertilization- IVF), ART का सबसे सामान्य और प्रभावशाली प्रकार है। 
  • ‘सहायक प्रजनन तकनीक (विनियमन) विधेयक-2020’ का उद्देश्य: 
    • ART बैंकों एवं क्लीनिकों को विनियमित करना।
    • ART के सुरक्षित एवं नैतिक अभ्यास की अनुमति देना।
    • महिलाओं एवं बच्चों को शोषण से बचाना।
  • अनुपूरक स्थिति (Supplementary Status):
    • इसे सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019 (Surrogacy (Regulation) Bill (SRB), 2019) के पूरक के रूप में पेश किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी पर रोक लगाना है।
    • यह विधेयक ART के लिये सलाहकार निकायों के रूप में कार्य करने हेतु SRB के तहत सरोगेसी बोर्डों को नामित करता है।

चिंताएँ: 

  • पहुँच में भेदभाव (Discrimination in Accessibility):
    • यह विधेयक एक शादीशुदा हेट्रोसेक्सुअल जोड़े (Married Heterosexual Couple) और शादी की उम्र से अधिक की एक महिला को ART का उपयोग करने की अनुमति देता है, जबकि एकल पुरुषों, साथ रहने वाले विषमलैंगिक जोड़ों एवं एलजीबीटीक्यू+ (LGBTQ+) व्यक्तियों या जोड़ों को ART का उपयोग करने से रोकता है।
    • यह विधेयक भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और वर्ष 2017 के पुट्टास्वामी मामले के निजता के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करता हुआ प्रतीत होता है। 
    • SRB के विपरीत ART के तहत विदेशी नागरिकों पर कोई प्रतिबंध नहीं है किंतु यह सभी भारतीय नागरिकों को वंचित करता है जो एक अतार्किक निष्कर्ष है, यह भारतीय संविधान की मूल भावना को प्रतिबिंबित करने में विफल रहा है।
    • यह विधेयक एक बच्चे (कम-से-कम 3 वर्ष का) वाली विवाहित महिला के अंडा दान करने पर प्रतिबंधित लगाता है। हालाँकि परोपकारी कार्य के रूप में अंडा दान केवल एक बार संभव है यदि महिला ने विवाह के पितृसत्तात्मक संस्थान के लिये अपने कर्तव्यों को पूरा किया हो। 
  • दाताओं के लिये निम्न या कोई सुरक्षा नहीं:
    • यह विधेयक अंडा दाता को बहुत कम सुरक्षा प्रदान करता है। अंडों का विच्छेदन एक आक्रामक प्रक्रिया है, इसे यदि गलत तरीके से किया जाता है तो इससे मृत्यु भी हो सकती है।
    • इस विधेयक में अंडा दाता की लिखित सहमति को आवश्यक बताया गया है, किंतु प्रक्रिया के पहले या प्रक्रिया के दौरान दाता के परामर्श की आवश्यकता या उसके द्वारा दी गई सहमति वापस लेने का अधिकार नहीं दिया गया है।
    • एक महिला को वेतन, समय एवं प्रयास को लेकर हुए नुकसान के लिये कोई क्षतिपूर्ति नहीं मिलती है। 
    • शारीरिक सेवाओं के लिये भुगतान करने में नाकाम होना गैर-स्वतंत्र श्रमिक की स्थिति उत्पन्न करता है, जिसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 द्वारा निषिद्ध घोषित किया गया है।
    • कमीशनिंग दलों को केवल चिकित्सा की जटिलताओं या मृत्यु के लिये उसके नाम पर एक बीमा पॉलिसी प्राप्त करने की आवश्यकता के बारे में बताया गया है जिसमें कोई राशि या समयसीमा निर्दिष्ट नहीं है।
  • अस्पष्टता (Ambiguity): 
    • इस विधेयक में प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक (Pre-implantation Genetic) परीक्षण की आवश्यकता बताई गई है और जहाँ भ्रूण पूर्व-विद्यमान, पैतृक, आनुवंशिक रोगों’ से ग्रस्त होता है, उसे कमीशनिंग दलों की अनुमति से अनुसंधान के लिये दान किया जा सकता है।
      • इन विकारों को निर्दिष्ट नहीं किया गया है और यह बिल जोखिम वाले यूजेनिक्स (Eugenics) के एक अभेद्य कार्यक्रम को बढ़ावा देता है।
        • यूजेनिक्स विशिष्ट वांछनीय वंशानुगत लक्षणों वाले लोगों का चयन करके मानव प्रजातियों में सुधार करने का अभ्यास है।
  • सूचना का अप्रकटीकरण:
    • ART से पैदा हुए बच्चों को अपने माता-पिता को जानने का अधिकार नहीं है, जो उनके सर्वोत्तम हितों के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
  • ART और SRB के मध्य असंतुलन:
    • यद्यपि यह बिल और SRB क्रमशः ARTs एवं सरोगेसी को विनियमित करते हैं, इससे दोनों क्षेत्रों के बीच काफी दुहराव उत्पन्न होता है।
    • कोर ART प्रक्रियाओं को अपरिभाषित छोड़ दिया जाता है और उनमें से कुछ को एसआरबी में परिभाषित किया जाता है किंतु इस बिल में इसे परिभाषित नहीं किया गया है।
    • दोनों विधेयकों के तहत एक ही निषेधात्मक व्यवहार के लिये अलग-अलग दंड का प्रावधान किया गया है और कभी-कभी SRB के तहत अधिक दंड का भी प्रावधान है।
      • इस विधेयक के तहत अपराध, जमानती हैं किंतु SRB के तहत नहीं।
    • इस विधेयक के तहत रिकॉर्ड को 10 वर्ष तक बनाए रखा जाना चाहिये किंतु SRB के तहत इसकी अवधि 25 वर्ष निर्धारित की गई है।
  • दुहराव की स्थिति:
    • दोनों विधेयकों ने पंजीकरण के लिये कई निकायों की स्थापना की जिसके परिणामस्वरूप दुहराव बढ़ेगा और विनियमन की कमी होगी। 
  • युग्मकों की कमी (Gamete Shortage):
    • युग्मकों (Gamete) की कमी होने की संभावना है क्योंकि इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि क्या युग्मकों को अब ज्ञात मित्रों एवं रिश्तेदारों को उपहार में दिया जा सकता है जिसके बारे में पहले अनुमति नहीं थी।
      • युग्मक एक जीव की प्रजनन कोशिकाएँ हैं। इन्हें सेक्स कोशिकाओं के रूप में भी जाना जाता है। महिला युग्मकों को ओवा (Ova) या अंडा कोशिकाएँ कहा जाता है और पुरुष युग्मकों को शुक्राणु कहा जाता है।
  • सज़ा में वृद्धि:  
  • इस विधेयक और SRB के तहत 8-12 वर्ष की सज़ा एवं भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
  • गर्भधारण-पूर्व और प्रसव-पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम, 1994 के खराब प्रवर्तन से पता चलता है कि सज़ा में की गई वृद्धि इसके अनुपालन को सुरक्षित नहीं करती है।

आगे की राह: 

  • क्लीनिकों में नैतिकता समितियाँ होनी चाहिये और अनिवार्य परामर्श सेवाएँ उनसे स्वतंत्र होनी चाहिये।
  • ‘विधेयक के पूर्व संस्करणों में भ्रूण का उपयोग करके अनुसंधान को विनियमित किये जाने का प्रावधान था’ जिसे पुनः वापस लाया जाना चाहिये। साथ ही इस विधेयक और SRB के मध्य ‘युगल’, ‘बांझपन’, ‘ART क्लीनिक’ एवं ‘बैंकों’ की परिभाषाओं को लेकर आपस में तालमेल होना ज़रूरी है।
  • सभी ART निकायों को राष्ट्रीय हित में केंद्र एवं राज्य सरकारों के दिशा-निर्देशों से तथा  विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता एवं नैतिकता से संलग्न होना चाहिये।
  • इस विधेयक से संबंधित लाखों लोगों को प्रभावित करने वाली सभी संवैधानिक, चिकित्सीय-कानून, नैतिक एवं नियामक चिंताओं के बारे में  पहले अच्छी तरह से समीक्षा की जानी चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


किर्गिज़स्तान में राजनीतिक संकट

प्रिलिम्स के लिये

किर्गिज़स्तान की भौगोलिक अवस्थिति, सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (CSTO)

मेन्स के लिये

किर्गिज़स्तान में राजनीतिक अस्थिरता और उसका कारण, रूस की भूमिका

चर्चा में क्यों?

किर्गिज़स्तान में हालिया संसदीय चुनावों के बाद सड़कों पर विरोध प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया है, वहीं सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बीच किर्गिज़स्तान के राष्ट्रपति सूरोनबे जीनबेकोव ने राजधानी बिश्केक (Bishkek) में आपातकाल की घोषणा कर दी है।

प्रमुख बिंदु

  • विरोध प्रदर्शन- पृष्ठभूमि 
    • दरअसल सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य समेत तमाम क्षेत्रों में किर्गिज़स्तान की मौजूदा सरकार का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा है, जिसके कारण किर्गिज़स्तान की आम जनता के बीच असंतोष पैदा हो गया था।
    • इसलिये जब 4 अक्तूबर, 2020 को किर्गिज़स्तान के लोग संसदीय चुनावों में वोट डालने के लिये आए तो अधिकांश विशेषज्ञ मान रहे थे कि इस बार किर्गिज़स्तान की मौजूदा सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया जाएगा।
    • यद्यपि कई जानकारों को पहले से ही यह डर था कि राष्ट्रपति सूरोनबे जीनबेकोव की सरकार चुनावों में कुछ हेर-फेर कर सकती है, किंतु जब चुनाव के नतीजे जारी किये गए तो यह डर विश्वास में परिवर्तित हो गया।
    • ध्यातव्य है कि इन चुनावों में किर्गिज़स्तान के राष्ट्रपति से संबद्ध दलों को काफी अधिक मत प्राप्त हुए, जबकि राष्ट्रपति का विरोध करने वाले राजनीतिक दलों को काफी कम मत मिले। 
  • विरोध प्रदर्शन- कारण
    • नियमों के अनुसार, किर्गिज़स्तान में राजनीतिक दलों हेतु सदन में प्रवेश करने के लिये कुल मतों का कम-से-कम 7 प्रतिशत मत प्राप्त करना आवश्यक है।
    • किर्गिज़स्तान में हालिया चुनावों के नतीजे बताते हैं कि वहाँ केवल 4 दल ही ऐसे हैं जो इस 7 प्रतिशत की सीमा को पार कर सके हैं और जिसमें से 3 सरकार समर्थक दल हैं।
    • सरकार समर्थक तीन दलों को क्रमशः 24.5 प्रतिशत, 23.88 प्रतिशत और 8.76 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हैं, जबकि जीत हासिल करने वाले चौथे दल को केवल 7.13 प्रतिशत मत ही प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा शेष 12 दल चुनावों में जीत हासिल नहीं कर पाए हैं।
    • नतीज़ो को देखते हुए वहाँ के विपक्षी दलों ने सत्ताधारी दल पर चुनावों में धाँधली करने के आरोप लगाए और किर्गिज़स्तान की राजधानी बिश्केक में सरकार विरोधी प्रदर्शनों की शुरुआत हो गई तथा अब वहाँ हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं।

किर्गिज़स्तान में अशांति

प्रथम दृष्टया किर्गिज़स्तान में हो रहे विरोध प्रदर्शन हालिया चुनावों का परिणाम लग सकता है, किंतु विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार विरोधी ये प्रदर्शन काफी हद तक सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य समेत तमाम क्षेत्रों में किर्गिज़स्तान की मौजूदा सरकार की असफलताओं से प्रेरित हैं।

  • भ्रष्टाचार की समस्या
    • किर्गिज़स्तान, सरकार के सभी स्तरों और अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में व्यापक भ्रष्टाचार की बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है। वर्षों के भ्रष्टाचार और उससे संबंधित अनुचित प्रथाओं के कारण यहाँ नागरिक असंतोष एवं राजनीतिक अस्थिरता को हवा मिली और इसी असंतोष का परिणाम किर्गिज़स्तान में वर्ष 2011 के विद्रोह के रूप में सामने आया था।
    • ध्यातव्य है कि वर्ष 2019 के करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (CPI) में किर्गिज़स्तान को 198 देशों में 126वाँ स्थान प्राप्त हुआ था।
  • आर्थिक अस्थिरता
    • यूरेशियन डेवलपमेंट बैंक के अनुसार, इस वर्ष किर्गिज़स्तान की अर्थव्यवस्था में 4.6 प्रतिशत का संकुचन आ सकता है और यदि राजनीतिक स्थिरता के मौजूदा हालात लंबे समय तक कायम रहते हैं तो इसके आर्थिक प्रभाव काफी गंभीर हो सकते हैं।
    • वर्ष 2019-20 में किर्गिज़स्तान की आर्थिक वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत दर्ज की गई थी तथा आने वाले समय में किर्गिज़स्तान की आर्थिक वृद्धि दर में और अधिक कमी आने का अनुमान है।
  • COVID-19 महामारी
    • किर्गिज़स्तान में कोरोना वायरस संक्रमण के अब तक कुल 48,924 मामले सामने आ चुके हैं और महामारी की चपेट में आने के कारण तकरीबन 1,082 लोगों की मौत हो चुकी है, यद्यपि भारत जैसे बड़े देश की तुलना में यह आँकड़ा चिंताजनक न लगे, किंतु किर्गिज़स्तान जैसे छोटे देश के मामले यह स्थिति काफी चिंताजनक है।
    • सरकार विरोधी प्रदर्शनों में शामिल लोगों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि उन्हें वायरस का मुकाबला करने के लिये अधिकारियों से किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिल रही है।

किसके पास है प्रशासन?

  • प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन और राष्ट्रपति कार्यालय समेत कई प्रमुख सरकारी इमारतों पर कब्ज़ा कर लिया है। वहीं किर्गिज़स्तान के राष्ट्रपति सूरोनबे जीनबेकोव ने अपने एक संदेश में विपक्षी दल के नेताओं पर तख्तापलट की साज़िश में शामिल होने का आरोप लगाया है।
    • 5 अक्तूबर, 2020 को सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री कुबाटबेक बोरोनोव ने भी पद से इस्तीफा दे दिया है।
    • इसके अलावा बिश्केक के मेयर और कई क्षेत्रों के गवर्नर्स ने भी अपने-अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। 
    • मौजूदा राष्ट्रपति सूरोनबे जीनबेकोव ने नवंबर 2017 में राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण किया था और संवैधानिक रूप से उनके कार्यकाल में अभी तीन वर्ष शेष हैं, किंतु प्रदर्शनकारियों द्वारा उनके इस्तीफे की भी मांग की जा रही है।
  • प्रदर्शनकारियों ने अपने एक प्रतिनिधि को देश के नए प्रधानमंत्री के रूप में नामित किया है। इस प्रकार किर्गिज़स्तान के प्रशासन को लेकर अभी भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है।

रूस की भूमिका

  • किर्गिज़स्तान, रूस के नेतृत्व वाले सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (CSTO) का सदस्य है और इसके अलावा यहाँ रूसी एयर बेस भी मौजूद है। 
  • यद्यपि रूस ने किर्गिज़स्तान के सभी राजनीतिक दलों के साथ मज़बूत संबंध स्थापित किये हैं, किंतु किर्गिज़स्तान की राजनीति में कोई भी बड़ा परिवर्तन रूस के प्रतिद्वंद्वियों के लिये एक अच्छा अवसर हो सकता है।
    • रूस द्वारा समर्थित एक अन्य देश बेलारूस में भी अगस्त माह में राष्ट्रपति चुनावों के बाद से राजनीतिक उथल-पुथल चल रही है।
    • वहीं आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच नागोर्नो-करबख को लेकर भी विवाद चल रहा है और जानकार मानते हैं कि इस विवाद को जल्द ही नहीं रोका गया तो रूस भी इस विवाद में शामिल हो सकता है।

किर्गिज़स्तान

  • मध्य एशिया का देश किर्गिज़स्तान उत्तर-पश्चिम और उत्तर में कज़ाखस्तान, पूर्व और दक्षिण में चीन तथा दक्षिण और पश्चिम में ताज़िकिस्तान एवं उज़्बेकिस्तान के साथ अपनी सीमा साझा करता है। किर्गिज़स्तान की राजधानी बिश्केक है।
  • किर्गिज़स्तान एक स्वतंत्र देश के रूप में वर्ष 1991 में अस्तित्व में आया था।
  • तकरीबन 6 मिलियन की आबादी वाले किर्गिज़स्तान का कुल क्षेत्रफल लगभग 1,99,951 वर्ग किलोमीटर है। किर्गिज़स्तान में मुख्य तौर पर मुस्लिम और ईसाई आबादी पाई जाती है।

महत्त्व

  • मध्य एशिया का यह देश जो कि चीन के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है, रूस और चीन दोनों के लिये ही रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • रूस, किर्गिज़स्तान को एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार के रूप में देखता है और उस पर अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिये भरसक प्रयास करता है, वहीं चीन के लिये यूरेशियाई के केंद्र के स्थित यह देश उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) हेतु काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • इसके अलावा अफगान युद्ध के शुरुआती दौर में ईंधन भरने और अन्य रसद संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किर्गिज़स्तान का उपयोग किया गया था, किंतु किर्गिज़स्तान में अमेरिका के सैन्य अड्डे को वर्ष 2014 में बंद कर दिया गया है।

kyrgyzstan

स्रोत: द हिंदू


स्वामित्व योजना के तहत प्रॉपर्टी कार्ड

प्रिलिम्स के लिये:

स्वामित्व योजना, प्रॉपर्टी कार्ड

मेन्स के लिये:

ग्रामीण भारत के रूपांतरण में स्वामित्व योजना की भूमिका एवं महत्त्व

चर्चा में क्यों?

ग्रामीण भारत में परिवर्तन लाने और लाखों भारतीयों को सशक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए 11अक्तूबर, 2020 को स्वामित्व (SVAMITVA) योजना के तहत प्रॉपर्टी कार्ड के वितरण की शुरूआत की जाएगी।

प्रमुख बिंदु

  • प्रॉपर्टी कार्ड के भौतिक वितरण की शुरूआत के साथ लगभग एक लाख संपत्ति धारक अपने मोबाइल फोन पर भेजे गए SMS लिंक के माध्यम से संपत्ति कार्ड डाउनलोड करने में सक्षम होंगे। इसके बाद संबंधित राज्य सरकारों द्वारा संपत्ति कार्डों का भौतिक रूप से वितरण किया जाएगा। 
  • ये लाभार्थी छः राज्यों के 763 गाँवों (उत्तर प्रदेश के 346, हरियाणा के 221, महाराष्ट्र के 100, मध्य प्रदेश के 44, उत्तराखंड के 50 और कर्नाटक के 2) से हैं। 
  • महाराष्ट्र के अलावा अन्य सभी राज्यों के लाभार्थियों को एक दिन के भीतर प्रॉपर्टी कार्ड की भौतिक प्रतियाँ प्राप्त होंगी। 
    • चूँकि महाराष्ट्र में प्रॉपर्टी कार्ड की मामूली लागत वसूलने की प्रणाली है, इसलिये यहाँ कार्ड के वितरण में लगभग एक महीने का समय लगेगा।
  • यह पहली बार है जब तकनीक के सबसे आधुनिक साधनों को शामिल करने वाली इस तरह की बड़े पैमाने की प्रणाली का अभ्यास लाखों ग्रामीण संपत्ति मालिकों को लाभ पहुँचाने के लिये किया जा रहा है।
  • प्रॉपर्टी कार्ड के लिये अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम दिये गए हैं। उदाहरण के लिये हरियाणा में ‘टाइटल डीड’ (Title Deed), ‘कर्नाटक में रूरल प्रॉपर्टी ओनरशिप रिकॉर्ड्स’ (Rural Property Ownership Records- RPOR), मध्य प्रदेश में ‘अधिकार अभिलेख’ (Adhikar Abhilekh), महाराष्ट्र में ‘सनद’ (Sannad), उत्तराखंड में ‘स्वामित्व अभिलेख’ (Svamitva Abhilekh) तथा उत्तर प्रदेश में ‘घरौनी’ (Gharauni)।

लाभ:

  • इस कदम से ग्रामीणों को ऋण तथा अन्य वित्तीय लाभ प्राप्त करने के लिये वित्तीय परिसंपत्ति के रूप में संपत्ति का उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त होगा।

स्वामित्व (SVAMITVA) योजना

  • SVAMITVA का पूर्ण रूप “Survey of Villages And Mapping with mprovised Technology In Village Areas” है।
  • स्वामित्व योजना पंचायती राज मंत्रालय द्वारा शुरू की गई एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। इसकी शुरूआत 24 अप्रैल, 2020 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर की गई थी। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में घर के मालिक को 'अधिकार अभिलेख' (Record of Rights) उपलब्ध कराना और प्रॉपर्टी कार्ड जारी करना है।
  • इस योजना को चार वर्षों (2020-2024) की अवधि में पूरे देश में लागू किया जा रहा है और अंततः इसके तहत देश के लगभग 6.62 लाख गाँवों को कवर किया जाएगा। 
  • योजना के पायलट चरण (2020-21) में 6 प्रमुख राज्यों (उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक) के लगभग 1 लाख गाँवों और पंजाब तथा राजस्थान के कुछ सीमावर्ती गाँवों को कवर किया जाएगा। इसके अलावा पंजाब और राजस्थान में सतत् संचालन संदर्भ प्रणाली (Continuous Operating System- CORS) स्टेशनों के नेटवर्क की स्थापना की जाएगी।
  • इन सभी छह राज्यों ने ग्रामीण क्षेत्रों के ड्रोन सर्वेक्षण और योजना के कार्यान्वयन के लिये भारत के सर्वेक्षण विभाग (Survey of India) के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं। इन राज्यों ने डिजिटल प्रॉपर्टी कार्ड/संपत्ति कार्ड प्रारूप और गाँवों को ड्रोन आधारित सर्वेक्षण के लिये अंतिम रूप दिया है। 
  • पंजाब और राजस्थान राज्यों ने भविष्य के ड्रोन उड़ान गतिविधियों में सहायता के लिये CORS नेटवर्क की स्थापना हेतु सर्वेक्षण विभाग के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।

सतत् संचालन संदर्भ प्रणाली-कोर्स

(Continuous Operating Reference System- CORS)

  • सतत् संचालन संदर्भ प्रणाली (कोर्स) संदर्भ स्टेशनों का एक नेटवर्क है जो एक आभासी आधार स्टेशन प्रदान करता है जिससे लंबी दूरी की उच्च सटीकता वाले नेटवर्क सुधारों का अभिगम प्राप्त होता है। कोर्स नेटवर्क भूमि नियंत्रण बिंदुओं की स्थापना में सहायता करता है, जो कि भू-संदर्भ, भू-सत्यता और भूमि सीमांकन के लिये एक महत्त्वपूर्ण कार्यकलाप है।

स्रोत: पी.आई.बी.


इंटरनेट बाज़ार पर बड़ी टेक कंपनियों का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, प्रतिस्पर्द्धा कानून

मेन्स के लिये:  

इंटरनेट बाज़ार में बड़ी टेक कंपनियों की भूमिका, इंटरनेट से जुड़ी कंपनियों की निगरानी की आवश्यकता  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) के एक पैनल ने देश की चार बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों- अमेज़न, एप्पल, गूगल और फेसबुक के कामकाज पर एक द्विदलीय जाँच की रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस रिपोर्ट में बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों को तोड़ने और इन बड़े प्लेटफाॅर्मों द्वारा भविष्य के विलय और अधिग्रहण के खिलाफ प्रकल्पित निषेध (Presumptive Prohibition) की मांग की गई है।

जाँच का कारण:

  • ये कंपनियाँ अपने प्रभाव के माध्यम से बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा को दबाने के कारण पिछले कुछ समय से विभिन्न देशों में सरकारों के संदेह के दायरे में थीं।
  • इन कंपनियों पर आरोप लगे थे कि इनके द्वारा अपने प्रतिद्वंदियों को खरीद कर या विक्रेताओं पर अपने प्रतिद्वंदी के साथ काम न करने का दबाव बनाकर प्रतिस्पर्द्धा को दबाने का प्रयास किया गया। 
  • ऑनलाइन प्रतिस्पर्द्धा की स्थिति की समीक्षा के लिये पैनल द्वारा जून 2019 से एप्पल, अमेज़न, गूगल और फेसबुक की जाँच की गई, जिसमें इन कंपनियों द्वारा अपने और अपने प्रतिद्वंदियों के लिये डेटा के प्रवाह को नियंत्रित करने की प्रक्रिया की समीक्षा की गई।
  • जाँच के दौरान पैनल द्वारा 1.3 मिलियन दस्तावेज़ एकत्र किये गए और इन कंपनियों के कई कर्मचारियों की गुप्त गवाही सुनी गई।
  • इन साक्ष्यों में कंपनियों द्वारा प्रतिस्पर्द्धा विरोधी और अनुचित तरीके से डिजिटल मार्केट पर  अपनी शक्ति का विस्तार और अतिक्रमण करने के संकेत मिले जिसके बाद इस संदर्भ में कंपनी के प्रमुखों से पूछताछ की गई।

जाँच का परिणाम:  

  • पैनल द्वारा पूछताछ के दौरान कंपनियों के प्रमुखों की प्रतिक्रिया ‘अस्पष्ट और गैर-उत्तरदायी’ रही, इससे इन बड़ी कंपनियों की शक्तियों पर और अधिक प्रश्न उठे तथा यह भी प्रश्न उठा कि क्या ये कंपनियाँ खुद को "लोकतांत्रिक निरीक्षण की पहुँच से परे मानती हैं”।
  • पैनल के अनुसार, ये सभी कंपनियाँ  वितरण के एक प्रमुख चैनल पर एक "गेटकीपर" के रूप में काम कर रही थीं, जिसका अर्थ था कि अपने संबंधित डोमेन पर इनका पूरा नियंत्रण है।
    • बाज़ारों तक पहुँच को नियंत्रित करके ये कंपनियाँ हमारी अर्थव्यवस्था में विजेताओं और हारने वालों का निर्धारण कर सकती हैं।
  • पैनल के अनुसार, इन कंपनियों के पास न केवल व्यापक शक्ति है बल्कि वे अत्यधिक शुल्क लगाकर दमनकारी अनुबंध की शर्तों को लागू कर और लोगों तथा व्यवसायों से मूल्यवान डेटा निकालने के लिये इसका दुरुपयोग भी करते हैं।
  • ये कंपनियाँ अपने-अपने डोमेन में बाज़ार चलाने के साथ इसमें एक प्रतिस्पर्द्धी के रूप में शामिल हैं, इन कंपनियों ने स्वयं को शीर्ष पर बनाए रखने के लिये स्व-वरीयता और अपवर्जनात्मक आचरण का रास्ता अपनाना शुरू कर दिया है।

सुझाव: 

  • पैनल के अनुसार, बड़ी तकनीकी कंपनियों के "संरचनात्मक पृथक्करण" पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। इन कंपनियों को छोटी कंपनियों में तोड़ा/बाँटा जाना चाहिये, जिससे डिजिटल बाज़ार को प्रभावित करने की इनकी क्षमता में कमी की जा सके।
  • इन कंपनियों को "निकटवर्ती व्यवसायों/व्यावसायिक क्षेत्रों' (Adjacent Line of Business) में परिचालन से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
  • बड़ी टेक कंपनियों के विलय और अधिग्रहण पर अनुमानात्मक निषेध लगाया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये फेसबुक (जिसके द्वारा हाल के वर्षों में वाट्सएप और इंस्टाग्राम जैसी कंपनियों का अधिग्रहण किया गया) पर आरोप लगता है कि वह अपनी आर्थिक शक्ति के बल पर प्रतिस्पर्द्धा को प्रभावित करने का कार्य करता है।

भारत में बड़ी टेक कंपनियों की भूमिका:

  • रिपोर्ट में भारत की तनावपूर्ण प्रतिस्पर्द्धा में बड़ी टेक कंपनियों की भूमिका का भी उल्लेख किया गया है।
  • पिछले दो वर्षों में भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (The Competition Commission of India- CCI) द्वारा गूगल की व्यावसायिक फ्लाईट सर्च विकल्प, सर्च मार्केट में इसकी प्रभावी स्थिति, एंड्राइड फोन और स्मार्ट टेलीविज़न बाज़ार में इसके द्वारा अपनी प्रभावी स्थिति का दुरुपयोग तथा ऐसे ही अन्य मुद्दों को उठाया गया है।
    • वर्ष 2019 में गूगल को अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग करने से रोकने के लिये डिवाइस निर्माताओं पर अनुचित शर्तों को लागू करने और मोबाइल एंड्रॉइड बाज़ार में अपनी प्रमुख स्थिति के दुरुपयोग का दोषी ठहराया गया था।
    • गूगल पर अपने प्ले स्टोर (Play Store) पर सूचीबद्ध एप्स के लिये एक उच्च और अनुचित कमीशन तंत्र का अनुसरण करने का भी आरोप लगाया गया है।
  • अमेज़न और फेसबुक जो कि भारत के खुदरा बाज़ार में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं, उनके भी उत्पादों की कीमत के निर्धारण तथा अपने प्रतिद्वंदियों को अपने प्लेटफाॅर्म में स्थान देने या न देने को लेकर भी निगरानी के दायरे में होने की संभावना है।

प्रभाव:

  • हालाँकि इस पैनल की सिफारिशें संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार या किसी अन्य एजेंसी पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, परंतु यह जाँच भविष्य में इन बड़ी कंपनियों पर अधिक नियंत्रण लागू करने की दिशा में एक बहस और गहन शोध को बल दे सकती है।
  • समिति ने कंपनियों से अधिक सवाल पूछे जाने और ऊर्ध्वाद्धर विलय (Vertical Merger) पर कानून तथा कानून में व्याप्त समस्याओं पर पुनर्विचार करने की मांग की है।
  • इन सिफारिशों का किसी भी बड़ी टेक कंपनी पर भले ही तात्कालिक रूप से सीधे कोई प्रभाव न पड़े  परंतु इससे दुनिया भर में बड़ी टेक कंपनियों पर नियामकों और जाँच एजेंसियों की कार्रवाई बढ़ सकती है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


चुनाव अभियान प्रसारण समय में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में राजनीतिक दल, प्रसार भारती, निर्वाचन आयोग

चर्चा  में  क्यों?

भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के लिये चुनाव प्रचार में सहायता हेतु दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के लिये नियत प्रसारण समय में वृद्धि कर दी है।

प्रमुख  बिंदु

प्रसारण समय: 

  • बिहार में दूरदर्शन नेटवर्क और ऑल इंडिया रेडियो नेटवर्क के क्षेत्रीय केंद्रों पर प्रत्येक राष्ट्रीय दल तथा बिहार में मान्यता प्राप्त राज्य स्तरीय दलों को समान रूप से 90 मिनट का आधार समय दिया जाएगा।
  • किसी भी राजनीतिक दल को एकल प्रसारण सत्र में 30 मिनट से अधिक का समय नहीं दिया जाएगा।
  • किसी भी दल को अतिरिक्त समय (90 मिनट के आधार/मूल समय से अलग) वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में उनके चुनावी प्रदर्शन के आधार पर दिया जाएगा।

प्रसारण/प्रचार की अवधि: 

  • नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि और बिहार में मतदान की तिथि से दो दिन पहले के बीच की अवधि प्रसारण/प्रचार की अवधि होगी।
  • प्रसारण और प्रचार के लिये वास्तविक तिथि तथा समय का निर्धारण प्रसार भारती निगम द्वारा भारत निर्वाचन आयोग के परामर्श से किया जाएगा।
    • प्रसार भारती भारत की सबसे बड़ी सार्वजनिक प्रसारण एजेंसी है। यह प्रसार भारती अधिनियम, 1990 द्वारा स्थापित एक वैधानिक स्वायत्त निकाय है और इसमें दूरदर्शन टेलीविज़न नेटवर्क तथा ऑल इंडिया रेडियो शामिल हैं, जो पहले सूचना और प्रसारण मंत्रालय की मीडिया इकाइयाँ थीं।
  • दलों के लिये यह आवश्यक होगा कि वे टेप और रिकॉर्डिंग अग्रिम रूप से प्रस्तुत करें।
  • दलों द्वारा प्रसारण के अलावा प्रसार भारती निगम दूरदर्शन/ऑल इंडिया रेडियो के केंद्र/स्टेशन पर अधिकतम चार पैनलों के साथ चर्चाएँ/डिबेट आयोजित करेगा।
  • प्रत्येक पात्र दल/पार्टी इस तरह के कार्यक्रम में एक प्रतिनिधि को नामित कर सकता है।

महत्त्व:

  • महामारी-रोधी प्रबंधन तथा गैर-संपर्क आधारित अभियान के माध्यम से लोगों और पार्टी कार्यकर्त्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
  • बाह्य अथवा शारीरिक उपस्थिति वाले अभियानों पर खर्च को कम करने के क्रम में यह एक प्रयोगात्मक कदम के रूप में कार्य कर सकता है।

राजनीतिक दलों के प्रकार:

  • भारत निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों को "राष्ट्रीय दल", "राज्य स्तरीय दल" या "पंजीकृत (गैर-मान्यता प्राप्त) दल" के रूप में सूचीबद्ध करता है।
  • राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दल के रूप में सूचीबद्ध होने की शर्तों को निर्वाचन चिह्न (आरक्षण और आबंटन) आदेश, 1968 के तहत निर्दिष्ट किया गया है।

राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता के लिये शर्तें:

  • किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता तब दी जाएगी जब वह निम्नलिखित अहर्ताओं में से किसी एक को पूरा करता हो-
    • लोकसभा चुनावों में कुल लोकसभा सीटों की 2 प्रतिशत (11 सीट) सीटों पर जीत हासिल करता हो तथा ये सीटें कम-से-कम तीन अलग-अलग राज्यों से हों।
    • लोकसभा या राज्यों के विधानसभा चुनावों में 4 अलग-अलग राज्यों से कुल वैध मतों के 6 प्रतिशत मत प्राप्त करे तथा इसके अतिरिक्त 4 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करे।
    • यदि कोई दल चार या इससे अधिक राज्यों में राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त करे।

राज्य स्तरीय राजनीतिक दल के रूप में मान्यता के लिये शर्तें:

  • किसी राजनीतिक दल को राज्य स्तरीय दल के रूप में तब मान्यता दी जाएगी जब वह निम्नलिखित अहर्ताओं में से किसी एक को पूरा करता हो-
    • दल ने राज्य की विधानसभा के लिये हुए चुनावों में कुल सीटों का 3 प्रतिशत या 3 सीटें, जो भी अधिक हो, प्राप्त किया हो।
    • लोकसभा के आम चुनाव में दल ने राज्य के लिये निर्धारित प्रत्येक 25 लोकसभा सीटों में 1 सीट पर जीत दर्ज की हो।
    • राज्य में हुए लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में दल ने कुल वैध मतों के 6 प्रतिशत मत प्राप्त किये हों तथा इसके अतिरिक्त उसने 1 लोकसभा सीट या 2 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की हो।
    • राज्य में लोकसभा या विधानसभा के लिये हुए चुनावों में दल ने कुल वैध मतों के 8 प्रतिशत मत प्राप्त किये हों।

मान्यता की समाप्ति

  • किसी भी राजनीतिक दल के लिये राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दलों की श्रेणी में बने रहने हेतु यह आवश्यक है कि वह आगामी चुनावों में भी उपरोक्त अहर्ताओं को पूरा करे अन्यथा उससे वह दर्जा वापस ले लिया जाएगा।

स्रोत: द हिंदू