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सामाजिक न्याय

सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020

  • 28 Feb 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020

मेन्स के लिये:

सेरोगेसी से संबंधित मुद्दे, महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सेरोगेसी की प्रक्रिया को विनियमित करने से संबंधित सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020 [Surrogacy (Regulation) Bill, 2020] को मंज़ूरी प्रदान कर दी है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • ध्यातव्य है कि नवीनतम विधेयक अगस्त 2019 में लोकसभा से पारित सेरोगेसी (विनियमन) विधेयक 2019 का संशोधित संस्करण है क्योंकि 2019 के विधेयक को राज्यसभा में प्रवर समिति (Select Committee) को भेज दिया गया था।
  • मंत्रिमंडल ने विधेयक को मंज़ूरी देने से पहले राज्यसभा की प्रवर समिति की सभी सिफारिशों को शामिल किया है।
  • सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2020 का उद्देश्य व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाना और परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देना है।
    • मानव भ्रूण की बिक्री और खरीद सहित वाणिज्यिक सरोगेसी निषिद्ध होगी और निःसंतान दंपतियों को नैतिक सरोगेसी की शर्तों को पूरा करने पर ही सेरोगेसी की अनुमति दी जाएगी।
  • इस विधेयक के ‘करीबी रिश्तेदारों’ (Close Relatives) वाले खंड को हटा दिया गया है तथा अब यह विधेयक किसी ‘इच्छुक’ (Willing) महिला को सरोगेट मदर बनने की अनुमति देता है जिससे विधवा और तलाकशुदा महिलाओं के अलावा निःसंतान भारतीय जोड़ों को लाभ प्राप्त होगा।

विधेयक के मुख्य बिंदु

  • यह विधेयक सेरोगेसी से संबंधित प्रभावी विनियमन सुनिश्चित करने के लिये केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सेरोगेसी बोर्ड (National Surrogacy Board ) एवं राज्य स्तर पर राज्य सरोगेसी बोर्ड (State Surrogacy Board) के गठन का प्रावधान करता है।
  • विधेयक के अनुसार, केवल भारतीय दंपति ही सरोगेसी का विकल्प चुन सकते हैं।
  • यह विधेयक इच्छुक भारतीय निःसंतान विवाहित जोड़े जिसमें महिला की उम्र 23-50 वर्ष और पुरुष की उम्र 26-55 वर्ष हो, को नैतिक परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है।
  • इसके अतिरिक्त यह विधेयक यह भी सुनिश्चित करता है कि इच्छुक दंपति किसी भी स्थिति में सरोगेसी से पैदा हुए बच्चे को छोड़े नहीं। नवजात बच्चा उन सभी अधिकारों का हकदार होगा जो एक प्राकृतिक बच्चे को उपलब्ध होते हैं।
  • यह विधेयक सरोगेसी क्लीनिकों को विनियमित करने का प्रयास भी करता है। सरोगेसी या इससे संबंधित प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिये देश में सभी सरोगेसी क्लीनिकों का उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा पंजीकृत होना आवश्यक है।
  • यह विधेयक सरोगेट मदर के लिये बीमा कवरेज सहित विभिन्न सुरक्षा उपायों का प्रावधान करता है। ध्यातव्य है कि सरोगेट मदर के लिये प्रस्तावित बीमा कवर को पहले के संस्करण में प्रदान किये गए 16 महीनों से बढ़ाकर अब 36 महीने कर दिया गया है।
  • यह विधेयक यह भी निर्दिष्ट करता है कि सरोगेसी की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का लिंग चयन नहीं किया जा सकता है।
  • यह विधेयक निःसंतान दंपति के लिये सरोगेसी की प्रक्रिया से पहले आवश्यकता और पात्रता का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य बनाता है।

विधेयक के निहितार्थ

  • इस विधेयक से व्यावसायिक सेरोगेसी को प्रतिबंधित किये जाने से सेरोगेसी के व्यापार को रोका जा सकता है क्योंकि इसमें महिलाओं (सेरोगेट मदर) के अधिकारों का उल्लंघन होता था।
  • विधेयक में सेरोगेट मदर के लिये बीमा कवर को 16 माह से बढ़ाकर 36 माह कर दिया गया है जिससे सेरोगेट मदर के हितों की रक्षा की जा सकेगी।
  • सेरोगेसी बोर्ड के गठन के फलस्वरूप सेरोगेसी की प्रक्रिया का विनियमन बेहतर तरीके से संभव होगा।
  • सभी सरोगेसी क्लीनिकों को उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा पंजीकृत होना आवश्यक है जिससे सेरोगेसी के गैर-कानूनी प्रयासों को रोका जा सकेगा।
  • साथ ही विधेयक में नवजात शिशु के अधिकारों को भी सुरक्षित करने का प्रयास किया गया है जो कि बाल अधिकारों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

आगे की राह

  • विधेयक में निहित प्रावधानों का बेहतर क्रियान्वयन सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी कानून में उल्लिखित बातों के धरातल पर क्रियान्वयन से ही कानून के उद्देश्य पूरे किये जा सकते हैं।
  • सेरोगेसी से संबंधित जटिलताओं और चुनौतियों को कम करने का प्रयास किया जाना चाहिये तथा इस प्रक्रिया से संबंधित सभी शब्दावलियों को परिभाषित किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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