सामाजिक न्याय
भारत में 'मैनुअल स्कैवेंजिंग'
प्रिलिम्स के लिये:मैनुअल स्कैवेंजिंग, भारतीय संविधान, हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013, NAMASTE योजना, सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज, स्वछता अभियान एप मेन्स के लिये:भारत में हाथ से मैला उठाने की प्रथा का निरंतर प्रसार, इसके उन्मूलन हेतु सरकार द्वारा शुरू की गई पहलें |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी आँकड़ों के अनुसार, 766 में से केवल 508 ज़िलों ने स्वयं को मैला ढोने की प्रथा से मुक्त घोषित किया है।
- यह विसंगति मैला ढोने की प्रथा की वास्तविक स्थिति और सरकारी प्रयासों की प्रभावशीलता को लेकर चिंता उत्पन्न करती है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग/हाथ से मैला उठाने की प्रथा:
- हाथ से मैला ढोने की प्रथा को ‘‘किसी सुरक्षा साधन के बिना और नग्न हाथों से सार्वजनिक सड़कों एवं सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, गटर एवं सीवर की सफाई करने’’ के रूप में परिभाषित किया गया है।
- भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा एक लंबे समय से चली आ रही समस्या है, हालाँकि इसे वर्ष 1993 से आधिकारिक रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
हाथ से मैला उठाने वालों के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपाय और कानूनी प्रावधान:
- संवैधानिक सुरक्षा उपाय: भारतीय संविधान हाथ से मैला उठाने वालों को विभिन्न अधिकार और सुरक्षा की गारंटी प्रदान करता है, जैसे:
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता
- अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता उन्मूलन और किसी भी रूप में इसके अभ्यास पर प्रतिबंध।
- अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण।
- अनुच्छेद 23: मानव के दुर्व्यापार और बलात् श्रम का निषेध।
- विधिक प्रावधान: हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 मुख्य कानून है जिसका उद्देश्य भारत में इस प्रथा को प्रतिबंधित और उन्मूलन करना है। यह किसी को भी हाथ से मैला ढोने वाले के रूप में नियोजित करने अथवा नियुक्त करने पर रोक लगाता है और अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण अथवा रखरखाव को भी प्रतिबंधित करता है।
भारत में हाथ से मैला उठाने की प्रथा के निरंतर प्रसार के कारण:
- अकुशल सीवेज प्रबंधन प्रणाली: भारत में अधिकांश नगरपालिकाओं के पास सीवेज सिस्टम की सफाई के लिये नवीनतम मशीनें नहीं हैं, ऐसे में सीवेज कर्मचारियों को मैनहोल के माध्यम से भूमिगत सीवरेज लाइनों में प्रवेश करना पड़ता है।
- साथ ही अकुशल मज़दूरों को काम पर रखना बहुत सस्ता होता है और ठेकेदार अवैध रूप से इनसे दैनिक मज़दूरी पर काम में लाते हैं।
- जाति आधारित सामाजिक पदानुक्रम: मैला ढोने की प्रथा ऐतिहासिक रूप से भारत में जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है, जिसमें कुछ जातियों/जनजातियों को "अशुद्ध" अथवा "प्रदूषणकारी" माने जाने वाले व्यवसायों में धकेल दिया गया है।
- जाति-आधारित भेदभाव और सामाजिक कलंक इन हाशिये के समुदायों के लिये रोज़गार के साधन के रूप में मैला ढोने की निरंतरता में योगदान देता है।
- आजीविका के वैकल्पिक अवसरों की कमी: प्रभावित समुदायों के लिये सीमित वैकल्पिक रोज़गार के अवसरों के कारण समाज में मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा बनी हुई है।
- अनेक मैनुअल स्कैवेंजर (मैला ढोने वाले) गरीबी और बहिष्करण के दुष्चक्र में फँसे हुए हैं। शिक्षा एवं कौशल विकास कार्यक्रमों तक पहुँच की कमी के कारण उन्हें वैकल्पिक आजीविका के अवसर उपलब्ध नहीं हैं।
- आर्थिक विकल्पों की कमी उन्हें जीवित रहने के लिये मैनुअल स्कैवेंजिंग का काम जारी रखने के लिये विवश करती है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग के प्रभाव:
- स्वास्थ्य संबंधी खतरे: मानव अपशिष्ट और खतरनाक पदार्थों के सीधे संपर्क में आने के कारण मैनुअल स्कैवेंजर को गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
- उन्हें हैजा, टाइफाइड, हेपेटाइटिस और विभिन्न श्वसन संक्रमण जैसे रोगों का उच्च जोखिम है।
- सुरक्षात्मक उपकरणों की कमी और स्वच्छता की खराब स्थिति स्वास्थ्य संबंधी खतरों को और अधिक बढ़ा देती है जिसके कारण हाथ से मैला ढोने वालों में बीमारियों एवं समय से पहले मौत के अधिक मामले देखे जाते हैं।
- गरिमा और मानवाधिकारों का उल्लंघन: मैनुअल स्कैवेंजिंग के कार्य में शामिल व्यक्तियों की गरिमा और मानवाधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन होता है।
- इसमें शामिल लोग मानव अपशिष्ट को हाथों से उठाने/संभालने के साथ ही बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच की कमी के कारण अमानवीय एवं अत्यंत गंभीर परिस्थितियों के अधीन हैं।
- यह पेशा सामाजिक कलंक, भेदभाव और प्रभावित समुदायों को हाशिये पर धकेलने तथा जाति आधारित उत्पीड़न को बढ़ावा देता है।
- मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक आघात: मैनुअल स्कैवेंजिंग के कार्य में शामिल व्यक्तियों पर गंभीर मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- लगातार गंदगी के संपर्क में रहना, कार्य संबंधी बदनामी तथा भेदभाव का सामना करना आदि इनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। मैनुअल स्कैवेंजर प्रायः शर्म, आत्मसम्मान की कमी और अवसाद की भावना का सामना करते हैं, जिसके कारण उन्हें दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक आघात का सामना करना पड़ता है।
मैनुअल स्कैवेंजिंग पर अंकुश लगाने हेतु सरकार की पहल तथा सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश:
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश:
- वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने सरकार को वर्ष 1993 से सीवेज कार्य में मरने वाले सभी लोगों की पहचान करने तथा प्रत्येक के परिवार को मुआवज़े के रूप में 10 लाख रुपए प्रदान करना अनिवार्य कर दिया।
- पुनर्वास के प्रयास:
- भुगतान और सब्सिडी:
- लगभग 58,000 मैनुअल स्कैवेंजर की पहचान की गई है तथा प्रत्येक को 40,000 रुपए का एकमुश्त नकद भुगतान किया गया है।
- लगभग 22,000 मैनुअल स्कैवेंजर को कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रमों से जोड़ा गया है।
- अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू करने में रुचि रखने वालों को सहायता प्रदान करने हेतु सब्सिडी और ऋण उपलब्ध कराया जाता है। इसका उद्देश्य मैनुअल स्कैवेंजिंग से होने वाली मौतों को पूरी तरह समाप्त करना है।
- लगभग 58,000 मैनुअल स्कैवेंजर की पहचान की गई है तथा प्रत्येक को 40,000 रुपए का एकमुश्त नकद भुगतान किया गया है।
- NAMASTE योजना के साथ विलय:
- सीवर कार्य के 100% मशीनीकरण के साथ सभी मैनुअल स्कैवेंजर के पुनर्वास की योजना को नमस्ते योजना (NAMASTE scheme) के साथ मिला दिया गया है।
- वित्त वर्ष 2023-24 के केंद्रीय बजट में पुनर्वास योजना हेतु विशिष्ट आवंटन का अभाव है, लेकिन नमस्ते योजना के लिये 100 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
- नमस्ते योजना में सभी सेप्टिक टैंक/सीवर श्रमिकों की पहचान और प्रोफाइलिंग आवश्यक है, आयुष्मान भारत योजना के तहत व्यावसायिक प्रशिक्षण और सुरक्षा उपकरण और स्वास्थ्य बीमा में नामांकन का प्रावधान है।
- भुगतान और सब्सिडी:
- अन्य संबंधित पहलें:
- सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती
- स्वच्छता अभियान एप
- राष्ट्रीय गरिमा अभियान
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग
आगे की राह
- प्रौद्योगिकी-संचालित समाधान: नवोन्मेषी उपकरण और मशीनरी विकसित करने के लिये प्रौद्योगिकी को अपनाने की आवश्यकता है जो मैला ढोने के कार्यों को प्रतिस्थापित कर सके।
- उदाहरणतः खतरनाक वातावरण में मानव हस्तक्षेप की आवश्यकता को कम करने, सीवर लाइन और सेप्टिक टैंकों को साफ करने के लिये स्वचालित सीवर सफाई रोबोट तैनात किये जा सकते हैं।
- उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा देना: प्रभावित व्यक्तियों के प्रशिक्षण और कौशल विकास को प्रोत्साहित करने, वैकल्पिक आजीविका के अवसरों का पता लगाने के लिये उन्हें सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
- सरकारी और गैर-सरकारी संगठन पाइप लाइन, विद्युत कार्य, कंप्यूटर साक्षरता और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना ताकि मैला ढोने वालों को सुरक्षित तथा अधिक प्रतिष्ठित व्यवसायों में रोज़गार पाने में मदद मिल सके।
- स्वच्छता अवसंरचना उन्नयन: आधुनिक शौचालयों, सीवेज उपचार संयंत्रों और कुशल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों के निर्माण सहित स्वच्छता बुनियादी ढाँचे के विकास तथा सुधार में निवेश करना।
- ये प्रयास मैला ढोने की प्रथा को रोककर अपशिष्ट निपटान के लिये सुरक्षित विकल्प प्रदान करेंगे।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. एक राष्ट्रीय मुहीम ‘राष्ट्रीय गरिमा अभियान' चलाई गई है: (2016) (a) आवासहीन और निराश्रित लोगों के पुनर्वासन और उन्हें उपयुक्त जीविकोपार्जन के स्रोत प्रदान करने के लिये। उत्तर: (c) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय इतिहास
गांधीजी के सत्याग्रह का 130वाँ वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय नौसेना, भारत और दक्षिण अफ्रीका, नेल्सन मंडेला, धर्मनिरपेक्षता मेन्स के लिये:गांधीजी के सत्याग्रह का 130वाँ वर्ष |
चर्चा में क्यों?
भारतीय नौसेना ने महात्मा गांधी (7 जून 1893) द्वारा रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष की शुरुआत के 130 वर्ष पूर्ण होने की स्मृति में 7 जून, 2023 को दक्षिण अफ्रीका के डरबन के पास पीटरमैरिट्ज़बर्ग रेलवे स्टेशन पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया।
- INS त्रिशूल, भारतीय नौसेना की अग्रिम पंक्ति के एक युद्धपोत को कार्यक्रम में भाग लेने के लिये डरबन भेजा गया है।
- यह यात्रा भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच राजनयिक संबंधों की पुनर्स्थापना के 30 वर्ष पूर्ण होने का भी स्मरण कराती है।
सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत:
- 7 जून, 1893 को महात्मा गांधी को नस्लीय भेदभाव का सामना करना पड़ा जब उन्हें दक्षिण अफ्रीका के पीटरमैरिट्ज़बर्ग में एक ट्रेन की प्रथम श्रेणी के डिब्बे से बाहर निकलने के लिये विवश किया गया था। टिकट खरीदने के बावजूद एक यूरोपीय यात्री ने यह कहते हुए गांधीजी को वहाँ से हटाने की मांग की कि प्रथम श्रेणी के डिब्बों में गैर-गोरों को अनुमति नहीं देनी चाहिये।
- नस्लीय उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष और सत्याग्रह (अहिंसक प्रतिरोध) हेतु यह घटना गांधीजी के लिये एक महत्त्वपूर्ण क्षण बन गई।
- 25 अप्रैल, 1997 को पीटरमैरिट्ज़बर्ग रेलवे स्टेशन पर आयोजित एक समारोह में नेल्सन मंडेला, जो उस समय दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति थे, ने महात्मा गांधी के मरणोपरांत उनके योगदान की स्वीकृति में पीटरमैरिट्ज़बर्ग को स्वतंत्रता प्रदान की।
दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी का योगदान:
- कानूनी और सामाजिक सक्रियता:
- गांधी 1893 में एक कानूनी मामले को संभालने के लिये दक्षिण अफ्रीका पहुँचे लेकिन देश में भारतीयों के अधिकारों हेतु लड़ने के लिये प्रेरित हुए।
- उन्होंने डरबन में भारतीयों को संगठित किया और भारतीयों हेतु मतदान के अधिकार की वकालत करने के लिये 1894 में नेटाल इंडियन कॉन्ग्रेस की स्थापना की।
- उन्होंने अपने कानूनी अभ्यास, भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने और उनकी शिकायतों को दूर करने के माध्यम से भेदभाव तथा नस्लवाद का सामना किया।
- उन्होंने भारतीयों के कल्याण के लिये समर्थन जुटाया और वर्ष 1903 में जोहान्सबर्ग में ट्रांसवाल ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की।
- सत्याग्रह और निष्क्रिय प्रतिरोध:
- गांधी ने अपना पहला सत्याग्रह (अहिंसक प्रतिरोध) अभियान 1906 में जोहान्सबर्ग में एशियाई लोगों पर प्रतिबंध लगाने वाले अध्यादेश के खिलाफ शुरू किया।
- उन्होंने सामूहिक बैठकें आयोजित कीं और भेदभावपूर्ण कानूनों को चुनौती देने के लिये सविनय अवज्ञा को प्रोत्साहित किया।
- वर्ष 1913 में प्रसिद्ध वोल्क्रस्ट सत्याग्रह सहित अपने अहिंसक विरोध के लिये गांधीजी को कई बार कारावास जाना पड़ा।
- सामुदायिक जीवन की स्थापना:
- गांधी ने सामुदायिक जीवन के प्रयोग के तौर पर वर्ष 1904 में डरबन में फीनिक्स सेटलमेंट की स्थापना की।
- उन्होंने सत्याग्रहियों (अहिंसा के अनुयायी) को तैयार करने के लिये वर्ष 1910 में जोहान्सबर्ग के पास टॉल्स्टॉय फार्म की स्थापना की।
- इन पहलों का उद्देश्य आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना, सांप्रदायिक सद्भाव को प्रोत्साहित करना और व्यावहारिक कौशल विकास का प्रशिक्षण प्रदान करना था।
- भारतीय समुदाय की भागीदारी:
- गांधी की सक्रियता और नेतृत्त्व ने भारतीय समुदाय को भेदभावपूर्ण कानूनों एवं विनियमों के खिलाफ खड़े होने के लिये प्रेरित किया।
- अहिंसक प्रतिरोध और सविनय अवज्ञा के उनके तरीकों का वर्ष 1912 में गठित साउथ अफ्रीका नेटिव नेशनल काॅन्ग्रेस पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।
- गांधी के राजनीतिक विचारों और भागीदारी के प्रयासों ने दक्षिण अफ्रीका के स्वतंत्रता आंदोलन के गठन एवं दिशा को आकार देने में अहम भूमिका निभाई।
- कानूनी सुधार और भारतीय अधिकारों की मान्यता:
- अपनी सक्रियता और संवाद के माध्यम से गांधी ने वर्ष 1914 में दक्षिण अफ्रीकी सरकार को भारतीय राहत अधिनियम पारित करने के लिये मज़बूर कर दिया।
- इस अधिनियम के कारण कई भेदभावपूर्ण कानून समाप्त हो गए और दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारों को मान्यता दी गई।
- गांधी के प्रयासों ने भविष्य के सुधारों की नींव रखी और उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष में अहिंसक प्रतिरोध के रूप में एक मिसाल कायम की।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. इनमें से कौन अंग्रेज़ी में अनूदित प्राचीन भारतीय धार्मिक गीतिकाव्य “सॉन्ग्स फ्रॉम प्रिज़न” से संबद्ध है? (2021) (a) बाल गंगाधर तिलक उत्तर: (c) प्रश्न. भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों पर प्रकाश डालिये। (मुख्य परीक्षा, 2021) |
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
राज्यों के माध्यम से भारत में ऊर्जा संक्रमण
प्रिलिम्स के लिये:ऊर्जा संक्रमण, वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन मेन्स के लिये:ऊर्जा संक्रमण में राज्यों की सहभागिता का महत्त्व, भारत में ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, भारत में ऊर्जा संक्रमण को आकार देने वाली पहलें |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने और वैश्विक जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में राज्यों के माध्यम से भारत में ऊर्जा संक्रमण की अहम भूमिका है। आगामी G20 फोरम भारत को विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न ऊर्जा मार्गों की रणनीति पर चर्चा एवं विमर्श करने का अवसर प्रदान करता है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 50% गैर-जीवाश्म विद्युत उत्पादन क्षमता हासिल करने और वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करना है।
- भारत का ऊर्जा संक्रमण राज्यों की सहभागिता पर टिका है, क्योंकि ऊर्जा उत्पादन और उपयोग के प्रशासन में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
राज्यों का महत्त्व:
- राष्ट्रीय लक्ष्यों का क्रियान्वयन:
- स्थानीय संदर्भों के अनुरूप रणनीतियाँ तैयार करना:
- भारत के राज्यों की विविधता, उनके विभिन्न वातावरणों, संसाधनों और विकास पैटर्न को ध्यान में रखते हुए ऊर्जा संक्रमण के लिये एक स्थानीयकृत रणनीति की आवश्यकता है।
- विकेंद्रीकृत कार्यान्वयन:
- केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय लक्ष्यों को निर्धारित करने के बाद राज्यों की ज़िम्मेदारी होती है कि वे ज़मीनी स्तर पर नीतियों और कार्य योजनाओं को लागू करने में मदद करें।
- राष्ट्रीय आकांक्षाओं को ज़मीनी हकीकत में बदलने के लिये उनकी सक्रिय सहभागिता अत्यंत आवश्यक है।
- स्थानीय संदर्भों के अनुरूप रणनीतियाँ तैयार करना:
- दीर्घकालिक मुद्दों का निपटान:
- विद्युत क्षेत्र से संबंधित पुरानी समस्याओं को दूर करने में राज्य महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इसमें विद्युत आपूर्ति की विश्वसनीयता में सुधार करना और सेवा की गुणवत्ता में वृद्धि करना शामिल है, ये सभी एक सुचारू ऊर्जा संक्रमण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- नवाचारी नीतियाँ:
- नवाचार हेतु प्रयोगशालाएँ:
- राज्य नीति प्रयोग और नवाचार के लिये प्रयोगशालाओं के रूप में कार्य करते हैं।
- उदाहरण के लिये सौर ऊर्जा पर गुजरात और राजस्थान तथा पवन ऊर्जा प्रौद्योगिकियों पर महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु की शुरुआती पहलों ने राष्ट्रीय स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- इसी तरह पीएम कुसुम (PM KUSUM) कृषि के सौरीकरण पर राज्य की सफल पहलों को राष्ट्रीय स्तर पर अपनाना है।
- राज्य नीति प्रयोग और नवाचार के लिये प्रयोगशालाओं के रूप में कार्य करते हैं।
- राष्ट्रीय नीतियों को प्रभावित करना:
- नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने में सफल राज्य-स्तरीय प्रयोग और नवीन दृष्टिकोण राष्ट्रीय नीतियों एवं रूपरेखाओं के विकास हेतु प्रभावशाली मॉडल के रूप में काम करते हैं।
- नवाचार हेतु प्रयोगशालाएँ:
- राज्य संसाधनों का दोहन:
- स्थानीय संसाधनों का लाभ उठाना:
- भारत के प्रत्येक राज्य में नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों की अद्वितीय विविधता है, जैसे कि प्रचुर मात्रा में सौर विकिरण, पवन गलियारे और बायोमास उपलब्धता। नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने एवं जीवाश्म ईंधन के उपयोग से बचने हेतु राज्य इन संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं।
- विकेंद्रीकृत उत्पादन को बढ़ावा देना:
- राज्य अपने स्थानीय संसाधनों का प्रभावी ढंग से दोहन करने और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने हेतु विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों, जैसे रूफटॉप सौर प्रतिष्ठानों तथा समुदाय आधारित परियोजनाओं को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
- स्थानीय संसाधनों का लाभ उठाना:
- राज्य-स्तरीय ढाँचे का महत्त्व:
- विस्तृत समझ:
- राज्य-स्तरीय रूपरेखा प्रत्येक राज्य की ऊर्जा परिवर्तन योजनाओं, कार्यों और शासन प्रक्रियाओं की समग्र समझ प्रदान करती है।
- यह केंद्र सरकार और राज्यों के बीच बेहतर समन्वय, सहयोग और संरेखण को सक्षम बनाता है।
- साक्ष्य-आधारित नीति विकल्प:
- यह ढाँचा साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करता है, यह सुनिश्चित करता है कि नीतियाँ और हस्तक्षेप राज्य-स्तरीय तैयारियों, अंतर-संबंधों एवं संभावित बाधाओं के विशेष विश्लेषण पर आधारित हों। यह सूचित विकल्पों और कुशल संसाधन आवंटन को बढ़ावा देता है।
- समावेशी हितधारक जुड़ाव:
- राज्य-स्तरीय ढाँचा स्थानीय समुदायों, उद्योग और नागरिक समाज सहित हितधारकों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
- यह ऊर्जा परिवर्तन प्रक्रिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और हितधारक स्वामित्व को बढ़ावा देता है।
- राज्य-स्तरीय ढाँचा स्थानीय समुदायों, उद्योग और नागरिक समाज सहित हितधारकों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
- विस्तृत समझ:
ऊर्जा संक्रमण को लेकर राज्यों की चुनौतियाँ:
- राज्यों की बदलती प्राथमिकताएँ:
- राष्ट्रीय ऊर्जा लक्ष्यों के साथ राज्य-विशिष्ट उद्देश्यों को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि राज्यों की विविध प्राथमिकताएँ होती हैं जो हमेशा समग्र परिवर्तन एजेंडे के साथ संरेखित नहीं हो सकती हैं।
- 175 GW अक्षय ऊर्जा के लिये भारत की उपलब्धियाँ वर्ष 2022 के लक्ष्य पर अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं। जबकि इसने लक्ष्य का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हासिल किया तथा केवल गुजरात, कर्नाटक और राजस्थान ने अपने व्यक्तिगत लक्ष्यों को पूरा किया। इसके अतिरिक्त वर्तमान नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लगभग 80% भारत के पश्चिम एवं दक्षिण के छह राज्यों तक सीमित है।
- संसाधनों की कमी:
- कुछ राज्यों को वित्तीय संसाधनों, बुनियादी ढाँचे और तकनीकी क्षमताओं की कमी का सामना करना पड़ता है जो अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को लागू करने तथा उनके सुचारू रूप से संचालन की क्षमता में बाधा बन सकता है।
- नियामक रूपरेखा:
- राज्यों में असंगत या जटिल नियामक रूपरेखा निवेशकों और निर्माणकर्त्ताओं के लिये बाधाएँ उत्पन्न कर सकती है जिससे परियोजना के कार्यान्वयन में देरी हो सकती है तथा ऊर्जा संक्रमण की प्रगति धीमी हो सकती है।
- ग्रिड एकीकरण:
- वर्तमान पावर ग्रिड, विशेष रूप से अपर्याप्त ग्रिड अवसंरचना वाले राज्यों में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप अक्षय ऊर्जा उत्पादन में कमी और वितरण में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- अंतर-राज्य समन्वय:
- सामंजस्यपूर्ण ऊर्जा संक्रमण के लिये राज्यों के बीच समन्वय प्रयासों और संसाधनों को साझा करना महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि नीतियों, प्राथमिकताओं एवं प्रशासनिक प्रक्रियाओं में अंतर राज्यों के बीच समन्वय की चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।
भारत के ऊर्जा परिवर्तन को आकार देने वाली अन्य पहलें:
- प्रधानमंत्री सहज विद्युत हर घर योजना (सौभाग्य)।
- ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (GEC)।
- राष्ट्रीय स्मार्ट ग्रिड मिशन (NSGM) और स्मार्ट मीटर राष्ट्रीय कार्यक्रम।
- इलेक्ट्रिक वाहनों (और हाइब्रिड) का तेज़ी से अंगीकरण और विनिर्माण (FAME)।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन।
आगे की राह
- राज्य के बीच सहयोग सुनिश्चित करना:
- राज्यों के बीच सहयोग से उनकी विविध शक्तियों का उपयोग सुनिश्चित करना ताकि ऊर्जा परिवर्तन यात्रा को गति दी जा सके।
- ग्रीन फाइनेंसिंग एक्सप्रेस:
- राज्य-स्तरीय हरित वित्तपोषण तंत्र तैयार करना जो रचनात्मकता के साथ निवेश को आकर्षित करे और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये धन की बाधा को दूर करे।
- जन-संचालित क्रांति:
- एक जन-संचालित क्रांति के माध्यम से व्यक्तियों और समुदायों को परिवर्तन के वाहक के रूप में सशक्त बनाना जो ऊर्जा परिवर्तन को ज़मीनी स्तर से उच्च स्तर तक ले जाएँ।
- राज्य पथप्रदर्शक:
- सीमाओं से परे जाकर दूसरों को प्रेरित करने वाले उदाहरण स्थापित करने वाले और अपनी दृष्टि तथा कार्य के साथ ऊर्जा परिवर्तन को आगे बढ़ाने वाले राज्य पथ-प्रदर्शकों की पहचान उन्हें प्रोत्साहित करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. "वहनीय, विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018) |
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
ट्रैकिंग SDG7: द एनर्जी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2023
प्रिलिम्स के लिये:SDG7, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), विश्व बैंक, विद्युत, उप-सहारा अफ्रीका, पृथ्वी शिखर सम्मेलन, सहस्राब्दी विकास लक्ष्य, जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता मेन्स के लिये:SDG-7 की उपलब्धि में बाधक कारक |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (International Energy Agency- IEA), अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी, संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग, विश्व बैंक और विश्व स्वास्थ संगठन (World Health Organization- WHO) के सहयोग से "ट्रैकिंग SDG- 7: द एनर्जी प्रोग्रेस रिपोर्ट 2023" जारी की गई है।
- इस रिपोर्ट में उन विभिन्न चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है जो संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य- 7 (Sustainable Development Goal- SDG- 7) को प्राप्त करने की दिशा में बाधक हैं।
प्रमुख बिंदु
- SDG- 7 की उपलब्धि में बाधक कारक:
- उच्च मुद्रास्फीति, अनिश्चित समष्टि आर्थिक परिदृश्य, ऋण संकट और सीमित वित्तीय प्रवाह जैसे कारकों ने SDG- 7 को प्राप्त करने में विश्व के समक्ष बाधा के रूप में योगदान दिया है।
- रिपोर्ट में कई प्रमुख आर्थिक कारकों की पहचान की गई है जो विश्व भर में SDG- 7 की प्राप्ति में बाधक हैं:
- अनिश्चित व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण और मुद्रास्फीति का उच्च स्तर
- कई देशों में मुद्रा मूल्य में उतार-चढ़ाव और कर्ज़ संकट
- वित्तपोषण और आपूर्ति शृंखला का अभाव
- सख्त वित्तीय परिस्थितियाँ और वस्तुओं की बढ़ती कीमतें
- विशिष्ट लक्ष्यों की दिशा में प्रगति:
- विद्युत तक पहुँच: वर्ष 2010 से 2021 के बीच विद्युत की वैश्विक पहुँच 84% से बढ़कर 91% हो गई, हालाँकि वार्षिक वृद्धि धीमी रही है।
- विद्युत सुविधा से वंचित लोगों की संख्या वर्ष 2010 के 1.1 बिलियन से घटकर वर्ष 2021 में 675 मिलियन हो गई।
- वर्ष 2030 तक विद्युत की सार्वभौमिक पहुँच का लक्ष्य प्राप्त करना कठिन बना हुआ है।
- स्वच्छ खाना पकाने तक पहुँच: वर्ष 2010 के 2.9 बिलियन लोगों से बढ़कर यह वर्ष 2021 में 2.3 बिलियन हो गई है, लेकिन वर्ष 2030 तक 1.9 बिलियन लोगों के पास स्वच्छ खाना पकाने हेतु ऊर्जा की कमी हो सकती है।
- रिपोर्ट बताती है कि लगभग 100 मिलियन लोग जिन्होंने हाल ही में स्वच्छ खाना पकाने के लिये स्वच्छ ऊर्जा को अपनाया है वे पारंपरिक बायोमास उपयोग पर वापस लौट सकते हैं।
- वर्ष 2030 में उप-सहारा अफ्रीका में स्वच्छ खाना पकाने तक पहुँच से वंचित लोगों की संख्या सबसे अधिक होने की उम्मीद है (10 में से 6 लोग)।
- नवीकरणीय ऊर्जा (लक्ष्य 7.2): वर्ष 2010 के बाद से नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ा है लेकिन इसे पर्याप्त रूप से अभी और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता है।
- कुल अंतिम ऊर्जा खपत में नवीकरणीय ऊर्जा का हिस्सा 19.1% (या पारंपरिक बायोमास को छोड़कर 12.5%) रहा है।
- अंतर्राष्ट्रीय जलवायु और ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने हेतु वर्ष 2030 तक नवीकरणीय विद्युत उत्पादन और संबंधित बुनियादी ढाँचे में वार्षिक 1.4-1.7 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है।
- ऊर्जा दक्षता (लक्ष्य 7.3): ऊर्जा दक्षता में सुधार की वर्तमान दर के साथ वर्ष 2030 तक दोगुनी होने को लेकर संशय बना है।
- 1.8% की औसत वार्षिक वृद्धि वर्ष 2010-2030 के बीच प्रतिवर्ष 2.6% की लक्षित वृद्धि से भी कम है।
- अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक वित्तीय प्रवाह (लक्ष्य 7.a): विकासशील देशों में स्वच्छ ऊर्जा का समर्थन करने वाले वित्तीय प्रवाह में वर्ष 2020 से गिरावट आई है।
- वित्तीय संसाधन पिछले दशक (2010-2019) के औसत से एक-तिहाई कम हैं।
- वित्तीय प्रवाह में घटती रुचि कुछ देशों में देखी गई है जो SDG7 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये चुनौतियाँ पेश कर रही है, विशेष रूप से सबसे कम विकसित देशों में, भूमि से घिरे विकासशील देशों में तथा छोटे विकासशील द्वीपीय देशों में।
- विद्युत तक पहुँच: वर्ष 2010 से 2021 के बीच विद्युत की वैश्विक पहुँच 84% से बढ़कर 91% हो गई, हालाँकि वार्षिक वृद्धि धीमी रही है।
सतत् विकास लक्ष्य 7:
- परिचय:
- सतत् विकास लक्ष्य (SDG), जिन्हें वैश्विक लक्ष्यों के रूप में भी जाना जाता है, को वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राज्यों द्वारा गरीबी को समाप्त करने, ग्रह (Planet) की रक्षा करने और यह सुनिश्चित करने के लिये एक सार्वभौमिक आह्वान के रूप में अपनाया गया था कि सभी लोग वर्ष 2030 तक शांति एवं समृद्धि प्राप्त कर सकें।
- इस एजेंडे के केंद्र में 17 सतत् विकास लक्ष्य (SDG) हैं, जो सभी देशों द्वारा उनके विकास की स्थिति की परवाह किये बिना कार्रवाई के लिये दबाव निर्देश के रूप में कार्य करते हैं।
- वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की 70वीं बैठक में ‘2030 सतत् विकास हेतु एजेंडा’ के तहत सदस्य देशों द्वारा 17 विकास लक्ष्य अर्थात् एसडीजी (Sustainable Development goals-SDGs) तथा 169 प्रयोजन अंगीकृत किये गए हैं।
- SDG की पृष्ठभूमि:
- जून 1992 में ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो में हुए पृथ्वी शिखर सम्मेलन में 178 से अधिक देशों ने एजेंडा 21, मानव जीवन में सुधार और पर्यावरण की रक्षा के लिये सतत् विकास हेतु वैश्विक साझेदारी बनाने के लिये एक व्यापक कार्य योजना, को अपनाया।
- सितंबर 2000 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में सहस्राब्दी शिखर सम्मेलन में सदस्य राज्यों ने सर्वसम्मति से मिलेनियम घोषणा को अपनाया।
- शिखर सम्मेलन ने वर्ष 2015 तक अत्यधिक गरीबी को कम करने के लिये आठ सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (MDG) के विस्तार का नेतृत्व किया।
- वर्ष 2015 में कई प्रमुख समझौतों को अपनाने के साथ यह बहुपक्षवाद और अंतर्राष्ट्रीय नीति को आकार देने के लिये एक ऐतिहासिक वर्ष था:
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क (मार्च 2015)
- विकास के लिये वित्तपोषण पर अदीस अबाबा एक्शन एजेंडा (जुलाई 2015)
- जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता (दिसंबर 2015)
- वर्तमान स्थिति:
- अब सतत् विकास पर वार्षिक उच्च-स्तरीय राजनीतिक मंच SDG के अनुवर्ती और समीक्षा के लिये केंद्रीय संयुक्त राष्ट्र मंच के रूप में कार्य करता है।
- संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (UNDESA) में सतत् विकास लक्ष्यों हेतु प्रभाग (Division for Sustainable Development Goals- DSDG) SDG तथा उनके संबंधित विषयगत मुद्दों के लिये पर्याप्त समर्थन एवं क्षमता प्रदान करता है।
- सतत् विकास लक्ष्य- 7:
- सतत् विकास लक्ष्य 7 (SDG7) 2030 तक "सभी के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा" का आह्वान करता है। इसके तीन मुख्य लक्ष्य वर्ष 2030 तक हमारे काम का आधार हैं:
- लक्ष्य 7.1: वहनीय, विश्वसनीय और आधुनिक ऊर्जा सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना।
- लक्ष्य 7.2: वैश्विक ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी में पर्याप्त वृद्धि करना।
- लक्ष्य 7.3: ऊर्जा दक्षता में सुधार की वैश्विक दर को दोगुना करना।
- लक्ष्य 7.a: अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और उन्नत एवं स्वच्छ जीवाश्म-ईंधन प्रौद्योगिकी सहित स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान तथा प्रौद्योगिकी तक पहुँच को सुविधाजनक बनाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि करना तथा ऊर्जा बुनियादी ढाँचे एवं स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी में निवेश को प्रोत्साहित करना।
- लक्ष्य 7.b: विकासशील देशों, विशेष रूप से सबसे कम विकसित देशों, छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों और भूमि से घिरे विकासशील देशों में सभी के लिये आधुनिक तथा धारणीय ऊर्जा सेवाओं की आपूर्ति के लिये बुनियादी ढाँचे का विस्तार व प्रौद्योगिकी का उन्नयन।
- सतत् विकास लक्ष्य 7 (SDG7) 2030 तक "सभी के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा" का आह्वान करता है। इसके तीन मुख्य लक्ष्य वर्ष 2030 तक हमारे काम का आधार हैं:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. वहनीय (अफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य हैं। भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018) प्रश्न. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 धारणीय विकास लक्ष्य-4 (2030) के साथ अनुरूपता में है। उसका ध्येय भारत में भारत में शिक्षा प्रणाली की पुनः संरचना एवं पुनः स्थापना करना है। इस कथन का समालोचनात्मक निरीक्षण कीजिये। (2020) |
स्रोत:डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
अधिशेष तरलता
प्रिलिम्स के लिये:रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, मौद्रिक नीति समिति, मुद्रास्फीति से संबंधित अवधारणाएँ मेन्स के लिये:बढ़ी हुई तरलता का प्रभाव, बाज़ार में तरलता में वृद्धि करने वाले कारक |
चर्चा में क्यों?
भारत में बैंकिंग प्रणाली में शुद्ध तरलता 4 जून, 2023 को बढ़कर 2.59 लाख करोड़ रुपए हो गई। हालाँकि बैंकिंग प्रणाली में अधिशेष तरलता कुछ दिनों में वर्तमान के 2.1 लाख करोड़ रुपए से घटकर लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपए होने की संभावना है।
- बैंकिंग प्रणाली में शुद्ध तरलता को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा प्रणाली से अवशोषित धन की राशि द्वारा दर्शाया जाता है।
अधिशेष तरलता:
- परिचय:
- अधिशेष तरलता तब होती है जब बैंकिंग प्रणाली में नकदी प्रवाह लगातार केंद्रीय बैंक द्वारा बाज़ार से तरलता की निकासी से अधिक होता है।
- बैंकिंग प्रणाली में तरलता तत्काल उपलब्ध नकदी को संदर्भित करती है जिसे बैंकों को अल्पकालिक व्यापार और वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने की आवश्यकता होती है।
- अधिशेष तरलता तब होती है जब बैंकिंग प्रणाली में नकदी प्रवाह लगातार केंद्रीय बैंक द्वारा बाज़ार से तरलता की निकासी से अधिक होता है।
- बढ़ती तरलता के कारण:
- अग्रिम कर और वस्तु एवं सेवा कर (GST) भुगतान
- जारी किये गए 2,000 रुपए के नोटों को जमा करना
- सरकारी बॉण्ड का मोचन
- उच्च सरकारी खर्च
- रुपए को मूल्यह्रास से बचाने हेतु RBI द्वारा डॉलर की बिक्री
- बढ़ती तरलता का प्रभाव:
- इससे महँगाई का स्तर बढ़ सकता है।
- बाज़ार में ब्याज दरें कम रहेंगी।
- रुपए का अवमूल्यन होगा।
- RBI के उपाय:
- यदि तरलता का स्तर अपनी सीमा से विचलित होता है तो RBI कार्यवाही करता है।
- RBI अपनी तरलता समायोजन सुविधा के तहत रेपो के माध्यम से बैंकिंग प्रणाली में तरलता को बढ़ाता है और तरलता की स्थिति का आकलन करने के बाद रिवर्स रेपो का उपयोग कर इसे वापस लेता है।
- RBI 14-दिवसीय परिवर्तनीय दर रेपो और/या रिवर्स रेपो ऑपरेशन का भी उपयोग करता है।
मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने हेतु RBI द्वारा उपयोग किये जाने वाले उपकरण:
मात्रात्मक उपकरण |
आधार |
गुणात्मक उपकरण |
ये मौद्रिक नीति के उपकरण हैं जो अर्थव्यवस्था में धन/ऋण की समग्र आपूर्ति को प्रभावित करते हैं। |
अर्थ |
इन उपकरणों का उपयोग क्रेडिट की दिशा को विनियमित करने के लिये किया जाता है। |
नियंत्रण के पारंपरिक तरीके |
वैकल्पिक नाम |
नियंत्रण के चयनात्मक तरीके |
1. बैंक दर |
उपकरण |
1. सीमांत आवश्यकता |
मौद्रिक नीति की लिखतें |
|
रेपो दर |
|
रिवर्स रेपो दर |
|
तरलता समायोजन सुविधा |
|
सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) |
|
कॉरिडोर |
|
बैंक दर |
|
नकद आरक्षित अनुपात (CRR) |
|
सांविधिक चलनिधि अनुपात (SLR) |
|
खुला बाज़ार परिचालन (OMO) |
|
बाज़ार स्थिरीकरण योजना (MSS) |
|
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से किससे किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा गुणक में वृद्धि होती है? (2021) (a) बैंकों में आरक्षित नकदी निधि अनुपात में वृद्धि उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। प्रश्न: क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद की स्थायी संवृद्धि और निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2019) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
केंद्र खरीफ फसलों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण
प्रिलिम्स के लिये:खरीफ फसलें, कृषि लागत और मूल्य आयोग, फसल विविधीकरण, केंद्रीय बजट, स्वामीनाथन आयोग, सटीक कृषि, जैविक खेती मेन्स के लिये:न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), वर्ष 2023-24 के लिये खरीफ फसलों हेतु MSP |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने किसानों को उचित पारिश्रमिक प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 2023-24 मौसम के लिये खरीफ फसलों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को मंज़ूरी दी है।
- हालाँकि किसान संगठनों ने बढ़ती लागत के साथ MSP नहीं बढ़ने को लेकर चिंता जताई है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य:
- MSP किसानों को भुगतान की जाने वाली गारंटीकृत राशि है जिस पर सरकार उनकी उपज खरीदती है।
- सरकार ने 22 अनिवार्य फसलों के लिये MSP और गन्ने के लिये उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) की घोषणा की।
- अनिवार्य फसलें खरीफ मौसम की 14 फसलें, 6 रबी फसलें और दो अन्य व्यावसायिक फसलें हैं।
- इसके अलावा तोरिया और छिलके वाले नारियल का MSP क्रमशः तोरिया/सरसों और खोपरा के MSP के आधार पर तय किया जाता है।
- MSP कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों पर आधारित है, जिसमें उत्पादन की लागत, मांग और आपूर्ति, बाज़ार मूल्य के रुझान, अंतर-फसल मूल्य समानता आदि जैसे विभिन्न कारकों पर विचार किया जाता है।
- CACP कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार का एक संबद्ध कार्यालय है। यह जनवरी 1965 में अस्तित्व में आया।
- भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) MSP के स्तर पर अंतिम निर्णय (अनुमोदन) लेती है।
- सरकार ने 22 अनिवार्य फसलों के लिये MSP और गन्ने के लिये उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) की घोषणा की।
- MSP का उद्देश्य उत्पादकों को उनकी उपज के लिये लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करना और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना है।
खरीफ फसलें:
- खरीफ फसलें वे फसलें हैं जो जून से सितंबर तक वर्षा ऋतु में बोई जाती हैं।
- धान, मक्का, कदन्न, दालें, तिलहन, कपास और गन्ना कुछ प्रमुख खरीफ फसलें हैं।
- भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन में खरीफ फसलों का योगदान लगभग 55% है।
वर्ष 2023-24 के लिये खरीफ फसलों हेतु MSP:
- केंद्र ने दावा किया है कि वर्ष 2023-24 के लिये खरीफ फसलों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी केंद्रीय बजट 2018-19 की अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत के कम- से-कम 1.5 गुना के स्तर पर MSP तय करने की घोषणा के अनुरूप है।
- सभी 14 खरीफ फसलों के लिये MSP में 5.3 से लेकर 10.35 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। व्यावहारिक तौर पर देखें तो यह 128 रुपए बढ़कर 805 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है।
- वर्ष 2022-23 में हरे चने (मूँग) में सबसे अधिक 10.4% की वृद्धि हुई, इसके बाद तिलहन में 10.3% की वृद्धि देखने को मिली
किसानों की चिंताएँ:
- अपर्याप्त लागत निर्धारण: किसानों ने इंगित किया है कि MSP (A2+FL लागत) की गणना के लिये CACP द्वारा उपयोग की जाने वाली उत्पादन लागत में किसानों द्वारा किये गए सभी खर्च; भूमि का किराया, ऋण पर ब्याज, पारिवारिक श्रम आदि शामिल नहीं किये गए हैं।
- उनकी मांग है कि MSP का निर्धारण स्वामीनाथन आयोग द्वारा अनुशंसित उत्पादन की व्यापक लागत (C2) के आधार पर होना चाहिये।
उत्पादन लागत के तीन प्रकार:
- 'A2': यह किसान द्वारा बीज, उर्वरक, कीटनाशकों, किराये के श्रम, लीज़ पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि पर सीधे तौर पर नकद और वस्तु के रूप में किये गए सभी भुगतान लागतों को कवर करता है।
- 'A2+FL': इसमें A2 और अवैतनिक पारिवारिक श्रम का एक आरोपित मूल्य शामिल होता है।
- 'C2': यह A2+FL के शीर्ष पर स्वामित्व वाली भूमि और अचल पूंजीगत संपत्तियों पर किराये तथा ब्याज को छोड़कर एक अधिक व्यापक लागत है।
- बाज़ार प्रतिबिंब का अभाव: उन्होंने यह भी तर्क दिया है कि MSP वास्तविक बाज़ार स्थितियों और मुद्रास्फीति के रुझान को प्रतिबिंबित नहीं करता है।
- उन्होंने मांग की है कि किसानों को उचित लाभ सुनिश्चित करने हेतु MSP को थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) या उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) से जोड़ा जाना चाहिये।
- खरीद तंत्र पर संदेह: उन्होंने किसानों को उनकी उपज हेतु MSP सुनिश्चित करने के लिये खरीद तंत्र और पर्याप्त बुनियादी ढाँचे एवं भंडारण सुविधाओं की उपलब्धता पर भी संदेह जताया है।
- उनका आरोप है कि सरकार अक्सर बाज़ार की कीमतों में हेर-फेर करने और MSP को कम करने हेतु आयात या निर्यात नीतियों का सहारा लेती है।
- क्षेत्रीय असमानताएँ और फसल-विशिष्ट मुद्दे: उन्होंने MSP के कार्यान्वयन में क्षेत्रीय असमानताओं और फसल-विशिष्ट मुद्दों पर भी प्रकाश डाला है।
- उन्होंने दावा किया है कि MSP केवल कुछ फसलों और कुछ राज्यों को लाभ पहुँचाता है, जबकि कई अन्य फसलों एवं क्षेत्रों को नकार देता है।
- उन्होंने मांग की है कि MSP को सभी फसलों और सभी राज्यों तक बढ़ाया जाना चाहिये एवं MSP हेतु कानूनी गारंटी होनी चाहिये।
आगे की राह
- तकनीकी समाधान: सटीक कृषि, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और रिमोट सेंसिंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करने से फसल की पैदावार को अनुकूलित करने, उत्पादन लागत को कम करने एवं किसानों की जानकारी तक पहुँच बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
- मोबाइल एप्लीकेशन और प्लेटफॉर्म विकसित करना जो किसानों को रीयल-टाइम बाज़ार की जानकारी, मौसम अपडेट और सर्वोत्तम विधि प्रदान करते हैं, जिससे वे फसल चयन एवं मूल्य निर्धारण के बारे में उचित निर्णय लेने में सक्षम हो जाते हैं।
- फसलों का विविधीकरण: किसानों को उच्च मूल्य और जलवायु के अनुकूल फसलों की खेती हेतु प्रोत्साहित करके फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने से पारंपरिक फसलों के लिये MSP पर उनकी निर्भरता कम हो सकती है।
- जैविक खेती, ऊर्ध्वाधर खेती और हाइड्रोपोनिक्स जैसी नवीन कृषि पद्धतियों को अपनाकर किसानों को स्थानीय बाज़ारों से जोड़कर उच्च लाभ अर्जित करने में मदद मिल सकती है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): सरकार, निजी क्षेत्र और किसान संगठनों के बीच साझेदारी को सुविधाजनक बनाने से बाज़ार संबंध अच्छे बन सकते हैं, मूल्यवर्द्धन में वृद्धि हो सकती है तथा किसानों से सौदेबाज़ी में सुधार हो सकता है।
- किसानों के लिये एक उचित और लाभकारी बाज़ार सुनिश्चित करने हेतु सहयोगात्मक पहलों में अनुबंध खेती, कृषि-रसद बुनियादी ढाँचा विकास और कृषि-प्रसंस्करण इकाइयाँ शामिल हो सकती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: D प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)
उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं? (a) केवल एक उत्तर: c |