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डेली न्यूज़

  • 07 Nov, 2022
  • 74 min read
इन्फोग्राफिक्स

वायु प्रदूषक

Air-Pollutants


सामाजिक न्याय

स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर रिपोर्ट, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर रिपोर्ट, 2022, फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइज़ेशन, सतत् विकास लक्ष्य

मेन्स के लिये:

स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर रिपोर्ट, 2022, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर रिपोर्ट का 2022 संस्करण जारी किया गया।

  • यह फ्लैगशिप रिपोर्ट प्रत्येक वर्ष तैयार की जाती है।
  • रिपोर्ट में इस बात पर ध्यान दिया गया है कि कैसे हमारी कृषि-खाद्य प्रणालियों में ऑटोमेशन सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में योगदान दे सकता है और नीति निर्माताओं को लाभ को अधिकतम करने तथा जोखिमों को कम करने के बारे में सिफारिशें प्रदान करता है।

एग्रीकल्चर ऑटोमेशन:

  • एग्रीकल्चर ऑटोमेशन, जिसमें ट्रैक्टर से लेकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता तक शामिल है, खाद्य उत्पादन को अधिक कुशल और पर्यावरण के अनुकूल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यदि छोटे पैमाने के उत्पादकों और अन्य हाशिये के समूहों के लिये ऑटोमेशन तक पहुँच दुर्गम बनी रहती है तो इससे असमानताओं में भी वृद्धि हो सकती है

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट में विभिन्न तकनीकों का प्रतिनिधित्व करने वाले दुनिया भर के 27 केस स्टडीज़ को शामिल किया गया।
    • 27 सेवा प्रदाताओं में से केवल 10 की स्थिति ही फायदेमंद और आर्थिक रूप से टिकाऊ है।
  • प्रति 1,000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि के लिये उपलब्ध ट्रैक्टरों की संख्या संबंधी आँकड़ों के अनुसार, क्षेत्रों में मशीनीकरण की दिशा में असमान प्रगति हुई है।
  • उत्तरी अमेरिका, यूरोप और ओशिनिया के उच्च आय वाले देश 1960 के दशक तक काफी अधिक यंत्रीकृत थे लेकिन निम्न और मध्यम आय वाले देशों मेंं मशीनीकरण का स्तर निम्न था।
  • विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका में इसकी सीमितता के साथ देशों और इनके बीच ऑटोमेशन के प्रसार में व्यापक असमानताएँरही हैं।
    • उदाहरण के लिये वर्ष 2005 में जापान में प्रति 1,000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर 400 से अधिक ट्रैक्टर थे, जबकि घाना में यह आँकड़ा केवल 4 था।
    • उप-सहारा अफ्रीका में मानव और पशु शक्ति पर कृषि क्षेत्र की अधिक निर्भरता के कारण उत्पादकता सीमित रही है।

सुझाव:

  • एग्रीकल्चर ऑटोमेशन नीति द्वारा कृषि खाद्य प्रणालियों के टिकाऊ और लचीलेपन को सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • नीति निर्माताओं को श्रम-प्रचुर क्षेत्रों के संदर्भ में ऑटोमेशन पर सब्सिडी देने से बचना चाहिये।
    • एग्रीकल्चर ऑटोमेशन की वजह से ऐसे क्षेत्रों में बेरोज़गारी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है जहाँ ग्रामीण श्रमिक प्रचुर मात्रा में होने के साथ मज़दूरी कम है।
  • नीति निर्माताओं को ऑटोमेशन को अपनाने के लिये एक सक्षम वातावरण बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये
  • संक्रमण की स्थिति के दौरान नौकरी खोने के अधिक जोखिम वाले कम कुशल श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये

खाद्य और कृषि संगठन :

  • परिचय:
    • FAO संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो भुखमरी की समस्या को समाप्त करने के लिये वैश्विक पहल को निर्देशित करती है।
    • प्रत्येक वर्ष विश्व में 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। यह दिवस FAO की स्थापना की वर्षगाँठ की याद में मनाया जाता है।
    • यह संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सहायता संगठनों में से एक है जो रोम (इटली) में स्थित है। इसके अलावा विश्व खाद्य कार्यक्रम और कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD) भी इसमें शामिल हैं।
  • FAO की पहलें:
  • फ्लैगशिप पब्लिकेशन (Flagship Publications):

स्रोत: डाउन टू अर्थ


आंतरिक सुरक्षा

मेक-II परियोजना में शामिल नवीन उत्पाद

प्रिलिम्स के लिये: 

रक्षा अधिग्रहण कार्यक्रम, मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट, ड्रोन किल सिस्टम

मेन्स के लिये:

भारतीय रक्षा उपकरण, रक्षा अधिग्रहण कार्यक्रम, सरकार की संबंधित पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय सेना ने रक्षा खरीद की मेक-II पहल के तहत भारतीय उद्योगों द्वारा विकसित महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी हेतु पाँच परियोजना स्वीकृति आदेशों (PSOs) को मंज़ूरी दी है।

मेक-II परियोजना:

  • परिचय:
    • मेक-II परियोजनाएँ अनिवार्य रूप से उद्योग द्वारा वित्तपोषित परियोजनाएँ हैं जिनमें प्रोटोटाइप के विकास के लिये भारतीय विक्रेताओं द्वारा डिज़ाइन एवं विकसित किये गए नवीन समाधान शामिल हैं।
    • कुल 43 परियोजनाओं में से अब तक 22 प्रोटोटाइप विकास के चरण में हैं जिनकी कुल लागत, परियोजना लागत (₹27,000 करोड़) के सापेक्ष 66% (₹18,000 करोड़) है।
  • परियोजना के तहत शामिल नवीन पहलू:
    • हाई फ्रीक्वेंसी मैन पैक्ड सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो (HFSDR):
      • ये रेडियो सेट इन्वेंट्री में मौजूदा सीमित डेटा हैंडलिंग क्षमता और पुरानी तकनीक वाले हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो सेटों की जगह लेंगे
      • अत्याधुनिक, हल्के वज़न वाले HFSDR सुरक्षा एवं डेटा क्षमता में वृद्धि और बैंड विड्थ के माध्यम से लंबी दूरी का रेडियो संचार प्रदान करेगा।
    • ड्रोन किल सिस्टम:
      • ड्रोन किल सिस्टम, निम्न रेडियो क्रॉस सेक्शन ड्रोन के खिलाफ एक हार्ड किल एंटी ड्रोन सिस्टम है।
      • इसे दिन और रात में सभी प्रकार के क्षेत्रों में काम करने के लिये विकसित किया जा रहा है।
    • इन्फैंट्री ट्रेनिंग वेपन सिम्युलेटर (IWTS):
      • IWTS, भारतीय सेना के साथ प्रमुख सेवा के रूप में पहली ट्राई-सर्विस मेक-II परियोजना है।
    • मीडियम रेंज प्रिसिशन किल सिस्टम (MRPKS):
      • MRPKS एक बार लॉन्च होने के बाद दो घंटे तक हवा में उड़ान (Loiter) भर सकता है और 40 किमी. की दूरी तक हाई वैल्यू टार्गेट्स को निशाना बना सकता है।
    • 155mm टर्मिनली गाइडेड मुनिशन (TGM):

पूंजी  अधिग्रहण की 'मेक' श्रेणी:

  • पूंजी अधिग्रहण की 'मेक' श्रेणी मेक इन इंडिया पहल की आधारशिला है जिसका उद्देश्य सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों की भागीदारी के माध्यम से स्वदेशी क्षमताओं का निर्माण करना है।
  • 'मेक-I' सरकार द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं को संदर्भित करती है, जबकि 'मेक-II' के तहत उद्योग-वित्तपोषित कार्यक्रमों को कवर किया जाता है।
    • मेक-I को भारतीय सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ लाइट टैंक और संचार उपकरण जैसे बड़े प्लेटफॉर्म के विकास में शामिल किया गया है।
    • मेक-II श्रेणी में सैन्य हार्डवेयर उपकरणों का प्रोटोटाइप विकास या आयात प्रतिस्थापन के लिये इसका उन्नयन शामिल है जिसके प्रोटोटाइप विकास उद्देश्यों के लिये कोई सरकारी वित्तपोषण प्रदान नहीं किया जाएगा।
  • 'मेक' के तहत एक अन्य उप-श्रेणी 'मेक-III' है जो सैन्य हार्डवेयर उपकरणों को कवर करती है जिसे स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और विकसित नहीं किया जा सकता है, लेकिन आयात प्रतिस्थापन के लिये देश में निर्मित किया जा सकता है तथा भारतीय कंपनियाँ विदेशी भागीदारों के सहयोग से इनका निर्माण कर सकती हैं।

रक्षा उपकरणों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु अन्य पहलें:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित टर्मिनल हाई ऑल्टिट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) क्या है?

(a) इज़रायल की एक रडार प्रणाली
(b) भारत का घरेलू मिसाइल प्रतिरोधी कार्यक्रम
(c) अमेरिकी मिसाइल प्रतिरोधी प्रणाली
(d) जापान और दक्षिण कोरिया के बीच एक रक्षा सहयोग

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • अमेरिका की थाड (THAAD) मिसाइल प्रणाली को मध्यम रेंज की बैलिस्टिक मिसाइलों को उनकी उड़ान के शुरुआती दौर में ही गिराने के लिये डिज़ाइन की गई है।
  • उनके पास वातावरण के अंदर और बाहर मिसाइल को इंटरसेप्ट करने की क्षमता है।
  • यह अन्य बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणालियों के साथ इंटरऑपरेबल है और दुनिया भर में अत्यधिक गतिशील एवं तैनाती योग्य है।

अतः विकल्प (c) सही है।


प्रश्न. रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का अब उदारीकरण होना तय है: इसका भारतीय रक्षा और अर्थव्यवस्था पर लघु एवं दीर्घावधि में क्या प्रभाव पड़ने की संभावना है? (मुख्य परीक्षा, 2014)

प्रश्न. S-400 वायु रक्षा प्रणाली तकनीकी रूप से दुनिया में वर्तमान में उपलब्ध किसी भी अन्य प्रणाली से कैसे बेहतर है? (मुख्य परीक्षा, 2021)।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

राज्यपाल को पदच्युत करना

प्रिलिम्स के लिये:

राज्यपाल को हटाने से संबंधित संवैधानिक प्रावधान

मेन्स के लिये:

राज्यपाल-राज्य संबंधों में असहमति के बिंदु, राज्यपाल को हटाना और विभिन्न आयोगों द्वारा संबंधित सिफारिशें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक राजनीतिक दल ने तमिलनाडु के राज्यपाल को हटाने का प्रस्ताव पेश किया।

  • सरकार बनाने के लिये पार्टी का चुनाव, बहुमत साबित करने की समय-सीमा, विधेयकों को लेकर बैठकें और राज्य प्रशासन के बारे में आलोचनात्मक बयान जारी करना हाल के वर्षों में राज्यों तथा राज्यपालों के बीच की कड़वाहट के मुख्य कारण रहे हैं।
  • इसके कारण, राज्यपाल को केंद्र के एक एजेंट, कठपुतली और रबर स्टैम्प जैसे नकारात्मक शब्दों के साथ संदर्भित किया जाने लगा है।

राज्यपाल को कैसे हटाया जा सकता है?

  • संविधान के अनुच्छेद 155 और 156 के तहत राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा वह "राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत" पद धारण करता है।
    • यदि पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा होने से पूर्व इस प्रसादपर्यंतता को वापस ले लिया जाता है, तो राज्यपाल को पद छोड़ना पड़ता है।
  • राष्ट्रपति चूँकि प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से काम करता है, इसलिये राज्यपाल को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया और हटाया जा सकता है।

राज्यों और राज्यपाल के बीच असहमति के मामले में क्या होता है?

  • संवैधानिक प्रावधान:
    • राज्यपाल और राज्य के बीच मतभेद होने पर इसकी भूमिका के बारे में स्पष्ट संवैधानिक प्रावधान नहीं है।
    • मतभेदों का प्रबंधन परंपरागत रूप से एक-दूसरे की सीमाओं के सम्मान द्वारा निर्देशित किया जाता है।
  • न्यायालयों के फैसले:
    • सूर्य नारायण चौधरी बनाम भारत संघ (1981): राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति की प्रसादपर्यंतता न्यायसंगत नहीं है क्योंकि राज्यपाल के पास कार्यकाल की कोई सुरक्षा नहीं होती है और राष्ट्रपति द्वारा प्रसादपर्यंतता वापस लेने से उसे किसी भी समय हटाया जा सकता है।
    • बीपी सिंघल बनाम भारत संघ (2010): सर्वोच्च न्यायालय ने प्रसादपर्यंतता सिद्धांत पर विस्तार से बताया। सर्वोच्च न्यायालय ने बरकरार रखा कि 'प्रसादपर्यंतता' सिद्धांत पर कोई सीमा या प्रतिबंध नहीं है", लेकिन यह "प्रसादपर्यंतता की वापसी के कारण की आवश्यकता को समाप्त नहीं करता है"।
      • बेंच ने कहा कि न्यायालय यह मानकर चलेगी कि राष्ट्रपति के पास राज्यपाल को हटाने के लिये "ठोस और वैध" कारण थे लेकिन अगर कोई बर्खास्त किया गया राज्यपाल न्यायालय में आता है, तो केंद्र को अपने फैसले को न्यायोचित ठहराना होगा।
  • विभिन्न आयोगों द्वारा की गई सिफारिशें:
    • वर्षों से कई पैनल और आयोगों ने राज्यपालों की नियुक्ति और उनके कार्य करने के तरीके में सुधारों की सिफारिश की है। हालाँकि संसद द्वारा उन्हें कभी कानून नहीं बनाया गया।
      • सरकारिया आयोग (वर्ष 1988):
        • इसने सिफारिश की कि राज्यपालों को "दुर्लभ और बाध्यकारी" परिस्थितियों को छोड़कर पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने से पहले बर्खास्त नहीं किया जाना चाहिये।
        • बर्खास्त किये जाने की प्रक्रिया में राज्यपालों को स्पष्टीकरण अथवा अपना तर्क प्रस्तुत करने का अवसर मिलना चाहिये और केंद्र सरकार को इस संबंध में स्पष्टीकरण पर उचित विचार करना चाहिये।
        • आगे यह सिफारिश की गई है कि राज्यपालों को उनके निष्कासन के आधारों के बारे में सूचित किया जाना चाहिये।
      • वेंकटचलैया आयोग (वर्ष 2002):
        • इसने सिफारिश की कि आमतौर पर राज्यपालों को अपना पाँच साल का कार्यकाल पूरा करने की अनुमति दी जानी चाहिये।
        • यदि उन्हें कार्यकाल पूरा होने से पहले हटाना है तो केंद्र सरकार को मुख्यमंत्री से परामर्श के बाद ही ऐसा करना चाहिये।
      • पुंछी आयोग (वर्ष 2010):
        • इसने संविधान से "राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत" वाक्यांश को हटाने का सुझाव दिया क्योंकि केंद्र सरकार की इच्छा पर राज्यपाल को हटाया नहीं जाना चाहिये।
        • इसके बजाय उसे केवल राज्य विधायिका के प्रस्ताव द्वारा हटाया जाना चाहिये।

आगे की राह

  • ंघवाद का सुदृढ़ीकरण: राज्यपाल के पद के दुरुपयोग को रोकने के लिये भारत में संघीय व्यवस्था को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
    • इस संबंध में अंतर-राज्य परिषद और संघवाद के विकल्प के रूप में राज्यसभा की भूमिका को मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • राज्यपाल की नियुक्ति की पद्धति में सुधार: राज्यपाल की नियुक्ति राज्य विधायिका द्वारा तैयार किये गए पैनल के आधार पर की जा सकती है, वहीं वास्तविक नियुक्ति का अधिकार अंतर-राज्य परिषद को होना चाहिये, न कि केंद्र सरकार को।
  • राज्यपाल के लिये आचार संहिता: इस 'आचार संहिता' में कुछ 'मानदंड और सिद्धांत' निर्धारित किये जाने चाहिये, जो राज्यपाल के 'विवेक' एवं उसकी शक्तियों के प्रयोग हेतु मार्गदर्शन कर सकें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. किसी राज्य के राज्यपाल को निम्नलिखित में से कौन सी विवेकाधीन शक्तियाँ प्राप्त हैं? (2014)

  1. राष्ट्रपति शासन लगाने के लिये भारत के राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजना
  2. मंत्रियों की नियुक्ति
  3. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कुछ विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित रखना
  4. राज्य सरकार के कामकाज के संचालन के लिये नियम बनाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार, राज्यपाल अपनी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से करेगा, सिवाय उन कार्यों के जिनमें उसे विवेकाधिकार प्राप्त है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत किसी राज्य का राज्यपाल भारत के राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेज सकता है, जिसमें राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश की जा सकती है। यह राज्यपाल को प्रदान की जाने वाली एक विवेकाधीन शक्ति है। अत: कथन 1 सही है।
  • यह मुख्यमंत्री (CM) और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है जो कि उसके प्रसादपर्यंत पद धारण करते हैं। राज्य मंत्रिमंडल में मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल के विवेक पर नहीं होती है। यह केवल औपचारिक रूप से नियुक्ति को मंज़ूरी देता है। इस संदर्भ में विवेकाधिकार मुख्यमंत्री के पास होता है। अत: कथन 2 सही नहीं है।
  • राज्यपाल, राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कुछ विधेयकों, जो कि उच्च न्यायालय की स्थिति को ज़ोखिम में डालते हैं, को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकता है। इसके अलावा उस स्थिति में राज्यपाल भी विधेयक को सुरक्षित रख सकता है यदि यह संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के विपरीत है, देश के हित के खिलाफ एवं गंभीर राष्ट्रीय महत्त्व का है आदि। अतः कथन 3 सही है।
  • यह राज्य सरकार के कामकाज़ के संचालन के लिये नियम बनाता है और मंत्रियों के बीच कार्य का आवंटन करता है लेकिन यह शक्ति राज्यपाल के विवेकाधीन नहीं है। वह मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है। अत: कथन 4 सही नहीं है। अतः विकल्प (b) सही है।

मेन्स

प्रश्न. क्या सर्वोच्च न्यायालय का फैसला (जुलाई 2018) उपराज्यपाल और दिल्ली की चुनी हुई सरकार के बीच राजनीतिक संघर्ष को सुलझा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)

प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग के लिये आवश्यक शर्तों की चर्चा कीजिये। राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों को विधायिका के समक्ष रखे बिना पुन: प्रख्यापित करने की वैधता पर चर्चा कीजिये। (2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

खतरे में विश्व धरोहर हिमनद : यूनेस्को

प्रिलिम्स के लिये:

यूनेस्को की विश्व धरोहर, जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग।

मेन्स के लिये:

खतरे में विश्व धरोहर हिमनद, यूनेस्को।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा किये गए एक अध्ययन में पाया गया है कि तापमान वृद्धि को सीमित करने के प्रयासों के बावजूद यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल एकतिहाई ग्लेशियर/हिमनद खतरे में हैं।

  • हिमनद जलवायु परिवर्तन के संवेदनशील संकेतक होते हैं। क्रिस्टलीय बर्फ, चट्टान, तलछट एवं जल से निर्मित क्षेत्र, जहाँ पर वर्ष के अधिकांश समय बर्फ जमी होती है, को हिमनद कहते हैं। अत्यधिक भार व गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से हिमनद ढलान की ओर प्रवाहित होते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • ग्लेशियरों/हिमनदों हेतु खतरा:
    • यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल में 50 ग्लेशियरों को शामिल किया गया हैं, जो पृथ्वी के कुल ग्लेशियर क्षेत्र के लगभग 10% का प्रतिनिधित्व करते हैं।
      • इनमें सबसे ऊँचा (माउंट एवरेस्ट का क्षेत्र), सबसे लंबा अलास्का में तथा अफ्रीका के शेष ग्लेशियर शामिल हैं।
    • ये ग्लेशियर वर्ष 2000 से कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन की वजह से बढ़ते तापमान के कारण तेज़ी से पिघल रहे हैं।
    • उनसे वर्तमान में प्रत्येक वर्ष 58 बिलियन टन बर्फ पिघल रही है (फ्राँस और स्पेन के संयुक्त वार्षिक जल उपयोग के बराबर) और वैश्विक समुद्र-स्तर में लगभग 5% की वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार है।
      • अफ्रीका, एशिया, यूरोप, लैटिन अमेरिका, उत्तरी अमेरिका और ओशिनिया के ग्लेशियर खतरे में हैं।
      • अफ्रीका: अफ्रीका में सभी विश्व धरोहर स्थल वर्ष 2050 तक संकट के दायरे में आ जाएंगे, जिसमें किलिमंजारो नेशनल पार्क और माउंट केन्या शामिल हैं।
      • एशिया: युन्नान संरक्षित क्षेत्रों (चीन) की तीन समानांतर नदियों में ग्लेशियर, सबसे तेज़ी से पिघलने वाले ग्लेशियरों में शामिल हैं।
      • यूरोप: पाइरेनीस मोंट पेर्डु ( फ्राँस, स्पेन) में वर्ष 2050 तक ग्लेशियर के गायब होने की काफी अधिक संभावना है।
  • ग्लेशियरों का महत्व:
    • आधी जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर घरेलू उपयोग, कृषि और बिजली के लिये जल स्रोत के रूप में ग्लेशियरों पर निर्भर है।
    • ग्लेशियर जैवविविधता का आधार होने के साथ कई पारिस्थितिक तंत्रों की खाद्य शृंखला का आधार हैं।
    • जब ग्लेशियर तेज़ी से पिघलते हैं, तो लखों लोगों को जल की कमी का सामना करना पड़ता है और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है तथा समुद्र के स्तर में वृद्धि से लाखों लोग विस्थापित हो सकते हैं।
  • सुझाव:
    • यदि पूर्व-औद्योगिक युग की तुलना में वैश्विक तापमान में वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो तब अन्य दो-तिहाई ग्लेशियरों को बचाना अब भी संभव है।
    • कार्बन उत्सर्जन में कमी किये जाँव के साथ ग्लेशियरों की निगरानी और संरक्षण के लिये एक नया अंतर्राष्ट्रीय कोष बनाने की ज़रूरत है।
      • इस तरह के कोष की स्थापना से अनुसंधान, सभी हितधारकों के बीच विनिमय नेटवर्क को बढ़ावा मिलने, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और आपदा जोखिम को कम करने हेतु उपायों को लागू करने में सहायता मिलेगी।
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती के साथ प्रकृति-आधारित समाधानों में निवेश करने की तत्काल आवश्यकता है जिससे न केवल जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलेगी बल्कि लोगों में इसके प्रभावों के प्रति अनुकूलन की क्षमता बढ़ सकती है।

यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थल:

  • परिचय:
    • विश्व धरोहर/विरासत स्थल का आशय एक ऐसे स्थान से है, जिसे यूनेस्को द्वारा उसके विशिष्ट सांस्कृतिक अथवा भौतिक महत्त्व के कारण सूचीबद्ध किया गया है।
    • विश्व धरोहर स्थलों की सूची को ‘विश्व धरोहर कार्यक्रम’ द्वारा तैयार किया जाता है, यूनेस्को की ‘विश्व धरोहर समिति’ द्वारा इस कार्यक्रम को प्रशासित किया जाता है।
    • यह सूची यूनेस्को द्वारा वर्ष 1972 में अपनाई गई ‘विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण से संबंधित कन्वेंशन’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संधि में सन्निहित है।
  • स्थल:
    • इसके 167 सदस्य देशों में लगभग 1,100 यूनेस्को सूचीबद्ध स्थल हैं।
    • वर्ष 2021 में, यूनाइटेड किंगडम के 'लिवरपूल - मैरीटाइम मर्केंटाइल सिटी' को "संपत्ति के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य को व्यक्त करने वाली विशेषताओं के भारी नुकसान" के कारण विश्व विरासत सूची से हटा दिया गया था।
      • वर्ष 2007 में यूनेस्को पैनल ने ओमान के अरबियन ऑरिक्स अभयारण्य को अवैध शिकार और निवास स्थान में कमी संबंधी चिंताओं के कारण एवं वर्ष 2009 में जर्मनी के ड्रेसडेन में एल्बे घाटी में एल्बे नदी पर वाल्डश्लोएशन रोड ब्रिज के निर्माण के बाद सूची से हटा दिया।

भारत में सांस्कृतिक स्थल:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न.  यूनेस्को के मैकब्राइड आयोग के लक्ष्य और उद्देश्य क्या हैं? इस पर भारत की क्या स्थिति है? (2016)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

कॉलेजियम सिस्टम

प्रिलिम्स के लिये:

कॉलेजियम सिस्टम, भारत का मुख्य न्यायाधीश।

मेन्स के लिये:

कॉलेजियम सिस्टम का विकास और इसकी आलोचना।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री ने सर्वोच्च न्यायालय की कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना करते हुए कहा कि न्यायाधीश योग्यता को दरकिनार कर अपने पसंद के लोगों की नियुक्ति या पदोन्नति की सिफारिश करते हैं।  

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(2) और 217 क्रमशः सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित हैं।

कॉलेजियम प्रणाली और इसका विकास:

  • परिचय:
    • यह न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रणाली है, जो संसद के किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा स्थापित न होकर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
  • कॉलेजियम प्रणाली का विकास:
    • प्रथम न्यायाधीश मामला (1981):
      • इसने यह निर्धारित किया कि न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के सुझाव की "प्रधानता" को "ठोस कारणों" के चलते अस्वीकार किया जा सकता है।
      • इस निर्णय ने अगले 12 वर्षों के लिये न्यायिक नियुक्तियों में न्यायपालिका पर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित कर दी है।
    • दूसरा न्यायाधीश मामला (1993):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट करते हुए कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की कि "परामर्श" का अर्थ वास्तव में "सहमति" है।
      • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि यह CJI की व्यक्तिगत राय नहीं होगी, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से ली गई एक संस्थागत राय होगी।
    • तीसरा न्यायाधीश मामला (1998):
      • राष्ट्रपति द्वारा जारी एक प्रेज़िडेंशियल रेफरेंस (Presidential Reference) (अनुच्छेद 143) के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने पाँच सदस्यीय निकाय के रूप में कॉलेजियम का विस्तार किया, जिसमें CJI और उनके चार वरिष्ठतम सहयोगी शामिल होंगे।

कॉलेजियम प्रणाली का प्रमुख:

  • सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता CJI द्वारा की जाती है और इसमें सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  • उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का नेतृत्व उसके मुख्य न्यायाधीश और उस न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं।
  • उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से ही की जाती है और इस प्रक्रिया में सरकार की भूमिका कॉलेजियम द्वारा नाम तय किये जाने के बाद की प्रक्रिया में ही होती है।

विभिन्न न्यायिक नियुक्तियों के लिये निर्धारित प्रक्रिया:

  • भारत का मुख्य न्यायाधीश (CJI) के लिये:
    • CJI और सर्वोच्च न्यायालय के अन्य जजों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
    • अगले CJI के संदर्भ में निवर्तमान CJI अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करता है।
    • हालाँकि वर्ष 1970 के दशक के अतिलंघन विवाद के बाद से व्यावहारिक रूप से इसके लिये वरिष्ठता के आधार का पालन किया जाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के लिये:
    • सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के लिये नामों के चयन का प्रस्ताव CJI द्वारा शुरू किया जाता है।
    • CJI कॉलेजियम के बाकी सदस्यों के साथ-साथ उस उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश से भी परामर्श करता है, जिससे न्यायाधीश पद के लिये अनुशंसित व्यक्ति संबंधित होता है।
    • निर्धारित प्रक्रिया के तहत परामर्शदाताओं को लिखित रूप में अपनी राय दर्ज करानी होती है और इसे फाइल का हिस्सा बनाया जाना चाहिये।
    • इसके पश्चात् कॉलेजियम केंद्रीय कानून मंत्री को अपनी सिफारिश भेजता है, जिसके माध्यम से इसे राष्ट्रपति को सलाह देने हेतु प्रधानमंत्री को भेजा जाता है।
  • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के लिये:
    • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति इस आधार पर की जाती है कि मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने वाला व्यक्ति संबंधित राज्य से न होकर किसी अन्य राज्य से होगा।
    • यद्यपि चयन का निर्णय कॉलेजियम द्वारा लिया जाता है।
    • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश CJI और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले एक कॉलेजियम द्वारा की जाती है।
    • हालाँकि इसके लिये प्रस्ताव को संबंधित उच्च न्यायालय के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश द्वारा अपने दो वरिष्ठतम सहयोगियों से परामर्श के बाद पेश किया जाता है।
    • यह सिफारिश मुख्यमंत्री को भेजी जाती है, जो इस प्रस्ताव को केंद्रीय कानून मंत्री को भेजने के लिये राज्यपाल को सलाह देता है।

ॉलेजियम प्रणाली से संबंधित प्रमुख मुद्दे

  • कार्यपालिका का बहिष्करण: न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया से कार्यपालिका के पूर्ण बहिष्करण ने एक ऐसी प्रणाली का निर्माण किया है जहाँ कुछ न्यायाधीश पूर्ण गोपनीय तरीके से अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं।
  • इसके अलावा, वे किसी भी प्रशासनिक निकाय के प्रति जवाबदेह नहीं होते हैं जिसके कारण सही उम्मीदवार की अनदेखी करते हुए गलत उम्मीदवार का चयन किया जा सकता है।
  • पक्षपात और भाई-भतीजावाद की संभावना: कॉलेजियम प्रणाली CJI पद के उम्मीदवार के परीक्षण हेतु कोई विशिष्ट मानदंड प्रदान नहीं करती है, जिसके कारण यह पक्षपात एवं भाई-भतीजावाद (Favouritism and Nepotism) की व्यापक संभावना की ओर ले जाती है।
    • यह न्यायिक प्रणाली की गैर-पारदर्शिता को जन्म देती है, जो देश में विधि एवं व्यवस्था के विनियमन के लिये अत्यंत हानिकारक है।
  • नियंत्रण एवं संतुलन के सिद्धांत के विरुद्ध: इस प्रणाली में नियंत्रण एवं संतुलन के सिद्धांत (Principle of Checks and Balances) का उल्लंघन होता है। भारत में व्यवस्था के तीनों अंग-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका यूँ तो अंशतः स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं लेकिन वे किसी भी अंग की अत्यधिक शक्तियों पर नियंत्रण के साथ ही संतुलन भी बनाए रखते हैं।
    • कॉलेजियम प्रणाली न्यायपालिका को अपार शक्ति प्रदान करती है, जो नियंत्रण का बहुत कम अवसर देती है और दुरुपयोग का खतरा उत्पन्न करती है।
  • ‘क्लोज़-डोर मैकेनिज़्म : आलोचकों ने रेखांकित किया है कि इस प्रणाली में कोई आधिकारिक सचिवालय शामिल नहीं है। इसे एक ‘क्लोज्ड डोर अफेयर’ के रूप में देखा जाता है, जहाँ कॉलेजियम की कार्य प्रणाली और निर्णयन प्रक्रिया के बारे कोई सार्वजनिक सूचना उपलब्ध नहीं होती।
    • इसके अलावा कॉलेजियम की कार्यवाही का कोई आधिकारिक कार्यवृत्त भी दर्ज नहीं होता।
  • असमान प्रतिनिधित्व: चिंता का एक अन्य क्षेत्र उच्च न्यायपालिका की संरचना है, जहाँ महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है।

नियुक्ति प्रणाली में सुधार के प्रयास:

  • इसे 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' (99वें संशोधन अधिनियम, 2014 के माध्यम से) द्वारा प्रतिस्थापित करने के प्रयास को 2015 में ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिये खतरा है।

आगे की राह

  • कार्यपालिका और न्यायपालिका को शामिल करते हुए रिक्तियों को भरना एक सतत् व सहयोगी प्रक्रिया है तथा इसके लिये कोई समय-सीमा नहीं हो सकती है। हालांँकि यह एक स्थायी, स्वतंत्र निकाय के बारे में सोचने का समय है जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने हेतु पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ प्रक्रिया को संस्थागत बनाने के लिये न्यायिक प्रधानता की गारंटी देता है लेकिन न्यायिक विशिष्टता की नहीं।
  • इसे स्वतंत्रता सुनिश्चित करनी चाहिये, विविधता को प्रतिबिंबित करना चाहिये, पेशेवर क्षमता और अखंडता का प्रदर्शन करना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2019)

  1. भारत के संविधान में 44वें संशोधन ने प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायिक समीक्षा से परे रखने वाला एक अनुच्छेद पेश किया।
  2. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में भारत के संविधान में 99वें संशोधन को रद्द कर दिया।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

 (a) केवल 1
 (b) केवल 2
 (c) दोनों 1 और 2 दोनों
 (d) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • यह वर्ष 1975 में संविधान का 39वाँ संशोधन था, जिसके माध्यम से संसद ने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा के अध्यक्ष के चुनावों के संबंध में याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिये सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति को खत्म करने के लिये एक अनुच्छेद पेश किया। इसके बजाय संसद द्वारा गठित एक निकाय को ऐसे चुनावी विवादों को हल करने की शक्ति प्राप्त होगी। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • 99वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के लिये प्रावधान किया, जो सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के बाद कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेगा। इस अधिनियम को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया था क्योंकि यह 'न्यायपालिका की स्वतंत्रता' के सिद्धांतों के साथ-साथ 'शक्तियों के पृथक्करण' के सिद्धांतों को प्रभावित करता था। अत: कथन 2 सही है।

अतः विकल्प (b) सही है।


प्रश्न: भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2017)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

बायोगैस, बायोसीएनजी, जैव ऊर्जा, संबंधित पहलें

मेन्स के लिये:

बायोगैस ऊर्जा और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम को शुरू करने के लिये दिशा-निर्देश जारी किये हैं जिससे कंपनियों के लिये शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्ट तथा अवशेषों से बायोगैस, बायोसीएनजी व बिजली का उत्पादन करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम:

  • परिचय:
    • यह कार्यक्रम अम्ब्रेला योजना, राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम का हिस्सा है।
    • सरकार परियोजना विकसित करने वालों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी और निरीक्षण कंपनियों सहित कार्यान्वयन एजेंसियों को अपशिष्ट से ऊर्जा संयंत्रों को चालू करने के लिये सेवा शुल्क का भुगतान किया जाएगा।
  • कार्यान्वयन एजेंसियाँ:
    • भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (IREDA) इस कार्यक्रम के लिये कार्यान्वयन एजेंसी होगी।
      • IREDA को आवेदनों को संसाधित करने के लिये केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA) के 1% के सेवा शुल्क का भुगतान किया जाएगा, इसके अलावा CFA के लिये 1% (न्यूनतम ₹50,000) का भुगतान संयंत्रों के कार्य शुरू होने के बाद और प्रदर्शन की निगरानी के लिये किया जाएगा।
  • वित्तीय सहायता:
    • केंद्र नए बायोगैस संयंत्रों के लिये 75 लाख रुपए प्रति मेगावाट और मौजूदा इकाइयों के लिये 50 लाख रुपए प्रति मेगावाट की वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
    • यदि अपशिष्ट से ऊर्जा (वेस्ट-टू-एनर्जी) संयंत्र विशेष श्रेणी के राज्यों, जैसे उत्तर पूर्व, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप, उत्तराखंड तथा अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में स्थापित किये जाते हैं, तो मानक CFA पैटर्न की तुलना में सामान्य CFA से 20%  अधिक होगा।

राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम:

  • परिचय:
    • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम को अधिसूचित किया है।
  • उप-योजनाएँ:
    • अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम
    • बायोमास कार्यक्रम:
      • विद्युत उत्पादन और गैर-खोई आधारित विद्युत उत्पादन परियोजनाओं में उपयोग के लिये पेलेट्स एवं ब्रिकेट्स की स्थापना में सहायता प्रदान हेतु बायोमास कार्यक्रम।
    • बायोगैस कार्यक्रम:
      • ग्रामीण क्षेत्रों में मध्यम आकार के बायोगैस संयंत्र की स्थापना में सहायता करना।

बायोगैस और बायोसीएनजी:

  • बायोगैस
    • इसमें मुख्य रूप से हाइड्रो-कार्बन शामिल होता है, जो दहनशील होने के साथ ही जलने पर गर्मी एवं ऊर्जा पैदा कर सकता है।
    • बायोगैस एक जैव रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से उत्पन्न होती है, जिसमें कुछ प्रकार के बैक्टीरिया जैविक कचरे को उपयोगी बायो-गैस में परिवर्तित करते हैं।
    • चूँकि उपयोगी गैस एक जैविक प्रक्रिया से उत्पन्न होती है, इसलिये इसे ‘बायोगैस’ कहा गया है।
    • मीथेन गैस बायोगैस का मुख्य घटक है।

Biogas

  • बायोसीएनजी
    • बायोसीएनजी, ऊर्जा का गैर-नवीकरणीय स्रोत संपीड़ित प्राकृतिक गैस (CNG) के विपरीत बायोगैस को शुद्ध करके प्राप्त किया जाने वाला नवीकरणीय ईंधन है। बायोगैस का उत्पादन तब होता है जब सूक्ष्मजीव कार्बनिक पदार्थ जैसे- भोजन, फसल अवशेष, अपशिष्ट जल आदि को अपघटित करते हैं।
    • यह अपनी संरचना और गुणों के मामले में प्राकृतिक गैस के समान है तथा पेट्रोल एवं डीज़ल जैसे ईंधन के लिये एक हरित विकल्प है।

बायोगैस का महत्त्व:

  • प्रदूषण मुक्त शहर:
    • बायोगैस समाधान हमारे शहरों को स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त बनाने में मदद कर सकता है।
      • लैंडफिल से ज़हरीले पदार्थों का रिसाव भूजल को दूषित करता है।
      • कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के कारण पर्यावरण में भारी मात्रा में मीथेन निष्कासित होती है, जिससे वायु प्रदूषण एवं ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति उत्पन्न होती है, क्योंकि मीथेन एक बहुत ही शक्तिशाली GHG है।
  • जैविक कचरे का प्रबंधन:
    • बड़े पैमाने पर म्युनिसिपल बायोगैस सिस्टम (Municipal Biogas System) स्थापित कर शहरों में जैविक कचरे का कुशलतापूर्वक निपटान करने में मदद मिल सकती है ताकि कचरे के अत्यधिक बोझ से उत्पन्न पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना किया जा सके।
    • शहरों को स्वच्छ और स्वस्थ रखते हुए जैव उर्वरकों के साथ स्वच्छ एवं हरित ईंधन का निर्माण करने हेतु नगर निगम के कचरे के लिये इन संयंत्रों का उपयोग किया जा सकता है।
  • महिलाओं के लिये मददगार:
    • बायोगैस का उपयोग करना महिलाओं के स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित हो सकता है क्योंकि वे हानिकारक धुएंँ और प्रदूषण के संपर्क में आने से बच जाएंगी।
      • घरों के अंदर जीवाश्म ईंधन और बायोमास के जलने से होने वाले वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के कारण हर साल वैश्विक स्तर पर चार मिलियन से अधिक लोग मारे जाते हैं।
      • घर के अंदर होने वाले प्रदूषण के कारण महिला सदस्य अत्यधिक प्रभावित होती हैं क्योंकि उन्हें अधिक समय तक घर में रहकर कार्य करना होता है।
  • ऊर्जा निर्भरता का विकल्प:
    • बायोगैस का प्रयोग ग्रामीण और कृषि समुदाय जो कि अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिये मुख्य रूप से लकड़ी, गोबर, लकड़ी का कोयला, कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन के दहन पर निर्भर हैं, की ऊर्जा निर्भरता को बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
      • गैर-नवीकरणीय स्रोतों पर अत्यधिक निर्भरता देश में लंबे समय से चली आ रही ऊर्जा समस्याओं का प्रमुख कारण है।

बायोगैस को बढ़ावा देने और अपशिष्ट प्रबंधन हेतु सरकार की पहल:

IREDA:

  • यह भारत सरकार के ‘नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय’ के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्यरत एक मिनीरत्न कंपनी है।
  • इसे नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र हेतु वर्ष 1987 में ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था’ के तौर पर गठित किया गया था।
  • इसका कार्य नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से संबंधित परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना तथा विकास हेतु इन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)  

प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2019)

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होगे।
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और ब्यौरेवार मानदंड उपबंधित हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट को किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)

स्रोत: मिंट


भारतीय अर्थव्यवस्था

IIPDF योजना

प्रिलिम्स के लिये:

भारत अवसंरचना परियोजना विकास निधि योजना (IIPDF योजना), सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल, बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT), बिल्ड-ओन-ऑपरेट (BOO), बिल्ड-ऑपरेट-लीज़-ट्रांसफर (BOLT), डिज़ाइन-बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (DBFOT), लीज़-डेवलप-ऑपरेट (LDO), ऑपरेट-मेंटेन-ट्रांसफर (OMT)।

मेन्स के लिये:

सार्वजनिक-निजी भागीदारी का समर्थन करने के लिये पहल और विकास योजनाएँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आर्थिक मामलों के विभाग (DEA), वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं के परियोजना विकास व्यय के लिये वित्तीय सहायता हेतु भारत अवसंरचना परियोजना विकास निधि योजना (IIPDF योजना) को अधिसूचित किया।

भारत अवसंरचना परियोजना विकास निधि योजना (IIPDF योजना):

  • परिचय:
    • IIPDF योजना की स्थापना वर्ष 2007 में की गई थी।
    • यह वर्ष 2022-23 से 2024-25 तक तीन साल की अवधि के लिये 150 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है।
    • यह परियोजना विकास लागत को पूरा करने के लिये PPP परियोजनाओं के प्रायोजक प्राधिकरणों के लिये उपलब्ध है।
      • PPP परियोजना विकास गतिविधियों को शुरू करने और बड़े नीति एवं नियामक मुद्दों को संबोधित करने के लिये PPP सेल का निर्माण तथा उन्हें सशक्त बनाने हेतु प्रायोजक प्राधिकरण के लिये यह आवश्यक होगा।
  • उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण परियोजना विकास गतिविधियों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • महत्त्व:
    • प्रायोजक प्राधिकरण, PPP लेन-देन लागत के एक हिस्से को कवर करने के लिये वित्तपोषण के स्रोत के रूप में सक्षम होगा, जिससे उनके बजट पर खरीद से संबंधित लागतों के प्रभाव को कम किया जा सकेगा।
  • वित्तीय परिव्यय:
    • IIPDF परियोजना विकास खर्च का 75% तक प्रायोजक प्राधिकरण को ब्याज़ मुक्त ऋण के रूप में योगदान देगा। शेष 25% प्रायोजक प्राधिकरण द्वारा सह-वित्तपोषित किया जाएगा।
    • बोली प्रक्रिया के सफल समापन पर सफल बोलीदाता से परियोजना विकास व्यय की वसूली की जाएगी।
    • हालाँकि बोली की विफलता के मामले में ऋण को अनुदान में परिवर्तित किया जाएगा।
    • यदि प्रायोजक प्राधिकरण किसी कारण से बोली प्रक्रिया पूरी नहीं करता है, तो योगदान की गई पूरी राशि IIPDF को वापस कर दी जाएगी।

सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के प्रकार:

  • बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT): यह एक पारंपरिक PPP मॉडल है जिसमें निजी भागीदार डिज़ाइन, निर्माण, संचालन (अनुबंधित अवधि के दौरान) और सुविधा को सार्वजनिक क्षेत्र में वापस स्थानांतरित करने के लिये ज़िम्मेदार होते हैं।
    • निजी क्षेत्र के भागीदार को किसी परियोजना के लिये वित्त की व्यवस्था करनी होती है और इसके निर्माण एवं रखरखाव की ज़िम्मेदारी लेनी होती है।
    • सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र के भागीदारों को उपयोगकर्त्ताओं से राजस्व एकत्र करने की अनुमति देगा। PPP मोड के तहत NHAI द्वारा अनुबंधित राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाएँ BOT मॉडल का एक प्रमुख उदाहरण है।
  • बिल्ड-ओन-ऑपरेट (BOO): इस मॉडल में नवनिर्मित सुविधा का स्वामित्व निजी पार्टी के पास रहेगा।
    • पारस्परिक रूप से नियमों और शर्तों पर सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदार परियोजना द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की 'खरीद' करने पर सहमति बनाई जाती है।
  • बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOOT): इसके अंतर्गत समय पर बातचीत के बाद परियोजना को सरकार या निजी ऑपरेटर को स्थानांतरित कर दिया जाता है।
    • BOOT मॉडल का उपयोग राजमार्गों और बंदरगाहों के विकास के लिये किया जाता है।
  • बिल्ड-ऑपरेट-लीज़-ट्रांसफर (BOLT): इस मॉडल में सरकार निजी साझेदार को सुविधाओं के निर्माण, डिज़ाइन, स्वामित्त्व और लीज़ का अधिकार देती है तथा लीज़ अवधि के अंत में सुविधा का स्वामित्व सरकार को हस्तांतरित किया जाता है।
  • डिज़ाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ऑपरेट (DBFO): इस मॉडल में अनुबंधित अवधि के लिये परियोजना के डिज़ाइन, उसके विनिर्माण, वित्त और परिचालन का उत्तरदायित्त्व निजी साझीदार पर होता है।
  • लीज़-डेवलप-ऑपरेट (LDO): इस प्रकार के निवेश मॉडल में या तो सरकार या सार्वजनिक क्षेत्र के पास नवनिर्मित बुनियादी ढाँचे की सुविधा का स्वामित्व बरकरार रहता है और निजी प्रमोटर के साथ लीज़ समझौते के रूप में भुगतान प्राप्त किया जाता है।
    • इसका पालन अधिकतर एयरपोर्ट सुविधाओं के विकास में किया जाता है।
  • इंजीनियरिंग, खरीद और निर्माण (EPC) मॉडल: इस मॉडल के तहत लागत पूरी तरह से सरकार द्वारा वहन की जाती है। सरकार निजी कंपनियों से इंजीनियरिंग कार्य के लिये बोलियाँ आमंत्रित करती है। कच्चे माल की खरीद और निर्माण लागत सरकार द्वारा वहन की जाती है। निजी क्षेत्र की भागीदारी न्यूनतम तथा इंजीनियरिंग विशेषज्ञता के प्रावधान तक सीमित होती है। इस मॉडल की एक समस्या यह है कि इससे सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ता है।
  • हाइब्रिड एन्युटी मॉडल (HAM): भारत में नया HAM, BOT-एन्युइटी और EPC मॉडल का मिश्रण है। डिज़ाइन के अनुसार, सरकार वार्षिक भुगतान के माध्यम से पहले पाँच वर्षों में परियोजना लागत का 40% योगदान देगी। शेष भुगतान सृजित परिसंपत्तियों एवं विकासकर्त्ता के प्रदर्शन के आधार पर किया जाएगा।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. सार्वभौम अवसंरचना सुविधा (ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटी)- (2017)

(a) एशिया में अवसंरचना के उन्नयन के लिये ASEAN का उपक्रमण है, जो एशियाई विकास बैंक द्वारा दिये गए साख (क्रेडिट) से वित्तपोषित है।
(b) गैर-सरकारी क्षेत्रक और संस्थागत निवेशकों की पूंजी का संग्रहण कर सकने के लिये विश्व बैंक काहयोग है, जो जटिल अवसंरचना सरकारी गैर-सरकारी भागीदारियों (PPPs) की तैयारी और संरचना-निर्माण को सुकर बनाना है।
(c) OECD के साथ कार्य करने वाले विश्व के प्रमुख बैंकों का सहयोग है, जो उन अवसंरचना परियोजनाओं को विस्तारित करने पर केंद्रित है जिनमें गैर-सरकारी विनिवेश संग्रहण करने की क्षमता है।
(d) UNCTAD द्वारा वित्तपोषित उपक्रमण है जो विश्व में अवसंरचना के विकास को वित्तपोषित करने और सुकर बनाने का प्रयास करता है।

उत्तर: B

व्याख्या:

  • वर्ष 2014 में, विश्व बैंक ने ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटी (GIF) शुरू की, जो बहुपक्षीय विकास बैंकों (MDBs), निजी क्षेत्र के निवेशकों और वित्तपोषकों, उभरते बाजारों और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EMDE) के बुनियादी ढाँचे के निवेश में रुचि रखने वालों के बीच सरकार के प्रयासों का सार्वजनिक-निजी-भागीदारी के माध्यम से समन्वय और एकीकरण करती है।
  • ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटी (GIF) बुनियादी ढाँचा परियोजनाओ को अच्छी तरह से संरचित कर इसको संचालित करने में सरकारों की सहायता करता है। यह परियोजना की डिज़ाइन, तैयारी, संरचना, अंतरण और कार्यान्वयन गतिविधियों के स्पेक्ट्रम को कवर करती है, GIF के तकनीकी और सलाहकार भागीदार संयुक्त विशेषज्ञता के आधार पर डिज़ाइन और संरचना पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो निजी निवेशकों की एक विस्तृत शृंखला को आकर्षित कर सकती हैं।

अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।


मेन्स:

प्रश्न: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत संयुक्त उद्यमों के माध्यम से भारत में हवाई अड्डों के विकास का परीक्षण कीजिये। इस संबंध में अधिकारियों के सामने क्या चुनौतियाँ हैं? (मुख्य परीक्षा, 2017)

प्रश्न. ढाँचागत परियोजनाओं में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) की आवश्यकता क्यों है? भारत में रेलवे स्टेशनों के पुनर्विकास में PPP मॉडल की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022)

स्रोत:पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

गंगा उत्सव 2022

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, गंगा नदी, राष्ट्रीय गंगा परिषद, स्वच्छ गंगा कोष, गंगा एक्शन प्लान।

मेन्स के लिये:

गंगा उत्सव- नदी महोत्सव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के सहयोग से गंगा उत्सव 2022 का आयोजन किया।

गंगा उत्सव 2022:

  • परिचय:
    • लोगों का नदी के साथ संबंध मज़बूत करने के लिये NMCG प्रत्येक वर्ष उत्सव मनाता है।
      • NMCG वर्ष 2016 में स्थापित राष्ट्रीय गंगा परिषद की कार्यान्वयन इकाई है, जिसने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NRGBA) की जगह ली है।
      • NMCG को गंगा उत्सव 2021 के पहले दिन फेसबुक पर एक घंटे में अपलोड किये गए हस्तलिखित नोटों की सबसे अधिक तस्वीरों के लिये गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है।
    • यह गंगा के पुनरुद्धार में जनभागीदारी (लोगों की भागीदारी) के महत्त्व पर प्रकाश डालता है, जिसमें गंगा नदी के कायाकल्प के लिये हितधारकों की भागीदारी और सार्वजनिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • गंगा उत्सव 2022:
    • गंगा उत्सव 2022 आज़ादी का अमृत महोत्सव को समर्पित है जिसे भारतीय स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य गंगा तथा इसकी सहायक नदियों के बेसिन वाले शहरों और कस्बों में 75 अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित करना है।
    • इस उत्सव में कला, संस्कृति, संगीत, ज्ञान, कविता, संवाद और कहानियों का मिश्रण शामिल होगा।
    • स्थानीय लोगों के साथ संबंध स्थापित करने और नमामि गंगे को जन आंदोलन के रूप में बढ़ावा देने के लिये ज़िलों में विविध जागरूकता गतिविधियाँ आयोजित की जाएंगी।

संबंधित पहलें:

  • गंगा एक्शन प्लान: यह पहली नदी कार्ययोजना थी जो 1985 में पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा लाई गई थी। इसका उद्देश्य जल अवरोधन, डायवर्ज़न व घरेलू सीवेज के उपचार द्वारा पानी की गुणवत्ता में सुधार करना तथा विषाक्त एवं औद्योगिक रासायनिक कचरे (पहचानी गई प्रदूषणकारी इकाइयों से) को नदी में प्रवेश करने से रोकना था।
    • राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना गंगा एक्शन प्लान का ही विस्तार है। इसका उद्देश्य गंगा एक्शन प्लान के फेज़-2 के तहत गंगा नदी की सफाई करना है।
  • राष्ट्रीय नदी गंगा बेसिन प्राधिकरण (NRGBA): इसका गठन भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत किया गया था।
  • स्वच्छ गंगा कोष: वर्ष 2014 में इसका गठन गंगा की सफाई, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों की स्थापना तथा नदी की जैविक विविधता के संरक्षण के लिये किया गया था।
  • भुवन-गंगा वेब एप: यह गंगा नदी में होने वाले प्रदूषण की निगरानी में जनता की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
  • अपशिष्ट निपटान पर प्रतिबंध: वर्ष 2017 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) द्वारा गंगा नदी में किसी भी प्रकार के कचरे के निपटान पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

गंगा नदी

  • यह भारत की सबसे लंबी नदी है जो 2,510 किमी. लंबी है, यह पहाड़ों, घाटियों और मैदानों में बहती है एवं हिंदुओं द्वारा पृथ्वी पर सबसे पवित्र नदी के रूप में प्रतिष्ठित है।

Ganga-river

  • गंगा बेसिन भारत, तिब्बत (चीन), नेपाल और बांग्लादेश में 10,86,000 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला है।
  • भारत में यह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, झारखंड, हरियाणा, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश और केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली को कवर करता है, जिसका क्षेत्रफल 8,61,452 वर्ग किमी. है जो लगभग देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 26% है।
  • यह हिमालय में गंगोत्री हिमनद के हिम क्षेत्रों से निकलती है।
  • इसे उद्गम स्रोत पर भागीरथी कहा जाता है। यह घाटी से नीचे देवप्रयाग तक बहती है जहाँ एक अन्य पहाड़ी नदी अलकनंदा से  मिलती है, फलस्वरूप इसे गंगा कहा जाता है।
  • यमुना और सोन नदी, दाहिनी ओर से मिलने वाली मुख्य सहायक नदियाँ हैं।
  • रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी और महानंदा बाई ओर से गंगा नदी में मिलती हैं। चंबल व बेतवा दो अन्य महत्त्वपूर्ण उप-सहायक नदियाँ हैं।
  • गंगा नदी का बेसिन दुनिया के सबसे उपजाऊ और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है एवं 1,000,000 वर्ग किमी. के क्षेत्र को कवर करता है।
  • गंगा नदी डॉल्फिन एक लुप्तप्राय जानवर है जो विशेष रूप से इस नदी में पाया जाता है।
  • गंगा बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र से मिलती है और पद्मा या गंगा के नाम से अपना प्रवाह जारी रखती है।
  • बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले गंगा नदी बांग्लादेश के सुंदरबन दलदल में गंगा डेल्टा का विस्तार करती है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये:

राष्ट्रीय उद्यान : उद्यान से होकर बहने वाली नदी
1- कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान : गंगा
2- काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान : मानस
3- साइलेन्ट वैली राष्ट्रीय उद्यान : कावेरी

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) कोई नहीं

उत्तर: (d)


प्रश्न- निम्नलिखित में से कौन-सी 'राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण National Ganga River Basin Authority (NGRBA)' की प्रमुख विशेषताएँ हैं?

1- नदी बेसिन, योजना एवं प्रबंधन की इकाई है।
2- यह राष्ट्रीय स्तर पर नदी संरक्षण प्रयासों की अगुवाई करता है।
3- NGRBA का अध्यक्ष चक्रानुक्रमिक आधार पर उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों में से एक होता है, जिनसे होकर गंगा बहती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न.  नामामी गंगे और स्वच्छ गंगा का राष्ट्रीय मिशन (NMCG) कार्यक्रमों पर तथा इससे पूर्व की योजनाओं के मिश्रित परिणामों के कारणों पर चर्चा कीजिये। गंगा नदी के परिरक्षण में कौन-सी प्रमात्रा छलांगें, क्रमिक योगदानों की अपेक्षा ज़्यादा सहायक हो सकती हैं?  (2015)

स्रोत:पी.आई.बी.


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